Wednesday, 27 July 2022

लाल द्वीप - ४

 

४ जीनियस कोकू-कोकी

तबाही के बाद सुरक्षित बचे द्वीपवासियों की फ़ौरन जमा हुई भीड़ ऐसे खडी थी मानो उन पर बिजली गिरी हो, सभी स्तब्ध थे. मगर अगले ही पल इथोपियनों के और कुछ जीवित बचे मूरों के दिमाग में एक स्वाभाविक प्रश्न उठा:

“अब आगे क्या? कैसे होगा?

सवाल ने हंगामा खडा कर दिया. आवाजों का शोर, जो पहले अस्पष्ट और मुश्किल से सुनाई दे रहा था, धीरे धीरे बढ़ने लगा, कहीं-कहीं तो हाथापाई तक की नौबत आ गई. पता नहीं इस सबका हश्र क्या होता, अगर एक और आश्चर्यजनक घटना न हुई होती.

कहीं कहीं सफ़ेद और रंगीन छटा लिए अफीम के लाल-लाल खेत जैसी उत्तेजित भीड़ के ऊपर अचानक प्रकट हुआ चंचल आंखों वाला शराबी चेहरा, और फिर समूचे द्वीप पर प्रसिद्ध अट्टल शराबी और निठल्ले कोकू-कोकी की निर्बल आकृति प्रकट हुई.   

इथोपियन्स पर मानो दुबारा वज्राघात हुआ. इसका कारण था, सबसे पहले, कोकू-कोकी का असाधारण अवतार. छोटे से लेकर बड़े तक, सभी को उसे खाडी में हाथ-पाँव धोते देखने की आदत थी, जहाँ किनारे पर यह दिलचस्प अग्निजल उतारा जाता था, या सिसी-बुसी की विग्वाम के पास, जहाँ यह स्वादिष्ट पेय पिया जाता था. और सबको अच्छी तरह मालूम था कि कोकू-कोकी पक्का रंगीन मूर है – ऊंचे दर्जे का. मगर अब वह आश्चर्य चकित द्वीप वासियों के सामने पक्के लाल रंग में पुता हुआ प्रकट हुआ, सिर से पैर तक इथोपियन युद्ध के पैटर्न वाली पोषाक से ढंका हुआ. अत्यंत अनुभवी नज़र भी इस धूर्त बदमाश और किसी भी साधारण इथोपियन में फर्क नहीं कर सकती थी.

कोकू-कोकी बैरल पर पहले दायें, फिर बाएँ झूमा, अपना चौड़ा जबड़ा खोला और घनघोर आवाज़ में अजीब से शब्द कहे, जिन्हें “न्यू यॉर्क टाईम्स” के सम्मोहित संवाददाता ने फ़ौरन अपनी नोटबुक में दर्ज कर लिया:     

“आज से हम आज़ाद इथोपियन्स हैं, सबको धन्यवाद देता हूँ!”  

इथोपियन्स की भीड़ में कोई भी समझ नहीं पाया कि क्यों और किसलिए खासकर ये कोकू-कोकी उन्हें धन्यवाद दे रहा है. मगर फिर भी आदमियों के विशाल समूह ने उसे आश्चर्यजनक गरज से जवाब दिया: “हुर्रे!”

ये “हुर्रे!” कई मिनटों तक द्वीप के ऊपर गरजता रहा जब तक कि कोकू-कोकी की नई घोषणा ने उसे बीच ही में रोक न दिया:

“और अब, भाईयों, चलो शपथ लो!” 

जोश में आये हुए इथोपियन्स आपस में बहस करने लगे:

“आखिर किसके प्रति शपथ लेनी है?”   

“मेरे प्रति!”

इस बार मूर आश्चर्य से बुत बन गए, मगर उनकी उलझन कुछ ही देर रही. सबसे पहले जड़ता से बाहर आया भूतपूर्व प्रमुख कमांडर रिकी-टिकी-तवी.

“हाँ, बदमाश, सही है!” वह चहका. “यही तो है वो, जिसकी हमें अभी ज़रुरत है. लफंगे ने एकदम सही निशाना लगाया है! – और उसने सबसे पहले जनता के नेता के सम्मुख नीचे झुककर मिसाल पेश की.

मूरों ने कोकू-कोकी को बाहों में पकड़कर भीड़ के ऊपर उठाया.

रात भर आसमान में चमक बिखेरते हुए पूरे द्वीप पर आतिशबाजी होती रही, अलाव जलते रहे. स्थापित आज़ादी का जश्न मनाते हुए उल्लसित इथोपियन्स अलावों के चारों ओर नाचते रहे. खुशी के मारे और अग्निजल के कारण, जिसे उदार कोकू-कोकी ने बिना भेदभाव के सबको देने का आदेश दिया था,  वे पूरी तरह नशे में धुत हो गए. 

नज़दीक से गुज़रते हुए जहाज़ों के रेडिओ ऑपरेटर्स उत्सुकता से वायुमंडल में सिग्नल ढूंढ रहे थे, द्वीप से किसी खबर को पकड़ने की पूरी कोशिश कर रहे थे. वक्त-ज़रुरत द्वीप पर गोली-बारी करने के लिए जहाज़ पूरी तरह तैयार थे, मगर, आखिरकार “न्यू यॉर्क टाइम्स” के विशेष संवाददाता द्वारा भेजे गए टेलीग्राम की वजह से पूरी सभ्य दुनिया ने चैन की सांस ली.

“बहुत बड़ा त्यौहार. विराम. द्वीप पर बेवकूफ देसी त्यौहार बायराम मना रहे हैं. विराम. बदमाश जीनियस निकला. विराम.”  

Friday, 22 July 2022

लाल द्वीप - ३

 ३. तबाही

सिसी-बुज़ी और प्रमुख पुजारी की विग्वाम (कोंटेज – अनु.)  द्वीप के अत्यंत सुरम्य स्थान, तीन सौ साल पहले सुप्त हो चुके पुराने ज्वालामुखी की तराई में थीं.

मगर एक रात ज्वालामुखी अचानक, एकदम अचानक जाग उठा, और दूरस्थ पूल्कवा और ग्रीनविच में  भूकंप सूचक यंत्रों ने भूकंप के भयानक झटके दर्ज किये.

आग उगलते पहाड़ से धुएँ और लपटों का एक ऊंचा स्तम्भ ऊपर की और लपका, उसके बाद पत्थरों के ढेर बरसने लगे, और, अंत में समोवार से खदखदाते हुए पानी की तरह लाल-गर्म लावा बह निकला.

सुबह तक सब ख़त्म हो गया था.

भयभीत इथोपियनों को पता चला कि वे अपने प्रिय सम्राट और प्रमुख पुजारी के बगैर रह गए हैं. किस्मत ने सिर्फ सर्वोच्च प्रमुख कमांडर, साहसी रिकी-टिकी-तवी को ही सुरक्षित रखा था. और जहाँ कल तक शाही विग्वाम दमकते थे, वहाँ आज धीरे-धीरे जमते हुए लावा के आकारहीन ढेर जमा हो रहे थे.

Thursday, 21 July 2022

लाल द्वीप - २

  

२. सिसी-बुजी अग्नि-जल पीता है

 द्वीप पर जीवन बहुत जल्दी अभूतपूर्व ढंग से फल-फूल रहा था. सर्वोच्च कमांडर-इन-चीफ, प्रमुख पुजारी, और खुद सिसी-बुज़ी अग्नि-जल में जैसे नहा रहे थे. सिसी-बुज़ी का चेहरा सूज गया था और ऐसे चमक रहा था मानो उस पर रोगन लगाया गया हो. कांच के मोतियों से सजे-धजे आश्चर्यचकित  मूर-गार्ड्स उसके तम्बू को मज़बूत दीवार की भाँति घेरे हुए थे. 

पास से गुज़रते हुए जहाज़ों पर अक्सर द्वीप से कानों को बहरा करने वाली आवाजें सुनाई देती:

“हमारे महान नेता सिसी-बुजी अमर रहें! हमारे प्रमुख पुजारी अमर रहें! हुर्रे! हुर्रे!!!”

ये नशे में धुत मूर चिल्लाया करते, खासकर वे जो काफी रंगबिरंगे थे.

मगर इथोपियन्स के खेमे में गहरा सन्नाटा था. चूंकि उन बेचारों को अग्नि जल के पास जाने नहीं दिया जाता था और साथ ही उनसे धार्मिक कार्यों भाग लेने का अधिकार छीन लिया गया था, बल्कि उन्हें सिर्फ काम करने पर मजबूर किया जाता, जब तक वे टांगें नहीं फैला देते, इसलिए उनके बीच भयानक आक्रोश बढ़ता गया. जैसा कि ऐसी परिस्थितियों में होता है, हर तरह के दुर्भावनापूर्ण भड़काने वाले-आन्दोलनकारी प्रकट हो गए. उनके द्वारा उकसाए गए इथोपियन्स, आखिरकार, जोर से चीख पड़े:

“भाईयों. इस दुनिया में इन्साफ कहाँ है? क्या ये खुदा के क़ानून के मुताबिक़ है कि सारी वोद्का मूर अपने लिए रख लें, सारे शानदार मोती भी, और हमारे लिए सिर्फ़ ये गंधाती हुई सैक्रीन? और ऊपर से हम सिर्फ काम ही करते रहें?

जैसा कि होना ही था, यह सब विरोधकों के लिए बड़ी अप्रियता से ख़त्म हुआ. जैसे ही दिमागों में हो रही सुगबुगाहट का पता चला, सिसी-बुजी ने फ़ौरन इथोपियन झोंपड़ियों की ओर दमनकारी दस्ता भेज दिया, जिसने सर्वोच्च प्रमुख कमांडर, बहादुर रिकी-टिकी-तवी के नेतृत्व में सभी बलवाइयों को अपनी जगह दिखा दी. और, जहाँ कल तक शाही झोपड़ियां चमकती थीं, वहाँ आज आकारहीन खंडहरों का ढेर लगा था.

जब हरेक को कोड़े लगाने का कार्य समाप्त हुआ तो इथोपियन्स ने पछताते हुए, नीचे झुककर ज्ञान के लिए धन्यवाद दिया और एक सुर में दुहराने लगे:

“ आगे कभी भी न खुद शिकायत करेंगे और अपने बच्चों को भी ऐसा ही आदेश देंगे.”

इस तरह द्वीप पर फिर से शान्ति और समृद्धि बहाल हो गई.

Monday, 18 July 2022

लाल द्वीप - १

 

लाल द्वीप

लेखक: मिखाइल बुल्गाकव

अनुवाद: आ, चारुमति रामदास

 

 

कॉम्रेड ज्यूल्स वेर्न का उपन्यास

फ्रेंच से ईसपियन में मिखाइल बुल्गाकव द्वारा अनुवादित  

  

 

पात्र:

द्वीप वासी:

 

सिसी-बुजी – सभी मूरों और इथोपियाई लोगों का सम्राट, यूरोपियन लोगों के आगमन तक द्वीप का निरंकुश शासक; अग्नि-जल का उपासक (अर्थात् अग्नि-जल का प्रशंसक, और भी आसान – शराबी.)

रिकी-टिकी-तवी – द्वीप की सभी सशस्त्र सेनाओं का प्रमुख कमांडर, मूरों से खतरनाक हद तक नफ़रत करने वाला, मगर अग्नि-जल का दुश्मन नहीं.

कोकू-कोकी – या “धूर्त कोकू-कोकी”, एक दुःसाहसी, जो प्राकृतिक आपदाओं में अपने हाथ ताप लेता था और अस्थाई रूप से शासन हथिया बैठा था, मगर उसका अंत बुरा हुआ.

इथोपियन पार्लियामेंट का सदस्य – उपद्रवी  

साधारण सैनिक – मूर

इथोपियन और मूर – योद्धा, मछुआरे, खदानों के कैदी तथा अन्य.

यूरोपियन्स   

 लार्ड ग्लिनर्वान -  प्रसिद्ध अंग्रेज़ बुर्झुआ, ब्रिटिश साम्राज्यवाद की ‘शार्क (यहाँ ‘धूर्त’ से तात्पर्य है – अनु.), जिसे कोम्रेड ज्यूल्स वेर्न प्रकाश में लाये थे.

मिशेल अर्दान – प्रसिद्ध फ्रांसीसी बुर्झुआ, अश्वेत लोगों को लूटने में ग्लिनर्वान का सहयोगी और प्रतिद्वंद्वी. फ्रांसीसी साम्राज्यवाद की ‘शार्क’.     

द्वीप पर नियुक्त अमेरिकन अखबार “न्यू यॉर्क टाइम्स” का विशेष संवाददाता. इतिहास में ज्ञात है कि वह किसी उष्ण कटिबंधीय बीमारी का शिकार है. इसके अलावा इतिहास को उसके बारे कुछ भी ज्ञात नहीं है.   

कैप्टेन गातेरस   लार्ड ग्लिनर्वान की सेवा में एक सनकी उपनिवेशवादी; जिसे कार्यालय के काम के घंटों के दौरान लगातार शराब पीने और लापरवाही के लिए लार्ड द्वारा अवनति करके साधारण तोपची बना दिया गया था. गम के मारे वह और ज़्यादा पीने लगा.

फिलेस फोग – लार्ड का एक और सेवक, अगर ज़्यादा नहीं तो, वैसा ही संक्रमित.

प्रोफ़ेसर जैक पगानेल – फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों, मतलब मिशेल अर्दान एंड कंपनी का वैज्ञानिक. निकट दृष्टी वाला, चश्मा पहनता है, बगल में दूरबीन दबाए, भुलक्कड़ परजीवी. पीता तो वाकई में नहीं था, मगर उससे क्या?  

नाविक, सैनिक, सुपरवाइज़र्स और अन्य.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

घटनाक्रम  २०वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में घटित होता है.

 

भाग १.

ज्वालामुखी का विस्फोट

 

अध्याय १

भूगोल का इतिहास

 

सागर के असीम विस्तार में, जिसे – शायद, अपने निरंतर तूफानों और अशांति के कारण, - बड़ी चतुराई से कुछ जोकरों द्वारा “प्रशांत” कहा जाता था, ...डिग्री अक्षांश और ...डिग्री देशांश पर एक बड़ा निर्जन द्वीप था. समय बीतता गया, और धीरे-धीरे द्वीप पर एक दूसरे की रिश्तेदार प्रसिद्ध जनजातियां – लाल इथोपियन्स  की, तथाकथित श्वेत मूरों की और किसी अस्पष्ट रंग के मूरों की, जो या तो पीलापन लिए हुए काले या कालापन लिए हुए पीले थे – बस गईं और उसका संचालन करने लगीं. मगर कभी-कभार यहाँ भटकते हुए जहाज़ों के शराबी नाविक द्वीपवासियों के रंग की बारीकियों में भेद करने की ज़रा भी ज़हमत नहीं उठाते थे, और सभी द्वीपवासियों को बस ...काला ही कहते थे. 

जब प्रसिद्ध जहाजी लार्ड ग्लिनर्वान अपने जहाज़ “उम्मीद” पार पहली बार द्वीप पर उतरे, तो उन्होंने देखा कि यहाँ एक अपनी ही तरह की ख़ास सामाजिक व्यवस्था है. इसके बावजूद कि लाल इथियोपियन संख्या में श्वेत और अस्पष्ट रंग के मूरों से दस गुना ज़्यादा थे, सारी सत्ता पूरी तरह इन अंतिम लोगों के हाथों में थी. ताड़ के पेड़ों की छाँव में बनाए गए सिंहासन पर, मछली के अण्डों और टीन के डिब्बों से सजी शानदार पोषाक में द्वीप का शाही शासक सिसी-बुजी बैठा करता था. उसके बाद सम्माननीय स्थानों पर विराजमान थे – सर्वोच्च कमांडर रिकी-टिकी-तवी और सभी मूरों तथा इथियोपियनों के प्रमुख पुजारी.            

उनकी सुरक्षा करती थी मोटे-मोटे डंडों से लैस लाइफ-गार्ड्स की विशेष टुकड़ी, जिसमें रंगीन मूर थे.

लाल इथोपियन्स खामोशी से श्वेत मूरों के मक्के के खेतों में खेती करते, उनके लिए और रंगबिरंगे मूरों के लिए मछली पकड़ते और कछुओं के अंडे इकट्ठा करते.

लार्ड ग्लिनर्वान फ़ौरन पूरी तरह ज्ञात प्रक्रिया को पूरा करने में जुट गया, जो वह हमेशा और हर जगह, जहाँ भी वह जाता, करता था: पहाड़ की चोटी पर ब्रिटेन का झंड़ा फहरा दिया और ऑक्सफ़ोर्ड के लहजे में, अपनी ख़ूबसूरत अंग्रेज़ी जुबान में समारोह पूर्वक घोषणा कर दी:

“आज से ये द्वीप ब्रिटिश साम्राज्य का हुआ!”

मगर, एक खतरनाक गलतफहमी हुई. इथोपियन्स ने, जो अपनी भाषा के अलावा कोई और भाषा नहीं जानते थे, और इसी अज्ञान के कारण भले लार्ड की अंग्रेज़ी ज़रा भी नहीं समझ पाए थे, खुशी के मारे चिल्लाते हुए शाही झंडे को घेर लिया. द्वीप वासियों को उसका कपड़ा बहुत अच्छा लगा और उन्होंने उसके कई तुकडे करके, लंगोटियां बनाकर पहन लीं. ऐसे अपवित्रीकरण के लिए नाविकों ने, लार्ड की आज्ञा से अपवित्र करने वालों को पकड़ लिया, उन्हें ताड़ के पेड़ों के नीचे लिटाकर उनकी जाँघों से  अभागी लंगोटियां उतार लीं और बेरहमी से उन पर कोड़े बरसाए.

इस तरह काले इथोपियन्स का सभ्यता से प्रथम परिचय हुआ, जिसके बाद लार्ड को खुद सिसी-बुजी से सीधा वार्तालाप करना पडा.

महामहिम ने बड़ी ढिठाई से कुलीन लार्ड से कहा कि द्वीप उनका, याने सिसी-बुजी का है, और किसी झंडे-वन्डे की ज़रुरत नहीं है. वार्तालाप के दौरान इस बात का खुलासा हुआ कि लार्ड ग्लिनर्वान से पहले भी दो बार यहाँ खोज करते हुए लोग आ चुके हैं. पहले यहाँ जर्मन आये थे, और उनके बाद कोई और भी, जो मेंढक खाते थे. अपनी बात के प्रमाण में सिसी-बुजी ने अपने गले में पड़े टीन के डिब्बों के खूबसूरत नेकलेस की और इशारा किया. अंत में महामहिम ने बड़ी चतुराई से एक बेहद नाज़ुक विचार प्रकट किया:

“अग्नि-जल – बहुत स्वादिष्ट होता है, हाँ!”      

“देख रहा हूँ, देख रहा हूँ, कि आप इसके बारे में पहले ही जान चुके हैं, कुत्ते के पिल्लों,” ऑक्सफोर्ड की नजाकत से कुलीन लार्ड बुदबुदाया और, दोस्ताना अंदाज़ में सिसी-बुजी के कंधे पर हाथ मारकर, बड़े दिल से उसे इजाज़त दी कि इस आश्चर्यजनक द्वीप को पहले ही की तरह अपनी जायदाद समझे. जहाँ तक ब्रिटिश झंडे का सवाल है, तो यह तय किया गया कि वह भी पहले ही की तरह पहाडी की चोटी पर लहराता रहेगा, - आखिर उससे किसी को कोई दिक्कत तो नहीं हो रही है. और बाकी सब कुछ वैसा ही रहेगा, जैसा पहले था. इसके बाद माल का आदान-प्रदान हुआ. नाविकों ने ‘होल्ड से कांच के मोती, बासी सार्डीन के डिब्बे, सैकरीन और अग्नि-जल की बोतलें निकालीं. इथोपियन्स भी बड़े जोश से  ऊदबिलाव के फर, हाथी दांत, मछली, कछुए के अंडे और मोतियों के ढेर किनारे तक घसीट लाये.  

सिसी-बुजी ने पूरा का पूरा अग्नि-जल अपने पास रखा लिया, सार्डीन भी, मगर कांच के मोती और सैकरीन दया करके इथोपियन्स के लिए छोड़ दिए.

इस घड़ी से नियमित रूप से द्वीप के सुसंस्कृत जगत से संबंध स्थापित हो गए. खाडी में अब अक्सर जहाज़ आते, उनसे किनारे पर अंग्रेज़ी “मौल्यवान” चीज़ें उतारी जातीं, और जहाज़ पर “बेकार” इथोपियन वस्तुएं चढ़ाई जाती. द्वीप पर सफ़ेद पतलून पहने, दांतों में निरंतर पाईप दबाए “न्यू यॉर्क टाइम्स” का संवाददाता रहने लगा, जो शीघ्र ही उष्ण कटिबंधीय बीमारी से ग्रस्त हो गया. स्थानीय इथोपियन डॉक्टरों की सलाह पर उसने अपनी खुजली को स्प्रिट तथा पानी के मिश्रण से ठीक कर लिया, जो एक ख़ास विधि से बनाया गया था : स्प्रिट के एक गिलास में दो बूँदें पानी मिलाकर. इस मिश्रण से काफी हद तक मरीज़ की तकलीफ़ कम हो गई.

दुनिया भर के समुद्री एटलस में इस स्वर्गीय कोने को “इथोपियन द्वीप” नाम से दर्शाया जाने गया.

Thursday, 7 July 2022

कुत्ता दिल

 

कुत्ता दिल




लेखक

मिखाईल बुल्गाकव

 

 

 

 

 

हिंदी अनुवाद

आ. चारुमति रामदास

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

“Heart of a Dog” by Mikhail Afanasyevich Bulgakov

कुत्ता-दिल (अनुवाद) @ A. Charumati Ramdas

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रस्तावना

 

मिखाईल अफ़नास्येविच बुल्गाकव (1891–1940) गंभीर व्यंगकार मिखाईल सल्तिकोव-श्चिद्रीन को अपना गुरू मानते थे और निकालाय वसील्येविच गोगल उनके प्रिय लेखक थे. इसलिये उनकी रचनाओं के आरंभ में चुभते हुए व्यंग्य और प्रसन्न, काल्पनिक, उपहासात्मक हास्य के दर्शन होते हैं, जो अंत तक आते-आते उदास, निराश, गंभीर हो जाती हैं. बुल्गाकव की आरंभिक व्यंगात्मक रचनाओं में जो 1924-1926 के कालखण्ड में, अर्थात न्यू एकोनॉमिक पॉलिसीके दौरान, लिखी गईं थीं, यह बात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. इस काल की प्रसिद्ध रचनाओं में हैं उनके दो कहानी संग्रह - शैतानियत और आवास-समस्या पर एक ग्रंथ - तथा दो लघु उपन्यास – निनाशकारी अण्डे और कुत्ता-दिल.

हालाँकि विनाशकारी अण्डे सोवियत संघ में सन् 1925 में प्रकाशित हो गई, मगर कुत्ता-दिल लेखक के अपने देश में सिर्फ 1987 में ही प्रकाशित हो सकी, हालाँकि बुल्गाकव इसके अंशों का पठन अपने मित्रों तथा परिचितों के सामने कर चुके थे. मतलब, इस लघु-उपन्यास का कथानक कुछ लोगों को ज्ञात था, और विदेशों में इसके प्रकाशित होने के बाद कुछ अन्य लोग भी उससे परिचित हो गये थे. 

सतही तौर पर दोनों लघु-उपन्यास अविश्वसनीय लोगों के हाथों वैज्ञानिक आविष्कारों के दुरुपयोग और फ़लस्वरूप आविष्कारकों के मोहभंग का वर्णन करते हैं. मगर इनके गहन अध्ययन से अनेक तत्कालीन, चौंकाने वाली वास्तविकताओं का ज्ञान होता है. आजकल तो ये बातें सर्वविदित हो चुकी हैं, मगर उस समय केवल बुल्गाकव जैसी क्षमता के लेखक ही व्यंग्य, विडम्बन, कल्पना,  का उपयोग करके उन्हें छूने का साहस कर सकते थे.

प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की आवारा कुत्ते शारिक के शरीर में दुर्घटना में मृत एक व्यक्ति की पिट्यूटरी ग्लैण्ड और वीर्य-ग्रंथि को प्रत्यारोपित करते हैं. शारिक के इन अवयवों को निकाल कर सुरक्षित रख दिया जाता है. इस ऑपरेशन का परिणाम क्या हुआ, क्या वह सुखद और प्रत्याशित था, या अप्रत्याशित और अवसाद उत्पन्न करने वाला था.

अत्यंत दिलचस्प तरीके से बुल्गाकव ने पूरी परिस्थिति का वर्णन किया है. पढ़ते हुए पाठक भी पात्रों की मनोदशा के साथ घुलमिल जाता है.

बुल्गाकव न कोई प्रश्न उपस्थित करते हैं, न ही कोई समाधान, न ही कोई टिप्पणी...पाठक पूरी तरह से स्वतंत्र है अपने निष्कर्ष निकालने के लिये.

आशा है, आपको यह लघु उपन्यास पसंद आयेगा

 

आ. चारुमति रामदास   

               

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अध्याय 1

 

ऊ-ऊ-ऊ-ऊ-ऊ-हू-हुह–हुऊ!  ओह, मेरी ओर देखो, मैं मर रहा हूँ. गली का बर्फीला तूफ़ान गरजते हुए मेरी आख़िरी घड़ी के बारे में घोषणा कर रहा है, और उसके साथ मैं भी बिसूर रहा हूँ. खतम हो गया मैं, बर्बाद हो गया. गंदी हैट वाला शैतान – राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की सेन्ट्रल कौन्सिल के कर्मचारियों के लिये सामान्य भोजन वाले कैन्टीन का रसोइया – उबलता हुआ पानी फेंका और मेरी बाईं बाज़ू को झुलसा दिया. कैसा साँप है, और ऊपर से प्रोलेटेरियन. ओह, मेरे ख़ुदा – कितना दर्द हो रहा है! उबला हुआ पानी हड्डियों तक खा गया. मैं अब बिसूर रहा हूँ, विलाप कर रहा हूँ, मगर बिसूरने से क्या फ़ायदा होगा.

मैंने उसका क्या बिगाड़ा था? अगर मैं कूड़े के ढेर में थोबड़ा घुसाता हूँ, तो क्या मैं अर्थव्यवस्था की कौन्सिल को खा जाऊँगा? लालची चीज़! कभी आप उसके थोबड़े पर नज़र डालो : कितना चौड़ा है. तांबे के थोबड़े वाला चोर. आह, लोगों, लोगों. दोपहर को हैट वाले ने उबलते हुए पानी से मेरी मेहमान नवाज़ी की थी, और अब अंधेरा हो गया है, और प्रिचिस्तेन्स्काया फ़ायर ब्रिगेड से आती प्याज़ की ख़ुशबू से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि दिन के करीब चार बजे हैं. जैसा कि आप जानते हैं, फ़ायर ब्रिगेड वाले डिनर में पॉरिज खाते हैं. मगर ये – हाल ही की बात है, मश्रूम्स जैसी. प्रिचिस्तेन्का  के परिचित कुत्ते बताते हैं, कि नेग्लिन्नी के “बार” रेस्टॉरेन्ट में वे साधारण खाना खाते हैं – मश्रूम्स, सॉस-पिकान  - 3 रूबल्स पचहत्तर कोपेक वाली प्लेट. ये किसी शौकिया कुत्ते के लिये गलोश चाटने जैसा है...ऊ-ऊ-ऊ-ऊ-ऊ....

बाएँ बाज़ू में बेइन्तहा दर्द है, और अपना भविष्य मुझे साफ़ नज़र आ रहा है : कल छाले आ जाएँगे और, ज़रा फ़रमाईये, मैं कैसे उन्हें ठीक करूँगा? गर्मियों में सकोल्निकी जा सकते हो, वहाँ खास किस्म की, बेहद बढ़िया घास है, और इसके अलावा मुफ़्त में जी भर के सॉसेज के सिरे गटक सकते हो, नागरिक तेल से लथपथ कागज़ फेंकते हैं, जी भर के चाट सकते हो. और अगर कोई खूसट न हो, जो चाँद की रोशनी में घास के मैदान में इस तरह से “प्यारी आइदा” गाता हो, कि दिल डूबने लगे, तो बस मज़ा ही आ जाये. मगर अब कहाँ जाओगे? क्या आपको जूतों से नहीं पीटा गया? पीटा गया. पसलियों पर ईंटों की मार पड़ी है? काफ़ी खाना खा चुका. सब कुछ भुगत चुका हूँ, अपनी किस्मत से समझौता करता हूँ और, अगर इस समय मैं रो रहा हूँ, तो सिर्फ जिस्म के दर्द और ठण्ड के कारण, क्योंकि अभी मेरी आत्मा बुझी नहीं है...कुत्ते की आत्मा – ज़िंदाबाद.

मगर मेरा जिस्म टूट चुका है, उसे बुरी तरह मारा गया है, लोग बुरी तरह मुझे गालियाँ दे चुके. मगर ख़ास बात – कैसे उसने उबलते हुए पानी से मुझे चीर दिया, रोएँदार खाल के भीतर तक खा गया, और बचाव का कोई ज़रिया, बाएँ बाज़ू के लिये, नहीं है. मुझे आसानी से निमोनिया हो सकता है, और, वह हो जाने के बाद, नागरिकों, मैं भूख से मर जाऊँगा. निमोनिया होने पर मुख्य प्रवेश द्वार में सीढ़ियों के नीचे लेटे रहना पड़ता है, और तब, मुझ लेटे हुए कुँआरे कुत्ते के बदले, कूड़े के डिब्बों के पास खाने की तलाश में कौन भागेगा? फेफ़ड़े को पकड़ लेगा, पेट के बल घिसटूँगा, कमज़ोर हो जाऊँगा, और कोई भी विषेषज्ञ मुझे डंडे से मौत के घाट उतार देगा. और बैज वाले चौकीदार मेरी टाँगें पकड़कर मुझे छकड़े में फेंक देंगे...

सभी प्रोलेटेरियन्स में, चौकीदार सबसे ज़्यादा घिनौनी चीज़ है. इन्सानों की सफ़ाई करना सबसे घटिया किस्म का काम है. रसोइये अलग-अलग तरह के मिल जाते हैं, मिसाल के तौर पर – प्रिचिस्तेन्का से स्वर्गीय व्लास. उसने कितनी ज़िंदगियाँ बचाई हैं. क्योंकि, बीमारी के दौरान सबसे ज़रूरी है खाने का कोई टुकड़ा पाना. और, बूढ़े कुत्ते बताते हैं कि अक्सर व्लास हड्डी हिलाता था, और उस पर ढेर सारा माँस चिपका रहता था. ख़ुदा उसे जन्नत बख़्शे, इस बात के लिये कि वह असली इन्सान था, ग्राफ़ टाल्स्टॉय का ख़ानदानी रसोइया था, न कि सामान्य पोषण कौंसिल का. वहाँ – सामान्य पोषण में वे क्या-क्या करते हैं – कुत्ते की बुद्धि की समझ से परे है. वे, कमीने, नमक लगे, गंधाते बीफ़ का सूप उबालते हैं, और वे, ग़रीब बेचारे, कुछ भी नहीं जानते. भाग कर आते हैं, खा जाते हैं, चटखारे लेते हैं.

एक टायपिस्ट छोकरी, जो नवीं श्रेणी की कर्मचारी है और जिसे पैंतालीस रूबल मिलते हैं, ख़ैर, ये सच है कि उसका आशिक उसे पर्शियन-रेशमी जुराबों का उपहार देगा. मगर इन जुराबों के लिये उसे कितनी बदतमीज़ी बर्दाश्त करनी पड़ेगी. आख़िर, वह उसे किसी मामूली तरीके से तो नहीं ना देगा, बल्कि फ्रांसीसी ढंग से प्यार करने पर मजबूर करेगा. श्...ये फ्रांसीसी, हमारी आपस की बात है, हाँलाकि खाते खूब हैं, मगर सब रेड-वाईन के साथ. हाँ...तो, टायपिस्ट छोकरी भागकर आती है, आख़िर पैंतालीस रूबल्स में कोई बारमें तो नहीं जा सकता. उसके पास तो सिनेमा देखने के पैसे भी नहीं बचते, और सिनेमा औरत की ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा सुकून देने वाली चीज़ है. थरथराती है, त्यौरियाँ चढ़ाती है, मगर खाती है...ज़रा सोचो : दो प्लेटों के लिये चालीस कोपेक, जबकि उनकी कीमत पंद्रह कोपेक भी नहीं है, क्योंकि बचे हुए पच्चीस कोपेक मैनेजर ने चुरा लिए हैं. मगर क्या उसे ऐसे खाने की ज़रूरत है? उसके दाएँ फ़ेफ़ड़े का ऊपरी हिस्सा खराब है और औरतों वाली बीमारी भी है, उसे काम से हटा दिया गया, डाइनिंग हॉल में सड़ा हुआ माँस खिलाया गया, यही है वो, यही है...आशिक की जुराबें पहनकर भागते हुए गली में मुड़ती है. पैर ठण्डे हैं, और पेट पर हवा की मार लग रही है, क्योंकि उसके ऊपर के रोंएँ मेरे जैसे ही है, और उसने पतलून भी ठण्डी ही पहनी है, सिर्फ झालर ही झालर दिखाई देती है. आशिक की ख़ातिर चीथड़ा पहना है. अगर वह फ़लालैन की पहने, कोशिश तो करे, वह चिल्लायेगा : कितनी फ़ूहड़ है तू! बेज़ार कर दिया मुझे मेरी मत्र्योना ने, उसकी फलालैन की पतलून से मैं तंग आ चुका हूँ, अब मेरे दिन आये हैं. मैं अब चेयरमैन हूँ, और जितना भी चुराता हूँ - सब औरत के जिस्म पर, लॉब्स्टर्स पर और अब्राऊ-दूर्सो वाईन पर लुटा देता हूँ. क्योंकि मैं जवानी में बेहद भूखा रहा, अब मेरे पास काफ़ी है, और मरने के बाद ज़िंदगी होती ही नहीं है.

अफ़सोस होता है मुझे उसके लिये, अफ़सोस! मगर अपने आप पर और भी ज़्यादा अफ़सोस होता है. यह मैं स्वार्थ के कारण नहीं कह रहा हूँ, ओह नहीं, बल्कि इसलिये कि हम वाकई में अलग-अलग हालात में हैं. उसे कम से कम घर में तो गर्माहट मिलती है, मगर मुझे...कहाँ जाऊँ? ऊ-ऊ-ऊ-ऊ-ऊ!...

“कुत्-कुत्, कुत्! शारिक, ओ शारिक...दाँत क्यों निकाल रहा है, बेचारा? किसने तुम्हारी बेइज़्ज़ती की? ऊख...”

सूखी चुडैल जैसा तूफ़ान दरवाज़े भड़भड़ा रहा था और लड़की के कान के पास से झाडू की तरह निकल गया. स्कर्ट को घुटनों तक उठा दिया, क्रीम के रंग की जुराबें, और गंदे, लेस की किनार वाले कच्छे की पतली किनार दिखा दी, लब्ज़ों को दबा दिया और कुत्ते को बर्फ़ से ढंक दिया.

या ख़ुदा...कैसा मौसम है...ऊख...और पेट भी दुख रहा है. ये सड़े हुए बीफ़ की वजह से है! और ये सब कब ख़त्म होगा?’

सिर झुकाकर वह लड़की तूफ़ान का मुकाबला करने भागी, गेट की तरफ़ भागी, और रास्ते में वह लट्टू की तरह गोल-गोल घूमने लगी, घूमने लगी, पटखनी खाने लगी, फिर बर्फीले स्क्रू ने उसे कसना शुरू किया, और वह ग़ायब हो गई.

और कुत्ता गली में रह गया और, ज़ख़्मी बाज़ू की पीड़ा से तड़पते हुए ठण्डी दीवार से चिपट गया, उसका दम घुटने लगा और उसने पक्का इरादा कर लिया कि यहाँ से कहीं नहीं जायेगा, यहीं, गली में ही मर जायेगा. उस पर बदहवासी हावी हो गई. दिल में इतना दर्द और इतनी कड़वाहट थी, इतना अकेलापन और इतना डर था, कि कुत्ते के नन्हे-नन्हे आँसू, मुँहासों जैसे, आँखों से लुढ़कते रहे और वहीं सूखते रहे.

घायल बाज़ू पर जमी हुई गांठें बन गई थी, और उनके बीच में लाल, दुष्ट छाले दिखाई दे रहे थे. किस कदर भावनाहीन, बेवकूफ़, क्रूर होते हैं रसोइये. – “शारिक” उसने इसी नाम से पुकारा था उसे...कहाँ का आया “शारिक”? शारिक का मतलब होता है गोल-मटोल, खाया-पिया, बेवकूफ़, दलिया खाने वाला, जाने-माने माँ-बाप का लड़का, और वह है झबरा, दुबला-पतला और चीथड़े जैसा, झुलसा हुआ, आवारा कुत्ता, ख़ैर, उस प्यारे लब्ज़ के लिये उसका शुक्रिया.

सड़क के उस पार जगमगाती दुकान का दरवाज़ा धड़ाम से बजा और उसमें से एक नागरिक निकला. अस्सल नागरिक, न कि कॉम्रेड, मुमकिन है – भला आदमी भी हो. करीब-करीब – पक्का – भला आदमी. क्या आप यह सोच रहे हैं कि मैं ओवरकोट देखकर फ़ैसला करता हूँ? बकवास. ओवरकोट तो आजकल बहुत सारे प्रोलेटेरियन्स भी पहनते हैं. ये सही है कि कॉलर ऐसी नहीं होती, इसके बारे तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता, मगर फिर भी दूर से गलती कर सकता हूँ. मगर आँखों से – यहाँ तो दूर हो, या नज़दीक - मैं ग़लती नहीं कर सकता. ओह, आँखें ग़ज़ब की चीज़ हैं. बैरोमीटर की तरह. सब पता चल जाता है कि किसका दिल एकदम सूखा है, कौन यूँ ही, बिना बात पसलियों में जूते की नोक गड़ायेगा, और कौन ख़ुद हर चीज़ से डरता है. इस  आख़िरी वाले के टखने को काटना मुझे बहुत अच्छा लगता है. डरते हो – लो. जब डरते हो तो तुम इसी लायक हो....र्-र्—र्...भौ-भौ...

भले आदमी ने आत्मविश्वास से तूफ़ानी तेज़ी से गोल-गोल घूम रही बर्फ के स्तंभ को पार किया और गली में आगे बढ़ा. हाँ, हाँ, इसका सब कुछ समझ में आ रहा है. ये सड़ा हुआ गोश्त नहीं खायेगा, और अगर किसी ने कहीं उसे सड़ा हुआ गोश्त दिया, तो वह इतना हंगामा करेगा, अख़बारों में लिखेगा : मुझे, फिलिप फिलीपविच को, ख़तरनाक खाना दिया गया.

वह पास-पास आ रहा है. ये भरपेट खाता है और चोरी नहीं करता, ये पैर से चोट नहीं करेगा, मगर ख़ुद भी किसी से नहीं डरता, और इसलिये नहीं डरता, क्योंकि उसका पेट हमेशा भरा रहता है. वह दिमाग़ी काम करने वाला भला आदमी है, नुकीली फ़्रांसीसी दाढ़ी और सफ़ेद मूँछों वाला, खूब घनी और शानदार, जैसी फ्रांसीसी सूरमाओं की होती हैं, मगर तूफ़ान में उसके बदन से गंदी, अस्पताल जैसी बू आ रही है. और सिगार की भी.

मैं पूछता हूँ, कि कौनसा शैतान इसे सेन्ट्रल कौन्सिल के कोऑपरेटिव में खींच लाया? ये मेरी बगल में ही है...किस बात का इंतज़ार कर रहा है? ऊ-ऊ-ऊ-ऊ... इस गंदी दुकान में वह क्या खरीद सकता है, क्या अखोत्नी कतार उसके लिये काफ़ी नहीं है? ये क्या है? सॉसेज. भले इन्सान, अगर आपने देखा होता कि यह सॉसेज किस चीज़ से बनाते हैं, तो आप दुकान के पास भी नहीं फ़टकते. इसे आप मुझे दे दीजिये.

कुत्ते ने बची-खुची ताकत बटोरी और पागलपन से गली से फुटपाथ पर रेंग गया. तूफ़ान मानो बंदूक की नली से सिर के ऊपर वार कर रहा था, कैनवास के पोस्टर पर लिखे भारी-भरकम अक्षरों को उछाल रहा था “क्या फिर से जवान होना संभव है?”

ज़ाहिर है, संभव है. ख़ुशबू ने मुझे जवान बना दिया, मुझे पेट के बल उठाया, दो दिनों से खाली पड़े पेट में जलन हो रही थी, ख़ुशबू, अस्पताल को हराने वाली, लहसुन और काली मिर्च डली घोड़ी के कीमे की स्वर्गीय ख़ुशबू. महसूस कर रहा हूँ, जानता हूँ – उसके फ़र-कोट की दाईं जेब में सॉसेज है. वह मुझ पर झुका. ओह, मेरे मालिक! मेरी तरफ़ देख. मैं मर रहा हूँ. हम गुलामों की रूह, कमीनी किस्मत!

कुत्ता रेंगने लगा, साँप की तरह, पेट के बल, आँसू बहाते हुए. रसोईये की करतूत पर ग़ौर कीजिये. मगर आप यूँ ही क्यों देने लगे. ओह, मैं अमीर आदमियों को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ! मगर वाकई में – आपको उसकी ज़रूरत ही क्या है? आपको सड़ा हुआ घोड़ा क्यों चाहिये? मॉस्सेल्प्रोम (मॉस्को कृषि उद्योग – अनु.) के अलावा ऐसा ज़हर आपको कहीं और नहीं मिलेगा. और आपने, पुरुष यौन-ग्रंथियों की बदौलत दुनिया भर में मशहूर इन्सान ने, आज नाश्ता किया है. ऊ-ऊ-ऊ-ऊ...दुनिया में ये क्या हो रहा है? ज़ाहिर है, अभी मरने का समय नहीं आया है, मगर बदहवासी – वाकई में गुनाह है. उसका हाथ चाटना होगा, और तो कोई तरीका है नहीं.’                                  

रहस्यमय भला आदमी कुत्ते की ओर झुका, सुनहरे किनारे वाली आँख चमकाई और दाईं जेब से सफ़ेद, लम्बा पैकेट निकाला. भूरे दस्तानों को उतारे बिना, कागज़ हटाया, जिस पर फ़ौरन बर्फीले तूफ़ान ने कब्ज़ा कर लिया, और “स्पेशल क्राकव” सॉसेज का टुकड़ा तोड़ा. और यह टुकड़ा कुत्ते को दिया.

ओह, कितना निःस्वार्थ व्यक्ति! ऊ-ऊ-ऊ!

फित्-फित्” – भले आदमी ने सीटी बजाई और कड़ी आवाज़ में कहा: “ले! शारिक, शारिक!”

फ़िर से शारिक. नाम भी रख दिया. ठीक है, जैसा चाहो, पुकारो. आपके इस ख़ास बर्ताव के लिये.

कुत्ते ने पल भर में सॉसेज का छिलका फ़ाड़ दिया, सिसकते हुए क्राकव-सॉसेज में दांत गड़ा दिये और दो ही बार में उसे खा लिया. ऐसा करते हुए सॉसेज और बर्फ के कारण उसका दम घुटने लगा, आँसू निकलने लगे, क्योंकि लालच के मारे उसने डोरी को भी लगभग निगल ही लिया था. और, अभी भी आपका हाथ चाट रहा हूँ. पतलून चूम रहा हूँ, मेरे मेहेरबान!

“अभी इतना ही काफ़ी है...” भले आदमी ने इतने उड़े-उड़े अंदाज़ में कहा, जैसे हुक्म दे रहा था. वह शारिक की ओर झुका, ताड़ती हुई नज़र से उसकी आँख़ों में देखा और अचानक दस्ताने वाले हाथ से घनिष्ठता और प्यार से शारिक का पेट सहलाने लगा.

“आ-हा,” अर्थपूर्ण स्वर में उसने कहा, “पट्टा नहीं है, ये भी बढ़िया है, मुझे तेरी ही तो ज़रूरत है. मेरे पीछे-पीछे आ,” उसने चुटकी बजाई, “फ़ित्-फ़ित्!”

आपके पीछे आऊँ? हाँ दुनिया के छोर तक. चाहे आप मुझे अपने फेल्ट वाले जूतों से ठोकर ही क्यों न मारो, मैं एक भी लब्ज़ नहीं कहूँगा.

पूरी प्रिचिस्तेन्का  पर लैम्प जल रहे हैं. बाज़ू में बर्दाश्त से बाहर दर्द हो रहा है, मगर शारीक कभी-कभी उसके बारे में भूल जाता, वह सिर्फ एक ही ख़याल में खोया हुआ था – कि कहीं इस गहमा-गहमी में फर कोट से ढंके इस आश्चर्यजनक नज़ारे को खो न दे और किसी तरह उसके प्रति अपने प्यार और वफ़ादारी का इज़हार करे. और प्रिचिस्तेन्का  से ओबुखवा गली तक करीब सात बार उसने इस भावना को ज़ाहिर किया. म्योर्त्वी नुक्कड़ के पास रास्ता साफ़ करते हुए उसके जूते चाटे, जंगलीपन से चिल्लाते हुए किसी औरत को इतना डराया कि वह एक पत्थर पर बैठ गई, दो बार रोया, ताकि अपने-आप के प्रति दया का समर्थन कर सके.

कोई एक कमीनी, झूठ-मूठ की साईबेरियन आवारा बिल्ली नाली के पीछे से कूदी और, तूफ़ान के बावजूद उसने क्राकव-सॉसेज को सूंघ लिया. शारिक इस ख़याल से एकदम सुन्न हो गया कि यह अमीर भला इन्सान, जो गली के ज़ख़्मी कुत्ते को अपने साथ ले जा रहा है, कहीं इस चोर को भी अपने साथ न ले ले, और तब मॉस्सेल्प्रोम के इस उत्पाद को उसके साथ बांटना पड़ेगा. इसलिये उसने बिल्ली की ओर देखते हुए इस तरह से दांत किटकिटाए कि वह छेद वाले पाईप जैसा फिसफिसाते हुए पाईप पर दूसरी मंज़िल तक चढ़ गई.

गु-र्-र्-र्र-...भौ....! प्रिचिस्तेन्का  पर भटकते हर गलीज़-आवारा के लिये मॉस्सेल्प्रोम भी पूरा नहीं पड़ेगा.

भले आदमी को वफ़ादरी पसंद आई और ठीक फ़ायर-ब्रिगेड के पास, खिड़की के निकट, जिसमें से फ्रेंच भोंपू की प्यारी आवाज़ आ रही थी, उसने कुत्ते को दूसरा टुकड़ा इनाम में दिया, पाँच के सिक्के जितना.                  

ऐख, सनकी. मुझे ललचा रहा है. परेशान न हो! मैं ख़ुद भी कहीं नहीं जाऊँगा. जहाँ कहो, तुम्हारे पीछे-पीछे आऊँगा.

“फ़ित्—फ़ित्- फित्! इधर!”

ओबुखवा? मेहेरबानी करो. हम इस गली को बहुत अच्छी तरह जानते हैं.    

“फित्-फित्!”

यहाँ? ख़ुशी...ऐ, नहीं, माफ़ कीजिये. नहीं. यहाँ दरबान है. और इससे बुरी चीज़ दुनिया में कोई और हो ही नहीं सकती. चौकीदार से कई गुना ज़्यादा ख़तरनाक. पूरी तरह घिनौनी किस्म. बिल्लियों से भी ज़्यादा घिनौनी. फ़ीतों वाला कसाई.

“अरे, डरने की ज़रूरत नहीं, चल.”    

नमस्ते, फ़िलीप फिलीपविच.”

“नमस्ते, फ़्योदर.”

ये है – इन्सान. ऐ ख़ुदा, मेरी कुत्ती-किस्मत! मुझे किसके पास ले आई! ये कैसा आदमी है जो दरबानों की नज़र के सामने से सड़क के कुत्तों को हाऊसिंग सोसाइटी की बिल्डिंग में ले जा सकता है? देखिये, ये कमीना – न कोई आवाज़, न कोई हलचल! सही है, उसकी आँखों के सामने धुंध छा गई, मगर, आम तौर से, अपनी हैट के सुनहरे फ़ीतों के नीचे वह उदासीन है. जैसे कि ऐसा ही होना चाहिये. इज़्ज़त करता है, साहब, कितनी इज़्ज़त करता है! ख़ै-र, और मैं उसके साथ और उसके पीछे. क्या, छुआ? काट ले. काश, प्रोलेटेरियन का घट्टेदार पैर काट लेता. अपने भाई से की गई सभी बदमाशियों के लिये. कितनी बार ब्रश से मेरे थोबड़े को बिगाड़ा है, ?’

“चल, चल.”

समझ रहे हैं, समझ रहे हैं, परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. जहाँ-जहाँ आप, वहाँ-वहाँ हम. आप सिर्फ रास्ता बताईये, और मैं पीछे नहीं रहूँगा, मेरी बेहाल-परेशान बाज़ू के बावजूद.

सीढ़ी से नीचे.

“फ़्योदर, मेरे लिये कोई चिट्ठी तो नहीं आई?”

नीचे सीढ़ी से आदरपूर्वक:

“बिल्कुल नहीं, फ़िलीप फ़िलीपविच (घनिष्ठता से दबी आवाज़ में पीछे से), - “और तीसरे क्वार्टर में हाऊसिंग कमिटी वालों को बसाया गया है.”

महत्वपूर्ण, कुत्तों का भला करने वाला, गर्र से सीढ़ी पर मुड़ा और रेलिंग पर झुककर, उसने दहशत से पूछा:

“अच्छा-आ?”

उसकी आँखें गोल हो गईं और मूंछें खड़ी हो गईं.

दरबान ने नीचे से सिर को झटका दिया, होंठों पर हथेली रखी और पुष्टि की:

“सही है, पूरे चार लोग.”

“ओह, गॉड! कल्पना कर सकता हूँ कि अब क्वार्टर में क्या होगा. और, कैसे हैं वो लोग?”
“कोई ख़ास नहीं.”

“और फ़्योदर पाव्लविच?”

“परदे लाने गये हैं और ईंटें लाने. पार्टीशन्स बनाएँगे.”

“शैतान जाने, क्या बला है!”

“सभी क्वार्टरों में, फ़िलीप फ़िलीपविच, उन्हें बसाया जायेगा, सिवाय आपके क्वार्टर के. अभी मीटिंग हुई थी, नई कमिटी चुनी गई है, और पुराने वालों को गर्दन पकड़ कर निकाल दिया.”

“क्या हो रहा है. आय-आय-आय...फित्–फित्.”

आ रहा हूँ, भाग रहा हूँ. बाज़ू, ग़ौर फ़रमाईये, अपने दर्द की याद दिला रहा है. आपका जूता चाटने की इजाज़त दीजिये.

दरबान का सुनहरा गुंथा हुआ फ़ीता नीचे गायब हो गया. संगमरमर के फ़र्श पर पाइपों से गर्माहट बिखर रही थी, एक और बार मुड़े और ये है – बिचला तल्ला.   

 

 

 

 

 

 

अध्याय – 2

 

पढ़ना सीखने की बिल्कुल कोई ज़रूरत नहीं है, जब वैसे भी एक मील दूर से माँस  की ख़ुशबू आती है. वैसे भी (अगर आप मॉस्को में रहते हैं और आपके सिर में थोड़ा-सा भी दिमाग़ है), आप चाहे-अनचाहे बिना किसी कोर्स के पढ़ना सीख ही जायेंगे. मॉस्को के चालीस हज़ार कुत्तों में से कोई बिल्कुल ही बेवकूफ़ होगा जो अक्षरों को जोड़-जोड़ कर “सॉसेज” शब्द नहीं बना सकता.

शारिक ने रंग देखकर सीखना शुरू किया. जैसे ही वह चार महीने का हुआ, पूरे मॉस्को में “MSPO (मॉस्को कंज़्यूमर सोसाइटीज़ यूनियनअनु.) – माँस का व्यापार” के हरे-नीले रंग के बैनर्स लग गये. हम दुहराते हैं, कि यह बेकार में ही है, क्योंकि वैसे भी माँससुनाई देता है. और एक बार गड़बड़ हो गई : तीखे नीले रंग के पास आने पर, शारिक, जिसकी सूँघने की शक्ति गाड़ियों से निकलते पेट्रोल के धुँए के कारण ख़त्म हो गई थी, माँस की दुकान के बदले मिस्नीत्स्काया स्ट्रीट पर गलुबिज़्नेर ब्रदर्स की इलेक्ट्रिकल सामानों की दुकान में घुस गया. वहाँ भाईयों की दुकान में कुत्ते ने विद्युतरोधी तार को खाने की कोशिश की, वह गाड़ीवान के चाबुक से ज़्यादा साफ़ थी. इस लाजवाब पल को ही शारिक की शिक्षा का आरंभिक बिंदु समझना होगा. वहीं फुटपाथ पर शारिक समझने लगा कि “नीला” हमेशा “माँस की दुकान” को ही प्रदर्शित नहीं करता और, दाहक दर्द के मारे अपनी पूँछ को पिछली टांगों में दबाये और विलाप करते हुए, उसने याद कर लिया कि सभी माँस के बैनर्स पर बाईं ओर शुरू में एक सुनहरी या भूरी, टेढ़ी-मेढ़ी, स्लेज जैसी चीज़ होती है.

आगे और भी सफ़लता मिलती गई. ‘A’ उसने ग्लावरीबा’ (प्रमुख मछली केंद्र – अनु.) से सीखा जो मखवाया स्ट्रीट के नुक्कड़ पर था, फिर ‘B’ भी – उसके लिये रीबा’ (मछली – अनु.) शब्द की पूँछ की तरफ़ से भागना आसान था, क्योंकि इस शब्द के आरंभ में सिपाही खड़ा था. कोने वाली दुकानों से झांकती टाईल्स का मतलब ज़रूर चीज़होता था. समोवार का काला नल, जो इस शब्द के आरंभ में होता था, पुराने मालिक “चीच्किन” को प्रदर्शित करता था, हॉलेण्ड की रेड चीज़के ढेर, जंगली जानवरों के वेष में क्लर्क, जो कुत्तों से नफ़रत करते थे, फ़र्श पर पड़ा हुआ भूसा और बेहद बुरी तरह से गंधाती चीज़ बेक्श्तेन’.

अगर एकॉर्डियन बजा रहे होते, जो “स्वीट आयदा” से काफ़ी बेहतर होता, और सॉसेज की ख़ुशबू आती, सफ़ेद बैनर्स पर पहले अक्षर आराम से “असभ् ...” शब्द बनाते. इसका मतलब होता कि “असभ्य शब्दों का प्रयोग न करें और चाय-पानी के लिये न दें”. यहाँ कभी-कभी झगड़े हो जाते, लोगों के थोबडों पर मुक्के बरसाये जाते, - कभी, कभी, बिरली स्थितियों में, - रूमालों से या जूतों से भी पिटाई होती.                              

अगर खिड़कियों में हैम” की बासी खाल लटक रही होती और संतरे पड़े होते...गाऊ...गाऊ...गा...स्त्रोनोम (डिपार्टमेन्टल स्टोर – अनु.). अगर काली बोतलें गंदे द्रव से भरी हुई...व-इ-वि-ना-आ-विनो (वाईन-अनु.)...भूतपूर्व एलिसेयेव ब्रदर्स.

अनजान भले आदमी ने, जो कुत्ते को बिचले तल्ले पर स्थित अपने शानदार क्वार्टर के दरवाज़े की ओर खींचते हुए ला रहा था, घंटी बजाई, और कुत्ते ने फ़ौरन सुनहरे अक्षरों वाली काली नेमप्लेट की ओर आँखें उठाईं, जो एक चौड़े, लहरियेदार और गुलाबी काँच जड़े दरवाज़े की बगल में लटक रही थी. पहले तीन अक्षरों को उसने फ़ौरन पढ़ लिया : पे-एर-ओ “प्रो”. मगर आगे फूली-फूली दोहरी कमर वाली बकवास थी, पता नहीं उसका क्या मतलब था. कहीं प्रोएलेटेरियन तो नहीं?’ शारिक ने अचरज से सोचा... ऐसा नहीं हो सकता’. उसने नाक ऊपर उठाई, फिर से ओवरकोट को सूंघा और यकीन के साथ सोचा:

नहीं, यहाँ प्रोलेटेरियन की बू नहीं आ रही है. वैज्ञानिक शब्द है, और ख़ुदा जाने उसका क्या मतलब है.

गुलाबी काँच के पीछे एक अप्रत्याशित और ख़ुशनुमा रोशनी कौंध गई, जिसने काली नेमप्लेट पर और भी छाया डाल दी. दरवाज़ा बिना कोई आवाज़ किये खुला, और सफ़ेद एप्रन और लेस वाला टोप पहनी एक जवान, ख़ूबसूरत औरत कुत्ते और उसके भले आदमी के सामने प्रकट हुई.

उनमें से पहले को ख़ुशनुमा गर्मी ने दबोच लिया, और औरत की स्कर्ट घाटी की लिली जैसी महक रही थी.

ये हुई न बात, मैं समझ रहा हूँ,’ कुत्ते ने सोचा.

“आईये, शारिक महाशय,” भले आदमी ने व्यंग्य से उसे बुलाया, और शारिक आज्ञाकारिता से पूँछ हिलाते हुए भीतर आया.  

प्रवेश-कक्ष ख़ूब सारी शानदार चीज़ों से अटा पड़ा था. दिमाग़ में फ़ौरन फ़र्श तक आता हुआ शीशा याद रह गया, जो दूसरे बदहाल और ज़ख़्मी शारिक को प्रतिबिम्बित कर रहा था, ऊँचाई पर रेन्डियर के ख़ौफ़नाक सींग, अनगिनत ओवर कोट और गलोश और छत के नीचे दूधिया त्युल्पान वाला बिजली का बल्ब.

“आप ऐसे वाले को कहाँ से ले आये, फ़िलीप फ़िलीपविच?” मुस्कुराते हुए औरत ने पूछा और नीली चमक वाला काली-भूरी लोमड़ी की खाल का ओवरकोट उतारने में मदद करने लगी. ”पापा जी! कितना ग़लीज़ है!”

“बकवास कर रही हो. ग़लीज़ कहाँ है?” भले आदमी ने फ़ौरन कड़ाई से कहा.

ओवरकोट उतारने के बाद वह अंग्रेज़ी कपड़े के काले सूट में नज़र आया और उसके पेट पर सुनहरी चेन ख़ुशी से और अस्पष्ट रूप से दमक रही थी.

“रुक-भी, घूमो नहीं, फ़ित्...अरे, घूमो नहीं, बेवकूफ़. हम्!...ये ग़ली...नहीं...अरे ठहर जा, शैतान...हुम्! आ-आ. ये जल गया है. किस बदमाश ने तुझे जला दिया? आँ? अरे, तू शांति से खड़ा रह!...”

“रसोईये ने, कैदी रसोईये ने!” शिकायत भरी आँखों से कुत्ते ने कहा और हौले से बिसूरने लगा.

“ज़ीना,” सज्जन ने हुक्म दिया, “इसे फ़ौरन जाँच वाले कमरे में और मुझे एप्रन.”

औरत ने सीटी बजाई, चुटकी बजाई और कुत्ता, कुछ हिचकिचाकर, उसके पीछे-पीछे चलने लगा. वे दोनों एक संकरे कॉरीडोर में आये, जिसमें रोशनी टिमटिमा रही थी, एक वार्निश किये हुए दरवाज़े को छोड़ दिया, कॉरीडोर के अंत तक आये, और फिर बाईं ओर मुड़े और एक छोटे-से अंधेरे कमरे में पहुँचे, जो अपनी ख़तरनाक गंध के कारण कुत्ते को बिल्कुल पसन्द नहीं आया. अंधेरा थरथराया और चकाचौंध करने वाले दिन में बदल गया, चारों ओर से चिंगारियाँ निकल रही थीं, हर चीज़ चमक रही थी और सफ़ेद हो रही थी.

, नहीं’, कुत्ता ख़यालों में बिसूरने लगा, ‘माफ़ करना, मैं ख़ुद को आपके हवाले नहीं करूँगा! समझता हूँ, शैतान ले जाये उन्हें अपने सॉसेज के साथ. ये मुझे कुत्तों के अस्पताल में ले आये हैं. अब ज़बर्दस्ती कॅस्टर-ऑइल पिलायेंगे और पूरी बाज़ू को चाकुओं से काट देंगे, मगर इस तरह आप मुझे नहीं छू सकते.

“ऐ, नहीं, कहाँ?!” वह चिल्लाई, जिसका नाम ज़ीना था.

कुत्ते ने अपने शरीर को मोड़ा, स्प्रिंग की तरह उछला और अचानक अपनी तंदुरुस्त बाज़ूं से दरवाज़े पर ऐसी चोट की, कि पूरा क्वार्टर झनझना गया. फिर, पीछे की ओर उड़ा, अपनी जगह पर कोड़े खाते हुए आदमी की तरह गोल-गोल घूमा, सफ़ेद बालटी फ़र्श पर उलट दी, जिसमें से रूई के फ़ाहे उड़ने लगे. जब वह चारों ओर गोल-गोल घूम रहा था, तो उसके चारों ओर दीवारें फड़फ़ड़ा रही थीं, जिनसे लगी हुई चमकीले उपकरणों वाली अलमारियाँ खड़ी थीं, सफ़ेद एप्रन और औरत का भयभीत चेहरा उछल रहा था.

“कहाँ चला तू, बालों वाले शैतान?..” बदहवासी से ज़ीना चीखी.”...घिनौने!”

उनकी चोर-सीढ़ी कहाँ है?’...कुत्ता सोच रहा था. उसने अपने बदन को ढीला किया और एक ढेले की तरह काँच को ठोस मारी, इस आशा से कि यह दूसरा दरवाज़ा है. एक धमाके और आवाज़ के साथ किरचियों का बादल उड़ा, एक बड़े पेट वाला जार, अपने भूरे गंदे कीचड़ समेत उड़ा, जो फ़ौरन पूरे फ़र्श पर बहने लगा और बदबू छोड़ने लगा. सचमुच का दरवाज़ा धड़ाम् से खुला.

“रुक, ज-जंगली,” एप्रन की एक ही आस्तीन पहने उछलता हुआ भला आदमी चिल्लाया, और उसने कुत्ते को टाँगों से पकड़ लिया. “ज़ीना, इस कमीने की गर्दन पकड़.”

“ब्बा...बाप रे, क्या कुत्ता है!”

दरवाज़ा और चौड़ा खुला और एक और मर्द इन्सान एप्रन पहने भीतर घुसा. टूटे हुए काँचों को दबाते हुए वह कुत्ते की ओर नहीं, बल्कि अलमारी की तरफ़ लपका, उसे खोला पूरे कमरे को मीठी, उबकाई लाने वाली गंध से भर दिया. इसके बाद यह व्यक्ति ऊपर से पेट के बल कुत्ते पर, झपटा, कुत्ते ने उसे जूते की लेस से कुछ ऊपर नोच लिया. वह व्यक्ति कराहा, मगर परेशान नहीं हुआ. उबकाई लाने वाला द्रव कुत्ते की सांसों में मिल गया और उसका सिर घूमने लगा, फिर टाँगें ढीली पड़ गईं और वह तिरछे-तिरछे चलने लगा. शुक्रिया, बेशक,’ उसने सीधे नुकीले किरचों पर गिरते हुए, जैसे सपने में सोचा. अलबिदा, मॉस्को! मैं फिर कभी चीच्किन और प्रोलेटेरियन्स और क्राकोव-सॉसेज नहीं देख पाऊँगा. कुत्ती-सहनशीलता के कारण जन्नत में जा रहा हूँ. भाईयों, कसाईयों, आप क्यों मुझसे ऐसा कर रहे हैं?’

और तब आख़िरकार वह एक करवट फ़र्श पर लुढ़क गया और उसने दम तोड़ दिया.

**********

 

जब वह पुनर्जीवित हुआ, तो उसका सिर में हल्का-सा चक्कर आ रहा था और पेट में कुछ मिचली-सी हो रही थी, बाज़ू जैसे थी ही नहीं, बाज़ू मीठी-मीठी चुप्पी में खो गई थी. कुत्ते ने दाईं भारी आँख खोली और आँख के किनारे से देखा कि उसके बाज़ुओं और पेट पर कस कर बैण्डेज बांधा गया है. आख़िर काट ही दिया कुत्ते के पिल्लों ने’, उसने अस्पष्टता से सोचा, ‘मगर बड़ी आसानी से, सच में, उनकी तारीफ़ करनी चाहिये’.

सेविला से ग्रेनादा तक...ख़ामोश रातों के धुंधलके में”” – उसके ऊपर एक परेशान और कृत्रिम रूप से ऊँची आवाज़ गा रही थी.

कुत्ते को आश्चर्य हुआ, उसने दोनों आँखें पूरी खोल दीं और दो कदम की दूरी पर सफ़ेद तिपाई पर मर्दाना पैर देखा. उसके ऊपर पतलून और स्टॉकिंग्ज़ मोड़े गये थे, और नंगी, पीली पिंडली सूखे हुए खून और आयोडिन से पुती थी.  

ख़ुशामदी! कुत्ते ने सोचा, ‘शायद इसी को मैंने काटा था. ये मेरा काम है. ख़ैर, अब लड़ाई करेंगे!

गूंज रहे हैं प्रेम-गीत, आ रही है खनखनाहट तलवारों की! तूने डॉक्टर को क्यों काटा, आवारा कहीं का? आँ? काँच क्यों फ़ोड़ा? आँ?”

ऊ-ऊ-ऊ – कुत्ता दयनीयता से रोने लगा.

“अच्छा, ठीक है, होश में आ गया और अब लेटा रह, बदमाश.”

“आपने ये कैसे कर लिया, फ़िलीप फ़िलीपविच, ऐसे डरपोक कुत्ते को कैसे फ़ुसला लिया?” एक प्यारी मर्दाना आवाज़ ने पूछा और बुनी हुई स्टॉकिंग्ज़ लुढ़कती हुई वापस नीचे आ गई. तम्बाकू की गंध फैल गई और अलमारी में शीशियाँ खनखनाने लगीं.

प्यार से... जीवित प्राणी से मुख़ातिब होने का सिर्फ एक ही संभव तरीका है. आतंक से कुछ भी नहीं करना चाहिये, चाहे वह प्राणी विकास की किसी भी सीढ़ी पर क्यों न हो. इसकी मैंने अच्छी तरह पुष्टि कर ली है, पुष्टि करता हूँ और पुष्टि करता रहूँगा. वे बेकार ही में सोचते हैं कि आतंक से उन्हें लाभ होगा. नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं होगा, चाहे वह किसी भी तरह का आतंक क्यों न हो : श्वेत, लाल और भूरा भी! आतंक तंत्रिका प्रणाली को पूरी तरह पंगु बना देता है. ज़ीना! मैंने इस बदमाश के लिये क्राकव-सॉसेज खरीदा था एक रूबल चालीस कोपेक में. जब उसकी मिचली रुक जाये, तो खिलाने की कोशिश करना.

धोए जा रहे शीशों की करकराहट हो रही थी और औरत की आवाज़ ने शरारत से कहा:

“क्राकव-सॉसेज! ख़ुदा, उसके लिये तो कसाई की दुकान से दो कोपेक की छीलन खरीदना था. इससे अच्छा तो यह होगा कि क्राकव-सॉसेज को मैं ख़ुद खा जाऊँ.”

“कोशिश तो कर. मैं तुझे खा जाऊँगा! ये इन्सान के पेट के लिये ज़हर है. बड़ी लड़की है, और बच्चे की तरह मुँह में हर गंदी-संदी चीज़ डालती रहती है. हिम्मत न करना! चेतावनी देता हूँ : न तो मैं, न डॉक्टर बरमेन्ताल तेरी फ़िक्र नहीं करेंगे, जब तेरा पेट दर्द करेगा...”सबको, जो कहेगा, कि यहाँ कोई और भी है तेरे जैसी... 

इसी समय हल्की, रुक-रुक कर आती हुई घंटी की आवाज़ पूरे क्वार्टर में फ़ैल गई, और दूर, प्रवेश कक्ष से कभी-कभी आवाज़ें सुनाई दे रही थीं. टेलिफ़ोन बज रहा था. ज़ीना ग़ायब हो गई.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने सिगरेट का टुकड़ा बाल्टी में फेंक दिया, एप्रन बांधा, दीवार पर लगे आईने के सामने फूली-फूली मूँछें ठीक कीं और कुत्ते को आवाज़ दी:

“फ़ित्त-फ़ित्. चल, कोई बात नहीं. मेहमानों से मिलेंगे.”

कुत्ता अपनी डगमगाती टाँगों पर उठा, लड़खड़ाता रहा और चलता रहा, मगर जल्दी ही सामान्य हो गया और फिलिप फिलीपविच के एप्रन के हिलते हुए पल्ले के पीछे-पीछे चलने लगा. कुत्ते ने फ़िर से संकरे कॉरीडोर को पार किया, मगर अब उसने देखा कि वह ऊपर से किसी छेद से आती तेज़ रोशनी से जगमगा रहा है. जब वार्निश किया हुआ दरवाज़ा खुला, तो वह फ़िलिप फ़िलीपविच के साथ अध्ययन-कक्ष में घुसा, जिसने कुत्ते को अपनी सजावट से चकाचौंध कर दिया. सबसे पहली बात, वह पूरा रोशनी से जल रहा था: फ़ाल्स-सीलिंग के नीचे जल रहा था, मेज़ पर जल रहा था, दीवार पर जल रहा था, अलमारियों के शीशों में जल रहा था. रोशनी अनगिनत चीज़ों को नहला रही थी, जिनमें सबसे ख़ास था विशालकाय उल्लू, जो दीवार से लगी  एक टहनी पर बैठा था.

“लेट जा,” फ़िलिप फिलीपविच ने हुक्म दिया.

सामने वाला नक्काशी किया हुआ दरवाज़ा खुला, भीतर वही, छोटी सी नुकीली दाढ़ी वाला नौजवान आया, जिसे मैंने नोचा था, तेज़ रोशनी में वह बहुत ख़ूबसूरत लग रहा था. उसने कागज़ आगे बढ़ाया और बोला:

“पहले वाला...”

फ़ौरन चुपचाप ग़ायब हो गया, और फ़िलिप फ़िलीपविच, अपने एप्रन के पल्ले खोलकर बड़ी भारी लिखने की मेज़ पर बैठ गया और अचानक असाधारण रूप से महत्वपूर्ण और आकर्षक हो गया.

नहीं यह अस्पताल नहीं है, ये तो मैं किसी और ही जगह पर आ गया’, - परेशानी से कुत्ते ने सोचा और चमड़े के भारी दीवान के पास कार्पेट के डिज़ाईन पर लुढ़क गया, - ‘और इस उल्लू से हम समझ लेंगे...

दरवाज़ा हौले से खुला और कोई अंदर आया, जिसने कुत्ते को इस कदर चौंका दिया, कि वह एकदम भौंका, मगर बहुत नर्मी से...

“ख़ामोश! ब्बा-ब्बा, हूँ, आपको पहचानना मुश्किल हो रहा है, प्यारे.”                                                        

आने वाले ने बड़ी नम्रता और सकुचाहट से फ़िलिप फ़िलीपविच का अभिवादन किया.

“ही-ही! आप मैजिशियन और सम्मोहक हैं, प्रोफेसर,” उसने शर्माते हुए कहा.

“पतलून उतारो, प्यारे,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने हुक्म दिया और वह उठा.

जीज़स,लॉर्ड,’ कुत्ते ने सोचा, ‘कैसा फ्रूट जैसा है!

फ्रूट के सिर पर एकदम हरे बाल थे, और सिर के पीछे वे ज़ंग लगे तम्बाकू के रंग के लग रहे थे, ‘फ्रूटके चेहरे पर झुर्रियाँ फ़िसल रही थीं, मगर चेहरे का रंग गुलाबी था, जैसे किसी बच्चे का होता है. बायाँ पैर मुड़ नहीं रहा था, उसे कालीन पर खींच कर लाना पड़ रहा था, मगर दायाँ पैर बच्चों के नट क्रैकरकी तरह उछल रहा था. शानदार जैकेट के पल्ले पर, आँख की तरह, एक हीरा दिखाई दे रहा था.

दिलचस्पी के कारण कुत्ते की मतली भी ख़त्म हो गई.

क्यांऊ-क्यांऊ!...वह हौले से भौंका.

“ख़ामोश! नींद कैसी आती है, प्यारे?”

“ही-ही. हम अकेले हैं, प्रोफ़ेसर? इसका तो वर्णन ही नहीं कर सकता,” – आगंतुक ने शर्माते हुए बोलना शुरू किया. “कसम से – पच्चीस साल तक ऐसा कुछ भी नहीं था,” उस पात्र ने पतलून की बटन को हाथ लगाया, “ यकीन कीजिये, प्रोफ़ेसर, हर रात झुंड के झुंड निर्वस्त्र लड़कियों के. मैं सकारात्मक रूप से मोहित हूँ. आप- जादूगर हैं.”

“हुम्,” मेहमान की पुतलियों को ग़ौर से देखते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चिंता से चहका.

उस वाले ने आख़िरकार बटनों पर नियंत्रण कर लिया और धारियों वाली पतलून उतार दी. उसके नीचे ऐसा जांघिया था जैसा पहले कभी नहीं देखा था. वह दूधिया रंग का था, उस पर रेशमी काली बिल्लियाँ थीं और उनसे इत्र की महक आ रही थी.

कुत्ता बिल्लियों को बर्दाश्त नहीं कर पाया और इस तरह से भौंका कि पात्र उछल पड़ा.

“आय!”

“मैं तेरी खाल खीच लूंगा! डरिये नहीं, वह काटता नहीं है.”

मैं काटता नहीं हूँ?’ कुत्ते को अचरज हुआ.

आने वाले ने पतलून की जेब से कालीन पर एक छोटा-सा लिफ़ाफ़ा गिरा दिया, जिसके ऊपर खुले हुए बालों वाली एक सुन्दर लड़की की तस्वीर थी. पात्रउछला, झुका, उसे उठाया और खूब लाल हो गया.

“मगर, आप, देखिये,” फिलिप फिलीपविच ने उँगली से धमकाते हुए नाक-भौंह चढ़ाकर, चेतावनी-सी देते हुए कहा, “फिर भी, देखिये, बेवजह ग़लत इस्तेमाल न कीजिये!”

“मैं नहीं गल...”, कपड़े उतारते हुए पात्रशर्म से बुदबुदाया, “मैं, प्रिय प्रोफेसर, सिर्फ अनुभव के तौर पर.”

“ओह, तो क्या? परिणाम क्या हुआ?” फ़िलिप फिलीपविच ने कड़ाई से पूछा.

पात्रने ख़ुशी से हाथ हिलाया.

“25 साल, ख़ुदा की कसम, प्रोफेसर, ऐसी चीज़ हुई ही नहीं थी. पिछली बार सन् 1899 में पैरिस में र्यु दे ला पे (पैरिस की एक फ़ैशनेबल स्ट्रीट – अनु.)  में.”

“और आप हरे क्यों हो गये?”

आगंतुक का चेहरा उदास हो गया.

“नासपीटी झीर्कस्त! (झीर्कस्त – सोवियत कॉस्मेटिक्स कम्पनी का नाम – अनु.). आप कल्पना भी नहीं कर सकते, प्रोफेसर कि इन निठल्लों ने मुझे कैसा हेयर-डाय थमा दिया. आप सिर्फ देखिये”, आँखों से आईना ढूँढ़ते हुए पात्रबुदबुदाया. “उनका तो सिर ही फ़ोड़ देना चाहिये!” आगबबूला होते हुए उसने आगे कहा. “अब मुझे क्या करना चाहिये, प्रोफेसर?” उसने रुँआसे रुँआसेपन से पूछा.

“हुम्, सिर गंजा करवा लीजिये”.

“प्रोफेसर,” आगंतुक शिकायत के सुर में चहका, “मगर फिर से सफ़ेद बाल ही आयेंगे. इसके अलावा, मैं अपनी नौकरी पर मुँह भी नहीं दिखा सकूँगा, वैसे ही तीन दिनों से मैं नहीं जा रहा हूँ. ऐह, प्रोफ़ेसर, अगर आप कोई ऐसा तरीका ईजाद करते जिससे बाल भी जवान हो जाते!”

“फ़ौरन नहीं, फ़ौरन नहीं, मेरे प्यारे,” फ़िलिप फ़िलीपविच बुदबुदाया.

झुकते हुए, उसने चमकीली आँखों से मरीज़ के नंगे पेट का मुआइना किया:

“तो, बढ़िया, सब कुछ एकदम ठीक है. सच कहूँ तो मुझे भी ऐसे परिणाम की उम्मीद नहीं थी. “ज़्यादा लहू, ज़्यादा गीत...”, कपड़े पहन लो, प्यारे!”

मैं हूँ वो, जो है सबसे हसीन!...” फ्रायिंग पैन की तरह खड़खड़ाती आवाज़ में मरीज़ गाने लगा, और दमकते हुए, कपड़े पहनने लगा. अपने आप को ठीक-ठाक करने के बाद, उछलते हुए और इत्र की ख़ुशबू फ़ैलाते हुए, उसने फ़िलिप फ़िलीपविच को गिनकर सफ़ेद नोटों का बंडल थमाया और प्यार से उसके दोनों हाथ दबाने लगा.

“दो सप्ताह तक आने की ज़रूरत नहीं है,” फ़िलिप फिलीपविच ने कहा, “मगर फ़िर भी आपसे विनती करता हूः: सावधान रहें.”

“प्रोफ़ेसर!” दरवाज़े के पीछे से प्रसन्नतापूर्ण आवाज़ आई, “बिल्कुल इत्मीनान रखें,” वह मिठास से खिलखिलाया और ग़ायब हो गया.     

क्वार्टर में घण्टी की हल्की-सी आवाज़ तैर गई, वार्निश वाला दरवाज़ा खुला, काटा हुआ व्यक्ति भीतर आया, फ़िलिप फ़िलीपविच को कागज़ थमाया और बोला:

उम्र गलत दिखाई गई है. शायद, 54-55. दिल की धड़कन धीमी है.”

वह ग़ायब हो गया और उसकी जगह पर सरसराती हुई महिला आ गई फ़ैशनेबुल तरीके से तिरछी झुकी हुई हैट और थुलथुल, झुर्रियों वाली गर्दन में चमचमाता नेकलेस पहने. उसकी आँखों के नीचे अजीब सी काली थैलियाँ लटक रही थीं, और गाल गुड़ियों जैसे गुलाबी रंग के थे. वह बेहद परेशान थी.

महोदया! आप कितने साल की हैं?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने उससे बेहद गंभीरता से पूछा.

महिला घबरा गई और लाली की पर्त के भी नीचे विवर्ण हो गई.

“मैं, प्रोफेसर, कसम खाती हूँ, काश आप जानते कि मेरे साथ कैसा ड्रामा हो रहा है!...”

“उम्र कितनी है आपकी, महोदया?” और ज़्यादा गंभीरता से फ़िलिप फ़िलीपविच ने दुहराया.

“ईमानदारी से...ख़ैर, पैंतालीस...”

“मैडम,” फ़िलिप फिलीपविच चीखा, “लोग मेरा इंतज़ार कर रहे हैं. देर न करें, प्लीज़. आप अकेली ही तो नहीं हैं!”

महिला का सीना ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा.

“मैं सिर आपको, विज्ञान के सितारे को बता रही हूँ. मगर कसम खाती हूँ – ये इतना भयानक है...”

“आपकी उम्र कितनी है?” फ़िलिप फिलीपविच ने तैश से और तीखी आवाज़ में पूछा और उसका चश्मा चमकने लगा.

“इक्यावन!” भय से अधमरी हो गई महिला ने जवाब दिया.

“पतलून उतारिये, महोदया,” फ़िलिप फिलीपविच ने नरमाई से कहा और कोने में पड़ी ऊँची सफ़ेद मेज़ की ओर इशारा किया.

“कसम खाती हूँ, प्रोफेसर,” थरथराती ऊँगलियों से बेल्ट के ऊपर कुछ बटन खोलते हुए महिला बुदबुदाई, “ये मोरित्ज़...मैं आपके सामने स्वीकार करती हूँ, सच्चे दिल से...”

सेविले से ग्रेनादा तक...” अनमनेपन से फ़िलिप फिलीपविच गाने लगा और उसने संगमरमर के वाश-बेसिन का पैडल दबाया. पानी सरसराने लगा.    

“ख़ुदा की कसम!” महिला ने कहा और उसके गालों पर कृत्रिम धब्बों से होते हुए जीवित धब्बे झाँकने लगे, “मुझे मालूम है कि यह मेरी आख़िरी दीवानगी है. वह इतना बदमाश है! ओह, प्रोफ़ेसर! वह पत्ताचोर है पूरा मॉस्को यह बात जानता है. वह एक भी घिनौनी फ़ैशन डिज़ाइनर को नहीं छोड़ता. वह इस कदर जवान है – शैतानियत की हद तक.” महिला बुदबुदाई और उसने सरसराते हुए स्कर्ट के नीचे से मुड़ी-तुड़ी लेस का टुकड़ा बाहर फेंका.

कुत्ते की आँखों के आगे पूरी तरह धुंध छा गई और उसके सिर में सब कुछ उल्टा-पुल्टा होने लगा.

आप जहन्नुम में जाएँ,’ सिर को पंजों पर टिकाकर और शर्म से ऊँघते हुए उसने अस्पष्टता से सोचा, ‘और मैं समझने की कोशिश नहीं करूँगा, कि क्या हो रहा है – वैसे भी समझ तो नहीं पाऊँगा.

वह फ़िर से घंटी की आवाज़ से जागा और उसने देखा कि फ़िलिप फिलीपविच बेसिन में कोई चमकदार नलियाँ फेंक रहा है.

धब्बों वाली महिला, सीने पर हाथों को दबाये, उम्मीद से फ़िलिप फ़िलीपविच की ओर देख रही थी. उसने गंभीरता से भौंहे चढ़ाईं और कुर्सी पर बैठकर, कुछ लिखा.

“महोदया, मैं आपके जिस्म में बंदर का अंडाशय डाल दूंगा,” उसने घोषणा की और कठोरता से देखा.

“आह, प्रोफेसर, क्या वाकई में बंदर का?”

“हाँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने दृढ़ता से उत्तर दिया.

ऑपरेशन कब होगा?” विवर्ण मुख से और कमज़ोर आवाज़ में महिला ने पूछा.

सेविला से ग्रेनादा तक...” ऊँ...सोमवार को. सुबह क्लिनिक में आ जाईये. मेरा असिस्टंट आपको ऑपरेशन के लिये तैयार करेगा.”

“आह, मैं क्लिनिक में नहीं जाना चाहती. प्रोफ़ेसर, क्या आपके यहाँ नहीं हो सकता?”

“देखिये, यहाँ मैं सिर्फ चरम परिस्थितियों में ही ऑपरेशन करता हूँ. ये बहुत महंगा पड़ेगा – पाँच सौ रूबल्स.”

“मैं तैयार हूँ, प्रोफ़ेसर!”

फ़िर से पानी शोर मचाने लगा, परों वाली हैट बाहर की ओर तैर गई, फिर प्रकट हुआ प्लेट जैसा गंजा सिर और उसने फ़िलिप फ़िलीपविच को गले लगा लिया. कुत्ता ऊँघ रहा था, मिचली ख़त्म हो गई थी, कुत्ता शांत हो रही बाज़ू और गर्माहट का मज़ा ले रहा था, उसने खर्राटे भी लिये और एक छोटा-सा प्यारा सपना देखा : जैसे उसने उल्लू की पूँछ से सारे पर उखाड़ लिये हैं...फिर उसके सिर के ऊपर एक परेशान आवाज़ भौंकी.

“मॉस्को में मैं काफ़ी मशहूर हूँ, प्रोफेसर. मुझे क्या करना चाहिये?”

“जेन्टलमैन!” फ़िलिप फिलीपविच उत्तेजना से चीख़ा, “ऐसा तो नहीं करना चाहिये. अपने आप पर नियंत्रण रखना चाहिये. उसकी क्या उम्र है?”

“चौदह साल, प्रोफ़ेसर...आप समझ रहे हैं, बात फ़ैलने से मैं बर्बाद हो जाऊँगा. कुछ ही दिनों में विदेश की ट्रिप का मौका मिलने वाला है.”

“अरे, मैं कोई एडवोकेट नहीं हूँ, प्यारे...तो, दो साल रुक जाईये और उससे शादी कर लीजिये.”

“मैं शादी-शुदा हूँ, प्रोफेसर.”

“आह, जेंटलमैन, जेंटलमैन!”

दरवाज़े खुलते रहे, चेहरे बदलते रहे, अलमारी में उपकरण खनखनाते रहे, और फ़िलिप फ़िलीपविच काम करता रहा, बिना रुके.

घटिया क्वार्टर है,’ कुत्ता सोच रहा था, मगर, कितना अच्छा है! और इसे मेरी ज़रूरत क्यों पड़ गई? ज़िंदा तो रखेगा ना? ग़ज़ब का आदमी है! वह सिर्फ आँख झपकाता, उसे कोई बढ़िया कुत्ता मिल सकता था! और हो सकता है कि मैं भी ख़ूबसूरत हूँ. ज़ाहिर है, मेरा सुख! और ये उल्लू गलीज़ है....बेशरम.

पूरी तरह से कुत्ता देर शाम को जागा, जब घंटियाँ रुक गईं थीं और ठीक उसी पल जब दरवाज़े ने ख़ास मेहमानों को भीतर छोड़ा. वे एकदम चार थे. सब नौजवान और सबने बेहद मामूली कपड़े पहने थे.

इन्हें क्या चाहिये?’ कुत्ते ने अचरज से सोचा.

फ़िलीप फिलीपविच बेहद नाराज़गी से मेहमानों से मिला. वह लिखने की मेज़ के पास खड़ा था और आनेवालों की ओर ऐसे देख रहा था, जैसे कोई कर्नल दुश्मनों की तरफ़ देखता है. उसकी बाज़ जैसी नाक के नथुने फूल रहे थे. आने वाले कालीन को कुचल रहे थे.

“हम आपके पास, प्रोफ़ेसर,” उनमें से एक ने बोलना शुरू किया जिसके सिर पर करीब आधा बालिश्त ऊँचे घने, घुंघराले टोप जैसे बाल थे, “ये इस काम से...”

“आप, महानुभावों, बेकार ही ऐसे मौसम में बगैर गलोशों के घूमते हैं,” फिलिप फिलीपविच ने ज़ोर देकर उनकी बात काटी, “पहली बात, आपको ज़ुकाम हो जायेगा, और, दूसरी बात, आपने मेरे कालीनों पर धब्बे बना दिये हैं, और मेरे सारे कालीन पर्शियन हैं.”

वह, टोप जैसे बालों वाला चुप हो गया और चारों अचरज से फ़िलिप फिलीपविच को देखने लगे. चुप्पी कुछ पल रही और उसे सिर्फ मेज़ पर पड़ी हुई डिज़ाईन वाली लकड़ी की तश्तरी पर फिलिप फिलीपविच की उँगलियों की खटखट ने ही तोड़ा.

“पहली बात, हम महानुभाव नहीं हैं,” आख़िरकार उन चारों में से सबसे जवान, आडू जैसे चेहरे वाले ने कहा.

“पहली बात,” फिलिप फिलीपविच ने बीच में ही उसे टोका, “आप मर्द हैं या औरत?”

चारों फ़िर से ख़ामोश हो गये और उनके मुँह खुले रह गये. इस बार होश में आया पहला वाला, वही जिसके टोप जैसे बाल थे.

“क्या फ़र्क पड़ता है, कॉम्रेड?” उसने इतराते हुए पूछा.

“मैं – औरत हूँ,” चमड़े का जैकेट पहने आडू जैसे नौजवान ने स्वीकार किया और बुरी तरह लाल हो गया. उसके पीछे-पीछे आने वालों में एक और भी खूब लाल हो गया – भेड़ की खाल की टोपी पहना भूरे बालों वाला.

“तब आप अपनी हैट पहने रह सकते हैं, और आपसे, प्रिय महाशय, विनती करता हूँ कि अपना शिरस्त्राण उतार दें.

“मैं आपके लिये प्रिय महाशय नहीं हूँ,” भूरे बालों वाले ने अपनी टोपी उतारते हुए तैश से कहा.

“हम आपके पास आये हैं,” फिर से काले, बालों के टोप वाले ने कहा.

“सबसे पहले – ये हमकौन हैं?”

“हम – हमारी बिल्डिंग की नई हाउसिंग सोसाइटी हैं,” काले वाले ने अपने तैश को काबू में रखते हुए कहना शुरू किया. “मैं – श्वोन्दर. ये – व्याज़ेम्स्काया, वो – कॉम्रेड पिस्त्रूखिन और शरोव्किन. और हम...”

“तो ये आपको फ्योदर पाव्लविच साब्लिन के क्वार्टर में बसाया गया है?”

“हमें” श्वोन्दर ने जवाब दिया.

“ख़ुदा, कलाबुखोव्स्की बिल्डिंग बर्बाद हो गई!” अनमनेपन से फ़िलिप फिलीपविच चहका और उसने हाथ हिला दिये.

“क्या आप, प्रोफेसर, हंस रहे हैं?”

“कैसा हंसना?! मैं पूरी तरह बदहवास हू,” फिलिप फिलीपविच चीख़ा, “अब स्टीम-हीटिंग का क्या होगा?”         

आप मज़ाक उड़ा रहे हैं, प्रोफेसर प्रिअब्राझेन्स्की?”

आप किस काम के लिये मेरे पास आये हैं? जितनी जल्दी हो सके बतायें, मैं अभी खाना खाने जा रहा हूँ.

“हम, बिल्डिंग की हाऊसिंग सोसाइटी,” श्वोन्देर ने नफ़रत से बोलना शुरू किया, “हमारी बिल्डिंग के निवासियों की जनरल-बॉडी मीटिंग के बाद आये हैं, जिसमें बिल्डिंग के क्वार्टर्स में निवासियों की संख्या का सवाल उठाया गया था...”

“किसे कहाँ उठाया गया था?” फिलिप फिलीपविच चीखा, “अपने विचार अधिक स्पष्ट रूप से समझाने की कोशिश कीजिए.”

“सवाल उठा था आबादी बढ़ाने के बारे में.”

“बस! मैं समझ गया! आपको पता है, कि इस साल के 12 अगस्त को प्रकाशित नियम के अनुसार मेरा क्वार्टर किसी भी तरह के आवासीय-घनेपन और आवास परिवर्तनों से मुक्त है?”

“मालूम है,” श्वोन्देर ने जवाब दिया, “मगर जनरल बॉडी मीटिंग, आपके सवाल का अध्ययन करने के बाद, इस निष्कर्ष पर पहुँची कि आप बहुत बड़ी जगह पर कब्ज़ा जमाये हुए हैं. बेहद बड़ी. आप अकेले सात कमरों में रहते हैं.”

“सात कमरों में मैं अकेला रहता हूँ और काम करता हूँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने जवाब दिया, “ और मुझे आठवें कमरे की ज़रूरत है. मुझे लाइब्रेरी के लिये उसकी ज़रूरत है.”

चारों की बोलती बंद हो गई.

“आठवाँ! ए-हे-हे,” भूरे बालों वाला बोला, जिसके सिर पर अब कैप नहीं थी, “ख़ैर, ये बढ़िया है.”

“ये अवर्णनीय है!” नौजवान, जो लड़की था, चहका.

“मेरे यहाँ है बैठक का कमरा – ग़ौर कीजिये – वही लाइब्रेरी भी है, डाइनिंग रूम, मेरा अध्ययन कक्ष - 3. मरीज़ देखने वाला कमरा – 4. ऑपरेशन रूम – 5. मेरा शयन कक्ष – 6 और सेविका का कमरा – 7. मतलब, पूरा नहीं पड़ता...अच्छा, ख़ैर, ये महत्वपूर्ण नहीं है. मेरा क्वार्टर सभी नियमों से आज़ाद है, और बात ख़त्म. क्या मैं लंच के लिये जा सकता हूँ?”

“माफ़ी चाहता हूँ,” चौथे ने कहा, जो मोटे गुबरैले जैसा था.

माफ़ी चाहता हूँ,” श्वोन्देर ने उसकी बात काटी, “हम ख़ासकर डाइनिंग-रूम और मरीज़ देखने वाले जाँच-कक्ष के ही बारे में बात करने आये हैं. जनरल-बॉडी मीटिंग आपसे विनती करती है कि कामगार-अनुशासन के तहत आप स्वेच्छा से, डाइनिंग-रूम को छोड़ दें. मॉस्को में किसी के भी पास डाइनिंग-रूम नहीं है.”

“इसादोरा डंकन के पास भी नहीं है,” खनखनाती आवाज़ में लड़की चीखी.       

फ़िलिप फिलीपविच को कुछ हो गया, जिसके कारण उसका चेहरा हौले से लाल हो गया और उसने एक भी लब्ज़ नहीं कहा, इंतज़ार करते हुए कि आगे क्या होगा.

“और जाँच वाला कमरा भी,” श्वेन्देर ने अपनी बात जारी रकी, “जाँच वाले कमरे को आसानी से शयन-कक्ष से जोड़ा जा सकता है.”

“उहू,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कुछ अजीब सी आवाज़ में कहा, “और मुझे खाना कहाँ खाना चाहिये?”

“शयन-कक्ष में” चारों ने एक सुर में उत्तर दिया.

फ़िलिप फ़िलीपविच के चेहरे की लाली में कुछ भूरी झलक दिखाई दी.

“शयन-कक्ष में खाना खाऊँ,” उसने कुछ घुटी हुई आवाज़ में बोलना शुरू किया, “जाँच वाले कमरे में पढूँ, बैठक वाले कमरे में कपड़े पहनूँ, सेविका के कमरे में ऑपरेशन करूँ, और डाइनिंग रूम में मरीज़ देखूँ. काफ़ी संभव है कि इसादोरा डंकन भी ऐसा ही करती हो. हो सकता है कि वह अध्ययन-कक्ष में खाना खाती हो, और खरगोशों को बाथ-रूम में काटती हो. हो सकता है. मगर मैं इसाडोरा डंकन नहीं हूँ!”...वह अचानक चिंघाड़ा और उसके चेहरे की लाली पीली हो गई. “मैं डाइनिंग रूम में ही खाना खाऊँगा, और ऑपरेशन-रूम में ही ऑपरेशन करूँगा. जनरल=बॉडी मीटिंग को बता दीजिये और बड़ी नम्रता से विनती करता हूँ कि अपने-अपने काम पर लौट जाईये, और मुझे खाना खाने का मौका प्रदान करें वहीं, जहाँ सभी सामान्य लोग खाते हैं, मतलब डाइनिंग-रूम में, न कि प्रवेश-कक्ष में और न ही बच्चों वाले कमरे में.”

“तो फ़िर, प्रोफ़ेसर, आपके अडीयल रवैये और विरोध को देखते हुए,” उत्तेजित श्वोन्देर ने कहा, “हम उच्च अधिकारियों से आपके ख़िलाफ़ शिकायत करेगे.”

“आहा,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा, “ऐसा?” और उसकी आवाज़ में सन्देहास्पद विनम्रता का पुट आ गया, “कृपया एक मिनट इंतज़ार करें.”

ये है ना जवान,’ कुत्ते ने उत्तेजना से सोचा, ‘बिल्कुल मेरी तरह. ओह, अब नोचेगा वह उन्हें, ओह, नोचेगा. अभी पता नहीं कि किस तरह से, मगर ऐसा नोचेगा...मार उन्हें! इस घुटनों तक जूते पहने को जूते से ऊपर टखने के नीचे...र्-र्-र्....

फ़िलिप फ़िलीपविच ने टक-टक करके, टेलिफ़ोन का रिसीवर लिया और उसमें ऐसा कहा:

प्लीज़....हाँ...धन्यवाद. प्योत्र अलेक्सान्द्रविच को दीजिये, प्लीज़. प्रोफेसर प्रिअब्राझेन्स्की . प्योत्र अलेक्सान्द्रविच? बहुत ख़ुश हूँ कि आप मिले. धन्यवाद, अच्छा हूँ. प्योत्र अलेक्सान्द्रविच आपका ऑपरेशन रद्द किया जाता है. क्या? पूरी तरह से रद्द किया जाता है. अन्य सभी ऑपेरेशनों की तरह. इसलिये, कि मैं मॉस्को में, और आम तौर से रूस में अपना काम बंद कर रहा हूँ...अभी मेरे पास चार लोग आये हैं, उनमें एक लड़की भी है जिसने आदमी के कपड़े पहने हैं, और दो के पास रिवॉल्वर्स हैं और वे मेरे क्वार्टर में आकर उसका कुछ हिस्सा छीन लेने के उद्देश्य से आतंकित कर रहे थे.”

“प्लीज़, प्रोफ़ेसर,” श्वोन्देर ने शुरूआत की, उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे.

“माफ़ कीजिये...जो कुछ भी वे कह रहे थे, उसे दुहराना मेरे लिये संभव नहीं है. मुझे बकवास करने का शौक नहीं है. इतना ही कहना काफ़ी है कि उन्होंने मुझे मरीज़ों की जाँच करने वाले कमरे को छोड़ देने का सुझाव दिया है, दूसरे शब्दों में, मुझे उस जगह आपका ऑपरेशन करने पर मजबूर किया है जहाँ मैं अब तक ख़रगोश काटा करता था. ऐसे हालात में मेरे लिये न सिर्फ काम करना असंभव है, बल्कि मेरे पास काम करने का अधिकार भी नहीं है. इसलिये मैं अपना काम बंद कर रहा हूँ, क्वार्टर बंद कर रहा हूँ और सोची जा रहा हूँ. चाभियाँ श्वोन्देर के पास छोड़ सकता हूँ. वह क्वार्टर का जो चाहे करे.”

चारों स्तब्ध हो गये. उनके जूतों पर जमी बर्फ पिघल रही थी. 

“क्या करें...मुझे ख़ुद को भी बहुत बुरा लग रहा है...क्या? ओह, नहीं, प्योत्र अलेक्सान्द्रविच! ओह, नहीं. इस तरह काम करने से मैं और ज़्यादा सहमत नहीं हूँ. मेरे सब्र का बांध टूट गया है. अगस्त से यह दूसरा मामला है. क्या? हुम्...जैसा आप चाहें.कम से कम. मगर सिर्फ एक शर्त पर : किसके द्वारा, कब, क्या ठीक है, मगर ऐसा कोई कागज़ हो, जिसके होने से न श्वोन्देर, न कोई और मेरे क्वार्टर के दरवाज़े के करीब भी फ़टक सके. पक्का कागज़. वास्तविक! असली! कवच की तरह. ताकि फिर कभी मेरे नाम का ज़िक्र भी न हो. बेशक. मैं उनके लिये मर चुका हूँ. हाँ. प्लीज़. किसके साथ? आहा...ख़ैर, ये और बात है. आहा...अभी रिसीवर देता हूँ. मेहेरबानी फ़रमाईये,” साँप जैसी फ़ुफ़कार से फ़िलिप फिलीपविच श्वोन्देर से मुख़ातिब हुआ, “अभी आपसे बात करेंगे.”

“माफ़ कीजिये, प्रोफ़ेसर,” श्वोन्देर, कभी भड़कते हुए, कभी बुझते हुए कहा, “आपने हमारे शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है.”

“आपसे प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे वाक्यों का इस्तेमाल न करें.”

श्वोन्देर ने व्यग्रता से रिसीवर लिया और बोला:

“सुन रहा हूँ. हाँ...हाऊसिंग कमिटी का प्रेसिडेन्ट...नहीं, बिल्कुल नियमों के अनुसार...प्रोफ़ेसर का वैसे भी एक ख़ास महत्वपूर्ण स्थान है...हम उनके काम के बारे में जानते हैं. पूरे पाँच कमरे उनके पास छोड़ना चाह रहे थे...अच्छा, ठीक है...ठीक है...अच्छा...”

पूरी तरह से लाल, उसने रिसीवर रख दिया और मुड़ा.

कितना अपमानित हो गया था! ये है न पट्ठा!कुता प्रसन्नता से सोच रहा था, ‘वह क्या, कोई लब्ज़  जानता है? ख़ैर, अब चाहें तो मुझे मार भी सकते हैं – जैसा चाहे करो, मगर मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा.

तीनों, मुँह खोले, अपमान से लाल हुए श्वोन्देर की ओर देख रहे थे.

“ये बेहद शर्मिंदगी की बात है!वह जैसे किसी और की आवाज़ में बोला.

“अगर अभी वाद-विवाद होता,” महिला ने परेशानी से लाल होते हुए कहा, “तो मैं प्योत्र अलेक्सान्द्रविच के सामने साबित ....”

“माफ़ी चाहता हूँ, आप इसी पल तो यह वाद-विवाद शुरू करना नहीं चाहती हैं ना?” शिष्टतापूर्वक फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा.

महिला की आँखें जलने लगीं.

“मैं आपका व्यंग्य समझती हूँ, प्रोफ़ेसर, हम अभी चले जायेंगे...सिर्फ मैं बिल्डिंग के सांस्कृतिक विभाग का संचालक होने के नाते....”

“सं-चा-लि-का,” फ़िलिप फिलीपविच ने उसकी गलती सुधारी.

“आपको सुझाव देना चाहती हूँ,” अब महिला ने कोट के भीतर से कुछ चमकदार और बर्फ से गीली हो गईं पत्रिकाएँ निकालीं, “ कि आप जर्मनी के बच्चों की सहायता के लिये इनमें से कुछ पत्रिकाएँ लें. पचास कोपेक की एक.”

“नहीं, नहीं लूँगा,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पत्रिकाओं की ओर देखकर संक्षिप्त जवाब दिया.

सभी पूरी तरह भौंचक्के रह गये, और औरत पर जैसे किसी ने करौंदे का रस उंडेल दिया.

“आख़िर आप क्यों इनकार कर रहे हैं?”

“नहीं चाहता.”

“क्या आपको जर्मनी के बच्चों के साथ हमदर्दी नहीं है?”

“हमदर्दी है.”

“पचास कोपेक का अफ़सोस है?”

“नहीं.”

“तो फ़िर क्यों?”

“नहीं चाहता.”

ख़ामोशी छा गई.

“ये जान लीजिये, प्रोफ़ेसर,” महिला ने गहरी सांस लेकर कहा, “अगर आप यूरोप में प्रसिद्ध नहीं होते, और अगर इतनी बेरहमी से आपका समर्थन न किया होता (भूरे बालों वाले ने जैकेट के किनारे से उसे खींचा, मगर उसने हाथ झटक दिया) उन लोगों ने, जिनके सामने, मुझे यकीन है, कि हम अभी स्पष्टीकरण देंगे, तो, आपको तो गिरफ़्तार कर लेना चाहिये था.”

“किसलिये?” उत्सुकता से फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा.

“आप प्रोलेटरियेट से नफ़रत करते हैं!” गर्व से महिला ने कहा.

“हाँ, मैं प्रोलेटेरियन्स को पसंद नहीं करता,” दयनीयता से फ़िलिप फ़िलीपविच ने सहमति दर्शाई और घंटी का बटन दबाया.

“ज़ीना,” फिलिप फिलीपविच चीखा, “खाना लगा दो. आप इजाज़त देंगे, महानुभावों?”

चारों ख़ामोशी से अध्ययन-कक्ष से बाहर निकल गये, ख़ामोशी से जाँच वाले कमरे से, प्रवेश कक्ष से गुज़रे और सुनाई दिया कि कैसे धम् से आवाज़ करता हुआ उनके पीछे प्रवेश द्वार बंद हुआ.

कुत्ता पिछले पंजों पर उठा और फ़िलिप फ़िलीपविच के सामने नमाज़ की मुद्रा में झुक गया.

 

 

अध्याय – 3

   

जन्नत के फ़ूलों के डिज़ाइन से सजी, काली चौड़ी किनार वाली प्लेटों में पतले टुकड़ों में कटी हुए सैल्मन मछली, मसालेदार सर्पमीन (ईल मछली – अनु.) पड़ी थी. एक भारी बोर्ड पर आँसू के साथ पनीर का टुकड़ा पड़ा था, और बर्फ से ढंके चांदी के टब में  - कैवियर. प्लेटों के बीच-बीच में कुछ पतले-पतले जाम और अलग-अलग रंगों की वोद्का वाली तीन क्रिस्टल की सुराहियाँ थीं. ये सारी चीज़ें छोटी-सी संगमरमर की मेज़ पर रखी थीं, जो नक्काशी की हुई शाह-बलूत की भारी-भरकम अलमारी से आसानी से जुड़ी हुई थी, जिससे काँच और चांदी के प्रकाश की किरणें निकल रही थीं. कमरे के बीचोंबीच – सफ़ेद मेज़पोश से ढंकी भारी, ताबूत जैसी मेज़ थी, और उसके ऊपर दो प्लेटें, नैपकिन्स, पोप के मुकुट के आकार में मोड़े हुए, और तीन काली बोतलें थीं.                     

ज़ीना चांदी का ढंका हुआ डोंगा भीतर लाई, जिसमें कुछ खदखदा रहा था. डोंगे से ऐसी ख़ुशबू आ रही थी, कि कुत्ते का मुँह फ़ौरन गीली लार से भर गया. “बेबिलोन के लटकते उद्यान”! – उसने सोचा और लकड़ी के फ़र्श पर अपनी पूँछ से इस तरह ठक-ठक किया जैसे डंडे से खटखटा रहा हो.

“यहाँ लाओ,” हिंसक ढंग से फ़िलिप फ़िलीपविच ने आज्ञा दी. “डॉक्टर बर्मेन्तल, आपसे विनती करता हूँ, कैवियर को सुकून से रहने दें. और अगर अच्छी सलाह मानना चाहते हैं, तो अंग्रेज़ी शराब न डालिये, बल्कि साधारण रूसी वोद्का डालिये.”

मेरे द्वारा ज़ख़्मी किये गए ख़ूबसूरत नौजवान ने – वह बगैर एप्रन के अच्छे काले सूट में था – अपने चौड़े कंधे उचकाए, शिष्टता से मुस्कुराया और पारदर्शी शराब जामों में डाली.

“नोवा-ब्लागास्लवेन्नाया?” उसने पूछा.

“ख़ुदा आपकी हिफ़ाज़त करे, प्यारे,” मेज़बान ने जवाब दिया. “यह स्प्रिट है. दार्या पित्रोव्ना ख़ुद ही बढ़िया वोद्का बनाती है.”

“क्या कह रहे हैं, फ़िलिप फ़िलीपविच, सभी कहते हैं कि बेहद बढ़िया – 300 वाली होती है.”

“मगर वोद्का 400 वाली होनी चाहिये, न कि 300 वाली, ये हुई पहली बात, - और दूसरी, - ख़ुदा ही जानता है कि उन्होंने उसमें क्या-क्या मिलाया है. क्या आप बता सकते हैं कि उनके दिमाग़ में कब क्या आयेगा?”

“सब कुछ, जो भी वे चाहें,” यकीन के साथ ज़ख़्मी नौजवान ने कहा.

“और मेरी भी यही राय है,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा और एक ही घूंट में जाम को अपने गले में खाली कर दिया, - “... म्-म्....डॉक्टर बर्मेन्तल , आपसे विनती करता हूँ, फ़ौरन इस चीज़ को, और अगर आप कहेंगे कि यह...तो मैं ज़िंदगी भर के लिये आपका जानी दुश्मन हो जाऊँगा. “सेवीला से ग्रेनादा तक...

उसने ख़ुद इन शब्दों के साथ चांदी के मछली के कांटे में काली-सी, छोटी ब्रेड जैसी कोई चीज़ अटकाई. ज़ख़्मी ने उसका अनुसरण किया. फ़िलिप फ़िलीपविच की आँख़ें चमकने लगीं.
“क्या ये बुरा है
?” चबाते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा. “बुरा है? आप जवाब दीजिये, आदरणीय डॉक्टर.”       

“ये लाजवाब है,” ज़ख़्मी ने ईमानदारी से जवाब दिया.

“क्या कहने...ग़ौर कीजिये, इवान अर्नोल्दविच, ठण्डा नाश्ता और सूप सिर्फ वे ही बचे-खुचे ज़मींदार खाते हैं जिनका गला अभी तक बोल्शेविकों ने नहीं काटा है. अपनी थोड़ी-बहुत कदर करने वाला आदमी गरम नाश्ता ही खाता है. और मॉस्को की नाश्ते की गरम चीज़ों में – यह सबसे बेहतरीन है, कभी इसे शान से स्लव्यान्स्की बाज़ार में बनाया करते थे. ले, ये ले.”

“कुत्ते को डाइनिंग रूम में खिला रहे हैं”, एक जनाना आवाज़ सुनाई दी, “और फिर उसे क्रीम रोल का लालच देकर भी यहाँ से नहीं निकाल पाओगे.”

“कोई बात नहीं.बेचारा, गरीब भूखा है,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कांटे की नोक पर फंसा कर उसे स्नैक्स दिये, जिसे उसने बड़ी अदा से खा लिया, और कांटे को झनझनाहट के साथ तसले में फेंक दिया.

प्लेटों से अब लॉब्स्टर की ख़ुशबू की भाप उठ रही थी; कुत्ता मेज़पोश की छाँव में बारूद के गोदाम के पहरेदार की तरह बैठा था. और फ़िलिप फ़िलीपविच, मोटे नैपकिन के कोने को कॉलर के भीतर डालकर बोला:

“खाना, इवान अर्नाल्दविच, बड़ी नाज़ुक चीज़ है. खाना भी एक कला है, और सोचिये, ज़्यादातर लोग खाना ही नहीं जानते. न सिर्फ यह जानना ज़रूरी है कि क्या खाना चाहिये, बल्कि यह भी कि कब और कैसे खाना चाहिये. (फ़िलिप फ़िलीपविच ने गहरे अर्थपूर्ण अंदाज़ में चम्मच हिलाई). और खाते समय किस बारे में बात करनी चाहिये. हां--. अगर आप अपने हाज़मे के बारे में सतर्क हैं,तो मेरी नेक सलाह है – खाना खाते समय बोल्शेविकों के बारे में बात न करें और चिकित्सा-शास्त्र के बारे में. और – ख़ुदा आपको सलामत रखे – खाना खाने से पहले सोवियत अख़बार न पढ़ें.”

“हुम्...मगर कोई और अख़बार तो हैं ही नहीं.”        

“तो कोई भी अख़बार न पढ़ें. आप जानते हैं कि मैंने अपने क्लिनिक में 30 परीक्षण किये थे. और आपका क्या ख़याल है? जो मरीज़ अख़बार नहीं पढ़ते थे, उनकी तबियत काफ़ी अच्छी रहती है. वे, जिन्हें मैंने ख़ास तौर से “प्राव्दा” पढ़ने पर मजबूर किया, - उनका वज़न कम हो गया.”

“हुम्...” सूप और वाईन से लाल होते हुए ज़ख़्मी ने दिलचस्पी से प्रतिक्रिया दी.

“यह भी कम है. घुटनों की सजगता कम होना, खाने की इच्छा ख़त्म होना, उदास मनःस्थिति भी देखी गई.”

” ये तो शैतान...”

“हाँ-आ. मगर, मैं ये क्या कर रहा हूँ? ख़ुद ही चिकित्सा-शास्त्र के बारे में बोलने लगा.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने, पीठ टिकाकर, घंटी बजाई, और चेरी के पर्दे से ज़ीना प्रकट हुई. कुत्ते को स्टर्जन मछली का सफ़ेद, मोटा टुकड़ा दिया गया, जो उसे पसन्द नहीं आई, और इसके फ़ौरन बाद रोस्ट-बीफ़ का लाल टुकड़ा भी आया. उसे गटकने के बाद, कुत्ते को अचानक महसूस हुआ कि उसे नींद आ रही है, और वह अब और ज़्यादा खाने की तरफ़ नहीं देख सकता. अजीब-सा एहसास है,’ भारी पलकें फ़ड़फ़ड़ाते हुए वह सोच रहा था, ‘काश मेरी आँखों को कोई खाने की चीज़ न दिखाई देती. और खाने के बाद सिगरेट पीना – ये बेवकूफ़ी है’.

डाइनिंग रूम अप्रिय नीले धुँए से भर गया. सामने के पंजों पर सिर रखकर कुत्ता ऊँघ रहा था.

सेन-ज्युलिएन – शानदार वाईन है,” उनींदेपन के बीच में कुत्ते को सुनाई दिया, “मगर सिर्फ अब वह है ही नहीं.”

घुटा-घुटा, छतों और कालीनों के कारण मद्धम हो गया कोरस कहीं ऊपर से और बगल से सुनाई दे रहा था.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने घंटी बजाई और ज़ीना आई.

“ज़ीनूश्का, इस सब का क्या मतलब है?”

“फ़िर से जनरल-बॉडी मीटिंग रखी है, फ़िलिप फ़िलीपविच,” ज़ीना ने जवाब दिया.

“फ़िर से!” फ़िलिप फ़िलीपविच अफ़सोस से बोला, “तो, अब शायद, हो गई शुरूआत, कलाबूखव्स्की बिल्डिंग का हो गया सत्यानाश. चले जाना चाहिये, मगर कोई बताये तो सही, कि कहाँ. सब कुछ आसानी से होगा. पहले हर शाम गाने होंगे, फिर शौचालयों में पाईप जम जायेंगे, फिर हीटिंग सिस्टम का बॉयलर फ़ट जायेगा वगैरह, वगैरह. ताबूत कलाबूखव के लिये.”

“फ़िलिप फ़िलीपविच बेहद परेशान हो रहे हैं,” ज़ीना ने मुस्कुराते हुए कहा और प्लेटों का ढेर ले गई.

“परेशान कैसे न होऊँ?!” फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा, “ आख़िर ये बिल्डिंग कैसी थी – आप समझ रहे हैं!”

“आप चीज़ों को काफ़ी मायूसी से लेते हैं, फ़िलीप फ़िलीपविच,” ख़ूबसूरत ज़ख्मी ने प्रतिवाद किया, “आजकल वे काफ़ी ज़्यादा बदल गये हैं.”

प्यारे, आप तो मुझे जानते हैं? सही है ना? मैं – तथ्यों का इन्सान हूँ, अवलोकनों का इन्सान. मैं – निराधार कपोल कल्पनाओं का दुश्मन हूँ. और यह बात न सिर्फ रूस में, बल्कि यूरोप में भी सबको अच्छी तरह मालूम है. अगर मैं कुछ कहता हूँ तो इसका मतलब है कि उसकी जड़ में कोई तथ्य है, जिससे मैं निष्कर्ष निकालता हूँ. और ये रहा आपके सामने तथ्य: हमारी बिल्डिंग में हैंगर और गलोशों का स्टैण्ड.”

“ये दिलचस्प है...”     

बकवास है – गलोश. गलोश में सुख नहीं है,’ कुत्ता सोच रहा था, ‘मगर आदमी है बड़ा ग़ज़ब का.

“क्या कोई ज़रूरत है – गलोशों के स्टैण्ड की. मैं सन् 1903 से इस बिल्डिंग में रह रहा हूँ. और इस दौरान – मार्च 1917 तक एक भी बार ऐसा नहीं हुआ – रेखांकित करता हूँ लाल पेन्सिल से ए-क भी – कि हमारे नीचे वाले प्रवेश-कक्ष के खुले दरवाज़े से गलोशों की एक भी जोड़ी चोरी हुई हो. ग़ौर कीजिए, यहाँ 12 क्वार्टर्स हैं, मेरे पास हमेशा आने-जाने रहते हैं. सन् 17 के मार्च में एक सुहाने दिन सभी गलोश, जिनमें दो जोड़ियाँ मेरी भी थीं, 3 छड़ियाँ, दरबान का ओवरकोट और समोवार ग़ायब हो गये. और तब से गलोशों के स्टैण्ड ने अपना अस्तित्व समाप्त कर दिया. प्यारे! सेन्ट्रल हीटिंग की तो मैं बात ही नहीं कर रहा हूँ. कुछ नहीं कह रहा हूँ.चलने दो : जब सामाजिक क्रांति हुई है – तो हीटिंग की ज़रूरत नहीं है. मगर मैं पूछता हूँ : क्यों, जब ये पूरा लफ़ड़ा शुरू हुआ, सभी लोग संगमरमर की सीढ़ियों पर गंदे गलोशों और नमदे के जूतों में चलने लगे? क्यों अभी तक गलोशों को ताले में बंद रखने की ज़रूरत पड़ती है? और उनके पास किसी सैनिक को भी रखना पड़ता है, ताकि कोई उन्हें खींच कर न ले जाये? प्रवेश-हॉल की सीढ़ियों से कालीन क्यों हटा दिया गया? क्या कार्ल मार्क्स सीढ़ियों पर कालीन बिछाने की इजाज़त नहीं देता? क्या कार्ल मार्क्स ने कहीं लिखा है कि प्रिचिस्तेन्का स्ट्रीट पर कलाबूखव्स्की बिल्डिंग के दूसरे प्रवेश द्वार को लकड़ी के फ़ट्टों से बन्द करना चाहिये और घूम कर चोर दरवाज़े से आना-जाना चाहिये? किसे इसकी ज़रूरत है? प्रोलेटेरिएट अपने गलोशों को नीचे क्यों नहीं रखते, और क्यों संगमरमर को धब्बों से गंदा करते हैं?”

“मगर, फ़िलिप फ़िलीपविच, उसके पास तो गलोश हैं ही नहीं,” ज़ख़्मी हकलाते हुए बोला.

“ऐसी कोई बात नहीं है!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने गरजती हुई आवाज़ में कहा और जाम में वाईन डाली. “हुम्...खाने के बाद वाईन पीना ठीक नहीं समझता, वे हाज़मे को मुश्किल बनाती है और लिवर पर बुरा असर डालती है...ऐसी कोई बात नहीं है! उसके पास अभी गलोश हैं, और ये – मेरे हैं! ये वे ही गलोश हैं, जो सन् 1917 के बसन्त में ग़ायब हुए थे. मैं पूछना चाहता हूँ, - उन्हें किसने पार किया? मैंने? ऐसा नहीं हो सकता. बुर्झुआ साब्लिन? (फ़िलिप फ़िलीपविच ने उँगली छत की ओर उठा दी). ऐसा सोचना भी हास्यास्पद है. शकर-कारखाने वाले पोलज़व ने? (फ़िलिप फ़िलीपविच ने एक किनारे की ओर इशारा किया. किसी हालत में नहीं! हाँ - महाशय! मगर कम से कम सीढ़ियों पर तो वे उन्हें उतार देते! (फ़िलिप फ़िलीपविच का चेहरा लाल होने लगा). सीढ़ियों की चौकियों से फूल किस ख़ुशी में हटा दिये? क्यों बिजली, जो ख़ुदा मेरी याददाश्त को सलामत रखे, पिछले बीस सालों में सिर्फ दो बार बंद हुई थी, आजकल महीने में एक बार ज़रूर जाती है? डॉक्टर बर्मेन्ताल, सांख्यिकी – ख़तरनाक चीज़ है. आपको, जो मेरे हाल ही के काम से परिचित हैं, किसी और की अपेक्षा ये ज़्यादा अच्छी तरह मालूम है.”
“तबाही
, फ़िलिप फ़िलीपविच.”                       

 नहीं,” पूरे यकीन के साथ फ़िलिप फ़िलीपविच ने विरोध किया. आप पहले हैं, प्रिय इवान अर्नोल्दविच, इस शब्द के प्रयोग से बचिये. ये – मृगतृष्णा है, धुँआ, कपोल कल्पना है, - फ़िलिप फ़िलीपविच ने छोटी-छोटी उँगलियाँ चौड़ी फ़ैला दीं, जिससे दो परछाईयाँ, कछुओं जैसी, मेज़पोश पर कसमसाने लगीं. – आपकी ये तबाही क्या है? छड़ी वाली बुढ़िया? जादूगरनी, जिसने सारे काँच फ़ोड़ दिये, सारे लैम्प बुझा दिये? मगर असल में तो उसका अस्तित्व ही नहीं है. इस शब्द से आप क्या मतलब निकालते हैं?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने तैश से अलमारी की बगल में ऊपर पैर किये लटक रही कार्डबोर्ड की बत्तख़ से पूछा, और ख़ुद ही उसके लिये जवाब दे दिया. “देखिये, वह ये है: अगर मैं, हर शाम को ऑपरेशन करने के बजाय, अपने क्वार्टर में कोरस में गाने लगूँ, तो मेरे पास तबाही आ जायेगी. अगर मैं, शौचालय में जाकर, इस प्रयोग के लिये माफ़ कीजिए, कमोड के सामने पेशाब करने लगूँ और ऐसा ही ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना भी करने लगें, तो शौचालय में तबाही शुरू हो जायेगी. मतलब, तबाही अलमारियों में नहीं, बल्कि दिमाग़ों में है. मतलब, जब ये मध्यम आवाज़ें चिल्लाती हैं “तबाही को मारो!” – तो मैं हँसने लगता हूँ. (फ़िलिप फ़िलीपविच का चेहरा इस तरह टेढ़ा हो गया कि ज़ख़्मी नौजवान ने मुँह खोल दिया). कसम खाता हूँ, मुझे यह हास्यास्पद लगता है! इसका मतलब ये है कि इनमें से हर कोई अपने-अपने सिर पर पीछे से झापड़ लगाये! और फ़िर, जब वह झापड़ मार-मार कर अपने भीतर से सभी भ्रमों को बाहर निकाल देगा और शेड्स की सफ़ाई में लग जायेगा – जो उसका प्रत्यक्ष काम है, - तो तबाही ख़ुद-ब-ख़ुद ग़ायब हो जायेगी. दो ख़ुदाओं की सेवा नहीं करना चाहिये! एक ही समय में ट्राम की पटरियों पर झाडू लगाना और किन्हीं स्पैनिश भिखारियों की किस्मत चमकाना संभव नहीं है! ये किसी के लिये भी संभव नहीं है, डॉक्टर, और ऊपर से – उन लोगों के लिये जो आम तौर से अपने विकास में यूरोपियन लोगों से करीब दो सौ वर्ष पिछड़ गये हैं , और जो आज तक पूरे विश्वास से अपनी ख़ुद की पतलून भी नहीं पहन सकते!”

फ़िलिप फ़िलीपविच बेहद उत्तेजित हो गया. बाज़ जैसे उसके नथुने फूल रहे थे. भरपेट खाने के बाद ताकत बटोर कर, वह किसी प्राचीन पैगम्बर की तरह गरज रहा था और उसका सिर चांदी की आभा से दमक रहा था.

उनींदे कुत्ते पर उसके शब्द ज़मीन के भीतर हो रही किसी अस्पष्ट गड़गड़ाहट की तरह गूंज रहे थे. सपने में उसे कभी बेवकूफ़ पीली आँखों वाला उल्लू उछल कर बाहर आते हुए दिखाई दे रहा था, तो कभी गंदी सफ़ेद टोपी पहने रसोईये का घिनौना थोबड़ा, तो कभी लैम्प-शेड से आती बिजली की प्रखर रोशनी में चमकती फ़िलिप फ़िलीपविच की शानदार मूँछ, तो कभी चरमराती और लुप्त होती हुई उनींदी स्लेजें, और कुत्ते के पेट में रोस्टबीफ़ का टुकड़ा शोरवे में तैरते हुए खदखदा रहा था.

ये तो सीधे सभाओं में आसानी से पैसे कमा सकता था,’ अस्पष्टता से कुत्ते ने सोचा, ‘पहले दर्जे का चालाक है. ख़ैर, उसके पास, वैसे भी, ज़ाहिर है बेहद पैसा है.

पुलिस!”, फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा, “पुलिस!” – उहू-हू-हू! कुत्ते के दिमाग़ में कुछ बबूले-से फूटने लगे...”पुलिस! वही और सिर्फ वही. और ये बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं है कि वह बिल्ला लगाये है या लाल टोपी में है. हर इन्सान की बगल में पुलिसवाले को खड़ा करना चाहिये और उस पुलिस वाले को मजबूर करना चाहिये कि हमारे नागरिकों के मुखर आवेगों पर नियंत्रण रखे. आप कहते हैं – तबाही. मैं आपसे कहता हूँ, डॉक्टर. कि हमारी बिल्डिंग में, बल्कि, हर बिल्डिंग में, कोई भी अच्छा परिवर्तन तब तक नहीं होगा, जब तक इन गवैयों को नियंत्रित नहीं किया जाता! जैसे ही वे अपनी कॉन्सर्ट्स बंद करेंगे, परिस्थिति अपने-आप सुधरने लगेगी.”

“आप क्रांतिविरोधी बातें कर रहे हैं, फ़िलिप फ़िलीपविच,” ज़ख़्मी नौजवान ने मज़ाक में कहा, “ख़ुदा न करे कि कोई आपकी बातें सुन ले...”  

“कुछ भी ख़तरनाक नहीं है,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने तैश से प्रतिवाद करते हुए कहा, “कोई क्रांतिविरोधी नहीं है. वैसे, यह भी एक शब्द है जिसे मैं ज़रा भी बर्दाश्त नहीं कर सकता. बिल्कुल पता नहीं है - उसके पीछे क्या छुपा हुआ है? शैतान ही जाने! तो मैं भी यही कह रहा हूँ, कि मेरे शब्दों में किसी भी तरह की क्रांतिविरोधी चीज़ नहीं है. उनमें सामान्य बुद्धि और जीवन का अनुभव है.”                 

अब फ़िलिप फ़िलीपविच ने कॉलर के पीछे से चमकदार नैपकिन का कोना बाहर निकाला और, उसे मरोड़कर वाईन के जाम की बगल में, जिसमें अभी कुछ वाईन बची थी, फेंक दिया. ज़ख़्मी नौजवान फ़ौरन उठा और उसने मेज़बान को धन्यवाद दिया : “थैंक्स”.

“एक मिनट डॉक्टर!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पतलून की जेब से वैलेट निकालते हुए उसे रोका. उसने आँखें सिकोड़ीं, छोटे-छोटे सफ़ेद कागज़ों को गिना और ज़ख़्मी की तरफ़ यह कहते हुए बढ़ाये: “आज आपके चालीस रूबल्स बनते हैं. ये लीजिये, प्लीज़.”     

कुत्ते की वजह से तकलीफ़ झेल रहे नौजवान ने नम्रता से धन्यवाद दिया और, लाल होते हुए, पैसों को कोट की जेब में रख लिया.

“आज शाम को मेरी ज़रूरत तो नहीं है, फ़िलिप फ़िलीपविच?” उसने पूछा.

“नहीं, आपका धन्यवाद, प्यारे. आज कुछ नहीं करेंगे. पहली बात, ख़रगोश ने दम तोड़ दिया, और दूसरी, आज बल्शोय थियेटर में है – “आयदा”. और मैंने बहुत दिनों से सुना नहीं है. पसंद करता हूँ...याद है? ड्युएट...तरी-रा-रिम.”

“आप इतना सब कैसे कर लेते हैं, फ़िलिप फ़िलीपविच?” डॉक्टर ने आदर से पूछा.

“इतना सब कुछ वही कर सकता है, जिसे कहीं जाने की जल्दी नहीं होती,” मेज़बान ने नसीहत के सुर में समझाया. “बेशक, अगर मैं मीटिंगों में उछलता फ़िरता, और पूरे-पूरे दिन कोयल की तरह गाता रहता, अपना मुख्य काम करने के बदले, तो मैं कुछ भी नहीं कर पाता, कहीं भी नहीं जा पाता,” जेब में रखी फ़िलिप फ़िलीपविच की ऊँगलियों के नीचे स्वर्गीय धुन बजने लगी, “आठ बज गये...दूसरे अंक तक पहुँचूंगा...मैं श्रम के विभाजन के पक्ष में हूँ. बल्शोय थियेटर में उन्हें गाने दो, और मैं ऑपरेशन करता रहूँगा. यही अच्छा है. और कोई तबाही-वबाही नहीं है...ये बात है. इवान अर्नोल्दविच, आप ग़ौर से देखते रहिये : जैसे ही कोई उचित प्रकार की मौत हो, तो फ़ौरन मेज़ से – पोषक द्रव में और फ़ौरन मेरे पास!

“फ़िक्र न करें, फ़िलिप फ़िलीपविच,” “पैथोलोजिस्टों ने मुझसे वादा किया है.”

“बढ़िया, और फ़िलहाल हम इस सड़कछाप सिरफ़िरे का निरीक्षण करते रहेंगे. उसकी बाज़ू ठीक हो जाने दो.”

मेरी फ़िक्र कर रहा है’, कुत्ते ने सोचा, ‘बहुत अच्छा आदमी है. मुझे मालूम है कि ये कौन है. ये – कुत्ते की परीकथा का जादूगर है, इंद्रजालिक है, ओझा है. ..आख़िर ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि यह सब मैंने सपने में देखा हो. और कहीं अचानक – सपना हुआ तो? (कुत्ता नींद में ही कंपकंपाया). जब जागूंगा...और कुछ भी नहीं है. न तो रेशम से ढंका कोई लैम्प, न गरमाहट, न ही तृप्ति. फ़िर शुरू हो जायेगी गली, सिरफ़िरी ठण्ड, बर्फ हो चुका फुटपाथ, भूख, दुष्ट लोग...डाइनिंग हॉल, बर्फ...ख़ुदा, कितना मुश्किल होगा मेरे लिये!...

मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. वह गली ही पिघल गई – घिनौने सपने की तरह, और फ़िर कभी वापस नहीं आई.

लगता है, कि तबाही उतनी ख़तरनाक नहीं है. उसके बावजूद, दिन में दो बार, खिड़की के दासे के नीचे, हार्मोनियन जैसे भूरे पाईप गर्मी से भर जाते और गरमाहट की लहरें पूरे क्वार्टर में फ़ैल जातीं.

बिल्कुल स्पष्ट है : कुत्ते ने लॉटरी से भाग्यशाली टिकट चुना था. अब उसकी आँखें दिन में कम से कम दो बार प्रिचिस्तेन्का के विद्वान के प्रति कृतज्ञता के आँसुओं से लबालब भर जातीं. इसके अलावा, हॉल के, प्रवेश कक्ष की अलमारियों के बीच के सभी शीशों में ख़ूबसूरत, कामयाब कुत्ते की छबि परावर्तित होती रहती.

मैं – ख़ूबसूरत हूँ. हो सकता है, कोई अज्ञात श्वान-राजकुमार जो भेस बदल कर रह रहा है,’ कॉफ़ी के रंग के, शीशों की दूरियों में घूम रहे, संतुष्ट चेहरे वाले झबरे प्रतिबिम्ब की ओर देखते हुए कुत्ता सोच रहा था. – बहुत मुमकिन है, कि मेरी दादी ने न्यूफ़ाउण्डलैण्ड के कुत्ते के साथ पापकर्म किया हो. तभी तो मैं देखता हूँ - मेरे थोबड़े पर सफ़ेद धब्बा है. वो कहाँ से आया, क्या मैं पूछ सकता हूँ? फ़िलिप फ़िलीपविच – बढ़िया किस्म की पसंद वाला आदमी है – वह यूँ ही किसी भी आवारा कुत्ते को नहीं उठायेगा.

एक सप्ताह में कुत्ते ने उतना खा लिया जितना भुखमरी के पिछले डेढ़ महीने में सड़क पर खाया था. ख़ैर, बेशक, वज़न के हिसाब से. फ़िलिप फ़िलीपविच के यहाँ खाने की गुणवत्ता के बारे में कुछ भी कहना उचित नहीं है. अगर माँस की छीलन की ओर ध्यान न दिया जाये जो दार्या पित्रोव्ना हर रोज़ स्मलेन्स्क मार्केट में 18 कोपेक में खरीदा करती थी, शाम को सात बजे डाइनिंग-रूम में होने वाले डिनर्स का ज़िक्र करना ही काफ़ी है, जहाँ ख़ूबसूरत ज़ीना के विरोध के बावजूद कुत्ता उपस्थित रहता था. इन डिनर्स के दौरान फ़िलिप फ़िलीपविच को आख़िरकार “ख़ुदाकी उपाधि मिल गई. कुत्ता पिछले पैरों पर खड़ा हो जाता और उसका जैकेट चबाता रहता, कुत्ता फ़िलिप फ़िलीपविच की घंटियाँ पहचान गया था – पूरी आवाज़ में रुक-रुक कर मालिक की दो घंटियाँ, और वह भौंकते हुए उससे मिलने के लिये प्रवेश कक्ष की ओर भागता. मालिक काले-भूरे लोमड़ी के कोट में भीतर घुसता, बर्फ के लाखों चमचमाते हुए कणों से दमकते हुए, संतरों की, सिगार की, सेन्ट की, नींबुओं की, बेंज़िन की, यू डी कलोन की, और कपडों की महक में लिपटा हुआ, और उसकी आवाज़, कमाण्ड देने वाले बिगुल की तरह पूरे क्वार्टर में गूंजती.

“तूने, सुअर, उल्लू को क्यों फ़ाड़ दिया? क्या वह तुझे परेशान कर रहा था? परेशान कर रहा था, मैं तुझसे पूछ रहा हूँ? प्रोफ़ेसर मेच्निकव की तस्वीर क्यों फ़ोड़ दी?”

“उसे, फ़िलिप फिलीपविच, कम से कम एक बार चाबुक से मारना चाहिये,” ज़ीना ने उत्तेजना से कहा, “वर्ना वह पूरी तरह सिर पर चढ़ जायेगा. आप देखिये, इसने आपके गलोशों के साथ क्या किया है.”              

“किसी को भी मारना नहीं है,” फ़िलिप फ़िलीपविच परेशान हो गया, “ये बात हमेशा के लिये याद रख लो. इन्सान और जानवर को हमेशा सिर्फ सुझाव से ही प्रेरित किया जा सकता है. आज उसे माँस दिया था?”

“ख़ुदा, वह पूरा घर खा गया. आप क्या पूछ रहे हैं, फ़िलिप फ़िलीपविच. मुझे अचरज होता है – कहीं उसका पेट न फ़ट जाये.”

“खाने दो, जी भर के...उल्लू तुझे क्यों परेशान कर रहा था, बदमाश?”

ऊ-ऊ! चतुर कुत्ते ने दांत दिखा दिये और पंजे बाहर निकाल कर पेट के बल रेंगने लगा.

इसके बाद उसे शोर मचाते हुए, गर्दन से पकड़ कर प्रवेश कक्ष से होते हुए अध्ययन कक्ष में लाया गया. कुत्ता चिल्ला रहा था, गुर्रा रहा था, कालीन से चिपक रहा था, पूँछ पर बैठकर घिसटने लगा, जैसे सर्कस में हो. अध्ययन कक्ष के बीचो-बीच फ़टे हुए पेट वाला काँच की आँखों का उल्लू पड़ा था, जिसके भीतर से नैप्थलीन की गंध वाले कुछ लाल चीथड़े बाहर निकल रहे थे. मेज़ पर चूर-चूर हुआ पोर्ट्रेट गिरा था.

“मैंने जानबूझकर साफ़ नहीं किया, ताकि आप भी अच्छी तरह देख लें,” ज़ीना हताशा से बयान कर रही थी, - “उछल कर मेज़ पर चढ़ गया, कमीना! और उसे पूँछ से – धप्प! मैं कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसने उसे पूरा फ़ाड़ दिया. उसका थोबड़ा उल्लू के भीतर घुसाइये, फ़िलिप फ़िलीपविच, जिससे उसे पता चले कि कैसे चीज़ें ख़राब करते हैं.”

और विलाप शुरू हो गया. कुत्ते को, जो कार्पेट से चिपका हुआ था, घसीट कर उल्लू में मुँह गड़ाने के लिये ले गये, इस दौरान कुत्ता कड़वे आँसू बहा रहा था और सोच रहा था – मारो, सिर्फ क्वार्टर से मत निकालो”.

“उल्लू को आज ही चर्म प्रसाधक के पास भेजा जाये. इसके अलावा तुम्हें 8 रूबल और 16 कोपेक दे रहा हूँ ट्राम से जाने के लिये, म्यूर के डिपार्टमेंटल स्टोर में जाओ, उसके लिये जंज़ीर के साथ एक अच्छा पट्टा खरीद लो.”

अगले दिन कुत्ते को चौड़ा, चमचमाता पट्टा पहनाया गया. पहले ही पल में, आईने में देखने के बाद वह फ़ौरन ताव खा गया, दुम दबाकर बाथरूम में चला गया, ये सोचते हुए कि उसे कैसे संदूक या दराज़ से घिसा जाये. मगर कुत्ता बहुत जल्दी समझ गया कि वह - बिल्कुल बेवकूफ़ है. ज़ीना जंज़ीर के साथ उसे घुमाने के लिये ले ओबूखवा स्ट्रीट पर ले गई. कुत्ता किसी कैदी की तरह चल रहा था, शर्म से लाल होते हुए, मगर, प्रिचिस्तेन्का पर क्राइस्ट-चर्च तक जाने के बाद वह अच्छी तरह समझ गया कि ज़िंदगी में पट्टे का क्या मतलब होता है. सामने से आ रहे सभी कुत्तों की आँख़ों में वहशतभरी ईर्ष्या नज़र आ रही थी, और म्योर्त्वी स्ट्रीट पर  – कोई कटी हुई पूँछ वाला मरियल, आवारा कुत्ता उस पर “मालिक का हरामी” और “छक्का” (छक्का- यहाँ नौकर से तात्पर्य है – अनु.) कहते हुए भौंकने लगा. जब ट्राम की पटरियाँ पार कर रहे थे तो पुलिस वाले ने पट्टे की ओर प्रसन्नता और आदर से देखा, और जब वापस आये, तो ऐसी बात हुई जो ज़िंदगी में अब तक नहीं देखी थी : फ़्योदर-दरबान ने ख़ुद अपने हाथ से प्रवेश द्वार खोला और शारिक को भीतर जाने दिया, ऐसा करते हुए उसने ज़ीना से कहा:

“ऐह, कैसे झबरे को लाये थे फ़िलिप फिलीपविच. कैसी ग़ज़ब की चर्बी चढ़ गई है.”

“और क्या, - छह आदमियों का खाना खा जाता है,” बर्फ़ से गुलाबी और ख़ूबसूरत हो गई ज़ीना ने स्पष्ट किया.

‘गले का पट्टा – ब्रीफ़केस की तरह होता है,’ कुत्ते ने ख़यालों में चुटकी ली, और, मटकते हुए मालिक की तरह ज़ीना के पीछे-पीछे बिचले तल्ले की ओर चला.

पट्टे का महत्व जानने के बाद, कुत्ता पहली बार जन्नत के उस विभाग में गया, जहाँ उसके लिये प्रवेश पूरी तरह वर्जित था – मतलब रसोईन दार्या पित्रोव्ना के साम्राज्य में. पूरा क्वार्टर दार्या के साम्राज्य के दो इंच के बराबर भी नहीं था. हर रोज़ काले और टाइल्स जड़े स्टोव में लपटें गरजतीं. ओवन चटख़ता रहता. लाल लपटों में दार्या पित्रोव्ना का चेहरा निरंतर आग की पीड़ा और अतृप्त जुनून से जलता रहता. वह चमकदार और चिकना था. कानों के ऊपर से जाते हुए बाल, सिर के पीछे उजले बालों की डलिया से 22 नकली हीरे जगमगा रहे थे. दीवारों पर लगे हुकों से सुनहरे बर्तन लटक रहे थे, पूरी रसोई ख़ुशबुओं से महकती, बन्द बर्तनों में उठते बुलबुलों से गड़गड़ाती और फुफ़कारती...

“भाग जा!” दार्या पित्रोव्ना चीखी, “भाग जा, आवारा जेबकतरे! यहाँ तेरी ही कमी थी! मैं तुझे चिमटे से मारूँगी!....”

क्या कर रही है? अरे, किसलिये भौंक रही है?’ कुत्ते ने प्यार से आँख़ें सिकोड़ीं. मैं कहाँ का जेबकतरा हो गया? क्या आप पट्टा नहीं देख रही हैं?’ और वह दरवाज़े में थोबड़ा घुसाकर किनारे से भीतर में रेंग गया.

शारिक लोगों का दिल जीतने की कोई गुप्त तरकीब जानता था.

दो दिन बाद ही वह कोयलों की टोकरी के पास लेटा था और देख रहा था कि दार्या पित्रोव्ना कैसे काम करती है. पतले, तेज़ चाकू से उसने असहाय तीतरों के सिर और पंजे काट दिये, उसके बाद, किसी भयानक जल्लाद की तरह हड्डियों से माँस नोंच लिया, मुर्गियों की आँतें बाहर निकाल दीं, ग्राइन्डर में कुछ घुमाया. शारिक इस समय तीतर का सिर कुतर रहा था. दूध वाले कटोरे से दार्या पित्रोव्ना ने ब्रेड के भीगे हुए टुकड़े बाहर निकाले, उन्हें एक बोर्ड पर पिसे हुए माँस के साथ मिलाया, इसमें मलाई मिलाई, नमक छिड़का, और बोर्ड पर ही कटलेट थापे. स्टोव्ह में आग गरज रही थी, और फ्रायपैन में खदबदाहट हो रही थी, बुलबुले उठ रहे थे और उछल-कूद हो रही थी. भट्टी का दरवाज़ा आवाज़ करते हुए उछल गया, और एक भायानक नर्क दिखाई दिया, जिसमें फुसफ़ुसाती लपटें चटख रही थीं.

शाम को पत्थर का जबड़ा बुझ जाता, रसोईघर की खिड़की में आधे सफ़ेद परदे के ऊपर एक, अकेले सितारे के साथ प्रिचिस्तेन्का की घनी और शानदार रात दिखाई दे रही थी. रसोईघर का फ़र्श नम था, बर्तन रहस्यमय ढंग से और धुंधलेपन से चमक रहे थे, मेज़ पर अग्निशामक दल के सिपाही की कैप पड़ी थी. कुत्ता गरमाहट भरी भट्टी के ऊपर लेटा था, जैसे गेट पर कोई सिंह हो और, उत्सुकता से एक कान उठाकर उत्सुकता से देख रहा था, कि कैसे चमड़े का काला पट्टा पहने, काली मूँछों वाला, उत्तेजित आदमी ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना के कमरे के अधखुले दरवाज़े के पीछे दार्या पित्रोव्ना को गले लगा रहा था. सिर्फ पावडर पुती नाक को छोड़कर उसका पूरा चेहरा पीड़ा और लालसा से तमतमा रहा था. रोशनी की लकीर काली मूँछों वाले की तस्वीर पर पड़ रही थी और उससे ईस्टर के गुलाब का छोटा-सा पौधा लटक रहा था.

“एकदम राक्षस की तरह टपक पड़े,” आधे-अंधेरे में दार्या पित्रोव्ना बुदबुदाई, “ ठहर जाओ! ज़ीना अभी आ जायेगी. क्या कर रहे हो, जैसे तुम्हें भी फ़िर से जवान बना दिया है?”

“हमें इसकी ज़रूरत नहीं है,” काली मूँछों वाले ने मुश्किल से अपने आप पर काबू रखते हुए भर्राई आवाज़ में जवाब दिया. “तुम कितनी गर्म हो!”

शामों को प्रिचिस्तेन्का का सितारा भारी परदों के पीछे छुप जाता और, अगर बल्शोय थियेटर में “आइदा” नहीं हो रहा होता और ऑल-रशियन सर्जिकल सोसाइटी की मीटिंग नहीं होती, तो ख़ुदा अध्ययन कक्ष में गहरी आराम कुर्सी में स्थापित जाता. छत के नीचे रोशनी नहीं होती. सिर्फ मेज़ पर एक हरा लैम्प जल रहा था. शारिक छाँव में कालीन पर लेटा था और, एकटक, ख़ौफ़नाक चीज़ों को देख रहा था. काँच के बर्तनों में घिनौने तीक्ष्ण और गंदले द्रव में इन्सानी दिमाग़ पड़े थे. कुहनियों तक नंगे ख़ुदा के हाथ, रबर के लाल दस्तानों में थे, और चिकनी, भोथरी उँगलियाँ उस भूरे द्रव मे घूम रही थीं. कभी-कभी ख़ुदा के पास छोटा-सा चमचमाता चाकू भी होता और वह चुपचाप पीले, इलास्टिक जैसे दिमागों को चीरता.

नील के पवित्र किनारों पर, अपने होंठ काटते हुए और बल्शोय थियेटर के सुनहरे ऑडिटोरियम को याद करते हुए ख़ुदा धीमे-धीमे गा रहा था.

इस समय पाईप अपनी पूरी क्षमता से गर्म हो जाते. उनकी गर्माह्ट छत तक जाती, वहाँ से पूरे कमरे में बिखर जाती, कुत्ते की चमड़ी में अंतिम, ख़ुद फ़िलीप फ़िलीपविच द्वारा अभी तक कंघी से बाहर न निकाला गया, मगर ख़स्ताहाल पिस्सू जीवित हो उठा. कार्पेट्स क्वार्टर के भीतर के शोर को दबा रहे थे. और फ़िर कहीं दूर से प्रवेश द्वार की घंटी बज उठी.

ज़ीन्का फ़िल्म देखने गई थी,’ कुत्ते ने सोचा, ‘और जैसे ही आयेगी, शायद, डिनर करेंगे. आज, मैं समझता हूँ, बछड़े का माँस है!

 

**********

इस ख़तरनाक दिन सुबह से ही शारिक को पूर्वाभास कचोटे जा रहा था. इस वजह से वह सुबह के नाश्ते  - आधी कटोरी ओट्स का दलिया और कल की मेमने की हड्डी पर फ़ौरन लपका और बिना किसी रुचि के खा गया. वह उकताहट से हॉल में घूम रहा था और हौले से अपने प्रतिबिम्ब को देखकर विलाप कर रहा था. मगर दोपहर को, जब ज़ीना उसे छायादार रास्ते पर घुमाने ले गई, दिन हमेशा की तरह गुज़रा. आज मरीज़ नहीं थे, क्योंकि, जैसा सबको पता है, मंगलवार को मरीज़ नहीं आते, और मेज़ पर शोख़ रंगों की तस्वीरों वाली कुछ मोटी-मोटी किताबें फ़ैलाये, ख़ुदा अध्ययन कक्ष में बैठा था. लंच का इंतज़ार हो रहा था. कुत्ते के दिल में इस ख़याल ने जान डाल दी कि आज दूसरा व्यंजन, जैसा कि उसने किचन से पक्का पता किया था, टर्की होगा. कॉरीडोर से गुज़रते हुए कुत्ते ने सुना कि कैसे फ़िलिप फ़िलीपविच के अध्ययन कक्ष में अकस्मात् अप्रियता से टेलिफ़ोन बजने लगा. फ़िलिप फ़िलीपविच ने रिसीवर उठाया, सुनता रहा और अचानक परेशान हो गया.

“बढ़िया,” उसकी आवाज़ सुनाई दी, “अभी ले आईये. फ़ौरन!”

वह गड़बड़ मचाने लगा, घण्टी बजाई और भीतर आती हुई ज़ीना को आज्ञा दी कि फ़ौरन खाना परोस दे.

“लंच! लंच! लंच!”

डाइनिंग रूम में फ़ौरन प्लेटों की खड़खड़ाहट होने लगी, ज़ीना भागी, रसोईघर से दार्या पित्रोव्ना की भुनभुनाहट सुनाई दी, कि टर्की अभी तैयार नहीं है. कुत्ता फ़िर से बेचैनी महसूस करने लगा.

क्वार्टर में हंगामा मुझे पसन्द नहीं है,’ वह सोच रहा था...और जैसे ही उसने यह सोचा, हंगामे ने फ़ौरन अधिक अप्रिय रूप धारण कर लिया. और सबसे पहले, मेरे द्वारा कभी ज़ख़्मी किये गये डॉक्टर बर्मेन्ताल के प्रकट होने के कारण. वह अपने साथ एक बदबूदार सूटकेस लाया, और बिना गरम कपड़े उतारे, सीधे उसके साथ कॉरीडोर से होते हुए जाँच वाले कमरे में की ओर गया. फ़िलिप फ़िलीपविच ने कॉफ़ी अधूरी छोड़ दी, जैसा उसके साथ कभी नहीं हुआ था, बर्मेन्ताल से मिलने भागा, ऐसा भी उसके साथ कभी नहीं हुआ था.

“कब मरा?” वह चिल्लाया.

“तीन घंटे पहले,” बर्फ से ढंकी टोपी बिना उतारे और सूटकेस को खोलते हुए बर्मेन्ताल ने जवाब दिया.

ये कौन मर गया?’ कुत्ते ने उदासी और अप्रियता से सोचा और वह पैरों के नीचे घुस गया, ‘बर्दाश्त नहीं कर सकता, जब भाग-दौड़ करते हैं.

“पैरों के नीचे से भाग! जल्दी, जल्दी, जल्दी!” फ़िलिप फ़िलीपविच पूरे क्वार्टर में चीख़ रहा था और कुत्ते को लगा कि वह सभी घंटियाँ बजा रहा है. ज़ीना भागती हुई आई. “ज़ीना! दार्या पित्रोव्ना से कहो कि टेलिफ़ोन के पास रहे, किसी को भी न आने दे! तेरी ज़रूरत है. डॉक्टर बर्मेन्ताल, प्लीज़ – जल्दी, जल्दी, जल्दी!”

मुझे अच्छा नहीं लगता, नहीं अच्छा लगता,’ कुत्ते ने अपमान से मुँह बनाया और क्वार्टर में घूमने लगा, जबकि सारा हंगामा जाँच वाले कमरे में केंद्रित हो गया था. ज़ीना अकस्मात् कफ़न जैसे गाऊन में प्रकट हो गई, और जाँच-कक्ष से किचन में और वहाँ से वापस भागने लगी.

क्या खाने के लिये जाऊँ? उन्हें तो कुछ याद नहीं है,’ कुत्ते ने फ़ैसला किया और अचानक उसे झटका लगा.

“शारिक को खाने के लिये कुछ मत देना.” जाँच-कक्ष से गरजता हुआ आदेश आया.

“उस पर नज़र कैसे रखूँ.”

“बंद कर दे!”

और शारिक को फ़ुसला कर बाथरूम में ले गये और उसे वहाँ बंद कर दिया.

बदमाशी,’ आधे-अंधेरे बाथरूम में बैठे शारिक ने सोचा, ‘निहायत बेवकूफ़ी...

और करीब पंद्रह मिनट वह अजीब-सी मनःस्थिति में बाथरूम में रहा, कभी गुस्से में, कभी गहरे अवसाद में. सब कुछ उकताहट भरा था, अस्पष्ट था...

ठीक है, देख लेना कि कल आपके गलोश कैसे रहते हैं, अत्यंत आदरणीय फ़िलिप फ़िकीपविच,’ वह सोच रहा था, ‘दो जोड़ी तो ख़रीदने ही पड़े और एक और खरीदेंगे. ताकि आप कुत्तों को बंद न करें.

मगर अचानक उसका आवेशपूर्ण ख़याल भंग हो गया. न जाने क्यों अचानक और बड़ी स्पष्टता से आरंभिक जवानी का एक किस्सा याद आ गया – प्रिअब्राझेन्स्काया गेट के पास धूप में नहाया हुआ असीम आँगन, धूप के टुकड़े बोतलों में, टूटी हुई ईंट, आज़ाद, आवारा कुत्ते.

नहीं, कहाँ, अब यहाँ से किसी भी तरह की आज़ादी में नहीं जाऊँगा, झूठ क्यों बोलूँ’, नाक सुड़सुड़ाते हुए कुत्ता दुखी हो रहा था, - आदत हो गई. मैं मालिक का कुत्ता हूँ, बुद्धिमान प्राणी, बेहतरीन दुनिया देख चुका हूँ. और आख़िर आज़ादी क्या है? बस, धुँआ, मृगतृष्णा, कपोल-कल्पना...बदकिस्मत लोकतन्त्रवादियों की बकवास...

फ़िर बाथरूम का आधा-अंधेरा डरावना हो गया, वह रोने लगा, दरवाज़े की ओर लपका, खुरचने लगा.

“ऊ-ऊ-ऊ!क्वार्टर में जैसे किसी पीपे से आ रही आवाज़ गूंज गई.

उल्लू को फ़ाड़ दूँगा फ़िर से – जंगलीपन से, मगर निर्बलता से कुत्ते ने सोचा. इसके बाद कमज़ोर पड़ गया, लेट गया, और जब उठा, तो उसकी खाल के बाल खड़े हो गये, न जाने क्यों बाथरूम में भेड़िये की घिनौनी आँखें नज़र आईं.

और दुख के बीच ही दरवाज़ा खुला. कुत्ता बाहर आया, अपने आप को झटक कर गंभीरता से वह रसोईघर की तरफ़ चला, मगर ज़ीना उसे पट्टे से पकड़कर जाँच-कक्ष में ले गई. कुत्ते के दिल के नीचे ठण्डी लहर दौड़ गई.

मेरी ज़रूरत क्यों पड़ गई?’ उसने संदेह से सोचा, ‘बाज़ू तो ठीक हो गई है. कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है.

और वह लकड़ी के चिकने फ़र्श पर पंजों के बल फ़िसलने लगा, वैसे ही उसे जाँच-कक्ष में लाया गया. उसमें हो रहे अद्भुत प्रकाश ने एकदम चौंका दिया. छत के नीचे सफ़ेद गोला इतना चमक रहा था, कि आँखों को जैसे चीर रहा था. श्वेत आलोक में प्रीस्ट खड़ा था और दांत भींचकर नील के पवित्र तटों के बारे में गा रहा था. सिर्फ धुंधली-सी ख़ुशबू से ही पता चल रहा था कि यह फ़िलिप फ़िलीपविच है. उसके कटे हुए सफ़ेद बाल टोप के नीचे छुपे थे, जो प्रीस्ट के शिरस्त्राण की याद दिला रहा था : ख़ुदा पूरे सफ़ेद कपड़ों में था, और सफ़ेद के ऊपर दुपट्टे की तरह रबर का तंग एप्रन था. हाथ – काले दस्तानों में.

ज़ख्मी भी शिरस्त्राण में ही था. लम्बी मेज़ पूरी तरह खोल दी गई थी, और बगल में चमकदार स्टैण्ड पर एक छोटी-सी चौकोर मेज़ सरका दी गई थी. 

कुत्ते को यहाँ सबसे ज़्यादा नफ़रत ज़ख़्मी से हो रही थी और सबसे ज़्यादा उसकी आज की आँखों के कारण. आम तौर से निर्भय और सीधे देखने वाली आँख़ें, आज वे चारों ओर कुत्ते की आँखों से दूर भाग रही थीं. वे सतर्क थीं, बेईमानी से भरी थीं और उनकी गहराई में अगर कोई अपराध नहीं, तो कम से कम कोई अप्रिय, नीच बात छुपी हुई थी. कुत्ते ने बोझिलपन और उदासी से उसकी तरफ़ देखा और कोने में चला गया.

“पट्टा, ज़ीना,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने हौले से कहा, “सिर्फ उसे परेशान न करना.”

ज़ीना की आँखें भी पल भर में वैसी ही घिनौनी हो गईं, जैसी ज़ख़्मी की थीं. वह कुत्ते के पास आई और झूठमूठ प्यार से उसे सहलाने लगी. उसने पीड़ा और संदेह से ज़ीना की तरफ़ देखा.

क्या करें...आप तीन हैं. लीजिये, अगर चाहते हैं. सिर्फ, शर्म आयेगी आपको....काश, मैं जानता कि आप मेरे साथ क्या करने वाले हैं...

ज़ीना ने पट्टा खोला, कुत्ते ने सिर हिलाया, नाक फ़ुरफ़ुराई. ज़ख्मी उसके सामने खड़ा हो गया और उसके पास से गंदी, सुन्न करने वाली गंध आ रही थी.

फ़ुः, घिनौने...मुझे इतना धुंधला और डरावना क्यों लग रहा है...कुत्ते ने सोचा और ज़ख्मी से दूर हटा.

“जल्दी, डॉक्टर,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने अधीरता से विनती की.

हवा में तीखी और मीठी गंध फ़ैल गई. ज़ख्मी ने अपनी सतर्क, गंदी आँखों को कुत्ते से हटाए बिना पीठ के पीछे से दायाँ हाथ निकाला और फ़ौरन कुत्ते की नाक में नम रूई का फ़ाहा घुसा दिया. शारिक चौंक गया, उसे हल्का-सा चक्कर आ गया, मगर वह छिटकने में कामयाब हो गया. ज़ख्मी उसके पीछे उछला, और अचानक उसने पूरे थोबड़े को रूई से ढाँक दिया. फ़ौरन साँस रुक गई, मगर कुत्ता एक बार फ़िर छूटने में कामयाब हो गया. खलनायक... उसके दिमाग़ में कौंध गया. किसलिए?’ और एक बार फ़िर रूई से दबा दिया. अब अकस्मात् जाँच-कक्ष के बीचोंबीच तालाब दिखाई दिया, और उसमें कश्तियों पर बेहद ख़ुश, दूसरी दुनिया के अभूतपूर्व गुलाबी कुत्ते थे. टाँगों की हड्डियाँ ग़ायब हो गईं और वे मुड़ गईं.

“मेज़ पर!” प्रसन्न आवाज़ में कहीं फ़िलिप फ़िलीपविच के शब्द गूंजे और नारंगी लहरों पर तैर गये. भय ग़ायब हो गया, उसकी जगह ख़ुशी ने ले ली. करीब दो सेकण्ड तक कुत्ते को ज़ख़्मी पर प्यार आ गया. उसके बाद पूरी दुनिया उलट-पुलट हो गई और पेट के नीचे एक ठण्डा मगर प्यारा हाथ महसूस हुआ. फिर – कुछ नहीं.

 

 

 

 

अध्याय – 4

 

तंग ऑपरेशन टेबल पर, हाथ-पैर फ़ैलाये, कुत्ता शारिक पड़ा था और उसका सिर असहायता से मोमजामे के तकिये पर लुढ़क रहा था. उसके पेट के बाल काट दिये गये थे और अब डॉक्टर बर्मेन्ताल भारी-भारी सांसें लेते हुए और शीघ्रता से, रोओं में मशीन घुसाकर शारिक के सिर के बाल काट रहा था. फ़िलिप फ़िलीपविच, मेज़ के किनारे पर हथेलियाँ टिकाये, अपने चश्मे की सुनहरी फ्रेम की तरह चमकती आँखों से इस प्रक्रिया को देख रहा था और वह उत्तेजना से बोला:

“इवान अर्नोल्दविच, सबसे महत्वपूर्ण पल – जब मैं टर्किश सेडल (पल्याणिका – अनु.) के भीतर जाऊँगा. फ़ौरन, आपसे विनती करता हूँ, फ़ौरन ग्लैण्ड देना और तुरंत सी देना, अगर वहाँ रक्तस्त्राव शुरू हो गया तो समय गँवायेंगे और कुत्ते से भी हाथ धो बैठेंगे. ख़ैर, उसके लिये वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है, - वह चुप हो गया, आँखें सिकोड़ते हुए, कुत्ते की उपहासपूर्वक आधी खुली आँख में देखा और आगे बोला , “पता है, उस पर दया आ रही है. सोचिये, मुझे उसकी आदत हो गई है.”

इस समय उसने हाथ इस तरह उठाए, जैसे अभागे शारिक को कठिन परीक्षा के लिये आशिर्वाद दे रहा हो. वह कोशिश कर रहा था कि धूल का एक भी कण काले रबड़ पर न बैठे.

काटे गये रोओं के नीचे से कुत्ते की सफ़ेद त्वचा चमकने लगी. बर्मेन्ताल ने मशीन एक तरफ़ रख दी और उस्तरा हाथ में ले लिया. उसने छोटे-से असहाय सिर पर साबुन लगाया और मूंडने लगा. ब्लेड के नीचे खूब करकराहट हो रही थी, कहीं-कहीं खून भी निकल आया. सिर मूंडने के बाद ज़ख़्मी ने बेंज़ीन में भिगोये हुए गीले फ़ाहे से उसे पोंछा, इसके बाद कुत्ते का नंगा पेट खींचा और राहत की साँस लेते हुए कहा : “तैयार है”.

ज़ीना ने सिंक के ऊपर वाला नल खोला और बर्मेन्ताल हाथ धोने के लिये भागा. ज़ीना ने एक फ्लास्क से उन पर स्प्रिट डाला.

“क्या मैं जा सकती हूँ, फ़िलिप फ़िलीपविच?” उसने कुत्ते के गंजे सिर पर भयभीत नज़र डालते हुए पूछा.

“जा सकती हो.”

ज़ीना ग़ायब हो गई. बर्मेन्ताल आगे के काम में व्यस्त हो गया. उसने शारिक के सिर के चारों ओर हल्के जालीदार बैण्डेज रख दिये और तब तकिये पर किसी के भी द्वारा नहीं देखा गया कुत्ते का गंजा सिर और विचित्र दढ़ियल थोबड़ा प्रकट हो गया.

अब प्रीस्ट ने हलचल की. वह सीधा हो गया, कुत्ते के सिर पर नज़र डाली और बोला :

“ऐ ख़ुदा, रहम कर. चाकू.”

बर्मेन्ताल ने छोटी-सी मेज़ पर पड़े चमचमाते ढेर से चौड़े फ़ल वाला छोटा-सा चाकू निकाला और उसे प्रीस्ट को दिया. इसके बाद उसने भी वैसे ही काले दस्ताने पहन लिये जैसे प्रीस्ट ने पहने थे.

“सो रहा है?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा. 

“सो रहा है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच के दांत भिंच गये, आँखों में तीक्ष्ण, चुभती हुई चमक आ गई और, चाकू घुमाकर उसने शारिक के पेट पर सफ़ाई से लम्बा चीरा लगाया. त्वचा फ़ौरन फ़ट गई और उसमें से अलग-अलग दिशाओं में खून का फ़व्वारा निकला. बर्मेन्ताल फ़ुर्ती से लपका , बैंडेज के फ़ाहों से वह शारिक का ज़ख़्म दबाने लगा, इसके बाद, छोटे-छोटे, शक्कर के चिमटों जैसी क्लिपों से उसके किनारे दबा दिये और वह सूख गया. बर्मेन्ताल के माथे पर पसीने की बूंदें छा गईं. फ़िलिप फ़िलीपविच ने दूसरी बार चीरा लगाया और दोनों मिलकर शारिक के शरीर को कैंचियों से, हुकों से, स्टैपल्स से फ़ाड़ने लगे. गुलाबी और पीले, ओस जैसे खूनी आँसू टपकाते ऊतक बाहर उछले. फ़िलिप फिलीपविच ने शरीर के भीतर चाकू घुमाया, फिर चीख़ा: “कैंची!”

ज़ख़्मी के हाथों में औज़ार ऐसे प्रकट हुआ जैसे जादूगर के हाथ में प्रकट हुआ हो. फ़िलिप फ़िलीपविच गहराई में घुसा और कुछ ही घुमावों के बाद शारिक के शरीर से वीर्य ग्रंथियों को कुछ लटकते हुए टुकड़ों सहित बाहर निकाल लिया. बर्मेन्ताल, जो उत्साह और उत्तेजना से पूरी तरह गीला हो गया था, काँच के जार की ओर भागा और उसमें से दूसरी, गीली, झूलती हुई वीर्य ग्रंथियाँ निकाल लाया. प्रोफ़ेसर और सहायक के हाथों में नम तंतु उछल रहे थे, कुंडलियाँ बना रहे थे. मुड़ी हुई सुईयाँ चिमटियों के बीच खटखटाने लगीं. शारिक की वीर्य ग्रंथियों के स्थान पर इन ग्रंथियों को रखकर सी दिया गया. प्रीस्ट ज़ख़्म से दूर हटा, उस पर बैण्डेज का टुकड़ा दबाया और आज्ञा दी:

“डॉक्टर, फ़ौरन त्वचा पर टाँके लगा दो,” फिर सफ़ेद, गोल दीवार-घड़ी की ओर देखा.

“चौदह मिनट में किया,” भिंचे हुए दांतों से बर्मेन्ताल ने कहा और पिलपिली त्वचा में मुड़ी हुई सुई घुसाई. इसके बाद दोनों हत्यारों की तरह परेशान हो गये, जो जल्दी में हों.

“चाकू” फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा.

चाकू जैसे अपने आप उछल कर उसके हाथों में आ गया, जिसके बाद फ़िलिप फ़िलीपविच का चेहरा ख़ौफ़नाक हो गया. उसने अपने चीनी और सुनहरी कैप वाले दांत दिखाते हुए एक ही झटके में शारिक के माथे पर लाल मुकुट बना दिया. हजामत की हुई खोपड़ी की खाल को अलग हटा दिया. हड्डियों वाली खोपड़ी उजागर हुई.

“ट्रेपन!” (छेद करने का सर्जिकल उपकरण – अनु.)

बर्मेन्ताल ने उसके हाथों में चमचमाता हुआ बरमा दिया. होंठ काटते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच  बरमे को घुसाकर शारिक की खोपड़ी में एक-एक सेंटीमीटर की दूरी पर छोटे-छोटे छेद बनाने लगा, इस तरह कि वे पूरी खोपड़ी के चारों ओर बनें. हर छेद पर उसने पाँच सेकण्ड से ज़्यादा समय नहीं लिया. फ़िर एक अजीब-सी आरी लेकर उसका पिछला हिस्सा पहले छेद में डाला और घिसने लगा, जैसे औरतों के लिये बक्सा बना रहा हो. खोपड़ी हौले-से आवाज़ करते हुए चटक रही थी. तीन मिनट बाद शारिक की खोपड़ी के ढक्कन को निकाल दिया गया.

तब शारिक के मस्तिष्क का गुम्बद उजागर हुआ – भूरा, नीली नसों और लाल धब्बों वाला. फ़िलिप फ़िलीपविच कैंची से झिल्लियाँ खोलने लगा. एक बार खून की पतली धार फ़व्वारे जैसी उछली , प्रोफ़ेसर की आँख़ में गिरते-गिरते बची, और उसके टोप पर छिड़काव कर गई. हाथ में तूर्निकेट (ख़ास तरह का बैण्डेज जो रक्तप्रवाह को रोकने के लिये इस्तेमाल किया जाता है – अनु.) लिये बर्मेन्ताल शेर की तरह उछला, उसे दबाया और रक्त-प्रवाह को बंद कर दिया. बर्मेन्ताल के शरीर से पसीने की धाराएँ बह रही थीं और उसका चेहरा सूज गया और रंगबिरंगा हो गया. उसकी आँखें प्रोफेसर के हाथों से मेज़ पर रखी उपकरणों की प्लेट तक घूम रही थीं. फ़िलिप फ़िलीपविच वाकई में ख़ौफ़नाक लग रहा था. उसकी नाक से आवाज़ आ रही थी, दाँत मसूड़ों तक खुल गये थे. उसने मस्तिष्क से झिल्ली खुरची और मस्तिष्क के खुले हुए अर्धगोल से हटाते हुए कहीं गहराई में घुस गया. इस समय बर्मेन्ताल के चेहरे का रंग पीला होने लगा, उसने एक हाथ से शारिक का सीना पकड़ लिया और भर्राई आवाज़ में बोला:  

नब्ज़ तेज़ी से गिर रही है...”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने जंगली की तरह उसकी ओर देखा, कुछ कहा तथा और ज़्यादा गहराई में गया. बर्मेन्ताल ने कर्र से इंजेक्शन की शीशी को तोड़ा, उसमें सिरिंज डाल कर दवाई सोख ली और चुपके से शारिक के दिल के पास कहीं चुभो दी.                 

“टर्किश सैडल की ओर जा रहा हूँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच चिल्लाया और खून से लथपथ चिकने दस्तानों से शारिक के सिर के भीतर से भूरा-पीला मस्तिष्क निकाल लिया. पल भर को उसने शारिक के थोबड़े पर तिरछी नज़र डाली और बर्मेन्ताल ने फ़ौरन पीले द्रव वाली इंजेक्श्न की दूसरी शीशी तोड़ी और एक लम्बी सिरिंज में उसे खींच लिया.     

“सीधे दिल में?” उसने नम्रता से पूछा.

“आप अभी भी पूछ रहे हैं?” प्रोफ़ेसर क्रोध से गरजा. “वह आपके यहाँ पहले ही पाँच बार दम तोड़ चुका है. चुभाईये! क्या कोई तुक है?” ऐसा कहते हुए उसका चेहरा किसी उत्साही लुटेरे जैसा हो गया.

पलक झपकते ही डॉक्टर ने हौले से कुत्ते के दिल में सुई घुसा दी.

“ज़िंदा है, मगर मुश्किल से,” वह नम्रता से फुसफुसाया.

“बहस करने का समय नहीं है – ज़िंदा है – ज़िंदा नहीं है,” डरावना फ़िलिप फ़िलीपविच फुफ़कारते हुए बोला. “मैं सैडल में हूँ. वैसे भी मर ही जायेगा...आह, शैता....पवित्र नील के किनारों पर.. एपिडीडिमिस ( पुरुष जनन तंत्र की वह नलिका जो अण्डकोश को शुक्रवाहिका से जोड़ती है-अनु.) दीजिये.”

बर्मेन्ताल ने उसे वह फ्लास्क दिया जिसमें धागे से लटका हुआ एक पिंड द्रव में झूल रहा था. एक हाथ से – यूरोप में इसके जैसा कोई नहीं है...ऐ ख़ुदा! बर्मेन्ताल ने अस्पष्टता से सोचा, - उसने हिलते हुए पिण्ड को पकड़कर बाहर निकाला, और दूसरा, वैसा ही, कहीं गहराई से फ़ैले हुए अर्धगोलों के बीच से कैंची से, काटकर बाहर निकाला. शारिक का पिण्ड उसने एक प्लेट पर फेंक दिया, और नये वाले को धागे समेत मस्तिष्क में रख दिया और अपनी छोटी-छोटी उँगलियों से, जो मानो किसी चमत्कार से पतली और लचीली हो गईं थीं, बड़ी कुशलता से सुनहरे धागे से वहाँ स्थापित कर दिया. इसके बाद उसने सिर से कोई छिलके, स्क्रू-ड्राईवर बाहर निकाले, मस्तिष्क को वापस हड्डियों के बाऊल में छुपा दिया, पीछे हटा और कुछ अधिक इत्मीनान से पूछा:

“मर गया, ज़ाहिर है?”...

“हल्की-सी नब्ज़ चल रही है,” बर्मेन्ताल ने जवाब दिया.

“और अड्रेनलिन दो.”

प्रोफ़ेसर ने मस्तिष्क को वापस झिल्लियों से ढाँक दिया, छीलकर बाहर निकाले हुए ढक्कन को ठीक निशानों के हिसाब से जमा दिया, खोपड़ी को वापस खींच दिया और गरजा:

“स्टिचेज़ लगाओ!”

बर्मेन्ताल ने तीन सुईयाँ तोड़कर पाँच मिनट में सिर को सी दिया.

और तब तकिये पर खून से रंगी हुई पार्श्वभूमि पर शारिक का निर्जीव, बुझा हुआ थोबड़ा प्रकट हुआ, जिसके सिर पर अंगूठीनुमा घाव था. अब फ़िलिप फ़िलीपविच पूरी तरह ढेर हो गया, तृप्त पिशाच की तरह, उसने पसीने से लथपथ पाउडर का बादल उड़ाते हुए एक दस्ताना चीर दिया, दूसरे को फ़ाड़ दिया, फ़र्श पर फेंक दिया और दीवार में लगी घंटी का बटन दबाया. ज़ीना देहलीज़ पर प्रकट हो गई, मुड़कर वहीं खड़ी रही ताकि खून से लथपथ शारिक को न देखे. प्रीस्ट ने चाक जैसे हाथों से खून से सना टोप उतारा और चिल्लाया:

“मुझे फ़ौरन सिगरेट दो, ज़ीना. ताज़ा अंतर्वस्त्र और स्नान का इंतज़ाम करो.”

उसने मेज़ की किनार पर ठोढ़ी टिकाई, दो ऊँगलियों से कुत्ते की दाईं आँख़ खोली, स्पष्ट रूप से मृतप्राय होती आँख़ में झाँका और बोला: 

“ख़ैर, शैतान ले जाये. नहीं मरा. मगर फ़िर भी दम तोड़ ही देगा. ऐख, प्रोफेसर बर्मेन्ताल, अफ़सोस हो रहा है कुत्ते पर, प्यारा था, हाँलाकि चालाक भी था.”

 

अध्याय – 5

डॉक्टर बर्मेन्ताल की डायरी से

पतली, स्किब्लिंग पैड जैसी नोटबुक. बर्मेन्ताल की लिखाई में. पहले दो पृष्ठों में उसने साफ़-साफ़ और स्पष्ट लिखा है, आगे चलकर लिखाई घसीटा हो गई है, वह परेशान है और बहुत सारे धब्बे गिरे हैं.

22 दिसम्बर 1924. सोमवार,

बीमारी का इतिहास.

प्रयोग का विषय: कुत्ता, करीब दो वर्ष आयु का. नर. नस्ल – संकर जाति का. नाम – शारिक. खाल पतली, रोंएँदार, भूरी, कुछ जलने के निशान. पूँछ का रंग उबले हुए दूध जैसा. दाईं बाज़ू पर पूरी तरह जल जाने के निशान, जो बिल्कुल ठीक हो गये हैं. प्रोफ़ेसर के यहाँ आने से पहले ख़ुराक बुरी थी, एक सप्ताह यहाँ रहने के बाद – खूब अच्छी तरह खाया-पिया है. वज़न 8 किलो (विस्मयवाचक चिह्न.). दिल, फ़ेफ़ड़े, आमाशय, तापमान...”

23 दिसम्बर.

शाम को 8.30 बजे प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की द्वारा यूरोप में अपनी तरह का पहला ऑपरेशन किया गया : क्लोरोफॉर्म के प्रभाव में शारिक की वीर्य ग्रंथियों को हटा दिया गया और उनके स्थान पर उपांग और वृषण रज्जु (स्पर्मेटिक कॉर्ड – अनु.) सहित पुरुष वीर्य ग्रंथियों को स्थापित कर दिया गया, जिन्हें ऑपरेशन से 4 घंटे 4 मिनट पूर्व दम तोड़ चुके 28 वर्ष के पुरुष के शरीर से लिया गया और प्रोफ़ेसर प्रिअब्राजेन्स्की द्वारा कीटाणुरहित किये गये रसायनिक द्रव में रखा गया था.

इसके फ़ौरन बाद कपाल के आवरण के ट्रेपनेशन के बाद मस्तिष्क के उपांग - पीयूष ग्रंथि (पिट्यूटरी ग्लैण्ड – अनु.) को निकाल लिया गया और उसके स्थान पर उपरोक्त पुरुष की गंथि को प्रस्थापित कर दिया गया.

8cc क्लोरोफॉर्म, 1 सिरींज कैम्फर, 2 सिरींज एड्रेनालाईन का इंजेक्शन दिल में लगाया गया.

ऑपरेशन का उद्देश्य: पिट्यूटरी ग्लैण्ड और अण्डकोश के संयुक्त प्रतिस्थापन से संबंधित प्रिअब्राझेन्स्की के प्रयोग का उद्देश्य पिट्यूटरी ग्लैण्ड के नये शरीर में समायोजन से संबंधित प्रश्न का अध्ययन करना और भविष्य में मानव-शरीर के पुनर्युवीकरण  पर उसके परिणाम का अध्ययन करना है.

ऑपरेशन किया गया प्रोफ़ेसर फिलिप फिलीपविच प्रिअब्राझेन्स्की द्वारा.

सहायक : डॉक्टर इवान अर्नोल्दविच बर्मेन्ताल.

ऑपरेशन के बाद की रात :

नब्ज़ बार-बार भयानक रूप से गिरती रही. मृत्यु की तीव्र आशंका है. प्रिअब्राझेन्स्की के आदेशानुसार कैम्फर के भारी खुराकें दी गई.

24 दिसम्बर.

 सुबह - तबियत में सुधार. श्वास की गति दुगुनी हो गई, तापमान 420 .  कैम्फ़र, केफ़ीन का अवत्वचीय (त्वचा के नीचे - अनु.) इंजेक्शन.

25 दिसम्बर.

फ़िर से हालत बिगड़ गई. नब्ज़ मुश्किल से महसूस हो रही है, हाथ-पैर ठण्डे पड़ रहे हैं, आँखों की पुतलियाँ प्रतिक्रिया नहीं दे रहीं. प्रिअब्राझेन्स्की के आदेशानुसार हृदय में एड्रेनालाईन, नस में सलाईन का इंजेक्शन.

26 दिसम्बर.

कुछ सुधार. नब्ज़ 180, श्वसन 92, तापमान 41. कैम्फ़र, एनिमा द्वारा खुराक दी गई.

27 दिसम्बर.

नब्ज़ 152, श्वसन 50, तापमान 39.8, पुतलियों में हलचल. कैम्फ़र का अवत्वचीय इंजेक्शन.

28 दिसम्बर.

उल्लेखनीय सुधार. दोपहर को पसीने की धाराएँ, तापमान 37.0. ऑपरेशन के ज़ख्म पूर्वस्थिति में ही हैं. बैण्डेज. भूख लग रही है. पतली खुराक.

29 दिसम्बर.

अचानक माथे पर और धड़ के दोनों तरफ़ बालों का गिरना देखा गया. परामर्श के लिये बुलाये गये: त्वचा संबंधी रोगों के विभाग के प्रोफ़ेसर वसीली वसिल्येविच बून्दारेव और मॉस्को के वेटेरनरी डेमॉन्स्ट्रेशन इन्स्टिट्यूट के डाइरेक्टर. उनके अनुसार यह चिकित्सा-साहित्य में अभूतपूर्व घटना है. निदान अज्ञात रहा. तापमान - 37.0

(पेन्सिल से लिखा गया)

शाम को पहली बार भौंका (8.15 बजे). आवाज़ के स्वरूप में तेज़ी से हुआ परिवर्तन और उसका सुर ध्यान आकर्षित करते हैं. "भौ-भौ" के स्थान पर अब "आ-ओ" निकलता है, लहजा कराहने जैसा है.  

30 दिसम्बर.

रोओं के ग़ायब होने की प्रक्रिया ने आम गंजेपन का स्वरूप ले लिया है. वज़न लेने से अप्रत्याशित परिणाम प्राप्त हुआ है – 30 किलो ग्राम – हड्डियों के बढ़ने (लम्बे होने के कारण). कुत्ता पहले ही की तरह पड़ा है.

31 दिसम्बर.

पात्र को बहुत भूख लगी है.

(नोटबुक में – धब्बा. धब्बे के बाद घसीटा लिखाई में).

दिन में 12 बजकर 12 मिनट पर कुत्ता स्पष्ट रूप से भौंका अ-ब-ईर्.

(नोटबुक में अंतराल और आगे, ज़ाहिर है, परेशानी के कारण ग़लती से लिखा गया था:

1 दिसम्बर. (काट दिया गया, सुधार दिया गया) 1 जनवरी 1925.

सुबह फ़ोटो ली गई. आराम से भौंक रहा है “अबीर”, इस शब्द को ज़ोर-ज़ोर से और जैसे प्रसन्नता से दुहराते हुए. दिन में 3 बजे (मोटे अक्षरों में) हँसने लगा, जिससे नौकरानी ज़ीना बेहोश हो गई. शाम को “अबीर-वाल्ग”, “अबीर” इन शब्दों का लगातार 8 बार उच्चारण किया.

(तिरछे अक्षरों में पेन्सिल से) : प्रोफ़ेसर ने “अबीर-वाल्ग” इस कूट-शब्द को खोला, उसका मतलब है “ग्लावरीबा” (प्रिचिस्तेन्का वाले इस मछलियों के स्टोअर से शारिक परिचित था – अनु.) ...कोई राक्षसी बात हो रही है....

2 जनवरी. मुस्कुराते समय मैग्नेशियन फ्लैश से फ़ोटो लिया. पलंग से उठा और आत्मविश्वास के साथ पिछले पंजों पर आधे घण्टे खड़ा रहा. ऊँचाई करीब-करीब मेरे जितनी ही है.

(नोटबुक में एक अतिरिक्त पन्ना रखा गया है).

रूसी वैज्ञानिक क्षेत्र में एक बड़ी हानि होते-होते रह गई.

प्रोफ़ेसर फ़िलिप फ़िलीपविच प्रिअब्राझेन्स्की  की बीमारी का इतिहास.

1 बजकर 13 मिनट – प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की  को गहरी बेहोशी का दौरा पड़ा. गिरते हुए उनका सिर कुर्सी की टाँग से टकराया. वेलेरियन टिंचर.

मेरी और ज़ीना की उपस्थिति में कुत्ते ने (बेशक, अगर उसे कुत्ता कहा जाये तो) प्रोफ़ेसर      प्रेअब्राझेन्स्की को माँ की गाली दी थी.

*******

(प्रविष्ठियों में कुछ अंतराल).

**********

      

6 जनवरी. (कभी पेन्सिल से, कभी बैंगनी स्याही से).

आज, जब उसकी पूँछ गिर गई, उसके बाद, उसने बड़ी स्पष्टता से “शराबखाना” शब्द का उच्चारण किया. फ़ोनोग्राफ़ चालू है. शैतान जाने – यह सब क्या है.

******

मैं हैरान हो रहा हूँ.

******

प्रोफेसर ने मरीज़ों को देखना रोक दिया है. दोपहर 5 बजे से, जाँच-कक्ष में से, जहाँ यह प्राणी घूमता है, स्पष्ट रूप से अश्लील गालियाँ और “एक डबल” ये शब्द सुनाई देते हैं.    

7 जनवरी. वह बहुत सारे शब्द बोलता है : “टैक्सी”, “जगह नहीं है”, “सायंकालीन अख़बार”, “बच्चों के लिये बढ़िया उपहार” और सभी गालियाँ जो रूसी शब्दकोश में हो सकती हैं.

वह देखने में अजीब है. रोंएँ अब सिर्फ सिर पर, ठोड़ी पर और सीने पर ही बचे हैं.  बाकी वह गंजा है, त्वचा पिलपिली है. जननांगों वाले भाग में वह एक विकसित होता हुआ पुरुष है. खोपड़ी काफ़ी बड़ी हो गई है. माथा तिरछा और नीचे को सिकुड़ता हुआ.

******

या-ख़ुदा, मैं पागल हो जाऊँगा.

******

फ़िलिप फ़िलीपविच की तबियत अभी भी ख़राब है. अधिकांश अवलोकन-कार्य मैं ही कर रहा हूँ. (फ़ोनोग्राफ़, तस्वीरें)

******

शहर में अफ़वाहें फ़ैल रही हैं.

******

परिणाम असंख्य हैं. आज दोपहर पूरी गली किन्हीं निठल्लों और बूढ़ियों से भरी हुई थी. तमाशबीन अभी भी खिड़कियों के नीचे खड़े हैं. सुबह के अख़बारों में ग़ज़ब की टिप्पणी छपी थी “ओबुखवा स्ट्रीट पर मंगल ग्रह के निवासी के बारे में अफ़वाहें बिल्कुल निराधार हैं. उन्हें सुखारेवो के व्यापारियों द्वारा फ़ैलाया गया है जिन्हें कड़ा दंड दिया जायेगा”. – शैतान जाने, किस मंगल ग्रह के निवासी के बारे में? ये तो – बेहद डरावना है.

******

और भी बढ़िया ख़बर “शाम” के अख़बार में – लिखा है कि एक बालक का जन्म हुआ है, जो पैदा होते ही वायलिन बजाने लगा है. वहीं तस्वीर भी है – वायलिन और मेरा फ़ोटो आइडेन्टिटी कार्ड और उस पर इबारत है: प्रो. प्रिअब्राझेन्स्की , अपनी माँ का सिज़ेरियन ऑपरेशन करते हुए. ये – ऐसी चीज़ है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. .. वह नया शब्द कहता है “पुलिसवाला”.

*******

लगता है, कि दार्या पेत्रोव्ना को मुझसे प्यार हो गया था और उसने फ़िलिप फ़िलीपविच के अल्बम से फ़ोटो पार कर लिया था. जब मैंने सारे रिपोर्टर्स को इसके बाद भगा दिया, उसके बाद उनमें से एक किचन में घुस गया....

*******

कन्सल्टेशन के समय क्या होता है! आज 82 फोन आये थे. टेलिफ़ोन बंद कर दिया है. संतानहीन महिलाएँ पागल हो गई हैं और जा रही हैं...

******

हाऊसिंग कमिटी की पूरी टीम श्वोन्देर के नेतृत्व में. किसलिये – उन्हें ख़ुद ही पता नहीं है.

8 जनवरी. देर रात को निदान किया गया. फ़िलिप फ़िलीपविच ने, एक सच्चे वैज्ञानिक की तरह, अपनी गलती स्वीकार कर ली – पिट्युटरी ग्लैण्ड के प्रत्यारोपण से पुनर्युवीकरण नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवीकरण हो जाता है (तीन बार अधोरेखित किया गया). इससे उसके आश्चर्यजनक, चौंकाने वाले आविष्कार का महत्व ज़रा भी कम नहीं होता.

वह आज पहली बार क्वार्टर में घूमा. कॉरीडोर में इलेक्ट्रिक लैम्प की ओर देखते हुए हँस रहा था. मेरे और फ़िलिप फ़िलीपविच के पीछे-पीछे वह अध्यनयन कक्ष में गया. वह दृढ़ता से पिछले पंजों पर खड़ा रहता है (रेखांकित किया गया)....पैरों पर और एक छोटे कद और विकसित होते पुरुष का आभास देता है....

अध्ययन कक्ष में मुस्कुराया. उसकी मुस्कुराहट अप्रिय है और जैसे कृत्रिम है. इसके बाद उसने खोपड़ी खुजाई, इधर-उधर देखा और मैंने स्पष्टतापूर्वक उच्चारित शब्द को दर्ज कर लिया : “बुर्झुआ”. गाली दी. ये गालियाँ विधिवत्, निरंतर और, ज़ाहिर है पूरी तरह बेमतलब हैं. उनमें कोई ध्वन्यात्मक विशेषता है : जैसे इस प्राणी ने पहले कहीं इन अपशब्दों को सुना है, ख़ुद-ब-ख़ुद अवचेतनता से उन्हें अपने मस्तिष्क में बिठा लिया और अब उन्हें थोक में बाहर उछाल रहा है. वैसे, मैं मनोवैज्ञानिक नहीं हूँ. शैतान ले जाये मुझे.

ये गालियाँ फ़िलिप फ़िलीपविच पर न जाने क्यों बड़ा दर्दनाक असर डालती हैं. ऐसा भी होता है कि वह संयम और शांति से नई घटनाओं का अवलोकन करते हुए अपना संयम खो देता है. तो, गालियाँ सुनते ही वह परेशानी से चीख़ा:

“बस कर!”

इसका कोई असर नहीं हुआ.

अध्ययन कक्ष की सैर के बाद शारिक को संयुक्त प्रयासों से जाँच-कक्ष में बंद कर दिया गया.

इसके बाद मैंने और फ़िलिप फ़िलीप फ़िलीपविच ने चर्चा की. मुझे स्वीकार करना पड़ेगा कि मैंने पहली बार इस आत्मविश्वास से भरपूर और आश्चर्यजनक रूप से बुद्दिमान व्यक्ति को बदहवासी की हालत में देखा. अपनी आदत के अनुसार गुनगुनाते हुए, उसने पूछा: “अब हम क्या करेंगे?” और ख़ुद ही इस तरह से जवाब दिया: “मॉस्को टेलर्स, हाँ,,,सेविल्ये से ग्रेनादा तक. मॉस्को टेलर्स, प्यारे डॉक्टर...” मैं कुछ भी नहीं समझा. उसने समझाया: “मैं आपसे विनती करता हूँ, इवान अर्नोल्दविच, उसके लिये अंतर्वस्त्र, पतलूनें और कोट खरीदिये”.      

9 जनवरी. आज सुबह से हर पाँच मिनट में (आम तौर से) नये शब्द से, और वाक्यों से शब्द-संग्रह समृद्ध होता जा रहा है. ऐसा लगता है कि वे, जो उसके अवचेतन में जम गये थे, पिघल रहे हैं और बाहर आ रहे हैं. बाहर निकला हुआ शब्द उपयोग में आता रहता है. कल शाम से फ़ोनोग्राफ़ ने दर्ज किये : धक्का मत दे”, “बदमाश”, “पायदान से उतर जा”, मैं तुझे दिखाऊँगा”, “अमेरिका की मान्यता”, “प्राइमस”.

10 जनवरी.

कपड़े पहनाये गये. भीतर की बनियान उसने ख़ुशी-ख़ुशी पहनाने दी, बल्कि ख़ुशी से हँस भी रहा था. भर्राई हुई चीख़ों से विरोध प्रकट करके उसने अण्डरपैण्ट पहनने से इनकार कर दिया : “लाईन में, सुअर के बच्चों, लाईन में!” कपड़े पहना दिये गये. मोज़े उसके लिये बहुत बड़े हो गये.

(नोटबुक में कुछ योजनाबद्ध आरेख थे, जो स्पष्टतः कुत्ते की टाँग के मनुष्य की टाँग में परिवर्तन को प्रकट कर रहे थे).

पैर के कंकाल का पिछला आधा हिस्सा लम्बा हो रहा है. उँगलियाँ लम्बी हो रही हैं. नाख़ून.

टॉयलेट के सही उपयोग का प्रशिक्षण योजनाबद्ध तरीके से दुहराया जा रहा है. नौकर पूरी तरह हैरान, परेशान हैं.

मगर इस प्राणी की समझदारी की तारीफ़ करनी पड़ेगी. काम सुचारू रूप से चल रहा है.

11 जनवरी.

 पतलून से पूरी तरह समझौता कर लिया है. लम्बा मज़ाकिया वाक्य भी बोला: “सिगरेट दे रे एक बार – तेरी पतलून धारीदार”.

सिर के ऊपर के रोएँ – पतले, रेशम जैसे. उन्हें देखकर बालों का धोखा होता है. मगर तालू पर जलने के निशान रह गये हैं. आज कानों से बालों का आख़िरी गुच्छा भी झड़ गया. भूख खूब लगती है. हैरिंग मछली बड़े चाव से खाता है.

5 बजे एक घटना हुई: पहली बार ऐसे शब्द, जो इस प्राणी द्वारा कहे गये थे, आसपास की घटनाओं से कटे हुए नहीं थे, बल्कि उनके प्रति प्रतिक्रियात्मक थे. ख़ास कर, जब प्रोफ़ेसर ने उसे हुक्म दिया: “बची हुई चीज़ें फ़र्श पर मत फेंक” – अप्रत्याशित रूप से जवाब दिया : “नीचे उतर जूँ के अण्डे”.

फ़िलिप फ़िलीपविच हक्का-बक्का रह गया, फ़िर उसने ख़ुद को संभाला और कहा:

“अगर तुमने फ़िर कभी मुझे या डॉक्टर को गाली देने की कोशिश की, तो तुझे भगा देंगे.”

मैं इस पल शारिक की फ़ोटो खींच रहा था. दावे के साथ कहता हूँ कि वह प्रोफ़ेसर के शब्दों को समझ गया था. उसके चेहरे पर एक उदासी की छाया तैर गई. काफ़ी चिड़चिड़ाहट के साथ कनखियों से देखा.

हुर्रे, वह समझता है! 

12 जनवरी.

पतलून की जेबों में हाथ रखना सीख लिया है. डाँटने की आदत छुड़ा रहे हैं. सीटी बजा रहा था “ओय, नन्हे सेब”. बातचीत आगे बढ़ाता है.

मैं कुछ परिकल्पनाओं से ख़ुद को नहीं रोक सकता : फ़िलहाल पुनर्यौवनीकरण जाये भाड़ में. दूसरी बात अत्यंत महत्वपूर्ण है : प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की के चौंकाने वाले प्रयोग ने मानवीय मस्तिष्क के एक रहस्य को खोल दिया है. यहीं से पिट्यूटरी ग्लैण्ड का – मस्तिष्क के उपांग का – कार्य स्पष्ट हो गया है. वह मानवीय आकृति को सुनिश्चित करता है. उसके होर्मोन्स को शरीर में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण कहा जा सकता है – आकृति के हॉर्मोन्स. विज्ञान में एक नये क्षेत्र का आविष्कार हुआ है : फ़ाउस्ट के किसी रिटॉर्ट के बगैर होमेनक्युलस की रचना हुई है. सर्जन के चाकू ने एक नई मानवीय इकाई को पुनर्जीवित किया है. प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की – आप रचयिता हैं (धब्बा).          

ख़ैर, मैं विषय से हट गया...तो, वह बातचीत को आगे बढ़ाता है. मेरे विचार से बात कुछ ऐसी है: अभ्यस्त हो चुकी पिट्यूटरी ग्लैण्ड ने कुत्ते के दिमाग़ के भाषा-केंद्र को खोल दिया है और शब्द उछलते हुए झरने की तरह बह रहे हैं. मेरे विचार से, हमारे सामने एक पुनर्जीवित, विकसित होता हुआ मस्तिष्क है, न कि ऐसा मस्तिष्क जिसका पुनर्निर्माण किया गया है. ओह, विकास के सिद्धांत (थ्योरी ऑफ एवॉल्यूशन – अनु.) की कैसी आश्चर्यजनक पुष्टि! कुत्ते से लेकर रसायनशास्त्री मेंदेलेयेव को जोड़ने वाली उत्कृष्ट कड़ी! मेरी एक और परिकल्पना है: अपने जीवन की श्वान-अवस्था में शारिक के मस्तिष्क ने अनगिनत अनुभव एकत्रित किये थे. वे सभी शब्द, जिनका शारिक ने पहले-पहले उपयोग करना शुरू किया था, - सड़कछाप शब्द थे, उसने उन्हें सुना था और और मस्तिष्क में छुपा लिया था. अब, रास्ते पर चलते हुए, मैं एक गुप्त भय से सामने से आ रहे कुत्तों को देखता हूँ. ख़ुदा ही जानता है कि उनके दिमाग़ों में क्या छुपा है.

******

शारिक पढ़ रहा था. पढ़ रहा था (3 विस्मयबोधक चिह्न). ये मैंने अंदाज़ लगाया. “ग्लावरीबा” को देखकर. अंत से ही पढ़ रहा था. और मैं यह भी जानता हूँ कि इस पहेली का समाधान कहाँ है : कुत्ते की ऑप्टिक नर्व्स को अलग करने में.

******

मॉस्को में जो हो रहा है वह मानवीय बुद्धि की समझ से परे है. सुखारेव मार्केट के सात व्यापारी बोल्शेविकों द्वारा लाई गई दुनिया के अंत के बारे में अफ़वाहें फ़ैलाने के जुर्म में जेल में बंद हैं. दार्या पित्रोव्ना बता रही थी और उसने अचूक तारीख़ भी बता दी : 28 नवम्बर 1925 को, सेंट स्टेफ़न के शहीद-दिवस पर धरती उड़ कर स्वर्गीय धुरी पर चली जायेगी... कुछ बदमाश इस बारे में लेक्चर्स भी दे रहे हैं. ऐसा हंगामा मचा दिया है हमने इस पिट्यूटरी ग्लैण्ड का, कि क्वार्टर छोड़ कर भाग जाने को जी चाहता है. मैं प्रिअब्राझेन्स्की की विनती पर उसके क्वार्टर में आ गया हूँ और रात को शारिक के साथ स्वागत-कक्ष में सोता हूँ. जाँच-कक्ष को स्वागत-कक्ष में बदल दिया गया है. श्वोन्देर सही था. हाऊसिंग सोसाइटी ख़ुशी मना रही है. अलमारियों में एक भी शीशा नहीं है, क्योंकि वह कूद रहा था. मुश्किल से यह आदत छुड़ाई.  

******

फ़िलिप फ़िलीपविच के साथ कुछ अजीब-सी बात हो रही है. जब मैंने उसे अपनी परिकल्पनाओं और शारिक को एक अत्यंत उच्च कोटि के मानसिक व्यक्तित्व के रूप में विकसित करने की उम्मीद के बारे में बताया, तो वह हँसा और बोला : “क्या आप ऐसा सोचते हैं?” उसका लहज़ा ज़हरीला है. कहीं मैंने ग़लती तो नहीं कर दी? बूढ़े ने कुछ सोचा था. जब मैं बीमारी के इतिहास का निरीक्षण करता हूँ, वह उस आदमी के इतिहास के बारे में अध्ययन करता रहता है, जिससे हमने पिट्यूटरी ग्लैण्ड ली थी.

******

(नोट बुक में एक पृष्ठ रखा है.)

क्लीम ग्रिगोरेविच चुगून्किन, 25 वर्ष, अविवाहित. किसी भी पार्टी का नहीं, सहानुभूति रखता है. (यहाँ कम्युनिस्टों से सहानुभूति से तात्पर्य है – अनु.) 3 बार मुकदमा चलाया गया और निर्दोष साबित हुआ : पहली बार सुबूतों की कमी के कारण, दूसरी बार उसके सामाजिक मूल के कारण और तीसरी बार – पन्द्रह वर्ष के सशर्त कारावास के आधार पर. चोरी के इल्ज़ाम में. व्यवसाय – शराबखानों में बलालायका (एक तरह का वाद्य – अनु.) बजाता है.

छोटे कद का, शरीरयष्टि कमज़ोर. लिवर बढ़ा हुआ (शराब के कारण). मृत्यु का कारण – शराबखाने में चाकू से सीने पर वार (”स्टॉप-सिग्नल” प्रिअब्राझेन्स्काया चौकी के पास).

******

बूढ़ा, लगातार क्लीम की बीमारी का अध्ययन किये जा रहा है. समझ नहीं पा रहा हूँ कि बात क्या है. कुछ इस तरह बुदबुदाया कि एनोटॉमिकल पैथोलोजी वार्ड में चुगून्किन के पूरे मृत शरीर का मुआयना करने का ख़याल उसे क्यों नहीं आया. बात क्या है – समझ नहीं पा रहा हूँ. इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि पिट्यूटरी ग्लैण्ड किसकी है?

17 जनवरी.

कई दिनों तक कुछ नहीं लिखा: इन्फ्लुएन्ज़ा हो गया था. इस दौरान उसकी आकृति पूरी तरह विकसित हो चुकी थी.

1. शारीरिक दृष्टि से सम्पूर्ण व्यक्ति;  

2. वज़न करीब 120 पाऊण्ड;

3. कद छोटा;

4. सिर का आकार छोटा;

5. सिगरेट पीने लगा है;

6. इन्सानों का खाना खाता है;

7. अपने-आप कपड़े पहन लेता है;

8. धारा-प्रवाह बात कर लेता है.

******

तो ये है पिट्यूटरी ग्लैण्ड (धब्बा).

******

यहाँ बीमारी का इतिहास समाप्त करता हूँ. हमारे सामने एक नया जीव है; उसका शुरू से निरीक्षण करना होगा.

संलग्न : बातों के लिखित रेकॉर्ड्स, फॉनोग्राफ़-रेकॉर्डिंग, फ़ोटोग्राफ़्स.

हस्ताक्षर : प्रोफ़ेसर फ़ि.फ़ि. प्रिअब्राझेन्स्की का सहायक

डॉक्टर बर्मेन्ताल.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अध्याय 6

 

सर्दियों की शाम थी. जनवरी के अंतिम दिन. लंच से पूर्व, कन्सल्टेशन से पूर्व का समय. स्वागत-कक्ष के दरवाज़े के पास एक चौखट पर सफ़ेद कागज़ लटक रहा था, जिस पर फ़िलिप फ़िलीपविच के हाथ से लिखा था:

“क्वार्टर में सूरजमुखी के बीज खाना मना है”.

फ़ि. प्रिअब्राझेन्स्की.

और नीली पेन्सिल से बड़े-बड़े, केक जैसे अक्षरों में बर्मेन्ताल के हाथों से:

“दोपहर पाँच बजे से सुबह सात बजे तक वाद्य यंत्र बजाना मना है”.

इसके बाद ज़ीना के हाथ से:

“जब वापस आयें, तो फ़िलिप फ़िलीपविच को बताईये : मुझे मालूम नहीं – वह कहाँ गया है. फ़्योदर ने बताया कि श्वोन्देर के साथ”.

प्रिअब्राझेन्स्की के हाथ से:

“क्या सौ साल शीशागर का इंतज़ार करूँगा?”

दार्या पित्रोव्ना के हाथ से (बड़े-बड़े अक्षरों में):

“ज़ीना दुकान में गई है, कह रही थी, उसे लाएगी”.

रेशमी लैम्प-शेड के कारण डाइनिंग रूम में बिल्कुल शाम जैसा लग रहा था. साईडबोर्ड से आती हुई रोशनी दो हिस्सों में बंट गई थी – आईनों के काँच एक किनारे से दूसरे किनारे तक टेढ़े-मेढ़े टेप की सहायता से चिपका दिये गये थे. फ़िलिप फ़िलीपविच मेज़ पर झुक कर अख़बार के खुले हुए बड़े पृष्ठ पर कुछ पढ़ने में मगन था. बिजलियाँ उसके चेहरे को विकृत कर रही थीं और होठों से कुछ संक्षिप्त, टूटे-फूटे, बुदबुदाते शब्द निकल रहे थे. वह एक टिप्पणी पढ़ रहा था:

“इसमें कोई सन्देह नहीं, कि यह उसका अवैध रूप से पैदा हुआ (जैसा कि सड़े हुए बुर्झुआ समाज में कहा करते थे) पुत्र है. इस तरह हमारे छद्म-वैज्ञानिक बुर्झुआ अपना दिल बहलाते हैं. हर कोई तब तक सात कमरों पर कब्ज़ा कर सकता है, जब तक इन्साफ़ की जगमगाती तलवार लाल किरण बनकर उसके ऊपर नहीं चमकती.

श्वो...र”

दो कमरे छोड़कर कोई लगन और मस्तीभरी निपुणता से बलालाइका बजा रहा था, और फ़िलिप फ़िलीपविच के दिमाग़ में “चाँद चमके...” के नाज़ुक आलापों की आवाज़ें टिप्पणी के शब्दों के साथ गड्ड-मड्ड होकर एक घिनौना पॉरिज बना रहे थे. पूरा पढ़ने के बाद, उसने रूखेपन से कंधे के पीछे थूक दिया और भिंचे हुए दांतों से गाने लगा:

च-अ-म-के चाँद... च-अ-म-के चाँद...चमके चाँद...छि, चिपक ही गई, ये नासपीटी धुन!”

उसने घंटी बजाई. परदों के बीच से ज़ीना का चेहरा झाँका.

“उससे कहो, कि पाँच बज चुके हैं, अब रोक दे, और उसे यहाँ बुलाओ, प्लीज़.”            

फ़िलिप फ़िलीपविच मेज़ के पास आरामकुर्सी में बैठा था. बायें हाथ की उँगलियों में कत्थई रंग के सिगार का टुकड़ा दबा था. परदे के पास, सरदल से टिककर, पैर पर पैर रखे, एक छोटे कद का और अप्रिय आकृति वाला आदमी खड़ा था. उसके सिर के बाल कड़े थे, जैसे किसी उखाड़े हुए खेत में कंटीली झाड़ियों के गुच्छे उग आये हों, और चेहरा बिना मुंडे बालों से ढंका था. माथा अपनी छोटी-सी ऊँचाई से चौंका रहा था. बिखरी हुई काली भौंहों के एकदम ऊपर से सिर के घने बालों का ब्रश शुरू हो गया था.

जैकेट को, जो बाईं बगल के नीचे फटा हुआ था, फूस से ढांक दिया गया था, धारियों वाली पतलून दाएँ घुटने पर फ़टी हुई थी, और बायें घुटने पर बैंगनी रंग का धब्बा पड़ा था. उस आदमी के गले में ज़हरीले-आसमानी रंग की टाई थी जिस पर कृत्रिम रूबी की पिन थी. इस टाई का रंग इतना चटख़दार था कि अपनी थकी हुई आँखों को बार-बार बंद करते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच घुप् अंधेरे में भी कभी छत पर तो कभी दीवार पर नीले मुकुट वाली दहकती मशाल देख रहा था. उन्हें खोलते हुए फ़िर से चुंधिया जाता, क्योंकि फ़र्श से चमकदार जूतों और सफ़ेद जुराबों से पंखे की तरह बिखरता प्रकाश आँखों में चुभता. जैसे गलोश पहने हों’, अप्रिय भाव से फ़िलिप फ़िलीपविच ने सोचा, गहरी सांस ली, नाक सुड़सुड़ाई और बुझे हुए सिगार में व्यस्त हो गया. दरवाज़े के पास खड़े आदमी ने धुंधली आँखों से प्रोफ़ेसर की ओर देखा और कमीज़ के सामने वाले हिस्से पर राख गिराते हुए सिगरेट पीता रहा.

दीवार पर लकड़ी के पक्षी की बगल में टंगी घड़ी पाँच बार बजी. जब फ़िलिप फ़िलीपविच ने बातचीत शुरू की  तब भी उसके भीतर कोई चीज़ कराह रही थी.

“मैंने, शायद, पहले भी दो बार कहा है कि किचन में लगे बिस्तर पर नहीं सोना चाहिये - ख़ास तौर से दिन में?”

आदमी भर्राई हुई आवाज़ में खाँसा, जैसे गले में कोई गुठली फंस गई हो, और बोला:  

“किचन की हवा ज़्यादा ख़ुशनुमा है.”

उसकी आवाज़ असाधारण थी, घुटी-घुटी, और साथ ही खनखनाती हुई, मानो किसी छोटे-से ड्रम से आ रही हो.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने सिर हिलाया और पूछा:

“ये घिनौनी चीज़ कहाँ से आई? मैं टाई के बारे में कह रहा हूँ.”

आदमी, आँखों को उँगली की दिशा में घुमाते हुए, उन्हें अपने उभरे हुए होठों तक लाया और प्यार से टाई की ओर देखने लगा.

“घिनौनापन कहाँ से हो गया?” उसने कहा, “शानदार टाई है. दार्या पित्रोव्ना ने गिफ्ट दिया है.”   “दार्या पित्रोव्ना ने गंदी चीज़ दी है, इन जूतों की तरह. ये चमकदार बकवास क्या है? कहाँ से आई? मैंने क्या कहा था? ब-ढ़ि‌-या जूते ख़रीदो; और ये क्या है? कहीं डॉक्टर बर्मेन्ताल ने तो नहीं चुने?”

“मैंने उससे कहा, कि पेटेन्ट चमड़े वाले चाहिये. मैं, क्या औरों से किसी बात में कम हूँ? कुज़्नेत्स्की पर जाईये, सभी पेटेन्ट लेदर वाले जूतों में दिखाई देंगे.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने सिर हिलाया और ज़ोर देकर कहा:

“किचन के बिस्तर पर सोना मना है. समझ में आया? ये क्या गुण्डागर्दी है? आप परेशान करते हैं. वहाँ महिलाएँ होती हैं.”

उस आदमी का चेहरा स्याह पड़ गया और होंठ गोल-गोल हो गये.

“”ओह, महिलाएँ. ज़रा सोचो. जैसे कोई मालकिनें हों. साधारण नौकर हैं, और नख़रे ऐसे जैसे कमिसार की बीबी हों. ये ज़ीन्का ही है, जो अफ़वाहें फ़ैलाती है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने कड़ाई से देखा:

“ज़ीना को ज़ीन्का कहने की हिम्मत न करना! समझ में आया?”

ख़ामोशी.

“समझ में आया, मैं आपसे पूछ रहा हूँ?”

“समझ गया.”

“गर्दन से ये गंदी चीज़ निकालो. आप....आप ज़रा आईने में अपने आप को देखिये, कैसे दिखते हैं. जैसे कोई जोकर हो. सिगरेट के टुकड़े फ़र्श पर नहीं फेंकना है – सौंवी बार कह रहा हूँ. मैं क्वार्टर में फ़िर कभी कोई गाली न सुनूँ! थूकना मना है! थूकदान यहाँ है. कमोड़ का इस्तेमाल सही तरीके से करना है. ज़ीना से किसी भी तरह की बात नहीं करोगे. वह शिकायत कर रही थी कि आप अँधेरे में उस पर निगरानी रखते हैं. ध्यान रहे! पेशन्ट को किसने जवाब दिया था “कुत्ता ही जाने”!? आप क्या, वाकई में शराबख़ाने में हैं?”

“आप तो, पपाशा, मुझे बेहद डांट रहे हैं,” आदमी अचानक रोनी आवाज़ में बोला.

फ़िलिप फ़िलीपविच का चेहरा लाल हो गया, चश्मा चमकने लगा.

“यहाँ आपका पपाशा कौन है? ये कैसी बेतकल्लुफ़ी है? मैं फ़िर कभी ये लब्ज़ न सुनूँ! मुझे अपने नाम और पिता के नाम से बुलाना है!” 

आदमी के चेहरे पर धृष्ठता का भाव प्रकट हुआ.

“ये आप बस कहे ही जा रहे हैं...कभी थूको मत...कभी सिगरेट मत पियो. वहाँ मत जाओ...ये सब असल में क्या है? बिल्कुल जैसे ट्राम में होता है. आप मुझे जीने क्यों नहीं देते?! और जहाँ तक “पपाशा” का सवाल है – ये आप बेकार ही परेशान हो रहे हैं. क्या मैंने आपसे कहा था ऑपरेशन करने के लिये?” आदमी गुस्से से भौंक रहा था, “बड़ा अच्छा काम किया! जानवर को पकड़ लिया, माथे पर चीरा लगा दिया और अब नफ़रत करते हैं. मैं, हो सकता है, ऑपरेशन के लिये कभी भी अपनी सम्मति नहीं देता. और उसी तरह (आदमी ने छत की तरफ़ अपनी आँखें उठाईं, जैसे कोई फॉर्मूला याद कर रहा हो), और मेरे रिश्तेदार भी नहीं देते. मेरे पास कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है.”     

फ़िलिप फ़िलीपविच की आँखें पूरी गोल-गोल हो गईं, हाथों से सिगार छूट गई. ओह, नमूना’, उसके दिमाग़ में कौंध गया.

“आप नाख़ुश हैं इस बात से कि आपको इन्सान में बदल दिया गया है?” आँख़ें सिकोड़ते हुए उसने पूछा, “आप, शायद, फ़िर से कचरे में भागना ज़्यादा पसन्द करते हैं? गलियों में ठण्ड से ठिठुरने में? ओह, अगर मुझे पता होता...”

ये आप क्या ताना दिये जा रहे हैं - कचरा, कचरा. मैं अपने लिये रोटी का टुकड़ा हासिल कर लेता था. और अगर मैं आपके चाकू के नीचे मर जाता तो? इस बारे में आप क्या कहेंगे, कॉम्रेड?”

“फ़िलिप फ़िलीपविच!” चिड़चिड़ाहट से फ़िलिप फ़िलीपविच चिल्लाया, “मैं आपका कॉम्रेड नहीं हूँ! ये ख़ौफ़नाक है! भयानक, भयानक’, उसके मन में ख़याल आता रहा.

“ओह, हाँ, बेशक, बेशक...” आदमी व्यंग्य से बोला और उसने विजयी मुद्रा में पैर हटा लिया, “हम सब समझते हैं. हम कैसे आपके कॉम्रेड हुए! कहाँ से. हम युनिवर्सिटियों में नहीं पढ़े हैं, स्नानगृह के साथ 15 कमरों वाले क्वार्टरों में नहीं रहे हैं. सिर्फ अब यह सब रोकने का समय आ गया है. आज के समय में हरेक के पास अपना अधिकार है...”

फ़िलिप फ़िलीपविच विवर्ण होते हुए मुँह से आदमी के तर्क सुनता रहा. उसने अपना भाषण रोक दिया और शान से हाथ में चबाई हुई सिगरेट लिये ऐश-ट्रे की तरफ़ आया. उसकी चाल ढीली-ढाली थी. वह बड़ी अदा से देर तक सिगरेट को ऐश-ट्रे में मसलता रहा, जैसे कह रहा हो: “लो! और लो!” सिगरेट बुझा कर, उसने चलते-चलते अचानक दाँत किटकिटाये और बगल के नीचे नाक घुसा दी. 

“उँगलियों से पिस्सू पकड़ो! उँगलियों से!” फ़िलिप फ़िलीपविच तैश में चीख़ा, “और मुझे समझ में नहीं आता – आप उन्हें कहाँ से लाते हैं?”

“क्या करें, मैं क्या उन्हें पालता हूँ?” आदमी बुरा मान गया, “ज़ाहिर है, पिस्सुओं को मुझसे प्यार है,“ अब उसने उँगलियों से आस्तीन के नीचे का अस्तर खंगाला और हल्की भूरी रूई का गुच्छा निकाल कर फेंक दिया.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने अपनी नज़र छत पर बनी बेलों पर गड़ा दी और मेज़ पर उँगलियों से टक-टक करने लगा. आदमी, पिस्सू को मारकर, दूर हटा और कुर्सी पर बैठ गया. उसने अपने हाथ नीचे, जैकेट के पल्लों की सीध में लटका दिये. उसकी आँखें लकड़ी के फ़र्श के चौख़ानों पर थीं. वह अपने जूते देख रहा था और इससे उसे बड़ी ख़ुशी हासिल हो रही थी. फ़िलिप फ़िलीपविच ने उस तरफ़ देखा, जहाँ उसके मोज़े प्रखरता से चमक रहे थे, आँख़ें सिकोडीं और बोला:

“आप मुझसे कुछ और भी कहना चाह रहे थे?”

“कहना क्या है! बात सीधी-सी है. फ़िलिप फ़िलीपविच, मुझे डॉक्युमेन्ट चाहिये.”

फ़िलिप फ़िलीपविच कुछ काँप गया.

“हुम्...शैतान! डॉक्युमेन्ट! वाकई में...हुम्...और, हो सकता कि, किसी तरह संभव हो...” उसकी आवाज़ में सन्देह और अप्रसन्नता थी.

“माफ़ कीजिये,” आदमी ने आत्मविश्वास से कहा. “बिना डॉक्युमेन्ट के कैसे? ये तो – माफ़ी चाहता हूँ. आप ख़ुद ही जानते हैं, बिना डॉक्युमेन्ट के आदमी के अस्तित्व पर सख़्त पाबन्दी है. पहली बात हाऊसिंग सोसाइटी...”

“यहाँ हाऊसिंग सोसाइटी का क्या काम है?”

“ऐसे कैसे, क्या काम है? मिलते हैं, पूछते हैं – अतिआदरणीय, तू कब रजिस्ट्रेशन करवा रहा है?”

“आह, ख़ुदा,” फ़िलिप फ़िलीपविच निढ़ाल होकर चहका. “मिलते हैं, पूछते हैं...कल्पना कर सकता हूँ कि आप उनसे क्या कहते होंगे. मैंने तो आपको सीढ़ियों पर मंडराने से मना किया था.”

“मैं, क्या कोई कैदी हूँ?” आदमी हैरान हो गया, और उसकी सच्चाई की चेतना से उसकी नकली रूबी भी दमक उठी, “और ये “मंडराना” क्या है?! आपके शब्द काफ़ी अपमानजनक हैं. मैं वैसे ही जाता हूँ, जैसे सब लोग जाते हैं.”

ऐसा कहते हुए वह अपने चमकीले जूतों से फ़र्श पर टक-टक करने लगा.

फ़िलिप फ़िलीपविच ख़ामोश हो गया, उसकी आँखें एक किनारे को चली गईं. अपने आप पर हर हालत में संयम रखना होगा’, उसने सोचा. साईडबोर्ड के पास जाकर वह एक ही दम में पानी का गिलास पी गया.

“बढ़िया,” उसने इत्मीनान से कहा, “बात लब्ज़ों की नहीं है. तो, आपकी ये शानदार हाऊसिंग कमिटी क्या कहती है?”

“उसे क्या कहना है...आप बेकार ही में शानदार कहकर उसे गाली दे रहे हैं. वह हितों की रक्षा करती है.”

“किसके हितों की, क्या मैं पूछ सकता हूँ?”

“ज़ाहिर है किसके – श्रमिक तत्व के.”

फ़िलिप फ़िलीपविच की आँखें फ़टी रह गईं.

“आप – श्रमिक कैसे हुए?”

“दाँ, ज़ाहिर है – नेपमैन नहीं हूँ (नई आर्थिक नीति के दौरान अपना निजी व्यवसाय करने वाले – अनु.) 

“चलो, ठीक है. तो, आपके क्रंतिकारी हितों की रक्षा करने के लिये उसे क्या चाहिये?”

“ज़ाहिर है क्या – मुझे रजिस्टर करना. वे कहते हैं – ऐसा कहीं देखा है कि कोई इन्सान बिना रजिस्ट्रेशन के मॉस्को में रहता हो. ये – पहली बात. मगर सबसे महत्वपूर्ण है एक रजिस्ट्रेशन कार्ड. मैं भगोड़ा बनकर नहीं रहना चाहता. फिर – प्रोफ़सयुज़, लेबर एक्सचेंज...” (यहाँ तात्पर्य है उन संस्थाओं से जहाँ बेरोज़गारों का रजिस्ट्रेशन होता था – अनु.)

“”और, ये बताने का कष्ट करें कि मैं आपको किस आधार पर रजिस्टर करूँ? इस मेज़पोश के या अपने पासपोर्ट के? आख़िर परिस्थिति पर विचार करना ही होगा. मत भूलिये कि आप...अं...हुम्...आप आख़िर, कहें तो, ‌अकस्मात् प्रकट हुए प्राणी हैं, लैबोरेटरी के,” फ़िलिप फ़िलीपविच का आत्मविश्वास कम होता जा रहा था.

आदमी विजेता के अंदाज़ में ख़ामोश रहा.

“बढ़िया... आख़िर किस चीज़ की ज़रूरत है आपके रजिस्ट्रेशन के लिये और आम तौर से आपकी इस हाऊसिंग कमिटी के प्लान के मुताबिक सब कुछ करने के लिये? क्योंकि आपके पास न तो कोई नाम है और न कुलनाम.”

“ये सरासर अन्याय है. नाम तो मैं आराम से अपने लिये चुन लूँगा. अख़बार में छपवा दो और बस...”

“आप कौनसा नाम रखना चाहते हैं?”

आदमी ने अपनी टाई ठीक की और जवाब दिया:

“पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच.”

“बेवकूफ़ी मत करो,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने नाक-भौंह चढ़ाकर कहा, “मैं आपसे संजीदगी से बात कर रहा हूँ.”

एक ज़हरीली मुस्कान ने आदमी की मूँछों को मरोड़ दिया.

“मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ,” उसने प्रसन्नता से और अर्थभरे अंदाज़ में कहा, “ मेरे लिये माँ की गाली देना मना है. थूकना – मना है. और मैं आपसे सिर्फ इतना ही सुनता हूँ : बेवकूफ़, बेवकूफ़” लगता है कि एरएसएफएसएर में (RSFSR – अनु.) सिर्फ प्रोफ़ेसरों को ही गाली देने की इजाज़त है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच जैसे खून में नहा गया, और ग्लास भरते हुए उसने उसे फ़ोड़ दिया. दूसरे ग्लास से पानी पीकर, उसने सोचा: कुछ और समय के बाद, ये मुझे सिखाने लगेगा और यह बिल्कुल सही होगा. अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहा हूँ’.

वह अपनी कुर्सी पर घूमा, बेहद नम्रता से झुका और अत्यंत कठोरता से बोला:
“माफ़ कीजिये. मैं परेशान हूँ. आपका नाम मुझे अजीब-सा लगा. मुझे जानने में दिलचस्पी है कि आपने ऐसा नाम कहाँ से खोजकर निकाला है
?”

“हाऊसिंग कमिटी ने सुझाया है,. कैलेण्डर में ढूँढ रहे थे – पूछने लगे, तुझे कौनसा चाहिये? और मैंने चुन लिया.”

“किसी भी कैलेण्डर में इस तरह का कुछ नहीं हो सकता.”

“बड़े अचरज की बात है,” आदमी हँस पड़ा, “जबकि आपके जाँच वाले कमरे में लटक रहा है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच, बिना उठे वॉल-पेपर पर लगे बटन की ओर झुका, और घंटी की आवाज़ सुनकर ज़ीना प्रकट हुई.

“जाँच-कक्ष से कैलेण्डर लाओ.”

कुछ देर ख़ामोशी रही. जब ज़ीना कैलेण्डर के साथ वापस आई, तो फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा:

“कहाँ?”

“4 मार्च को मनाया जाता है.”

“दिखाइये...हुम्...शैतान...इसे भट्टी में फेंक दो, ज़ीना, फ़ौरन.”

ज़ीना भय से आँखें फ़ाड़े, कैलेण्डर लेकर चली गई, और आदमी ने उलाहने से सिर हिलाया.

“क्या कुलनाम बताने का कष्ट करेंगे?

“मैं अपना अनुवांशिक कुलनाम लेने पर सहमत हूँ.”

“कैसे? अनुवांशिक? मतलब?”

“शारिकव”

******

अध्ययन-कक्ष में मेज़ के सामने चमड़े की जैकेट पहने हाऊसिंग कमिटी का प्रेसिडेंट श्वोन्देर खड़ा था. डॉक्टर बर्मेन्ताल कुर्सी में बैठा था. डॉक्टर के बर्फ़ के कारण लाल हुए गालों पर (वह अभी-अभी लौटा था) उतना ही परेशानी का भाव था, जितना उसकी बगल में बैठे हुए फ़िलिप फ़िलीपविच के मुख पर था.

“कैसे लिखना है?” उसने बेसब्री से पूछा.

“उसमें क्या है,” श्वोन्देर कहने लगा, “काम मुश्किल तो नहीं है. एक सर्टिफिकेट लिखिये, नागरिक प्रोफ़ेसर, कि ऐसा, अलाना-फ़लाना, इस सर्टिफिकेट का धारक वाकई में शारिकव पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच है, हम्...जिसका जन्म, मतलब, आपके क्वार्टर में हुआ है.”

बर्मेन्ताल अविश्वास से अपनी कुर्सी में कसमसाने लगा. फ़िलिप फ़िलीपविच अपनी मूँछ खींचने लगा. 

हम्...शैतान ले जाये! इससे बड़ी बेवकूफ़ी की बात कोई हो ही नहीं सकती. वो कोई पैदा-वैदा नहीं हुआ है, बल्कि सिर्फ़...ख़ैर, एक लब्ज़ में...”

“वो सब – आपका मामला है” – श्वोन्देर ने शान्त कटुता से कहा, “पैदा हुआ या नहीं...वैसे, सारांश यह है कि आपने प्रयोग किया था, प्रोफ़ेसर! आपने ही नागरिक शारिकव का निर्माण किया था.”

“और, बहुत आसान है,” किताबों की अलमारी से शारिकव भौंका. वह आईने की अंतहीनता में प्रतिबिम्बित हो रही अपनी टाई को निहार रहा था.

“मैं आपसे खूब-खूब विनती करता हूँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच गुर्राया, “बातचीत में दखल न दें. आप बेकार ही में कह रहे हैं और, बहुत आसान है – ये ज़रा भी आसान नहीं है.”

“मैं दखल क्यों नहीं दे सकता,” शारिकव आहत होकर भुनभुनाया. श्वोन्देर ने फ़ौरन उसका समर्थन किया.

“माफ़ कीजिये, प्रोफ़ेसर, नागरिक शारिकव बिल्कुल सही कह रहा है. ये उसका अधिकार है – उसके अपने भविष्य के निर्णय के बारे में हो रही बातचीत में दखल देने का, ख़ासकर तब, जब बातचीत उसके डॉक्यूमेंट से संबंधित है.  डॉक्यूमेन्ट – दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है.”      

इसी समय कान के ऊपर टेलिफ़ोन की बहरा कर देने वाली घंटी ने बातचीत में ख़लल डाल दिया. फ़िलिप फ़िलीपविच ने रिसीवर में कहा: “हाँ”...वह लाल पड़ गया और चीख़ा:

“कृपया छोटी-छोटी बातों से मुझे परेशान न करें. आपको इससे क्या करना है?” और उसने ज़ोर से रिसीवर को हुक पर लटका दिया.

श्वोन्देर के चेहरे पर नीली-नीली प्रसन्नता छा गई.

फ़िलिप फ़िलीपविच, लाल होते हुए, चीख़ा:

“एक लब्ज़ में, ये ख़तम करेंगे.”

उसने नोटबुक से एक पन्ना फ़ाड़ा और उस पर कुछ शब्द लिखे, इसके बाद चिड़चिड़ाहट से ज़ोर से पढ़ा:

“एतद् द्वारा प्रमाणित करता हूँ”...शैतान जाने, ये सब क्या है...हुम्...”इसके धारक को – जो प्रयोगशाला में मस्तिष्क पर किये गये ऑपरेशन के फ़लस्वरूप प्राप्त किया गया इन्सान है, डॉक्यूमेन्ट्स की आवश्यकता है”...शैतान! वैसे मैं पूरी तरह इन बेवकूफ़ी भरे डॉक्यूमेन्ट्स को हासिल करने के ख़िलाफ़ हूँ. हस्ताक्षर – “प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की”.

“बड़ी अजीब बात है, प्रोफ़ेसर,” श्वोन्देर बुरा मान गया, “आप डॉक्यूमेन्ट्स को बेवकूफ़ीभरे कैसे कह सकते हैं? मैं बिल्डिंग में ऐसे किरायेदार को रहने की इजाज़त नहीं दे सकता जो बगैर  डॉक्यूमेन्टस के है, और जिसका पुलिस ने मिलिट्री सेवा के लिये रजिस्ट्रेशन न किया हो. और अगर अचानक साम्राज्यवादी लुटेरों के साथ युद्ध हो जाये तो?”

मैं युद्ध करने के लिये कहीं नहीं जाऊँगा,” शारिकव अचानक उदासी से अलमारी के अन्दर भौंका.

श्वोन्देर भौंचक्का रह गया, मगर फ़ौरन संभल गया और उसने नम्रता से शारिकव से कहा:

“नागरिक शारिकव, आप बेहद नासमझी की बात कर रहे हैं. मिलिट्री सेवा के लिये रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य है.”

“रजिस्ट्रेशन करवा लूँगा, मगर युद्ध – सवाल ही नहीं उठता,” – अपनी टाई ठीक करते हुए शारिकव ने अप्रियता से जवाब दिया.                       

अब श्वोन्देर की बारी थी शर्मिन्दा होने की. प्रिअब्राझेंस्की ने कटुता और दुख से बर्मेन्ताल की ओर देखा: “क्या नैतिकता की कोई ज़रूरत नहीं है”. बर्मेन्ताल ने अर्थपूर्ण ढंग से सिर हिलाया.

“मैं ऑपरेशन के दौरान गंभीर रूप से घायल हुआ था,” शारिकव ने रिरियाते हुए कहा, “ देख, मेरा ये हाल किया गया,” और उसने सिर की ओर इशारा किया. माथे पर आरपार ऑपरेशन का बेहद ताज़ा घाव का निशान था.

“क्या आप अराजकतावादी-व्यक्तिवादी हैं?” श्वोन्देर ने भौंहे ऊपर उठाते हुए पूछा.  

“मुझे सफ़ेद टिकट की ज़रूरत है,” शारिकव ने इस पर जवाब दिया. (सफ़ेद टिकट से तात्पर्य है सक्रिय युद्ध से छूट, अन्य कार्यों के लिये इस्तेमाल – अनु.)    

ख़ैर, ठीक है, अभी ये ज़रूरी नहीं है,” आश्चर्यचकित श्वोन्देर ने जवाब दिया, “मुद्दा यह है, कि हम प्रोफ़ेसर का सर्टिफिकेट पुलिस को भेजेंगे और हमें डॉक्यूमेन्ट देंगे.”

“देखो, अं...” अचानक किसी ख़याल से परेशान फ़िलिप फ़िलीपविच ने उसकी बात काटी, “आपके पास बिल्डिंग में कोई ख़ाली कमरा तो नहीं है? मैं उसे ख़रीदने के लिये तैयार हूँ.”

शोन्देर की भूरी आँखों में पीली चिंगारियाँ प्रकट हुईं.

नहीं, प्रोफ़ेसर, बेहद अफ़सोस है. और कोई उम्मीद भी नहीं है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने होंठ भींच लिये और कुछ नहीं कहा. टेलिफ़ोन फ़िर से ज़ोर से बज उठा. फ़िलिप फ़िलीपविच ने कुछ भी पूछे बिना स्टैण्ड से रिसीवर इस तरह फेंक दिया, कि वह कुछ गोल-गोल घूमकर अपने नीले तार से लटक गया. सब काँप गये. “बूढ़ा नर्व्हस हो गया है,” बर्मेन्ताल ने सोचा, और श्वोन्देर आँखों में चमक लिये, झुका और बाहर निकल गया.

जूते चरमराते हुए शारिकव भी उनके पीछे चल पड़ा.

प्रोफ़ेसर बर्मेन्ताल के साथ अकेला रह गया. कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद फ़िलिप फ़िलीपविच ने हौले से सिर हिलाया और बोला:

“ये भयानक है, ईमानदारी से. आप देख रहे हैं? कसम से कहता हूँ, प्रिय डॉक्टर, इन दो हफ़्तों में मैं इतना थक गया हूँ जितना पिछले चौदह सालों में नहीं थका था! ये है – नमूना, मैं आपसे कह रहा हूँ...”

दूर कहीं हल्के से काँच के टूटने की आवाज़ आई, फिर किसी औरत की घुटी-घुटी चीख़ सुनाई दी और फ़ौरन ही ख़ामोश हो गई. कोई शैतानी ताकत जाँच-कक्ष की तरफ़ बढ़ते हुए कॉरीडोर में वॉल-पेपर से टकराई, वहाँ कुछ गिरने की आवाज़ आई, और वह फ़ौरन तेज़ी से वापस लौट गई. दरवाज़े भड़भड़ाने लगे, और किचन से दार्या पित्रोव्ना की हल्की चीख़ सुनाई दी. इसके बाद शारिकव गुर्राने लगा.
“ऐ ख़ुदा
, अब और क्या है!” दरवाज़े की ओर लपकते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा.

“बिल्ली,” बर्मेन्ताल ने अनुमान लगाया और उसके पीछे उछला. वे कॉरीडोर से होते हुए प्रवेश कक्ष तक भागे, उसमें घुस गये, वहाँ से वापस कॉरीडोर में मुड़े टॉयलेट और बाथरूम की तरफ़. किचन से ज़ीना उछल कर बाहर आई और धड़ाम् से फ़िलिप फ़िलीपविच से टकराई.

“कितनी बार मैंने कहा है – कि बिल्लियों का नामोनिशान न रहे,” फ़िलिप फ़िलीपविच जंगलीपन से चिल्लाने लगा. “कहाँ है वह? इवान अर्नोल्दविच, ख़ुदा के लिये, स्वागत कक्ष में मरीज़ों को शांत कीजिये!”

“बाथरूम में, नासपीटा शैतान बाथरूम में बैठा है,” ज़ीना हाँफ़ते हुए चिल्लाई.

फ़िलिप फ़िलीपविच बाथरूम के दरवाज़े पर टूट पड़ा, मगर वह खुला ही नहीं.

“फ़ौरन खोलो!”

जवाब में बंद बाथरूम में दीवारों पर कोई चीज़ कूदी, बेसिन खड़खड़ाये , दरवाज़े के पीछे शारिकव की जंगली आवाज़ गरजी:
“यहीं पर मार डालूँगा...”

पानी पाईपों में शोर मचाते हुए गिर रहा था. फ़िलिप फ़िलीपविच दरवाज़े पर झुक कर उसे तोडने की कोशिश करने लगा. पसीने से लथपथ, विकृत चेहरा लिये दार्या पित्रोव्ना किचन की देहलीज़ पर प्रकट हुई. इसके बाद ऊँचा शीशा, जो बाथरूम की छत के ठीक नीचे से किचन में खुलता था, लम्बी दरार बनाते हुए चटक गया और उसमें से काँच के दो टुकडे गिर पड़े, और उनके पीछे गिरा एक भारी-भरकम बिल्ला, जिसके बदन पर शेर जैसे गोले थे और गर्दन में नीली टाई थी, पुलिस इन्स्पेक्टर जैसा. वह सीधा मेज़ पर लम्बी प्लेट में गिरा, उसके दो टुकड़े कर दिये, प्लेट से फ़र्श पर गिरा, फिर तीन टाँगों पर मुड़ गया, और दाईं टाँग इस तरह हिलाने लगा, जैसे डान्स कर रहा हो, और फ़ौरन चोर-सीढ़ी पर तंग झिरी से बाहर फ़िसल गया. झिरी चौड़ी हो गई, और बिल्ला स्कार्फ़ पहनी बुढ़िया की आकृति में बदल गया. सफ़ेद मटर के दानों वाला बुढ़िया का स्कर्ट किचन में दिखाई दिया. बुढ़िया ने तर्जनी और बड़ी ऊँगली से अपना पोपला मुँह पोंछा, फूली-फूली और चुभती हुई आँख़ों से किचन में चारों तरफ़ देखा और उत्सुकता से बोली:

“ओह, क्राईस्ट!”

विवर्ण चेहरे से फ़िलिप फ़िलीपविच ने किचन पार किया और धमकाती आवाज़ में बुढ़िया से पूछा:

“आपको क्या चाहिये?”

“बोलने वाले कुत्ते को देखने की उत्सुकता है,” बुढ़िया ने ख़ुशामदी लहज़े में जवाब दिया और सलीब का निशान बनाया.

फ़िलिप फ़िलीपविच और भी विवर्ण हो गया, बुढ़िया के बिल्कुल पास गया और घुटनभरी फ़ुसफ़ुसाहट से बोला:

“इसी पल किचन से भाग जाओ!”

अपमानित होकर बुढ़िया पीछे-पीछे हटती हुई दरवाज़े की ओर गई और बोली:

“बेहद बदतमीज़ी से पेश आ रहे हैं, प्रोफ़ेसर महाशय.”

“भाग जा, कह रहा हूँ!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने दुहराया और उसकी आँखें गोल-गोल हो गईं, उल्लू जैसी. उसने ख़ुद ही धड़ाम् से बुढ़िया के पीछे काला दरवाज़ा बंद कर दिया, - “दार्या पित्रोव्ना मैंने तो आपसे कहा था!”

“फ़िलिप फ़िलीपविच,” दार्या पित्रोव्ना ने खुले हुए हाथों की मुट्ठियाँ भींचते हुए बदहवासी से जवाब दिया, “मैं क्या करूँ? लोग दिन भर घुसते रहते हैं, चाहे सबको बाहर फेंक दो.”    

बाथरूम में पानी घरघराहट और भयानकता से गरज रहा था, मगर अब आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी. डॉक्टर बर्मेन्ताल भीतर आया.

“इवान अर्नोल्दविच, संजीदगी से पूछ रहा हूँ...हुम्...कितने पेशन्ट्स हैं?”

ग्यारह,” बर्मेन्ताल ने जवाब दिया.

“सबको छोड़ दीजिये, आज मैं किसी को नहीं देखूँगा.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने उँगली के पोर से दरवाज़ा खटखटाया और चिल्लाया:

“इसी पल बाहर निकलने की मेहेरबानी कीजिये! आपने ख़ुद को बंद क्यों कर लिया है?”   

“ऊ-ऊ!” शारिकव की दयनीय और मंद आवाज़ ने जवाब दिया.

“क्या मुसीबत है!...कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है, पानी बंद करो.”

“आऊ!आऊ! ...”

“अरे पानी बंद करो! उसने क्या कर दिया है – समझ नहीं पा रहा हूँ...” फ़िलिप फ़िलीपविच उन्माद से चीख़ा.

ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना, दरवाज़ा खोलकर, किचन से बाहर देख रही थीं. फ़िलिप फ़िलीपविच ने एक बार फिर मुट्ठी से दरवाज़ा भड़भड़ाया.

“ये रहा वो!” दार्या पित्रोव्ना किचन से चीख़ी.

फ़िलिप फ़िलीपविच उस ओर लपका. छत के नीचे फूटी हुई खिड़की में पलिग्राफ़ पलिग्राफविच का चेहरा दिखाई दिया जो किचन में झुक रहा था. वह टेढ़ा हो रहा था, आँखों में आँसू थे, और नाक के पास सीधे जा रही थी - ताज़े खून से दहकती हुई खरोंच.

“आप क्या पागल हो गये हैं?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा. “बाहर क्यों नहीं निकलते?”

शारिकोव ने ख़ुद भी दुख और भय से इधर-उधर देखा और जवाब दिया:

“मेरे हाथ से ताला बंद हो गया है.”

“ताला खोलिये. क्या आपने कभी ताला नहीं देखा है?”

“अरे, नहीं खुल रहा है, नासपीटा!” पलिग्राफ़ ने भय से जवाब दिया.

भला हो! उसने सेफ़्टी-लॉक तोड़ दिया है!” ज़ीना चीख़ी और हाथ नचाने लगी.                 

वहाँ एक बटन है, देखो!” अपनी आवाज़ को पानी के शोर से ऊँचा करने के लिये फ़िलिप फ़िलीपविच चिल्ला रहा था, “उसे नीचे की ओर दबाइये...नीचे दबाइये! नीचे!”

शारिकोव ग़ायब हो गया और एक मिनट बाद फ़िर से खिड़की में प्रकट हुआ.

“कोई कुत्ता नज़र नहीं आ रहा है,” वह भय से खिड़की में भौंका.

“अरे बल्ब जलाइये. वह पागल हो गया है!”

“नासपीटे बिल्ले ने बल्ब चकनाचूर कर दिया,” शारिकव ने जवाब दिया, “और मैं, उस कमीने को टाँग से पकड़ने लगा, नल खुल गया, और अब मैं ढूँढ़ नहीं पा रहा हूँ.”

तीनों हाथ नचाने लगे और उसी हालत में जैसे जम गये.

करीब पाँच मिनट बाद बर्मेन्ताल, ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना एक कतार में गीले कालीन पर बैठे थे, जिसे पाईप की तरह गोल-गोल लपेट कर दरवाज़े की चौखट के पास रखा था, और वे उसे अपने पृष्ठभागों से पीछे-पीछे दरवाज़े के नीचे वाली दरार की तरफ़ दबा रहे थे, और दरबान फ़्योदर दार्या पित्रोव्ना के विवाह-समारोह की जलती हुई मोमबत्ती लिये लकड़ी की सीढ़ी से छत वाली खिड़की में घुसा. बडे-बड़े भूरे चौखानों में उसके पृष्ठभाग की झलक हवा में लहराई और छेद में ग़ायब हो गई.

“दू...ऊ-ऊ!” पानी की गरज के बीच शारिकव कुछ चिल्लाया.

फ़्योदर की आवाज़ सुनाई दी:

“फ़िलिप फ़िलीपविच, जो भी हो खोलना तो पड़ेगा, पानी बह जाने दें, किचन में से सोख लेंगे.”

“खोलिये!” फ़िलिप फ़िलीपविच गुस्से से चीखा.    

तीनों कालीन से उठ गये, बाथरूम का दरवाज़ा दबाया और फ़ौरन थपेड़े लगाते हुए पानी की तेज़ लहर कॉरीडोर में घुस गई. यहाँ वह तीन धाराओं में बंट गई : सीधे सामने वाले टॉयलेट में, दायें  – किचन में और बायें  प्रवेश कक्ष में. छपछपाते और उछलते हुए ज़ीना ने उस पर धड़ाम से दरवाज़ा बंद कर दिया. टखनों तक गहरे पानी से न जाने क्यों मुस्कुराते हुए फ़्योदर बाहर आया. वह ऑइलक्लॉथ जैसा लग रहा था – पूरा गीला.

“मुश्किल से बंद किया, पानी का दबाव बहुत ज़्यादा था,” उसने स्पष्ट किया.

“ये कहाँ है?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा और गाली देते हुए अपना एक पैर उठाया.

“बाहर आने से डर रहा है,” बेवकूफ़ी से खिखियाते हुए फ़्योदर ने कहा.        

मारोगे तो नहीं, पापाजी?” बाथरूम में से शारिकव की रुँआसी आवाज़ आई.

“बदमाश!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने संक्षिप्त उत्तर दिया.

ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना घुटनों तक अपने स्कर्ट उठाये, नंगे पैर; और शारिकव वाचमैन के साथ, पतलून ऊपर की ओर मोड़े, नंगे पाँव किचन के फ़र्श पर गीले चीथड़ों से पानी सोख-सोखकर उसे गंदी बाल्टियों और सिंक में निचोड़ रहे थे. परित्यक्त चूल्हा गुनगुना रहा था. पानी दरवाज़े से बाहर निकलते हुए पिछली, गूंजती हुई सीढ़ियों पर बहकर सीधे बेसमेन्ट में गिर रहा था. 

बर्मेन्ताल, प्रवेश कक्ष के फ़र्श पर गहरे डबरे में पंजों के बल खड़े होकर जंज़ीर के सहारे थोड़े से खुले दरवाज़े से बातचीत कर रहा था.

“आज मरीज़ नहीं देखे जायेंगे, प्रोफ़ेसर बीमार हैं. मेहेरबानी से दरवाज़े से दूर हट जाइये, हमारे यहाँ पानी का पाईप टूट गया है...”

“मगर कब देखेंगे?” दरवाज़े के पीछे से आवाज़ आई, “मुझे सिर्फ एक मिनट के लिये...”

“नहीं कर सकता,” बर्मेन्ताल उँगलियों से एड़ियों पर आया, “प्रोफ़ेसर सो रहे हैं और पाईप टूट गया है. कल आईये. ज़ीना! प्यारी! यहाँ से पोंछिये, नहीं तो वह प्रमुख सीढ़ियों पर बह जायेगा.

“चीथड़े सोख नहीं पा रहे हैं.”. 

“अभी बर्तनों से भर-भर के निकालते हैं”, फ़्योदर ने जवाब दिया, “अभी, फ़ौरन.”

एक के बाद एक घंटियाँ बजती रहीं और बर्मेन्ताल टखनों तक पानी में खड़ा था.

“आख़िर ऑपरेशन कब है?” एक ज़िद्दी आवाज़ बोली और दरार से भीतर घुसने की कोशिश करने लगी.   

“पाईप टूट गया है...”

“मैं गलोशों में गुज़र जाऊँगा...”

दरवाज़े के पीछे नीली-नीली आकृतियाँ प्रकट हुईं.

“नहीं, कृपया कल आइये.”

“मगर मेरा अपॉइन्टमेन्ट है.”

“कल. पानी के पाइप की दुर्घटना हो गई है.”

फ़्योदर, तालाब में छपछपाते हुए, डॉक्टर के पैरों के पास जग से खुरच रहा था, और खरोंचोवाले शारिकव ने एक नया ही तरीका ढूँढ़ निकाला था. उसने एक भारी-भरकम कपड़े को पाईप की तरह गोल-गोल लपेटा, पेट के बल पानी में लेट गया और उसे प्रवेश कक्ष से वापस बाथरूम की ओर धकेलने लगा.

“अरे शैतान, ये तू पूरे क्वार्टर में क्या धकेल रहा है?” दार्या पित्रोव्ना ने गुस्से से कहा, “सिंक में निचोड़.”

“सिंक में क्या,” हाथों से गंदा पानी पकड़ते हुए शारिकव ने जवाब दिया, “वह प्रवेश द्वार पर भाग जायेगा.”

कॉरीडोर से चरमराते हुए एक बेंच बाहर आई, जिस पर धारियों वाले नीले मोज़ों में बदहवासी से ख़ुद को संतुलित करते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच पसरा हुआ था. “इवान अर्नोल्दविच, उन्हें जवाब देना बंद कीजिये. बेडरूम में चलिये, मैं आपको जूते देता हूँ.”

“कोई बात नहीं, फ़िलिप फ़िलीपविच, छोटी-सी बात है.”

“गलोश पहन लीजिये.”

“ओह, कोई बात नहीं. वैसे भी पैर गीले हो चुके हैं.”

“आह, ख़ुदा!” फ़िलिप फ़िलीपविच परेशान हो गया.

“किस कदर ख़तरनाक जानवर है!” अचानक शारिकव के मुँह से निकला और वह हाथ में सूप का बाऊल लिये उकडू बैठ गया.

बर्मेन्ताल ने धड़ाम से दरवाज़ा बंद किया, अपने आपको रोक नहीं पाया और हँस पड़ा. फ़िलिप फ़िलीपविच के नथुने फूल गये, चश्मा चमकने लगा.

“आप किसके बारे में बात कर रहे हैं?” उसने ऊपर से शारिकव से पूछा, “मेहेरबानी करके बतायें.”

“बिल्ले के बारे में कह रहा हूँ. ऐसा हरामी है,” शारिकव ने आँखें नचाते हुए जवाब दिया.

“जानते हैं, शारिकव,” गहरी साँस लेते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा, “ मैंने वाकई में इतना ढीठ प्राणी नहीं देखा जितने आप हैं.”

बर्मेन्ताल खिलखिलाया.

“आप”, फ़िलिप फ़िलीपविच कहता रहा, “बेहद गुस्ताख हैं. आपकी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की? आपने ये सब किया है और फ़िर भी फ़रमाते हैं... अरे नहीं! शैतान ही जाने कि यह सब क्या है!”

“शारिकव, मुझे बताइये, प्लीज़,” बर्मेन्ताल ने कहा, “अभी और कितने दिन आप बिल्लियों के पीछे भागते रहेंगे? शर्म कीजिये! आख़िर ये बेहूदगी है! जंगली!”

“मैं कहाँ से जंगली हुआ?” मुँह बनाकर शारिकव ने कहा, “मैं कोई जंगली-वंगली नहीं हूँ. क्वार्टर में उसे बर्दाश्त करना नामुमकिन है. बस, सिर्फ़ ढूँढ़ता ही रहता है – कि कैसे कुछ चुरा ले. दार्या का कीमा खा गया. मैं उसे सबक सिखाना चाहता था.”

“आपको ख़ुद ही सीखने की ज़रूरत है!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा, “आप ज़रा आईने में अपनी शकल देखिये.”

“मेरी तो आँख ही चली गई थी,” आँख को गंदे, गीले हाथ से छूते हुए शारिकव ने उदासी से कहा.

जब नमी से काला पड़ गया लकड़ी का फ़र्श कुछ सूखा, सारे आईने घनी भाप से ढँक गये और घंटियाँ भी रुक गईं. फ़िलिप फ़िलीपविच लाल, नरम जूतों में प्रवेश कक्ष में खड़ा था.
“ये आपके लिये
, फ़्योदर.”

“बहुत, बहुत शुक्रिया.”

“फ़ौरन कपड़े बदल लो. हाँ और एक बात : दार्या पित्रोव्ना के पास जाकर वोद्का पी लो.”

“बहुत बहुत शुक्रिया,” फ़्योदर कुछ हिचकिचाया, फिर बोला, “कुछ और बात भी है, फ़िलिप फ़िलीपविच. माफ़ी चाहता हूँ, मुझे शर्म भी आ रही है.

सिर्फ – सातवें क्वार्टर में काँच के लिये...नागरिक शारिकव ने पत्थर फ़ेंके थे...”

“बिल्ले पर?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने गरजते हुए बादल की तरह त्यौरियाँ चढ़ाकर पूछा.

“कुछ-तो, क्वार्टर के मालिक पर. उसने मुकदमा करने की धमकी दी है.”

“शैतान!”

“उनकी रसोईन को शारिकव ने गले लगा लिया, और वह उसे भगाने लगा. तो, शायद, उनके बीच झगड़ा हो गया.”

“ख़ुदा के लिये, ऐसी बातों के बारे में आप मुझे हमेशा फ़ौरन बतायें! कितना चाहिये?”

“डेढ़.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने पचास-पचास कोपेक के तीन चमचमाते सिक्के निकाले और उन्हें फ़्योदर को दे दिया.

“और ऐसे कमीने के लिये डेढ़ रूबल देना पड़ता है,” दरवाज़े से खोखली आवाज़ सुनाई दी, “वह ख़ुद ही...”

फ़िलिप फ़िलीपविच पीछे मुड़ा, उसने अपना होंठ चबाया और ख़ामोशी से शारिकव को दबाया, उसे स्वागत-कक्ष में धकेला और ताला बंद कर दिया. शारिकव फ़ौरन मुट्ठियों से दरवाज़ा भड़भड़ाने लगा.

“हिम्मत न करना,” स्पष्ट रूप से बीमार आवाज़ में फ़िलिप फ़िलीपविच चिल्लाया.

“ये तो, वाकई में ,” फ़्योदर ने भेदभरे अंदाज़ में कहा, “ऐसा बेशर्म तो मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं देखा.”

अचानक बर्मेन्ताल प्रकट हुआ, जैसे ज़मीन से निकला हो.

“फ़िलिप फ़िलीपविच, विनती करता हूँ, प्लीज़ परेशान न हों.”

फुर्तीले डॉक्टर ने स्वागत कक्ष का  दरवाज़ा खोला और वहाँ से उसकी आवाज़ सुनाई दे रही थी:

“ये आप कर क्या रहे हैं? शराबखाने में हैं क्या?”

“ये बात है...: फ़्योदर ने निर्णायक ढंग से कहा, “ ये ऐसा ही होना चाहिये...कान के नीचे भी एक जड़ना चाहिये...”

“क्या कह रहे हो, फ़्योदर,” फिलिप फ़िलीपविच दयनीयता से बुदबुदाया.

“माफ़ कीजिये, आपके ऊपर दया आती है, फ़िलिप फ़िलीपविच.”

 

अध्याय 7

“नहीं, नहीं और बिल्कुल नहीं!” बर्मेन्ताल अपनी बात पर अड़ा था. “मेहेरबानी से अपना नैपकिन ठीक से टाँकिये.”

“आह, क्या मुसीबत है, ऐ ख़ुदा,” शारिकव अप्रसन्नता से भुनभुनाया.
“धन्यवाद
, डॉक्टर,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने प्यार से कहा, “वर्ना मैं तो हिदायतें देते-देते बेज़ार हो गया था.”

“कुछ भी कर लो, जब तक ढंग से नैपकिन नहीं लगाते, खाने नहीं दूँगा. ज़ीना, शारिकव के हाथ से मेयोनेज़ ले लो.”

“ये ले लोका क्या मतलब है?” शारिकव चिढ़ गया, “मैं फ़ौरन लगाता हूँ.”

बायें हाथ से ज़ीना से प्लेट को बचाते हुए, उसने दाएँ हाथ से नैपकिन को कॉलर में घुसाया और हेयरकटिंग सैलून में ग्राहक की तरह दिखाई देने लगा.

“और कांटे से, प्लीज़,” बर्मेन्ताल ने आगे कहा. 

शारिकव ने एक लम्बी साँस ली और गाढ़े सूप में से स्टर्जन के टुकड़े ढूँढ़ने लगा.

“मैं और वोद्का पी सकता हूँ?” उसने प्रश्नार्थक अंदाज़ में ज़ाहिर कर दिया.

“आपको नुक्सान तो नहीं होगा?” बर्मेन्ताल ने पूछा, “पिछले कुछ समय से आप काफ़ी वोद्का पी रहे हैं.”

“आपको अफ़सोस हो रहा है?” शारिकव ने पूछा और कनखियों से उसकी ओर देखा.

“बकवास करते हैं...” फ़िलिप फ़िलीपविच ने गंभीरता से दखल देते हुए कहा, मगर बर्मेन्ताल ने उसकी बात काटी.

“आप परेशान न हों, फ़िलिप फ़िलीपविच, मैं ख़ुद संभाल लूँगा. आप, शारिकव, फ़िज़ूल की बात कर रहे हैं और सबसे ज़्यादा अपमानजनक बात यह है कि आप इसे एकदम बेधड़क और पूरे विश्वास के साथ कहते हैं. मुझे, बेशक, वोद्का के लिये कोई अफ़सोस नहीं है, ख़ास तौर से इसलिये कि वह मेरी नहीं, बल्कि फ़िलिप फ़िलीपविच की है. सिर्फ – वह नुक्सान करती है. ये – पहली बात, और दूसरी – आप बगैर वोद्का के भी असभ्यता से बर्ताव करते हैं.”

बर्मेन्ताल ने चिपकाये गये साइड-बोर्ड की ओर इशारा किया.

“ज़ीनूश्का, मुझे थोड़ी और मछली दो,” प्रोफेसर ने कहा.

इस बीच शारिकव ने सुराही की तरफ़ हाथ बढ़ाया और बर्मेन्ताल पर तिरछी नज़र डालकर, जाम में वोद्का डाली.

“औरों को भी पेश करना चाहिये,” बर्मेन्ताल ने कहा, “और ऐसे: पहले फ़िलिप फ़िलीपविच को, फिर मुझे, और आख़िर में ख़ुद को.”

मुश्किल से नज़र आ रही व्यंग्यात्मक मुस्कान शारिकव के मुँह को छू गई, और उसने जामों में वोद्का डाली.

“आपके यहाँ सब कुछ परेड जैसे होता है,” उसने कहा, “नैपकिन – उधर, टाई – इधर, और “माफ़ कीजिये”, और “प्लीज़-मर्सी”, और ये वास्तव में होता हो – ऐसा नहीं है. अपने आप को तकलीफ़ देते हैं, जैसे त्सार के ज़माने में होता था.” 

“और ये “वास्तव में” का क्या मतलब है जानने की इजाज़त दीजिये.”

शारिकव ने फ़िलिप फ़िलीपविच को इस पर कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि जाम उठाया और बोला:

“तो, चाहता हूँ कि सब...”

“और आपको भी,” कुछ व्यंग्य से बर्मेन्ताल ने फ़िकरा कसा.

शारिकव ने जाम में पड़ी हुई वोद्का एक घूँट में गले में उछाल दी, त्यौरियाँ चढ़ाईं, ब्रेड का टुकड़ा नाक के पास ले गया, सूंघा, और उसके बाद उसे निगल गया, ऐसा करते हुए उसकी आँखें आँसुओं से लबालब भर गईं.

“ये भी एक दौर है,” अचानक रुक-रुक कर और जैसे खोये-खोये अंदाज़ में फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा.

बर्मेन्ताल ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा.

“माफ़ी चाहता हूँ...”

“दौर!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने दोहराया और अफ़सोस के साथ सिर हिलाया, “इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकते – क्लीम.”

बर्मेन्ताल ने बेहद दिलचस्पी से एकटक फ़िलिप फ़िलीपविच की आँखों में देखा :

“आप ऐसा सोचते हैं, फ़िलिप फ़िलीपविच?”

“सोचने का सवाल ही नहीं है, मुझे इसमें पूरा यकीन है.”

“क्या वाकई में...” बर्मेन्ताल ने कहना शुरू किया और शारिकव की ओर देखकर रुक गया.

वह सन्देह से नाक-भौंह चढ़ा रहा था.

“बाद में...” फ़िलिप फ़िलीपविच ने धीरे से कहा.

“अच्छा” सहायक ने कहा.

ज़ीना टर्की लाई. बर्मेन्ताल ने फ़िलिप फ़िलीपविच के जाम में रेड-वाईन डाली और शारिकव को भी पेश की.

“मुझे नहीं चाहिये. इससे अच्छा तो मैं वोद्का पिऊँगा.” उसका चेहरा तैलीय हो गया, माथे पर पसीना झलक आया, वह प्रसन्न हो गया. वाईन के बाद फ़िलिप फ़िलीपविच भी कुछ ख़ुश हो गया. उसकी आँखें चमकने लगीं, वह ज़्यादा नर्मी से शारिकव की ओर देखने लगा, नैपकिन में उसका काला सिर इस तरह चमक रहा था, जैसे दही में मक्खी गिरी हो.

बर्मेन्ताल ने कुछ ताज़ा-तरीन होकर, कुछ करने का फ़ैसला किया.

“तो, आज शाम को हम दोनों क्या करने वाले हैं?” उसने शारिकव से पूछा.

उसने आँखें झपकाईं, जवाब दिया:

“सर्कस जायेंगे, सबसे बढ़िया रहेगा.”

“हर रोज़ सर्कस,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने भलमनसाहत से कहा, “मेरे ख़याल से, ये काफ़ी बोरिंग है. आपकी जगह यदि मैं होता, तो कम से कम एक बार ज़रूर थियेटर जाता.”

“थियेटर मैं नहीं जाऊँगा,” शारिकव ने अप्रियता से कहा और मुँह टेढ़ा किया.

“मेज़ पर हिचकियाँ लेने से औरों की भूख ख़त्म हो जाती है,” बर्मेन्ताल ने यंत्रवत् कहा. “आप मुझे माफ़ कीजिये...आपको, आख़िर क्यों, थियेटर पसन्द नहीं है?”

शारिकव ने ख़ाली जाम की ओर इस तरह देखा जैसे दूरबीन में देख रहा हो, थोड़ी देर सोचा और होंठ आगे की ओर निकाले और बोला:
“बेवकूफ़ होने का ढोंग करते हैं... बातें करते रहते हैं
, करते रहते हैं...सिर्फ प्रति-क्रांति.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने अपनी कुर्सी की गोथिक पीठ से टिककर इस तरह ठहाका लगाय कि उसके मुँह के भीतर सुनहरी पट्टी चमक उठी. बर्मेन्ताल ने सिर्फ सिर हिलाया.

“आप कुछ पढ़ ही लेते,” उसने सुझाव दिया, “वर्ना, जानते हैं...”

“पढ़ता हूँ, पढ़ता ही रहता हूँ...” शारिकव ने जवाब दिया और हिंस्त्र भाव से वोद्का से अपना आधा गिलास भर दिया.

“ज़ीना,” फ़िलिप फ़िलीपविच उत्तेजना से चिल्लाया, “बच्ची, वोद्का हटा लो, अब इसकी ज़रूरत नहीं है. आप आख़िर क्या पढ़ते हैं?”             

उसके दिमाग़ में अचानक एक तस्वीर कौंध गई: सुनसान टापू, चीड़ का पेड़, जानवर की खाल और टोप पहना आदमी. :ये रोबिन्सन होगा”...

“ये...क्या कहते हैं...एजेल्स का पत्र व्यवहार इस...क्या कहते हैं उसे – शैतान को – काऊत्स्की के साथ.”

बर्मेन्ताल ने सफ़ेद माँस का टुकड़ा टंका फोर्क आधे में ही रोक दिया, और फ़िलिप फ़िलीपविच के मुँह से वाईन का फ़व्वारा निकल गया.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने कुहनियाँ मेज़ पर रखीं, शारिकव को ग़ौर से देखा और पूछा:

“कृपया यह बताने का कष्ट करें कि आप अपने पढ़े हुए के बारे में क्या कह सकते हैं.”

शारिकव ने कंधे उचका दिये.

“हाँ, मैं सहमत नहीं हूँ.”

“किससे? एन्जेल्स से या काऊत्स्की से?”

“दोनों से,” शारिकव ने जवाब दिया.

“ये ग़ज़ब की बात है, ख़ुदा की कसम. “ सबको, जो कहेगा कि दूसरा...” और आप अपनी ओर से क्या सुझाव देंगे?”

“उसमें क्या सुझाव देना है?...वो तो लिखते हैं, लिखते हैं...काँग्रेस, कोई जर्मन्स...दिमाग़ सूज जाता है. सब ले लो, और सब में बांट दो...”

“मैंने ऐसा ही सोचा था,” मेज़पोश पर हथेली मारते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चहका, “बिल्कुल ऐसा ही मैं समझ रहा था.”

“आप तरीका भी जानते हैं?” बर्मेन्ताल ने दिलचस्पी लेते हुए पूछा.

“क्या तरीका है वहाँ,” वोद्का पीने के बाद बातूनी हो गए शारिकव ने समझाया, “ये कोई चालाकी वाला काम नहीं है. वर्ना ये क्या बात हुई: एक अकेला आदमी सात कमरों में बस गया है, उसके पास चालीस जोड़ी पतलून हैं, और दूसरा आवारा भटकता है, कचरे के ढेरों में खाना ढूँढ़ता है.”

“सात कमरों के बारे में – ये आप, बेशक, मेरी ओर इशारा कर रहे हैं?” गर्व से आँखें सिकोड़ते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा. 

शारिकव सिकुड़ गया और चुप हो गया.

“ठीक है, अच्छी बात है, मैं सब में बांटने के ख़िलाफ़ नहीं हूँ. डॉक्टर, कल आपने कितने मरीज़ों को मना किया था?”

“उनतालीस लोगों को,” बर्मेन्ताल ने फ़ौरन जवाब दिया.

“हुम्म...तीन सौ नब्बे रूबल्स. तो, तीन मर्दों पर इसकी ज़िम्मेदारी है. महिलाओं – ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना - को नहीं गिनेंगे. आपसे, एक सौ तीस रूबल्स. देने की मेहेरबानी कीजिये.”

“ये अच्छा काम है,” शारिकव ने घबराकर जवाब दिया, “ये किसलिये?”

“नल के लिये और बिल्ले के लिये,” अचानक अपनी व्यंग्यात्मक शांति की स्थिति से बाहर आकर फ़िलिप फ़िलीपविच गरजा.

“फ़िलिप फ़िलीपविच,” बर्मेन्ताल उत्तेजना से चहका.

“रुकिये. उस हंगामे के लिये, जो आपने किया था और जिसकी वजह से मरीज़ों को इनकार करना पड़ा. ये बर्दाश्त से बाहर है. आदमी, आदिम मानव की तरह, पूरे क्वार्टर में उछलता है, नल तोड़ता है. मैडम पलासूखेर के यहाँ बिल्ली को किसने मार डाला? किसने....”

“आपने, शारिकव, परसों सीढ़ियों पर महिला को काट लिया,” बर्मेन्ताल टपक पड़ा.

“आपको तो...” फ़िलिप फ़िलीपविच गरजा.

“हाँ, उसने मेरे थोबड़े पे झापड़ मारा”, - शारिकव चिल्लाया, “मेरा थोबड़ा सरकारी नहीं है!”

“क्योंकि आपने उसके सीने पर चिमटी काटी थी,” जाम पर टकटक करते हुए बर्मेन्ताल चीख़ा, “आपको तो...”

“आप विकास की सबसे निचली सीढ़ी पर खड़े हैं,” फ़िलिप फ़िलीपविच और भी ज़ोर से चीख़ा, “आप अभी सिर्फ निर्माण की स्थिति में हैं, मानसिक रूप से कमज़ोर प्राणी, आपके सभी कार्यकलाप बिल्कुल जानवरों जैसे हैं, और आप दो युनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त लोगों के सामने ऐसी बेतकल्लुफ़ी से, जो बर्दाश्त से बाहर है, ब्रह्माण्ड के स्तर की सलाह देते हैं, जो ब्रह्माण्ड के ही स्तर की मूर्खतापूर्ण है, कि कैसे हर चीज़ का विभाजन किया जाये...मगर उसी समय आपने टूथपेस्ट गटक ली...”

“परसों,” बर्मेन्ताल ने पुष्टि की.

“और,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कड़कते हुए कहा, “हमेशा के लिये याद रखो, वैसे, तुमने अपनी नाक से ज़िंक का ऑइन्टमेन्ट क्यों पोंछ दिया? – याद रखो कि आपको ख़ामोश रहना और सुनना चाहिये, जो आपसे कहा जा रहा है. सीखना है और समाजवादी समाज का स्वीकार्य सदस्य बनने की कोशिश करना है. वैसे, किस बदमाश ने आपको ये किताब दी थी?”

“आपके लिये तो सभी बदमाश हैं,” दोनों तरफ़ से हो रहे हमलों से सहम कर शारिकव ने जवाब दिया.

मैं अन्दाज़ लगा रहा हूँ,” गुस्से से लाल होते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चहका.

“हाँ, तो क्या. हाँ, श्वेन्देर ने दी है. वह बदमाश नहीं है...मैं अपना विकास कर रहा था...”

“मैं देख रहा हूँ, कि काऊत्स्की के बाद आप किस तरह से अपना विकास कर रहे हैं,” पीला पड़ चुका फ़िलिप फ़िलीपविच चिरचिरी आवाज़ में चीख़ा. उसने फ़ौरन तैश से दीवार में लगी घंटी बजाई. आज की घटना ने इसे बहुत अच्छी तरह साबित कर दिया है. ज़ीना!”

“ज़ीना!” बर्मेन्ताल चीख़ा.

“ज़ीना!” भयभीत शारिकव गरजा.

घबराहट से विवर्ण ज़ीना भागते हुए आई.

“ज़ीना, वहाँ स्वागत-कक्ष में...वह स्वागत-कक्ष में है?”

“स्वागत-कक्ष में,” शारिकव ने नम्रता से जवाब दिया, “हरी, तूतिया (कॉपर सल्फेट – अनु.) जैसी.

“हरी किताब...”

“तो, उसे फ़ौरन जला दो,” शारिकव बदहवासी से चिल्लाया, “वो सरकारी है, लाइब्रेरी से!”

“पत्र-व्यवहार – नाम है, क्या कहते हैं उसे...एंजेल्स का इस शैतान के साथ...उसे भट्टी में फेंक दे!”

ज़ीना फ़ौरन भागी.

मैं इस श्वोन्देर को लटका देता, ईमानदारी से कहता हूँ, पहली ही डाल पर,” तैश से टर्की का पर चूसते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चीखा, “बैठा है ग़ज़ब का कचरा बिल्डिंग में – पके हुए फ़ोड़े की तरह. ऊपर से वह अख़बारों में हर तरह की फ़िज़ूल की, अपमानजनक बातें लिखता है...”

शारिकव कटुता और व्यंग्य से प्रोफ़ेसर की ओर देखने लगा. फ़िलिप फ़िलीपविच ने भी उसे तिरछी नज़र से देखा और ख़ामोश हो गया.

ओह, लगता है, हमारे क्वार्टर में कुछ भी अच्छा नहीं होगा’, अचानक बर्मेन्ताल ने भविष्यवक्ता के अंदाज़ में सोचा.

ज़ीना एक गोल प्लेट में दाईं ओर से लाल और बाईं ओर से भूरी केक और कॉफ़ी-पॉट लाई.

“मैं इसे नहीं खाऊँगा,” अचानक धमकीभरे- शत्रुतापूर्ण लहज़े में शारिकव ने घोषणा की.

“कोई आपसे कह भी नहीं रहा है. सलीके से बैठो. डॉक्टर, प्लीज़, लीजिये.”

ख़ामोशी से खाना ख़त्म हुआ.

शारिकव ने जेब से एक मुड़ी-तुड़ी सिगरेट बाहर निकाली और उसे जलाया. कॉफ़ी पीने के बाद फ़िलिप फ़िलीपविच ने घड़ी पर नज़र डाली, रिपीटर को दबाया और उसने हौले से सवा आठ बजाया. फ़िलिप फ़िलीपविच आदत के मुताबिक अपनी कुर्सी की गोथिक पीट से टिक गया और उसने छोटी-सी मेज़ पर पड़े अख़बार की ओर हाथ बढ़ाया.

“डॉक्टर, आपसे विनती करता हूँ, प्लीज़ उसके साथ सर्कस जाईये. सिर्फ़, ख़ुदा की ख़ातिर, प्रोग्राम में देख लीजिये – बिल्लियाँ तो नहीं हैं?”

“ऐसे हरामी को सर्कस में आने कैसे देते हैं,” शारिकव सिर हिलाते हुए ठुनठुनाया.

“”ख़ैर, पता भी नहीं चलता कि वहाँ किस-किसको आने देते हैं,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने संदिग्ध उत्तर दिया, “क्या है उनके पास?”

“सलमोन्स्की के यहाँ,” बर्मेन्ताल पढ़ने लगा, “कोई चार...युसेम्स और मृत बिंदु का आदमी.”

“ये युसेम्स क्या है?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने संदेह से पूछा.            

“ख़ुदा ही उन्हें जाने. पहली बार यह लब्ज़ सुन रहा हूँ.”

“ख़ैर, तब निकीतिनों के पास देखिये. ये ज़रूरी है कि सब कुछ स्पष्ट हो.”

“निकीतिनों के पास...निकीतिनों के पास...हुम्...हाथी और इन्सानों की बेहद ख़ूबसूरत कलाबाज़ियाँ.”

“ठीक है. हाथियों के बारे में आप क्या कहते हैं, डियर शारिकव?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने अविश्वास से पूछा.

वह बुरा मान गया.

“ये क्या है, क्या मैं समझता नहीं हूँ. बिल्ला- और बात है. हाथी – उपयोगी जानवर हैं,” शारिकव ने जवाब दिया.

ठीक है और बढ़िया. अगर उपयोगी हैं तो जाईये और उन्हें देखिये. इवान अर्नोल्दविच की बात मानना ज़रूरी है. और वहाँ बुफ़े में किसी भी तरह की बातचीत में नहीं कूदना है! इवान अर्नोल्दविच, तहे दिल से विनती करता हूँ कि शारिकव को बिअरन दें.”

दस मिनट बाद इवान अर्नोल्दविच और, बत्तख की नाक जैसी टोपी और उभरे हुए कॉलर वाले ड्रेप कोट में शारिकव सर्कस चले गये. क्वार्टर में सन्नाटा छा गया. फ़िलिप फ़िलीपविच अपने अध्ययन कक्ष में आया. उसने भारी हरे शेड वाला लैम्प जलाया, जिससे उस विशाल अध्ययन-कक्ष में बेहद सुकून महसूस होने लगा, और वह कमरे में चहल कदमी करने लगा. हल्के-हरे रंग की रोशनी से सिगार का सिरा देर तक गर्माहट से चमकता रहा.

प्रोफ़ेसर ने हाथ पतलून की जेबों में घुसाए और एक गंभीर विचार उसके गंजे हो रहे वैज्ञानिक माथे पर शिकन डालते रहे. वह बार-बार अपने होठों पर जीभ फ़ेरता, भिंचे हुए दांतों से “पवित्र नील के किनारों की ओर...” गा रहा था. और कुछ बड़बड़ा रहा था. आख़िरकार, उसने सिगार को ऐश-ट्रे में रख दिया, काँच वाली अलमारी की ओर आया, और छत से तीन तेज़ रोशनी वाले बल्बों से पूरे अध्ययन-कक्ष को रोशन कर दिया. अलमारी से, काँच की तीसरी शेल्फ से फ़िलिप फ़िलीपविच ने एक तंग जार निकाला और नाक-भौंह चढ़ाकर रोशनी में उसे ग़ौर से देखने लगा. पारदर्शक और गाढ़े द्रव में, तली पर न गिरते हुए, एक छोटा-सा सफ़ेद टुकड़ा तैर रहा था, जो शारिकव के मस्तिष्क की गहराई से निकाला गया था. कंधे सिकोड़ते हुए, होंठों को टेढ़ा करते हुए और हुम्-हुम् करते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच उसे आँखों से पीता रहा, जैसे इस सफ़ेद तैरते हुए टुकड़े में आश्चर्यजनक घटनाओं का कारण ढूँढ़ना चाहता हो, जिन्होंने प्रिचिस्तेन्का के क्वार्टर में ज़िंदगी को उलट-पुलट कर दिया था.

काफ़ी संभव है कि इस उच्च शिक्षित व्यक्ति ने उसे ढूढ़ भी लिया हो. कम से कम, काफ़ी देर तक मस्तिष्क के उस उपांग को जी भरके देखने के बाद उसने जार को अलमारी में छुपा दिया, उस पर ताला लगा दिया. चाभी को जैकेट की जेब में रख दिया, और ख़ुद कंधों के बीच अपना सिर दबाये, हाथों को जैकेट की जेबों में गहरे घुसाए चमड़े के दीवान में धंस गया. वह बड़ी देर तक दूसरी सिगार फूँकता रहा, उसके सिरे को भी चबा गया, और, आख़िरकार, पूरी तनहाई में, हरे रंग से प्रकाशित, बूढ़े फ़ाऊस्ट जैसा, चहका:

“ऐ ख़ुदा, मैं, शायद, फ़ैसला कर लूँगा.”

इस बात का उसे किसी ने भी जवाब नहीं दिया. क्वार्टर में सभी तरह की आवाज़ें बंद हो गईं. जैसा कि सबको पता है, ओबुखवा स्ट्रीट पर रात के ग्यारह बजे ट्रैफ़िक ख़त्म हो जाता है. कभी-कभार देर से लौट रहे पैदल चलने वाले व्यक्ति के कदमों की आवाज़ें आ रही थीं, वे दूर कहीं परदों के पीछे टक-टक करतीं और ख़त्म हो जातीं. अधययन कक्ष में फ़िलिप फ़िलीपविच की जेब में उँगलियों के नीचे रिपीटर की नाज़ुक आवाज़ आई...प्रोफ़ेसर बेसब्री से डॉक्टर बर्मेन्ताल और शारिकव के सर्कस से लौटने का इंतज़ार कर रहा था.

 

 

अध्याय – 8

 

पता नहीं कि फ़िलिप फ़िलीपविच ने क्या फ़ैसला किया था. अगले हफ़्ते उसने कोई विशेष काम नहीं किया और, हो सकता है कि उसकी निष्क्रियता के कारण क्वार्टर की ज़िंदगी में घटनाओं की जैसे बाढ़ आ गई.

पानी और बिल्ले वाले किस्से के छह दिन बाद शारिकव के पास हाऊसिंग कमिटी से एक नौजवान आया, जो एक युवती थी, और उसे कुछ कागज़ात थमाये, जिन्हें शारिकव ने फ़ौरन जेब में छुपा लिया और इसके फ़ौरन बाद उसने डॉक्टर बर्मेन्ताल को पुकारा.

“बर्मेन्ताल!”

“नही, कृपया आप मुझे नाम और पिता के नाम से पुकारिये!” बर्मेन्ताल ने कहा जिसके चेहरे के भाव बदल रहे थे.

इस बात पर ग़ौर करना होगा कि इन छह दिनों में सर्जन ने अपने पाल्य के साथ आठ बार झगड़ा किया था. और ओबुखवा पर स्थित कमरों में घुटन का वातावरण था.

“तो, आप भी मुझे अपने नाम और पिता के नाम से बुलाइये!: शारिकव ने पूरी तरह तार्किक जवाब दिया.

“नहीं! ” फ़िलिप फ़िलीपविच दरवाज़े से गरजा, “मेरे क्वार्टर में ऐसे नाम और पिता के नाम से बुलाने की इजाज़त मैं आपको नहीं दूँगा. अगर आप चाहते हैं कि आपको घनिष्ठता से “शारिकव” कहकर न बुलाया जाये तो मैं और डॉक्टर बर्मेन्ताल आपको “शारिकव महाशय” कहकर बुलाया करेंगे.”

“मैं महाशय नहीं हूँ, सारे महाशय पैरिस में हैं!” शारिकव भौंका.

“श्वोन्देर का काम है!” फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा, “ख़ैर, ठीक है, इस बदमाश से तो मैं निपट लूँगा. जब तक मैं हूँ, तब तक मेरे क्वार्टर में “महाश्य” के अलावा और कोई नहीं होगा! विपरीत स्थिति में या तो मैं या आप यहाँ से चले जायेंगे और, ख़ासकर, ये आप ही होंग़े. आज मैं अख़बारों में इश्तेहार दूँगा, और, यकीन कीजिये, मैं आपके लिये कोई कमरा ढूँढ़ लूंगा.”

“हाँ, मैं क्या इतना बेवकूफ़ हूँ कि यहाँ से निकल जाऊँगा,” बिल्कुल स्पष्टता से शारिकव ने जवाब दिया.       

“क्या?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा और उसका चेहरा इतना बदल गया कि बर्मेन्ताल उसके पास लपका और हौले से और चिंता से उसकी आस्तीन पकड़कर उसे थाम लिया.

“आप, देखिये, मिस्टर शारिकव, गुण्डागर्दी मत कीजिये!” बर्मेन्ताल अपनी आवाज़ खूब चढ़ाकर बोला. शारिकव पीछे हटा, उसने जेब से तीन कागज़ निकाले : हरा, पीला और सफ़ेद और उनमें उँगलियाँ गड़ाकर बोला:

“देखिये. मैं हाऊसिंग कमिटी का मेम्बर हूँ और मुझे क्वार्टर नंबर पाँच में ज़िम्मेदार किरायेदार प्रिअब्राझेन्स्की के यहाँ सोलह वर्ग आर्शिन (1 आर्शिन=.71 मीटर्स - अनु.) क्षेत्रफ़ल का अधिकार है,” शारिकव ने थोड़ी देर सोचकर कोई शब्द जोड़ा जिसे बर्मेन्ताल ने यंत्रवत् अपने दिमाग़ में नई तरह का “प्लीज़” समझ कर बिठा लिया.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने अपना होंठ काट लिया और असावधानी से बुदबुदाकर कहा:

“कसम खाता हूँ, कि मैं एक दिन इस श्वोन्देर को गोली मार दूँगा.”

शारिकव ने बेहद ध्यान से और तीक्ष्णता से इन शब्दों को ग्रहण किया, जो उसकी आँखों से ज़ाहिर हो रहा था.

“फ़िलिप फ़िलीपविच, सावधान...” बर्मेन्ताल ने आगाह किया.

“अच्छा, ये बात जान लोअगर अभी से ऐसा कमीनापन है तो!”...फ़िलिप फ़िलीपविच रूसी में चीखा. “ध्यान रखना, शारिकव...महाशय, कि अगर आपने एक बार और बदतमीज़ी की तो, मैं आपका खाना बंद कर दूँगा और आम तौर से मेरे घर में किसी भी तरह का खाना-पीना. 16 आर्शिन – ये बढ़िया है, मगर इस फ़ूहड़ कागज़ के आधार पर मैं आपको खाना खिलाने के लिये मजबूर नहीं हूँ!”

अब शारिकव डर गया और उसने अपना मुँह थोड़ा सा खोला.

“मैं बिना खाने के नहीं रह सकता,” वह बड़बड़ाया, “मैं कहाँ अपना पेट भरूँगा?”

“तब सलीके से पेश आईये!” दोनों डॉक्टर एक सुर में बोले.  

शारिकव काफ़ी शांत हो गया और उस दिन उसने किसी को कोई नुक्सान नहीं पहुँचाया, सिवाय अपने आप के : कुछ समय के लिये बर्मेन्ताल की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर उसने डॉक्टर के रेज़र पर कब्ज़ा कर लिया और अपने गालों की हड्डियों को इस कदर छील दिया कि फ़िलिप फ़िलीपविच और डॉक्टर बर्मेन्ताल को घाव पर टांके लगाने पड़े, जिससे शारिकव बड़ी देर तक आँसू बहाते हुए बिलखता रहा.

अगली रात को प्रोफ़ेसर के अध्ययन-कक्ष में हरे-धुँधलके में दो लोग बैठे थे – ख़ुद फ़िलिप फ़िलीपविच और विश्वासपात्र, उसका घनिष्ठ सहयोगी - बर्मेन्ताल. घर में सब लोग सो चुके थे. फ़िलिप फ़िलीपविच अपने आसमानी रंग के ड्रेसिंग गाऊन और लाल स्लिपर्स में था, और बर्मेन्ताल कमीज़ और नीली गेलिस में. दोनों डॉक्टरों के बीच गोल मेज़ पर मोटे एल्बम की बगल में कन्याक की बोतल रखी थी, प्लेट में नींबू और सिगार का डिब्बा था. वैज्ञानिकों ने पूरे कमरे में धुँआ भर दिया था, वे हाल ही की घटनाओं पर ज़ोरदार बहस कर रहे थे : इस शाम को शारिकव ने फ़िलिप फ़िलीपविच के अध्ययन–कक्ष में पेपरवेट के नीचे रखे दस-दस रूबल्स के दो नोट चुरा लिये, क्वार्टर से ग़ायब हो गया, और पूरी तरह नशे में धुत् देर से वापस लौटा. ये भी कम था. उसके साथ दो अनजान प्राणी थे, जो प्रवेशद्वार की सीढ़ियों पर शोर मचा रहे थे और शारिकव के पास रात बिताना चाह रहे थे. वे व्यक्ति सिर्फ तभी गये जब फ़्योदर ने, जो इस नाटक के दौरान अंतर्वस्त्रों पर कोट पहने था, पुलिस के 45वें विभाग में फ़ोन कर दिया. जैसे ही फ़्योदर ने रिसीवर वापस रखा, वे प्राणी फ़ौरन ग़ायब हो गये. पता नहीं कि उन प्राणियों के जाने के बाद  प्रवेश-कक्ष से आईने पर रखी मेलाकाइट की ऐश-ट्रे, फ़िलिप फ़िलीपविच की ऊदबिलाव की टोपी और उसी की छड़ी, जिसकी मूठ पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था: “प्रिय और आदरणीय फ़िलिप फ़िलीपविच को कृतज्ञ रेज़िडेन्ट डॉक्टर्स की ओर से... दिन पर” आगे रोमन अंक XXV था.

“कौन थे वो?” फ़िलिप फ़िलीपविच मुट्ठियाँ बांधकर शारिकव पर झपटा.

वह लड़खड़ाते हुए और ओवरकोटों से चिपकते हुए बड़बड़ाया कि वह उन प्राणियों को नहीं जानता, कि वे कोई हरामी नहीं है, बल्कि – अच्छे हैं.

“सबसे ज़्यादा अचरज की बात यह है कि वे दोनों नशे में धुत् थे... वे ऐसी चालाकी कैसे कर सके?” फ़िलिप फ़िलीपविच स्टैण्ड पर खाली जगह देखकर आहत हुआ, जहाँ जुबिली की यादगार थी.

“उस्ताद थे,” फ़्योदर ने रूबल को जेब में रखकर सोने के लिये जाते हुए कहा.

दस-दस के दो नोट चुराने वाली बात से शारिकव ने साफ़ इनकार कर दिया और कुछ ऐसा अस्पष्ट-सा बोल गया, जैसे क्वार्टर में वह अकेला ही नहीं रहता है.

“आहा, हो सकता है, कि डॉक्टर बर्मेन्ताल ने नोट ग़ायब किये हों?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने शांत मगर भयानक अंदाज़ में पूछा.  

शारिकव लड़खड़ा गया, उसने अपनी सुस्त आँखें पूरी तरह खोलीं और अपना अंनुमान बताया:
“हो सकता है
, कि ज़ीन्का ने उठाये हों...”

“क्या?...” ज़ीना चीख़ी, जो सीने पर खुले हुए ब्लाऊज़ को हथेली से ढाँकते हुए, भूत की तरह दरवाज़े में प्रकट हुई थी, “वो ऐसा कैसे ...”

फ़िलिप फ़िलीपविच की गर्दन पर लाल रंग उतर आया.

“शांत, ज़ीनुश्का,” उसने उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए प्रार्थना की, “परेशान न हो, हम यह सब ठीक कर देंगे.”

ज़ीना फ़ौरन होंठ खोलकर बिसूरने लगी, और उसकी हथेली हँसुली पर उछलने लगी.

“ज़ीना, आपको शर्म नहीं आती? ऐसी बात भला कौन सोच सकता है? छिः, कैसी शर्मनाक बात है!” बर्मेन्ताल ने हैरानी से कहा.

“ओह, ज़ीना, तू – बेवकूफ़ है, माफ़ करना ऐ ख़ुदा,” फ़िलिप फ़िलीपाविच ने कहा.

मगर तभी ज़ीना का रोना अपने आप रुक गया और सब ख़ामोश हो गये. शारिकव की तबियत बिगड़ रही थी. उसका सिर दीवार से टकराया और उसके गले से आवाज़ निकली – कुछ “ई” जैसी, कुछ – “ऐ” जैसी – “एएए!” जैसी. उसका चेहरा विवर्ण हो गया और जबड़ा थरथराने लगा.
“उसे बाल्टी दो
, बदमाश को, जाँच-कक्ष से लाओ!”

और, बीमार शारिकव की ख़िदमत करने के लिये सब भागे. जब उसे सुलाने के लिये ले जा रहे थे, तो वह, बर्मेन्ताल की बाँहों में लड़खड़ाते हुए, बेहद प्यार से और सुरीली आवाज़ में, मुश्किल से बोलते हुए, गालियाँ दे रहा था.

यह सब किस्सा हुआ था करीब एक बजे, और अब रात के 3 बज रहे थे, मगर अध्ययन-कक्ष में कन्याक और नींबू से चिपके हुए वे दोनों जोश में थे. धूम्रपान तो उन्होंने इतना किया था कि धुँआ घनी पर्तों में धीरे-धीरे चल रहा था, एकदम समतल, बिना लहरें बनाये.

डॉक्टर बर्मेन्ताल ने विवर्ण मुख और दृढ़ निश्चयी आँखों से पतली डंडी वाला जाम उठाया.

“फ़िलिप फ़िलीपविच,” वह अत्यंत भावुकता से चहका, “मैं कभी नहीं भूल सकता कि कैसे मैं, आधा पेट भूखा रहने वाला स्टूडेंट, आपके पास आया था, और आपने मुझे अपनी देखरेख में फैकल्टी में जगह दे दी थी. यकीन कीजिये, फ़िलिप फ़िलीपविच, आप मेरे लिये प्रोफ़ेसर, शिक्षक  से काफ़ी बढ़कर हैं. आपके लिये मेरे मन में असीम आदर है...प्रिय फ़िलिप फ़िलीपविच, कृपया मुझे आपको चूमने की इजाज़त दीजिये.”

“हाँ, मेरे प्यारे...” व्याकुलता से फ़िलिप फ़िलीपविच बुदबुदाया और मिलने के लिये उठा. बर्मेन्ताल ने उसे बाँहों में लेकर उसकी फूली-फूली, धुँए से बेहद गंधाती मूँछों को चूमा.
“ऐ
, ख़ुदा, फ़्लिप फ़िली...”

“इतना छू लिया मेरे दिल को, इतना छू लिया...शुक्रिया आपका,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा, “प्यारे, कभी-कभी ऑपरेशन करते हुए मैं आपके ऊपर चिल्लाता हूँ. बूढ़े आदमी के गुस्से को माफ़ कर दीजिये. असल में, मैं इतना अकेला हूँ...सेविले से ग्रेनाडा तक...

“फिलिप फिलीपविच, आपको शर्म नहीं आती?...” बर्मेन्ताल वाकई में तैश से भड़क गया, “अगर आप मेरा अपमान नहीं करना चाहते, तो आगे से कभी ऐसा न कहिये...”

“अच्छ, आपका शुक्रिया...पवित्र नील के किनारे... “ धन्यवाद.. मैंने भी आपसे एक होशियार डॉक्टर की तरह प्यार किया है.”

“फ़िलिप फ़िलीपविच, मैं आपसे कहता हूँ!...” भाव विह्वल होकर बर्मेन्ताल चहका, वह अपनी जगह से उठा, कॉरीडोर की ओर जाने वाला दरवाज़ा अच्छी तरह बंद कर दिया, और वापस लौटकर फुसफुसाहट से बोला, - आख़िर ये – एकमेव मार्ग है. मैं. बेशक, आपको सलाह देने की हिम्मत तो नहीं कर सकता, मगर, फ़िलिप फ़िलीपविच अपनी ओर देखिये, आप पूरी तरह थक चुके हैं, आपको बहुत ज़्यादा काम करने की इजाज़त नहीं है!”

“बिल्कुल असंभव है,” गहरी सांस लेकर फ़िलिप फ़िलीपविच ने पुष्टि की.

अच्छा, तो, इस बारे में विचार ही नहीं किया जा सकता”, बर्मेन्ताल फ़ुसफ़ुसाया, “पिछली बार आपने कहा था कि मेरे लिये डरते हैं, अगर आप जानते, प्रिय प्रोफ़ेसर, कि इस बात से आपने कैसे मेरे दिल को छू लिया था. मगर मैं कोई बच्चा नहीं हूँ और ख़ुद भी कल्पना कर सकता हूँ कि ये किस कदर भयानक मज़ाक हो सकता है. मगर मुझे पक्का यकीन है कि दूसरा कोई मार्ग नहीं है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच उठा, उसकी तरफ़ हाथ हिला दिये और चहका:

“मुझे फ़ुसलाईये नहीं, इस बारे में कुछ भी न कहिये,” धुँए के बादलों को हिलाते हुए प्रोफ़ेसर कमरे में चहल-कदमी करने लगा, “मैं सुनूँगा भी नहीं. आप समझ रहे हैं कि अगर हमें लपेट लिया गया तो क्या होगा. हम लोगों को “अपने सामाजिक मूल (यहाँ सामाजिक वर्ग से तात्पर्य है – अनु.) को ध्यान में रखते हुए” – बचना भी संभव नहीं होगा, चाहे यह हमारा पहला ही अपराध क्यों न हो. हमारे पास उपयुक्त मूल नहीं हैं, मेरे प्यारे?”

क्या शैतानियत है! बाप विल्नो में मैजिस्ट्रेट थे,” कन्याक ख़त्म करते हुए बर्मेन्ताल ने अफ़सोस से कहा.           

“देखिये, यह उपयुक्त तो नहीं है. यह तो बुरी अनुवांशिकता है. इससे ज़्यादा बुरी चीज़ की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती. वैसे, माफ़ी चाहता हूँ, मेरी हालत तो और भी बुरी है. बाप – चर्च के सर्वोच्च प्रीस्ट थे. दया करो, ख़ुदा. सेविले से ग्रेनाडा तक...रातों के ख़ामोश साये में ...’. शैतान ले जाये.”   

फ़िलिप फ़िलीपविच, आप – विश्व प्रसिद्ध हस्ती हैं, और किसी, मेरे शब्द प्रयोग को माफ़ करें, हरामी की ख़ातिर...क्या वे आपको छू सकते हैं, माफ़ कीजिये!”

“इसीलिए और भी, मैं यह नहीं करूँगा,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने विचारमग्न होकर, काँच की अलमारी के पास रुककर और उसकी ओर देखते हुए विरोध किया.

“मगर क्यों?”

इसलिये कि आप तो विश्व प्रसिद्ध हस्ती नहीं हैं.”

“मेरा क्या...”

“ये बात है. और आपदा की स्थिति में अपने सहयोगी को छोड़ देना, ख़ुद ही विश्व-प्रसिद्धी के स्तर पर पहुँचना, माफ़ कीजिये...मैं मॉस्को का स्टूडेन्ट हूँ, न कि शारिकव.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने गर्व से कंधे उठाये और वह प्राचीन फ़्रांसीसी सम्राट की तरह दिखाई देने लगा.

“फ़िलिप फ़िलीपविच, ऐह...” बर्मेन्ताल ने अफ़सोस से कहा, “मतलब, किया क्या जाए? क्या  आप इंतज़ार करेंगे, जब तक कि इस गुण्डे-बदमाश को इन्सान बनाने में कामयाब नहीं हो जाते.?”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने हाथ के इशारे से उसे रोका, अपने जाम में कन्याक डाली, एक घूंट भरा, नींबू चूसा और कहने लगा:

“इवान अर्नोल्दविच, क्या आपके हिसाब से मैं, मिसाल के तौर पर, मानव-शरीर के मस्तिष्क की संरचना और उसकी कार्यप्रणाली के बारे में थोड़ा बहुत जानता हूँ? आपकी क्या राय है?”

“फ़िलिप फ़िलीपविच, ये आप क्या पूछ रहे हैं?” अत्यंत भावुकता से बर्मेन्ताल ने जवाब दिया और हाथ हिला दिये.

अच्छा, ठीक है, बिना किसी झूठी नम्रता के. मैं भी मानता हूँ कि इस क्षेत्र में मैं मॉस्को में अंतिम व्यक्ति नहीं हूँ.”

“और मैं मानता हू< कि आप – अव्वल हैं न सिर्फ़ मॉस्को में, बल्कि लंदन में और ऑक्सफोर्ड में भी!” बर्मेन्ताल ने तैश से उसकी बात काटी.

“अच्छा, ठीक है, चलो, ऐसा ही हो. तो फ़िर, भावी प्रोफ़ेसर बर्मेन्ताल, ये कोई नहीं कर पायेगा. बेशक. आप पूछें भी नहीं. बस, मेरा संदर्भ दीजिये, कहिये, प्रिअब्राझेन्स्की ने कहा है. ख़तम. क्लीम!” फ़िलिप फ़िलीपविच अचानक जोश से चहका और अलमारी ने खनखनाते हुए उसे जवाब दिया, “क्लीम,” उसने दुहराया.

“बात ये है, बर्मेन्ताल, कि आप मेरे स्कूल के पहले शिष्य हैं और, इसके अलावा, मेरे दोस्त भी, जैसा कि आज मुझे यकीन हो गया. तो, एक दोस्त की तरह, आपसे एक राज़ की बात कहता हूँ, - बेशक, मुझे मालूम है कि आप मुझे शर्मिंदा नहीं करेंगे – बूढ़े गधे प्रिअब्राझेन्स्की ने इस ऑपरेशन को थर्ड एयर के स्टूडेन्ट की तरह गड़बड़ कर दिया. ये सच है कि आविष्कार हुआ. आप ख़ुद ही जानते हैं – कैसा,” अब फ़िलिप फ़िलीपविच ने अफ़सोस के साथ दोनों हाथों से खिड़की के परदों की ओर इशारा किया, स्पष्ट रूप से मॉस्को की ओर इशारा करते हुए. “मगर सिर्फ इस बात का ध्यान रखिये, इवान अर्नोल्दविच, कि इस आविष्कार का एकमात्र परिणाम यह होगा, कि हम सब इस शारिकव को रखेंगे कहाँ – यहाँ. प्रिअब्राझेन्स्की ने अपनी टेढ़ी और पैरेलिसिस की ओर झुकती हुई गर्दन को थपथपाया, शांत रहिये! अगर कोई,” प्रिअब्राझेन्स्की मिठास से कहता रहा, - “मुझे यहाँ पटक कर कोड़े भी मारे, - तो मैं, कसम खाता हूँ, उसे पचास रूबल्स देता! सेविले से ग्रेनाडा तक...शैतान मुझे ले जाये. आख़िर मैं पाँच साल बैठकर दिमाग़ के उपांगों को चुनता रहाआप जानते हैं कि मैंने किस तरह का काम किया है – समझ से बाहर है. और अब, पूछना पड़ रहा है – किसलिये? इसलिये कि एक ख़ूबसूरत दिन सबसे प्यारे कुत्ते को ऐसी घिनौनी चीज़ में परिवर्तित कर दूँ, कि सिर के बाल खड़े हो जाएँ.”

“कोई अद्वितीय चीज़ है.”

“पूरी तरह आपसे सहमत हूँ. तो, डॉक्टर, नतीजा क्या निकलता है, जब शोधकर्ता प्रकृति के समांतर और उससे सम्पर्क रखते हुए चलने के बदले, किसी समस्या को बलपूर्वक सुलझाने की कोशिश करता है और परदा उठा देता है: तो, लो उस शारिकव को और खाओ उसे पॉरिज के साथ.”

“फ़िलिप फ़िलीपविच, और अगर स्पिनोज़ा (स्पिनोज़ा - नीदरलैण्ड का दार्शनिक और प्रकृतिविद् - - अनु.) का दिमाग़ होता तो?”

हाँ!” फ़िलिप फ़िलीपविच गरजा, “हाँ! अगर सिर्फ बदनसीब कुत्ता मेरे चाकू के नीचे मर नहीं जाता, और आपने तो देखा है – किस तरह का है यह ऑपरेशन. एक लब्ज़ में, मैंने – फ़िलिप प्रिअब्राझेन्स्की  ने इससे ज़्यादा मुश्किल काम अपनी ज़िंदगी में कभी किया ही नहीं था. स्पिनोज़ा या किसी और ऐसे ही जिन की पिट्यूटरी ग्लैण्ड को प्रत्यारोपित करके कुत्ते से बेहद ऊँची किस्म के व्यक्ति की रचना की जा सकती है. मगर किस शैतान को उसकी ज़रूरत है?- मैं पूछता हूँ. मुझे समझाइये, प्लीज़, कि कृत्रिम रूप से स्पिनोज़ों की रचना करने की ज़रूरत क्या है, जब कोई भी महिला, जब चाहे, तब उसे जन्म दे सकती है. आख़िर खल्मागोरी में मैडम लमानोसवा ने अपने सुप्रसिद्ध बालक को जन्म दिया ही था ना. डॉक्टर, मानवता ख़ुद ही इस दिशा में प्रयत्नशील है और विकास के क्रम में हर साल बड़ी ज़िद से समूहों के बीच से हर तरह का कचरा निकाल कर दसियों मशहूर जीनियस व्यक्तियों की रचना करती है, जो धरती को सुशोभित करते हैं. अब आप समझ गये हैं, डॉक्टर, कि मैंने शारिकव की बीमारी के इतिहास में आपके निष्कर्ष को क्यों खारिज कर दिया था. मेरे आविष्कार की कीमत, काश उसे शैतान खा जाते, जिसे लेकर आप घूम रहे हैं, एक फ़ूटी कौड़ी के बराबर ही है...हाँ, बहस न कीजिये, इवान अर्नोल्दविच, मैं अब समझ गया हूम. मैं कभी भी हवा में लब्ज़ नहीं उछालता, आप ये बात अच्छी तरह जानते हैं. सैद्धांतिक रूप से यह दिलचस्प है.ख़ैर, ठीक है! डॉक्टर्स ख़ुश हो जायेंगे. मॉस्को तैश में आ जायेगा...और, वास्तव में क्या है? इस समय आपके सामने कौन है? प्रिअब्राझेन्स्की  ने जाँच-कक्ष की ओर इशारा किया, जहाँ शारिकव सो रहा था:

“एक असाधारण बदमाश.”

मगर वह कौन है – क्लीम, क्लीम,” प्रोफ़ेसर चीख़ा, “क्लीम चुगुनोव (बर्मेन्ताल का मुँह खुल गया) – वही: दो मुकदमे, शराब की लत, “सब कुछ बराबर बाँट दो”, हैट और दस के दो नोट गुम हो गये (यहाँ फ़िलिप फ़िलीपविच को अपनी छड़ी की याद आई और वह लाल हो गया) – बदमाश और सुअर...ख़ैर, छड़ी तो मैं ढूँढ़ लूँगा. एक लब्ज़ में पिट्यूटरी ग्लैण्ड एक बंद कमरे की तरह है, जो व्यक्ति के प्रस्तुत चेहरे को परिभाषित करता है. प्रस्तुत! सेविले से ग्रेनाडा तक... “ – तैश में आँखें गोल-गोल घुमाते हुए फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा, “न कि सामान्य मानवीय चेहरा. ये – संक्षिप्त रूप में – ख़ुद मस्तिष्क ही है. और मुझे उसकी बिल्कुल ज़रूरत नहीं है, डाल दो उसे सभी सुअरों को. मैं तो किसी और ही दिशा में कार्य कर रहा था, सुजन विज्ञान के बारे में, मानव जाति के सुधार के बारे में. और कायाकल्पमें घुस गया. कहीं आप ये तो नहीं सोचते कि मैं पैसे की ख़ातिर ये करता हूँ? फ़िर भी, आख़िर मैं वैज्ञानिक हूँ.”  

“आप महान वैज्ञानिक हैं, और ये सच है!” बर्मेन्ताल ने कन्याक का घूँट लेते हुए कहा. उसकी आँखों में जैसे खून उतर आया था.

“दो साल पहले, जब मैंने पहली बार पिट्यूटरी ग्लैण्ड से कुछ सेक्स-हॉर्मोन्स प्राप्त किये तो मैंने  एक छोटा-सा प्रयोग करने का निश्चय किया. मगर उसके बदले ये क्या हो गया? ऐ ख़ुदा! ये हॉर्मोन्स पिट्यूटरी ग्लैण्ड में, ओह ख़ुदा...डॉक्टर, मैंने सामने गहरी निराशा है, कसम खाता हूँ कि मैं भटक गया.”

बर्मेन्ताल ने अचानक आस्तीनें ऊपर कीं और नाक की सीध में देखते हुए बोला:

“तो फ़िर ठीक है, प्रिय शिक्षक, अगर आप नहीं चाहते, तो मैं ख़ुद अपनी जोखिम पर उसे आर्सेनिक खिला दूँगा. भाड़ में जाए, अगर मेरे पापा मैजिस्ट्रेट थे. आख़िरकार – ये आपका अपना प्रयोगात्मक जीव है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच बुझ गया, निढ़ाल होकर अपनी कुर्सी में धंस गया और बोला:

“नहीं, प्यारे बच्चे, मैं आपको ऐसा करने की इजाज़त नहीं दूँगा. मैं साठ साल का हूँ, मैं आपको सलाह दे सकता हूँ. कभी भी कोई अपराध न करो, चाहे वह किसीके भी ख़िलाफ़ हो. साफ़ हाथों से वृद्धावस्था तक जिओ.”

“मगर, ज़रा सोचिये फ़िलिप फ़िलीपविच, अगर ये श्वोन्देर उसे और भी सिखाता रहा, तो इसका नतीजा क्या होगा?! माय गॉड, मैं सिर्फ अभी समझ रहा हूँ, कि यह शारिकव आगे क्या-क्या बन सकता है!”    

“अहा! अब समझे? और मैं ऑपरेशन के दस दिन बाद ही समझ गया था. तो फ़िर बात ये है कि श्वोन्देर ही सबसे बड़ा बेवकूफ़ है. वह समझ नहीं पा रहा है कि मेरे मुकाबले शारिकव उसके लिये ज़्यादा भयानक ख़तरा है. ख़ैर, फ़िलहाल वह हर तरह से उसे मेरे ख़िलाफ़ उकसाने की कोशिश कर रहा है, बिना यह सोचे, कि अगर कल कोई शारिकव को ख़ुद श्वोन्देर के ख़िलाफ़ उकसायेगा  तो उसके सिर्फ सींग और टांगें ही बचेंगी.”

“और क्या! सिर्फ बिल्लियों से ही कितना हंगामा हो जाता है! वह कुत्ते के दिल वाला आदमी.”

“ओह, नहीं, नहीं,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने खींचते हुए जवाब दिया, “आप, डॉक्टर, बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं, ख़ुदा के लिये कुत्ते को बदनाम न कीजिये. बिल्लियाँ – यह अस्थाई दौर है...ये सवाल अनुशासन का है और दो–तीन हफ़्तों तक. आपको यकीन दिलाता हूँ. एकाध महीना और, और वह उनके ऊपर झपटना बंद कर देगा.”

“मगर अभी क्यों नहीं?”

“इवान अर्नोल्दविच, यह एकदम प्राथमिक बात है...आप असल में क्या पूछ रहे हैं, आख़िर पिट्यूटरी ग्लैण्ड हवा में लटकती तो नहीं ना रहेगी. वह कुत्ते के मस्तिष्क में स्थापित हो ही जायेगी, उसे अपनी जडें जमाने दीजिये. अभी शारिकव कुत्ते की बची-खुची आदतें ही प्रदर्शित कर रहा है, और इस बात को समझिये कि बिल्लियाँ – जो वह करता है, उनमें सबसे अच्छा काम है. कल्पना कीजिये, कि यह सब कितना भयानक होता, यदि उसके पास कुत्ते का नहीं, बल्कि इन्सान का दिल होता. और प्रकृति में विद्यमान सभी दिलों में से सबसे ग़लीज़ दिल का! ”

पूरी तरह तन चुके बर्मेन्ताल ने अपने मज़बूत पतले हाथों की मुट्ठियाँ भींच लीं, कंधे उचकाये और दृढ़ता से बोला:

“बेशक. मैं उसे मार डालूँगा!”

“मैं प्रतिबंध लगाता हूँ!” फ़िलिप फ़िलीपविच ने दो टूक जवाब दिया.

“मगर, प्लीज़...”

फ़िलिप फ़िलीपविच अचानक चौंकन्ना हो गया, उसने उँगली उठाई.

“रुकिये...मुझे पैरों की आहट सुनाई दी.”

दोनों ध्यान से सुनने लगे, मगर कॉरीडोर में शांति थी.

“ऐसा लगा,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने कहा और जोश में जर्मन में बात करने लगा. उसके शब्दों में कई बार रूसी शब्द “आपराधिकता” सुनाई दिया.

“एक मिनट,” अचानक बर्मेन्ताल सतर्क हो गया और दरवाज़े की तरफ़ गया. पैरों की आहट स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी, और वे अध्ययन-कक्ष की ओर आ रहे थे. इसके अलावा भिनभिनाती आवाज़ आ रही थी. बर्मेन्ताल ने दरवाज़ा खोला और अचरज से पीछे हट गया. पूरी तरह पराजित फ़िलिप फ़िलीपविच अपनी कुर्सी में जम गया.

कॉरीडोर के प्रकाशित चौक में आक्रामक और तमतमाते चेहरे से दार्या पित्रोव्ना सिर्फ नाईट-गाऊन में खड़ी थी. डॉक्टर और प्रोफ़ेसर को उसके विशाल, ताकतवर और, जैसा कि डर के मारे उन दोनों को प्रतीत हुआ, पूरी तरह नग्न शरीर की उपस्थिति ने चकाचौंध कर दिया. अपने मज़बूत हाथों में दार्या पित्रोव्ना कुछ घसीटते हुए ला रही थी, और यह “कुछ”, फ़िसलते हुए, अपनी पिछाड़ी और छोटे-छोटे पैरों पर बैठ रहा था, जो काले रोवों से ढंके थे, और लकड़ी के फ़र्श मुड़ रहे थे. ये “कुछ”, बेशक, शारिकव था, पूरी तरह बदहवास, अभी भी नशे में, अस्त-व्यस्त और एक ही कमीज़ में.

शानदार और नग्न दार्या पित्रोव्ना ने शारिकव को आलुओं के बोरे की तरह झटका और बोली:

“ग़ौर फ़रमाईये, प्रोफ़ेसर महाशय, हमारे मेहमान टेलिग्राफ़ टेलिग्राफ़विच की ओर. मैं तो शादी-शुदा थी, मगर ज़ीना – मासूम लड़की है. ये तो अच्छा हुआ कि मेरी आँख खुल गई.”

इतना कहकर, दार्या पित्रोव्ना शर्म से डूब गई, वह चीख़ी, अपने सीने को हाथों से ढाँप लिया और चली गई.

“दार्या पित्रोव्ना, ख़ुदा के लिये, माफ़ करना,” होश में आकर फ़िलिप फ़िलीपविच ने लाल चेहरे से चिल्लाकर उससे कहा.

बर्मेन्ताल ने अपनी आस्तीनें और ऊपर उठाईं और शारिकव की ओर बढ़ा. फ़िलिप फ़िलीपविच ने उसकी आँखों में देखा और वह भयभीत हो गया.

“आप क्या कर रहे हैं, डॉक्टर! मैं इसकी इजाज़त नहीं देता....”

बर्मेन्ताल ने दायें हाथ से शारिकव की गर्दन पकड़ी और उसे इस तरह झकझोरा कि सामने से उसकी कमीज़ फट गई.

फ़िलिप फ़िलीपविच बीच-बचाव करने के लिये लपका और सर्जन के मज़बूत हाथों की पकड़ से निर्बल शारिकव को खींचने छुड़ाने लगा. 

“आपको मारने का कोई अधिकार नहीं है!” ज़मीन पर बैठकर, होश में आते हुए, आधे घुटे गले से शारिकव चिल्लाया.

“डॉक्टर!” फ़िलिप फ़िलीपविच चीख़ा.

बर्मेन्ताल ने अपने आप को कुछ संभाला और शारिकव को छोड़ दिया, जिसके बाद वह फ़ौरन फ़ुसफ़ुसाने लगा.

“अच्छा, ठीक है, “ बर्मेन्ताल ने फ़ुफ़कारते हुए कहा, “सुबह तक इंतज़ार कर लेंगे. जब वह होश में आ जायेगा मैं उसे सबक सिखाऊँगा,.”  

उसने शारिकव को कांख के नीचे से पकड़ लिया और घसीटते हुए उसे सोने के लिये वेटिंग-रूम ले गया.

शारिकव ने छिटकने की कोशिश की, मगर उसकी टांगों ने जवाब दे दिया.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने अपने पैर फ़ैलाये, जिससे उसके गाऊन के नीले किनारे दूर हो गये, हाथ और आँखें कॉरीडोर के छत वाले लैम्प की तरफ़ उठाकर बोला: 

“ओह, अच्छा...”

 

 

 

 

अध्याय – 9

 

मगर, बर्मेन्ताल ने जो सबकसिखाने का वादा किया था, वह अगली सुबह पूरा नहीं हो पाया, इस कारण से कि पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच घर से ग़ायब हो गया. बर्मेन्ताल तैश से बिफ़र रहा था, अपने आप को गधा कहकर गाली दी, कि उसने प्रमुख दरवाज़े की चाभी क्यों नहीं छुपा दी, वह चीख़ रहा था कि यह अक्षम्य है, और यह सब इस इच्छा से ख़तम किया कि शारिकव बस के नीचे आ जाये. फ़िलिप फ़िलीपविच अध्ययन-कक्ष में बैठा था, बालों में उँगलियाँ घुसाये, और बोला:

“मैं कल्पना कर सकता हूँ कि रास्ते पर क्या हो रहा होगा... क-ल्प-ना---कर स-क-ता हूँ. सेविले से ग्रेनाडा तक, ओह गॉड.”

“हो सकता है कि वह अभी भी हाऊसिंग-सोसाइटी में हो,” बर्मेन्ताल ने गुस्से से उबलते हुए कहा और कहीं भागा.

हाऊसिंग-सोसाइटी में उसने प्रेसिडेण्ट श्वोन्देर से इतना झगड़ा किया, कि वह ये चिल्लाते हुए खामोव्निचेस्की जिले की अदालत में दरख़्वास्त लिखने बैठ गया, कि वह प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की  के पालतू का बॉडी-गार्ड नहीं  है, ऊपर से, यह पालतू पलिग्राफ़ बदमाश निकला, अभी कल ही, जैसे पाठ्य पुस्तकें ख़रीदने के लिये उसने हाऊसिंग कमिटी से 7 रूबल्स लिये थे.

फ़्योदर ने, जिसने इस लफ़ड़े में तीन रूबल्स कमाये थे, ऊपर से नीचे तक पूरी बिल्डिंग छान मारी. कहीं भी शारिकव का कोई सुराग नहीं मिला.

सिर्फ एक बात पता चली, कि शारिकव सुबह-सुबह स्कार्फ़ बांधे, ओवरकोट और कैप पहनकर निकल गया, जाते-जाते अपने साथ अलमारी से रोवनबेरी की एक बोतल, डॉक्टर बर्मेन्ताल के दस्ताने और अपने सभी कागज़ात ले गया था. दार्या पित्रोव्ना और ज़ीना ने खुल्लमखुल्ला अपनी तूफ़ानी ख़ुशी और यह आशा व्यक्त की, कि शारिकव फ़िर कभी न लौटे. पिछले ही दिन शारिकव ने दार्या पित्रोव्ना से साढ़े तीन रूबल्स उधार लिये थे.

“आपके साथ ऐसा ही होना चाहिये!” फ़िलिप फ़िलीपविच मुट्ठियाँ हिलाते हुए गरजा. पूरे दिन फ़ोन बजता रहा, फ़ोन दूसरे दिन भी बजता रहा. डॉक्टरों ने असाधारण संख्या में मरीज़ देखे, और तीसरे दिन अध्ययन-कक्ष में इस प्रश्न पर विचार किया गया कि पुलिस को ख़बर करनी चाहिये, जो शारिकव को मॉस्को के गड्ढों में ढूँढे.

और, जैसे ही “पुलिस” शब्द का उच्चारण किया गया, ओबुखवा स्ट्रीट की सम्मानजनक शांति को एक लॉरी की गरज ने भंग किया और बिल्डिंग की खिड़कियाँ झनझना गईं. इसके बाद सुनाई दी एक बेधड़क घंटी की आवाज़, और पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच असाधारण शान से भीतर आया, उसने बेहद ख़ामोशी से कैप उतारी, ओवरकोट को खूंटी पर टांग दिया और एक नये ही अवतार में प्रकट हुआ. उसने किसी और की चमड़े की जैकेट पहनी थी, चमड़े ही की घिसी हुई पतलून और अंग्रेज़ी ऊँचे जूते जिनके फ़ीते घुटनों तक आ रहे थे. बिल्लियों की अविश्वसनीय गंध पूरे प्रवेश-कक्ष में फ़ैल गई. प्रिअब्राझेन्स्की  और बर्मेन्ताल, जैसे किसी के आदेश पर हाथ बांधे, चौखट पर खड़े हो गये और पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच की पहली सूचना का इंतज़ार करने लगे. उसने अपने कड़े बालों को ठीक किया, कुछ खाँसा और चारों ओर इस तरह से देखा. कि ज़ाहिर हो रहा था: इस बेतकल्लुफ़ी की आड़ में पलिग्राफ़ अपनी सकुचाहट को छुपाना चाह रहा है.

“मैंने, फ़िलिप फ़िलीपविच,” आख़िरकार उसने बोलना शुरू किया, “नौकरी कर ली है.”

दोनों डॉक्टर्स ने गले से अजीब-सी सूखी आवाज़ निकाली और थोड़ा-सा हिले. पहले प्रिअब्राझेन्स्की  ने अपने आपको संभाला, उसने हाथ बढ़ाया और कहा:

“कागज़ दीजिये.”

कागज़ पर टाईप किया हुआ था, “प्रमाणित किया जाता है कि इस पत्र का धारक, कॉम्रेड पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच शारिकव वास्तव में मॉस्को सार्वजनिक सेवाओं के विभाग में, मॉस्को शहर को आवारा जानवरों (बिल्लियाँ आदि) से मुक्त करने वाले उपविभाग का प्रमुख है.”

अच्छा,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने गंभीरता से कहा, “आपको किसने काम पर लगाया? आह, वैसे मैं ख़ुद ही अंदाज़ लगा सकता हूँ.”

“हाँ, सही में, श्वोन्देर ने,” शारिकव ने जवाब दिया.

“आपसे पूछने की इजाज़त दीजिये – आपसे ये दुर्गंध क्यों आ रही है?”

शारिकव ने कुछ परेशानी से अपने जैकेट को सूंघा.

“तो, क्या है, आ रही है बू...ज़ाहिर है : मेरे पेशे की वजह से. कल हमने बिल्लियों के गले दबाये, दबाये...”

फ़िलिप फ़िलीपविच काँप गया और उसने बर्मेन्ताल की ओर देखा. उसकी आँखें बंदूक की काली दुनाली जैसी हो रही थीं, जो सीधे शारिकव पर टिकी थीं. बिना किसी प्रस्तावना के वह शारिकव की ओर बढ़ा और दृढ़ता और आसानी से उसका गला पकड़ लिया.

“संतरी!” पीला पड़ते हुए शारिकव ने चीं-चीं किया.

“डॉक्टर!”

“अपने आप को मैं कोई भी गलत काम करने की इजाज़त नहीं दूँगा, फ़िलिप फ़िलीपविच, आप फ़िक्र न करें, “ बर्मेन्ताल ने खनखनाती आवाज़ में कहा और वह गरजा: “ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना!”

वे दोनों प्रवेश-कक्ष में आ गईं.

“तो, दुहराईये,” बर्मेन्ताल ने कहा और शारिकव का गला ओवरकोट की ओर कुछ झुकाया, “मुझे माफ़ कीजिये...”

अच्छा, ठीक है, दुहराता हूँ,” भर्राई हुई आवाज़ में पूरी तरह पराजित शारिकव ने जवाब दिया, उसने अचानक सांस भीतर खींची, छिटक गया और चिल्लाने की कोशिश की - “संतरीं”, मगर चीख निकली ही नहीं और उसका सिर पूरी तरह ओवरकोट में घुस गया.

“डॉक्टर, विनती करता हूँ.”

शारिकव ने सिर हिलाया, यह बताने की कोशिश करते हुए, कि वह हार मानता है और उन शब्दों को दुहरायेगा.

“मुझे माफ़ कीजिये, परम आदरणीय दार्या पित्रोव्ना और ज़िनाइदा?...”

“प्रकोफ़्येव्ना,” ज़ीना भय से फुसफ़ुसाई.

“ऊफ़, प्रकोफ़्येव्ना...” सांस रोककर भर्राते हुए शारिकव बोला, “कि मैंने जुर्रत की...”                                      

रात को नशे की हालत में घिनौना काम करने की.”

“नशे की हालत में...

“फ़िर कभी ऐसा नहीं करूँगा...”

“नहीं करूँगा...”

“छोड़िये, छोड़िये उसे, इवान अर्नोल्दविच,” दोनों महिलाओं ने एक साथ विनती की, “आप उसका गला दबा देंगे.”                        

बर्मेन्ताल ने शारिकव को छोड़ दिया और कहा:

“क्या लॉरी आपका इंतज़ार कर रही है?”

“नहीं,” पलिग्राफ़ ने नम्रता से जवाब दिया, “वह मुझे सिर्फ यहाँ लाई थी.”

“ज़ीना, लॉरी को जाने के लिये कह दीजिये. अब इस बात का ध्यान रहे : क्या आप फ़िर से फ़िलिप फ़िलीपविच के क्वार्टर में लौट आये हैं?”         

“मैं और कहाँ जाऊँगा?” आँखें झपकाते हुए शारिकव ने डरते-डरते जवाब दिया.          

“बढ़िया. पानी से भी शांत, घास से भी नीचे रहो. वर्ना, हर गलत काम के लिये मुझसे पाला पड़ेगा. समझ गये?”

“समझ गया,” शारिकव ने जवाब दिया.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने शारिकव पर किये जा रहे अत्याचार के दौरान अपनी ख़ामोशी बनाये रखी. वह चौखट के पास जैसे दयनीयता से सिकुड़ गया और फ़र्श पर आँखें नीची किये नाखून काटता रहा. फ़िर उसने अचानक आँखें उठाकर शारिकव पर गड़ा दीं और यंत्रवत्, खोखली आवाज़ में पूछा:

“और इनका...इन मारी गई बिल्लियों का करते क्या हैं?”

“उन्हें कारखाने भेजा जाता है,” शारिकव ने जवाब दिया, “उनसे कार्बोहाइड्रेट बनाया जायेगा श्रमिकों के लिये.”

इसके बाद क्वार्टर में ख़ामोशी छा गई और दो दिनों तक रही. पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच सुबह लॉरी में बैठकर चला जाता, शाम को वापस लौटता, ख़ामोशी से फ़िलिप फ़िलीपविच और बर्मेन्ताल के साथ खाना खाता.

हाँलाकि बर्मेन्ताल और शारिकव एक ही कमरे, स्वागत-कक्ष में, सोते थे, वे एक दूसरे से बात नहीं करते थे, तो पहले बर्मेन्ताल ही उकता गया.

दो दिन बाद क्वार्टर में दूधिया स्टॉकिंग्स पहने, आँखों पर रंग लगाये एक दुबली-पतली महिला आई और क्वार्टर की शान देखकर बेहद सकुचा गई. पुराने, जर्जर कोट में वह शारिकव के पीछे-पीछे चल रही थी और प्रवेश-कक्ष में प्रोफ़ेसर से टकरा गई.

वह भौंचक्का रह गया, रुक कर उसने आँखें बारीक कीं और पूछा:

“यह सब क्या है, बतायेंगे?”

“मैं इसके साथ शादी करने वाला हूँ, ये – हमारी टाइपिस्ट है, मेरे साथ रहेगी. बर्मेन्ताल को स्वागत-कक्ष से हटाना पड़ेगा. उसके पास अपना क्वार्टर है,” बेहद अप्रियता से और त्योरी चढ़ाकर शारिकव ने समझाया.

“कृपया एक मिनट के लिये मेरे अध्ययन-कक्ष में आईये.”     

“मैं भी उसके साथ आऊँगा,” शारिकव ने फ़ौरन और संदेह से विनती की.

और उसी पल बर्मेन्ताल जैसे धरती से प्रकट हो गया.

“माफ़ कीजिये,” उसने कहा, “प्रोफ़ेसर महिला से बात करेंगे और आप मेरे साथ यहाँ रुकेंगे.”

“मैं नहीं चाहता,” शारिकव ने शर्म से लाल हो रही महिला और फ़िलिप फ़िलीपविच के पीछे जाने की कोशिश करते हुए कड़वाहट से कहा.

“नहीं माफ़ कीजिये,” बर्मेन्ताल ने शारिकव की कलाई पकड़ ली और वे जांच-कक्ष की ओर जाने लगे.

करीब पाँच मिनट अध्ययन-कक्ष से कुछ भी नहीं सुनाई दिया, और फ़िर महिला की दबी-दबी सिसकियाँ सुनाई दीं.

फ़िलिप फ़िलीपविच मेज़ के पास खड़ा था, और महिला गंदा लेस का रूमाल मुँह पर दबाये रो रही थी.

“उस बदमाश ने कहा, कि वह युद्ध में घायल हुआ है,” महिला सिसकियाँ ले रही थी.

“झूठ बोलता है,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने दृढ़ता से उत्तर दिया. उसने सिर हिलाया और आगे कहा, “मुझे सचनुच में आप पर दया आ रही है, मगर पहले ही मिलने वाले व्यक्ति के साथ, सिर्फ नौकरी में उसके अधिकार को देखकर आपको ऐसा नहीं करना चाहिये...बच्ची, ये शर्मनाक है. यही तो...” उसने लिखने की मेज़ की दराज़ खोली और दस-दस रूबल्स के तीन नोट निकाले.

“मैं ज़हर खा लूँगी,” महिला रो रही थी, “ कैंटीन में रोज़ नमकीन-बीफ़...और धमकी देता है...कहता है कि वह रेड-कमाण्डर है...मेरे साथ, कहता है, शानदार क्वार्टर में रहोगी...हर रोज़ एडवान्स... मैं दिल का अच्छा हूँ, कहता है, मैं सिर्फ बिल्लियों से नफ़रत करता हूँ...उसने मेरी अंगूठी यादगार के तौर पर ले ली...”

“अरे,अरे, अरे, - दिल का अच्छा...सेविले से ग्रेनादा तक, - फ़िलिप फ़िलीपविच बड़बड़ाया, “ बर्दाश्त करना होगा – आप तो अभी इतनी जवान हैं...”

“क्या इसी गली में?”

“चलो, पैसे ले लो, जब उधार दे रहे हों,” फ़िलिप फ़िलीपविच गरजा.

इसके बाद समारोहपूर्वक दरवाज़े खुले और फ़िलिप फ़िलीपविच के निमंत्रण पर बर्मेन्ताल शारिकव को अंदर लाया. वह अपनी आँख़ें घुमा रहा था, और उसके सिर के रोएँ खड़े हो गये थे, ब्रश की तरह.

“नीच,” महिला बोली, उसकी रोई हुई आँखों से, जिनका काजल फ़ैल गया था, चिंगारियाँ निकल रही थीं और नाक पर पावडर की धारियाँ बन गई थीं.

“आपके माथे पर यह घाव का निशान कैसा है? कृपया इस महिला को समझाने का कष्ट करें,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने फ़ुसलाते हुए पूछा.

शारिकव ने अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया:

“मैं कल्चाक वाले मोर्चे पर घायल हो गया था,” वह भौंका.

महिला उठी और ज़ोर से रोते हुए बाहर निकल गई.

“ठहरिये!” फ़िलिप फ़िलीपविच पीछे से चिल्लाया, “थोड़ा रुकिये, अँगूठी प्लीज़,” उसने शारिकव से मुख़ातिब होते हुए कहा.

उसने आज्ञाकारिता से अपनी उँगली से पन्ना जड़ी नकली अंगूठी उतार दी.

“ख़ैर, ठीक है,” अचानक वह कड़वाहट से बोला, “तुम भी मुझे याद रखोगी. कल ही तुम्हारी पोस्ट ख़त्म करवाता हूँ.”

“उससे घबराने की ज़रूरत नहीं है,” बर्मेन्ताल पीछे से चिल्लाया, “मैं उसे कुछ भी करने नहीं दूँगा.” वह मुड़ा और शारिकव पर इस तरह नज़र डाली कि वह पीछे हटा और सिर के बल अलमारी से टकराया.

“उसका कुलनाम क्या है?” बर्मेन्ताल ने उससे पूछा. “कुलनाम!” वह गरजा और अचानक उसका चेहरा जंगली जैसा और डरावना हो गया.

“वस्नित्सोवा,” शारिकव ने आँखों से खिसकने लायक कोई जगह ढूँढ़ते हुए जवाब दिया.

“हर रोज़,” शारिकव की जैकेट का पल्ला पकड़कर बर्मेन्ताल ने कहा, “मैं ख़ुद सफ़ाई विभाग में जाकर पूछताछ करूँगा कि कहीं नागरिक वस्नित्सोवा को नौकरी से तो नहीं निकाल दिया. और अगर, सिर्फ आप...जैसे ही पता चला कि निकाल दिया है, तो मैं आपको...ख़ुद, अपने हाथों से, यहीं पर गोली मार दूँगा. ख़याल रहे, शारिकव रूसी में कह रहा हूँ!”

शारिकव लगातार बर्मेन्ताल की नाक की ओर देखे जा रहा था.

“हमारे पास भी रिवॉल्वर निकल आयेंगे...” पलिग्राफ़ बड़बड़ाया, मगर बेहद अलसाये सुर में और अचानक छिटककर, दरवाज़े की ओर उछल गया.

“सावधान रहना!” पीछे से बर्मेन्ताल की चीख़ ने उसका पीछा किया.

रात में और अगले आधे दिन तूफ़ान से पहले छाये काले बादल जैसी ख़ामोशी व्याप्त रही. सब ख़ामोश थे. मगर अगले दिन, जब पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच, जिसे अजीब सी बेचैनी ने दबोच लिया था, उदास मन से लॉरी में अपने काम पर चला गया, तो प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की  के पास बेवक्त एक मोटा और ऊँचा, मिलिट्री की युनिफॉर्म पहने, पुराना पेशन्ट आया. वह बड़े आग्रह से मुलाकात की मांग कर रहा था, जो मंज़ूर हो गई. अध्ययन-कक्ष में आकर उसने नम्रता से एड़ियाँ खटखटाते हुए प्रोफ़ेसर का अभिवादन किया.

“क्या आपका दर्द फ़िर से उभर आया है, प्यारे?” थके-हारे फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा, “कृपया बैठिये.”

“थैन्क्स. नहीं, प्रोफ़ेसर,” मेहमान ने अपनी हेल्मेट मेज़ के कोने पर रखते हुए कहा, मैं आपका बहुत आभारी हूँ...हुम्...मैं आपके पास किसी और काम से आया हूँ, फ़िलिप फ़िलीपविच...आपके प्रति मेरे दिल में बहुत सम्मान है...हुम्...आगाह करने. ये सरासर बेवकूफ़ी है. वह सिर्फ बदमाश है...” पेशन्ट ने अपनी ब्रीफ़केस से एक कागज़ निकाला, “अच्छा हुआ कि मुझे सीधे सूचना दी गई... ”     

फ़िलिप फ़िलीपविच ने चश्मे पर नाक-पकड़ चश्मा लगाया और पढ़ने लगा. वह बड़ी देर तक अपने आप से बुदबुदाता रहा, हर पल उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे. “...और साथ ही हाऊसिंग कमिटी के प्रोफ़ेसर कॉम्रेड श्वोन्देर को जान से मारने की धमकी देते हुए, जिससे पता चलता है कि उसके पास पिस्तौल है. और क्रांति-विरोधी बातें करता है, अपनी समाजवादी-सेविका ज़िनाइदा प्रकोफ़्येव्ना बूनिना को हुक्म दिया कि एंजेल्स को भट्टी में जला दे, असली मेन्शेविक की तरह, उसका असिस्टेंट बर्मेन्ताल इवान अर्नाल्दोविच भी वैसा ही है, जो गुप्त रूप से, बिना नाम रजिस्टर करवाए उसके क्वार्टर में रहता है.

हस्ताक्षर, सफ़ाई-उपविभाग के प्रमुख - प. प. शारिकव

सत्यापन करता हूँ. चेयरमैन हाऊसिंग कमिटी - श्वोन्देर, सेक्रेटरी - पिस्त्रूखिन”.

“क्या आप इस कागज़ को मेरे पास रखने की इजाज़त देंगे?” फ़िलिप फ़िलीपविच ने, जिसका चेहरा धब्बों से ढँक गया था, पूछा “ या, माफ़ी चाहता हूँ, हो सकता है, आपको इसकी ज़रूरत हो, इस पर कानूनी कार्रवाई करने के लिये?”

माफ़ कीजिये, प्रोफ़ेसर,” पेशन्ट बेहद बुरा मान गया, और उसके नथुने फूल गये, “आप वाकई में हमारी ओर बेहद नफ़रत से देखते हैं. मैं...” और अब वह मुर्गे की तरह अपने आपको फुलाने लगा. 

“अरे, माफ़ करना, माफ़ करना, प्यारे!” फ़िलिप फ़िलीपविच बुदबुदाया, “माफ़ कीजिये, मैं सच में, आपको ठेस पहुँचाना नहीं चाहता था. प्यारे, गुस्सा मत करो, उसने मुझे इतना सताया है...”

“मैं समझ रहा हूँ,” पेशन्ट पूरी तरह शांत हो गया, “मगर कैसा घिनौना है! उसे देखने की उत्सुकता हो रही है. मॉस्को में तो आपके बारे में न जाने कैसी-कैसी कहानियाँ सुनाई जा रही हैं...”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने सिर्फ हताशा से हाथ हिला दिया. पेशन्ट ने ग़ौर से देखा कि प्रोफ़ेसर की पीठ झुक गई है और पिछले कुछ समय में वह बूढ़ा हो गया है.

 

*********

 

अपराध का षड़यंत्र पूरी तरह तैयार हुआ और वह धड़ाम् से गिर भी पड़ा, पत्थर की तरह, जैसा कि अक्सर होता है. दिल को कचोटती हुई अप्रिय भावना के साथ पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच लॉरी में वापस लौटा. फ़िलिप फ़िलीपविच की आवाज़ ने उसे जाँच-कक्ष में निमंत्रित किया. शारिकव अचरज से आया और एक अस्पष्ट भय से उसने बर्मेन्ताल के चेहरे पर दुनाली को देखा, और फिर फ़िलिप फ़िलीपविच पर नज़र डाली. असिस्टेन्ट के चारों ओर एक बादल तैर रहा था और उसका सिगरेट वाला बायां हाथ सहायक की कुर्सी के चमचमाते हत्थे पर कुछ थरथरा रहा था.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने बेहद ठण्डी कड़वाहट से कहा:

“फ़ौरन अपनी चीज़ें उठाईये: पतलूनें, ओवरकोट, सब कुछ, जिसकी आपको ज़रूरत हो, और फ़ौरन क्वार्टर से दफ़ा हो जाईये!”

“ऐसा कैसे?” शारिकव वाकई में चौंक गया.

“क्वार्टर से दफ़ा हो जाओ – आज – अपने नाख़ूनों की ओर तिरछी आँखों से देखते हुए एकसुर में फ़िलिप फ़िलीपविच ने दुहराया.

कोई बुरी आत्मा पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच के भीतर प्रवेश कर गई; ज़ाहिर है कि मौत उसके चारों ओर मंडरा रही थी और उसका समय निकट ही था. उसने ख़ुद को अपरिहार्य की बाँहों में झोंक दिया और कड़वाहट से, रुक-रुक कर भौंकने लगा:

“आख़िर हो क्या रहा है! मुझे क्या, आपके ख़िलाफ़ कोई इन्साफ़ नहीं मिलेगा? मैं यहाँ 16 गज पर बैठा हूँ और बैठा रहूँगा.”

“क्वार्टर से निकल जाईये,” घुटी हुई आवाज़ में फ़िलिप फ़िलीपविच फ़ुसफ़ुसाया.

शारिकव ने ख़ुद ही अपनी मौत को निमंत्रण दे दिया. उसने बिल्लियों की असहनीय गंध वाला अपना बायाँ हाथ उठाया और फ़िलिप फ़िलीपविच को धमकाया. और इसके बाद दाएँ हाथ से जेब से पिस्तौल निकालकर बर्मेन्ताल की ओर रुख किया. बर्मेन्ताल की सिगरेट टूटते हुए सितारे की तरह गिर गई, और कुछ ही पलों में काँच के टूटे हुए टुकड़ों के ऊपर से उछलते हुए भयभीत फ़िलिप फ़िलीपविच अलमारी से सोफ़े की ओर भाग रहा था. सोफ़े के ऊपर हाथ-पैर फ़ैलाये, भर्राता हुआ सफ़ाई-उपविभाग का प्रमुख पड़ा था, और उसके सीने पर सर्जन बर्मेन्ताल सवार था और एक छोटे-से सफ़ेद तकिये से उसका मुँह दबा रहा था.

कुछ मिनटों के बाद डॉक्टर बर्मेन्ताल बदहवास चेहरे से प्रवेश द्वार की ओर गया और घंटी के बटन की बगल में नोटिस चिपकाया:

“प्रोफ़ेसर की बीमारी के कारण आज मरीज़ नहीं देखे जायेंगे. कृपया घंटियाँ बजाकर परेशान न करें”.

चमचमाते हुए जेबी चाकू से उसने घंटी का तार काट दिया, आईने में ग़ौर से देखा अपने चेहरे को, जिस पर खूनी खरोंचें थीं, और नोंचे गये हाथों को, जो हल्के-से थरथरा रहे थे. इसके बाद वह किचन के दरवाज़े पर आया और सतर्क आवाज़ में ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना से बोला:

“प्रोफ़ेसर ने आपसे क्वार्टर से बाहर न जाने के लिये कहा है.”

“ठीक है,” ज़ीना और दार्या पित्रोव्ना ने नम्रता से उत्तर दिया.

“मुझे चोर-दरवाज़े को बंद करने और अपने साथ चाभी ले जाने की इजाज़त दीजिये,” बर्मेन्ताल दीवार में बने दरवाज़े के पीछे छुपते हुए और हथेली से अपना चेहरा छुपाते हुए कहने लगा, “ ये कुछ ही समय के लिये है, आपके प्रति अविश्वास के कारण नहीं. मगर कोई आयेगा, और आप अपने आप को रोक नहीं पायेंगी और दरवाज़ा खोल देंगी, और हमारे काम में बाधा न डालें. हम व्यस्त हैं.”

“ठीक है,” औरतों ने जवाब दिया और उनके चेहरे पीले पड़ गये. बर्मेन्ताल ने चोर-दरवाज़ा बंद किया, मुख्य द्वार बंद किया, कॉरीडोर से प्रवेश कक्ष को जाने वाला दरवाज़ा बंद किया और उसके कदमों की आहट जाँच-कक्ष के पास गुम हो गई.

ख़ामोशी ने क्वार्टर को ढाँक दिया, वह सभी ओनों-कोनों में रेंग गई. संध्या-छायाएँ रेंग आईं,  ख़तरनाक-सी, सतर्क, एक लब्ज़ में – उदास. ये सच है, कि बाद में पड़ोसियों ने कम्पाऊण्ड से बताया कि जैसे प्रिअब्राझेन्स्की  के क्वार्टर की कम्पाऊण्ड में खुलती हुई जाँच-कक्ष की खिड़कियों में सभी लाईट्स जल रहे थे, और उन्होंने ख़ुद प्रोफ़ेसर का सफ़ेद टोप भी देखा...यकीन करना मुश्किल है. ये सच है कि, जब सब कुछ ख़त्म हो गया तो, ज़ीना ने भी बोल दिया कि जब बर्मेन्ताल और प्रोफ़ेसर जाँच-कक्ष से बाहर आये तो अध्ययन-कक्ष में फ़ायर प्लेस के पास, इवान अर्नोल्दविच ने उसे ख़ौफ़नाक हद तक डरा दिया, कि वह अध्ययन-कक्ष में उकडूँ बैठा था और प्रोफ़ेसर के मरीज़ों के रेकॉर्ड वाले गट्ठे से नीली फ़ाईल लेकर उसे अपने हाथों से भट्टी में जला रहा था, कि डॉक्टर का चेहरा पूरी तरह हरा था और पूरा, हाँ, पूरा...गहरी खरोंचों से भरा था. और फ़िलिप फ़िलीपविच भी उस शाम कुछ अलग ही नज़र आ रहा था. और क्या...वैसे, हो सकता है, कि प्रिचिस्तेन्का  के क्वार्टर वाली मासूम लड़की झूठ भी बोल रही हो...

एक बात तो यकीन के साथ कह सकते हैं: इस शाम क्वार्टर में पूरी तरह से, भयानक ख़ामोशी छाई थी.

 

अध्याय -10

उपसंहार

 

ओबुखवा स्ट्रीट पर स्थित प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की  के क्वार्टर के जाँच-कक्ष में हुए संघर्ष के ठीक दस दिन बाद रात को कर्कश घंटी बजी.

“क्राईम-ब्रांच पुलिस और अन्वेषक. कृपया खोलिये.”

भागते हुए कदमों की आहट आने लगी, खटखटाहट होने लगी, लोग भीतर आने लगे, और बिजली से चमकते, नये काँच लगाई गई अलमारियों वाले प्रवेश कक्ष में भीड़ जमा हो गई. उनमें से दो पुलिस की वर्दी में थे, एक ब्रीफ़केस के साथ काले ओवरकोट में; काँइयेपन से ख़ुश होता हुआ, विवर्ण श्वोन्देर; एक नौजवान-औरत, दरबान फ्योदर, ज़ीना, दार्या पित्रोव्ना और आधे कपडों में बर्मेन्ताल, जो शर्म से बिना टाई वाला गला छुपा रहा था.

अध्ययन-कक्ष के दरवाज़े से फ़िलिप फ़िलीपविच बाहर आया. वह अपने चिर-परिचित नीले गाऊन में था और सभी उपस्थितों को फ़ौरन विश्वास हो गया कि पिछले सप्ताह के दौरान उसकी तबियत काफ़ी संभल चुकी थी. पहले ही की तरह अधिकारपूर्ण और ऊर्जावान, गरिमायुक्त फ़िलिप फ़िलीपविच रात के मेहमानों के सामने आकर खड़ा हो गया और माफ़ी माँगने लगा कि वह नाईट-गाऊन में है.

शर्माइये नहीं, प्रोफ़ेसर,” सादे कपडों वाले व्यक्ति ने बड़ी सकुचाहट से कहा, फिर हिचकिचाते हुए बोला. “बड़ी अप्रिय बात है. हमारे पास आपके क्वार्टर की तलाशी का वारंट है और”, प्रोफ़ेसर की मूँछों की ओर देखते हुए उसने अपनी बात पूरी की, “और तलाशी के परिणाम के अनुसार गिरफ़्तारी का भी वारंट है.”

फ़िलिप फ़िलीपविच ने त्यौरियाँ चढ़ाईं और पूछा:

“क्या मैं पूछ सकता हूँ कि किस आरोप के आधार पर, और किसको?”

उस व्यक्ति ने अपना गाल खुजाया और ब्रीफ़केस में से कागज़ निकाल कर पढ़ने लगा:

“प्रेअब्राझेन्की, बर्मेन्ताल, ज़िनाइदा बूनिना और दार्या इवानवा को मॉस्को की सामूहिक सेवाओं के  सफ़ाई-उपविभाग के प्रमुख पलिग्राफ़ पलिग्राफ़विच शारिकव के कत्ल के इलज़ाम में”.

ज़ीना की सिसकियाँ उसके अंतिम शब्दों को खा गईं. हलचल मच गई.

“मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा हूँ,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने शाही अंदाज़ में कंधे सिकोड़ते हुए जवाब दिया, “कौनसे शारिकव को? आह, माफ़ी चाहता हूँ, मेरे इस कुत्ते को...जिसका मैंने ऑपरेशन किया था?”

“माफ़ कीजिये, प्रोफ़ेसर, कुत्ते को नहीं, बल्कि जब वह इन्सान था. यही मामला है.”

“मतलब, वह बोलता था?: फ़िलिप फ़िलीपविच ने पूछा, “इसका मतलब ये नहीं होता कि वह इन्सान है. ख़ैर, ये ज़रूरी नहीं है. शारिक अभी भी मौजूद है, और किसी ने उसे नहीं मारा है.”

“प्रोफ़ेसर,” काले ओवरकोट वाले आदमी ने बेहद आश्चर्य से भौंहे उठाईं, “तब तो उसे हाज़िर करना पड़ेगा. उसे ग़ायब हुए आज दस दिन हो गये हैं, और मेरे पास जो जानकारी है, वह बहुत बुरी है.”

“डॉक्टर बर्मेन्ताल, कृपया शारिक को अन्वेषक के सामने प्रस्तुत करें,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने वारंट पर कब्ज़ा करते हुए कहा.

डॉक्टर बर्मेन्ताल रहस्यमय ढंग से मुस्कुराया और बाहर निकल गया.

जब उसने वापस आकर सीटी बजाई तो उसके पीछे अध्ययन-कक्ष के दरवाज़े से एक अजीब तरह का कुत्ता उछल कर बाहर आया. किसी किसी जगह वह गंजा था, किसी किसी जगह रोएँ बढ़ रहे थे. वह इस तरह बाहर आया जैसे सर्कस का प्रशिक्षित कुत्ता हो, पिछली टाँगों पर चलते हुए, फ़िर चारों टाँगों पर खड़ा हो गया और चारों तरफ़ देखने लगा. प्रवेश-कक्ष में जैसे मौत-सा सन्नाटा जम गया, जैली की तरह. भयानक आकृति वाला कुत्ता, जिसके माथे पर घाव का लाल निशान था, फ़िर से पिछले पैरों पर उठा और मुस्कुराते हुए कुर्सी पर बैठ गया.

दूसरे पुलिस वाले ने अचानक अपने आप पर बड़ा-सा क्रॉस बनाया और, पीछे हटकर अचानक ज़ीना के दोनों पैर दबा दिये.

काले ओवरकोट वाले ने मुँह बंद किये बिना कहा:

“ऐसा कैसे हो सकता है, माफ़ कीजिये?...वह तो सफ़ाई विभाग में काम करता था...”

“मैंने उसे वहाँ नहीं भेजा था,” फ़िलिप फ़िलीपविच ने जवाब दिया, “अगर मैं गलत नहीं हूँ, तो महाशय श्वोन्देर ने उसकी सिफ़ारिश की थी.”

“मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है,” काले ओवरकोट वाले ने संभ्रम से कहा और वह पहले पुलिस वाले से मुख़ातिब हुआ. “ये वही है?”

“वही है,” पुलिस वाले ने बेआवाज़ जवाब दिया. “बिल्कुल वही.”

“वही है,” फ़्योदर की आवाज़ सुनाई दी, “सिर्फ, कमीना फ़िर से मोटा हो गया है.”

“वह तो बोलता था...हे...हे...”

“और अभी भी बोलता है, मगर उसका बोलना काफ़ी कम होता जा रहा है, तो, मौके का फ़ायदा उठाईये, वर्ना वह पूरी तरह से ख़ामोश हो जायेगा.”

“मगर क्यों?” काले ओवरकोट वाले ने हौले से पूछा.

फ़िलिप फ़िलीपविच ने कंधे उचका दिये.

“विज्ञान को अभी तक जानवरों को इन्सान बनाने का तरीका ज्ञात नहीं है. मैंने कोशिश की थी, मगर कामयाब नहीं हुई, जैसा कि आप देख रहे हैं. कुछ दिन बोला और फ़िर से अपनी मूल अवस्था में परिवर्तित होने लगा. पूर्वजानुरूपता.”

“अश्लील शब्दों का प्रयोग न करें,” अचानक कुर्सी से कुत्ता भौंका और खड़ा हो गया.

काले ओवरकोट का मुख फ़ौरन विवर्ण हो गया, हाथ से ब्रीफ़केस छूट गई और वह एक ओर गिरने लगा, पुलिस वाले ने उसे किनारे से पकड़ा और फ़्योदर ने पीछे से. हंगामा होने लगा और उसके बीच तीन वाक्य स्पष्ट रूप से सुनाई दिये:

फ़िलिप फ़िलीपविच का – “वलेरिन की बूंदें. बेहोशी का दौरा पड़ा है.”

डॉक्टर बर्मेन्ताल का : - “अगर श्वोन्देर फ़िर कभी प्रोफ़ेसर प्रिअब्राझेन्स्की  के क्वार्टर में दिखाई दिया, तो मैं उसे अपने हाथों से सीढ़ियों से फेंक दूँगा.”

और श्वोन्देर का : - “कृपया इन शब्दों को प्रोटोकोल में दर्ज कर लें.”

 

**********

 

हार्मोनियम जैसे भूरे हीटिंग पाईप्स धीमे-धीमे सनसना रहे थे. परदों ने प्रिचिस्तेन्का  की घनी रात को उसके इकलौते तारे समेत छुपा दिया था. महान व्यक्तित्व, कुत्तों का महत्वपूर्ण उपकारकर्ता कुर्सी में बैठा था, और कुत्ता शारिक, चमड़े के दिवान के पास कालीन पर पसरा हुआ था. मार्च के कोहरे से कुत्ता सुबह सिरदर्द से व्यथित होता, जो माथे पर टाँको की सिलाई से बने अंगूठी के निशान के आकार में उसे पीड़ा देते. नगर गर्माहट के कारण शाम होते-होते दर्द ग़ायब हो जाता. और अब काफ़ी आराम पहसूस हो रहा था, और कुत्ते के दिमाग़ में प्रिय और स्पष्ट विचार आ रहे थे.

इतना ख़ुशनसीब हूँ मैं, इतना ख़ुशनसीब,” ऊँघते हुए वह सोच रहा था, “वर्णन नहीं किया जा सकता, इतना ख़ुशनसीब. इस क्वार्टर में पूरी तरह बस गया हूँ. मुझे पक्का यकीन है कि मेरे वंश में ज़रूर कोई गड़बड़ है. लेब्रेडॉर का कुछ अंश तो है. मेरी दादी छिछोरी किस्म की थी, ख़ुदा उस बुढ़िया को जन्नत बख़्शे. सही है कि पूरे सिर पर न जाने क्यों धारियाँ बना दीं, मगर यह शादी तक ठीक हो जायेगा. हमें इसकी फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है”.      

 

*********

 

दूर कहीं काँच की बोतलों की धीमी-धीमी खनखनाहट हो रही थी. ज़ख़्मी किया गया डॉक्टर जाँच-कक्ष में अलमारियों की सफ़ाई कर रहा था.

सफ़ेद बालों वाला जादूगर बैठा था और गा रहा था: “नील के पवित्र किनारों की ओर...”

कुत्ते ने भयानक चीज़ें देखीं. रबर के चिकने दस्ताने पहने महत्वपूर्ण आदमी ने एक बर्तन में हाथ डाला, मस्तिष्क निकाले, - ज़िद्दी आदमी, धुन का पक्का, लगातार कुछ न कुछ ढूँढ़ता रहा, उसे काटा, ग़ौर से देखा, आँखें सिकोड़ीं और गाने लगा:

नील के पवित्र किनारों की ओर...

 

समाप्त

      

              

         

                

 

                              

    

      

                 

            

लेखक के बारे में

मिखाईल बुल्गाकव का जन्म सन् 1891 में उक्राइन की राजधानी कीएव में हुआ था. सन् 1916 में डॉक्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद लगभग चार वर्षों तक वे दूर-दराज़ के गाँवों में डाक्टरी करते रहे.. सन् 1920 में डाक्टरी का पेशा छोड़कर स्वयम् को पूरी तरह से साहित्य- सेवा के लिये समर्पित कर दिया.

साहित्यिक यात्रा का आरंभ हुआ अख़बारों में व्यंगात्मक स्तम्भों से. धीरे-धीरे कहाँइयाँ, नाटक, उपन्यासों की रचना होती गई.

कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ इस प्रकार हैं:

उपन्यास : श्वेत गार्ड, मोल्येर महाशय का जीवन, थियेटर का किस्सा., मास्टर और मार्गारीटा.

लघु उपन्यास : कुत्ता-दिल, विनाशकारी अण्डे

नाटक : तूर्बिन परिवार के अंतिम दिन, लाल द्वीप, ज़ोया का फ्लैट आदि...

हर रचना में एक नई शैली अपनाते हुए बुल्गाकव ने जो भी रचा वह उनके अपने जीवन का, तत्कालीन राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक क्षेत्र का प्रतिबिम्ब ही था. पूश्किन, गोगल और साल्तिकोव श्चिद्रीन की परंपरा को जारी रखते हुए बुल्गाकव ने हास्य, व्यंग्यम कल्पना का सहारा लेकर तत्कालीन घटनाओं पर तीखा प्रहार किया है, जो उन दिनों असंभव था. उनकी रचनाओं को ध्यान से पढ़ते हुए पाठक उन वास्तविक व्यक्तियों, स्थानों एवम् घटनाओं तक पहुँच सकता है जिन्हें लेखक ने अजूबों की अनेकानेक पर्तों में छिपा रखा है.

अनुवादिका के बारे में

आ. चारुमति रामदास का सन् 1945 में नागापुर में जन्म. सन् 1910 में अंग्रेज़ी तथा विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद  से  सेवानिवृत्त.

रूसी साहित्य के हिंदी अनुवाद में सक्रिय. प्रमुख अनुवाद हैं :

“कसांद्रा दाग” – चिंगिज़ आइत्मातव

“नास्टर और मार्गारीटा” – मिखाइल बुल्गाकव,

“प्रतिनिधि कहानियाँ”, “प्रेम कहानियाँ” - अलेक्सान्द्र पूश्किन 

                  

                                

            

              

              

     

               

      

 

  

 

                         

                  

  

            

 

 

   

 

        

.

 

 

  

          

       

                 

 

         

   

       

 

        

 

        

 

                                                

                        

      

                        

            

          

       

        

 

     

   

                  

                     

 

                          

                     

         

              

             

 

          

      

 

           

        

                           

                                                        

                                                     

 

      

 

                               

           

 

 

            

      

   

       

          

           

   

            

        

         

 

       

                       

 

         

 

              

 

                

   

      

             

   

                                                            

      

   

 

       

            

                         

      

खान का अग्निकांड

  खान का अग्निकांड लेखक: मिखाइल बुल्गाकव  अनुवाद: आ. चारुमति रामदास    जब सूरज चीड़ के पेड़ों के पीछे ढलने लगा और महल के सामने दयनीय, प्रक...