२. सिसी-बुजी अग्नि-जल पीता है
द्वीप पर जीवन बहुत जल्दी अभूतपूर्व ढंग से फल-फूल
रहा था. सर्वोच्च कमांडर-इन-चीफ, प्रमुख पुजारी, और खुद सिसी-बुज़ी अग्नि-जल में जैसे
नहा रहे थे. सिसी-बुज़ी का चेहरा सूज गया था और ऐसे चमक रहा था मानो उस पर रोगन
लगाया गया हो. कांच के मोतियों से सजे-धजे आश्चर्यचकित मूर-गार्ड्स उसके तम्बू को मज़बूत दीवार की
भाँति घेरे हुए थे.
पास से गुज़रते हुए जहाज़ों पर अक्सर
द्वीप से कानों को बहरा करने वाली आवाजें सुनाई देती:
“हमारे महान नेता सिसी-बुजी अमर रहें!
हमारे प्रमुख पुजारी अमर रहें! हुर्रे! हुर्रे!!!”
ये नशे में धुत मूर चिल्लाया करते, खासकर
वे जो काफी रंगबिरंगे थे.
मगर इथोपियन्स के खेमे में गहरा
सन्नाटा था. चूंकि उन बेचारों को अग्नि जल के पास जाने नहीं दिया जाता था और साथ
ही उनसे धार्मिक कार्यों भाग लेने का अधिकार छीन लिया गया था, बल्कि
उन्हें सिर्फ काम करने पर मजबूर किया जाता, जब तक वे टांगें नहीं फैला देते, इसलिए
उनके बीच भयानक आक्रोश बढ़ता गया. जैसा कि ऐसी परिस्थितियों में होता है, हर
तरह के दुर्भावनापूर्ण भड़काने वाले-आन्दोलनकारी प्रकट हो गए. उनके द्वारा उकसाए गए
इथोपियन्स, आखिरकार, जोर से चीख पड़े:
“भाईयों. इस दुनिया में इन्साफ कहाँ
है? क्या
ये खुदा के क़ानून के मुताबिक़ है कि सारी वोद्का मूर अपने लिए रख लें, सारे
शानदार मोती भी, और हमारे लिए सिर्फ़ ये गंधाती हुई सैक्रीन? और ऊपर से हम सिर्फ
काम ही करते रहें?”
जैसा कि होना ही था, यह सब
विरोधकों के लिए बड़ी अप्रियता से ख़त्म हुआ. जैसे ही दिमागों में हो रही सुगबुगाहट
का पता चला,
सिसी-बुजी ने फ़ौरन इथोपियन झोंपड़ियों की ओर दमनकारी दस्ता भेज दिया, जिसने
सर्वोच्च प्रमुख कमांडर, बहादुर रिकी-टिकी-तवी के नेतृत्व में सभी बलवाइयों को
अपनी जगह दिखा दी. और, जहाँ कल तक शाही झोपड़ियां चमकती थीं, वहाँ
आज आकारहीन खंडहरों का ढेर लगा था.
जब हरेक को कोड़े लगाने का कार्य
समाप्त हुआ तो इथोपियन्स ने पछताते हुए, नीचे झुककर ज्ञान के लिए धन्यवाद
दिया और एक सुर में दुहराने लगे:
“ आगे कभी भी न खुद शिकायत करेंगे और
अपने बच्चों को भी ऐसा ही आदेश देंगे.”
No comments:
Post a Comment