19
पेतुर्रा.
उसका वास्तव्य शहर में
सैंतालीस दिन था. तुर्बीनों के ऊपर से हिम और बर्फ की पाउडर में जड़ा सन् 1919 का जनवरी गुज़र गया, और बर्फीले तूफानों में गरगराता
हुआ फरवरी आया.
दो
फरवरी को तुर्बीनों के क्वार्टर में एक काली आकृति घूम रही थी, मुंडे हुए सिर को ढांकती काली रेशमी टोपी पहने. ये
खुद पुनर्जीवित तुर्बीन था. वह बेहद बदल गया था. चेहरे पर, मुंह के कोनों के पास, ज़ाहिर
है, हमेशा के लिए, दो
गहरी झुर्रियां पड़ गईं थीं, त्वचा का रंग मोम जैसा, आंखें
परछाइयों में डूबी थीं और हमेशा के लिए उदास और मुस्कान रहित हो गयी थीं.
मेहमानखाने में तुर्बीन वैसे ही, जैसे सैंतालीस दिन पहले, कांच
से सटा हुआ था, और सुन
रहा था, जैसे तब, जब खिड़कियों में दिखाई दे रही थीं गर्माहट भरी
रोशनियाँ, बर्फ, ऑपेरा, दूर से
हौले से सुनाई देतीं तोपों की आवाजें. गंभीरता से माथे पर बल डाले, तुर्बीन ने अपने शरीर का पूरा भार छड़ी पर डाल दिया और
रास्ते पर देखने लगा. उसने देखा, कि दिन
जादुई तरह से लम्बे हो गए हैं, रोशनी
और ज़्यादा हो गयी थी, बावजूद
इसके कि कांच के बाहर लाखों बर्फीले कण बिखेरते हुए तूफ़ान टूट पडा है.
रेशमी टोपी के नीचे विचार प्रवाहित हो रहे थे, गंभीर, स्पष्ट, उदास. सिर हल्का, खाली
प्रतीत हो रहा था, जैसे
पराया हो, किसी डिब्बे के कन्धों पर
रखा हो, और ये विचार मानो बाहर से
आ रहे थे, और उस क्रम में आ रहे थे, जैसा वे स्वयं चाहते थे. खिड़की के पास अकेलापन
तुर्बीन को अच्छा लग रहा था और वह बाहर देख रहा था.
“ पेतुर्रा...आज रात को, उससे ज़्यादा नहीं, सब हो
जाएगा, पेतुर्रा का नामोनिशान
नहीं रहेगा ...मगर, क्या
वह था?...या, यह सब मुझे सपने में दिखाई दिया था? पता नहीं, जांचने
की कोई संभावना नहीं. लारिओसिक बहुत अच्छा है. वह परिवार में दखल नहीं देता, नहीं, बल्कि
उसकी आवश्यकता है. देखभाल के लिए उसे धन्यवाद कहना चाहिए...और शिर्वीन्स्की? आह, शैतान
जाने... औरतों के साथ मुसीबत ही होती है. बेशक, एलेना
उसके साथ बंध जायेगी, ये
अपरिहार्य है...मगर उसमें अच्छा क्या है? क्या
आवाज़? आवाज़ शानदार है,मगर आवाज़ तो, फिर भी, वैसे भी सुनी जा सकती है, बिना शादी किये, सही है
ना...वैसे, ये महत्वपूर्ण नहीं है.
मगर महत्वपूर्ण क्या है? हाँ, वही शिर्वीन्स्की कह रहा था, कि उनकी टोपियों पर लाल स्टार्स हैं...शायद, शहर में फिर से गड़बडी हो? ओह, हाँ...तो, आज रात
को...रास्तों पर वैगन्स जाने लगी हैं...मगर, फिर भी, मैं जाऊंगा, दिन में जाऊंगा...मैं ले जाऊंगा... छि:.
मारो उसे! मैं खूनी हूँ. नहीं, मैंने
युद्ध में गोली चलाई थी. या उसे मार डाला...वह किसके साथ रहती है? उसका पति कहाँ है? छि:. मलीशेव.
अभी वह कहाँ है? धरती
में समा गया. और मक्सिम...अलेक्सान्द्र प्रथम?”
विचार प्रवाहित हो रहे थे, मगर घंटी ने उनमें व्यवधान डाल दिया. अन्यूता के
सिवाय क्वार्टर में कोई नहीं था, सब शहर चले गए थे, उजाले के रहते सारे काम निपटाने की जल्दी में.
“अगर कोई मरीज़ है, तो उसे आने दो, अन्यूता.”
“अच्छा, अलेक्सेई वसिल्येविच.”
अन्यूता
के पीछे-पीछे कोई सीढ़ियों से आया, प्रवेश
कक्ष में बकरी की खाल का कोट उतारा और मेहमानखाने में आया.
“फरमाईये,”
तुर्बीन ने कहा.
कुर्सी से एक दुबला-पतला और पीलापन लिए, भूरे
जैकेट में एक नौजवान उठा. उसकी आंखें धुंधली और केन्द्रित थीं. सफ़ेद गाऊन पहने
तुर्बीन ने एक ओर हटकर उसे अपने अध्ययनकक्ष में आने दिया.
“बैठिये, प्लीज़.
आपके लिए क्या कर सकता हूँ?”
“मुझे सिफ्लिस है,”
भर्राई हुई आवाज़ में आगंतुक ने कहा और तुर्बीन की ओर सीधे और उदासी से देखा.
“पहले
इलाज करवा चुके हैं?”
“इलाज करवाया था, मगर
बुरी तरह और लापरवाही से. इलाज का बहुत कम फ़ायदा हुआ.”
“आपको मेरे पास किसने भेजा?”
“सेंट निकोलस चर्च के रेक्टर, फ़ादर अलेक्सान्द्र ने.”
“क्या?”
“फ़ादर अलेक्सान्द्र.”
“आप, क्या उन्हें जानते हैं?...”
“मैंने उनके सामने ‘कन्फेशन’ किया था, और
पवित्र बूढ़े की बातों से मेरी आत्मा को कुछ राहत मिली,” आसमान की तरफ़ देखते हुए
आगंतुक ने स्पष्ट किया. “मेरा इलाज नहीं होना चाहिए था...मैं ऐसा सोचता था. सब्र
से उस सज़ा को झेलना चाहिए था, जो खुदा
ने मेरे भयानक पाप के लिए मुझे दी है, मगर रेक्टर ने मुझे प्रेरणा दी कि मैं गलत
सोचता हूँ. और मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया.”
तुर्बीन ने बेहद ध्यान से मरीज़ की पुतलियों को
देखा और सबसे पहले उनकी प्रतिक्रया का अध्ययन करने लगा. मगर बकरी की खाल के कोट
वाले की आंखें सामान्य थीं, सिर्फ
उनमें एक आशाहीन उदासी थी.
“ तो,”
तुर्बीन ने छोटा सा हथौड़ा नीचे रखते हुए कहा, “आप, शायद,
धार्मिक व्यक्ति हैं.”
“हाँ, मैं
दिन-रात खुदा के बारे में सोचता हूँ और उसकी प्रार्थना करता हूँ. वही मेरा इकलौता
सहारा और सुकून देने वाला है.”
“ये, बेशक, बहुत
अच्छा है,” उसकी आंखों से आँखें हटाये बिना तुर्बीन ने कहा, “और मैं इसकी इज्ज़त
करता हूँ, मगर मैं आपको एक सलाह दूंगा: इलाज के दौरान आप खुदा के बारे में अपने जिद्दी
विचारों को दूर रखें. बात ये है की वह आपके दिमाग में एक ठोस विचार की शक्ल लेने
लगा है. और आपकी परिस्थिति में ये हानिकारक है. आपको हवा, गति और नींद की ज़रुरत है.”
“मैं रात में प्रार्थना करता हूँ.”
“नहीं, इसे
बदलना पडेगा. प्रार्थना के समय को कम करना पडेगा. वह आपको थका देगा, और आपको ज़रुरत
है सुकून की.”
मरीज़ ने नम्रता से आंखें झुका लीं.
वह तुर्बीन के सामने निर्वस्त्र खड़ा हो गया और
जांच के लिए स्वयं को उसके हवाले कर दिया.
“कोकीन लेते रहे हैं?”
“जिन नीच और पाप कर्मों को मैं करता रहा हूँ, उनमें यह भी थी. अब नहीं लेता.”
‘शैतान जाने...और अगर गुंडा, बदमाश निकला...नाटक
कर रहा है; ध्यान रखना होगा, कि प्रवेश
कक्ष से फ़र कोट न गायब हो जाएँ.’
तुर्बीन ने हथौड़े के डंडे से मरीज़ के सीने पर
प्रश्न वाचक चिह्न बनाया. सफ़ेद चिह्न लाल रंग में परिवर्तित हो गया.
“आप धार्मिक प्रश्नों पर ध्यान देना बंद कर
दीजिये. वैसे, सभी तरह के जटिल विचारों पर कम ध्यान दें. अब कपड़े पहन लीजिये. कल
से आपको ‘मरक्युरी’ का
इंजेक्शन दूंगा, और एक
सप्ताह बाद पहला ‘ब्लड ट्रांसफ्यूजन’.”
“अच्छी बात है,
डॉक्टर.”
“कोकीन सख्त मना है. पीना मना है. औरत भी...”
“मैं औरतों से और हर तरह के ज़हर से दूर हो चुका
हूँ. बुरे लोगों से भी दूर हट चुका हूँ,” मरीज़
ने कमीज़ के बटन बंद करते हुए कहा, “मेरी
ज़िंदगी का दुष्ट जिन्न,
ईसा-मसीह विरोधी अग्रदूत, शैतान
के शहर में चला गया है.”
“प्यारे भाई, ऐसा
नहीं कहते,” तुर्बीन कराहा, “वर्ना
तो आप मानसिक रुग्णालय पहुँच जायेंगे. आप किस मसीहा-विरोधी के बारे में कह रहे हैं?”
“मैं उसके पूर्ववर्ती मिखाइल सिम्योनविच
श्पल्यान्स्की के बारे में, कह रहा
हूँ, जिसकी आंखें सांप जैसी, और काले
कल्ले हैं. वह ईसा-विरोधी राज्य मॉस्को गया है, भ्रष्ट
फरिश्तों को संकेत देने कि इस शहर पर हमला
करें, उसके निवासियों के पापों
की सज़ा के रूप में. जैसा कि कभी सदोम और गमोरा....”
“ये आप बोल्शेविकों को भ्रष्ट फ़रिश्ते कह रहे
हैं? सहमत हूँ. मगर फिर भी, ऐसा नहीं चलेगा...आप ब्रोमीन लेंगे. एक-एक टेबल स्पून
दिन में तीन बार...”
“वह जवान है. मगर नीचता उसमें इतनी है, जितनी एक हज़ार साल बूढ़े शैतान में. औरतों को वह
व्यभिचार की ओर,
नौजवानों को पापकर्मों की ओर, और पापी झुण्ड युद्ध के बिगुल बजा रहे हैं और खेतों
के ऊपर उनके पीछे आते हुए शैतान का चेहरा दिखाई दे रहा है.
“त्रोत्स्की का?”
“हाँ यह नाम है, जो
उसने धारण किया है. मगर उसका वास्तविक नाम हिब्रू में है – अबादोन, और ग्रीक में – अपल्योन, जिसका मतलब है – हत्यारा.”
“मैं पूरी गंभीरता से आपसे कह रहा हूँ, कि अगर
आपने यह सब कुछ बंद नहीं किया, तो आप, देखिये... पागलपन बढ़ता जाएगा...”
“नहीं डॉक्टर, मैं
सामान्य हूँ. डॉक्टर, आप
अपने पवित्र कार्य के लिए कितनी फीस लेते हैं?”
“मेहेरबानी करके बताइये, ये हर कदम पर आप “पवित्र” शब्द क्यों इस्तेमाल करते
हैं? मैं तो अपने काम में कोई
पवित्र बात नहीं देखता. मैं इलाज के लिए उतना ही लेता हूँ, जितना सब लेते हैं. अगर
मेरे पास इलाज करवाना है, तो कुछ
अग्रिम राशि जमा कर दीजिये.”
“जी, बहुत
अच्छा.”
उसने अपना जैकेट खोला.
“आपके पास, शायद, पैसे कम हैं.” उसकी पतलून के घिसे हुए घुटनों की ओर
देखते हुए तुर्बीन बुदबुदाया. – “नहीं, यह
बदमाश नहीं है...नहीं...मगर पागल हो जाएगा.”
“नहीं, डॉक्टर, पैसे मिल जायेंगे. आप अपने तरीके से मानव जीवन को
काफी राहत दे रहे हैं.”
“और कभी-कभी बहुत सफलतापूर्वक. कृपया, ब्रोमीन नियम से लीजिये.”
“पूरा आराम तो, आदरणीय
डॉक्टर, हमें सिर्फ वहीं मिलेगा,” मरीज़ ने उत्स्फूर्तता से सफ़ेद छत की तरफ़ इशारा किया.
“मगर फिलहाल हम सबको कड़ी परिक्षा से गुज़रना है, जैसी
हमने अब तक देखी नहीं है...और यह बहुत जल्दी होने वाली है.”
“ओह,
नम्रतापूर्वक धन्यवाद देता हूँ. मैंने काफ़ी कुछ बर्दाश्त किया है.”
“आप कोई वादा नहीं कर सकते, डॉक्टर, ओह, नहीं कर सकते,”
प्रवेश कक्ष में अपना बकरी की खाल का ओवरकोट पहनते हुए कहा, “क्योंकि कहा गया है: तीसरे फ़रिश्ते ने पानी के
स्त्रोतों में प्याला खाली कर दिया है, और
उनका खून बन गया है.”
‘ये, मैं
पहले भी कहीं सुन चुका हूँ...आह, वो, पादरी के साथ जी भर के बातें कर रहा था. एक दूसरे के
अनुरूप ही हैं – शानदार.’
“मैं ज़ोर देकर कहता हूँ, ‘क़यामत’ कम
पढ़ें...फिर से दुहराता हूँ, ये
आपके लिए हानिकारक है. चलिए. कल शाम को छः बजे. अन्यूता, छोड़ कर आ,
प्लीज़...”
*****
“आप इसे लेने से इनकार नहीं करेंगी...मैं चाहता
हूँ कि मेरी ज़िंदगी बचाने वाली के पास मेरी यादगार के तौर पर कुछ...ये ब्रेसलेट
मेरी स्वर्गवासी माँ का है...”
“ज़रुरत नहीं है...ये किसलिए...मैं नहीं चाहती,” रोय्स ने जवाब दिया और अपने आप को तुर्बीन से बचाने
लगी, मगर वह अपनी बात पर अड़ा रहा और उसने पीली कलाई पर भारी, जालीदार, और
गहरे रंग का ब्रेसलेट पहना दिया. इससे हाथ और सुन्दर हो गया और उसे पूरी रोय्स और
ज़्यादा ख़ूबसूरत प्रतीत हुई...सांझ के झुटपुटे में भी दिखाई दे रहा था कि उसका
चेहरा कैसे गुलाबी हो रहा है.
तुर्बीन अपने आप को रोक न पाया, दायाँ हाथ रोय्स की गर्दन में डालकर उसने उसे अपनी ओर
खींचा और गाल को कई बार चूमा...ऐसा करते हुए उसके कमजोर हाथों से छड़ी छूट गई, और वह खट् से मेज़ की टांग के पास गिर पडी.
“आप जाईये...” रोय्स फुसफुसाई, “समय हो गया
है...समय हो गया है. रास्ते पर बख्तरबंद गाड़ियां जा रही हैं. होशियार रहिये, ताकि आपको न छुएँ.”
“आप मुझे अच्छी लगती हैं,” तुर्बीन बुदबुदाया, “मुझे
फिर से आपके पास आने की इजाज़त दीजिये.”
“आईये...”
“बताइये तो, कि आप
अकेली क्यों हैं, और मेज़
पर ये फोटो किसकी है? काला, कल्लों वाला...”
“ये मेरा चचेरा भाई है...रोय्स ने जवाब दिया और
अपनी आंखें झुका लीं.
“उसका कुलनाम क्या है?”
“आपको क्या ज़रुरत पड़ गई?”
“आपने मेरी जान बचाई है...मैं जानना चाहता हूँ.”
“जान बचाई और आपको जानने का अधिकार मिल गया? उसका नाम है श्पल्यान्स्की.”
“क्या वह यहाँ है?”
“नहीं, वह चला
गया...मॉस्को. कितने उत्सुक हैं आप.”
तुर्बीन के भीतर कोई चीज़ थरथरा गई, और वह बड़ी
देर तक काली आंखों और काले कल्लों की तरफ़ देखता रहा...जब तक ‘मैग्नेटिक ट्रॉयलेट’
के प्रेसिडेण्ट के माथे और होंठों का अध्ययन करता रहा, एक अप्रिय, चुभता
हुआ विचार अन्य विचारों से ज़्यादा देर तक रहा. मगर वह अस्पष्ट था...पूर्ववर्ती. ये
बकरी की खाल के ओवरकोट वाला अभागा आदमी...कौन सी चीज़ परेशान कर रही है? क्या चुभ रहा है? मुझे
क्या लेना-देना है. भ्रष्ठ फ़रिश्ते...आह, एक ही
बात है...बस, मैं
सिर्फ इस विचित्र और खामोश घर में और एक बार आ सकूं, सुनहरे शोल्डर-स्ट्रैप्स वाली
तस्वीर है.
“चलिए. समय हो गया.”
*****
“निकोल? तुम?”
दूसरे घर के पास रहस्यमय बाग़ के सबसे निचले तल
पर दोनों भाई एक दूसरे से टकराए. निकोल्का न जाने क्यों शर्मिन्दा हो गया, मानो वह रंगे हाथ पकड़ा गया हो.
“हाँ, मैं, अल्योश्का, नाय-तुर्स के यहाँ जा रहा था,” उसने स्पष्ट किया और उसके चेहरे का भाव ऐसा था, जैसे
उसे बागड़ के पास सेब चुराते हुए पकड़ा लिया हो.
“ठीक है, अच्छा काम है. वह अपने पीछे माँ को छोड़
गया है?”
“और बहन भी है, देखो,
अल्योशा...वैसे.”
तुर्बीन ने तिरछी नज़र से निकोल्का की तरफ़ देखा
और उससे कोई और सवाल नहीं पूछे.
आधा रास्ता भाईयों ने खामोशी से पार किया फिर
तुर्बीन ने खामोशी को तोड़ा.
“लगता है, भाई, पेतुर्रा ने तुझे और मुझे माला-प्रवाल्नाया स्ट्रीट
पर फेंक दिया है. आँ? तो, ठीक है, आते रहेंगे. और इसका क्या नतीजा निकलेगा – पता नहीं.
आँ?”
निकोल्का ने बड़ी दिलचस्पी से इस पहेली जैसे
वाक्य को सुना, और पूछ
लिया:
“क्या तुम भी किसी से मिलने गए थे, अल्योशा?
माला-प्रवाल्नाया पर?”
“हूँ,”
तुर्बीन ने जवाब दिया, अपने
ओवरकोट का कॉलर उठाकर उसमें छुप गया और घर पहुँचने तक उसने एक भी शब्द नहीं कहा.
*****
इस
महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दिन सभी तुर्बीनों के यहाँ भोजन कर रहे थे –
मिश्लायेव्स्की भी था करास के साथ, और
शिर्वीन्स्की भी. ये पहली दावत थी, जबसे तुर्बीन
घायल होकर पड़ा था. सब कुछ पहले जैसा था, सिवाय एक चीज़ के – मेज़ पर उदास, उमस भरे
गुलाब नहीं थे,
क्योंकि कन्फेक्शनर मार्किज़ा की बर्बाद हो गयी दुकान अब नहीं थी, जो न जाने किस अज्ञात स्थल को चली गयी थी, ज़ाहिर है, वहीं, जहां मैडम अंजू चिर विश्राम कर रही है. मेज़ पर बैठे
लोगों में से किसी ने भी शोल्डर-स्ट्रैप्स नहीं लगाए थे, शोल्डर स्ट्रैप्स भी कहीं बह गए थे और खिड़कियों के
पार बर्फीले तूफ़ान में पिघल गए थे.
सभी मुँह खोले शिर्विन्स्की को सुन रहे थे, अन्यूता भी किचन से आकर दरवाजों पर झुक गयी थी.
“कैसे सितारे?”
मिश्लायेव्स्की ने गंभीरता से पूछा.
“छोटे-छोटे, बैज की
तरह, पांच कोनों वाले,” – शिर्विन्स्की कह रहा था, “ उनकी हैट्स पर. कहते हैं, की बादलों की तरह आ रहे हैं...एक लब्ज़ में, आधी रात को वे यहाँ होंगे...”
“ऐसी सटीकता क्यों : आधी रात को...”
मगर शिर्विन्स्की जवाब नहीं दे पाया – इसलिए, कि घंटी की आवाज़ के बाद क्वार्टर में वसिलीसा प्रकट
हुआ.
वसिलीसा दाएँ और बाएँ झुकते हुए और गर्मजोशी से
हाथ मिलाते हुए, ख़ास कर
करास से, जूते चरमराते हुए सीधा
पियानो की ओर बढ़ा. एलेना ने गर्मजोशी से मुस्कुराते हुए उसकी तरफ़ हाथ बढाया, और
वसिलीसा, जैसे उछल कर उसके पास गया.
‘शैतान जाने, जब से
उसके घर से पैसे चुराए गए थे, तब से
वसिलीसा न जाने क्यों, ज़्यादा
भला हो गया है,’ निकोल्का ने सोचा और खयालों में फलसफा बघारने लगा, ‘ हो सकता है, की
पैसे भलमनसाहत से दूर रखते हों. जैसे यहाँ, मिसाल
के तौर पर, किसी के भी पास पैसे नहीं
हैं, और सभी भले हैं.’
वसिलीसा चाय पीने से इनकार करता है. नहीं, बहुत नम्रता से धन्यवाद देता है. बहुत, बहुत अच्छा है.
ही, ही.
आपके यहाँ सब कुछ कितना आरामदेह है, ऐसे खौफ़नाक
वक्त के बावजूद. ए...हे...नहीं, बेहद
नम्रता से धन्यवाद देता है. वान्दा मिखाइलव्ना के पास उसकी बहन आई है, गाँव से, और उसे
फ़ौरन घर लौटना होगा. वह इसलिए आया है, की
एलेना वसिल्येव्ना को ख़त दे सके. अभी दरवाज़े के पास लेटर बॉक्स खोला, और ये ख़त देखा.
“आपको देना अपना फ़र्ज़ समझा. अभिवादन करता हूँ.”
वसिलीसा ने उछलते हुए बिदा ली है.
एलेना ख़त लेकर शयनकक्ष में चली गयी...
ख़त विदेश से आया है? क्या सचमुच? ऐसे भी खत होते हैं. हाथ में लिफाफा लेते ही फ़ौरन समझ
जाते हो, कि ये क्या है. और यह
कैसे आया? किसी भी तरह के ख़त नहीं
आते हैं. यहाँ तक कि झितोमिर से शहर तक भी
किसी व्यक्ति के साथ ही भेजना पड़ता है. और हमारे यहाँ, इस देश में, हर चीज़ कितनी
बेवकूफ़ीभरी, जंगली है. आखिर, ये व्यक्ति भी तो ट्रेन में ही जाता है. फिर, बताइये
तो, खत क्यों नहीं जाते हैं, क्यों गुम हो जाते हैं? मगर ये
आ गया. परेशान न हों, ऐसा ख़त
पंहुच जाएगा, पता
ढूंढ लेगा. वार...वारसॉ. वारसॉ. मगर लिखाई तो तालबेर्ग की नहीं है. दिल कैसे अप्रिय
ढंग से धड़क रहा है.”
हाँलाकि लैम्प पर शेड़ था, मगर एलेना के शयनकक्ष में इतना बुरा लग रहा था, जैसे किसी ने फूलदार सिल्क का शेड़ खींच कर हटा दिया
हो, और तेज़ रोशनी आंखों में
चुभ रही हो और अराजकता का वातावरण पैदा कर दिया हो. एलेना का चेहरा बदल गया, नक्काशी वाली फ्रेम से देखते हुए मदर-मैरी के प्राचीन
चेहरे जैसा हो गया. होंठ थरथराए, मगर उन
पर संदेहास्पद लकीरें पड़ गईं. उसने मुंह खींचा. फटे हुए लिफ़ाफ़े से निकला भूरा
झुर्रियोंदार कागज़ प्रकाश पुंज में पडा था.
“अभी-अभी पता चला, कि तुम्हारा पति से तलाक
हो गया है. अस्त्रऊमावों ने सिर्गेइ इवानविच को दूतावास में देखा था – वह पैरिस जा
रहा था,
गेर्त्स के परिवार के साथ; कहते
हैं कि वह लीदच्का गेर्त्स से शादी करने वाला है; इस
गड़बड़ी और अराजकता में कैसी विचित्र घटनाएं हो रही हैं. मुझे अफसोस है कि तुम वहां
से गईं नहीं. किसानों के चंगुल में फंसे हुए आप सभी के लिए अफ़सोस है. यहाँ अखबारों
में लिखते हैं कि जैसे पित्ल्यूरा शहर की तरफ
बढ़ रहा है. हम उम्मीद करते हैं की जर्मन उसे नहीं घुसने देंगे...”
एलेना के दिमाग़ में दीवार के उस पार से, और ल्युद्विक XIV की
तस्वीर से कस कर बंद किये गए दरवाज़े के पार से निकोल्का की मार्च यंत्रवत् उछल रही
थी, खटखट कर रही थी. रिबन्स लिपटी
छड़ी वाला हाथ पीछे किये ल्युद्विक मुस्कुरा रहा था. दरवाज़े पर छड़ी की मूठ खटखटाई
और तुर्बीन भीतर आया. उसने बहन के चेहरे पर नज़र डाली, मुंह
उसी तरह टेढ़ा किया, जैसे
उसने किया था, और
पूछा:
“तालबेर्ग का ख़त है?’
एलेना खामोश रही, उसे शर्म आ रही थी, मन बोझिल हो रहा था. मगर फिर उसने तुरंत स्वयं पर काबू पा लोया और चिट्ठी तुर्बीन की ओर बढ़ा दी: “ओल्या का है ...वारसॉ से...”
तुर्बीन ने गौर से पंक्तियों पर आंखें गड़ा दीं,
और अंत तक पढ़ता रहा, फिर एक बार और आरंभिक पंक्ति को पढ़ा:
“प्रिय लेनच्का, मालूम नहीं कि यह तुम तक
पहुंचता है या नहीं...”
उसके चेहरें पर अनेक रंग तैर गए. मतलब - प्रमुख रंग था नारंगी, गालों की हड्डियां
गुलाबी, और आंखें नीली से काली
में परिवर्तित हो गईं.
“ कितनी खुशी से...” वह दांत भींचे कहता रहा, “मैं थोबड़े पर मुक्का जमाता...”
“किसके?” एलेना
ने पूछा और नाक सुड़की, जिसमें आंसू जमा हो गए थे.
“अपने आप के,” शर्म
से पानी-पानी होते हुए डॉक्टर तुर्बीन ने जवाब दिया, “इसलिए, कि तब उसे चूमा था.”
एलेना फ़ौरन रो पड़ी.
“तुम मुझ पर एक मेहेरबानी करो,” तुर्बीन कहता रहा, “तुम
ये चीज़ शैतान की खाला के पास फेंक दो,” उसने छड़ी की मूठ मेज़ पर रखी तस्वीर में गड़ा
दी.
एलेना ने सिसकियाँ लेते हुए तस्वीर तुर्बीन को
दे दी. तुर्बीन ने फ़ौरन फ्रेम से सिर्गेइ इवानविच की तस्वीर खींच ली और उसके
टुकड़े-टुकड़े कर दिए. एलेना औरतों की तरह बिसूरने लगी, उसके कंधे थरथरा रहे थे, और उसने तुर्बीन की कलफ़ लगी कमीज़ में सिर छुपा लिया.
उसने तिरछी नज़र से,
अंधविश्वास से, खौफ़ से
कत्थई प्रतिमा की ओर देखा, जिसके
सामने सुनहरी जाली में अभी भी लैम्प जल रहा था.
“खूब प्रार्थना कर ली...शर्त भी रखी... खैर, क्या...गुस्स्सा न करो...गुस्सा न हो, मदर मैरी”, अन्धविश्वासी एलेना ने सोचा. तुर्बीन घबरा
गया:
“धीरे, ओह, धीरे...वे लोग सुन लेंगे, क्या
फ़ायदा?”
मगर ड्राइंग रूम में किसीने भी नहीं सूना, निकोल्का की उँगलियों की के नीचे से बदहवास ‘मार्च’
निकल रहा था: ‘दो-मुंह का उकाब’, और ठहाके सुनाई दे रहे थे.
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