Sunday, 19 May 2024

श्वेत गार्ड्स - 18

 

18

 

           

         

      22 दिसंबर को दोपहर में तुर्बीन मरने लगा. यह दिन धुंधला था, बर्फीला था और दो दिनों बाद आने वाले क्रिसमस की चमक से सराबोर था. यह चमक ख़ास तौर से मेहमानखाने के लकड़ी के फर्श की चमक से महसूस हो रही थी, जिस पर अन्यूता, निकोल्का और लारिओसिक के संयुक्त प्रयासों द्वारा एक दिन पहले, बिना शोर मचाए, पॉलिश की गयी थी. अन्यूता के हाथों से साफ़ किये गए लैम्प-स्टैंड से भी ऐसा ही पूर्वानुमान हो रहा था. और आखिरकार पाईन वृक्षों की नुकीली पत्तियों की महक फ़ैल गयी और हरियाली ने उस कोने को आलोकित कर दिया, जहां पियानो की खुली कुंजियों पर मानो न जाने कबसे भूला बिसरा फ़ाऊस्ट पडा था...

 

मैं बहन के साथ....

 

करीब दोपहर को एलेना तुर्बीन के कमरे के दरवाज़े निकली, उसके कदम बिलकुल मज़बूत नहीं थे, वह खामोशी से डाइनिंग रूम से गुज़री जहां पूरी तरह खामोश करास, मिश्लायेव्स्की और लरिओसिक बैठे थे. जब वह जा रही थी, तो उसके चेहरे की ओर देखने से डरते हुए कोई भी हिला तक नहीं. एलेना ने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया, और भारी-भरकम परदा फ़ौरन निश्चल हो गया.  

मिश्लायेव्स्की कसमसाया.

“देखो,” भर्राई हुई फुसफुसाहट से उसने कहा, “कमांडर ने सब कुछ अच्छी तरह किया, मगर अल्योश्का को तो मुसीबत में डाल दिया...

करास और लरिओसिक ने इस पर कुछ नहीं कहा. लारिओसिक ने आंखें झपकाईं, और उसके गालों पर बैंगनी परछाईयां तैर गईं.

“आह...शैतान,”  मिश्लायेव्स्की ने आगे कहा, वह उठा और, अस्थिर कदमों से, दरवाज़े की ओर बढ़ा, फिर असमंजस से रुक गया, मुड़ा, एलेना के दरवाज़े पर आंख मारी. “सुनो, साथियों, आप लोग ध्यान रखना... वर्ना...”

वह अनिश्चय की स्थिति में कुछ देर खड़ा रहा और किताबों वाले कमरे में चला गया, वहां उसके कदमों की आहट रुक गयी. कुछ समय बाद उसकी आवाज़, और कुछ और अजीब बिसूरती आवाजें निकोल्का के कमरे से सुनाई दीं.

निकोल रो रहा है,” हताश स्वर में लरिओसिक फुसफुसाया, उसने गहरी सांस ली, दबे पाँव एलेना के दरवाज़े के पास गया, चाभी वाले सुराख की ओर झुका, मगर कुछ भी नहीं देख सका. उसने असहायता से करास की ओर देखा, उसे इशारे करने लगा, निःशब्द कुछ पूछने लगा. करास दरवाज़े के पास आया, कुछ झिझका, मगर फिर हौले से, कई बार, उंगली के नाखून से दरवाज़ा खटखटाया और धीरे से बोला:

“एलेना वसील्येव्ना, एलेना वसील्येव्ना...”  

“आह, आप घबराईये नहीं,” दरवाज़े के पीछे से एलेना की दबी-दबी आवाज़ आई, “भीतर मत आईये.”

करास पीछे हट गया, और लरिओसिक भी. वे दोनों अपनी-अपनी जगह पर वापस लौट आये – सार्दाम वाली भट्टी के निकट कुर्सियों पर और खामोश हो गए.

तुर्बीनों के लिए, और उनके घनिष्ठ मित्रों तथा रिश्तेदारों के लिए, अलेक्सेई के कमरे में करने के लिए कुछ भी नहीं था. वहाँ वैसे भी तीन मर्दों के कारण जगह की कमी महसूस हो रही थी. उनमें एक था सुनहरी आंखों वाले भालू जैसा, दूसरा – नौजवान, सफाचट दाढी और सुडौल शरीर वाला, जो डॉक्टर की अपेक्षा गार्ड्स-ऑफिसर जैसा लग रहा था, और, तीसरा, बेशक, सफ़ेद बालों वाला प्रोफ़ेसर. जब वह सोलह दिसंबर को वह प्रकट हुआ था, तभी उसके अनुभव ने उसे और तुर्बीन परिवार को अप्रिय जानकारी दी थी. वह सब समझ गया, और उसने तभी कह दिया कि तुर्बीन को टाइफ़स है. और बाएं हाथ की बगल के पास वाला घाव कम महत्वपूर्ण हो गया. वही प्रोफ़ेसर, एलेना के साथ, अभी घंटा भर पहले मेहमानखाने में निकला और उसके जिद्दी सवाल के जवाब में, जो न सिर्फ ज़ुबान से, बल्कि सूखी आंखों और फटे हुए होठों, और बढ़ी हुई लटों द्वारा भी पूछा गया था, बोला कि उम्मीद कम है, और आगे, एलेना की आंखों में, अत्यंत अनुभवी और इसलिए सब से सहानुभूति रखने वाली आँखों से झांकते हुए बोला, “बेहद कम”. सब को अच्छी तरह मालूम है और एलेना को भी, की इसका क्या मतलब है, की उम्मीद ज़रा-सी भी नहीं है और, मतलब, तुर्बीन मर रहा है. इसके बाद एलेना भाई के पास शयनकक्ष में गयी और उसके चेहरे की ओर देखते हुए बड़ी देर तक खड़ी रही, और तभी वह अच्छी तरह समझ गई, की “उम्मीद नहीं है” का मतलब क्या होता है. सफ़ेद बालों वाले और भले बूढ़े के हुनर का ज्ञान न होने पर भी, यह समझा जा सकता था, की डॉक्टर अलेक्सेई तुर्बीन मर रहा है. 

वह लेटा था, शरीर से अभी तक बुखार की गर्मी निकल रही थी, मगर यह गर्मी अस्थिर और नरम थी, जो बस, गिरने ही वाली है. और उसके चहरे पर कुछ अजीब, मोम जैसे लक्षण प्रकट होने लगे, और उसकी नाक बदल गई, पतली हो गयी, और नाक के ऊपर जैसे कोई निराशा विशेष रूप से मंडरा रही थी. एलेना के पैर ठन्डे हो गए, और शयनकक्ष की कपूर से सराबोर हवा में उसे धुंध उदासी महसूस होने लगी. मगर यह सब जल्दी ही समाप्त हो गया.

तुर्बीन के सीने पर कुछ पड़ा था, पत्थर जैसा, और वह सीटी जैसी आवाज़ से सांस ले रहा था, भिंचे हुए दांतों से चिपचिपी हवा खींच रहा था, जो उसके सीने में नहीं पहुँच रही थी. उसे काफी देर से होश नहीं था, और अपने चारों ओर हो रही किसी भी घटना को देख और समझ नहीं पा रहा था. एलेना कुछ देर खड़ी रही, देखती रही. प्रोफ़ेसर ने उसके हाथ को छुआ और फुसफुसाकर कहा:

“आप जाईये, एलेना वसील्येव्ना, हम खुद ही सब कुछ कर लेंगे.”

उसकी बात मानकर एलेना फ़ौरन बाहर निकल आई. मगर प्रोफ़ेसर ने कुछ और नहीं किया.

उसने अपना एप्रन उतारा, रुई के गीले गोलों से अपने हाथ पोंछे और एक बार फिर तुर्बीन के चेहरे की तरफ़ देखा. होठों की सिलवटों और नाक के पास नीली छाया गहराती जा रही थी.

“कोई उम्मीद नहीं,” प्रोफ़ेसर ने सफ़ाचट दाढी वाले के कान में बेहद धीमी आवाज़ में कहा, “आप, डॉक्टर ब्रदोविच, उसके पास रहिये.”

“कपूर?” ब्रदोविच ने फुसफुसाहट से पूछा.

“हाँ, हाँ, हाँ.”

“पूरी सिरिंज?”

“नहीं,” उसने खिड़की से बाहर देखा, कुछ देर सोचा, “एकदम तीन-तीन ग्राम्स. और जल्दी-जल्दी दीजिये”. उसने कुछ सोचा, और आगे कहा, “दुर्भाग्यपूर्ण अंत होने पर आप मुझे फ़ोन कीजिये,” ये शब्द प्रोफ़ेसर ने अत्यंत सावधानी से फुसफुसाते हुए कहे, ताकि अपने बुखार और धुंध की स्थिति में भी तुर्बीन उन्हें सुन न ले, “ क्लिनिक में. अगर ऐसा नहीं होता है, तो मैं अपने लेक्चर के बाद फ़ौरन आ जाऊंगा.”

 

**** 

 

 

 

   

    

साल दर साल, जहां तक तुर्बीनों को याद है, उनके घर में चौबीस दिसंबर की शाम को शाम के धुंधलके में प्रतिमा के पास दीप जलाए जाते, और शाम को मेहमानखाने में थरथराती, गर्माहट भरी रोशनी से फ़र-ट्री की टहनियां दमकने लगतीं. मगर अभी, गोली के घाव और घरघराते हुए टाइफ़स ने सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया था, ज़िंदगी को तेज़ पटरी पर डाल दिया था, और दीपों की रोशनी को भी जल्दी ही प्रज्वलित कर दिया. डाइनिंग रूम का दरवाज़ा थोड़ा सा बंद करके एलेना छोटी सी मेज़ के पास गई, वहां से माचिस की डिब्बी उठाई, कुर्सी पर चढ़ गयी, और चेन से लटका हुआ भारी लैम्प प्रज्वलित कर दिया, जो भारी फ्रेम में जडी हुई पुरानी प्रतिमा के सामने टंगा हुआ था. जब लौ स्थिर हो गयी, तो वह गर्म हो गयी, गॉड मदर के सांवले चेहरे पर उसका प्रभामंडल सुनहरा हो गया, उसकी आंखें सौहार्द्रपूर्ण हो गईं. एक ओर को झुका हुआ सिर एलेना की तरफ़ देख रहा था. खिड़की की दो चौखटों में दिसंबर का श्वेत, खामोश दिन था, कोने में फड़फड़ाती हुई लौ त्यौहार पूर्व का वातावरण निर्माण कर रही थी. एलेना कुर्सी से उतरी, उसने कन्धों से रूमाल फेंक दिया और घुटनों पर झुक गयी. उसने कालीन की किनार दूर हटाई, अपने लिए चमकदार फर्श पर थोड़ी सी जगह बनाई और, चुपचाप, फर्श पर माथा टेका.

मिश्लायेव्स्की डाइनिंग रूम में आया, उसके पीछे पीछे फूली पलकों के साथ निकोल्का. वे तुर्बीन के कमरे में जाकर आये थे. डाइनिंग रूम में लौटने पर निकोल्का ने अपने साथियों से कहा:

“मर रहा है...” उसने गहरी सांस ली.

“तो,” मिश्लायेव्स्की ने कहा, “क्या पादरी को बुलाना चाहिए? आं, निकोल?...जिससे उसे किसी तरह, वर्ना तो, बिना ‘कन्फेशन’ के...”

“ल्येना से कहना होगा,” निकोल्का ने भय से उत्तर दिया, “उसके बगैर कैसे. और उसे कुछ हो जाएगा...”

“मगर डॉक्टर क्या कहता है?” करास ने पूछा.

“इसमें कहने की क्या बात है. कहने के लिए अब कुछ है ही नहीं,” मिश्लायेव्स्की ने भर्राई आवाज़ में कहा.

वे बड़ी देर तक व्यग्रता से फुसफुसाते रहे, और सुनाई दे रहा था, कि कैसे बेचारा बदहवास लारिओसिक आहें भर रहा है. एक बार फिर डॉक्टर ब्रदोविच के पास गए. उसने बाहर प्रवेश कक्ष की ओर नज़र डाली, सिगरेट का कश लिया और फुसफुसाकर कहा, कि वह बड़ी पीड़ा में है, कि, पादरी को बुला सकते हैं, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मरीज़ तो बेहोश है और इससे किसी को नुक्सान नहीं पंहुचता.   

“खामोश ‘कन्फेशन...”

   फुसफुसाते रहे, फुसफुसाते रहे, मगर फिलहाल पादरी को बुलाने का फैसला न कर पाए, और एलेना के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, उसने दबी हुई आवाज़ में दरवाज़े के भीतर से जवाब दिया: “अभी आप लोग जाइए...मैं थोड़ी देर में बाहर आऊँगी...”

और वे चले गए.

घुटनों के बल झुके हुए एलेना ने भंवों के नीचे से स्पष्ट आंखों वाले काले पड़ गए मुख के ऊपर दांतेदार मुकुट की ओर देखा और, हाथ फैलाते हुए फुसफुसाहट से बोली:

“अचानक बहुत सारा दुःख भेज रही हो, ‘मदर – अन्तर्यामी. साल भर के अन्दर ही परिवार ख़त्म कर रही हो. किसलिए?...माँ को, हमारी माँ को छीन लिया, पति मेरे पास नहीं है और होगा भी नहीं, ये मैं समझती हूँ. अब तो बहुत स्पष्ट रूप से समझ रही हूँ. मगर अब बड़े वाले को भी छीन रही हो. किसलिए?...मैं और निकोल्का कैसे रहेंगे?...ज़रा देखो, चारों ओर क्या हो रहा है, तुम देखो...’मदर-अन्तर्यामी, क्या तुम्हें दया नहीं आती?...हो सकता है, कि हम बुरे इंसान हों, मगर हमें इतनी सज़ा क्यों दे रही हो?

वह फिर से झुकी और आतुरता से माथे से फर्श को छुआ, सलीब का निशान बनाया और, फिर से हाथ फैलाकर, प्रार्थना करने लगी:

“बस, तुम्हारा ही सहारा है, परम पवित्र कुँआरी. सिर्फ तुम्हारा. अपने पुत्र से प्रार्थना करो, ईश्वर से प्रार्थना करो, कि कोई चमत्कार करे...”

एलेना की प्रार्थना अधिकाधिक भावुक होती गयी, उसके शब्द लड़खड़ाते हुए निकल रहे थे, मगर उसकी प्रार्थना निरंतर चल रही थी, धारा-प्रवाह थी. वह अक्सर फर्श पर झुकती, सिर को हिलाती, जिससे कंघी से निकल कर आंखों पर उतर आई लट को पीछे हटाए. खिड़कियों की चौखटों से दिन लुप्त हो गया, सफ़ेद बाज़ भी अदृश्य हो गया, घड़ी के बजाये तीन घंटे भी अनसुने रह गए, और पूरी तरह खामोशी में आया वह, जिसे सांवली कन्या के माध्यम से एलेना ने पुकारा था. वह खुली हुई कब्र के निकट प्रकट हुआ, पुनर्जीवित, और दयालु, और नंगे पैर.

एलेना का सीना बेहद चौड़ा हो गया, गालों पर धब्बे उभर आये, आंखें रोशनी से लबालब भर गईं, सूखे, अश्रु रहित रुदन से भर गईं. उसने माथा और गाल फर्श पर टेक दिया, फिर पूरी आत्मा से सीधी होकर लौ की तरफ बढ़ी, घुटनों के नीचे कड़े फर्श का अनुभव न करते हुए.

लौ फड़फड़ाई, मुकुट जड़ा सांवला चेहरा प्रत्यक्ष रूप से सजीव हो उठा, और आंखें एलेना को निरंतर प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करती रही.  

खिड़कियों और दरवाजों के बाहर निपट खामोशी थी, दिन खतरनाक रूप से जल्दी अंधियारे में बदल रहा था, और फिर से एक दृश्य उभरा – आसमानी गुम्बद का कांच जैसा रंग, कुछ अनदेखे, लाल-पीले रेत के ढेर, जैतून के वृक्ष, दिल में सदियों पुरानी खामोशी और ठंडक सुगंध से चर्च महक रहा था.

‘मदर’- दयालु, - लौ में एलेना बुदबुदा रही थी, - उससे कहो. ये रहा वो. तुम्हारे लिए तो कुछ मुश्किल नहीं है. हम पर दया करो. दया करो. तुम्हारे दिन, तुम्हारा त्यौहार आ रहा है. हो सकता है, वह कुछ अच्छा कर दे, और अपने पापों के लिए तुमसे क्षमा मांगती हूँ. सिर्गेइ चाहे तो वापस न लौटे ...उसे हटाना चाहती हो, हटाओ, मगर इसे मौत की सज़ा न दो...हम सब खून के दोषी हैं, मगर तुम सज़ा न दो. सज़ा न दो. ये रहा वो, ये रहा वो...”

लौ फड़फड़ाने लगी, और प्रकाश की एक किरण लम्बी होती गयी, लम्बी होते होते एलेना की आंखों तक पहुँच गई. अब उसकी उन्मत्त आँखों ने देखा कि सुनहरे रूमाल से घिरे हुए मुख पर होंठ विलग हो गए, और आंखें ऐसी अभूतपूर्व हो गईं, कि भय और मदहोश खुशी

उसके दिल को चीरती चली गयी, वह फर्श पर गिर गई और फिर नहीं उठी. 

 

          

****

 

पूरे घर में सूखी हवा की भांति उत्तेजना फ़ैल गयी, डाइनिंग रूम से होकर कोई पंजों के बल भागा. कोई और दरवाज़े को खुरचने लगा, फुसफुसाहट फ़ैल गई:

“एलेना...एलेना...एलेना...” एलेना हथेलियों के पिछले भाग से ठंडा, चिपचिपा माथा पोंछते हुए, बालों की लट को पीछे फेंकते हुए, उठी, अपने सामने अंधों की तरह, किसी जंगली के समान, उठी, प्रकाशित कोने पर नज़र न डालते हुए वह,  फौलाद जैसे ठंडे दिल से दरवाज़े की तरफ़ गई. अनुमति की प्रतीक्षा किये बिना, वह अपने आप खुल गया, और परदे से बनी चौखट में निकोल्का प्रकट हुआ. निकोल्का की आंखें एलेना की ओर दहशत से देख रही थीं, उसकी सांस जैसे रुक रही थी.

“जानती हो, एलेना...तुम घबराओ नहीं...घबराओ नहीं...वहाँ जाओ...लगता है...”

 

 

**** 

 

डॉक्टर अलेक्सेई तुर्बीन, मोम जैसा, पसीने भरे हाथों में टूटी हुई, झुर्रियां पडी मोमबत्ती जैसा. कम्बल के नीचे से बढे हुए नाखूनों वाले हडीले हाथ बाहर निकाले, नुकीली ठोढ़ी ऊपर किए लेटा था. उसका शरीर चिपचिपे पसीने में नहाया हुआ था, और सूखी, फिसलन भरी छाती कमीज़ के खुले हुए भागों से झाँक रही थी. उसने नीचे की ओर सिर घुमाया, ठोढ़ी सीने पर टिका दी, पीले दांत खोले, आंखें थोड़ी सी खोलीं. उनमें अभी भी कोहरे और प्रलाप का फटा हुआ परदा झूल रहा था, मगर काले धब्बों के बीच रोशनी झाँक रही थी. बेहद कमजोर, भर्राई और पतली आवाज़ में उसने कहा:

“ संकट, ब्रदोविच. क्या...मैं जिऊंगा?...आ-हा.”

थरथराते हाथों में करास लैम्प पकड़े खड़ा था, और वह दबे हुए बिस्तर और भूरी परछईयों तथा सिलवटों वाली चादर को आलोकित कर रहा था. 

सफाचट दाढी वाले डॉक्टर से अनाश्वस्त हाथ से तुर्बीन के हाथ में इंजेक्शन की छोटी सी सुई घुसाते हुए मांस का बचा हुआ टुकड़ा दबाया. डॉक्टर के माथे पर पसीने की छोटी छोटी बूंदे छलक आईं. वह परेशान और हैरान था.

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