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वह इच्छित लक्ष्य, जिसके बारे में निकोल्का इन तीन दिनों के दौरान सोच रहा था, जब घटनाएं
परिवार पर पत्थरों की तरह टूट पड़ी थीं, वह लक्ष्य, जो बर्फ पर गिरे हुए आदमी के रहस्यमय, अंतिम शब्दों से संबंधित था, उस लक्ष्य को
निकोल्का ने प्राप्त कर लिया. मगर इसके लिए, उसे पूरे दिन परेड़ से पहले, शहर में भागना पडा और कम से कम नौ पतों पर जाना पडा. और इस भागदौड़ में कई
बार निकोल्का अपनी मानसिक शक्ति खोता रहा, और गिरता रहा, और फिर से उठता रहा, और आखिर में उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लिया.
शहर के बिल्कुल बाहरी भाग में, लितोव्स्काया स्ट्रीट पर, एक छोटे से घर में उसने डिविजन के दूसरे स्क्वैड
के एक व्यक्ति को ढूंढ निकाला, और उससे कर्नल नाय का पता, नाम और कुलनाम प्राप्त किया.
सेंट सोफ़िया वाले चौक को पार करने की कोशिश में निकोल्का क़रीब दो घंटे लोगों
की तूफ़ानी लहरों से संघर्ष करता रहा. मगर चौक को पार करना असंभव था, बल्कि इस
बारे में सोचा ही नहीं जा सकता था!
तब इन तंग गलियों से निकलकर आरंभिक बिंदु
- मिखाइलोव्स्की मॉनेस्ट्री पर पहुँचने में ठण्ड से ठिठुर चुके निकोल्का का
आधा घंटा बर्बाद हो गया. वहां से निकोल्का ने कस्त्योल्नाया से होते हुए, एक बड़ा चक्कर
लगाकर, नीचे क्रिश्चातिक पर पहुँचने की कोशिश की, और वहां से गोल-गोल, निचले रास्तों का चक्कर लगाते हुए, माला-प्रवाल्नाया पर पंहुचने की कोशिश की. यह भी
असंभव ही प्रतीत हुआ! कस्त्योल्नाया से ऊपर की ओर फ़ौजें एक मोटे सांप की भाँति,
जैसा की हर तरफ हो रहा था, परेड पर जा रही थीं. तब निकोल्का एक और बड़ा और उत्तल मोड़ लेकर
व्लादिमीर्स्काया पहाडी पर पहुंचा और उसने स्वयं को नितांत अकेला पाया. सफ़ेद बर्फ
की दीवारों के बीच निकोल्का छतों पर और गलियों में भागते हुए आगे बढ़ता रहा.
वह ऐसी जगहों पर भी पहुंचा, जहां बर्फ इतनी ज़्यादा नहीं थी. छतों से बर्फ के समुद्र में सामने वाली
पहाड़ियों पर स्थित शाही-गार्डन दिखाई दे रहा था, और आगे, बाईं तरफ़, शीत ऋतु के किनारों में, सफ़ेद और शानदार द्नेप्र के पार – अंतहीन सर्दियों
की सम्पूर्ण शान्ति में, फैले हुए अंतहीन चिर्निगोफ़ के मैदान.
शांति थी, और पूरा सुकून था, मगर निकोल्का को सुकून से कोई मतलब नहीं था. बर्फ से संघर्ष करते हुए वह एक
के बाद दूसरी छत पार करता रहा, और सिर्फ कभी-कभी इस बात पर अचरज करता रहा की, कहीं-कहीं बर्फ़ कुचली गयी है, पैरों के निशान हैं, मतलब कोई न
कोई तो सर्दियों में भी बर्फ पर घूमता है.
गली में नीचे उतरा, आखिरकार, निकोल्का ने यह देखकर राहत की सांस ली कि क्रेश्चातिक में फौजें नहीं हैं, और वह इच्छित
स्थान की ओर बढ़ा,
जिसे वह खोज रहा था. “मावा-प्रवाल्नाया, 21”.
यही तो था पता,जो निकोल्का को प्राप्त
हुआ था, और
यह अलिखित पता निकोल्का के दिमाग में अंकित हो गया था.
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निकोल्का परेशान हो रहा था और सकुचा रहा था...”किससे और कैसे पूछना बेहतर
होगा? कुछ भी पता नहीं है...उसने गार्डन की पहली मंजिल पर स्थित बाहरी फ़्लैट की
घंटी बजाई. बड़ी देर तक कोई जवाब नहीं आया, मगर, आखिरकार, कदमों की आहट सुनाई दी, और कुंडी के नीचे दरवाज़ा थोड़ा-सा खुला. नाक-पकड़ चश्मे में एक महिला के
चेहरे ने बाहर झांककर प्रवेश कक्ष के अँधेरे से गंभीरता से पूछा:
“आपको क्या चाहिए?”
“माफ़ कीजिये... क्या यहाँ नाय-तुर्स रहते हैं?”
महिला का चेहरा एकदम अप्रिय और गंभीर हो गया, चश्मे के कांच चमक उठे.
“कोई नाय तुर्स यहाँ नहीं है,” महिला ने नीची आवाज़ में कहा.
निकोल्का लाल हो गया, परेशान हो गया और दुखी हो गया.
“ये फ़्लैट नंबर पांच...”
“हाँ, तो,” बेमन से और संदेह से महिला ने जवाब दिया, “आप बताइये भी, की आपको क्या चाहिए.”
“मुझे सूचित किया गया है, की तुर्स परिवार यहाँ रहता है...”
महिला के कुछ और चेहरा बाहर निकाला और ताड़ती हुई नज़रों से गार्डन की तरफ़
देखा, यह जानने की कोशिश करते हुए कि क्या निकोल्का के पीछे कोई और भी है... अब
निकोल्का ने महिला की पूरी, दोहरी ठोढी देखी.
“हाँ, आपको क्या चाहिए?...आप मुझे बताइये.”
निकोल्का ने गहरी सांस ली और, चारों ओर नज़र घुमाकर कहा:
“मैं फ़ेलिक्स फ़ेलिक्सविच के बारे में...मेरे पास जानकारी है.”
चेहरा फ़ौरन बदल गया. महिला ने पलकें झपकाईं और पूछा:
“आप कौन हैं?”
“स्टूडेंट.”
“यहीं इंतज़ार कीजिये,” दरवाज़ा धडाम से बंद हो गया और कदमों की आहट थम गई
आधे मिनट बाद दरवाज़े के पीछे एड़ियाँ खटखटाईं, दरवाजा पूरी तरह खुल गया निकोल्का
भीतर गया. मेहमानखाने से प्रवेश कक्ष में रोशनी आ रही थी, और निकोल्का ने
फूली-फूली नरम कुर्सी की किनार देखी, और फिर नाक-पकड़ चश्मे वाली महिला को देखा.
निकोल्का ने टोपी उतारी, और तभी उसके सामने एक दूसरी, सूखी-सी, मझोले कद की महिला प्रकट हुई, चेहरे पर मुरझाती खूबसूरती के निशान लिए. कुछ अस्पष्ट और महत्वहीन लक्षणों से
– या तो कनपटियों पर, या फिर बालों के रंग से, निकोल्का ने अंदाज़ लगाया की यह नाय की माँ है, और वह घबरा गया – वह कैसे सूचित करेगा...महिला ने उस पर सीधी, स्पष्ट नज़र
गड़ा दी, और निकोल्का पूरी तरह गड़बड़ा गया. किनारे से कोई और आया, शायद, जवान और बेहद
मिलता-जुलता.
“अच्छा, बताओ भी, हुम्...” माँ ने जिद्दीपन से कहा.
निकोल्का ने हाथों में अपनी टोपी मसल दी, महिला की ओर अपनी आंखें उठाईं और बोला:
“मैं...मैं...”
सूखी-सट् माँ ने निकोल्का पर अपनी काली और, जैसा कि उसे प्रतीत हुआ, नफ़रतभरी नज़र डाली और अचानक इतनी ज़ोर से चीख़ी, की निकोल्का के पीछे दरवाज़े के शीशे झनझना गए:
“फ़ेलिक्स मारा गया!”
उसने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं, उन्हें निकोल्का के चेहरे के सामने नचाया और चीखी:
“मार डाला...इरीना, सुन रही हो? फ़ेलिक्स को मार डाला!”
भय से निकोल्का की आंखों के आगे धुंध छा गयी, और उसने बदहवासी से सोचा: “मैंने तो कुछ भी नहीं कहा...माय गॉड!” नाक-पकड़
चश्मा पहनी मोटी महिला ने फ़ौरन निकोल्का के पीछे वाला दरवाज़ा धड़ाम् से बंद कर
दिया. फिर जल्दी, जल्दी सूखी वाली महिला के पास भागी, उसे कन्धों से पकड़ा और जल्दी-जल्दी फुसफुसाई:
“ओह, मारिया फ्रान्त्सेव्ना, चुप, प्यारी, शांत हो जाईये...” निकोल्का की ओर झुकी, पूछा: “हाँ, हो सकता है, कि ये सच न हो?...खुदा...आप बताईये भी...क्या सचमुच?...”
निकोल्का इस पर कुछ न कह सका... उसने सिर्फ बदहवासी से सामने की ओर देखा और
फिर से कुर्सी की किनार देखी.
“धीरे, मारिया फ्रान्त्सेव्ना, धीरे, प्यारी...खुदा के लिए...लोग सुन लेंगे...खुदा की मर्जी...” मोटी महिला
बुदबुदाई.
नाय-तुर्स की माँ पीठ के बल गिर पड़ीं और बिसूरने लगी:
“चार साल! चार साल! मैं इंतज़ार कर रही हूँ, बस, इंतज़ार ही कर रही हूँ...इंतज़ार कर रही हूँ!”
अब जवान महिला निकोल्का के कंधे के पीछे से माँ की तरफ़ लपकी और उसे पकड़
लिया. निकोल्का को उसकी सहायता करनी चाहिए थी, मगर वह अप्रत्याशित, भयानक रूप से बेकाबू होकर सिसकियाँ लेने लगा और अपने
आप को रोक न सका.
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खिड़कियों पर परदे खिंचे हुए हैं, मेहमानखाने में आधा अन्धेरा और पूरी खामोशी है, जिसमें दवा की गंध आ रही
है...
खामोशी को आखिर जवान महिला ने तोड़ा – उसी बहन ने. वह खिड़की से मुडी और
निकोल्का के पास आई. निकोल्का कुर्सी से उठा, हाथों में अभी तक टोपी पकड़े हुए, जिसे इन
भयानक परिस्थितियों में वह छोड़ नहीं पा रहा था. बहन ने यंत्रवत् ढंग से काले बालों
की लट को ठीक किया, मुंह खींचा और पूछा:
“वह कैसे मरा?”
“वह मरा,” निकोल्का ने अपनी सबसे बेहतरीन आवाज़ में जवाब दिया, “वह, पता है, एक ‘हीरो’ की मौत मरा.
वास्तविक ‘हीरो’...सभी कैडेट्स को समय रहते भगा दिया, और खुद,” सुनाते हुए निकोल्का रो रहा था, “और खुद फायरिंग से उनकी रक्षा की. उसके साथ-साथ मुझे भी उन्होंने
करीब-करीब मार ही डाला था. हम मशीनगनों की फायरिंग की चपेट में आ गए थे,” निकोल्का रोते-रोते
सुना रहा था, “हम...सिर्फ दो ही बचे थे, और वह मुझे भगा रहा था, और डांट रहा था, और मशीनगन से फायर किये जा रहा था. चारों ओर से घुड़सवार दल हम पर टूट पड़े, क्योंकि हम
जाल में फंस गए थे. सही में, सभी दिशाओं से.”
“और, हो सकता है, उसे सिर्फ घायल किया हो?”
“नहीं,” निकोल्का ने दृढ़ता से उत्तर दिया और गंदे रूमाल से आंखें, और नाक और
मुंह पोंछने लगा, “ नहीं उसे मार डाला. मैंने खुद उसे छूकर देखा था. सिर में गोली
लगी थी और सीने पर.”
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अन्धेरा और गहरा हो गया, बगल वाले कमरे से कोई भी आवाज़ नहीं आ रही थी, क्योंकि मारिया
फ्रान्त्सेव्ना खामोश हो गयी थी, और मेहमानखाने में, पास-पास बैठकर तीनों फुसफुसा रहे थे: नाय की बहन – इरीना, वह नाकपकड़
चश्मे वाली मोटी, जैसा की निकोल्का को बताया गया – क्वार्टर की मालकिन - लीदिया पाव्लव्ना, और खुद निकोल्का.
“मेरे पास पैसे नहीं हैं,” निकोल्का फुसफुसाया, “ अगर ज़रूरी हो, तो मैं अभी भागकर पैसों का इंतज़ाम करूँगा, और उसके बाद जायेंगे.”
“मैं अभी पैसे देती हूँ,” लीदिया पाव्लव्ना की आवाज़ गूंजी, “पैसे तो छोटी चीज़ है, सिर्फ आप, खुदा की
खातिर, काम पूरा कर लेना. इरीना, उससे एक भी लब्ज़ न कहना, की कहाँ और क्या...मैं खुद भी नहीं समझ पा रही हूँ, कि क्या करना
चाहिए...”
“मैं इसके साथ जाऊंगी,” इरीना फुसफुसाई, “और हम काम पूरा कर लेंगे. आप उससे कहेंगी की वह बैरेक्स
में पडा है, और उसे देखने के लिए इजाज़त लेनी होगी.”
“अच्छा, अच्छा.... ये
अच्छी बात है....अच्छा है....”
मोटी महिला – फ़ौरन बगल वाले कमरे में लपकी, और वहां से उसकी आवाज़ सुनाई देने लगी, फुसफुसाती, यकीन दिलाती:
“मारिया फ्रान्त्सेव्ना, ओह, लेट जाईये, क्राईस्ट की खातिर...वो लोग अभी जायेंगे और सब कुछ पता करेंगे. इस कैडेट ने
बताया है की वह बैरेक्स में पडा है.”
“चारपाई पर? ...” खनखनाती
और, जैसा निकोल्का को फिर से आभास हुआ, घृणित आवाज़ ने पूछा.
“क्या कह रही हैं, मरीया फ्रान्त्सेव्ना, वह चैपल में है, चैपल में...”
“हो सकता है, चौराहे पर पड़ा हो, कुत्ते उसे नोच रहे होंगे.”
“आह, मारिया फ्रान्त्सेव्ना, ओह, आप कह क्या रही हैं...शान्ति से लेटी रहिये, आपकी मिन्नत करती हूँ...”
“इन तीन दिनों से मम्मा बिल्कुल अस्वाभाविक हो गयी हैं...” नाय की बहन
फुसफुसाई और उसने फिर से बालों की ज़िद्दी लट को पीछे हटाया और निकोल्का के पीछे
दूर कहीं देखती रही, - “खैर, इस सबका अब कोई मतलब नहीं है.”
बहन फ़ौरन उछली और भागी.
“मम्मा, मम्मा, तुम नहीं जाओगी. अगर तुम जाओगी, तो कैडेट मदद करने से इनकार कर रहा है. उसे गिरफ़्तार कर सकते हैं. लेटी रहो, लेटी रहो, मैं मिन्नत
करती हूँ...”
“ओह, इरीना, इरीना, इरीना, इरीना,” बगल वाले कमरे से सुनाई दिया, “ मार डाला, मार डाला उसे, और तू क्या कह रही है? क्या ?,,,तू, इरीना...अब मैं करूंगी क्या, जब फेलिक्स को मार डाला है? मार डाला... और वह बर्फ में पड़ा है...क्या तुम सोचती हो...” फिर से सिसकियाँ
शुरू हो गईं, चारपाई चरमराई और फ़्लैट की मालकिन की आवाज़ सुनाई दी:
“ओह, मारिया फ्रान्त्सेव्ना, ओह, बेचारी, ओह, सब्र करो, सब्र करो...”
“आह, खुदा, ख़ुदा,” जवान महिला ने कहा और तेज़ी से मेहमानखाने से होकर भागी. निकोल्का ने, भय और निराशा
का अनुभव करते हुए, बदहवासी से सोचा: “और अगर न ढूंढ पाए तो, फिर क्या?”
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सबसे खौफनाक दरवाजों के पास, जहाँ, बर्फबारी के बावजूद, भयानक दुर्गन्ध महसूस हो रही थी, निकोल्का रुका और बोला:
“आपके लिए, शायद यहाँ कुछ देर बैठना अच्छा रहेगा...वर्ना... वर्ना तो वहां ऐसी बदबू है, कि हो सकता
है, आपकी तबियत खराब हो जाए.”
इरीना ने हरे दरवाज़े की तरफ़ देखा, फिर निकोल्का की तरफ़ और कहा:
“नहीं, मैं आपके साथ चलूंगी.”
निकोल्का ने भारी दरवाज़े का हैंडिल
खींचा और वे भीतर गए. शुरू में अन्धेरा था. फिर खाली हैंगरों की अंतहीन कतारें
टिमटिमाईं. ऊपर मद्धिम रोशनी वाला बल्ब जल रहा था.
निकोल्का ने आशंका से अपनी हमसफ़र की ओर देखा, मगर वह – जैसे कोई ख़ास बात न हो – उसकी बगल में चल रही थी, और सिर्फ
उसका चेहरा पीला था, और उसकी भौंहे चढ़ी थीं. इस तरह से चढ़ी
थीं,कि निकोल्का को नाय-तुर्स की याद दिला गईं, मगर, समानता हल्की-सी ही थी –
नाय का चेहरा फौलादी था,
सीधा-सादा और मर्दाना,
मगर ये – सुन्दर थी, और
वैसी नहीं,
जैसी रूसी महिला होती है,
बल्कि,
विदेशी. आश्चर्यजनक, असाधारण युवती थी.
ये बदबू, जिससे निकोल्का इतना घबरा रहा था, चारों तरफ़ थी. फर्श गंधा रहे थे, दीवारें गंधा रही थीं, लकड़ी के हैंगर्स भी. ये बदबू इस हद तक खतरनाक थी, कि उसे देखा
भी जा सकता था. ऐसा प्रतीत हो रहा था, की दीवारें मोटी-मोटी और चिपचिपी हैं, और हैंगर्स, चमकदार, फर्श
मोटे, और वहाँ की हवा घनी और सड़े हुए मांस की दुर्गन्ध से संतृप्त थी. वैसे दुर्गन्ध की तो जल्दी ही आदत
हो जाती है, मगर बेहतर है कि न कहीं गौर से देखो, और न ही कुछ सोचो. सबसे ख़ास बात, कुछ न सोचो, वर्ना फ़ौरन जान जाओगे की ‘मतली’ क्या होती है. कोट पहने एक स्टूडेंट की झलक दिखाई दी और वह गायब हो गया.
हैंगर्स के पीछे बाईं और चरमराते हुए दरवाज़ा खुला, और वहाँ से जूते पहने एक आदमी बाहर आया. निकोल्का ने उसकी तरफ़ देखा और फ़ौरन
आंखें फेर लीं, ताकि उसका कोट न देखे. कोट चमक रहा था, हैंगर की तरह, और आदमी के हाथ भी चमक रहे थे.
“आपको क्या चाहिए?” उस आदमी ने कठोरता से पूछा.
“हम,” निकोल्का ने कहा, “काम से आये हैं, हमें मैनेजर से मिलना है...हमें मारे गए व्यक्ति को ढूँढना है. शायद, वह यहाँ है?”
“कौनसे मारे गए आदमी को?” आदमी ने पूछा और कनखियों से देखा...
“वहां, रास्ते पर, तीन दिन पहले उसे मार डाला गया...”
“अहा, शायद, कैडेट या ऑफिसर...और कज़ाकों ने हमला कर दिया. वह – कौन है?”
निकोल्का यह बताने से डर रहा था की नाय-तुर्स ऑफिसर ही था, और उसने कहा:
“ओह, हाँ, और उसे भी मार डाला...”
“वह गेटमन का ऑफिसर था,” इरीना ने
कहा, “नाय-तुर्स,” और वह उस आदमी की ओर बढ़ी.
ज़ाहिर है, उसे इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं थी कि नाय-तुर्स कौन है, उसने इरीना
पर तिरछी नज़र डाली और खांसते हुए और फर्श पर थूकते हुए जवाब दिया:
“मैं नहीं जानता की क्या कर सकता हूँ. क्लासेस ख़त्म हो गयी हैं, और हॉल्स में
कोई नहीं है। दूसरे चौकीदार जा चुके हैं. ढूँढना मुश्किल है. बहुत मुश्किल. मुर्दों
को नीचे वाले तहखानों में ले गए हैं. मुश्किल है, बेहद मुश्किल...”
इरीना नाय ने अपना पर्स खोला, कागज़ का एक ‘नोट’ बाहर निकाला और चौकीदार की ओर बढ़ा दिया. निकोल्का मुड़ गया, यह सोचकर
डरते हुए कि ईमानदार चौकीदार इसका विरोध करेगा. मगर चौकीदार ने विरोध नहीं किया...
“शुक्रिया, मालकिन,” उसने जिंदादिली से कहा, “ढूँढा जा सकता है. सिर्फ इजाज़त की ज़रुरत है. अगर प्रोफ़ेसर इजाज़त देंगे, तो
लाश को ले जा सकते हैं.”
“और, प्रोफ़ेसर कहाँ है?”..” निकोल्का ने पूछा.
“वो यहीं हैं, सिर्फ मसरूफ़ हैं. पता नहीं...क्या उनसे कहूं?..”
“प्लीज़, प्लीज़, उन्हें फ़ौरन सूचित कीजिए”, निकोल्का ने विनती की, “मैं उसे
फ़ौरन पहचान लूंगा, मृत व्यक्ति को...”.
“सूचित कर सकता हूँ,” चौकीदार ने कहा और उन्हें ले चला. वे सीढ़ियाँ चढ़कर कॉरीडोर में आए, जहां
बदबू और तेज़ हो गयी. फिर कॉरीडोर में चलते रहे, फिर बाएँ, और बदबू कम हो गयी, और उजाला हो गया, क्योंकि कॉरीडोर कांच की छत के नीचे था. यहाँ दाएँ और बाएँ, दरवाज़े सफ़ेद
थे. उनमें से एक के पास चौकीदार रुका, उसने दरवाज़े पर दस्तक दी, फिर टोपी उतारी और भीतर गया. कॉरीडोर में खामोशी थी, और छत से
रोशनी छन कर आ रही थी. दूर के कोने में अन्धेरा होने लगा था. चौकीदार बाहर आया और
बोला:
“यहाँ आइये.”
निकोल्का भीतर गया, उसके पीछे इरीना नाय...निकोल्का ने कैप उतारी और सबसे पहले उसकी नज़र उस
विशाल कमरे में लगे चमकीले परदों पर पड़े काले धब्बों और भयानक तेज़ प्रकाश-पुंज की
ओर गई, जो मेज़ पर पड़ रहा था, प्रकाश पुंज में काली दाढी और झुर्रियां पडा थका हुआ चेहरा, और मुडी हुई
नाक नज़र आ रही थी. फिर, उदास हो गए निकोल्का ने दीवारों पर नज़र दौडाई. आधे अँधेरे
में अंतहीन अलमारियां चमक रही थीं, और उनमें कुछ राक्षसों की, काली और पीली, भयानक चीनी आकृतियों की झलक दिखाई दी.
कुछ दूरी पर उसने पादरियों जैसा चमड़े का एप्रन और काले दस्ताने पहने एक ऊंचे
आदमी को देखा. वह लम्बी मेज़ पर झुका हुआ था, जिसके ऊपर, हरे ट्यूलिप के नीचे लटकते हुए बल्ब की रोशनी में, शीशों के
सफ़ेद और सुनहरे रंग में चमकते, तोपों के समान, माइक्रोस्कोप्स रखे थे.
“आपको क्या चाहिए?” प्रोफ़ेसर ने पूछा.
निकोल्का ने थके हुए चेहरे और इस दाढ़ी को देखकर ही पहचान लिया , कि वही
प्रोफ़ेसर है, और वह दूसरा – पादरी जैसे एप्रन वाला – उससे नीचे – कोई सहायक है.
तेज़ प्रकाश पुंज की ओर देखते हुए, जो अजीब तरह से मुड़े हुए – चमकदार लैम्प से निकल रहा था, और अन्य
चीज़ों की तरफ़ – तम्बाकू से पीली हो गईं उँगलियों, भयानक घृणित वस्तु, जो प्रोफ़ेसर के सामने पड़ी थी – मानवीय गर्दन और ठोढी, जो नसों और
धागों से बनी थी, दर्जनों चमकदार हुक और कैंचियाँ जडी, जिनसे वह लटक रही थी, निकोल्का खांसा...
“क्या आप रिश्तेदार हैं?” प्रोफ़ेसर ने पूछा. उसकी आवाज़ खोखली थी, थके हुए चहरे और इस दाढ़ी के अनुरूप. उसने सिर उठाया और आंखें सिकोड़ कर
इरीना नाय, उसके फ़र-कोट और जूतों की तरफ़ देखा.
“मैं उसकी बहन हूँ,” उस वस्तु की ओर न देखने की कोशिश करते हुए, जो प्रोफ़ेसर के सामने पड़ी थी, नाय ने कहा.
“देखिये, सिर्गेइ निकलायेविच, यह कितना मुश्किल है. ये पहला मौक़ा नहीं है...हाँ, हो सकता है, की वह अभी तक
हमारे यहाँ न हो. मुर्दाखाने में कुछ मुर्दे ले गए हैं ना?”
“हो सकता है,” उस लम्बे आदमी ने जवाब दिया और कोई उपकरण एक तरफ फेंक दिया...
“फ्योदर...” प्रोफ़ेसर चिल्लाया...
****
“नहीं, आप वहां...आपको वहाँ जाने की इजाज़त नहीं है...मैं खुद...” निकोल्का ने
नम्रता से कहा...
“आप बेहोश हो जायेंगी, मैडम,” चौकीदार ने पुष्टि की. “यहाँ,” उसने आगे कहा, “इंतज़ार कर सकती हैं.”
निकोल्का उसे एक तरफ़ ले गया, उसे और दो नोट दिए और उसे महिला को साफ़ स्टूल पर बिठाने के लिए कहा. घरेलू पाईप के कश लगाते
हुए चौकीदार कहीं से एक स्टूल लाया, जहां एक हरा लैम्प और कुछ कंकाल खड़े थे.
“आप डॉक्टर तो नहीं हैं ना, मालिक? डॉक्टरों को फ़ौरन आदत हो जाती है,” और बड़ा दरवाज़ा खोलकर एक स्विच दबाया, ऊपर, कांच की छत के नीचे बल्ब जल उठा.
कमरे से तीखी बदबू आ रही थी. जस्ते की मेजें कतारों में चमक रही थीं. वे
खाली थीं, और कहीं खड़खड़ाते हुए पानी सिंक में गिर रहा था. पैरों के नीचे पत्थरों का
फर्श आवाज़ कर रहा था. दुर्गन्ध से परेशान निकोल्का, जो, शायद, यहाँ सदियों से बस गई थी, कुछ भी न सोचने की कोशिश करते हुए चल रहा था. वे चौकीदार के साथ सामने वाले
दरवाजों से होकर एकदम अँधेरे कॉरीडोर में निकले, जहां चौकीदार ने छोटा सा बल्ब
जलाया, फिर कुछ दूर और गए. चौकीदार ने
भारी-भरकम बोल्ट सरकाया, लोहे का दरवाज़ा खोला और फिर से एक बल्ब जलाया. निकोल्का को ठंडक ने दबोच
लिया.
अँधेरे कमरे के कोनों में सिलिंडर रखे थे, इस तरह, की उनमें से मानव मांस के टुकड़े, और कतरनें, त्वचा के चीथड़े, उंगलियाँ, टूटी हुई हड्डियां बाहर निकल रहे थे. थूक निगलते हुए निकोल्का
मुड़ गया, और चौकीदार ने उससे कहा:
“ये सूंघिए, मालिक.”
निकोल्का ने आंखें बंद कर लीं, नाक से असहनीय गंध सूंघी – बोतल से अमोनिया की गंध. मानो आधी नींद में, निकोल्का ने
आंखें सिकोड़ कर फ्योदर के पाइप में जलती हुई तम्बाकू की मीठी गंध महसूस की. फ्योदर
बड़ी देर तक लिफ्ट के ताले से जूझता रहा, उसे खोला, और वे लिफ्ट के प्लेटफार्म पर खड़े हो गए. फ्योदर ने हैंडल खींचा, और चरमराते
हुए प्लेटफार्म नीचे की ओर चल पडा. नीचे से बर्फीली ठंडक महसूस हो रही थी.
प्लेटफोर्म रुक गया. वे एक विशाल गोदाम में घुसे. निकोल्का ने अस्पष्ट रूप से वह
देखा जो उसने पहले कभी नहीं देखा था. रैक में जलाऊ लकड़ियों की तरह, एक के ऊपर एक, नग्न मानवीय
शरीर पड़े थे, असहनीय, दमघोटू बदबू छोड़ते हुए, अमोनिया के बावजूद, मानवीय शरीरों
की दुर्गन्ध तीव्रता से महसूस हो रही थी. सख्त पड़ चुकीं, या बेहद
पिलपिली टांगों की एड़ियां बाहर निकल रही थीं. औरतों के चहरे फूले-फूले और उलझे हुए
बालों समेत पड़े थे, और उनके स्तन कुचले हुए, मसले गए, नील पड़े हुए थे.
“तो, अब उन्हें पलटेंगे, और आप देखिये,” चौकीदार ने झुकते हुए कहा. उसने पैर से महिला का मृत शरीर पकड़ा, और वह,
चिपचिपा, खट् से फर्श पर फिसल गया, जैसे मक्खन पर फिसल रहा हो. निकोल्का को वह
खतरनाक रूप से ख़ूबसूरत और चिपचिपी प्रतीत हुई, किसी चुड़ैल की तरह. उसकी आंखें खुली थीं और सीधे फ्योदर की ओर देख रही थीं.
निकोल्का ने प्रयत्नपूर्वक उस घाव से नज़रें हटाईं, जो लाल रिबन की तरह उसे घेरे हुए था, और दूसरी तरफ देखने लगा. उसकी आंखों के आगे धुंध छा गयी, और इस ख़याल
से सिर चकराने लगा, कि इन चिपचिपे जिस्मों के पूरे ढेर को पलटना पडेगा.
“ज़रुरत नहीं है. ठहरिये,” उसने कमजोर आवाज़ में फ्योदर से कहा और बोतल को जेब
में घुसा दिया, “ये रहा वो. मिल गया. वह सबसे ऊपर है. ये है, यही है.”
फ्योदर फ़ौरन सरक गया, संतुलन बनाते हुए, ताकि फर्श पर न फिसल जाए, नाय-तुर्स को सिर से पकड़ कर जोर से झकझोर दिया. नाय के पेट पर औंधे मुंह,
चिपचिपी, चौड़े नितम्बों वाली महिला लेटी थी, और उसके बालों में कांच के टुकड़े की तरह, एक सस्ती कंघी चमक रही थी. फ्योदर ने रास्ते में, हौले से उसे निकाल लिया, अपने एप्रन
की जेब में डाल लिया और नाय को बगल के नीचे पकड़ लिया. उसका सिर, रैक से निकलते हुए, हिल रहा था, लटक गया था, और नुकीली, बिना हजामत की हुई ठोढी ऊपर को उठ गयी, एक हाथ फिसल गया.
फ्योदर ने नाय को ऐसे नहीं फेंका, जैसे महिला को फेंका था, बल्कि सावधानी से, बगलों के नीचे, लुंज-पुंज हुए शरीर को झुकाते हुए, निकोल्का के चेहरे के सामने, उसे इस तरह से मोड़ा, की नाय के पैर फर्श को छूने लगे, और कहा:
“आप देखिये – वही है? जिससे गलती न हो जाए.”
निकोल्का ने सीधे नाय की आंखों में देखा, खुली हुई, कांच जैसी
नाय की आंखें कुछ निरर्थक सा कह रही थीं. उसके बाएं गाल पर हल्की सी हरियाली थी, और सीने पर, पेट पर चौड़े
काले धब्बे थे, शायद खून के धब्बे थे.
“वही है,” निकोल्का ने कहा.
फ्योदर ने वैसे ही बगलों के नीचे से नाय को लिफ्ट के प्लेटफॉर्म पर घसीटा और
उसे निकोल्का के पैरों के पास छोड़ दिया. मुर्दे के हाथ खुल गए और ठोढी फिर से ऊपर
उठ गई. फ्योदर खुद भी चढ़ गया, उसने हैंडिल घुमाया, और लिफ्ट ऊपर की ओर चली गयी.
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उसी रात ‘चैपल’ में सब कुछ वैसे ही किया गया, जैसा निकोल्का चाहता था, और उसकी अंतरात्मा पूरी तरह शांत थी. मगर दुखी और कठोर थी. एनाटॉमी थियेटर
से लगे चैपल में, जो बिल्कुल नंगा और उदास था, रोशनी हो गयी. कोने में किसी अज्ञात व्यक्ति के ताबूत को ढक्कन से बंद कर
दिया गया था, और भयानक, अज्ञात, मृत पड़ोसी नाय की शान्ति में खलल नहीं डाल रहा था. खुद नाय भी ताबूत में
ज़्यादा प्रसन्न नज़र आ रहा था और खुश हो रहा था.
नाय – बातूनी और प्रसन्न चौकीदारों द्वारा नहलाया गया, बिना
स्ट्रैप्स के फ्रेंच कोट में, माथे पर पुष्पगुच्छ, तीन मोमबत्तियों के नीचे, और, महत्वपूर्ण बात, नाय गजभर लम्बे शोख रंग के जोर्जियन रिबन में, जिसे खुद निकोल्का ने अपने हाथों से उसके ठन्डे, चिपचिपे सीने पर कमीज़ के नीचे रख दिया था. बूढ़ी माँ तीन मोमबत्तियों से
निकोल्का की ओर मुडी, और उससे बोली:
“मेरा बेटा. खैर, तुम्हारा शुक्रिया.”
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