7
देर
रात को दुनिया की सबसे अच्छी जगह – व्लदीमिर हिल्स – पर कोयले जैसा अन्धेरा छाया
था. ईंटों की पगडंडियाँ और गलियाँ अनछुई बर्फ की फूली-फूली अनंत पर्त से ढंकी थीं.
शहर
की एक भी रूह, एक
भी पाँव सर्दियों में इस बहुमंजिला विशाल टीले को परेशान नहीं करता था. रात को
हिल्स पर कौन जाएगा, और
वह भी ऐसे समय में?
बेहद डरावना है वहाँ पर! बहादुर आदमी भी नहीं जाएगा. और वहाँ करने के लिए भी कुछ
नहीं है. सिर्फ एक प्रकाशित जगह: डरावने, भारी चबूतरे पर सौ सालों से फ़ौलाद का व्लदीमिर
खड़ा है और हाथ में तीन साझेन ऊंचा क्रॉस (एक साझेन=7फुट
– अनु.)
लिए खडा है. हर शाम, जब अन्धेरा बर्फ के ढेरों, ढलानों और छतों को ढांक देता है, क्रॉस जल उठता है और पूरी रात जलता रहता है. और दूर तक दिखाई देता है, चालीस मील दूर के अंधेरों
में, जो
मॉस्को की तरफ जाते हैं. मगर यहाँ, वह थोड़ा ही चमकता है,
नीचे गिरते हुए, चबूतरे की हरी-काली किनार को दबाकर, बिजली की धुंधली रोशनी, कटघरे और बीच वाली छत से
चिपके जाली के हिस्से को अँधेरे से बाहर निकालती है. बस, और कुछ नहीं. और आगे, आगे! ... पूरा अन्धेरा. अँधेरे में पेड़ विचित्र दिखाई
देते हैं, मानो मलमल से
ढंके झुम्बर बर्फ की टोपियाँ पहने खड़े हैं, और चारों तरफ बर्फ के ढेर – गले-गले तक
ऊंचे. डरावना है.
खैर, बात समझ में आती है, एक भी आदमी यहाँ नहीं फटकेगा. सबसे ज़्यादा बहादुर भी.
सबसे महत्वपूर्ण बात - कोई ज़रुरत ही नहीं है. शहर में बात कुछ
और ही है. रात बेचैन है, महत्त्वपूर्ण है, युद्ध की रात है. स्ट्रीट लैम्प मोतियों जैसे जल रहे
हैं. जर्मन सो रहे हैं, मगर अधखुली आंखों से सो रहे हैं. सबसे अंधेरी गली में
अचानक नीला प्रकाश कोन चमकता है.
“Halt!”
कर्...कर्...
सड़क के बीच में तसले जैसे हेलमेट पहने हुए पैदल सैनिक रेंग रहे हैं. कानों पर काले
मफलर....कर्... बंदूकें कन्धों के पीछे नहीं,मगर तैयार हैं. जर्मनों के साथ मज़ाक नहीं करना चाहिए, कम से कम इस समय...
चाहे जो भी हो,
मगर जर्मन्स – संजीदा किस्म के होते हैं.
गोबर
के भौंरों की तरह.
“डॉक्यूमेंट!”
“Halt!”
लालटेन
से प्रकाश पुंज. एहे !...
और
ये रही काली चमचमाती कार,
चार हेडलाईट्स वाली. साधारण कार नहीं है, क्योंकि शीशे वाली गाडी के पीछे आराम से सुरक्षा दल चल रहा है – आठ
घुड़सवार. मगर जर्मनों के लिए कोई फर्क नहीं पड़ता.
कार
पर चिल्लाते हैं:
“Halt!”
“कहाँ? कौन है? किसलिए?”
“कमांडर,घुड़सवार दस्ते का जनरल
बिलारूकव.”
खैर, ये, बेशक, अलग ही बात है. ये, प्लीज़.
गाडी
के शीशों में,
भीतर,
गहराई में, विवर्ण
मुच्छड़ चेहरा. जनरल के ओवरकोट के कन्धों पर अस्पष्ट चमक.
और
जर्मन तसलों ने सैल्यूट किया. असल में, दिल की गहराई में उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था, चाहे वह कमांडर बिलारूकव
हो, या
पित्ल्यूरा, या
इस घटिया देश में ज़ुलू लोगों का नेता. मगर फिर भी...जब ज़ुलू लोगों के बीच जीना है, तो उन्हीं जैसा चिल्लाना
होगा.
तसलों
ने सैल्यूट किया. अंतर्राष्ट्रीय शिष्टाचार, जैसा कहते हैं.
***
रात
महत्वपूर्ण है,
युद्ध की रात है. मैडम अंजू की खिड़कियों से प्रकाश की किरणें आ रही हैं. किरणों
में दिखाई देती हैं महिलाओं की टोपियाँ,और कौर्सेट्स, और पतलूनें, और
सिवस्तोपल की तोपें. और घूम रहा है,घूम रहा है कैडेट-पेंडुलम, कंपकंपाता है, संगीन से शाही मोनोग्राम बनाता है. और वहाँ, अलेक्सान्द्रव्स्की जिम्नेशियम में, गोले इतना प्रकाश बिखेर रहे हैं, मानो बाल-नृत्य में हों. मिश्लायेव्स्की,वोद्का की पर्याप्त मात्रा से तरोताज़ा होकर घूम रहा है, घूम रहा है, महान अलेक्सान्द्र की ओर
देख लेता है,
स्विचों वाले बक्से की ओर देखता है. जिम्नेशियम में काफी प्रसन्न और गंभीर वातावरण
है. आखिर आठ मशीनगन्स और कैडेट्स हैं – ये स्टूडेंट्स नहीं हैं!...वे, जानते हैं, युद्ध करेंगे.
मिश्लायेव्स्की की आंखें, खरगोश की आंखों की तरह – लाल हैं. न जाने कौन सी रात है,और नींद कम है,और वोद्का ज़्यादा है, और चिंता काफ़ी है. खैर, शहर
में,
चिंता से निपटना आसान है. अगर आदमी निर्दोष है, तो प्लीज़,
घूमो फिरो. ये सच है कि पांच बार रोकते हैं. मगर यदि डॉक्युमेन्ट्स साथ हों, तो जा सकते हो. अचरज की
बात है कि रात को घूमते हो,
मगर जा सकते हो
मगर
हिल्स पर कौन चढ़ेगा?
सरासर बेवकूफी है. और वहाँ,
उतनी ऊंचाई पर हवा...बर्फीले टीलों के गलियारों से गुज़रता है,तो शैतानी आवाजों का एहसास
होता है. अगर कोई हिल्स पर चढ़ भी जाए, तो वह वाकई में कोई बहुत बहादुर व्यक्ति ही होगा, जो दुनिया के सभी शासनों
के बीच अपने आप को कुत्तों के झुण्ड में भेड़िये की तरह महसूस करेगा. पूरी तरह से
दयनीय,
जैसे ह्यूगो का पात्र हो. ऐसा,
जिसे शहर में दिखाई देना ही नहीं चाहिए, और अगर दिखाई भी देना हो, तो
अपनी जोखिम और अपने बलबूते पर. अगर गश्ती दलों के बीच से फिसल जाते हो,तो – किस्मत अच्छी है, अगर न निकल सको, तो – अफ़सोस न करना. अगर
ऐसा आदमी हिल्स पर पहुँच भी जाए, तो
इंसानियत के नाते तहे दिल से उसके लिए अफसोस करना होगा.
खैर
ऐसा तो आप कुत्ते के लिए भी नहीं चाहेंगे. हवा तो – बर्फीली है. पाँच मिनट भी वहाँ
रहो तो घर जाने का मन होगा, और...
“कितने
घंटों से पी रहे हो?
एह...एह...जम जायेंगे!...”
ख़ास
बात ये है कि उद्यानों और पानी के टॉवर की बगल से होकर ऊपरी शहर में जाने
के लिए कोई रास्ता नहीं है, वहाँ,
मुलाहिज़ा फरमाइए,
मिखाइलोव्स्की गली में, मोनेस्ट्री-हाउस में, प्रिन्स बिलारूकव का स्टाफ हेडक्वार्टर है. और हर मिनट – घुड़सवार दस्ते के
साथ कार, या
मशीनगनों वाली कार,
या...
“ऑफिसर्स, आह, रूह निकल जायेगी!”
गश्त, गश्त, गश्त.
और
छतों से नीचे-नीचे जाते हुए, निचले शहर - पदोल- में जाने का तो सवाल ही
नहीं है,
क्योंकि अलेक्सान्द्रव्स्काया स्ट्रीट पर, जो हिल्स की तलहटी का चक्कर लगाते हुए
जाती है,
पहली बात,
स्ट्रीट लैम्प्स की पूरी कतार है, और
दूसरी बात,
जर्मन्स,जहन्नुम
में जाएँ! गश्त पे गश्त! क्या सुबह तक? सुबह तक तो ठिठुर जायेंगे. बर्फीली हवा – गूं -ऊं ...- वृक्ष वीथियों से
जाओ, तो
ऐसा आभास होता है,
जैसे जाली के पास बर्फीले टीलों में इंसानों की आवाज़ें बुदबुदा रही हैं.
“ठिठुर
जायेंगे,
किर्पाती!”
“बर्दाश्त
करो, नेमलिका,
बर्दाश्त करो. गश्ती दल सुबह तक सोने चला जाएगा. हम उछल कर किनारे पर पहुँच
जायेंगे,
सीचिखा के यहाँ गरमाएंगे.”
जाली
के पास अँधेरे में हलचल होती है, और
ऐसा प्रतीत होता है कि तीन काली परछाईयाँ मुंडेर से चिपक जाती हैं, कुछ फैलकर नीचे देखती हैं, जहाँ, अलेक्सान्दोव्स्काया
स्ट्रीट ऐसी लगती है,
मानो हथेली पर रखी हो. वो खामोश है, खाली है,
मगर अचानक दो नीले प्रकाश पुंज भागते हैं – जर्मन कारें उड़ती हुई गुज़रती हैं या
काले तसलों की पंखुड़ियां दिखाई देती हैं और उनसे छोटी-छोटी, नुकीली परछाईयाँ... और
जैसे ये नज़ारा हथेली पर रखा हो...
हिल्स
पर एक परछाई अलग होती है, और
उसकी भेडिये जैसी तीखी आवाज़ भर्राती है:
“ए...नेमलिका...चल
जोखिम उठाते हैं. हो सकता है. फांद जाएँ...”
हिल्स
पर कुछ भी ठीक नहीं है.
***
और
महल में भी,
ज़रा सोचिये,
कुछ भी अच्छा नहीं था. एक अजीब-सी, रात में अशोभनीय सी हलचल हो रही थी. हॉल से
होकर,
जहाँ गहरी सुनहरी कुर्सियां हैं,
लकड़ी के चमचमाते फर्श पर बूढा,
कल्लों वाला सेवक चूहे की तरह भागा. कहीं दूर रुक रुक कर इलेक्ट्रिक बेल की आवाज़
आई,
किसी की एड़ें खनखनाईं. शयन कक्ष में मुकुट वाली धुंधली फ्रेमों में जड़े आईने एक
विचित्र अनैसर्गिक चित्र परावर्तित कर रहे थे. एक दुबला, सफ़ेद होते बालों वाला, लोमड़ी जैसे, चर्मपत्र के समान चहरे पर
कटी हुई मूंछों वाला आदमी मूल्यवान चिर्केसी कोट में, जिस पर चांदी का गोलियों
का पट्टा था,
आईनों के पास घूम रहा था. उसके निकट तीन जर्मन और दो रूसी ऑफिसर्स मंडरा रहे थे.
उनमें से एक चिर्केस में था,
बीच वाले आदमी की तरह,
दूसरा जैकेट और लेगिंग्स में था, जो
घुड़सवार दस्ते को प्रदर्शित करते थे, मगर गेटमन वाले नुकीले शोल्डर स्ट्रैप्स में था. वे लोमड़ी जैसे आदमी को
वस्त्र बदलने में सहायता कर रहे थे. चेर्केसियन कोट, चौड़ी पतलून, चमचमाते जूते पहनाये गए.
उस आदमी को जर्मन मेजर की युनिफॉर्म पहनाई गई, और वह सैंकड़ों अन्य जर्मन मेजरों
जैसा ही नज़र आ रहा था. इसके बाद दरवाज़ा खुला,महल के धूलभरे परदे दूर हुए और जर्मन सेना के फ़ौजी डॉक्टर वाले युनिफॉर्म
में एक और आदमी ने प्रवेश किया. वह अपने साथ पैकेट्स का एक बड़ा गट्ठा लाया था, उन्हें खोलकर अपने सधे हुए हाथों से नवजात जर्मन
मेजर के सिर पर इस तरह पट्टी बांधी कि सिर्फ लोमड़ी जैसी दाईं आंख और पतला मुँह ही
दिखाई दे रहा था, जो उसके सुनहरे और प्लेटिनम जड़े दांतों को थोड़ा सा
खोल रहा था.
महल में अशोभनीय हरकत कुछ देर और चलती रही. बाहर आकर
जर्मन ने सुनहरी कुर्सियों वाले और उसके बगल वाले हॉल में इकट्ठा हुए किन्हीं
ऑफिसर्स को जर्मन में बताया कि रिवाल्वर से गोलियां निकालते हुए गलती से मेजर वॉन
श्राट्ट की गर्दन पर घाव हो गया और उन्हें फ़ौरन जर्मन अस्पताल में भेजना होगा. कहीं
टेलीफोन बजा, कहीं और कोई पंछी गा उठा – पिऊ! इसके बाद महल के नक्काशी
किये हुए मेहराबदार प्रवेश द्वार से होकर रेड क्रॉस वाली खामोश जर्मन कार बगल वाले
प्रवेश द्वार के पास आई और बैंडेज बंधे, ओवरकोट में कसकर लपेटे हुए रहस्यमय जर्मन को
स्ट्रेचर पर बाहर लाया गया, और उस विशेष कार का दीवार जैसा दरवाज़ा सरकाकर उसमें रख
दिया गया. प्रवेश द्वार से बाहर निकलते हुए मोड़ पर दबी आवाज़ में हॉर्न बजाकर कार
चली गई.
महल में सुबह तक भगदड़ और उत्सुकता बनी रही,
पोर्ट्रेट्स वाले और सुनहरे हॉल में बत्तियां जलती रहीं,
बार-बार टेलीफोन बजता, और सेवकों के चेहरे जैसे बेशर्म हो गए, और उनकी
आंखों में खुशी की चमक दिखाई देती....
महल की पहली मंजिल पर एक छोटे से संकरे कमरे में टेलीफोन
के पास आर्टिलरी कर्नल की यूनिफ़ॉर्म में एक आदमी दिखाई दिया. उसने सावधानी से सफ़ेदी
किये हुए छोटे से कमरे का, जो बिलकुल भी महल का कमरा नहीं लगता था,
दरवाज़ा बंद किया और तभी टेलीफोन का चोगा उठाया. उसने एक्सचेंज
पर बैठी उन्निद्र महिला से 212 नंबर देने की प्रार्थना की. और उसे प्राप्त करके,
कहा ‘धन्यवाद’, और कठोरता और चिंता से भंवे सिकोड़कर आत्मीयता और खोखलेपन से पूछा;
“क्या ये मोर्टार डिविजन का हेडक्वार्टर है?”
***
ओय, ओय! कर्नल मालिशेव को साढ़े छह बजे तक सोना नसीब नहीं
हुआ, जैसा कि उसने सोचा था. रात के चार बजे मैडम अंजू की
दुकान में पंछी बेहद जिद्दीपन से गाने लगा, और ड्यूटी पर तैनात कैडेट को कर्नल महाशय को
जगाना ही पडा. कर्नल महाशय गज़ब की फुर्ती से उठे और फ़ौरन और स्पष्ट रूप से सोचने
लगे, मानो कभी सोये ही नहीं थे. और नींद में बाधा डालने के लिए कर्नल महाशय को
कैडेट से कोई शिकायत भी नहीं थी. चार बजने के कुछ ही देर बाद मोटरसाइकल उन्हें
कहीं ले गई, और जब पाँच बजते-बजते कर्नल मैडम अंजू की दुकान में वापस लौटे, तो उन्होंने वैसी ही
उत्तेजना और कठोरता से युद्ध की मनस्थिति
में त्यौरियां चढ़ाईं,
जैसे महल के उस कर्नल ने चढ़ाईं थीं, जिसने कंट्रोल रूम से मोर्टार डिविजन को फोन किया था.
***
सुबह सात बजे, गुलाबी गोलों से प्रकाशित बरदिनो के
मैदान में प्रात:पूर्व की ठण्ड में
सिकुड़ता, गुनगुनाता,बुदबुदाता,वही लंबा कैटरपिलर खडा था,जो सीढ़ियों से अलेक्सान्द्र के पोर्ट्रेट की तरफ गया
था. स्टाफ़ कैप्टेन उनसे कुछ दूर ऑफिसर्स के ग्रुप में खड़ा था और खामोश था. अजीब
बात थी, कि उसकी
आंखों में भी उत्तेजना की वैसी ही दबी-छुपी चमक थी, जो कर्नल मालिशेव की आंखों में सुबह चार बजे से
थी. मगर जिसने भी इस महत्वपूर्ण रात को
कर्नल और स्टाफ-कैप्टेन को देखा होगा, फ़ौरन विश्वास के साथ कह सकता था कि उसमें क्या फर्क
था: स्तुद्ज़िन्स्की की आंखों में – पूर्वाभास की उत्तेजना थी, और मालिशेव की आंखों में विशिष्ठ चमक थी, जब सब कुछ
पूरी तरह स्पष्ट होता है, समझ में आता है और घृणित प्रतीत होता है.
स्तुद्ज़िन्स्की के ओवरकोट के कफ़ से डिविजन के तोपचियों की लम्बी सूची झाँक रही थी.
स्तुद्ज़िन्स्की ने अभी-अभी रोल-कॉल लिया था और उसने
इत्मीनान कर लिया था, कि बीस लोग कम हैं. इसलिए सूची पर स्टाफ-कैप्टेन की
उँगलियों की तेज़ हरकत के निशान थे: वह कुचला हुआ था.
ठन्डे
हॉल में धुँआ तैर रहा था – अफसरों के ग्रुप में धूम्रपान हो रहा था.
ठीक
सात बजे संरचना के सामने कर्नल मालिशेव प्रकट हुआ, और, पिछले दिन की तरह ही हॉल में उसका स्वागत ज़ोरदार गर्जना से किया गया. पिछले दिन की तरह ही कर्नल महाशय की कमर में चांदी
की तलवार थी, मगर किन्हीं कारणों से चांदी की नक्काशी पर
हज़ारों बत्तियां नहीं खेल रही थीं. कर्नल महाशय के दायें कूल्हे पर होल्स्टर में
रखा हुआ रिवॉल्वर था,और यह होल्स्टर, शायद, भुलक्कडपन के कारण खुला रह गया था, जो
मालिशेव के स्वभाव में शामिल नहीं था.
कर्नल
डिविजन के सामने बोलने लगा, दस्ताने वाला बायाँ हाथ उसने तलवार की मूठ पर रखा, और दायाँ, बिना दस्ताने वाला हौले से होल्स्टर पर रखकर उसने ये शब्द कहे:
“मोर्टार
डिविजन के ऑफिसर्स और तोपचियों को हुक्म देता हूँ, कि जो मैं कहने जा रहा हूँ, उसे ध्यान से सुनें! रातों रात हमारी स्थिति में, सेना की स्थिति में, और मैं तो कहूंगा, युक्रेन में शासकीय स्थिति में अचानक और तीव्र परिवर्तन हो गए हैं. इसलिए
आपके सामने घोषणा करता हूँ कि डिविजन भंग की जाती है! आपमें से हरेक को सुझाव देता
हूँ कि अपनी युनिफ़ॉर्म से सभी प्रतीकात्मक चिह्न हटा दें और इस कार्यशाला से जो
चाहें उठा लें, अपने अपने घरों को चले जाएँ,
उनके भीतर छुप कर बैठ जाएँ, खुद को किसी भी तरह से ज़ाहिर न होने दें और मेरे नए आह्वान का इंतज़ार
करें!”
वह
खामोश हो गया और जैसे इससे उस निपट खामोशी पर जोर दिया जो हॉल में विद्यमान थी.
लालटेनों ने भी फुसफुसाना बंद कर दिया,
तोपचियों की और ऑफिसर्स के ग्रुप की नज़रें हॉल में एक ही बिंदु, कर्नल की कटी हुई
मूंछों पर केन्द्रित थीं.
उसने
आगे कहा:
“जैसे
ही स्थिति में कोई परिवर्तन होगा, ये आह्वान मेरी तरफ से फ़ौरन किया जाएगा. मगर आपको बताना होगा, कि इसकी उम्मीद बहुत कम है...फिलहाल स्वयँ मुझे भी मालूम नहीं है, कि परिस्थिति कैसा मोड़ लेती है, मगर
मेरा ख़याल है कि जिस बेहतर बात की उम्मीद आपमें से हर कोई कर सकता
है...अं...(कर्नल ने अचानक अगला शब्द चीख कर कहा) बेहतर! आपमें से – उसे दोन भेजा
जा सकता है. तो: पूरी डिविजन को हुक्म देता हूँ, उन
ऑफिसर्स और कैडेट्स को छोड़कर, जो आज रात पहरे पर थे, फ़ौरन अपने-अपने घरों को चले जाएँ!”
“आ?! आ?! हा, हा,हा!”_ पूरे विशाल समुदाय में सरसराहट होने लगी, और जैसे संगीनें उसमें धंस गईं. बदहवास चेहरे चमक उठे, और जैसे पंक्तियों
में कई प्रसन्न आंखें चमक उठीं...
ऑफिसर्स
के ग्रुप से निकलकर स्टाफ़ कैप्टेन स्तुद्ज़िन्स्की बाहर निकला,चेहरा कुछ नीला- फक् पड़ गया था, आंखें तिरछी करते हुए, उसने कर्नल मालिशेव की ओर कुछ कदम बढाए,
इसके बाद ऑफिसर्स की तरफ़ देखा. मिश्लायेव्स्की उसकी तरफ़ नहीं, बल्कि कर्नल मालिशेव की मूंछों की ओर ही देखे जा रहा था, मगर चेहरे का भाव ऐसा था, जैसे अपनी आदत के अनुसार माँ-बहन की गालियाँ देना चाह रहा था. करास फूहड़पन
से अपने हाथ कूल्हों पर रखे आंखें झपका रहा था. और नौजवान लेफ्टिनेंटों के छोटे से
ग्रुप से अचानक असंबद्ध, विनाशकारी शब्द सरसराया: “अरेस्ट”!...
“क्या
बात है? कैसे?” कैडेट्स की कतार में कहीं एक गहरी आवाज़ सुनाई दी.
“अरेस्ट!”
“विश्वासघात!”
स्तुद्ज़िन्स्की
ने अप्रत्याशित रूप से और किसी प्रेरणा से सिर के ऊपर चमक रहे गोल को देखा, अचानक होल्स्टर के हत्थे की ओर देखा और चीखा:
“ ऐ, पहली प्लेटून!”
सामने
वाली पंक्ति किनारे से टूट गई,उसमें से भूरी आकृतियाँ बाहर निकलीं,और
एक अजीब सी भगदड़ मच गई.
“कर्नल
महाशय!” पूरी तरह भर्राई आवाज़ में स्तुद्ज़िन्स्की ने कहा, “आपको गिरफ़्तार किया गया है.”
“उसे
गिरफ़्तार करो!!” अचानक उन्मादित होकर खनखनाते हुए एक एन्साइन चीखा और कर्नल की ओर
बढ़ा.
“रुकिए, महाशय!” स्थिति को समझते हुए करास धीरे से चीखा.
मिश्लायेव्स्की
फुर्ती से ग्रुप से उछला,उसने उत्तेजित एन्साइन को उसके ओवरकोट की बांह से पकड़ा और उसे पीछे खींचा.
“मुझे
छोडिये,लेफ्टिनेंट महाशय!” कटुता से मुँह टेढ़ा करते हुए एन्साइन चीखा.
“शांत!”
कर्नल महाशय की अत्यंत आत्मविश्वासपूर्ण आवाज़ चीखी. हालांकि उसका मुँह भी एन्साइन
जैसा ही टेढ़ा हो गया था, उसके चेहरे पर, सच में, लाल धब्बे उभर आये, मगर उसकी आंखों में ऑफिसर्स के पूरे ग्रुप से अधिक आत्मविश्वास था. और सब
रुक गए.
“शांत!”
कर्नल ने दुहराया. “हुक्म देता हूँ कि अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो जाएँ और मेरी बात
सुनें!”
सन्नाटा
छा गया, और मिश्लायेव्स्की की दृष्टि अत्यंत सतर्क हो गई. जैसे, उसके दिमाग में
पहले ही कोई विचार आ चुका था, और वह कर्नल महाशय से महत्वपूर्ण और अधिक दिलचस्प बातों की प्रतीक्षा कर
रहा था,उनसे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण, जो वह पहले ही सूचित कर चुका था.
“हाँ, हाँ,” कर्नल ने अपना गाल हिलाते हुए बोलना शुरू किया. “हाँ, हाँ...अच्छा होता, अगर मैं ऐसी फ़ौज के साथ युद्ध में जाता, जो मुझे खुदा ने भेजी है. बहुत ही
अच्छा होता! मगर वो, जो एक स्वैच्छिक-विद्यार्थी के लिए, नौजवान-कैडेट के लिए, हद से हद, एन्साइन के लिए क्षम्य है,
किसी भी हालत में आपके लिए क्षम्य नहीं है,
स्टाफ-कैप्टेन महाशय!”
यह
कहते हुए कर्नल ने स्तुद्ज़िन्स्की को अत्यंत तीक्ष्ण नज़र से देखा. स्तुद्ज़िन्स्की
के प्रति कर्नल महाशय की आंखों में क्रोध की चिंगारियां बरस रही थीं. फिर से
खामोशी छा गई.
“तो, बात ये है,” कर्नल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा. “ज़िंदगी भर मैंने कोई मीटिंग नहीं
की, मगर, अब, लगता है, कि करनी पड़ेगी. ठीक है, मीटिंग करते हैं! तो, अपने कमांडर को गिरफ्तार करने की आपकी ये कोशिश आपके भीतर के देशभक्तों को
उजागर करती है, मगर वह ये भी प्रदर्शित करती है कि आप लोग...अं...ऑफिसर्स, कैसे कहूं? अनुभवहीन हैं!
संक्षेप
में : मेरे पास समय नहीं है, और, मैं आपको यकीन दिलाता हूँ,” और अधिक कड़वाहट से और पर्याप्त जोर देते हुए
कर्नल ने कहा, “कि आपके पास भी नहीं है. सवाल: आप किसकी रक्षा करना चाहते हैं?”
खामोशी.
“
मैं पूछता हूँ, किसकी रक्षा करना चाहते हैं?”
कर्नल ने धमकी भरी आवाज़ में दुहराया.
आंखों
में बेहद गर्मजोशी और दिलचस्पी की चिंगारियां लिए मिश्लायेव्स्की ग्रुप से निकलकर
आगे आया, उसने सैल्यूट किया और कहा:
“गेटमन
की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं,
कर्नल महाशय.”
“गेटमन
की?” कर्नल ने फिर से पूछा. “बढ़िया. डिविजन,अटेंशन!”
अचानक वह इस तरह चिंघाडा कि डिविजन थरथरा गई. “सुनो, भाग गया गेटमन आज सुबह करीब
चार बजे, शर्मनाक तरीके से हम सब को किस्मत के भरोसे छोड़कर, भाग गया! आख़िरी बदमाश
और कायर की तरह भाग गया! आज ही,गेटमन के एक घंटे बाद, वहीं, जहाँ गेटमन भागा था, मतलब,जर्मन ट्रेन में,हमारी फ़ौज का कमांडिंग ऑफिसर,
घुड़सवार सेना का जनरल बिलारूकव भी भाग गया. कुछ ही घंटों में हम एक भयानक तबाही के
साक्षी होंगे,जब धोखा दिए गए और साहसी कार्य में खींचे गए, आप
जैसे लोग कुत्तों की तरह काट दिए जायेंगे. सुनिए: पित्ल्यूरा के पास शहर के बाहरी
इलाकों में एक लाख से अधिक फ़ौजी तैनात हैं, और कल का दिन...ये मैं क्या कह रहा हूँ, कल का नहीं, बल्कि आज का,” कर्नल ने खिड़की की ओर हाथ से इशारा किया, जहाँ शहर के ऊपर का आवरण नीला
होने लगा था, “स्टाफ़ के कमीनों और इन दो बदमाशों द्वारा, जिन्हें सूली पर लटका देना चाहिए था,फेंक
दिए गए अभागे ऑफिसर्स और कैडेट्स की क्षत-विक्षत यूनिट्स पित्ल्यूरा की फौजों से
मिलेंगी, जो इनसे बीस गुना ज़्यादा हैं,और
हथियारों से सुसज्जित हैं....सुनों,
मेरे बच्चों!” अचानक फट गई आवाज़ में कर्नल मालिशेव, जो उम्र में कदापि उनके पिता
के समान नहीं, बल्कि वहाँ संगीनों के साथ खड़े सभी के बड़े भाई जितना था,चीखा, “सुनिए! मैं, कैडर ऑफिसर, जिसने जर्मनों के साथ युद्ध को झेला है,
जिसके साक्षी हैं स्टाफ-कैप्टेन स्तुद्ज़िन्स्की,
अपने विवेक से पूरी ज़िम्मेदारी लेता हूँ, पूरी ज़िम्मेदारी!..आपको चेतावनी देता
हूँ! आपको अपने-अपने घर भेज रहा हूँ!! समझ में आया!” वह चीखा.
“हाँ...आ...आ...”
समूह ने जवाब दिया और संगीनें हिलने लगीं. और इसके बाद दूसरी रैंक में ज़ोर से, और
थरथराते हुए कोई कैडेट रो पडा.
स्टाफ-कैप्टेन
स्तुद्ज़िन्स्की ने,पूरी डिविजन के लिए, और,शायद,स्वयँ
अपने लिए भी अप्रत्याशित रूप से, एक विचित्र हाव भाव से, जो ऑफिसर्स के लिए अजीब था, दस्ताने वाले हाथ आंखों पर रख लिए,
जिससे डिविजन के नामों वाली सूची फर्श पर गिर गई, और
रो पडा.
तब, उससे संक्रमित होकर, और भी बहुत सारे कैडेट्स हिचकियाँ लेने लगे,
पंक्तियाँ फ़ौरन बिखर गईं , और रदामेस-मिश्लायेव्स्की की आवाज़ इस बेतरतीब हुड़दंग को
दबाते हुए बिगुल वादक पर गरजी:
“कैडेट
पाव्लाव्स्की! ‘बीटिंग रिट्रीट’बजाओ.”
***
“कर्नल
महाशय, क्या जिम्नेशियम की बिल्डिंग को आग लगाने की इजाज़त देंगे?” स्पष्टता से कर्नल की ओर देखते हुए मिश्लायेव्स्की ने पूछा.
“इजाज़त
नहीं दूँगा,” नम्रता से और शान्ति से मालिशेव ने उसे जवाब दिया.
“कर्नल
महाशय,” मिश्लायेव्स्की ने तहे दिल से कहा,
“पित्ल्यूरा को मिल जायेंगे वर्कशॉप, हथियार, और
सबसे महत्वपूर्ण” – मिश्लायेव्स्की ने हाथ से दरवाज़े की तरफ़ इशारा किया, जहाँ लॉबी में सीढ़ियों के ऊपर से अलेक्सान्द्र का सिर दिखाई दे रहा था.
“मिलेगा,”
नम्रता से कर्नल ने पुष्टि की.
“तो
फिर क्या, कर्नल महाशय?...”
मालिशेव
मिश्लायेव्स्की की ओर मुड़ा, ध्यान से उसकी तरफ़ देखते हुए उसने यह कहा:
“लेफ्टिनेंट
महाशय, पित्ल्यूरा को तीन घंटे बाद सैकड़ों जीवित प्राणी मिलेंगे, और एक ही बात जिसका मुझे दुःख है, वो
यह है कि मैं अपनी जान की और आपकी भी, जो और अधिक मूल्यवान है, कीमत देकर भी उनकी मृत्यु को नहीं रोक सकता. पोर्ट्रेट्स के, तोपों के और संगीनों के बारे में आप मुझसे कुछ भी न कहें.”
“कर्नल
महाशय,” मालिशेव के सामने रुक कर स्तुद्ज़िन्स्की ने कहा, “मेरी तरफ से और ऑफिसर्स की तरफ़ से,
जिन्हें मैंने बेहूदा ढंग से बर्ताव करने के लिए उकसाया, मेरी क्षमा याचना स्वीकार करें.”
“स्वीकार
करता हूँ,” कर्नल ने नम्रता जवाब दिया.
***
जब शहर
के ऊपर सुबह का कोहरा छटने लगा तो चपटी नाक वाली तोपें अलेक्सान्द्रव्स्की परेड
ग्राउंड पर बगैर तालों के खड़ी थी, स्क्रू निकली हुईं और टूटी हुई राइफलें और
मशीनगनें अटारी के गुप्त स्थानों पर बिखरी थीं. बर्फ में, गड्ढों में और तहखानों के गुप्त ठिकानों में कारतूसों के ढेर फेंक दिए गए
थे, और हॉल और कॉरीडोर्स में बल्ब रोशनी नहीं फैला रहे थे. मिश्लायेव्स्की के
हुक्म से कैडेट्स संगीनों से स्विचों वाला सफ़ेद बोर्ड तोड़ रहे थे.
***
खिड़कियों
में पूरी तरह नीलाई थी. और इस नीलाई में परेड ग्राउंड पर दो लोग बचे थे, जो सबसे अंत में जा रहे थे – मिश्लायेव्स्की और करास.
“क्या
कमांडर ने अलेक्सेइ को आगाह कर दिया था?”
मिश्लायेव्स्की ने चिंता से करास से पूछा.
“बेशक, कमांडर ने आगाह कर दिया,देख तो रहे हो, कि वह नहीं आया?”
करास ने जवाब दिया.
“क्या
आज दोपहर में तुर्बीनों के यहाँ चलें?”
“नहीं, दोपहर में संभव नहीं है, चीज़ों को छुपाना होगा...ये,
वो...अपने अपार्टमेंट में चलते हैं.”
खिड़कियों में नीलाई थी, मगर आँगन में उजाला हो गया था, और कोहरा ऊपर उठते हुए बिखर रहा था.
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