6.
मैडम अंजू की बुटीक – ‘पैरिस-स्टाईल’ शहर के बिल्कुल बीचोंबीच, थियेटर स्ट्रीट पर, जो ऑपेरा
थियेटर के पीछे से गुज़रती थी, एक विशाल, कई मंजिलों वाली बिल्डिंग में, और एकदम
पहली मंज़िल पर थी. सड़क से तीन सीढ़ियाँ कांच के दरवाज़े से होकर बुटीक तक ले जाती
थीं, और कांच के दरवाज़े के दोनों तरफ दो खिड़कियाँ थीं, जिन पर
धूल भरे लेस के परदे टंगे हुए थे. किसी को भी पता नहीं था, मैडम अंजू कहाँ चली गई है और उसकी बुटीक का उपयोग गैर
व्यापारिक उद्देश्यों के लिए क्यों किया जा रहा है. खिड़की पर रंगबिरंगी लेडीज़ कैप
की तस्वीर थी, जिस पर सुनहरे अक्षरों में ‘पैरिस स्टाईल’ लिखा था,
और दाईं खिड़की के कांच के पीछे पीले पुट्ठे का एक बड़ा पोस्टर लगा था, जिस पर एक
दूसरे को छेदती हुई सिवास्तोपल तोपें बनी हुई थीं, जैसी तोपचियों के कन्धों के फीतों पर बनी
होती है, ऊपर की तरफ इस इबारत के साथ:
“ ‘हीरो’ तुम, शायद, न बन पाओ, मगर तुम्हें
‘वालंटियर’ अवश्य होना चाहिए.”
तोपों के नीचे शब्द थे :
“कमांडिंग ऑफिसर की मोर्टार डिविजन में वालंटियर्स का
पंजीकरण जारी है.”
स्टोर के प्रवेश द्वार के पास साइड कार के साथ एक गंदी
मोटरसाइकल पडी थी, जिसके पेंच खुले हुए थे, और स्प्रिंग वाला दरवाज़ा हर
मिनट बंद हो रहा था, और हर बार, जब वह
खुलता, तो उसके ऊपर शानदार घंटी बजती – ब्रिन-ब्रीन, जो मैडम अंजू के हाल ही के अच्छे दिनों की याद दिलाती.
पीने वाली रात के बाद तुर्बीन, मिश्लायेव्स्की और करास
काफी देर से, दोपहर के क़रीब, लगभग एक ही समय पर उठे, और उन्हें अचरज हुआ कि उनके दिमाग एकदम तरो-ताज़ा हैं.
पता चला कि निकोल्का और शिर्वीन्स्की जा चुके हैं.
निकोल्का ने सुबह-सुबह कोई लाल रहस्यमय गठरी लपेटी, - एह-एह बुदबुदाते हुए...और अपनी स्क्वैड में चला
गया, और शिर्वीन्स्की अभी-अभी अपने कमांडिंग स्टाफ के दफ्तर में ड्यूटी पर निकल
गया था.
मिश्लायेव्स्की ने किचन के पीछे, अन्यूता के प्यारे कमरे में जाकर, जहाँ परदे के पीछे गीज़र और बाथ टब था, कमर तक अपने
कपडे उतार दिए, अपनी गर्दन और पीठ और सिर पर बर्फीले पानी की धार छोड़ी
और, भय तथा उत्तेजना से चीत्कार करते हुए :
“एह! ये ले! बढ़िया!” अपने चारों ओर गज भर की दूरी तक
हर चीज़ गीली कर दी. इसके बाद रोएंदार तौलिये से बदन पोंछा, कपडे पहने. सिर पर ब्रिल क्रीम लगाया, बालों में कंघी की और तुर्बीन से कहा:
“अल्योशा, हुम्....दोस्ती की खातिर अपनी एड पहनने दो. घर तो मैं
जाऊंगा नहीं, और बिना एडों के जाना अच्छा नहीं लगता.”
“स्टडी रूम से ले लो, मेज़ की
दाईं दराज़ में हैं.”
मिश्लायेव्स्की स्टडी रूम में चला गया, वहाँ कुछ खुड़खुड़ करता रहा और बाहर आ गया. काली आंखों वाली अन्यूता, जो अपनी
आंटी के यहाँ छुट्टी मनाकर सुबह लौटी थी, परों
वाला डस्टर कुर्सियों पर घुमा रही थी. मिश्लायेव्स्की खांसा, उसने तिरछी नज़र से दरवाज़े की ओर देखा, सीधी राह के बदले घूम कर अन्यूता के पास गया और हौले
से बोला:
“नमस्ते, अन्यूतच्का....”
“”एलेना वसील्येव्ना से कह दूंगी,” फ़ौरन, बिना सोचे समझे अन्यूता ने फुसफुसाकर कहा और
अपनी आंखें बंद कर लीं, किसी सज़ायाफ्ता मुजरिम की तरह जिसके ऊपर जल्लाद ने
चाकू तान लिया हो.
“बेवकूफ...”
तुर्बीन ने अचानक दरवाज़े के भीतर झांका. उसका चेहरा
ज़हरीला हो गया.
“डस्टर, देख रहे हो, वीत्या? तो. ख़ूबसूरत है. बेहतर है, कि तुम
अपने रास्ते चले जाओ, आ? और तुम, अन्यूता, याद रखना, अगर वह कभी इत्तेफ़ाक से कह भी दे, कि शादी करेगा, तो यकीन
न करना, शादी नहीं करेगा.”
“ये क्या बात हुई, या खुदा, क्या इन्सान से दुआ-सलाम करना मना है?”
इस आकस्मिक अपमान से मिश्लायेव्स्की लाल हो गया, उसने अपना सीना फुलाया और एडियाँ खटखटाते हुए ड्राइंग
रूम से निकल गया. डाइनिंग रूम में वह लाल बालों वाली, गंभीर
एलेना के पास पहुँचा, उसकी आंखें बेचैनी से भाग रही थीं.
“नमस्ते, ल्येना, मेरे फ़रिश्ते,
सुप्रभात. एम्...(मिश्लायेव्स्की के गले से खनखनाती आवाज़ के बदले, भर्राई हुई आवाज़ निकली.)
“ल्येना, मेरे फ़रिश्ते,” – वह
भावपूर्ण स्वर में बोला, “गुस्सा न करना. तुमसे प्यार करता हूँ, और तुम भी मुझे प्यार करो. कल जो मैंने बदमाशी की, उस पर ध्यान न दो. ल्येना, कहीं
तुम ये तो नहीं सोच रही हो, कि मैं कोई बदमाश हूँ?”
ऐसा कहते हुए उसने एलेना को अपनी बांहों में ले लिया
और उसके दोनों गालों को चूम लिया.
ड्राइंग रूम में हल्की सी आवाज़ के साथ परों वाला डस्टर
गिर गया. जैसे ही लेफ्टिनेन्ट मिश्लायेव्स्की तुर्बीनों के अपार्टमेंट में आता, अन्यूता के साथ हमेशा अजीब-अजीब बातें होने लगतीं.
अन्यूता के हाथों से घरेलू चीज़ें गिरने लगतीं : अगर वह
किचन में होती तो चाकू गिरने लगते, बुफे-काउंटर से प्लेटें गिरने लगतीं ; अन्नुश्का
गड़बड़ा जाती, बिना बात के प्रवेश कक्ष में भागती और वहाँ जूते साफ़
करने लगती, उन्हें कपडे से तब तक पोंछती, जब तक कि एडियों पर जडी छोटी एड न खनखनाती और कटी हुई
ठोढी, चौड़े कंधे और नीली ब्रीचेस न प्रकट होतीं. अन्नुश्का आंखें बंद कर लेती और एक
किनारे से तंग, छुपने की जगह से निकलती. अभी भी ब्रश गिराने के बाद
वह सोच में डूबी, छींट के परदों से परे बादलों से ढंके भूरे आसमान की ओर, कहीं दूर
देखती रही.
“वीत्का, वीत्का,” थियेटर के
साफ़ किये हुए मुकुट जैसे सिर को हिलाते हुए एलेना कह रही थी, “देखने में तो तुम तंदुरुस्त नौजवान लगते हो, कल इतने कमजोर क्यों हो गए थे? बैठो, थोड़ी चाय पियो, शायद
कुछ अच्छा लगे.”
“और तुम, ल्येनच्का, आज बहुत
शानदार लग रही हो. और ये गाऊन तुम पर जंचता है, बाय ऑनर,
“मिश्लायेव्स्की ने खुशामद से, दर्पण में प्रतिबिंबित अलमारी की गहराइयों पर खोजती
हुई, चंचल नज़र डालते हुए कहा, “करास देख, कैसा गाऊन
है. एकदम हरा. नहीं, कितनी अच्छी
हो.”
“एलेना वसिल्येव्ना बहुत ख़ूबसूरत हैं,” करास ने संजीदगी और ईमानदारी से जवाब दिया.
“ये इलेक्ट्रिसिटी के कारण है,” एलेना ने समझाया, “तो, तुम, वीतेन्का, फ़ौरन बताओ, बात क्या है?”
“पता है, ल्येना, मेरी प्यारी, कल के
हंगामे के बाद मुझे माइग्रेन का दौरा पड़ सकता है, और माइग्रेन से लड़ना संभव नहीं
है...”
“अच्छा, अलमारी में.”
“वो ही, वो ही...एक पैग... पिरामिदोन की सभी गोलियों से
बेहतर.”
पीड़ित भाव से मिश्लायेव्स्की ने एक के बाद एक वोद्का
के दो गिलास पी लिए और कल का नरम पड़ गया खीरा खा लिया. इसके बाद उसने घोषणा की, कि उसे ऐसा लग रहा है, जैसे वह
अभी-अभी पैदा हुआ है, और लेमन-टी पीने की इच्छा प्रकट की.
“तुम, ल्येनाच्का,” भर्राई
हुई आवाज़ में तुर्बीन ने कहा, “परेशान न होना और मेरा इंतज़ार करना, मैं जाकर अपना नाम लिखवाऊँगा और वापस घर आ जाऊंगा.
फ़ौजी कार्रवाइयों के बारे में सोचकर परेशान न होना, हम शहर
में बैठेंगे और इस प्यारे प्रेसिडेंट – इस सुअर के बारे में बातें करेंगे.”
“ऐसा न हो, कि तुम्हें कहीं भेज दें?”
करास ने तसल्ली देते हुए हाथ हिलाया.
“आप परेशान न हों, एलेना
वसील्येव्ना. पहली बात, आपको बताना चाहूंगा, कि कम
से कम दो हफ़्तों से पहले तो डिविजन किसी भी हालत में तैयार नहीं हो पायेगी, अभी तक घोड़े नहीं हैं और गोला-बारूद भी नहीं है. और
जब वह तैयार होगी, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम शहर ही में रहेंगे.
पूरी फ़ौज, जो अभी बन रही है, निश्चय
ही शहर की रक्षा के लिए ही तैनात की जायेगी. भविष्य में, अगर मॉस्को पर चढ़ाई करते हैं...”
“खैर, ये अभी कहाँ से....हुम्...”
“पहले तो देनीकिन से मिलना पडेगा....”
“महाशय, आप लोग बेकार ही में मुझे तसल्ली दे रहे हैं, मैं बिल्कुल किसी भी चीज़ से नहीं डर रही हूँ, बल्कि, आपकी तारीफ़ कर रही हूँ.”
एलेना वाकई में हिम्मत से बोल रही थी, और उसकी आंखों में हर रोज़ के काम की चिंता थी. “कई
दिनों तक ये फ़िक्र रहती है.”
“अन्यूता,” वह चिल्लाई, “प्यारी, वहाँ बरामदे में विक्तर विक्तरविच के अंतर्वस्त्र पड़े
हैं. उसे उठा, बच्ची, अच्छी तरह ब्रश से साफ़ कर, और फिर फ़ौरन धो दे.”
एलेना को सबसे ज़्यादा सुकून का एहसास गठीले, नाटे करास
को देखकर हो रहा था. आत्मविश्वास से भरपूर करास भूरी जैकेट में एकदम शांत था, सिगरेट पी रहा था और आंखें सिकोड़ कर देख रहा था.
प्रवेश कक्ष में उन्होंने बिदा ली.
“अच्छा, खुदा आपको सलामत रखे, महाशय,” एलेना ने सख्ती से कहा और तुर्बीन पर सलीब का निशान
बनाया. वैसे ही उसने करास और मिश्लायेव्स्की पर भी सलीब का निशान बनाया. मिश्लायेव्स्की
ने उसे गले लगाया, और करास ने, जिसके
ओवरकोट की चौड़ी कमर पर कस कर बेल्ट बंधी थी, लाल
होकर, नजाकत से उसके दोनों हाथों को चूम लिया.
***
“कर्नल, महाशय,” हौले से अपनी ऐड को खटखटाते हुए और कैप के ऊपर हाथ
रखकर, करास ने कहा,
“रिपोर्ट करने की इजाज़त देंगे?”
कर्नल महाशय दुकान की स्टेज जैसी ऊँची जगह पर, दाईं
ओर, छोटी-सी लिखने की मेज़ के पीछे एक हरे रंग की नीची कुर्सी पर बैठे थे. उनके
पीछे, डिजाइन वाले जालीदार परदे से ढंकी धूल भरी खिड़की से आते हुए प्रकाश को
मद्धिम करते हुए नीले रंग के कार्डबोर्ड के डिब्बों का ढेर था, जिन पर लिखा था ‘मैडम अंजू. महिलाओं की टोपियाँ.’ कर्नल
महाशय के हाथ में कलम थी और वह असल में कर्नल नहीं, बल्कि
लेफ्टिनेंट कर्नल था, चौड़े, सुनहरे शोल्डर स्ट्रैप्स वाला, जो दो पट्टियों और तीन सितारों वाले थे, साथ में उन पर एक दूसरे को छेदती हुई सुनहरी तोपें भी
थीं.
कर्नल महाशय खुद तुर्बीन से कुछ ही बड़े थे – उनकी उम्र
करीब तीस साल थी, ज़्यादा से ज़्यादा बत्तीस. उनका चेहरा, खाया-पिया, और
सफाचट दाढी वाला, काली, अमेरिकन स्टाईल में कटी छोटी-छोटी मूंछों से सजा था.
बेहद जिंदादिल और अक्लमंद आंखें स्पष्ट रूप से थकी हुई थीं, मगर ध्यान से देख रही थीं.
कर्नल के चारों ओर आदिम काल की बेतरतीबी थी. उससे दो कदम दूर छोटी-सी काली भट्टी में आग
चटचटा रही थी, गांठदार काले पाईपों से, जो पार्टीशन के पीछे जा रहे थे, और दुकान के भीतर तक पहुँच रहे थे, कभी कभी काला द्रव टपक रहा था. स्टेज के और दुकान के
बाकी हिस्से का फर्श, जिस पर गड्ढे पड गए थे, कागज़ के
टुकड़ों और लाल-हरी कपड़ों की चिंधियों से भरा था. ऊपर ऊंचाई पर, कर्नल के सिर के ठीक ऊपर, बेताब
पंछी की तरह टाईपराइटर चटचटा रहे थे,
और जब तुर्बीन ने सिर ऊपर उठाया, तो उसने देखा कि पंछी मुंडेरों के पीछे गा रहा है, जो ठीक दुकान की छत के नीचे लटक रही थीं. इन मुंडेरों
के पीछे से नीली ब्रीचेस में किसी के पैर और नितम्ब झाँक रहे थे, मगर सिर नहीं दिखाई दे रहा था, क्योंकि उसे छत काट रही थी. दूसरा टाईपराइटर बाईं और
खटखटा रहा था, किसी अज्ञात गढ़े में, जहाँ से
वालंटियर के चमकदार शोल्डरस्ट्रैप्स और सफ़ेद सिर नज़र आ रहा था, मगर न हाथ नज़र आ रहे थे, न पैर.
कर्नल के चारों ओर कई चहरे कौंध रहे थे, तोपों वाले
सुनहरे शोल्डर स्ट्रैप्स कौंध रहे थे, एक पीला बक्सा टेलीफोन के रिसीवरों और तारों से अटा
था, और बगल में जैम के डिब्बों जैसे बक्सों के ढेर लगे
हुए थे जिनमें हथगोले और मशीनगन्स की गोलियों के पट्टों के कई बल थे. कर्नल की बाईं कोहनी के नीचे पैदल सिलाई
मशीन रखी थी, और दायें पैर के पास मशीनगन की नली झाँक रही थी. गहराई
और आधे अँधेरे में, परदे के पीछे, चमकदार
छड़ पर किसी की आवाज टूट रही थी, ज़ाहिर है, टेलीफ़ोन में:
“हाँ...हाँ...बोल रहा हूँ. बोल रहा हूँ : हाँ, हाँ. हाँ, मैं बोल रहा हूँ”. ट्रिंग-ट्रिंग...घंटी बजती
रही....पी-ऊ, - कहीं दूर गढ़े में नाज़ुक पंछी गा उठा, और वहाँ से एक जवान गहरी आवाज़ बुदबुदाई:
“डिविजन...सुन रहा हूँ...हाँ...हाँ.”
“कहिये, मैं आपकी बात सुन रहा हूँ,’ कर्नल
ने करास से कहा.
“कर्नल महाशय,
लेफ्टिनेंट विक्तर मिश्लायेव्स्की और डॉक्टर तुर्बीन का आपसे परिचय कराने की इजाज़त
दें. लेफ्टिनेंट मिश्लायेव्स्की फिलहाल दूसरी पैदल स्क्वैड में निचली रैंक का अफ़सर
है, और अपनी विशेषता के आधार पर आपकी डिविजन में आना चाहता है. डॉक्टर तुर्बीन
डिविजन के डॉक्टर के तौर पर नियुक्त करने की प्रार्थना करता है.”
यह सब कहने के बाद करास ने कैप से अपना हाथ हटाया, और मिश्लायेव्स्की ने सैल्यूट किया. “डैम इट...फ़ौरन यूनिफ़ॉर्म पहनना होगा,” बिना कैप के और भेड़ की खाल के कॉलर वाले काले कोट
में अपने आप को बौड़म समझते हुए तुर्बीन ने चिड़चिड़ाहट से सोचा. कर्नल ने उडी-उडी
आंखों से डॉक्टर को देखा और और उसकी नज़र मिश्लायेव्स्की के ओवरकोट और उसके चे हरे
पर जम गईं.
“अच्छा,” उसने कहा, “यह तो
अच्छी बात है. लेफ्टिनेंट आप कहाँ तैनात थे?”
“हेवी आर्टिलरी डिविजन N में, कर्नल महाशय,”
मिश्लायेव्स्की ने जर्मन युद्ध के दौरान अपनी सेवा का सन्दर्भ देते हुए जवाब दिया.
“हेवी आर्टिलरी? ये तो
बहुत अच्छी बात है. शैतान ही उन्हें समझे : आर्टिलरी ऑफिसर्स को न जाने क्यों पैदल
फ़ौज में डाल दिया. गड़बड़ हो गई.”
“बिलकुल नहीं, कर्नल
महाशय,” हल्की खाँसी से अपनी जिद्दी आवाज़ को साफ़ करते हुए मिश्लायेव्स्की ने कहा,
“मैंने खुद ही स्वेच्छा से इस बारे में प्रार्थना की थी, इस लिहाज़ से कि पोस्ट-वलीन्स्की पर फ़ौरन हमला करना
था. मगर अब, जब स्क्वैड पर्याप्त मात्रा में सुसज्जित हो गई है...”
“आपके निर्णय की बेहद तारीफ़ करता हूँ...ठीक है,” कर्नल ने कहा और वाकई में काफी प्रशंसा के भाव से
मिश्लायेव्स्की की आंखों में देखा. “आपसे मिल कर खुशी हुई...तो...आह, हाँ, डॉक्टर? आप भी हमारे पास आना चाहते हैं? हुम्... “
तुर्बीन ने चुपचाप सिर नीचे कर लिया, ताकि अपनी भेड की खाल के कॉलर में “बिलकुल सही” न
कहना पड़े.
“हुम्” कर्नल ने खिड़की से बाहर देखा, “पता है, यह विचार, बेशक, अच्छा है. ऊपर से, संभव है कि आने वाले दिनों में
संभव है ...च्...” वह अचानक रुक गया, आंखों को कुछ सिकोड़ा और नीची आवाज़ में कहने
लगा:
“सिर्फ...कैसे कहना चाहिए...यहाँ, आप देख रहे हैं, डॉक्टर, कि एक सवाल है...सामाजिक सिद्धांत और...हुम्...आप
सोशलिस्ट हैं? सही है ना? सभी
बुद्धिजीवियों की भाँति?” कर्नल की आंखें एक तरफ को फिसल गईं, और उसका पूरा शरीर, होंठ और
मीठी आवाज़ ये तीव्र इच्छा प्रकट कर रहे थे, कि
डॉक्टर तुर्बीन सोशलिस्ट ही निकले, कोई और नहीं. “आपकी डिविजन का नाम यही तो है ना, स्टूडेंट्स डिविजन,” आंख न
दिखाते हुए कर्नल तहे दिल से मुस्कुराया. “बेशक, कुछ
भावनात्मक, मगर, मैं खुद भी, पता है, यूनिवर्सिटी डिविजन का ही हूँ.”
तुर्बीन बहुत निराश हो गया और चकित रह गया.
“डैम...करास ने क्यों कहा था?...” उसने करास को अपने दायें कंधे के पास महसूस किया, और बगैर देखे, समझ गया, कि वह शिद्दत से उसे कुछ समझाना चाहता है, मगर क्या – यह पता करना असंभव था.
“मैं,” अचानक अपना गाल खींचते हुए तुर्बीन फट पडा, “अफ़सोस है, कि
सोशलिस्ट नहीं, बल्कि...मोनार्किस्ट (राजतन्त्रवादी – अनु.) हूँ.
बल्कि, मुझे यह कहना पडेगा, कि मैं
‘सोशलिस्ट’ शब्द को भी बर्दाश्त नहीं कर सकता. और सभी सोशलिस्टों
में से मुझे अलेक्सांद्र फ्योदरविच केरेन्स्की से सख्त नफ़रत है.”
तुर्बीन के दायें कंधे के पीछे खड़े करास के मुँह से
कोई आवाज़ फूटी.
‘करास और वीत्या से अलग होने का अफसोस हो रहा है,’ तुर्बीन
ने सोचा, “मगर जोकर उसे ले जाए, इस सोशल
डिविजन को.’
कर्नल की आंखें पल भर के लिए बाहर निकल आईं और उनमें
कोई चिनगारी और चमक दिखाई दी. उसने हाथ हिलाया, मानो
विनम्रता से तुर्बीन का मुँह बन्द करना चाहता हो, और कहने
लगा:
“अफ़सोस की बात है. हुम्...बेहद अफ़सोस की बात
है...क्रान्ति की उपलब्धियाँ इत्यादि...मुझे ऊपर से आदेश प्राप्त हुआ है:
मोनार्किस्ट तत्वों को स्टाफ में लेने से बचें, इस तथ्य
को देखते हुए कि जनता...ज़रूरी है, देख रहे हैं, संयम.
इसके अलावा, गेटमन, जिसके साथ हमारे सीधे और घनिष्ठ संबंध हैं, जैसा कि आपको ज्ञात है...अफसोस,,,अफसोस...”
यह कहते हुए कर्नल की आवाज़ में कोई दुःख नहीं
प्रदर्शित हो रहा था, बल्कि, इसके विपरीत, वह बेहद
खुश प्रतीत हो रही थी, और आंखें उसके बिल्कुल विपरीत भाव प्रदर्शित कर रही थीं,
जो वह कह रहा था.
“ओहो-हो?” तुर्बीन ने अर्थपूर्ण ढंग से सोचा, “बेवकूफ हूँ मैं...और ये कर्नल बेवकूफ नहीं है. शायद
कैरियरिस्ट है, उसके डील डौल को देखते हुए तो ऐसा ही लगता है, मगर ये ठीक है.”
“समझ नहीं पा रहा हूँ, कि क्या करूँ...क्योंकि वर्तमान समय में,” कर्नल ने ‘वर्तमान’ शब्द पर काफ़ी ज़ोर देकर कहा, “तो, वर्तमान समय में, मैं
कहता हूँ, हमारा अविलम्ब कार्य है शहर
की और गेटमन की पेत्ल्यूरा की टुकड़ियों से रक्षा करना, और, संभवत: बोल्शेविकों से भी. और फिर...फिर देखेंगे...ये
पूछने की इजाज़त दें, डॉक्टर, कि आपने अब तक कहाँ काम किया है?”
“सन् 1915 में
यूनिवर्सिटी की पढाई पूरी करने के बाद, वेनेरोलॉजी क्लिनिक में एक्स्टर्न के रूप में, फिर बेलग्रेड हुस्सार यूनिट में जूनियर डॉक्टर, और
इसके बाद बड़े तीन-यूनिट वाले हॉस्पिटल में रेजिडेंट डॉक्टर. आजकल फ़ौज की नौकरी से
मुक्त हूँ और प्राइवेट प्रैक्टिस करता हूँ.”
“कैडेट!” कर्नल चहका, “सीनियर
ऑफिसर को मेरे पास भेजो.”
नीचे गढ़े में किसी का सिर गायब हो गया, और इसके बाद कर्नल के सामने एक सांवला, जिंदादिल और दृढनिश्चयी नौजवान ऑफिसर प्रकट हुआ. वह
मेमने की खाल की लाल टॉप वाली गोल टोपी में था, जिसके
लम्बे कान गुंथे हुए थे, भूरे, लम्बे मिश्लायेव्स्की जैसे ओवरकोट में, जिस पर कस कर
बंधी बेल्ट और रिवाल्वर था. उसके मुड़े-तुडे सुनहरे शोल्डर स्ट्रैप्स प्रदर्शित कर
रहे थे कि वह स्टाफ-कैप्टेन है.
“कैप्टेन स्तुद्ज़िन्स्की,” कर्नल उससे मुखातिब हुआ, “कृपया, कमांडर के हेडक्वार्टर में एक प्रार्थना पत्र भेजिए –
मेरे पास फ़ौरन तबादला किया जाए, लेफ्टिनेंट ...अं...का...”
“मिश्लायेव्स्की,” मिश्लायेव्स्की ने सैल्यूट मारते
हुए कहा.
“...मिश्लायेव्स्की का, विशेषता
के आधार पर, दूसरे स्क्वैड से. साथ ही एक और प्रार्थना पत्र
वहीं...कि डॉक्टर...अं...”
“तुर्बीन...”
“तुर्बीन की मुझे अत्यंत आवश्यकता है – डिविजन के
डॉक्टर के रूप में. उनकी फ़ौरन नियुक्ति की प्रार्थना करते हैं.”
“सुन रहा हूँ, कर्नल
महाशय,” गलत उच्चारण के साथ ऑफिसर ने जवाब दिया और सैल्यूट
मारा. ‘पोलिश’ – तुर्बीन ने सोचा.
“ आप, लेफ्टिनेंट (ये मिश्लायेव्स्की से), अपनी स्क्वैड में
वापस न जाएँ. लेफ्टिनेंट चौथी प्लेटून संभालेंगे (ऑफिसर से).”
“यस, कर्नल महाशय.”
“यस, कर्नल महाशय.”
“और आप, डॉक्टर, इसी पल से सर्विस पर हैं. कृपया आज एक घंटे बाद
अलेक्सान्द्र जिम्नेशियम (हाई स्कूल-अनु.) के परेड ग्राउंड पर आयें.”
“यस, कर्नल महाशय.”
“डॉक्टर को फ़ौरन युनिफॉर्म दी जाए.”
“सुन रहा हूँ.”
“सुन रहा हूँ, सुन रहा
हूँ!” नीचे गढ़े में नीची आवाज़ चिल्लाई.
“सुन रहे हैं? नहीं.
मैं कह रहा हूँ : नहीं...नहीं, कह रहा हूँ,”
पार्टीशन के पीछे से कोई चीखा.
ट्रिंग-न्ग...पी...पू-ऊ,” गढ़े
में पंछी गा रहा था.
“सुन रहे हैं?...”
***
“आज़ाद समाचार”! “आज़ाद समाचार”! नया अखबार “आज़ाद
समाचार!” भीड़ के ऊपर अखबार बेचने वाला लड़का चिल्ला रहा था, जिसने सिर पर औरतों का स्कार्फ बांधा हुआ था, “पेत्ल्यूरा की हार. ओडेसा में काली फौजें पहुँची.
“आज़ाद समाचार”!
घंटे भर में तुर्बीन घर जाकर आया. लिखने की मेज़ की
दराज के अँधेरे से, जो ड्राइंग रूम से सटे हुए तुर्बीन के छोटे-से अध्ययन कक्ष में
थी, चांदी के शोल्डर-स्ट्रैप्स बाहर निकले. वहाँ बालकनी
में निकलते हुए कांच के दरवाज़े की खिड़की पर सफ़ेद परदे थे, किताबों और लेखन-सामग्री के साथ लिखने की मेज़ थी,
दवाइयों और उपकरणों से भरी अलमारियां, साफ़ चादर से ढंका एक सोफा था. दयनीय और तंग, मगर आरामदेह.
“लेनच्का, अगर आज मुझे किसी वजह से देर हो जाए और अगर कोई आये, तो कहना – डॉक्टर नहीं देखेंगे. नियमित मरीज़ नहीं
हैं. ..जल्दी करो, बच्ची.”
एलेना जल्दी-जल्दी, ट्यूनिक
की कॉलर खीच कर उस पर शोल्डर स्ट्रैप्स सी रही थी...दूसरी जोड़ी, काली चमक वाले सुरक्षात्मक हरे, उसने ओवरकोट पर सी दिए थे.
कुछ मिनटों के बाद तुर्बीन प्रमुख द्वार से बाहर निकला, सफ़ेद बोर्ड की और देखा:
डॉक्टर अ. व. तुर्बीन
यौन रोग और सिफलिस
606 – 914
मिलने का समय - 4
से 6
बजे तक.
उसने संशोधित सुधार
चिपका दिया “ 5 से 7
बजे तक.” और अलेक्सांद्र ढलान पर ऊपर की ओर भागा.
“आज़ाद
समाचार!”
तुर्बीन
ने रुक कर अखबार वाले से अखबार खरीदा और चलते-चलते उसे खोला:
“निर्दलीय
डेमोक्रेटिक अखबार.
दैनिक
प्रकाशन.
13
दिसंबर 1918.
विदेशी
व्यापार और, विशेषकर जर्मनी के साथ व्यापार से संबधित प्रश्न हमें
मजबूर करते हैं...”
“माफ़
कीजिये, मगर कहाँ?...हाथ ठिठुर रहे हैं.”
“हमारे
संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, ओडेसा में अश्वेत औपनिवेशकों की फौजों के दो
डिविजनों को उतारने के बारे में बातचीत चल रही है. कौंसुल एन्नो इस बात पर विचार
करना नहीं चाहता कि पित्ल्यूरा...”
“आह, कुत्ते की औलाद, छोकरे!”
“भगोड़ों
ने, जो कल हमारी पोस्ट- वलीन्स्की के आर्मी हेडक्वार्टर
में पहुंचे थे, पित्ल्यूरा की फौजों में बढ़ते असंतोष के बारे में
सूचित किया है. तीन दिन पहले घुड़सवार दस्ते ने करोस्तेन प्रदेश में सिच रैफाला
मैनों की पैदल सेना पर गोलीबारी की. पित्ल्यूरा की टुकड़ियों में शान्ति के प्रति
तीव्र रुझान देखा जा रहा है. शायद, पित्ल्यूरा के दु:साहस का पतन होने वाला है. उसी
भगोड़े की सूचना के अनुसार, कर्नल बलबतून जिसने पित्ल्यूरा के खिलाफ विद्रोह कर
दिया था, अपनी रेजिमेंट और चार बंदूकों के साथ किसी अज्ञात
दिशा में चला गया है. बलबतून का झुकाव गेटमन की ओर है.
किसान
अधिग्रहण के कारण पित्ल्यूरा से नफ़रत करते हैं. उसके द्वारा गाँवों में घोषित
लामबंदी को कोई सफलता नहीं मिल रही है. किसान बड़ी मात्रा में उससे दूर भाग रहे हैं, भागकर जंगलों में छुप रहे हैं.”
“मान
लेते हैं...आह, नासपीटी बर्फ...माफ़ कीजिये.”
“चचा, ये आप लोगों को क्यों दबा रहे हैं? अखबार घर में पढ़ना
चाहिए....”
“माफ़
कीजिये...”
“हमने
हमेशा जोर देकर कहा है कि पित्ल्यूरा का दु:साहस...”
“कमीना
है! आह तुम, कमीने...
जो
ईमानदार है, और भेदिया नहीं है, वो
वालंटियर्स रेजिमेंट में जाता है....”
“इवान
इवानविच, आज आप इतने उखड़े-उखड़े क्यों हैं?”
“हाँ,
बीबी ने पित्ल्यूरापन दिखाया. आज सुबह से बलबतूनियत दिखा रही है...”
इस
व्यंग्य से तुर्बीन का चेहरा बदल गया, उसने गुस्से से अखबार को मरोड़ा और उसे
फुटपाथ पर फेंक दिया. गौर से सुनने लगा.
‘बू-ऊ,’- गोले गा रहे थे. ‘ऊ-ऊ ऊ ख,’ कहीं से, धरती के गर्भ से शहर के बाहर आवाज़ गूँज गई.
“ये
कौन शैतान है?”
तुर्बीन
फ़ौरन मुडा, उसने मुड़े-तुडे अखबार के गोले को उठाया और फिर से
पहले पृष्ठ को गौर से पढ़ने लगा:
“इर्पेन
क्षेत्र में हमारे स्काऊट्स और पित्ल्यूरा के डाकुओं के अलग-अलग गिरोहों से
मुठभेड़ें हुईं.
सिरिब्र्यान्स्क
दिशा में शान्ति है.
‘क्रास्नी
टेवर्न’ में कोई परिवर्तन नहीं.
बयार्का
की दिशा में गेटमन के सिर्द्यूकों की रेजिमेंट ने डेढ़ हज़ार लोगों के समूह को
तितर-बितर कर दिया. दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.”
“
गूं....गूं...गूं...बू...बू...बू...” सर्दियों की धूसर दूरी दक्षिण-पश्चिम में
कहीं बुदबुदा रही थी. तुर्बीन ने अचानक मुँह खोला और पीला पड़ गया. उसने यंत्रवत्
अखबार को जेब में घुसाया. मुख्य मार्ग से व्लदिमीर्स्काया स्ट्रीट पर काली नज़र आ
रही भीड़ रेंग रही थी. काले ओवरकोट पहने बहुत सारे लोग रास्ते पर चल रहे थे...
फुटपाथों पर औरतें दिखाई दे जातीं. इम्पीरियल गार्ड से एक घुड़सवार जा रहा था, जैसे कोई लीडर हो. ऊंचे घोड़े के कान ऐंठे हुए थे, वह तिरछी नज़र से देख रहा था, किनारे-किनारे चल रहा था. घुड़सवार के थोबड़े पर
परेशानी थी. अनुशासन बनाए रखने के लिए वह बीच-बीच में चाबुक घुमाते हुए कुछ चीख
रहा था, और उसकी चीखों को कोई भी नहीं सुन रहा था. भीड़ में, सामने की कतारों में
पुजारियों के सुनहरे वस्त्र और दाढ़ियाँ झाँक जाती, एक ध्वज
लहरा जाता. बच्चे सभी दिशाओं से भाग रहे थे.
“समाचार!”
अखबार वाला छोकरा चिल्लाया और भीड़ की तरफ बढ़ा.
सफ़ेद,
चपटे टोप पहने रसोइये, रेस्टारेंट ‘मेत्रोपोल’ की
भीतरी दुनिया से उछल कर बाहर आ गए. भीड़ बर्फ पर बिखर गई जैसे कागज़ पर स्याही फैलती
है.
भीड़
के ऊपर लम्बे पीले बक्से हिल रहे थे. जब पहला बक्सा तुर्बीन के पास से गुज़र रहा था, तो उसने बगल वाले कोने पर इबारत देखी:
“एनसाईन
यूत्सेविच.”
अगले
बक्से पर : “एनसाईन इवानोव.”
तीसरे
पर : “एनसाईन अर्लोव.”
भीड़
से अचानक एक चीख उठी. सफ़ेद बालों वाली औरत, सिर के
पीछे खिसक गई हैट, लड़खड़ाते और कुछ पैकेट्स ज़मीन पर गिराते हुए, फुटपाथ से भीड़ में घुस गई.
“ये
क्या है? वान्या?!” उसकी आवाज़ गूँजी. कोई विवर्ण चहरे से एक ओर को
भागा. एक औरत बिलखने लगी, उसके पीछे दूसरी भी बिसूरने लगी.
“ओह
गॉड, जीज़स क्राइस्ट!” तुर्बीन के पीछे लोग बुदबुदा रहे थे.
किसी ने उसकी पीठ दबाई और गर्दन पर सांस छोड़ी.
“खुदा...आख़िरी
दिन. ये क्या हो रहा है, क्या लोगों को काट रहे हैं?...हाँ, ये आखिर क्या है...”
“काश, मैं कुछ भी न देखता, बजाय ये
सब देखने के.”
“क्या? क्या? क्या? क्या? क्या हुआ? किसे दफ़ना रहे हैं?”
“वान्या!”
भीड़ में कोई विलाप कर उठा.
“उन
ऑफिसर्स को जिन्हें पपिल्यूखा में काट दिया था,” जल्दी
से, पहले बताने की नीयत से एक आवाज़ भिनभिनाई , “पपिल्यूखा
में गए थे, पूरी स्क्वैड के साथ रात वहीं बिताई, और रात को पित्ल्यूरा के लोगों के साथ किसानों ने
उन्हें घेर लिया, और सबको सफ़ाई से काट दिया. सबको...आंखें बाहर निकाल
लीं, शोल्डर स्ट्रिप्स चीर दिए. पूरी तरह विकृत कर दिया.”
“ऐसा
हुआ? आह, आह, आह....”
“एनसाइन
करोविन”, “एन्साइन गेर्ड्ट” , - पीले ताबूत तैर रहे थे.
“क्या
दिन आ गए हैं...ज़रा सोचिये.”
“आपसी
युद्द.”
“ऐसा
कैसे?...”
“सो
गए, कहते हैं...”
“उनके
साथ ऐसा ही...” अचानक भीड़ में किसीने तुर्बीन की पीठ के पीछे सीटी बजाई, काली आवाज़, और उसकी आँखों के सामने हरियाली तैर गई,. पल भर में ही चेहरे, टोपियाँ
तैरती चली गईं. दो गर्दनों के बीच से चिमटे की तरह हाथ घुसाकर काले ओवरकोट की
बाहों से उस आवाज़ को पकड़ लिया. आवाज़ मुड़ी और खौफ से घिर गई.
“क्या
कहा था आपने?” फुफ़कारती हुई आवाज़ में तुर्बीन ने पूछा और फ़ौरन ढीला
पड़ गया.
“मेहेरबानी करें, ऑफिसर महाशय”, भय से कांपते हुए आवाज़ ने जवाब दिया, “मैं कुछ भी नहीं कह रहा हूँ. मैं खामोश हूँ. आप क्या
कर रहे हैं?” आवाज़ उछली.
बत्तख
जैसी नाक पीली पड़ गई, और तुर्बीन फ़ौरन समझ गया कि उससे गलती हो गई है, उसने उस आदमी को नहीं पकड़ा है, जिसे पकड़ना चाहिए था. मेमने की खाल के कोट और बत्तख
जैसी नाक के नीचे से एक बेहद भली आकृति प्रकट हुई. वह इस तरह की कोई बात कह ही
नहीं सकती थी, और उसकी गोल-गोल आंखें डर के मारे घूम रही थीं.
तुर्बीन
ने उसकी आस्तीन छोड़ दी और ठन्डे तैश में आंखों से अपने चारों ओर उमड़ती टोपियों, खोपड़ियों और कॉलरों के बीच ढूँढने लगा. बाएं हाथ से
वह कुछ पकड़ने को तैयार था, और दायें हाथ में जेब में रखी पिस्तौल का हत्था पकडे
था. पादरियों का दयनीय गान बगल से तैर रहा था, और पास
ही में, स्कार्फ पहनी महिला हिचकियाँ लेते हुए विलाप कर रही थी. पकड़ने जैसा वाकई
में कोई था ही नहीं, आवाज़, जैसे धरती में गड़प हो गई थी. आख़िरी ताबूत गुज़रा,
“एनसाईन मर्स्कोय”,
कोई
स्लेज गाड़ी गुज़री.
“समाचार!”
अचानक तुर्बीन के ठीक कान के नीचे ऊँची आवाज़ गूँजी.
तुर्बीन
ने जेब से गुडीमुडी किया हुआ अखबार निकाला और, बदहवासी से, दो बार बच्चे के चेहरे पर चुभोते हुए दांत भींच कर
कहा:
“ये
ले तेरे समाचार! ये ले. ये ले तेरे समाचार. कमीने!”
इतने
से उसका तैश उतर गया. बच्चे ने अखबार गिरा दिए, वहाँ से
फिसल गया और बर्फ के ढेर पर बैठ गया. उसका चेहरा पल भर में झूठ मूठ रोने से तिरछा
हो गया, और आंखें झूठी नहीं, बल्कि सचमुच
की भयंकर घृणा से भर गईं.
“ये
क्या...आप क्या...मुझे क्यों?” वह फुफकारा और बर्फ पर पैर पटकते हुए बिसूरने की
कोशिश करने लगा. किसी का अचरज भरा चेहरा तुर्बीन की ओर मुड़ा, मगर कुछ कहने से डर गया. शर्म और बेकार की बेहूदगी
महसूस करते हुए तुर्बीन ने कन्धों के बीच सिर झुकाया और, फ़ौरन मुड़कर गैस बत्ती की
बगल से, म्यूज़ियम की विशाल, गोल
बिल्डिंग के सफ़ेद किनारे से, पतली बर्फ से ढंके ईंटों भरे गड्ढों की बगल से गुज़रते
हुए भागा विशाल, परिचित ग्राउंड – अलेक्सान्द्रोव्स्की जिम्नेशियम के
पार्क की ओर.
“समाचार”!
“दैनिक डेमोक्रेटिक अखबार”! सड़क से आवाज़ आई.
***
तुर्बीन
के प्रिय जिम्नेशियम की एक सौ अस्सी खिड़कियों वाली, चार
मंजिला विशाल इमारत ग्राउंड के किनारे पर थी. तुर्बीन ने उसमें आठ साल बिताये थे, आठ सालों के दौरान, बसंत की
छुट्टियों में वह इस परेड ग्राउंड पर भागा करता, और
सर्दियों में, जब कक्षाएं दमघोंटू धूल से भरी होतीं, और ग्राउंड पर ठंडी, शानदार
बर्फ पडी होती, वह ग्राउंड को खिड़की से देखता. आठ साल तक ईंटों की इस
इमारत ने तुर्बीन को और छोटे – करास और मिश्लायेव्स्की को संभाला और पढ़ाया था.
और
ठीक आठ साल पहले तुर्बीन ने अंतिम बार जिम्नेशियम का पार्क देखा था. न जाने क्यों
उसका दिल भय से सिहर गया. उसे अचानक ऐसा लगा, कि काले
बादल ने आसमान को ढांक दिया है, कि कोई बवंडर आकर पूरा जीवन उड़ा ले गया, जैसे भयानक लहर घाट को बहा ले जाती है. ओह, आठ साल की पढ़ाई! किसी बच्चे की आत्मा के लिए उसमें कितना
बेतुकापन, दुख और हताशा थी, मगर साथ
ही कितनी प्रसन्नता भी थी. धूसर दिन, धूसर दिन, धूसर दिन, लैटिन की वाक्य रचना, जूलियस
सीज़र, एस्ट्रोनॉमी में ‘एक’ और इस
‘एक’ वाले दिन से एस्ट्रोनॉमी के प्रति हमेशा के लिए नफ़रत
हो गई थी. मगर फिर बसंत, बसंत और कमरों में हंगामा, स्कूल
की लड़कियां हरे पिनाफोर में वृक्षाच्छादित रास्तों पर, बलूत और
मई, और, सबसे ख़ास, आगे शाश्वत प्रकाशस्तंभ – यूनिवर्सिटी, मतलब, आज़ाद ज़िंदगी, - क्या
आप समझते हैं, कि यूनिवर्सिटी का मतलब क्या होता है? द्नेप्र पर सूर्यास्त, आज़ादी, पैसा, ताकत, प्रसिद्धि.
और
वह इस सबसे गुज़रा था. अध्यापकों की सदा रहस्यमय आंखें, और
भयानक, अब तक सपनों में दिखाई देते स्वीमिंग पूल्स जिनमें से
लगातार पानी निकलता रहता है, और कभी भी पूरी तरह नहीं निकल जाता. और जटिल बहस इस
बारे में कि लेन्स्की अनेगिन से किस प्रकार भिन्न है, और कैसा
असभ्य था सुकरात, और जेसूइट का ऑर्डर कब प्रस्थापित हुआ था, और पोम्पेइ का अभियान कब हुआ था, और कोई और कब हुआ था, और कब
हुआ था, और पिछले दो हज़ार वर्षों में कौन-कौन से अभियान हुए
थे....
ये
तो कम है. जिम्नेशियम के आठ सालों के बाद, बगैर
किन्हीं स्वीमिंग पूल्स के, एनाटोमी थियेटर के मुर्दे, सफ़ेद
वार्ड्स, ऑपरेशन थियेटर्स की कांच जैसी पारदर्शी खामोशी, और उसके बाद तीन साल काठी में घूमना, पराये ज़ख्म, अपमान
और पीड़ा, - ओह, युद्ध का शापित तालाब...और अब फिर वहीं, इसी परेड ग्राउंड पर, इसी बाग़
में. और वह परेड ग्राउंड में दौड़ रहा था काफी बीमार और पस्त, जेब में पिस्तौल भींच रहा था, भाग रहा था, शैतान
जाने कहाँ और किसलिए. संभवत: उसी ज़िंदगी की रक्षा करने के लिए – भविष्य, जिसके कारण तालाबों के मारे दुखी होता रहा और उन
नासपीटे पैदल चलने वालों के कारण, जिनमें से एक स्टेशन A से जा
रहा है, और दूसरा उससे मिलने के लिए स्टेशन B से.
अंधेरी
खिड़कियाँ सम्पूर्ण और उदास शान्ति प्रदर्शित कर रही थीं. पहली नज़र में ही समझ में
आ रहा था, कि ये शान्ति मृतवत् है. अजीब बात है, शहर के केंद्र में, पतन, उफ़ान और गहमागहमी के बीच, चार
स्तरों वाला जहाज़ मृतवत् खड़ा है, जो कभी खुले समुन्दर में दसियों हज़ारों जिंदगियों को
ले जाया करता था. ऐसा लग रहा था, कि अब कोई उसकी रक्षा नहीं कर रहा है, खिड़कियों में और दीवारों के नीचे जो पीले निकोलायेव
रंग में रंगी हुई थीं, ना कोई आवाज़ थी, ना कोई हलचल. बर्फ छतों पर अनछुई
पर्त के रूप में पडी थी, टोपियों के समान बलूत के पेड़ों पर बैठी थी. बर्फ समान
रूप से परेड ग्राउंड पर पडी हुई थी, और सिर्फ कुछ ही पैरों के निशान प्रदर्शित कर रहे थे
कि उसे अभी-अभी कुचला गया है.
और
ख़ास बात : न सिर्फ कोई नहीं जानता था, बल्कि किसी को भी इस बात में दिलचस्पी नहीं थी, कि सब कुछ कहाँ चला गया? इस जहाज़
में अब कौन पढ़ता है? और अगर कोई नहीं पढ़ता, तो
क्यों? चौकीदार कहाँ हैं? क्यों
भयानक, चपटी नाक वाली तोपें बलूत की कतारों के नीचे जाली के
पास दिखाई दे रही हैं, जो भीतरी प्रवेश द्वार के पास भीतरी बगीचे को अलग
करती है? जिम्नेशियम में हथियारों का स्टोर-रूम क्यों है? किसका? कौन? किसलिए?
कोई
इस बारे में नहीं जानता, वैसे ही, जैसे कोई नहीं जानता था, कि मैडम
अंजू कहाँ चली गई और उसकी दूकान में खाली डिब्बों के पास बम क्यों पड़े थे?...
***
“शुरू- क-र!” आवाज़ चीखी.
मोर्टार तोपें हिलीं और रेंगने लगीं. करीब दो सौ लोग हिले, इधर से उधर भागने लगे, बैठने लगे और लोहे के विशाल
पहियों के करीब उछलते रहे. पीले भेड की खाल के कोट, भूरे ओवरकोट, और हैट्स, फ़ौजी और सुरक्षात्मक, और नीली स्टूडेंट्स वाली टोपियाँ अस्पष्ट
रूप से दिखाई दे जातीं.
जब तुर्बीन ने भव्य परेड
ग्राउंड पार किया, तो चार तोपें एक कतार में खड़ी, जबड़े खोले उसकी तरफ देख रही थीं. मोर्टार्स के पास वाली शीघ्र ट्रेनिंग
पूरी हो चुकी थी, और दो पंक्तियों में डिविजन का नवगठित दल
खडा था.
“महाशय कै-प्ट-न,” मिश्लायेव्स्की की आवाज़ गूँजी, “प्लेटून तैयार
है.”
स्तुद्ज़िन्स्की कतारों के
सामने आया, एक कदम पीछे हटा और चिल्लाया:
“बायाँ कंधा आगे, कदम मार्च!”
संरचना सरसराई, हिली और, अव्यवस्थित ढंग से बर्फ को रौंदते हुए, तैर गई.
तुर्बीन
के सामने से कई परिचित और ख़ास विद्यार्थियों के चेहरे कौंध गए. तीसरी प्लेटून के
आगे करास कौंध गया. अभी भी न जानते हुए कि वह कहाँ और किसलिए जा रहा है, तुर्बीन प्लेटून की बगल में चरमराते हुए चलने लगा...
करास
संरचना से बाहर हो गया और, परेशान, पीछे-पीछे चलते हुए, गिनने
लगा :
“लेफ्ट.
लेफ्ट, आत्. आत्.”
जिम्नेशियम
के तहखाने के रास्ते के काले जबड़े में संरचना सांप की तरह खिंचती गई, और जबड़ा एक
के बाद एक कतारों को निगलता गया.
बाहर
की अपेक्षा जिम्नेशियम के अन्दर और भी ज़्यादा नीरस और उदास था. परित्यक्त इमारत की
पाषाणवत् खामोशी और शाम के अस्थिर धुंधलके को फ़ौजी कदमों की गूँज ने जगा दिया.
कमानों के नीचे कुछ् आवाजें तैरने लगीं, मानो
शैतान जाग गए हों. भारी कदमों में सरसराहट और पतली चीखें सुनाई दे रही थी - ये भयभीत चूहे थे जो अँधेरे कोनों में भाग रहे
थे. संरचना तहखाने के अंतहीन और अंधेरे कॉरीडोर्स से गुज़री, जिनका फर्श ईंटों का था, और एक
विशाल हॉल में आई, जहाँ जालियों वाली खिड़कियों की पतली झिरी से, मकडी के
मृत जालों से कृपणता से प्रकाश आ रहा था.
हथौड़ों की नारकीय गर्जना सन्नाटे को तोड़ रही थी.
कारतूसों वाले लकड़ी के डिब्बे तोड़े जा रहे थे, ल्यूइस
मशीनगनों के लिए कारतूसों के अंतहीन पट्टे और केक जैसे गोल निकाल रहे थे. दुष्ट
मच्छरों जैसी काली और भूरी मशीनगनें बाहर निकलीं. नट्स खडखडा रहे थे, चिमटे फाड़ रहे थे, कोने
में सीटी जैसी आवाज़ से आरा कुछ काट रहा था. कैडेट्स ठंडी टोपियों के गट्ठे, लोहे जैसी सिलवटें पड़े ओवरकोट, सख्त बेल्ट, कारतूसों
के पाउच और कपड़ों में लिपटे फ्लास्क निकाल रहे थे.
“फु-उ-र्ती
से,” स्तुद्ज़िन्स्की की आवाज़ गूँजी.
करीब
छः ऑफिसर्स, धुंधले सुनहरे शोल्डर बेल्ट्स में, पानी पर काई की तरह गोल-गोल घूम रहे थे.
मिश्लायेव्स्की की ऊँची आवाज़ कुछ न कुछ गा रही थी.
“डॉक्टर
महाशय!” स्तुद्ज़िन्स्की अँधेरे से चिल्लाया, “पैरामेडिक्स
की टीम का चार्ज लें और उन्हें निर्देश दें.”
तुर्बीन
के सामने फ़ौरन दो स्टूडेन्ट्स प्रकट हो गए. उनमें से एक के, जो छोटे कद का और परेशान नज़र आ रहा था, स्टूडेंट-ओवरकोट पर लाल क्रॉस था. दूसरा - भूरे फौजी
कोट में था, और उसकी टोपी बार-बार आंखों पर फिसल रही थी, इसलिए वह पूरे समय उसे उंगलियों से ठीक कर रहा था.
“वहाँ
दवाइयों वाले बक्से हैं,” तुर्बीन ने कहा, उसमें से पट्टों वाले झोले निकालो, और मुझे उपकरणों के साथ डॉक्टर की बैग दो. हर तोपची
को दो-दो पैकेट्स दो, संक्षेप में समझाते हुए कि ज़रुरत पड़ने पर उन्हें कैसे खोलना चाहिए.
भिनभिनाते हुए भूरे झुण्ड के ऊपर मिश्लायेव्स्की का सिर उभरा. वह एक बक्से
पर चढ़ गया, बन्दूक हिलाई, बोल्ट खटखटाया, झटके से कारतूसों का पट्टा उसमें डाला, खिड़की पर निशाना साधते हुए,और झनझनाते हुए, झनझनाते हुए और निशाना साधते हुए, कैडेट्स की ओर खाली कारतूस फेंकता रहा. इसके बाद तो मानो तहखाने में
फैक्ट्री जैसी खटखट होने लगी. खटखटाते और झनझनाते हुए कैडेट्स बदूकों में कारतूस
भरते रहे.
“जो नहीं कर सकता,ज़्यादा सावधान रहे, कैडे-ट्स,” मिश्लायेव्स्की गा रहा था, “स्टूडेंट्स को समझाइये.”
सिरों के ऊपर से पाउच के साथ कारतूसों वाले बेल्ट और फ्लास्क सिरों के ऊपर से फिसल गए.
चमत्कार हो गया. विभिन्न प्रकार के लोगों का समूह एक जैसी, सुगठित संरचना में बदल गया, जिसके ऊपर नुकीले ब्रश की तरह, संगीनों का ब्रश असंगठित रूप से सरसराते हुए लहरा रहा था.
“अफसर महाशयों से विनती है, कि मेरे पास आयें,” कहीं से स्तुद्ज़िन्स्की की आवाज़ आई.
कॉरीडोर के अंधेरे में, एड़ों की लाल, हल्की आवाज के बीच, स्तुद्ज़िन्स्की
धीमी आवाज़ में बोल रहा था.
“अनुभव?”
एड़ें खटखटाईं.मिश्लायेव्स्की, लापरवाही और चतुराई से कैप के बैंड में उंगलियाँ गड़ाते हुए
स्टाफ-कैप्टेन के पास आया और बोला:
“मेरी प्लेटून
में पंद्रह ऐसे आदमी हैं,जो राईफल के बारे में कुछ नहीं जानते. मुश्किल है.”
स्तुद्ज़िन्स्की,
किसी प्रेरणा से, कहीं ऊपर को देखते हुए, जहाँ से प्रकाश की धुंधली, भूरी, अंतिम किरण कांच से होकर भीतर आ रही थी, बोला:
“मनस्थिति?”
फिर से मिश्लायेव्स्की बोला:
“हुम्....हम्...ताबूतों ने बिगाड़ दी. स्टूडेंट्स परेशान हो गए. उन पर बुरा
असर पड़ता है. जाली से देख लिया था.”
स्तुद्ज़िन्स्की ने अपनी काली, जिद्दी आंखें उस पर गड़ा दीं.
“मनोबल ऊंचा करने की कोशिश करो.”
और जब वे जाने लगे, तो एड़ें खनखनाईं.
“कैडेट पाव्लव्स्की!” “अईदा” में रदामेस की भाँती कार्यशाला में
मिश्लायेव्स्की गरजा.
“पाव्लव्स्की...स्की!...स्की!...स्की!!” कार्यशाला ने पथरीली गूँज और
कैडेट्स की आवाजों की गरज से जवाब दिया.
“हाज़िर हूँ!”
“अलेक्सेयेव्स्की अकाडेमी से ?”
“सही फरमाया, लेफ्टिनेंट महाशय.”
“चलो, एक जोशीला गीत गाओ. ताकि पित्ल्यूरा मर जाए, उसकी रूह सड़ती रहे...”
एक आवाज़, ऊँची और स्पष्ट, पत्थर की मेहराबों के नीचे गूँज उठी :
“ पैदा हुआ तोपची के रूप
में....”
राइफलों के घने जंगल से ऊँची आवाजों ने जवाब दिया:
“ब्रिगेड के परिवार में पला-पढ़ा.”
स्टूडेंट्स का पूरा
समूह थरथरा गया, धुन से फ़ौरन मतलब को पकड़ लिया, और अचानक, सहज नीची आवाज़ में तोप के गोलों जैसी कोरस की गरज से कार्यशाला गूँज उठी:
“छर्रों की बौछार ने किया बप्तिज्मा
आक्रामक मखमल में लि-प–अ-अ-टा.
तोपों की आवाज़ से...”
गूज रहा था गीत
कानों में, कारतूसों के बक्सों में, उदास शीशों में, दिमागों में, और खिड़कियों की ढलवां चौखटों पर कुछ लावारिस धूल भरे गिलास थरथरा गए और
खनखनाने लगे...
“और ब्रेक की रस्सियों के पीछे
झुलाया मुझे तोपचियों ने.”
स्तुद्ज़िन्स्की
ने ओवरकोटों, संगीनों और मशीनगनों की भीड़ से दो गुलाबी एन्साइन को बाहर खींचा और
उन्हें हुक्म दिया:
“ वेस्टिब्यूल
में...पेंटिंग का परदा हटाओ...फुर्ती से...”
और एन्साइन फ़ौरन
कहीं चले गए.
“जाते हैं और गाते हैं
कैडेट्स गार्ड स्कूल के!
बजती हैं तुरहियाँ, ड्रम्स,
तश्तरियां झनझनाती हैं!!”
जिम्नेशियम का
वीरान पत्थर का बक्सा अब गरज रहा था और भयानक मार्च से चिंघाड़ रहा था, और चूहे गहरे
बिलों में बैठे थे, डर के मारे गूंगे हो गए थे.
“राईट...
राईट!...” गरज को तीखी आवाज़ में भेदते हुए करास चीखा.
“जोश से!...”
साफ़ आवाज़ में मिश्लायेव्स्की चिल्लाया. “अलेक्सेयेव्स्की वालों, किसे दफना रहे
हो?...”
धूसर, बिखरा हुआ
कैटरपिलर नहीं, बल्कि
“हैट बनाने वाली! रसोइनें! नौकरानियां! धोबिनें!!
देख रही हैं जाते हुए कैडेट्स को!!!
नुकीली संगीनों
से सजी कतार कॉरीडोर में घुस गई, और पैरों की धमधमाहट से फर्श झुक गया और मुड़ गया. कैटरपिलर अंतहीन कॉरीडोर से होते
हुए और दूसरी मंजिल पर विशाल, कांच के गुम्बद से आती हुई रोशनी से नहाए वेस्टिब्यूल को देखते हुए जा रहा
था, और अचानक सामने वाली पंक्तियाँ जैसे पगला गईं.
लाल रंग के अर्गमाक पर सवार, जो मोनोग्राम्स वाले शाही कपड़े से ढंका था, अर्गमाक को पिछली टांगों पर ऊपर उठाते हुए, मुस्कराहट से दमकते, सफ़ेद परों वाली मुडी हुई तिकोनी टोपी पहने, जो एक ओर को खिसक गई थी,कुछ गंजा,और दमकता हुआ अलेक्सान्द्र तोपचियों के सामने उड़ रहा
था. कैडेट्स को छलावे भरी मुस्कानें भेजते हुए, अलेक्सान्द्र ने अपनी चौड़ी तलवार लहराते हुए उसकी
नोक से बरदिनो रेजिमेंट्स की और इशारा किया. बरदिनो का मैदान तोप के गोलों और
संगीनों के काले बादल से ढंका था.
हुए थे...
ऐसे भी युद्ध?!
“हाँ, कहते हैं....” पाव्लव्स्की की
आवाज़ खनखनाई.
“हाँ, कहते हैं, और कैसे, कैसे!!” गहरे, नीचे सुर
गूंजे.
“नहीं यूँ—ऊ–ऊ–ऊ--ही याद करता है, रूस
बरदिनो का दिन!!”
चकाचौंध करता
अलेक्सान्द्र आसमान की ओर लपक रहा था, और फाड़ी गई मलमल, जो साल भर उसे
ढांके हुए थी, चीथड़ा बनी उसके घोड़े की टापों के पास पड़ी थी.
“क्या धन्य सम्राट
अलेक्सान्द्र को कभी देखा नहीं है? सीधे, सीधे! आत्.
आत्. लेफ्ट. लेफ्ट!” मिश्लायेव्स्की चीखा, और कैटरपिलर ऊपर उठने लगा, अलेक्सान्द्र
की पैदल सेना की भाँति भारी कदमों से सीढ़ियों को दबाते हुए. विजेता नेपोलियन को
पार करके बाईं ओर से डिविजन दो रंगों वाले विशाल असेम्बली हॉल में पहुँची और गाना
रोक कर, संगीनें ऊपर उठाकर घनी कतारों में खड़ी हो गई. हॉल में शाम का सफ़ेद प्रकाश
फैला था, और, अंतिम सम्राटों के कस कर बांधे हुए पोर्ट्रेट्स मृतवत्, फीके धब्बों
के समान झाँक रहे थे. एक कैडेट भाग कर भीतर आया और उससे फुसफुसाकर कुछ कहा.
“डिविजन
कमाण्डर,” पास खड़े लोगों ने सुना.
स्तुद्ज़िन्स्की
ने अफसरों को इशारा किया. वे कतारों के बीच भागे और उन्हें व्यवस्थित किया.
स्तुद्ज़िन्स्की कमाण्डर से मिलने के लिए कॉरीडोर में निकला.
एड़ें खनखनाते
हुए, सीढ़ियों पर, मुड़कर अलेक्सान्द्र की ओर देखते हुए, कर्नल मालिशेव हॉल
के प्रवेश द्वार पर पहुँचा. उसके बाएं नितम्ब पर लाल पट्टे से बंधी टेढ़ी कॉकेशियन
तलवार झूल रही थी. वह शानदार काली मखमली टोपी और पीछे से बड़ी काट वाले लम्बे ओवरकोट
में था. उसका चेहरा विचारमग्न था.
स्तुद्ज़िन्स्की शीघ्रता से उसके पास गया और सैल्यूट करके रुक गया.
मालिशेव ने उससे
पूछा:
“सबको यूनिफ़ॉर्म
मिल गए?”
“यस,सर. सारे आदेश
पूरे हो गए हैं.”
“तो, क्या खबर है?”
“युद्ध तो
करेंगे. मगर पूरी तरह अनुभवहीन हैं. एक सौ बीस कैडेट्स में अस्सी स्टूडेन्ट्स है, जो हाथ में
राईफ़ल पकड़ना भी नहीं जानते.”
मालिशेव के
चेहरे पर एक छाया तैर गई. वह खामोश रहा.
“बड़े सौभाग्य की
बात है, कि अच्छे अफ़सर मिल गए हैं,”
स्तुद्ज़िन्स्की ने आगे कहा, “ख़ास कर ये नया, मिश्लायेव्स्की. किसी तरह संभाल लेंगे.”
“अच्छा. तो, बात ये है:
मेरे निरीक्षण के बाद, अफसरों और गार्ड ड्यूटी के सबसे बढ़िया और अनुभवी कैडेट्स को
छोड़कर, जिन्हें आप शस्त्रों के पास, स्टोर-रूम में, और बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए
तैनात करेंगे, डिविजन को घर जाने दें, इस निर्देश के साथ कि कल सुबह सात बजे पूरी डिविजन यहाँ हाज़िर हो.”
स्तुद्ज़िन्स्की
स्तब्ध रह गया, उसकी आंखें अशोभनीय ढंग से कर्नल महाशय को घूरने लगीं. मुँह खुला
रह गया.
“कर्नल
महाशय...” परेशानी के कारण स्तुद्ज़िन्स्की शब्दों का उच्चारण भी सही ढंग से नहीं
कर पा रहा था, “मुझे कहने की इजाज़त दें. यह असंभव है. डिविजन को किसी हद तक युद्ध के लिए
तैयार रखने का एक ही तरीका है – उसे रात में यहाँ रोक कर रखा जाए.”
कर्नल महोदय ने
फ़ौरन, अतिशीघ्रता से नया तरीका ढूंढ लिया – शानदार तरीके से गुस्सा होने का.
उसकी गर्दन और गाल लाल हो गए और आंखें जलने लगीं.
“कैप्टेन,” उसने अप्रिय
आवाज़ से कहा, “ मैं सिफारिश करूंगा कि आपको एक वरिष्ठ अधिकारी की नहीं, बल्कि एक
व्याख्याता की तनख्वाह दी जाए, जो डिविजन के कमांडरों को लेक्चर देता है, क्योंकि आपके
रूप में मुझे एक अनुभवी वरिष्ठ ऑफिसर मिलेगा, न कि कोई
सिविलियन प्रोफ़ेसर. ठीक है, तो, मुझे लेक्चर नहीं सुनना है. कृपया मुझे सलाह न दें! सुनिए, याद रखिये. और
याद करके – आदेशों का पालन करें!”
और दोनों एक
दूसरे को घूरने लगे.
स्तुद्ज़िन्स्की
के चेहरे पर समोवार जैसा रंग छा गया, और उसके होंठ
थरथराने लगे. रुंधे गले से उसने किसी तरह कहा:
“यस,कर्नल
महोदय.”
“हाँ, आदेश का पालन
करना है. उन्हें घर जाने दें. अच्छी तरह नींद पूरी करने का हुक्म दें, और बिना
हथियारों के जाने दें, और कल सुबह सात बजे हाज़िर होने का हुक्म दें. जाने दें, और वो भी :
छोटे-छोटे गुटों में,प्लेटून के बक्सों के बिना, बिना शोल्डर
स्ट्रैप्स के, जिससे कि अपनी शान से देखने वालों का ध्यान आकर्षित न करें.”
स्तुद्ज़िन्स्की
की आंखों में समझ की किरण कौंध गई, और अपमान का
भाव बुझ गया.
“यस,कर्नल महोदय.”
अब कर्नल महोदय
में फ़ौरन परिवर्तन हो गया.
“अलेक्सान्द्र
ब्रनिस्लावाविच, मैं आपको हमेशा से एक अनुभवी और बहादुर ऑफिसर के रूप में जानता हूँ. और आप
भी मुझे अच्छी तरह जानते हैं? मन में अपमान की भावना तो नहीं है? ऐसे समय में
अपमान की भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है. मैंने अप्रियता से कहा – भूल जाइए, आखिर आप भी...”
स्तुद्ज़िन्स्की
के मुख पर गहरी लाली छा गई.
“सही कहा,कर्नल महोदय,मैं कुसूरवार
हूँ.”
“चलो, ठीक है. समय
बर्बाद नहीं करेंगे, ताकि उन्हें हतोत्साहित न करें. एक शब्द में, सब कुछ कल पर.
कल परिस्थिति ज़्यादा स्पष्ट हो जायेगी. वैसे, आपको पहले से
कहता हूँ: हथियारों पर बिल्कुल ध्यान न दें, ध्यान रखें –
घोड़े नहीं होंगे और गोले भी नहीं. तो, कल सुबह से ही
राइफलों से फायरिंग, गोलीबारी और गोलीबारी. मुझे ऐसा परिणाम दीजिये कि कल दोपहर तक
डिविजन, विजेता रेजिमेंट की तरह फायरिंग करे. और सभी अनुभवी कैडेट्स को –
ग्रेनेड्स. समझ गए?”
स्तुद्ज़िन्स्की
के मुख पर उदासी छा गई. वह बेहद तनाव से सुन रहा था.
“कर्नल महोदय,कुछ पूछने की
इजाज़त देंगे?”
“जानता हूँ कि
आप क्या पूछना चाहते हैं, न पूछिए. मैं खुद ही बताता हूँ – हालत बहुत बुरी है, इससे बदतर भी
होती है, मगर कभी-कभार. अब समझ में आया?”
“बिल्कुल सही.”
“तो,बात ऐसी है,” मालिशेव ने
बेहद नीची आवाज़ में कहा, “ये स्पष्ट है कि इस संदेह भरी रात में मैं इस पत्थर के बोरे में नहीं
रुकना चाहता और,ऊपर से,दो सौ लड़कों को भी दफनाना नहीं चाहता,जिनमें से एक सौ
बीस को तो गोली चलाना भी नहीं आता!”
स्तुद्ज़िन्स्की
खामोश रहा.
“तो,ये बात है. बाकी
शाम को. सब कर लेंगे. डिविजन के पास जाएँ.”
और वे हॉल में
आये.
“अटें-श- -न! “ऑ-फि-स-र्स!” स्तुद्ज़िन्स्की चिल्लाया.
“नमस्ते, तोपचियों!”
मालिशेव की पीठ के पीछे से, एक परेशान डाइरेक्टर की तरह, स्तुद्ज़िन्स्की ने हाथ हिलाया, और भूरी नुकीली दीवार इस तरह गरजी कि कांच थरथरा उठे…
“न...म...स्ते...म...हा...श...य... कर्नल...”
मालिशेव ने प्रसन्नता से कतारों को देखा, कैप से अपना हाथ हटाया और कहने
लगा:
“अद्वितीय...तोपचियों! लब्ज़ बर्बाद नहीं करूंगा, बोलना मुझे आता नहीं है, क्योंकि मैं मीटिंग्स में कभी नहीं बोला, इसलिए
संक्षेप में कहूंगा. मारेंगे हम उस कुत्ते के पिल्ले, पित्ल्यूरा को, और,इत्मीनान रखिये,हरा देंगे. आपके बीच व्लादीमीरव्त्सी,
कन्स्तान्तीनव्त्सी, अलेक्सेयेव्त्सी छात्र हैं, उनके बाजों ने उनसे एक
भी बार शर्मिन्दगी नहीं उठाई. और आपमें से अनेक इस विख्यात जिम्नेशियम के छात्र
हैं. इसकी पुरानी दीवारें आपकी ओर देख रही हैं. और मुझे उम्मीद है, कि आप हमें शर्मिन्दा न होने देंगे. मोर्टार डिविजन
के तोपचियों! हमारे महान शहर की उस डाकू की घेराबंदी से रक्षा करेंगे. अगर
हम अपनी छह इंची तोप से इस प्यारे प्रेसिडेंट को लुढ़का दें, तो उसे आसमान अपने कच्छे से ज़्यादा बड़ा नज़र नहीं
आयेगा, उसकी रूह को सात कफन!!!”
“हा...आ-आ...हां-आ...” कर्नल महाशय के उत्तेजनापूर्ण वक्तव्य से नुकीला
झुण्ड बोल पडा.
“कोशिश करो, तोपचियों!”
स्तुद्ज़िन्स्की फिर से, नेपथ्य से किसी डाइरेक्टर की तरह, घबराहट से हाथ हिला रहा था, और फिर से भयानक गर्जना ने फिर से धूल के जमे हुए
बादल उडाये:
“र्रर...र...र ...स्त्रा... र्रर...र...र..,”
****
दस मिनट बाद
असेम्बली हॉल में, बरदिनो के मैदान की भाँति करीने से रखे सैंकड़ों
हथियार नज़र आये. संगीनों से अटे धूल भरे लकड़ी के मैदान के दोनों सिरों पर दो संतरी
काले नज़र आ रहे थे. दूर कहीं, नीचे, आदेश के अनुसार शीघ्रता से बिखरते हुए नए
तोपचियों के कदमों की आहट सुनाई दे रही थी. कॉरीडोर्स में कोई धातु में जड़ी चीज़
बजी और खड़खड़ाई, और ऑफिसर्स की चीखें सुनाई दीं, - स्तुद्ज़िन्स्की खुद संतरियों को
व्यवस्थित कर रहा था. इसके बाद अप्रत्याशित रूप से कॉरीडोर्स में बिगुल की आवाज़
गूँज उठी. उसके टूटे हुए, ठहरे हुए सुरों में, जो पूरे जिम्नाशियम को व्याप्त
कर रहे थे, खतरे का कोई आभास नहीं था, और स्पष्ट रूप से उत्तेजना और बनावटीपन था. कॉरीडोर
में, लैंडिंग के ऊपर, जिसके दो तरफ से लॉबी को जाती हुई
सीढियां थीं, एक कैडेट खडा था और गाल फुला रहा था. सेंट जॉर्ज ऑर्डर
के धुंधले पड़ चुके रिबन्स ताँबे के पाईप से लटक रहे थे. कम्पास की सुईयों की तरह
टांगें फैलाए, मिश्लायेव्स्की बिगुल बजाने वाले के सामने खडा होकर
उसे सिखा रहा था.
“खींचो मत...अब ऐसे, ऐसे. उसे बाहर फूंको, बाहर फूंको. अम्मीजान काफी
दिनों तक सुस्त पड़ी रहीं. तो,हो जाए, ‘जनरल अलार्म'.
“ता-ता-ताम-ता-ताम”, चूहों के बीच पीड़ा और भय फैलाते हुए बिगुल वादक बजाने लगा.
अँधेरे-उजले हॉल में संध्याछायाएं तेज़ी से भीतर की रेंग रही थीं. राईफलों
के ढेर के सामने मालिशेव और तुर्बीन रह गए. मालिशेव ने कुछ त्यौरी चढ़ाकर डॉक्टर की तरफ़ देखा, मगर फ़ौरन ही चेहरे पर दोस्ताना
मुस्कान ओढ़ ली.
“तो, डॉक्टर, आपका क्या हाल है? मेडिकल सेक्शन में सब कुछ ठीक तो है?”
“सही फरमाया,कर्नल महाशय.”
“आप,डॉक्टर,घर जा सकते हैं. और पैरामेडिक्स को भी छुट्टी दे सकते हैं. और इस तरह:
पैरामेडिक्स कल सुबह सात बजे यहाँ आयें, और लोगों के साथ...और आप...(मालिशेव ने कुछ देर सोचा, त्यौरी चढ़ाई.) आपसे यहाँ दोपहर दो बजे पहुँचने की विनती करता हूँ. तब तक
आपकी छुट्टी है. (मालिशेव ने फिर कुछ देर सोचा.) और एक बात : फिलहाल शोल्डर
स्ट्रैप्स न लगाएं. मालिशेव नर्म पड़ गया. हमारी योजना में खासकर किसी का ध्यान
आकर्षित करना शामिल नहीं है. एक लब्ज़ में, कल दो बजे यहाँ
आने की विनती करता हूँ.”
“जी, कर्नल महाशय!”
तुर्बिन ने अपनी
जगह पर ही सैल्यूट किया. मालिशेव ने अपनी सिगरेट केस निकाल कर उसे सिगरेट पेश की.
जवाब में तुर्बीन ने माचिस की तीली जलाई. दो लाल सितारे जल उठे, और तभी फ़ौरन
समझ में आ गया कि काफी अन्धेरा हो गया है. मालिशेव ने परेशानी से ऊपर की ओर देखा,
जहाँ दो धुंधले आर्क लैम्प जल रहे थे, फिर वह बाहर कॉरीडोर में आया.
“लेफ्टिनेंट
मिश्लायेव्स्की. यहाँ आइये. सुनिए: आपको इस बिल्डिंग की समूची प्रकाश व्यवस्था की
ज़िम्मेदारी सौंपता हूँ. कम से कम समय में यहाँ प्रकाश की व्यवस्था करने की कोशिश
कीजिये. इस काम में इतनी योग्यता प्राप्त करें कि किसी भी पल, आप उसे पूरी
बिल्डिंग में न केवल जला सकें, बल्कि बुझा भी सकें. और प्रकाश व्यवस्था की पूरी ज़िम्मेदारी आपकी है.”
मिश्लायेव्स्की
ने सैल्यूट किया, झटके से मुड़ा. बिगुलवादक चीखा और उसने बिगुल बजाना रोक दिया. मिश्लायेव्स्की
एड़ें खटखटाते हुए – टॉप-टॉप-टॉप,- प्रमुख सीढ़ी से इतनी तेजी से फिसला मानो स्की पर
फिसल रहा हो. एक मिनट के पश्चात कहीं नीचे उसकी मुक्के मारने की ज़ोरदार आवाज़ और
कमांड्स की चीखें सुनाई दीं. और उनके जवाब में, प्रमुख प्रवेश
द्वार में, जहाँ चौड़ा तिकोना गलियारा जाता था, अलेक्सान्द्र
के पोर्ट्रेट को धुंधली चमक देकर , रोशनी भभक उठी. ख़ुशी के मारे मालिशेव का मुँह
खुल गया और उसने तुर्बीन से कहा:
“ओह,नहीं, शैतान ले
जाए...ये वाकई में ऑफिसर है. देखा?”
और नीचे सीढ़ियों
पर एक आकृति दिखाई दी जो धीरे धीरे सीढ़ियों पर ऊपर की ओर जा रही थी. जब वह पहले
मोड़ पर मुडी,तो रेलिंग पर झुके हुए मालिशेव और तुर्बीन ने उसे देखा. आकृति अपनी बीमार,कमजोर टांगों पर
चल रही थी, और अपना सफ़ेद सिर हिला रही थी. आकृति पर चांदी के बटन और हरे रंग के
बटनहोल वाला चौड़ा दो पल्लों वाला जैकेट था. उसके थरथराते हाथों में भारी-भरकम चाभी
थी. मिश्लायेव्स्की पीछे से चढ़ रहा था और बीच-बीच में चिल्ला रहा था:
“जोश से,जोश से,बुढ़ऊ! ये क्या
धागे पर लटकी जूँ की तरह क्या रेंग रहे हो?”
“जनाब...जनाब...”
बूढा घिसटते हुए हौले से बुदबुदाया. अँधेरे से करास लैंडिंग पर अवतरित हुआ, उसके पीछे दूसरा, ऊंचा ऑफिसर, फिर दो कैडेट्स
और,अंत में नुकीले सिरे वाली मशीनगन. आकृति भय से लड़खड़ाई, झुकी, झुकती गई और
कमर तक मशीनगन के सामने झुक गई.
“युवर ऑनर,” वह बुदबुदाई.
ऊपर आकृति ने
थरथराते हाथों से, आधे अँधेरे में टटोलते हुए दीवार पर लगा हुआ एक लंबा बॉक्स खोला, और उसके भीतर
से एक सफ़ेद धब्बा झांका. बूढ़े ने कहीं हाथ डाला, कुछ हिलाया, और पल भर में
लॉबी का ऊपरी हिस्सा, असेम्बली हॉल का प्रवेश और कॉरीडोर रोशनी में नहा गया.
अन्धेरा मुड़ कर
उसके आख़िरी छोरों तक भाग गया. मिश्लायेव्स्की ने चाभी फ़ौरन अपने हाथ में ले ली, और, बॉक्स में हाथ
डालकर, खटखट करते हुए काले हैंडल्स से खेलने लगा. रोशनी, जो अब तक इतनी
चकाचौंध कर रही थी,कि गुलाबी रंग में बदल रही थी, कभी जलने लगती, कभी बुझ जाती.
हॉल में रोशनी के गोले चमक जाते और बुझ जाते. अप्रत्याशित रूप से कॉरीडोर के अंत
में दो गोले जल उठे, और अन्धेरा, कलाबाजियां खाते हुए पूरी तरह भाग गया.
“कैसा है? ऐ!”
मिश्लायेव्स्की चिल्लाया.
“बुझ गई,” नीचे, लॉबी के गहरे
हिस्से से आवाजें आईं.
“है! जल रही
है!” नीचे से चिल्लाए.
काफ़ी देर खेल
चुकने के बाद, मिश्लायेव्स्की ने आखिरकार हॉल, कॉरीडोर, अलेक्सान्द्र
के ऊपर वाले रिफ्लेक्टर में उजाला कर दिया, बॉक्स को बंद कर दिया और चाभी जेब में डाल
दी.
“जा, बुढ़ऊ, जाकर सो
जा,” उसने शांति से कहा, “सब कुछ बिल्कुल ठीक है.”
बूढ़े ने अपराध
भाव से आधी अंधी आंखें झपकाते हुए पूछा:
“और चाभी? चाभी तो...युवर
हाईनेस...कैसे? क्या,आपके पास रहेगी?”
“चाभी मेरे पास
रहेगी. मेरे ही पास.”
बूढा कुछ और
थरथराया और धीरे धीरे जाने लगा.
“कैडेट!”
एक मोटा,लाल चहरे वाला
कैडेट अपना स्टाक खड़खड़ाते हुए अटेंशन की मुद्रा में निश्चल खडा हो गया.
“बॉक्स के पास
बटालियन कमांडर को, सीनियर ओफिसर को, और मुझे ही बेरोकटोक जाने देना. किसी और को नहीं. ज़रुरत पड़ने पर, तीनों
में से किसी एक के हुक्म से,बॉक्स को खोल सकते हो,मगर सावधानी से, ताकि किसी भी हालत में स्विचबोर्ड को नुक्सान न पहुंचे.”
“जी, लेफ्टिनेंट
महाशय.”
मिश्लायेव्स्की ने
तुर्बीन को पकड़ा और फुसफुसा कर कहा:
“ “मैक्सिम-तो...देखा?”
“माय गॉड...देखा, देखा,” तुर्बीन फुसफुसाया.
बटालियन कमांडर असेम्बली हॉल के प्रवेश द्वार के पास खडा था,और उसकी तलवार की चांदी की नक्काशी पर हज़ारों रोशनियाँ झिलमिला रही थीं. उसने
इशारे से मिश्लायेव्स्की को अपने पास बुलाया और कहा,
“तो,लेफ्टिनेंट, मुझे खुशी है कि आप हमारी बटालियन में आ
गए. शाबाश.”
“कोशिश करके मुझे खुशी हुई, कर्नल महाशय.”
“आप यहाँ तापन (गरमाने का – अनु.) का इंतज़ाम भी कर
दीजिये, ताकि कैडेट्स की शिफ्ट्स को गरमाहट मिले, और बाकी सारे इंतज़ाम मैं खुद कर
लूँगा. आपको खिलाऊंगा और वोद्का भी लाऊंगा, थोड़ी सी मात्रा
में, मगर जो गरमाने के लिए पर्याप्त होगी.”
मिश्लायेव्स्की
ने कर्नल महाशय की ओर बड़ी प्यारी मुस्कान बिखेरी और प्रभावशाली ढंग से अपना गला
साफ़ किया:
“एक्...क्म्...”
तुर्बिन ने आगे
कुछ नहीं सुना. रेलिंग के ऊपर झुककर, उसने सफ़ेद सिर
वाली आकृति से नज़र नहीं हटाई, जब तक कि वह नीचे लुप्त नहीं हो गई. एक बेवजह उदासी
ने तुर्बिन को दबोच लिया. वहीं,ठंडी रेलिंग के पास अत्यंत स्पष्ट रूप से उसके सामने याद कौंध गई.
...जिम्नेशियम
के सभी उम्र के विद्यार्थियों का झुण्ड बड़े जोश में इसी कॉरीडोर में टूटा पड़ रहा
था. हट्टाकट्टा मक्सिम, विद्यार्थियों का सीनियर केयरटेकर, दो काली आकृतियों को खींचते हुए तेज़ी
से खींचते हुए सबके सामने लाया.
“ठीक है, ठीक है, ठीक है, ठीक है,” वह बड़बड़ा रहा
था, “ट्रस्टी महाशय के आगमन के शुभ अवसर पर, इंस्पेक्टर महोदय तुर्बीन महाशय
और मिश्लायेव्स्की महाशय को देखकर खुश हो जायेंगे. उनके लिए यह खुशी की बात होगी. गज़ब
की खुशी वाली!”
सोचना पडेगा कि मक्सिम
के अंतिम शब्दों में अत्यंत कटु व्यंग्य था. सिर्फ विकृत विचारों वाले व्यक्ति को
ही तुर्बीन महाशय और मिश्लायेव्स्की महाशय का अवतार खुशी प्रदान कर सकता था, और वह भी ट्रस्टी
महाशय के आगमन के प्रसन्न अवसर पर.
मिश्लायेव्स्की
महाशय का, जिसे मक्सिम ने बाएं हाथ से कसकर पकड़ रखा था, ऊपरी होंठ
आरपार कट गया था, और बाईं आस्तीन धागे से लटक रही थी. तुर्बीन महाशय का,जिन्हें वह
दायें हाथ से घसीट रहा था, बेल्ट ही गायब हो गया था, और न सिर्फ कमीज़ के, बल्कि पतलून की सामने वाली काट से सभी बटन उड़ गए थे, जिससे तुर्बीन
महाशय का शरीर और अंतर्वस्त्र भी बेहूदे ढंग से सबके सामने दिखाई दे रहे थे.
“हमें छोड़ दो,प्यारे मक्सिम, डियर,” खून से लथपथ
चेहरों पर बुझती हुई आंखों से बारी-बारी से मक्सिम की ओर देखते हुए तुर्बीन और
मिश्लायेव्स्की उसे मना रहे थे.
“हुर्रे! खींच
उसे, माक्स दि ग्रेट!” पीछे से उत्तेजित जिम्नेशियम के विद्यार्थी चिल्लाए.
“ऐसा कोई क़ानून नहीं है, कि दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों के चेहरे बिना सज़ा के बिगाड़े जाएँ! ”
‘आह, माय गॉड, माय गॉड! उस
समय सूरज था, शोर और खड़खड़ाहट थी. और मक्सिम भी तब वैसा नहीं था, जैसा अब है, - सफ़ेद,दुखी और भूखा. मक्सिम
के सिर पर काला जूतों का ब्रश था, जिसे सिर्फ कहीं कहीं सफ़ेद धागे छू रहे थे, मक्सिम के हाथ फौलाद के चिमटों
जैसे थे, और गर्दन में गाड़ी के पहिये जितना बड़ा मैडल था... आह, पहिया, पहिया. तू बस “B” गाँव से जा
रहा था,N चक्कर लगाते हुए, और पहुँचा पत्थर के वीराने में. माय गॉड. कैसी ठण्ड है. अब
सुरक्षा करनी चाहिए...मगर किसकी? वीराने की? कदमों की आहट की?...क्या वाकई
में तुम, तुम, अलेक्सान्द्र, बरदिनो रेजिमेंट से इस मरते हुए घर को बचा सकोगे? जागो, उन्हें कैनवास
से बाहर लाओ! वे निश्चित ही पित्ल्यूरा को हरा देते.’
तुर्बीन के पैर
अपने आप उसे नीचे की ओर ले चले.
“मक्सिम!” वह
चीखना चाहता था, फिर वह बार-बार रुकने लगा और अंत में पूरी तरह रुक गया. उसने नीचे मक्सिम
की कल्पना की,तहखाने वाले छोटे से क्वार्टर में,जहाँ चौकीदार
रहते थे. शायद, भट्टी के पास कंपकंपा रहा है, सब कुछ भूल गया
है और रोता रहेगा. और यहाँ और वहाँ दुःख तो गले-गले तक है. इस सब पर थूक देना
चाहिए. बहुत हो चुकी भावुकता. पूरी ज़िंदगी भावुक बने रहे. बस हो गया.
***
मगर फिर भी,जब तुर्बीन ने चिकित्सा सहायकों को
छुट्टी दे दी, तो उसने अपने आप को खाली, धुंधली कक्षा में पाया. कोयले के
धब्बों जैसे ब्लैकबोर्ड दीवारों से देख रहे थे. डेस्कें कतारों में थीं. वह खुद को
रोक न पाया, ढक्कन हटाया और बैठ गया. मुश्किल हो
रही थी, कठिन और असुविधाजनक था. काला
ब्लैकबोर्ड कितना नज़दीक था. हाँ, कसम खाता हूँ, कसम से कहता हूँ, वो ही कक्षा है, या बगलवाली, क्योंकि यहाँ, इस खिड़की से, शहर का वही नज़ारा है. ये रहा मृत विश्वविद्यालय का विशाल
समुदाय. एवेन्यू दर्शाते हुए सफ़ेद तीर, घरों के डिब्बे, अँधेरे की खाईयां, दीवारें, आसमानी ऊंचाइयां...
और खिड़कियों में
वास्तविक ऑपेरा “क्रिसमस की रात”, बर्फ और रोशनियाँ, थरथराती हुई, टिमटिमाती हुई... “काश, मैं जान पाता कि स्वितोशिनो में क्यों
गोलियां चल रही हैं?” बिना नुक्सान पहुंचाए और कहीं दूर, गोले, जैसे रूई पर
गिर रहे हैं, बू-ऊ, बू-ऊ...
“बस हो गया.”
तुर्बीन ने डेस्क
का ढक्कन गिरा दिया, बाहर कॉरीडोर में आया और संतरियों की
बगल से होते हुए लॉबी से होकर रास्ते पर आ गया. प्रमुख प्रवेश द्वार पर एक मशीन गन
थी. रास्ते पर आने-जाने वाले बहुत कम थे, और तेज़ बर्फ गिर रही थी.
***
कर्नल महाशय की
रात बहुत व्यस्त रही. उन्होंने जिम्नेशियम और उससे दो कदम दूर स्थित मैडम अंजू के
बीच कई चक्कर लगाए. आधी रात के करीब सारी व्यवस्था अच्छी तरह और पूरी रफ़्तार से काम करने लगी. जिम्नेशियम में, हौले-हौले सनसनाते
हुए गोलों वाले पोटाश लैम्प गुलाबी रोशनी बिखेर रहे थे. हॉल काफी गरम हो गया, क्योंकि पूरी
शाम और पूरी रात हॉल के लाइब्रेरी वाले हिस्सों में पुरानी भट्टियों में आग जलती
रही. मिश्लायेव्स्की के हुक्म से कैडेट्स ने साहित्यिक पत्रिकाओं “नोट्स फ्रॉम द
फादरलैंड” और “लाइब्रेरी फॉर रीडिंग” के 1863
के अंकों से सफेद भट्टियां जलाईं, और फिर पूरी रात लगातार, कुल्हाड़ियों के
शोर में पुराने डेस्कों से उन्हें गरमाते रहे. सुद्ज़िन्स्की
और मिश्लायेव्स्की अल्कोहोल के दो-दो ग्लास लेकर (कर्नल महाशय ने अपना वादा पूरा
किया था, ठीक - आधी
बाल्टी), दो दो घंटे बारी-बारी से कैडेट्स की बगल में सोते रहे, ओवरकोट में, भट्टी के पास, और लाल-लाल
लपटें और परछाइयां उनके चेहरों पर खेलती रहीं. फिर वे उठते रहे, पूरी रात एक संतरी से दूसरे संतरी के
पास जाते रहे, पोस्ट्स का निरीक्षण करते रहे. और
करास, मशीनगनर-कैडेट्स के साथ गार्डन के
निर्गम द्वारों पर पहरा देता रहा. और भेड़ की खाल के ओवरकोटों में, हर घंटे ड्यूटी
बदलते, मोटी नाली वाली तोपों के पास चार
कैडेट्स तैनात थे.
मैडम अंजू के
यहाँ भट्टी पूरे जोश से जल रही थी, पाइपों में सनसनाहट
हो रही थी और वे गरज रहे थे, एक कैडेट दरवाज़े के पास ड्यूटी पर खडा था, प्रवेश
द्वार के पास खडी मोटरसाइकल से बिना आंख नहीं हटाए, पाँच कैडेट्स दुकान
में अपने ओवरकोट बिछाकर मुर्दों की तरह सो रहे थे. आखिर रात के करीब एक बजे कर्नल
महाशय मैडम अंजू के यहाँ आराम करने आये,
वह उबासियाँ ले रहे थे, मगर फोन पर
किसी से बात करते हुए, अभी तक लेटे
नहीं थे. और रात के दो बजे, साईरन बजाते
हुए मोटरसाइकल आई, और उसमें से भूरे ओवरकोट में एक फ़ौजी
उतरा.
“आने दो. ये
मेरे पास आया है.”
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