Tuesday, 25 July 2023

श्वेत गार्ड्स - 03

 

3


रात की उस घड़ी में गृह स्वामी, इंजीनियर वसीली इवानविच लीसविच के नीचे वाले फ़्लैट में पूरी शान्ति थी, सिर्फ छोटे से डाइनिंग रूम में चूहा उसे बार-बार भंग कर रहा था. चूहा पूरे मनोयोग से और व्यस्तता से, इंजीनियर की बीबी, वांदा मिखाइलव्ना की कंजूसी को शाप देते हुए, अलमारी में रखे हुए पुराने ‘चीज़’ की पपड़ी कुतर रहा था. शापित हडीली और ईर्ष्यालु वान्दा ठन्डे और नम क्वार्टर के छोटे से शयन कक्ष में गहरी नींद सो रही थी. खुद इंजीनियर इस समय अपने ठसाठस भरे हुए, परदों से ढंके हुए, किताबों से खचाखच भरे हुए, और इस कारण बेहद आरामदेह छोटे से अध्ययन कक्ष में जाग रहा था. खड़ा लैम्प, जो हरी फूलदार छतरी से ढँकी इजिप्ट की राजकुमारी को प्रदर्शित कर रहा था, पूरे कमरे को नज़ाकत और रहस्यमय ढंग से आलोकित कर रहा था, और खुद इंजीनियर भी चमड़े की गहरी कुर्सी में रहस्यमय नज़र आ रहा था. अस्थिर समय का रहस्य और दुहारापन सबसे पहले इस बात से प्रदर्शित हो रहा था कि कुर्सी में बैठा हुआ आदमी बिलकुल भी वसीली इवानविच लीसविच नहीं, बल्कि वसिलीसा था...मतलब, वह खुद तो अपने आप को – लीसविच कहता था, बहुत सारे लोग, जिनसे वह मिलता था, उसे वसीली इवानविच कहते थे, मगर ख़ास तौर से सामने से. पीठ पीछे तो कोई भी इंजीनियर को वसिलीसा के अलावा किसी और नाम से नहीं पुकारता था. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि गृह स्वामी ने सन् 1918 की जनवरी से, जब शहर में खुल्लमखुल्ला अजीब घटनाएं होने लगीं, अपनी स्पष्ट लिखाई बदल दी, और विशिष्ट ‘वी. लीसविच के स्थान पर किसी भावी जवाबदेही के डर से फॉर्म्स में, प्रमाणपत्रों में, आदेशों में, सर्टिफिकेट्स में, और कार्ड्स पर “वास. लीस.” लिखने लगा.

निकोल्का को, सन् 1918 की जनवरी में, वसीली इवानविच के हाथों से शकर का कार्ड प्राप्त होने के बाद क्रेश्चातिक पर शकर के बदले पीठ पर पत्थर की भयानक मार मिली, और वह दो दिनों तक खून थूकता रहा. ( गोला शकर प्राप्त करने वालों की कतार पर फूटा था, जिसमें निडर लोग खड़े थे.) दीवारों का सहारा लेकर, हरा पड़ गया, निकोल्का घर पहुंचकर भी मुस्कुराया, जिससे एलेना घबरा न जाए, पूरा तसला भर खून थूकता रहा, और एलेना की चीख:

“माय गॉड! ये क्या हुआ?” पर बोला:

“ये वसिलीसा की शक्कर, शैतान उसे उठा ले!” और इसके बाद सफ़ेद पड़कर किनारे पर लुढ़क गया. निकोल्का दो दिनों बाद उठा, और वसील्री इवानाविच का अस्तित्व समाप्त हो गया. आरम्भ में तो तेरह नंबर के निवासी और बाद में पूरा शहर इंजीनियर को वसिलीसा के नाम से बुलाने लगा, और सिर्फ यह महिला-नाम धारक ही अपना परिचय देता : प्रेसिडेंट ऑफ़ दि हाउसिंग कमिटी लीसविच. 

यह यकीन कर लेने के बाद कि सड़क आखिरकार पूरी तरह शांत हो गई है, इक्का-दुक्का स्लेजों की फ़िसलन भी सुनाई नहीं दे रही थी, पत्नी के शयनकक्ष से आती सीटी को ध्यान से सुनने के बाद, वसिलीसा प्रवेश कक्ष में गया, ध्यान से ताले, बोल्ट, ज़ंजीर, और कुंदे को हाथ लगाकर इत्मीनान कर लिया और अध्ययन कक्ष में लौट आया. अपनी भारी भरकम मेज़ की दराज़ से उसने चार चमचमाती सेफ्टी पिनें निकालीं, इसके बाद वह अँधेरे में दबे पाँव गया और एक चादर और कम्बल लेकर लौटा. एक बार फिर आहट ली और होठों पर उंगली भी रखी. जैकेट उतारी, आस्तीनें ऊपर चढ़ाईं, शेल्फ से गोंद का डिब्बा, वॉल पेपर का रोल, और कैंची ली. फिर खिड़की से चिपककर हथेली की ओट  से सड़क पर देखने लगा. बाईं खिड़की पर आधी ऊंचाई तक चादर टांग दी, और दाईं खिड़की पर पिनों की सहायता से कम्बल टांग दिया. सावधानी से देखा कि कोई दरार तो नहीं रह गई. कुर्सी ली, उस पर चढ़ गया और शेल्फ पर रखी किताबों की ऊपरी कतार के ऊपर हाथों से कुछ टटोलने लगा, चाकू से वॉल पेपर पर खड़ा चीरा लगा दिया, और उसके बाद समकोण बनाते हुए किनारे तक चीर दिया, चाकू को इस कटाव के नीचे घुसाया और एक सही, छोटा-सा, दो ईंट गहरा गुप्त आला खोला, जिसे उसने ही पिछली रात को बनाया था. जस्ते की पतली चादर के दरवाज़े को हटाया, नीचे उतारा, डर से खिड़कियों की तरफ देखा, चादर को छुआ. निचले दराज़ की गहराई से, जिसे चाभी को दो बार खनखनाते हुए घुमाकर खोला गया था, अखबारी कागज़ में  बंधा हुआ सीलबंद पैकेट निकाला. वसिलीसा ने उसे गुप्त आले में रखकर छोटा सा दरवाज़ा बंद कर दिया. मेज़ के लाल कपड़े पर वह बड़ी देर तक वॉलपेपर के टुकड़े काट-काट कर जमाता रहा, जब तक कि वे डिजाइन के अनुसार व्यवस्थित न हो गए. गोंद से चिपकाए हुए ये टुकड़े कटे हुए वॉलपेपर पर बड़ी खूबसूरती से बैठ गए: आधे गुलदस्ते से आधा गुलदस्ता, वर्ग से वर्ग भली प्रकार चिपक गए. जब इंजीनियर कुर्सी से नीचे उतरा, तो उसे यकीन हो गया था, कि दीवार पर गुप्त आले का कोई निशान नहीं है. वसिलीसा ने उत्साह से अपनी हथेलियाँ रगड़ी, फ़ौरन छोटी-सी भट्टी में वॉलपेपर के बचे-खुचे टुकड़े जला दिए, राख को हिला दिया और गोंद छुपा दिया.

निर्जन काली सड़क पर एक फटेहाल, भूरी, भेड़िये जैसी, आकृति बिना आवाज़ किये अकासिया की डाल से उतरी, जहाँ वह आधे घंटे से, बर्फबारी को बर्दाश्त करते हुए, मगर ललचाई आंखों से चादर की ऊपरी किनार पर, विश्वासघाती दरार से इंजीनियर के काम को देख रही थी, जिसने हरे रंग की खिड़की पर चादर लगाकर मुसीबत को आकर्षित किया था.  स्प्रिंग की तरह बर्फ के टीले पर कूद कर, आकृति रास्ते पर ऊपर की और चली गई, और आगे भेड़िये जैसी चाल से गलियों में गुम हो गई, और बर्फीला तूफ़ान, अन्धेरा, बर्फ के टीले उसे खा गए और उसके सारे निशान मिटा दिए.

रात का समय है. वसिलीसा आराम कुर्सी में बैठा है. हरे रंग की छाया में बिल्कुल तरास बुल्बा लग रहा है. घनी, लटकती हुई मूंछें – ये कहाँ से वसिलीसा हुई! – ये तो मर्द है. दराजों में हौले से आवाज़ हुई, और वसिलीसा के सामने लाल कपडे पे प्रकट हुई लम्बे कागजों की गड्डियां – हरे निशानों वाले ताश के ख़ास पत्ते, जिन पर यूक्रेनी भाषा में लिखा था:

“ शासकीय बैंक का सर्टिफिकेट

मूल्य - 50 रुबल्स

क्रेडिट कार्ड के समकक्ष.”  

सर्टिफिकेट पर एक ओर – लटकती हुई मूंछों वाला एक किसान, हाथ में फ़ावड़ा लिए, और गाँव की औरत हंसिया लिए. पिछली तरफ, अंडाकार फ्रेम में, बड़े आकार में, इसी किसान और औरत के लाल चेहरे थे. यहाँ भी मूंछें नीचे ही थीं, युक्रेनी स्टाइल में. और सबके ऊपर एक चेतावनी :

“जालसाज़ी के लिए जेल की सज़ा होगी”.

सत्यापित हस्ताखर

डाइरेक्टर राजकीय कोषागार  लेबिद-यूर्चिक”.

ताँबे का घुड़सवार, अलेक्सांद्र द्वितीय छितरे हुए लोहे के कल्लों में, घोड़े पर जाते हुए, चिड़चिड़ाहट से लेबिद-यूर्चिक की रचना पर और प्यार से राजकुमारी वाले लैम्प को देख रहा था. दीवार से स्तानिस्लाव का मैडल लगाए ऑइलपेंट से बना कर्मचारी – वसिलीसा का पूर्वज, भय से नोटों की ओर देख रहा था.     

हरी रोशनी में गंचारोव और दस्तयेव्स्की की किताबों के पुट्ठे कोमलता से चमक रहे थे और ब्रॉकहोस-एफ्रोन के विश्वकोश के सुनहरे-हरे ग्रंथ परेड कर रहे अश्वारोहियों की भाँति मज़बूती से खड़े थे. आरामदेह.

पाँच प्रतिशत वाले स्टेट-बॉन्ड वॉलपेपर के पीछे गुप्त आले में छिपाए गए थे। वहीं पर पंद्रह ‘कैथेरीन’, नौ ‘पीटर’, दस ‘निकलाय प्रथम’, तीन हीरे की अंगूठियाँ, ब्रोच, आन्ना और स्तानिस्लाव मेडल्स भी थे. 

दूसरे गुप्त आले में – बीस ‘कैथरीन दस ‘पीटर , पच्चीस चांदी के चम्मच, चेन वाली सोने की घड़ी, तीन सिगरेट केस (“प्रिय सहकर्मी को”, हालांकि वसिलीसा सिगरेट नहीं पीता था), दस-दस रूबल वाले सोने के पचास सिक्के, नमकदानियाँ, छः लोगों के लिए चांदी की कटलरी वाला केस, और चांदी की छन्नी, (बड़ा गुप्त आला लकड़ी की सराय में था, दरवाज़े से सीधे दो कदम, एक कदम बाएं, दीवार की शहतीर पर बने चाक के निशान से एक कदम. सब कुछ ऐनम बिस्कुटों के डिब्बों में,  मोमजामे में, तारकोल के धागों की सिलाई, दो गज की गहराई में.)

तीसरा गुप्त आला – अटारी पर: पाईप से दो चौखाने उत्तर-पूर्व को मिट्टी की शहतीर के नीचे: शक्कर की चिमटियां, दस-दस रूबल्स के एक सौ तिरासी सोने के सिक्के, पच्चीस हज़ार के सिक्यूरिटीज़ वाले बॉन्ड पेपर्स.

लेबिद-यूर्चिक – रोज़मर्रा के खर्चों के लिए था.

वसिलीसा ने चारों तरफ देखा, जैसा वह पैसे गिनते समय हमेशा करता था, और उंगली में थूक लगाकर यूक्रेनी नोटों को गिनने लगा. उसके चेहरे पर दिव्य प्रेरणा थी. फिर वह अचानक पीला पड़ गया.

“जाली, जाली,” सिर हिलाते हुए वह कड़वाहट से बुदबुदाया, “खतरनाक बात है. आ?

वसिलीसा की नीली आंखें बेहद उदास हो गईं. दस-दस की तीसरी गड्डी में – एक बार. चौथी गड्डी में – दो, छठी में – दो , नौवीं में – लगातार तीन नोट बेशक ऐसे थे जिनके लिए लेबिद-यूर्चिक जेल की धमकी दे रहा है. कुल एक सौ तेरह नोट हैं, और, गौर फरमाइए, आठ पर जालसाजी के पक्के निशान  हैं. गाँव वाला कुछ उदास सा है , जबकि उसे प्रसन्न होना चाहिए, और गड्डी पर रहस्यमय, उलटा अल्पविराम और दो बिंदु (कोलन) नहीं हैं, और कागज़ भी लेबिद वाले कागज़ से बेहतर है. वसिलीसा ने रोशनी में देखा, और पिछली तरफ से लेबिद वाकई में जाली रूप से चमक रहा था.

“कल शाम को गाडीवान को एक,” वसिलीसा ने अपने आप से कहा, “जाना तो पडेगा ही, और, बेशक, बाज़ार में.”

उसने सावधानी से जाली नोटों को, जिन्हें गाड़ीवान के लिए और बाज़ार में इस्तेमाल करने वाला था, एक ओर रखा और गड्डी को खनखनाते ताले के पीछे रख दिया. थरथरा गया. सिर के ऊपर छत पर भागते हुए पैरों की आवाज़ आ रही थी, और मृत खामोशी को हंसी और अस्पष्ट आवाजों ने भंग कर दिया. वसिलीसा ने अलेक्सांद्र द्वितीय से कहा:

“गौर फरमाइए : कभी भी शान्ति नहीं है...”

ऊपर सब कुछ शांत हो गया. वसिलीसा ने उबासी ली, खुरदुरी मूंछों पर हाथ फेरा, खिड़की से कम्बल और चादर हटाई, ड्राइंग रूम में, जहाँ फोनोग्राम का भोंपू टिमटिमा रहा था, छोटा सा लैम्प जलाया. दस मिनट बाद क्वार्टर में पूरी खामोशी छा गई. वसिलीसा बीबी के पास नम शयन कक्ष में सो गया. चूहों की, फफूंद की, बोरियत भरी नींद की बू आ रही थी. और लो, सपने में लेबिद- यूर्चिक घोड़े पर सवार होकर आया और किन्हीं तुशिनो के डाकुओं ने ‘मास्टर-की से गुप्त कोष को खोला. पान का गुलाम कुर्सी पर चढ़ गया, उसने वसिलीसा की मूंछों पर थूका और बिल्कुल नज़दीक से गोली चला दी. ठन्डे पसीने में चीख मारते हुए वसिलीसा उछला और पहली आवाज़ उसने सुनी – चूहे की, जो डाइनिंग रूम में अपने खानदान के साथ, ब्रेड के टुकड़ों की थैली पर टूट पडा था, और उसके बाद असाधारण नज़ाकत वाली गिटार की आवाज़ जो छत से और कालीनों से होकर आ रही थी, हंसी...

छत के पीछे असाधारण रूप से सशक्त और भावपूर्ण आवाज़ गा रही थी और गिटार मार्च की धुन बजा रही थी.

“एक ही उपाय है – उनसे क्वार्टर खाली करवाया जाए,” वसिलीसा ने अपने आप को चादरों से लपेट लिया, “ये बकवास है, न दिन में चैन है, न रात में.”

 

जा रहे हैं और गा रहे हैं

कैडेट्स गार्ड्स स्कूल के

 

“हाँलाकि, वैसे, अगर कोई मुसीबत आती है...बात सही है , वक़्त तो - खतरनाक चल रहा है.

किसे रखोगे, पता नहीं, मगर ये लोग फ़ौजी अफ़सर हैं, कुछ हो जाए तो – सुरक्षा तो है...”

“भाग!” वसिलीसा गुस्साए चूहे पर चीखा.

गिटार...गिटार...गिटार...

 

***

 

ड्राइंग रूम के झुम्बर में चार रोशनियाँ हैं. नीले धुएँ के बैनर्स. दूधिया रंग के परदों ने शीशा लगे बरामदे को ढांक दिया है. घड़ी की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है. मेज़पोश की सफेदी पर ग्रीन हाउस के ताज़े गुलाबों के गुलदस्ते, वोद्का की तीन बोतलें और सफ़ेद वाईन की तंग जर्मन बोतलें. ऊंचे, नुकीले जाम, फूलदानों की चमचमाती तहों में सेब, नीबू के टुकडे, ब्रेड के टुकडे-टुकडे, चाय...

कुर्सी पर हास्य-समाचारपत्र “शैतान की गुड़िया” का गुड़ी-मुड़ी किया हुआ कागज़ पडा था. दिमागों में तूफ़ान डोल रहा है, कभी एक तरफ बेवजह खुशी वाले सुनहरे द्वीप की ओर ले जाता है, कभी परेशानियों की गंदी खाई में फेंक देता है. असंबद्ध शब्द तूफ़ान की ओर ताकते हैं:

नंगे बदन से साही पर नहीं बैठते!

“ये है खुशमिजाज़ कमीना....और गोलाबारी तो रुक गई है. म-ज़ा-क, शैतान मुझे ले जाए! वोद्का, वोदका और धुंध.  आ-रा-ता-ताम ! गिटार.

 

तरबूज को नहीं भूनते साबुन पर,

जीत गए अमेरिकन्स. 

मिश्लायेव्स्की, कहीं धुएँ के परदे के पीछे हंस पडा. वह नशे में है.

 

ब्रैटमैन के व्यंग्य तीखे हैं,

मगर सेनेगाल की कम्पनियां कहाँ हैं?

“कहाँ हैं? वाक़ई में? हैं कहाँ?” धुंधले मिश्लायेव्स्की ने पूछा.

जनती हैं भेड़ें टेंट के नीचे,

होगा रद्ज्यान्का प्रेसिडेंट.   

“मगर, होशियार हैं, कमीने, कुछ नहीं कर सकते!”

एलेना, जिसे तालबेर्ग के जाने के बाद संभलने का मौक़ा ही नहीं दिया गया...सफ़ेद वाईन से दर्द पूरी तरह ख़त्म नहीं होता, बल्कि कुंद हो जाता है, मेज़ के संकरे कोने पर एलेना मेज़बान वाली जगह पर बैठी थी. विपरीत दिशा में – मिश्लायेव्स्की, बिना हजामत के, सफ़ेद, ड्रेसिंग गाऊन में, भयानक थकान तथा वोद्का से चेहरे पर धब्बे उभर आये थे. आंखों में लाल-लाल छल्ले – बेहद ठण्ड से, महसूस किये गए डर से, वोद्का से, गुस्से से. मेज़ के लम्बे किनारों पर , एक तरफ अलेक्सेइ और निकोल्का, और दूसरी तरफ – लिअनिद यूरेविच शिर्वीन्स्की, जो उलान रेजिमेंट के भूतपूर्व लाइफ-गार्ड्स का लेफ्टिनेंट, और वर्तमान में राजकुमार बेलारूकव के स्टाफ-हेडक्वार्टर्स में एड्जुटेंट था, और उसकी बागल में सेकण्ड लेफ्टिनेंट स्तिपानव, फ़्योदर निकलायेविच, तोपची, जिसे अलेक्सांद्र जिम्नेज़ियम में – ‘करास’ ‘कार्प के नाम से पुकारते थे.

छोटा सा, गठीले बदन का और वाक़ई में ‘करास से काफी मिलता-जुलता, तालबेर्ग के जाने के क़रीब बीस मिनट बाद, करास शिर्वीन्स्की से तुर्बीनों के प्रवेश द्वार पर टकरा गया था. दोनों के पास बोतलें थीं. शिर्वीन्स्की के पास था पैकेट – सफ़ेद वाईन की चार बोतलें, करास के पास – वोद्का की दो बोतलें.

शिर्वीर्न्स्की के पास इसके अलावा एक बहुत बड़ा गुलदस्ता भी था, कागज़ की तिहरी पर्त में लिपटा हुआ – साफ़ समझ में आ रहा था कि गुलाब हैं एलेना वसील्येव्ना के लिए. करास ने वहीं, प्रवेश द्वार के पास ही ख़बर सुनाई: उसकी शोल्डर स्ट्रेप्स पर सुनहरी तोपें हैं – धैर्य समाप्त हो चुका है, सबको लड़ाई पर जाना चाहिए, क्योंकि यूनिवर्सिटी की पढाई से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है, और अगर पेत्ल्यूरा शहर में घुस आता है, - तब तो और भी कोई फ़ायदा नहीं है. सबको जाना चाहिए, मगर तोपचियों को निश्चित रूप से मोर्टार डिविजन में. कमांडर – कर्नल मलीशेव, डिविजन – लाजवाब है : यही नाम है – स्टूडेंट्स डिविजन. करास परेशान है कि मिश्लायेव्स्की इस बेवकूफ स्क्वैड में चला गया. बेवकूफी है. हीरोगिरी करता था, जल्दबाजी कर ली. शैतान ही जाने कि अब वह कहाँ है. हो सकता है, कि शहर के पास उसे मार भी डाला हो...

आह, मिश्लायेव्स्की तो यहीं था, ऊपर! सोनपरी एलेना ने शयनकक्ष के आधे अँधेरे में, चांदी की पत्तियों की फ्रेम में जड़े अंडाकार आईने के सामने चेहरे पर जल्दी से पावडर लगाया और गुलाब के फूल लेने के लिए बाहर आई. हुर्रे! सभी यहाँ हैं. सिलवटों वाले शोल्डर स्ट्रैप्स पर करास की सुनहरी तोपें, शिर्विन्स्की के घुड़सवार दस्ते के पीले शोल्डर स्ट्रैप्स और उसकी इस्त्री की हुई नीली ब्रीचेस के सामने फीकी लग रही थीं. तालबेर्ग के ग़ायब होने की ख़बर से छोटे से शिर्विन्स्की की बेशर्म आँखों में खुशी नाच उठी. छोटा सा भालाधारी फ़ौरन महसूस करने लगा कि उसकी आवाज़ में और गुलाबी ड्राइंग रूम में सचमुच आवाजों का आश्चर्यजनक बवंडर हिलोरें ले रहा है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था, शिर्विन्स्की विवाह-देवता की स्तुति में गा रहा था, और क्या गा रहा था! हाँ, दुनिया में सब बेकार है, सिवाय ऐसी आवाज़ के, जैसी शिर्विन्स्की की है. बेशक, फिलहाल आर्मी हेडक्वार्टर्स, ये फ़ालतू लड़ाई, बोल्शेविक, और पेत्ल्यूरा, और फ़र्ज़, मगर बाद में, जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, वह फौजी नौकरी छोड़ देगा, अपने पीटर्सबुर्ग के संबंधों के बावजूद, पता है, कैसे कैसे संबंध हैं उसके – ओ-हो-हो...और स्टेज पर चला जाएगा. वह ‘ला स्काला में गायेगा और मॉस्को के बल्शोय थियेटर में, जब बोल्शेविकों को मॉस्को के थियेटर स्क्वेयर पर बिजली के खम्भों पर लटका दिया जाएगा. जब उसने झ्मेरिन्को में दूल्हा-दुल्हन का गीत गाया था, तो काउंटेस लेन्द्रिकोवा उससे प्यार कर बैठी थी, क्योंकि उसने ‘सा के बदले ‘ध लिया और उसे पाँच मिनट तक पकडे रहा. ‘पांच – कहने के बाद शिर्विन्स्की ने खुद ही अपना सिर थोड़ा झुका लिया और परेशानी से चारों तरफ देखने लगा, जैसे किसी और ने इस बारे में उसे सूचित किया हो, न कि उसने खुद ने.

“च्, पाँच. चलो, ठीक है, खाना खाने चलें.”

और बैनर्स, धुआँ ...

“और सेनेगाल की पाँच कम्पनियां कहाँ हैं? जवाब दो, स्टाफ ऑफिसर, जवाब दो. लेनच्का, वाईन पियो, सोनपरी, पियो. सब कुछ ठीक हो जाएगा. उसने अच्छा ही किया, जो चला गया. दोन तक पहुंचेगा और देनिकिन की फ़ौज के साथ यहाँ आयेगा.”

“आयेंगी!” शिर्विन्स्की झनझनाया, “आयेंगी. मुझे एक महत्वपूर्ण समाचार कहने की इजाज़त दें: आज मैंने खुद क्रेश्चातिक पर सर्बियन क्वार्टरमास्टर्स को देखा, और परसों तक, ज़्यादा से ज़्यादा, दो दिन बाद. शहर में दो सर्बियन रेजिमेंट्स आ जायेंगी.”

“सुनो, क्या ये सच है?

शिर्विन्स्की लाल हो गया.

“हुम्, अजीब बात है. जब मैं कह रहा हूँ, कि मैंने खुद देखा है, तो मुझे यह सवाल बेतुका लगता है.”  

“दो कम्पनियाँ ...कि दो कम्पनियाँ....”

“ठीक है, तो क्या पूरी बात सुनेंगे? खुद राजकुमार ने आज मुझसे कहा, कि ओडेसा के बंदरगाह पर फ़ौजी उतारे जा रहे हैं: ग्रीक्स आ चुके हैं और सिनेगालों के दो डिविजन. हमें एक हफ़्ता सब्र करना होगा, - और फिर जर्मन जाएँ भाड़ में.”

“विश्वासघाती!”

“खैर, अगर ये सच है, तो पेत्ल्यूरा को पकड़ कर लटका देना चाहिए! बिल्कुल लटका देना चाहिए!”

“अपने हाथों से गोली मार दूँगा.”

“और एक-एक घूँट. आपकी सेहत के नाम, अफसर महाशयों!”

एक घूँट – और आख़िरी धुंध! धुंध, महाशयों.

निकोल्का, जिसने तीन जाम पी लिए थे, अपने कमरे की ओर भागा रूमाल लेने के लिए और प्रवेश कक्ष में (जब कोई नहीं देख रहा हो, अपने आप में आ सकते हो) हैंगर से टकरा गया. शिर्विन्स्की की मुड़ी हुई तलवार, चमचमाती सुनहरी मूठ वाली. पर्शियन राजकुमार ने भेंट दी थी. तलवार का फल दमास्कस का. न तो किसी प्रिंस ने भेंट दी थी, और फल भी दमास्कस का नहीं था, मगर ये सही है – ख़ूबसूरत और महंगी है. बेल्ट से बंधे होल्स्टर में उदास पिस्तौल, करास की ‘स्टेयर - नीले नालमुख वाली. निकोल्का ने होल्स्टर की ठण्डी लकड़ी को छुआ, पिस्तौल की खुरदुरी नाक को उँगलियों से छुआ और उत्तेजना से लगभग रो पडा. दिल चाह रहा था कि फ़ौरन, इसी पल, बर्फीले मैदानों में पोस्ट पर जाए और युद्ध में शामिल हो जाए. वाकई में शर्मनाक है! अटपटा लगता है...यहाँ वोद्का और गर्माहट है, और वहाँ अन्धेरा, बर्फ, तूफ़ान, कैडेट्स जम जाते हैं. वहाँ स्टाफ हेडक्वार्टर्स में वे क्या सोचते होंगे? ऐ, स्क्वैड अभी तैयार नहीं है, स्टूडेंट्स की ट्रेनिंग पूरी नहीं हुई है,  और सिनेगालों का अता-पता नहीं है, शायद, वे, जूतों जैसे, काले...मगर वे तो यहाँ सूअरों जैसे जम जायेंगे? उन्हें तो गर्म जलवायु की आदत है ना?

“मैं तो तुम्हारे गेटमन को,” बड़ा तुर्बीन चीखा, “सबसे पहले लटका देता! छः महीने से वह हम सबको चिढ़ा रहा है. रूसी फ़ौज के गठन को किसने रोका था? गेटमन ने. और अब. जब बिल्ली को पेट से पकड़ लिया है, तो रूसी फ़ौज बनाने चले हैं? दुश्मन दो कदम पर है, और वे स्क्वैड्स, स्टाफ हेडक्वार्टर्स?

देखिये, ओय, ज़रा देखिये!”

“घबराहट फैला रहे हो,” करास ने ठंडेपन से कहा.

“मैं? घबराहट? आप तो मुझे समझना ही नहीं चाहते. घबराहट नहीं फैला रहा, बल्कि मैं वह सब बाहर उंडेल देना चाहता हूँ, जो मेरी आत्मा में खदखदा रहा है. घबराहट? परेशान न हो. कल, मैंने फैसला कर लिया है, मैं इसी डिविजन में जाऊंगा, और अगर आपका मलीशेव मुझे डॉक्टर की हैसियत से नहीं लेता, तो मैं सामान्य फ़ौजी की तरह जाऊंगा. मैं उकता गया हूँ! घबराहट नहीं,” - खीरे का टुकड़ा उसके गले में अटक गया, वह ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगा, और निकोल्का जोर से उसकी पीठ थपथपाने लगा.                       

सही है!” करास ने मेज़ थपथपा कर सहमति दर्शाई. “जहन्नुम में जाएँ सामान्य फ़ौजी – तुम्हें डॉक्टर के रूप में ही लेंगे.”

“कल सब एक साथ जायेंगे,” नशे में धुत मिश्लायेव्स्की बडबड़ाया, “सब एक साथ. पूरा अलेक्सान्द्रोव्स्की इम्पीरियल हाई स्कूल. हुर्रे!”

“कमीना है वो,” तुर्बीन ने घृणा से आगे कहा, “वो खुद तो इस भाषा में बात नहीं करता है! आ? मैंने परसों इस डॉक्टर कुरीत्स्की से पूछा, वह, गौर फरमाइए, पिछले साल के नवम्बर से रूसी बोलना भूल गया है. पहले कुरीत्स्की था, और अब कुरीत्सकी हो गया है...तो, मैंने पूछा:

‘ उक्रेनी भाषा में ‘कोत’ (बिल्ली – अनु.) को क्या कहते हैं? वह बोला ‘कीत’ (व्हेल – अनु.). फिर मैंने पूछा और ‘कीत को (व्हेल को – अनु.) . वह रुक गया, आंखें फाडीं और खामोश हो गया. और अब वह मेरा अभिवादन भी नहीं करता है.

निकोल्का ने ज़ोर से ठहाका लगाया और बोला:

“उनके पास ‘कीत शब्द नहीं हो सकता, क्योंकि युक्रेन में व्हेल मछलियाँ नहीं होतीं, मगर रूस में बहुत हैं. श्वेत सागर में व्हेलें हैं...     

“लामबंदी,” कटुता से तुर्बीन ने आगे कहा, “अफसोस, कि आप लोगों ने नहीं देखा कि कल आस-पास के इलाकों में क्या हुआ. “सभी सट्टेबाजों को ऑर्डर आने से तीन दिन पहले ही लामबंदी के बारे में पता चल गया था. बढ़िया है ना? और हरेक को या तो हर्निया हो गया या दायें फेफड़े पर धब्बा निकल आया, और अगर किसी को धब्बा नहीं आया तो वह बस यूँ ही गायब हो गया, जैसे धरती में समा गया. और, ये, भाइयों, ये खतरनाक लक्षण है. अगर कॉफी हाउस में लामबंदी से पूर्व फुसफुसाहट होती है, और एक भी नहीं जाता है – तो मामला खतरनाक है! ओ, कमीने, कमीने! अगर वह अप्रैल से ही ‘ऑफिसर्स कोर’ का गठन शुरू कर देता, तो अब तक हम मॉस्को ले चुके होते. आप समझ रहे हैं, कि यहाँ, शहर में, वह पचास हज़ार की फ़ौज बना लेता, और वह भी कैसी फ़ौज! चुनी हुई, बेहतरीन, इसलिए कि सारे कैडेट्स, सारे स्टूडेंट्स, हाई स्कूलों के छात्र, अफसर, और शहर में वे हज़ारों में हैं, सभी खुशी से जाते. न सिर्फ पेत्ल्यूरा का उक्रेन से नामोनिशान मिट जाता, बल्कि हमने  मॉस्को में त्रोत्स्की को भी मक्खी की तरह मसल दिया होता.

यही सही समय था, क्योंकि, वहाँ, कहते हैं कि बिल्लियाँ भून कर खा रहे हैं. वो, कमीना, रूस को बचा लेता.”

तुर्बीन के चहरे पर धब्बे छा गए और उसके मुँह से शब्द थूक के पतले फव्वारों के साथ उड़ रहे थे. आंखें जल रही थीं.

“तुम...तुम...तुम्हें तो, पता है, डॉक्टर नहीं, बल्कि रक्षा मंत्री होना चाहिए था, सही में,” करास ने कहा. वह व्यंग्य से मुस्कुरा रहा था, मगर तुर्बीन की बात उसे अच्छी लगी थी, और उसमें जोश भर गया था.

“अलेक्सेइ मीटिंग्स का आवश्यक व्यक्ति है, बेहतरीन वक्ता,” निकोल्का ने कहा.

“निकोल्का, मैं दो बार तुझसे कह चुका हूँ, कि तुम कोई हाज़िर जवाब नहीं हो,” तुर्बीन ने उसे जवाब दिया, “बेहतर है कि तुम वाईन पियो.”          

“तुम समझने की कोशिश करो,” करास ने कहा, “कि जर्मन फ़ौज नहीं बनाने देते, वे फ़ौज से डरते हैं.”

“गलत है!” – तुर्बीन ने पतली आवाज़ में कहा, “सिर्फ थोड़ी अक्ल होनी चाहिए और तब गेटमन से कभी भी कोई समझौता किया जा सकता था. जर्मनों को समझाना चाहिए था, कि उन्हें हमसे कोई ख़तरा नहीं है. बेशक, हम युद्ध हार चुके हैं! हमारे सामने तो अब दूसरी ही समस्या है, युद्ध से, जर्मनों से, दुनिया की हर चीज़ से भी ज़्यादा भयानक.

हमारे पास – त्रोत्स्की है. जर्मनों से ये कहना चाहिए था: क्या आपको शक्कर, ब्रेड चाहिए?

“ले लो, खाओ, सैनिकों को खिलाओ. गले-गले तक खाओ, मगर सिर्फ मदद करो. फ़ौज बनाने दो, ये आपके लिए बेहतर होगा, हम उक्रेन में व्यवस्था बनाए रखने में आपकी सहायता करेंगे, ताकि हमारे ईश्वरीय दूतों को मॉस्को की बीमारी न लग जाए. और अगर अभी शहर में रूसी फ़ौज होती तो फ़ौलादी दीवार से हमारी सुरक्षा करती. और पेत्ल्यूरा को...ख-ख...” तुर्बीन ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगा.

“रुको!” शिर्वीन्स्की उठा, “थोड़ा ठहरो. मुझे गेटमन के बचाव में कुछ कहना है. ये सच है, कि गलतियाँ हुई हैं, मगर गेटमन का प्लान सही ही था. ओह, वह डिप्लोमैट है. सबसे पहले उक्रेन-स्टेट... इसके बाद गेटमन ठीक वही करता, जैसा तुम कह रहे हि : रूसी फ़ौज,  और कोई बहस नहीं. ठीक है ना?

शिर्वीन्स्की ने समारोह पूर्वक हाथ से कहीं इशारा किया. “व्लादिमीर्स्काया स्ट्रीट पर तीन रंग वाले झंडे फहरा रहे हैं.”

“झंडों के साथ देर कर दी.!”

“हुम्, हाँ. ये सच है. थोड़ी देर हो गई, मगर राजकुमार को विश्वास है कि गलती सुधारी जा सकती है.”

“ईश्वर करे, ईमानदारी से चाहता हूँ,” और तुर्बीन ने कोने में रखी वर्जिन मेरी की आकृति पर सलीब का निशान बनाया.    

“प्लान ऐसा था,” खनखनाती आवाज़ में समारोहपूर्वक शेर्वींस्की  ने कहा, - “जब युद्ध समाप्त हो जाता, जर्मन संभल जाते और बोल्शेविकों के विरुद्ध संघर्ष में सहायता करते. जब मॉस्को पर कब्ज़ा हो जाता तो गेटमन समारोहपूर्वक उक्रेन को महान सम्राट निकलाय अलेक्सान्द्रविच के कदमों पे रख देता.”

इस सूचना के बाद डाइनिंग रूम में मौत जैसा सन्नाटा छा गया. निकोल्का दुःख से विवर्ण हो गया.

“सम्राट को मारा डाला गया है,” वह फुसफुसाया.

“क्या, निकलाय अलेक्सान्द्रविच को?” तुर्बीन अवाक् रह गया, और मिश्लायेव्स्की ने हिलते हुए, कनखियों से पड़ोसी के जाम की तरफ देखा. ज़ाहिर था : हिम्मत जुटा रहा था, जुटा रहा था और पी गया, छतरी की तरह.

हथेलियों पर चेहरा रखे एलेना ने भय से लांसर की ओर देखा.

मगर शिर्विन्स्की बहुत ज़्यादा नशे में नहीं था, उसने हाथ उठाया और जोर देकर कहा:

“जल्दी न मचाइए, और सुनिए. तो, विनती करता हूँ, अफसर महाशयों (निकोल्का लाल हो गया और विवर्ण हो गया) जो सूचना मैं दूंगा, उसके बारे में फिलहाल चुप रहें. तो - आपको पता है कि सम्राट विलियम के महल में क्या हुआ था, जब उसके सामने गेटमन के अनुचर प्रस्तुत हुए थे?

“ज़रा सी भी कल्पना नहीं है,” करास ने दिलचस्पी से कहा.

“अच्छा..., मगर मुझे मालूम है.”

“फु:! उसे सब पता है,” मिश्लायेव्स्की ने अचरज से कहा, “तुम तो नहीं ना गए.....”

“महाशयों! उसे कहने दो.”

“जब सम्राट विलियम ने प्यार से अनुचरों से बातें की, तब उन्होंने कहा: “ अब मैं आपसे बिदा लेता हूँ, महाशयों, और आगे से आपसे बात करेंगे....: पार्टीशन खुल गया और हॉल में प्रवेश किया हमारे सम्राट ने. उन्होंने कहा, “अफसर महाशयों, उक्रेन जाईये और वहाँ अपनी रेजिमेंट्स बनाईये. जैसे ही समय आयेगा, मैं स्वयँ फ़ौज का नेतृत्व करूंगा और उसे रूस के हृदय में – मॉस्को में ले जाऊंगा,” और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे.” 

शिर्विन्स्की ने प्रसन्नता से सब पर नज़र दौडाई, जाम से एक घूँट पिया और आंखें सिकोड़ीं. दस आंखें उस पर टिकी हुई थीं, और खामोशी तब तक छाई रही, जब तक कि उसने बैठ कर हैम का टुकड़ा नहीं खा लिया.

सुनो...ये दन्तकथा है,” दुःख से नाक-भौं चढ़ाकर तुर्बीन ने कहा. “ये किस्सा मैं पहले ही सुन चुका हूँ.”

“सब मारे जा चुके हैं,” मिश्ल्यायेव्स्की ने कहा, “– सम्राट भी, सम्राज्ञी भी, और उनका वारिस भी.”

शिर्विन्स्की ने भट्टी की और देखा, गहरी सांस ली और कहा:

“आप बेकार ही में अविश्वास दिखा रहे हैं. महान सम्राट की मृत्यु की खबर...”

“कुछ अतिशयोक्ति से बताई गई है,” मिश्लायेव्स्की ने नशे में फ़ब्ती कसी.

एलेना गुस्से से थरथराई और मानो धुंध से बाहर आई.

“वीत्या, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम ऑफिसर हो.”

मिश्लायेव्स्की धुंध में डूब गया.

“... जानबूझकर खुद बोल्शेविकों द्वारा फैलाई गई थी. सम्राट अपने विश्वसनीय गवर्नर की...मतलब, माफ़ी चाहता हूँ, राजकुमार के गवर्नर, मिस्यो झिल्यार और कुछ अफसरों की की सहायता से बच गए, जो उन्हें ले गए...इ... एशिया. वहाँ से वे सिंगापुर गए और समुद्र के रास्ते यूरोप पँहुचे. और आजकल महाराज सम्राट विलियम के मेहमान हैं.”

“मगर, विलियम को भी तो भगा दिया गया था?” करास ने कहा.          

“ वे दोनों डेनमार्क में हैं, उन्हींके साथ सम्राट की श्रद्धेय माँ मरीया फ्योदरव्ना भी हैं. अगर आपको मुझ पर विश्वास नहीं है, तो, सुनिए: यह स्वयँ राजकुमार ने मुझे बताया है.

संभ्रम से व्याप्त निकोल्का की आत्मा कराह उठी. उसका दिल चाहा कि विश्वास कर ले.

“अगर ऐसा है,” वह अचानक जोश से बोला और माथे से पसीना पोंछते हुए बोला, “तो मैं सुझाव देता हूँ, ये जाम महान सम्राट के स्वास्थ्य के नाम!” उसने अपना गिलास चमकाया और क्रिस्टल ग्लास से होते हुए सुनहरे तीरों ने सफ़ेद जर्मन वाईन को छेद दिया. जूतों की एड़ कुर्सियों से टकराकर खनखना उठीं. झूलते हुए और मेज़ का सहारा लिए मिश्लायेव्स्की उठा. एलेना उठी. उसका सुनहरा जूडा खुल गया, और लटें कनपटियों पर झूलने लगीं.

जाने दो! जाने दो! चाहे मार ही क्यों न डाला हो,” टूटी-फूटी और भर्राई हुई आवाज़ में वह चीखी, “एक ही बात है. मैं पिऊँगी, मैं पिऊँगी.”

“द्नो स्टेशन पर जब वह राज-त्याग करके चला गया, उसके लिए उसे कभी भी माफ़ नहीं किया जा सकता. कभी नहीं. मगर कोई बात नहीं, अब हमने कटु अनुभव से सीख ली है और हम जानते हैं, कि सिर्फ राज-तंत्र ही रूस की रक्षा कर सकता है. इसलिए, अगर सम्राट मर गया है, तो सम्राट दीर्घायु हो!” तुर्बीन चिल्लाया और उसने जाम उठाया.            

“हुर्रे! हु-र्रे! हुर-र्रे!!” डाइनिंग रूम में तीन बार गडगडाहट के साथ गूंज उठा.

नीचे वसिलीसा ठन्डे पसीने में उछला. वह एक हृदय विदारक चीख के साथ उठा और उसने वांदा मिखाइलव्ना को उठाया.

“ओह माय गॉड ....गॉ...गॉ...वांदा उसके कमीज़ से चिपकते हुए बुदबुदाई.

“ये क्या हो रहा है? रात के तीन बजे हैं!” काली छत की ओर इशारा करके, रोते हुए वसिलीसा चिल्लाया. “अब तो मैं शिकायत कर ही दूँगा!”

वान्दा रिरियाई. और अचानक वे मानो पत्थर हो गये. ऊपर से स्पष्टता से, छत से रिसती हुई, मक्खन जैसी घनी लहर तैरते हुए बाहर आई, और उसके ऊपर प्रमुखता से थी शक्तिशाली, घंटी जैसी खनखनाती हुई गहरी आवाज़:       

श-क्तिशाली, स-म्राट

शासन करो महान...

वसिलीसा के दिल की धड़कन बंद हो गई, और पैरों से भी पसीने की धार बह निकली. लड़खड़ाती जुबान से वह बड़बड़ाया:

“नहीं...वे, याने, पागल हो गए हैं...वे हमें ऐसी मुसीबत में डाल सकते हैं, कि बाहर आना मुश्किल हो जाएगा. इस गीत पर तो रोक लगी है! हे, ईश्वर, वे कर क्या रहे हैं? रा-स्ते पर, रास्ते पर भी सुनाई दे रहा है!!”

मगर वांदा पत्थर की तरह फ़िसल गई थी और फिर से सो गई थी.

वसिलीसा सिर्फ तभी सो सका, जब शोर गुल के बीच अस्पष्टता से आख़िरी सुर तैर गया.  

“रूस में सिर्फ एक ही संभव है : ऑर्थोडोक्स चर्च और एकतंत्र!” मिश्लायेव्स्की झूलते हुए चिल्लाया.  

“एकदम सही!”

“मैं ‘पॉल प्रथम' देखने गया था...एक हफ़्ता पहले...” लड़खड़ाती जुबान से मिश्लायेवस्की बुदबुदाया, “ और जब आर्टिस्ट ने ये शब्द कहे, तो मैं खुद को रोक नहीं पाया और चीखा: “सह-ह-ही !” और आप क्या सोचते हैं, चारों तरफ लोग तालियाँ बजाने लगे. सिर्फ अपर सर्कल में एक सूअर चीखा,“बेवकूफा!” 

य-हू-दी!,” नशे में धुत्त करास उदासी से चिल्लाया.

धुंध. धुंध. धुंध. टोंक-टांक...टोंक-टांक...वोद्का पीने में भी अब कोई तुक नहीं है, वाईन पीने में भी कोई तुक नहीं है, आत्मा के भीतर जाती है और वापस लौट आती है.

छोटे से शौचालय की संकरी दरार में, जहाँ छत पर लैम्प उछल रहा था और नृत्य कर रहा था,मानो किसी ने उस पर जादू कर दिया हो, सब कुछ धुंधला था और गोल-गोल घूम रहा था. विवर्ण,दयनीय मिश्लायेव्स्की बुरी तरह उल्टी कर रहा था. तुर्बीन, जो खुद भी नशे में था, भयंकर, फड़कते गाल, माथे पर चिपके गीले बालों के साथ मिश्लायेव्स्की को सहारा दे रहा था.      

“आ-आ...”

वह, आखिरकार, कराहते हुए, बेसिन से दूर हटा और अपनी बुझती हुई आंखों को दर्द से घुमाते हुए तुर्बीन के हाथों में खाली बोरे की तरह लटक गया.

“नि-कोल्का,” धुंध और अँधेरे में किसी की आवाज़ आई और कुछ पलों के बाद ही तुर्बीन समझ पाया, कि ये उसकी अपनी ही आवाज़ है.

“निकोल्का!” उसने दुहराया. शौचालय की सफ़ेद दीवार झूली और हरे रंग में बदल गई. “गॉ-ऑ-ड, गॉ-ऑ-ड. कितना उबकाई भरा और घिनौना है. कभी नहीं, कसम खाता हूँ, कभी भी वोद्का और वाईन को नहीं मिलाऊंगा निकोल...”

“आ-आ,” फर्श पर बैठते हुए मिश्लायेव्स्की भर्रा रहा था.

काली दरार चौड़ी हुई, और उसमें निकोल्का सिर और उसका बैज प्रकट हुआ.

“निकोल...मदद कर, इसे पकड़ो. ऐसे पकड़ो, हाथ से.”

“त्स...त्स...त्स...एख,एख,” दयनीयता से सिर हिलाते हुए निकोल्का बुदबुदाया और तन गया. अधमरा शरीर हिल रहा था, पैर, घिसटते हुए, विभिन्न दिशाओं में जा रहे थे, मानो धागे से लटके हों, निर्जीव सिर लटक रहा था. टोंक-टांक. घड़ी दीवार से फिसली और वापस वहीं जाकर बैठ गई. प्यालों में फूलों के गुच्छे नाच रहे थे. एलेना का चेहरा धब्बों से जल रहा था, और बालों की लट दाईं भौंह के ऊपर नाच रही थी.

“ऐसे. लिटाओ उसे.”

“कम से कम गाऊन तो पहनाओ उसे. अच्छा नहीं लगता, मैं यहाँ हूँ. नासपीटे शैतान. पीना तो आता नहीं. वीत्का! वीत्का! क्या हुआ है तुझे? वीत्...”

“छोडो. कोई फ़ायदा नहीं होगा,निकोलुश्का, सुनो. मेरे ऑफिस में...शेल्फ पर एक बोतल है, जिस पर लिखा है ‘लिकर अमोनिया', और लेबल का कोना फटा हुआ है, समझ रहे हो ना...अमोनिया की गंध आती है.”

“अभी...अभी...एह-एह.”
“और तुम
, डॉक्टर, अच्छे ...”

“अच्छा, ठीक है, ठीक है.”

“क्या? नब्ज़ नहीं है?

“नहीं, बकवास, ठीक हो जाएगा.”

“बेसिन! बेसिन!”

“बेसिन लीजिये.”

“आ-आ-आ...”

“एख, आप भी!”

अमोनिया की तेज़ गंध आई. करास और एलेना ने मिश्लायेव्स्की का मुँह खोला. निकोल्का उसे थामे रहा, और तुर्बीन ने दो बार उसके मुँह में मटमैला सफ़ेद पानी डाला.

“आ...खर्र...ऊ-उह..त्फु ...फे...”

“बर्फ, बर्फ...”

“ओ माय गॉड, ये ऐसा करना पड़ता है...”

गीला कपड़ा माथे पर पड़ा था, उससे चादर पर बूँदें टपक रही थीं, कपड़े के नीचे सूजी हुई पलकों के पीछे लाल-लाल आंखें दिखाई दे रही थीं, और नुकीली नाक के पास नीली परछाइयां दिखाई दे रही थीं. करीब पंद्रह मिनट, एक दूसरे को कोहनियों से धकेलते हुए, भागदौड़ करते हुए, निढाल ऑफिसर की तब तक खिदमत करते रहे, जब तक कि उसने आंखें नहीं खोलीं, और भर्राई आवाज़ में नहीं बोला:

“आह...छोडो...”

“अच्छा, चलो ठीक है, इसे यहीं सोने दो.”

सभी कमरों में रोशनियाँ जल उठीं,बिस्तरों का इंतज़ाम करते हुए भाग-दौड़ करते रहे.

“लिअनिद यूरेविच, आप यहाँ सो जाईये,निकोल्का के कमरे में.”

“जी, सुन रहा हूँ.”

शिर्विन्स्की, लाल-ताँबे जैसा, मगर चौकन्ना, अपनी एडियाँ खटखटाईं और झुक कर बिदा ली. एलेना के गोरे हाथ दीवान के ऊपर तकियों पर दिखाई दिए.

“आप परेशान न हों...मैं खुद कर लूँगा.”

“आप दूर हटिये. तकिया क्यों खीच रहे हैं? आपकी मदद की ज़रुरत नहीं है.”

“आपका हाथ चूमने की इजाज़त दीजिये...”

“किसलिए?

“परेशानी के लिए शुक्रिया कहना चाहता हूँ.”

“अभी इंतज़ार कीजिये...निकोल्का, तुम अपने कमरे में बिस्तर पर. तो, कैसा है वो?

“ठीक है,खतरे की कोई बात नहीं, सो जाएगा, तो बिलकुल ठीक हो जाएगा.”

निकोल्का के कमरे से पहले वाले कमरे में भी, किताबों से भरी दो अलमारियों के पीछे,जिन्हें चिपका कर रखा गया था, दो दिवानों पर सफ़ेद चादरें बिछा दी गईं. प्रोफ़ेसर के परिवार में इसे किताबों का कमरा कहते थे.  

 

***

 

और बत्तियां बुझ गईं. किताबों वाले कमरे में, निकोल्का के कमरे में, डाइनिंग रूम में. एलेना के शयन कक्ष से, परदों के बीच की दरार से होकर डाइनिंग रूम में गहरे लाल रंग के प्रकाश की पट्टी बाहर रेंग रही थी. रोशनी उसे बेज़ार कर रही थी, इसलिए पलंग के पास वाले स्टूल पर रखे लैम्प को उसने थियेटर में पहनने वाला गहरा लाल बोनट (टोप) डाल दिया. कभी इसी बोनट को पहनकर एलेना थियेटर जाती थी, जब हाथों से,फर-कोट से और होठों से इत्र की खुशबू आती थी, और चेहरे पर हल्का-सा पाउडर लगा होता, और टोप  से एलेना इस तरह देखती जैसे “हुकुम की बेगम” की लीज़ा देखती है. मगर पिछले एक साल में टोप बहुत जर्जर हो गया, बड़ी शीघ्रता से और अजीब तरह से, उसमें सिलवटें पड़ गईं, वह बदरंग हो गया, रिबन्स घिस गए. “हुकुम की बेगम” की लीज़ा के समान लाल बालों वाली एलेना, घुटनों पर हाथ लटकाए, हाउसकोट पहने तैयार किये हुए बिस्तर पर बैठी थी. उसके पैर नंगे थे, पुराने, बदरंग भालू की खाल में घुसे हुए थे. हल्के-से नशे का खुमार पूरी तरह उतर गया, और एलेना के दिमाग को भयानक, गहरी निराशा ने टोप की तरह घेर लिया. बगल वाले कमरे से, दरवाज़े से होकर, जिसे अलमारी ने उड़का दिया था, दबी-दबी, निकोल्का की सीटी की आवाज़ और शिर्विन्स्की के ज़ोरदार,दमदार खर्राटे सुनाई दे रहे थे. किताबों वाले कमरे में मुर्दे जैसे मिश्लायेव्स्की की और करास की खामोशी छाई थी. एलेना अकेली थी और इसलिए वह अपने आप को न रोक पाई और कभी दबी आवाज़ में, तो कभी खामोशी से, मुश्किल से होठों को हिलाते हुए बातें कर रही थी – बोनट से, जो रोशनी से सराबोर था, और खिड़कियों के काले धब्बों से. 

“चला गया...”

वह बुदबुदाई, सूखी आंखों को सिकोड़ा और खयालों में खो गई. अपने विचारों को वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी. चला गया, और ऐसे समय में. मगर माफ़ कीजिये, वह बहुत समझदार व्यक्ति है, और उसने बहुत अच्छा किया, जो चला गया... आखिर ये अच्छे के लिए ही तो है...

“मगर ऐसे समय में...” एलेना बुदबुदाई और उसने गहरी सांस ली.

“कैसा आदमी है वह ?” जैसे वह उससे प्यार करती थी और अपनापन भी महसूस करती थी. और अब है भयानक अवसाद इस कमरे के अकेलेपन में, इन खिड़कियों के पास, जो आज ताबूतों जैसी लग रही हैं. मगर इस समय नहीं, पूरे समय नहीं – डेढ़ साल, - जो उसने इस आदमी के साथ बिताया है, मगर दिल में वह बात नहीं थी जो सबसे मुख्य है, जिसके बिना, किसी भी हाल में ऐसी गरिमामय शादी भी चल नहीं सकती – ख़ूबसूरत, लाल बालों वाली, सुनहरी एलेना और जनरल स्टाफ के करियरवादी के बीच, बोनट्स के, इत्र की खुशबू, खनखनाती एड़ों की गहमागहमी के बीच, और खुशनुमा, फिलहाल बच्चों की चिंता के बिना. जनरल स्टाफ के, अत्यंत सावधान, बाल्टिक प्रदेश के आदमी के साथ शादी. और कैसा है ये आदमी? ऐसी कौनसी मुख्य बात की कमी है, जिसके बिना मेरी आत्मा खोखली है?

“जानती हूँ मैं, जानती हूँ,” एलेना ने खुद से कहा. “सम्मान नहीं है. पता है, सिर्योझा, मेरे दिल में तुम्हारे प्रति सम्मान की भावना नहीं है,” उसने अर्थपूर्ण ढंग से लाल बोनट से कहा और उंगली ऊपर उठाई. और अपने कथन से स्वयँ ही भयभीत हो गई, अपने अकेलेपन से भयभीत हो गई, कामना करने लगी कि वह उसके पास हो, इसी पल. बिना किसी सम्मान के, बिना इस मुख्य बात के, मगर सिर्फ ये कि वह यहाँ हो इस मुश्किल घड़ी में. चला गया. और भाइयों ने भी चूम कर उसे बिदा किया था. क्या ऐसा करना ज़रूरी है? हाँलाकि, फरमाइए, मैं ये क्या कह रही हूँ? और वे करते भी क्या? उसे रोकते? बिलकुल नहीं. अच्छा ही है कि ऐसे कठिन समय में वह नहीं है, और ज़रुरत भी नहीं है, बस, सिर्फ रोकना नहीं है. किसी भी हालत में नहीं. जाने दो. चूमने को तो उन्होंने चूम लिया, मगर दिल की गहराई में वे उससे नफ़रत करते हैं. ऐ-खुदा. बस, अपने आप से झूठ बोल रही हो, झूठ बोल रही हो, मगर जब सोचती हो, तो सब कुछ साफ़ है – नफ़रत करते हैं. निकोल्का तो अभी तक भला है, मगर बड़ा...हाँलाकि नहीं. अल्योशा भी भला है, मगर वह ज़्यादा नफ़रत करता है.

खुदा, ये मैं क्या सोच रही हूँ ? सिर्योझा, तुम्हारे बारे में मैं ये क्या सोच रही हूँ? और अगर अचानक संपर्क काट दें तो... वह वहीं रह जाएगा, मैं यहां...

“मेरा पति,” उसने गहरी सांस लेकर कहा, और हाउसकोट उतारने लगी. “मेरा पति...”

बोनेट दिलचस्पी से सुन रहा था, और उसके गाल गहरी लाल रोशनी में चमक रहे थे.

उसने पूछा;

“और किस तरह का इन्सान है तुम्हारा पति?

 

***

 

“बदमाश है वो. और कुछ नहीं!” एलेना के कमरे से प्रवेश कक्ष के उस पार तुर्बीन अकेले में अपने आपसे कह रहा था. एलेना के विचार उस तक पहुँच गए थे और उसे कई मिनटों तक सताते रहे. “बदमाश, और मैं, वाकई में चीथड़ा हूँ. अगर अब तक उसे भगा न दिया होता, तो कम से कम चुपचाप निकल जाता. जहन्नुम में जाओ. इसलिए नहीं कि कमीना है, जो ऐसी घड़ी में एलेना को छोड़कर भाग गया, ये, बेशक, छोटी सी, बकवास बात है, बल्कि किसी और ही कारण से. मगर क्यों? आह, शैतान, मैं उसे अच्छी तरह समझ गया हूँ. ओह, शैतानी गुड़िया, ज़रा सी भी आत्मसम्मान की भावना नहीं है! जो कुछ भी वह कहता है, बिना तार के बलालायका की तरह...और ये रूसी मिलिटरी अकादमी का अफसर है. इसे  रूस का सर्वोत्कृष्ट समझा जाता है...

अपार्टमेंट खामोश हो गया. एलेना के शयन कक्ष से बाहर आ रहा रोशनी का पट्टा बुझ गया.        

वह सो गई, और उसके ख़याल बुझ गए, मगर तुर्बीन अपने छोटे से कमरे में, लिखने की मेज़ के पास बैठा बड़ी देर तक तड़पता रहा. वोद्का और जर्मन वाईन ने उस पर बुरा प्रभाव डाला था. वह सूजी आंखों से बैठा हुआ, जो भी किताब मिली, उसके पहले पन्ने को देख रहा था और पढ़ रहा था, बेमतलब एक ही बात पर बार-बार लौट रहा था:

‘रूसी आदमी के लिए सम्मान – सिर्फ एक अनावश्यक बोझ है...’

सिर्फ सुबह होते-होते उसने वस्त्र उतारे और सो गया, और सपने में उसके सामने आया नाटे कद का भयानक आदमी, बड़े-बड़े चौखानों वाली पतलून में और व्यंग्य से बोला:

“नंगे बदन से साही पर नहीं बैठते ना?...पवित्र रूस – काठ का देश है, गरीब और...खतरनाक, और रूसी आदमी के लिए सम्मान – सिर्फ एक अनावश्यक बोझ है.”

“आह, तू!” तुर्बीन सपने में चीखा, “के-केंचुए, मैं अभ्भी तुझे.” तुर्बीन सपने में मेज़ की दराज़ के पास ब्राउनिंग निकालने के लिए रेंग गया, नींद में ही ब्राउनिंग निकाली, नाटे पर गोली चलानी चाही, उसके पीछे भागा, और भयानक नाटा गायब हो गया.

दो घंटों तक धुंधली, काली, बिना किसी सपने की नींद चलती रही, और जब कांच जड़े बरामदे में खुलती कमरे की खिड़कियों के पीछे धुंधली और मुलायम रोशनी फ़ैलने लगी, तो तुर्बीन को शहर का सपना आने लगा.


No comments:

Post a Comment

खान का अग्निकांड

  खान का अग्निकांड लेखक: मिखाइल बुल्गाकव  अनुवाद: आ. चारुमति रामदास    जब सूरज चीड़ के पेड़ों के पीछे ढलने लगा और महल के सामने दयनीय, प्रक...