Wednesday, 5 July 2023

श्वेत गार्ड्स - 02

  

2.

 

तो, सफ़ेद झक्, झबरा दिसंबर था. वह निश्चयपूर्वक आधा होने की दिशा में चल रहा था. बर्फ से ढंके रास्तों पर क्रिसमस की चमक महसूस हो रही थी. सन् अठारह जल्दी ही समाप्त होने वाला था.

दो मंजिला मकान नं. 13 के ऊपर, जो अजीब सा था, (रास्ते पर तुर्बीनों का क्वार्टर दूसरी मंजिल पर था, मगर छोटे से, ढलवां, आरामदेह आँगन में – पहली मंजिल पर), जो बगीचे में एकदम खड़ी पहाड़ी से चिपका हुआ था, पेड़ों की सारी टहनियां मुरझा गई थीं, और झुक गई थीं.

पहाडी बर्फ से ढँक गई थी, कम्पाउंड के शेड्स भी पूरी तरह ढंक गए थे – और शक्कर का खूब बड़ा सिर खडा हो गया. घर को श्वेत जनरल की टोपी ने ढांक दिया, और निचली मंजिल पर (सड़क से पहली, कम्पाउंड में तुर्बीनों के बरामदे के नीचे – गोदाम वाली) पीली, मरियल रोशनी में चमक रहा था, इंजीनियर और डरपोक, बुर्जुआ, और अप्रिय, वसीली इवानविच लीसविच, और ऊपर की मंजिल पर – प्रखरता और प्रसन्नता से तुर्बीनों की खिड़कियाँ दमक रही थीं.   

शाम के धुंधलके में अलेक्सेइ और निकोल्का लकडियाँ लाने शेड में गए.

“एह, एह, लकडियाँ तो कितनी कम हैं. आज फिर चुरा कर ले गए, देख.”

निकोल्का के इलेक्ट्रिक लैम्प से नीली रोशनी की लकीर निकली,  और उसमें साफ़ दिखाई दिया कि दीवार की चौखट स्पष्ट रूप से उखाड़ ली गई थी और जल्दबाजी में बाहर से ठोंक दी गई थी.

“शैतानों को गोली मार देना चाहिए! ऐ-खुदा. चल, ऐसा करते हैं : आज रात चौकीदारी करें? मुझे मालूम है – ये ग्यारह नंबर वाले चमार हैं. कैसे बदमाश हैं! उनके पास हमसे ज़्यादा लकडियां हैं,

“उनकी तो...चल जायेंगे. उठा.”

जंग लगा ताला गा उठा, भाइयों के ऊपर लकड़ियों का ढेर गिरने लगा, उन्होंने कुछ लकडियाँ खींची. नौ बजते-बजते सर्दाम की टाईल्स को छूना नामुमकिन था.     

अपनी चकाचौंध करती सतह पर लाजवाब भट्टी कुछ ऐतिहासिक विवरण और चित्र समेटे हुए थी, जिन्हें सन् अठारह के विभिन्न कालखंडों में निकोल्का ने स्याही से बनाया था और जिनका बड़ा गहरा अर्थ और महत्त्व था:

“ अगर कोई तुमसे कहे कि ‘मित्र हमें बचाने के लिए आ रहे हैं, - तो विश्वास न करो.

‘मित्र – कमीने हैं,

वह बोल्शेविकों से सहानुभूति रखता है.”

 

चित्र: मोमुस का थोबड़ा.

हस्ताक्षर: “उलान लिअनिद यूरेविच”.

“अफवाहें डरावनी, भयानक.

आ रहे हैं गिरोह लाल!”

रंगबिरंगा चित्र : लटकती हुई मूंछों वाला चित्र, नीली रिबन वाली हैट में.

नीचे लिखा था:

“मार पेत्ल्यूरा को!”

एलेना और तुर्बीनों के पुराने, प्यारे बचपन के दोस्तों – मिश्लायेव्स्की, करास, शिर्वीन्स्की – के हाथों से रंगों से, पेंट से, स्याही से, चेरी के रस से लिखा था:

“एलेना वसिल्येव्ना हमसे बेहद प्यार करती है,

किसी को – हाँ, और किसी को – ना.”

“लेनच्का, मैंने ‘आइदा की टिकट ली है.

बॉक्स नं. 8, दाईं ओर.”

“सन् 1918 में 12 मई के दिन मुझे प्यार हो गया.”

“आप मोटे और बदसूरत हैं.”

“ऐसे लब्जों के बाद मैं अपने आप को गोली मार लूँगा.”

(सचमुच की ब्राउनिंग जैसी तस्वीर बनाई गई थी.)

“रूस - जिंदाबाद!

साम्राज्य – जिंदाबाद!”

“जून. बर्कारोला (नाविक का गीत – अनु.)”

“यूँ ही नहीं याद रखता रूस

बरोदिनो का दिन.”

निकोल्का के हाथ से, बड़े-बड़े अक्षरों में:

“मैं हुक्म देता हूँ, कि भट्टी पर बेकार की बातें न लिखे, हर कॉमरेड के गोली मार दिए जाने और अधिकारों से वंचित कर दिए जाने का खतरा है.

पदोल्स्की डिस्ट्रिक्ट कमिटी का कमिसार.

  लेडीज़, जेंटलमेन और महिला टेलर अब्राम प्रुझिनेर,

30 जनवरी, सन् 1918.” 

 

चित्रों वाली टाईल्स गर्मी के कारण दमक रही थीं, काली घड़ी उसी तरह चल रही है, जैसे तीस साल पहले चलती थी : टोंक-टांक. बड़ा तुर्बीन, सफाचट दाढी, भूरे बालों वाला, जो 25 अक्टूबर 1917 से बूढ़ा और उदास हो गया था, बड़ी-बड़ी जेबों वाली जैकेट, नीली पतलून और नए नरम जूतों में अपने पसंदीदा अंदाज़ में – आराम कुर्सी पर बैठा था. उसके पैरों के पास बेंच पर निकोल्का था माथे पर बालों की लट, करीब-करीब अलमारी तक पैर फैलाए, - डाइनिंग रूम छोटा था. पैरों में बकल्स वाले जूते.     

निकोल्का की सहेली, गिटार, हौले से और दबे-दबे सुर में : ट्रिन् ...अस्पष्ट ट्रिन्...क्योंकि अभी, देख रहे हैं ना, कुछ भी पता नहीं है. शहर में चिंता का वातावरण है, धुंधला. बुरा...

निकोल्का के कन्धों पर नॉनकमीशंड-ऑफिसर वाले सफ़ेद धारियों वाले फीते हैं, और बाईं आस्तीन पर तीन रंगों वाला नुकीला बैज है. (पहली स्क्वाड, पैदल, तीसरा विभाग. शुरू हो चुकी घटनाओं को देखते हुए चार दिनों से बन रही है.)     

मगर, इन सारी घटनाओं के बावजूद, डाइनिंग रूम में, सच कहें तो, बहुत अच्छा है. गर्माहट है, आरामदेह है, दूधिया रंग के पर्दे खिंचे हुए हैं. भट्टी भाइयों को गर्मा रही है, अलसाहट पैदा कर रही है.

बड़े ने किताब फेंकी, हाथ-पैर खींचे.

“तो, चल, “शूटिंग” बजा....   

ट्रिंग-ता-ताम...ट्रिंग-ता-ताम...

फैशनेबल जूते,

बिन-फुंदे की कैप.

आ रहे हैं इंजीनियर कैडेट्स! 

बड़ा गुनगुनाने लगता है. उसकी आंखें उदास हैं, मगर उनमें चिनगारी सुलग उठती है – नसों में – गर्मी. मगर धीमे, महाशय, धीमे, धीमे.

हैलो, दाच्निकी *(* दाच्निक - समर कॉटेज के निवासी – अनु,)

हैलो, दाच्नित्सी ...(समर कॉटेज की लड़कियां – अनु,)

गिटार मार्च कर रही है, तारों से कंपनी अवतरित होती है, इंजीनियर चल रहे हैं – आत् , आत् !

निकोल्का की आंखें याद कर रही हैं:

कॉलेज. प्लास्टर उखड़े अलेक्सांद्र के स्तम्भ, तोपें.

एक खिड़की से दूसरी खिड़की तक पेट के बल रेंगते हुए कैडेट्स, गोलियां चलाते हैं. खिड़कियों में मशीनगन्स.

सैनिकों के बादल ने कॉलेज को घेर लिया है, वर्दियों का बादल. क्या कर सकते हैं.

जनरल बगारोदित्स्की घबरा गया और उसने आत्मसमर्पण कर दिया, कैडेट्स के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. श-र्म-ना-क...      

नमस्ते, दाच्निकी,

नमस्ते, दाच्नित्सी,

शूटिंग तो हमारे यहाँ कब की शुरू हो गई.

 

निकोल्का की आंखें धुंधला गईं.

युक्रेन के लाल खेतों के ऊपर गर्मी के स्तम्भ हैं.

धूल में जा रही हैं धूल से सने कैडेट्स की कम्पनियाँ. था, यह सब था और अब नहीं रहा. शर्मिन्दगी. बकवास. 

एलेना ने परदे हटाये, और अँधेरे अंतराल में उसका लाल सिर प्रकट हुआ. भाईयों पर स्नेहभरी नज़र डाली और घड़ी पर - बेहद परेशान.

बात समझ में आ रही थी. तालबेर्ग, वाकई में कहाँ है? बहन परेशान हो रही है.

चाहती थी कि अपनी परेशानी छुपाये, भाईयों के साथ गाये, मगर अचानक रुक गई और अपनी उंगली उठाई.

“रुको, सुन रहे हो?”

कंपनी ने सातों तारों पर कदम रोक दिए : रु-को! तीनों गौर से सुनाने लगे और उन्हें यकीन हो गया – तोप के गोले. भारी, दूर और घुटी-घुटी आवाज़. एक और बार: बू-ऊ...: निकोल्का ने गिटार रख दी और फ़ौरन उठा, उसके पीछे-पीछे, कराहते हुए अलेक्सेइ भी उठा.

ड्राइंग रूम में, प्रवेश कक्ष में बिलकुल अन्धेरा था. निकोल्का कुर्सी से टकराया. खिड़कियों से दिखाई दे रहा था वास्तविक ओपेरा – “क्रिसमस की पूर्व संध्या” – बर्फ और रोशनियाँ. थरथरा रही हैं और टिमटिमा रही हैं. निकोल्का खिड़की पर झुका. आंखों से गर्म धुंध और कॉलेज गायब हो गए, आंखों में – अत्यंत तनाव भरी आवाज़ परावर्तित हो रही है. कहाँ? अपने अंडर-ऑफिसर वाले कंधे उचकाए.

“शैतान जाने. लगता तो ऐसा है, जैसे स्वितोशिनो के पास गोली-बारी हो रही है.

अजीब बात है, इतने नज़दीक तो नहीं हो सकती.”

अलेक्सेइ अँधेरे में, और एलेना खिड़की के पास, और दिखाई दे रहा है कि उसकी आंखें काली-भयभीत हैं. इसका क्या मतलब है, कि ताल्बेर्ग अभी तक नहीं आया है? बड़ा भाई उसकी परेशानी को समझ रहा है और इसलिए एक भी लब्ज़ नहीं कहता, हाँलाकि उसका दिल बेतहाशा कुछ कहना चाह रहा है. स्वितोशिनो में. इसमें संदेह की कोइ बात हो ही नहीं सकती.

शहर से बारह मील की दूरी पर गोलियां चल रही हैं, उससे दूर नहीं. बात क्या है?

निकोल्का ने खिड़की का हैंडल पकड़ा, दूसरे हाथ से कांच दबाया, जैसे उसे दबाकर बाहर निकलना चाहता है, और उस पर अपनी नाक दबाई.

“मैं वहाँ जाना चाहता हूँ. पता करना चाहता हूँ, कि बात क्या है...”

“वहाँ पर बस तुम्हारी ही कमी थी...”

एलेना परेशानी से बोल रही है. “कैसा दुर्भाग्य है. पति को लौटना था, सुन रहे हो, - ज़्यादा से ज़्यादा, आज दिन के तीन बजे तक, और अब दस बज गए हैं.”

चुपचाप डाइनिंग रूम में लौट आये. गिटार उदासी से खामोश है. निकोल्का किचन से खींचते हुए समोवार लाता है, जो गुस्से से गा रहा है और थूक रहा है. मेज़ पर बाहर से नाज़ुक फूलों वाले और भीतर से सुनहरे कप हैं, विशेष, लहरियेदार स्तंभों जैसे. माँ, आन्ना व्लादीमिरव्ना के ज़माने में यह ख़ास अवसरों पर निकाला जाने वाला ‘सेट था, मगर अब बच्चे हर रोज़ उसका इस्तेमाल करते. मेज़पोश, गोलियों और इस सारी थकावट, परेशानी और बकवास के बावजूद, सफ़ेद और कलफ किया हुआ था.

ये एलेना के कारण था, जो किसी और तरह से कर ही नहीं सकती थी, ये था अन्यूता के कारण, जो तुर्बीनों के घर में बड़ी हुई थी. मेज़पोश की किनार चमक रही थी, और दिसंबर में भी, अभी, मेज़ पर, मटमैले, स्तम्भ जैसे फूलदान में नीले हायड्रेन्जिया के फूल और दो उदास और मरियल गुलाब थे, जो जीवन की सुन्दरता और चिरंतनता में विश्वास प्रकट कर रहे थे, बावजूद इसके कि शहर की ओर आने वाले रास्तों पर चालाक दुश्मन है, जो, शायद, इस बर्फीले, ख़ूबसूरत शहर के टुकड़े-टुकड़े कर दे और चैन के टुकड़ों को अपने जूतों तले कुचल दे. फूल. फूल – भेंट थी एलेना के वफादार प्रशंसक, गार्ड्स के लेफ्टिनेंट लिअनीद यूरेविच शेर्वीन्स्की की, मशहूर कन्फेक्शनरी की दुकान ‘मार्कीज़ की सेल्सगर्ल के दोस्त की, फूलों की आरामदेह दुकान ‘नाईस फ्लोरा की सेल्सगर्ल के मित्र की. हायड्रेन्जिया की छाया में नीले डिजाइन वाली प्लेट में कुछ सॉसेज के टुकडे, पारदर्शी प्लेट में मक्खन, टोस्ट वाली ट्रे में एक चिमटा और लम्बी सफ़ेद ब्रेड.

कुछ खाना और चाय की चुस्कियां लेना कितना अच्छा होता, अगर ये उदास परिस्थितियाँ न होतीं...

ऐह...

केतली के ऊपर ऊन का शोख रंगों वाला पंछी है, और चमचमाते समोवार के किनारे पर तुर्बीनों के तीन विकृत चहरे परावर्तित हो रहे हैं, और निकोल्का के मोमून जैसे गाल. 

एलेना की आंखों में पीड़ा है. और आग के कारण लाल प्रतीत होती लटें, झूल रही थीं.

अपनी गेटमन की कैश-ट्रेन में ताल्बेर्ग कहीं फंस गया था और पूरी शाम बर्बाद कर दी . शैतान जाने, कहीं उसके साथ, कुछ हो तो नहीं गया?...

भाई सुस्ती से ब्रेड खा रहे हैं. एलेना के सामने ठंडी हो चुकी चाय का कप और “सैनफ्रांसिस्को के महाशय” पड़े थे. धुंधलाई आंखें, बिना देखे, शब्दों पर नज़र डालती हैं:

“...अन्धेरा, महासागर, बवंडर.”

एलेना पढ़ नहीं रही है.

निकोल्का से, आखिरकार, रहा नहीं गया:

“मैं जानना चाहूंगा कि इतने निकट क्यों गोलियां चल रही हैं? ऐसा तो नहीं हो सकता, कि...”

उसने खुद ही अपनी बात काटी और हाव-भाव करते हुए समोवार में विकृत रूप में नज़र आया.

अंतराल. घड़ी की सुई दसवें मिनट को पार कर रही है और – टोंक-टांक – सवा दस की ओर जा रही है.

“गोलियां इसलिए चल रही हैं, क्योंकि जर्मन - कमीने हैं,” बड़ा वाला अचानक बुदबुदाया.

एलेना सिर उठाकर घड़ी की ओर देखती है और पूछती है:

“कहीं, कहीं, वे हमें किस्मत के भरोसे तो नहीं छोड़ देंगे?” उसकी आवाज़ में पीड़ा थी.

भाई, जैसे किसी कमांड से, सिर घुमाते हैं और झूठ बोलने लगते हैं.

“कुछ भी पता नहीं है,” निकोल्का कहता है और एक टुकड़ा चबाता है.

“यही तो मैंने कहा, हुम्...अंदाज़ से. अफवाहें.”

“नहीं, अफवाहें नहीं हैं,” एलेना ने ज़िद्दीपन से जवाब दिया, “ये अफवाह नहीं, बल्कि हकीकत है; आज शिग्लोवा को देखा, और उसने बताया कि बरद्यान्का से दो जर्मन बटालियंस वापस लौटाई गई हैं.”

“बकवास.”

“खुद ही सोचो,” बड़ा भाई शुरुआत करता है, “ क्या इसमें कोई मतलब है कि जर्मन इस बदमाश को शहर के पास आने देंगे? सोचो, आँ? ज़ाती तौर पर मैं इस बात की कल्पना नहीं कर सकता, कि वे उसके साथ उसके साथ एक मिनट भी कैसे रहेंगे. पूरी तरह बकवास. जर्मन और पित्ल्यूरा. वे खुद ही तो उसे डाकू के अलावा कुछ और नहीं कहते. क्या मज़े की बात है.”

“आह, तुम क्या कह रहे हो. अब मैं जर्मनों को जान गई हूँ. खुद ही कुछेक को देख चुकी हूँ लाल फीतों के साथ. और अन्डर-ऑफिसर, नशे में धुत, किसी औरत के साथ. औरत भी नशे में धुत  थी.

“तो, इससे क्या? अनैतिकता के कुछ नमूने जर्मन फ़ौज में भी हो सकते हैं.”

“तो, आपके हिसाब से, पेत्ल्यूरा नहीं आयेगा?

“हुम्...मेरे हिसाब से, ऐसा नहीं हो सकता.”

बिलकुल. मुझे एक प्याली और चाय दो, प्लीज़. तुम परेशान न हो. जैसा कहते हैं, शान्ति बनाए रखो.”

“मगर, ऐ खुदा, सिर्गेइ कहाँ है? मुझे पक्का यकीन है कि उनकी ट्रेन पर हमला हुआ है और...”

“और क्या? अरे, बेकार में क्या सोच रही हो? वह लाईन पूरी तरह खाली है.”

“फिर वह क्यों नहीं आया?

“ओह, खुदा! तुम खुद ही जानती हो कि कैसा सफ़र है. हर स्टेशन पर, शायद, चार-चार घंटे खड़े रहे होंगे.”

“क्रान्तिकारी सफ़र. एक घंटा चले - दो घंटे रुके.”

एलेना ने गहरी सांस लेकर घड़ी की तरफ देखा, कुछ देर खामोश रही, फिर बोली:

“खुदा, खुदा! अगर जर्मनों ने यह नीच हरकत न की होती, तो सब कुछ बढ़िया होता. उनकी दो रेजिमेंट्स ही काफी थीं, तुम्हारे इस पेत्ल्यूरा को मक्खी की तरह मसलने के लिए. नहीं, मैं देख रही हूँ कि जर्मन कोई दुहरी घिनौनी चाल चल रहे हैं. और फिर वे  शेखी मारने वाले अलाईज़ (सहयोगी-अनु.) कहाँ हैं? ऊ-ऊ, कमीने. वादा करते रहे, करते रहे...”

समोवार, जो अब तक खामोश था, अकस्मात् गा उठा, और भूरी राख से ढंके कोयले, बाहर ट्रे में गिर गए. भाईयों ने अनिच्छा से भट्टी की तरफ देखा.

जवाब – ये रहा. फरमाइए:

“सहयोगी – कमीने है,

घड़ी की सुई पन्द्रहवें मिनट पर रुकी, घड़ी ने जोरदार आवाज़ में घर्र-घर्र की एक घंटा बजाया, और तभी प्रवेश कक्ष की छत के नीचे एक जोरदार, बारीक आवाज़ ने घड़ी को जवाब दिया.

“ थैंक्स गॉड, ये सिर्गेइ है,” – बड़े वाले ने खुशी से कहा.

“ये तालबेर्ग है,” निकोल्का ने पुष्टि की और दरवाज़ा खोलने के लिए भागा.

एलेना गुलाबी हो गई, उठकर खड़ी हो गई.

 

*

 

मगर ये तालबेर्ग नहीं निकला. तीन दरवाज़े भड़भड़ाये, और सीढ़ियों पर निकोल्का की चकित आवाज़ खोखलेपन से सुनाई दी. जवाब में एक आवाज़. आवाजों के पीछे-पीछे सीढ़ियों पर नाल जड़े जूते और राईफल के कुंदे की आवाज़ आने लगी.

प्रवेश कक्ष का दरवाजा ठण्ड को भीतर लाया, और अलेक्सेइ और एलेना के सामने ऊँची, चौड़े कन्धों वाली, एडियों तक लंबा ओवरकोट पहनी और कंधे की सूती पट्टियों पर स्याही से बनाए गए तीन सितारों वाली लेफ्टिनेंट की आकृति प्रकट हुई. हुड को बर्फ ने ढांक लिया था, और कत्थई संगीन वाली भारी राइफल ने पूरे प्रवेश कक्ष को घेर लिया.       

“नमस्ते,” आकृति भर्राई आवाज़ में गा उठी और उसने अकड़ी हुई उँगलियों से हुड को खींचा.

 “वीत्या!”

निकोल्का ने आकृति को सिरे खोलने में मदद की, हुड नीचे फिसल गया, हुड के नीचे ऑफिसर वाली कैप का फीता दिखाई दिया, जिस पर काला पड गया बैज था, और विशाल कन्धों पर लेफ्टिनेंट विक्तर विक्तरविच मिश्लायेव्स्की का सिर दिखाई दिया. ये सिर बेहद ख़ूबसूरत था, प्राचीन, असली प्रजाति के विचित्र और दुखी और आकर्षक सौन्दर्य और उसके विनाश का प्रतीक. खूबसूरती विभिन्न रंगों की, साहसी आंखों में, लम्बी पलकों में. नाक तोते जैसी, होंठ गर्वीले, माथा सफ़ेद और साफ़, बिना किसी विशेष निशान के. मगर मुँह का एक कोना दयनीय रूप से लटका हुआ था, और ठोढ़ी इस तरह तिरछी कटी हुई थी, मानो किसी शिल्पकार पर, जो सामंती चेहरा गढ़ रहा हो, अचानक एक जंगली कल्पना सवार हो जाए मिट्टी की सतह को काटने और साहसी चेहरे पर छोटी सी, अजीब जनाना ठोढ़ी बनाने की.

“तुम जहाँ से आ रहे हो?

“कहाँ से?

“सावधानी से,” कमजोर आवाज़ में मिश्लायेव्स्की ने जवाब दिया, “झटको नहीं. उसमें वोद्का की बोतल है.”

निकोल्का ने सावधानी से भारी ओवरकोट टांग दिया, जिसकी जेब से अखबार में लिपटी बोतल का सिर झाँक रहा था. इसके बाद हिरन के सींगों वाले रैक को हिलाते हुए लकड़ी के खोल में रखी हुई भारी पिस्तौल टांगी. सिर्फ तभी मिश्लायेव्स्की एलेना की ओर मुडा, उसका हाथ चूमा और बोला:

“ ‘रेड टेवर्न’ से. ल्येना, आज की रात गुजारने की इजाज़त दो. घर तक नहीं जा पाऊंगा.”

“आह, माय गॉड , बेशक.”

मिश्लायेव्स्की अचानक कराहा, उँगलियों पर फूंक मारने की कोशिश करने लगा, होंठ उसका साथ नहीं दे रहे थे. सफ़ेद भौहें और तुषार के कारण सफ़ेद पड गया, कटी हुई मूछों का मखमल पिघलने लगा, चेहरा गीला हो गया. बड़े तुर्बीन ने उसका फ़ौजी कोट खोला, सिलाई पर हाथ फेरते हुए गंदी कमीज़ बाहर खीची.

“ओह, बेशक...भरा है...जुएँ रेंग रही हैं.”

“ तो,” घबराई हुई एलेना परेशान हो गई, पल भर के लिए ताल्बेर्ग को भूल गई, “निकोल्का, वहाँ किचन में लकडियाँ हैं. फौरन बॉयलर गरम करो, अफसोस है, कि अन्यूता को छुट्टी दे दी. अलेक्सेइ उसका कोट निकालो, जल्दी से.

डाइनिंग हॉल में खूब कराहते हुए मिश्लायेव्स्की टाईल्स वाली भट्टी के पास कुर्सी पर लुढ़क गया.

एलेना भागी और चाभियाँ खनखनाने लगी. तुर्बीन और निकोल्का घुटनों के बल खड़े होकर मिश्लायेव्स्की के पैरों से तंग फैशनेबल, पिंडलियों पर बकल्स वाले जूते, निकाल रहे थे.

“आराम से...ओह, आराम से...”

गंधाती हुई पैरों की धब्बेदार पट्टियां खोली गईं. उनके नीचे बैंगनी रंग के रेशमी मोज़े. ट्यूनिक को निकोल्का ने फ़ौरन ठन्डे बरामदे में डाल दिया – मर जाने दो जुओं को. मिश्लायेव्स्की सर्वाधिक गंदी  कमीज़ में जिस पर काले ब्रेसिज़ बंधे हुए थे, पट्टी वाली नीली ब्रीचेस में, दुबला और काला, बीमार और दयनीय लगने लगा. नीली पड़ गईं हथेलियाँ टाइल्स पर घूम रही थीं, उन्हें थपथपा रही थीं.

अफ...भया...

आया...गिरो...

प्यार कर बैठा...मई के...

“ये कमीने क्या कर रहे हैं?” तूर्बीन चीखा. “क्या वे आपको फेल्ट बूट और भेड़ की खाल का कोट नहीं दे नहीं दे सकते थे?’”

“फे...ल्ट  बूट,” रोते हुए मिश्लायेव्स्की ने उसे चिढ़ाया, “फेल...”

गर्माहट में हाथों-पैरों को असहनीय दर्द काटे जा रहा था. किचन में एलेना के पैरों की आहट थम गई है, यह सुनकर मिश्लायेव्स्की आंसुओं के बीच तैश से चीखा:

बेतरतीब शराबखाना!

सिसकियाँ लेते हुए और कराहते हुए, वह नीचे गिर पडा और, मोजों पर उंगली गडाते हुए कराहा:

“निकालिए, निकालिए, निकालिए...”

मिथाइल की गंदी बू आ रही थी, बेसिन में बर्फ का पहाड़ पिघल रहा था, वोद्का के एक ही गिलास से लेफ्टिनेंट मिश्लायेव्स्की फौरन धुत् हो गया, आंखों में धुंद छा गई. 

“कहीं काटना तो नहीं पडेगा? गॉड...” आराम कुर्सी में डोलते हुए उसने कड़वाहट से कहा.

“अरे, क्या कह रहे हो, थोड़ा रुको. कोई बात नहीं...ऐसे...अंगूठा ठण्ड के मारे सुन्न हो गया है. ऐसे...

ठीक हो जाएगा. ये भी गुज़र जाएगा.”

निकोल्का उकडूं बैठकर साफ़, काले मोज़े उतारने लगा, और मिश्लायेव्स्की की लकड़ी जैसे सख्त हाथ, जो मुड़ भी नहीं रहे थे, रोएंदार स्वीमिंग गाऊन की आस्तीनों में घुस गए. गालों पर लाल धब्बे प्रकट हुए, और, मुँह बनाते हुए, साफ़ अंतर्वस्त्रों में बर्फ से जम गया लेफ्टिनेंट मिश्लायेव्स्की जैसे जीवित हो उठा.

कमरे में भयानक माँ की गालियाँ उछलने लगीं, जैसे खिड़की की सिल से ओले टकरा रहे हों.

दोनों आंखों को तिरछा करके नाक की ओर देखते हुए रेल के पहले दर्जे के डिब्बों में मौजूद हेडक्वार्टर्स के स्टाफ को गंदी-गंदी गालियाँ देता रहा, खासकर कर्नल श्योत्किन को, बर्फ को, पित्ल्यूरा को, और जर्मनों को, और बर्फीले तूफ़ान को और गालियों की बौछार ख़त्म हुई पूरे उक्रेन के चीफ कमांडर पर आकर जिस पर उसने अश्लील, सड़कछाप शब्दों की मार की.          

अलेक्सेइ और निकोल्का देख रहे थे, कि कैसे लेफ्टिनेंट गर्म होते हुए दांत किटकिटा रहा था, और बीच-बीच में चिल्लाते: “अच्छा-अच्छा”.

“चीफ कमांडर,? तेरी माँ!” – मिश्लायेव्स्की गरजा. – “घुड़सवार गार्ड? महल में? आ? और हमें भगाया, जैसे थे. आ? चौबीस घंटे बर्फ में और पाले में...खुदा! मैं सोच रहा था – सब ख़त्म हो जायेंगे...माँ के पास! दो-दो सौ गज की दूरी पर अफसर – इसे श्रृंखला कहते हैं? बिलकुल मुर्गियों की तरह, बस काट ही दिए जाते!

“रुको,” गालियों से बौखला गए तुर्बीन ने पूछा, “तुम बताओ, टेवर्न के पास कौन था?”

“आह!” मिश्लायेव्स्की ने हाथ हिलाया. “कुछ भी नहीं समझोगे! क्या तुम जानते हो, कि टेवर्न के पास हम कितने लोग थे? चालीस आदमी.            

ये बदमाश आता है – कर्नल श्योत्किन और कहता है (मिश्लायेव्स्की मुँह टेढा करता है, कर्नल श्योत्किन को प्रदर्शित करने की कोशिश करते हुए, जो उसकी घृणा का पात्र था, और घिनौनी, पतली और तुतलाती हुई आवाज़ में बोलने लगा):

“अफसर महाशयों, सारा शहर हमसे उम्मीद लगाए है. रूसी शहरों की मरती हुई माँ के विश्वास को सही साबित कीजिये, यदि दुश्मन प्रकट होता है, तो आक्रमण कीजिये, खुदा आपके साथ है! छह घंटे बाद डीटेचमेंट भेजूंगा. मगर विनती करता हूँ. कि कारतूस बचाइये...” – और अपने सहायक के साथ कार में भाग गया. और अन्धेरा, जैसे ज....में! बर्फ. सुईयों जैसी चुभ रही थी.”

“मगर वहाँ था कौन, या खुदा! पेत्ल्यूरा तो रेड टेवर्न में नहीं हो सकता था?”

“शैतान ही जाने! यकीन करोगे, कि सुबह तक हम बस पागल ही नहीं हुए. आधी रात से इंतज़ार कर रहे थे हम...डीटेचमेंट का...कोई अता-पता नहीं.  डीटेचमेंट का नाम नहीं. अलाव, ज़ाहिर है, जला नहीं सकते, गाँव बस दो मील की दूरी पर. टेवर्न – एक मील. रात को ऐसा आभास होता है : खेत सरसरा रहा है. लगता है – रेंग रहे हैं...तो, सोचता हूँ, कि हम क्या करेंगे?...क्या? राईफल फेंक देते हो, सोचते हो – गोली चलाएं या न चलाएं? एक लालच था. खड़े रहे, भेड़ियों जैसे विलाप करते हुए. चिल्लाते हो, - कतार में कहीं कोई जवाब देता है.

आखिर में मैं बर्फ खोदने लगा, बन्दूक के हत्थे से अपने लिए एक गढ़ा खोदा, बैठ गया और कोशिश करता रहा कि आँख न लग जाए : अगर सो गए तो – काम तमाम. और सुबह होते-होते मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ, ऐसा लग रहा था – कि ऊंघने लगा हूँ. पता है, किस चीज़ ने बचाया? मशीनगन्स ने. सुबह-सुबह सुनता हूँ, करीब डेढ़ मील की दूरी पर शुरू हो गया था! और वाक़ई में, सोचो, उठने का मन नहीं हो रहा था. मगर, तभी तोप गरजी.

उठा, पैर मन-मन भारी हो रहे थे, और सोच रहा था:

“मुबारक हो, पित्ल्यूरा आ गया है.” एक छोटा-सा घेरा बनाया, जिससे एक दूसरे को आवाज़ दे सकें.

ये फैसला किया : अगर कुछ हो जाता है, तो एक झुण्ड बनायेंगे, गोलियां चलाते रहेंगे और शहर की ओर पीछे हटेंगे. मारेंगे, तो मारेंगे. कम से कम सब एक साथ तो रहेंगे. और, सोचो, - सब शांत हो गया. सुबह तीन-तीन के गुटों में टेवर्न जाने लगे – गरमाने के लिए.

पता है, बदली वाली डीटेचमेंट कब आई? आज दोपहर में दो बजे. पहली स्क्वैड से करीब दो सौ कैडेट्स.

और, सोचो, बढ़िया ड्रेस पहने, - फर कैप पहने, फेल्ट के जूतों में, और मशीन गन स्क्वैड के साथ.  कर्नल नाइ-तूर्स की कमांड में.”

“आ! हमारा, हमारा!” निकोल्का चीखा.

“रुको ज़रा, कहीं वह बेलग्राद का हुस्सार तो नहीं?” अलेक्सेइ ने पूछा.

“हाँ, हाँ, हुस्सार... पता है, उन्होंने हमें देखा और बेहद घबरा गए:

बोले, “हम सोच रहे थे, कि आप लोगों की यहाँ दो कम्पनियां हैं, मशीन गन्स के साथ, आप डटे कैसे रहे?

पता चला कि वो फायरिंग, वो सिरिब्र्यान्का पर करीब एक हज़ार लोगों के गिरोह ने हमला कर दिया था. किस्मत से, उन्हें पता नहीं था कि वहाँ हमारी टुकड़ी थी, वर्ना सोचो, शहर का ये पूरा गिरोह यहाँ आ धमकता. किस्मत से, उनका वलीन्स्की-पोस्ट से संबंध था, - उन्हें बताया गया, और वहाँ से किसी बैटरी ने छर्रों की मार से उन्हें भगा दिया, तो, उनका जोश ठंडा पड़ गया, समझ रहे हो, हमला पूरा किये बगैर वे कहीं जहन्नुम में भाग गए.”

“मगर वो थे कौन? कहीं पेत्ल्यूरा तो नहीं? ये नहीं हो सकता.”

“आ, खुदा ही जाने. मेरा ख़याल है कि कोई दस्तयेव्स्की के स्थानीय किसान-ईश्वरीय पुरुष ही थे!...ऊ-ऊ...तेरी माँ!”

“अरे बाप रे!”

“हाँ..” सिगरेट चूसते हुए मिश्लायेव्स्की भर्राया, “खुदा की मेहेरबानी से हमें छोड़ दिया गया. गिना: हम अड़तीस आदमी थे.

आदाब अर्ज़ है : दो पाले की मार से मर गए थे.

काम तमाम. और दो को उठाया, टांगें काटनी पड़ेंगी...”

“क्या! मर गए?

“तो तुमने क्या सोचा? एक कैडेट और एक ऑफिसर. और पपेल्युखा में, जो टेवर्न के पास ही है, और भी ज़्यादा कमाल हो गया. मैं लेफ्टिनेंट क्रासिन के साथ वहाँ स्लेज लेने गया, ताकि पाला खा गए जवानों को ले जा सकें. गाँव तो जैसे बिलकुल मर गया था – एक भी इंसान नहीं.

तलाश करते रहे, आखिरकार, कोई बूढा, भेड़ की खाल का कोट पहने छड़ी के सहारे घिसटता हुआ आया.

ज़रा सोचो, उसने हमारी ओर देखा और खुश हो गया. मैंने फ़ौरन भांप लिया कि दाल में कुछ काला है.  सोचने लगा, ‘क्या हो सकता है?’ ये ईश्वरीय-बूढा क्या चिल्लाया: “लड़कों...जवानों...” मैंने भी उसी तर्ज़ पर जवाब दिया:

“नमस्ते, दद्दू. जल्दी से स्लेज दे.” उसने जवाब दिया: “नहीं है. अफसर पहले ही स्लेज पोस्ट पर भगा ले गया.”

मैंने क्रासिन को आंख मारी और पूछा: “अफसर? अच्छा. और तेरे सारे लडके कहाँ हैं?”

और बूढ़े ने बक दिया : “कब के पेत्ल्यूरा के पास भाग गए”.

? कैसी रही?

अंधेपन के कारण वह नहीं देख सका कि हमारी टोपियों के नीचे शोल्डर स्ट्रैप्स हैं, और हमें भी पेत्ल्यूरा के आदमी समझ बैठा. मगर, अब, समझ रहे हो, मैं अपने आप को रोक नहीं पाया....बर्फ...तैश में आ गया...लपक कर बूढ़े की कमीज़ इतनी ताकत से पकड़ ली कि उसकी रूह ही उछलकर बाहर निकलने को हो गई, और चीखा:

“पेत्ल्यूरा के पास भाग गए? और, अब मैं तुझे गोली मारता हूँ, तब तू समझेगा कि कैसे पेत्ल्यूरा के पास भागते हैं! तू भागेगा खुदा के पास, कुत्ते!”

“तो फिर, ज़ाहिर है, पवित्र किसान, बोने वाला और रक्षक ( मिश्लायेव्स्की ने भयानक गालियों की बौछार शुरू कर दी), दो ही पल में समझ गया.

बेशक, पैरों पर गिर कर चीखने लगा, “ओय, युवर ऑनर, मुझ बूढ़े को माफ़ कीजिये, मैं अंधा हूँ, बेवकूफ हूँ, घोड़े दूँगा, अभ्भी देता हूँ, सिर्फ मुझे मारिये नहीं!”

घोड़े भी मिल गए और स्लेज भी.

तो, शाम को पोस्ट पर पहुंचे. वहाँ क्या हो रहा था – कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.

पटरियों पर चार फ़ौजी बैटरियां देखीं, वैसी ही, बिना तैनात किये खड़ी थीं, लगता है, उनके पास गोले  ही नहीं थे. स्टाफ-ऑफिसर्स अनगिनत थे. मगर कोई भी कुछ भी नहीं जानता था. और ख़ास बात – मृतकों के लिए कोई जगह ही नहीं थी! आखिर में एक ‘फर्स्ट-एड’ वैगन दिखाई दी, यकीन करो, ज़बरदस्ती मुर्दों को उसमें ठेल दिया, वे नहीं ले जाना चाहते थे: “आप इन्हें शहर ले जाईये”.

अब तो हम बिफर गए. क्रासिन तो किसी ऑफिसर को गोली मारना चाहता था.

उसने कहा, “ये तो पेत्ल्यूरा वालों जैसी हरकतें हैं.” और भाग गया.

सिर्फ देर शाम को ही श्योत्किन की वैगन ढूंढ पाए. पहले दर्जे की, इलेक्ट्रिक...और, क्या सोचते हो? कोई एक बेवकूफ, अर्दली जैसा खड़ा है और किसी को भी अन्दर नहीं जाने दे रहा है. आ? “ कहता है, वे सो रहे हैं, किसी को भी भीतर छोड़ने की इजाज़त नहीं है.”

मैंने बन्दूक के हत्थे से उसे दीवार की तरफ सरकाया, और मेरे पीछे मेरे सभी साथी शोर मचाने लगे. सभी सभी डिब्बों से लोग मटर के दानों की तरह उछल कर बाहर आ गए.

श्योत्किन बाहर निकला और हमें शांत करने की कोशिश करने लगा: “आह, माय गॉड. ओह, बेशक. अभ्भी. ऐ अर्दली, सूप और कन्याक लाओ. हम अभी आपकी बदली करते हैं. पूरी छुट्टी. शानदार वीरता. आह, कितना नुक्सान हुआ, मगर क्या कर सकते हैं – निछावर हो गए महान कार्य के लिए. मैं इतना परेशान था...”    

और उसके मुँह से एक मील की दूरी तक कन्याक की बू आ रही थी. आ-आ-आ!” मिश्लायेव्स्की ने अचानक उबासी ली और उसका सिर झुक गया. जैसे नींद में बडबडा रहा हो:

“हमारी टुकड़ी को एक डिब्बा दिया और भट्टी भी...ओ-ओ! मैं खुशकिस्मत था. ज़ाहिर है, इस हंगामे के बाद उसने खुद को मुझसे अलग करने का निश्चय किया. “लेफ्टिनेंट, मैं तुम्हें शहर जाने का हुक्म देता हूँ. जनरल कर्तूज़ोव के स्टाफ में. वहाँ रिपोर्ट करें”. ए-ए-ए ! मैं रेलगाड़ी में...जम गया...तमारा फोर्ट...वोद्का...”

मिश्लायेव्स्की के मुँह से सिगरेट गिर गई, वह कुर्सी की पीठ से टिक गया और फ़ौरन खर्राटे लेने लगा.

“क्या बात है,” परेशान निकोल्का ने कहा.

“एलेना कहाँ है?” बड़े ने फ़िक्र से पूछा. “इसे तौलिया देना होगा, तुम उसे नहाने के लिए ले जाओ.”

एलेना इस समय किचन के पीछे वाले कमरे में रो रही थी, जहाँ छींट के परदे के पीछे, जस्ते के टब के पास, बॉयलर में बर्च की सूखी टहनियां जल रही थीं.

किचन की भर्राई हुई घड़ी ने ग्यारह बार घंटे बजाये. उसे मृत ताल्बेर्ग दिखाई दे रहा था. बेशक, धन राशि ले जा रही ट्रेन पर हमला हो गया था. पूरा रक्षक दल मारा गया और बर्फ पर खून और अवयव बिखरे पड़े हैं. एलेना आधे अँधेरे में बैठी थी, उलझे हुए बालों के मुकुट से लपटें गुज़र रही थीं, गालों पर आँसू बह रहे थे. मार डाला. मार डाला...

और घंटी की पतली थरथराहट पूरे घर में फ़ैल गई. एलेना तूफ़ान की तरह किचन से, अँधेरी लाइब्रेरी से, डाइनिंग हॉल में आई. रोशनी तेज़ हो गई. काली घड़ी ने घंटे बजाये, लड़खड़ाई और फिर से चलने लगी.               

मगर खुशी के पहले दौर के बाद निकोल्का और बड़ा भाई फ़ौरन ठंडे पड गए.

हाँ, खुशी तो एलेना के लिए ही ज़्यादा थी. तालबेर्ग के कन्धों पर लगे गेटमन की वार-मिनिस्ट्री के नुकीले बैजों ने भाइयों पर बुरा असर डाला था.

वैसे, इन बैजेस से भी पहले, एलेना की शादी के दिन से ही तुर्बिनों के जीवन के फूलदान में एक दरार पड़ गई थी, और अनजाने ही उसमें से काफी पानी बह गया था. बर्तन सूखा था. इसका प्रमुख कारण था जनरल स्टाफ के कैप्टन सिर्गेइ इवानविच तालबेर्ग की दुहरी परत वाली आंखों में....

एह-एह... चाहे जो भी हो, अभी पहली परत को आसानी से पढ़ा जा सकता था.

ऊपरी परत में थी मासूम मानवीय प्रसन्नता, गर्माहट, रोशनी और सुरक्षा में आने के कारण. मगर गहराई में – स्पष्ट चिंता दिखाई दे रही थी, और तालबेर्ग उसे अभी अभी अपने साथ लाया था. सबसे गहरी परत, बेशक, हमेशा की तरह छुपी हुई थी. मगर किसी भी हाल में, सिर्गेइ इवानविच के चेहरे से कुछ भी प्रकट नहीं हो रहा था.          

बेल्ट चौड़ी और मज़बूत. दोनों बैज – अकादमी का और विश्वविद्यालय का – एक जैसे चमक रहे हैं. काली घड़ी के नीचे दुबली-पतली आकृति पेंडुलम की भाँति घूम रही है.

तालबेर्ग बेहद ठण्ड खा गया था, मगर सबकी तरफ देखकर भलमनसाहत से मुस्कुराया. और इस भलमनसाहत में भी परेशानी स्पष्ट दिखाई दे रही थी.

निकोल्का ने अपनी लम्बी नाक से सूंघकर पहले इस बात पर गौर किया. तालबेर्ग, शब्दों को खींचते हुए, धीरे धीरे और प्रसन्नता से बता रहा था, कि कैसे उस ट्रेन पर जो प्रांत में धन ले जा रही थी, और जिसके स्टाफ में वह था, बरद्यान्का के पास, शहर से चालीस मील दूर – न जाने किसने हमला कर दिया था!

एलेना ने डर के मारे आंखें सिकोड़ लीं, उसके बैजेस से चिपक गई, भाई फिर से चिल्लाए “ओह-ओह”, मिश्लायेव्स्की मुर्दे की तरह पडा था, और अपने तीन सुनहरे दांत दिखाते हुए खर्राटे ले रहा था.

“आखिर कौन थे वे? पेत्ल्यूरा?

“अगर पेत्ल्यूरा होता,” मेहेरबानी से और साथ ही चिंता से मुस्कुराते हुए तालबेर्ग ने फरमाया, “तो मैं यहाँ खडा बातें न कर रहा होता...ए...आप लोगों के साथ. मालूम नहीं, कौन थे. हो सकता है, सिर्द्युकों का झुण्ड हो. डिब्बों में घुस गए, संगीनें घुमाने लगे, चिल्लाने लगे! किसकी ट्रेन है?” मैंने जवाब दिया: “सिर्द्युकों की,” वे पैर पटकते रहे, पटकते रहे, फिर मुझे कमांड सुनाई दी:

“उतर जाओ, लड़कों!” और सब गायब हो गए.

मेरा ख़याल है कि वे ऑफिसर्स को ढूंढ रहे थे, शायद, वे सोच रहे थे कि ट्रेन युक्रेन की नहीं, बल्कि ऑफिसर्स की है,” तालबेर्ग ने अर्थपूर्ण ढंग से निकोल्का की आस्तीन के फीते को देखा, घड़ी पर नज़र डाली और अचानक आगे कहा,

“एलेना, तुमसे कुछ बात करनी है...चलो...’   

एलेना जल्दी-जल्दी उसके पीछे तालबेर्ग वाले आधे हिस्से के शयनकक्ष में गई, जहाँ पलंग के पीछे वाली दीवार पर सफ़ेद दस्ताने पर बाज़ बैठा था, जहाँ एलेना की लिखने की मेज़ पर हरा लैम्प खामोशी से जल रहा था और लाल महोगनी के स्टैंड पर घड़ी को सहारा देते हुए, ताँबे के चरवाहे खड़े थे, जो हर तीन घंटे बाद फ्रांसीसी नृत्य की धुन बजाती थी.           

बड़ी कोशिश से निकोल्का ने मिश्लायेव्स्की को उठाया. वह चलते हुए लड़खड़ा रहा था, दो बार धडाम से दरवाज़े से चिपक गया और टब में सो गया. निकोल्का उसकी रखवाली कर रहा था, ताकि वह डूब न जाए.

बड़ा तुर्बीन, खुद भी न समझ पाते हुए अँधेरे ड्राइंगरूम में घूमता रहा, खिड़की से चिपक कर सुनता रहा: फिर से कहीं दूर, खोखलेपन से, जैसे रूई में लिपटे हों, और बिना नुक्सान पहुंचाए गोले गरजते रहे, कभी-कभी और दूर.

लाल बालों वाली एलेना फ़ौरन बूढ़ी हो गई और पगला गई. आंखें लाल. हाथ लटकाए वह अफसोस के साथ तालबेर्ग की बात सुन रही थी. स्टाफ की परेड की भाँति वह सूखेपन से उसके सामने खडा निष्ठुरता से कह रहा था:

“एलेना और कोई रास्ता नहीं है.”

तब एलेना ने अवश्यंभावी से समझौता करते हुए कहा:

“ठीक है, मैं समझ रही हूँ. तुम, बेशक सही हो. पाँच-छः दिन बाद, हाँ? हो सकता है हालात अभी भी बेहतर हो जाएँ?”

अब तालबेर्ग के लिए कठिन हो गया. उसने अपनी हमेशा की ख़ास मुस्कराहट को चेहरे से दूर हटा दिया. चेहरा बूढ़ा हो गया, और हर बिंदु एक सम्पूर्ण निर्णय को प्रकट कर रहा था. एलेना...एलेना...आह, अविश्वसनीय, कमजोर सी आशा...पांच...छः दिन...

और तालबेर्ग ने कहा:

“इसी पल जाना है. ट्रेन रात के एक बजे छूटेगी...”

आधे घंटे बाद बाज़ वाले कमरे में सब कुछ ऊपर-नीचे हो गया था. सूटकेस फर्श पर और उसका भीतरी ढक्कन खडा था. अचानक कमजोर हो गई, गंभीर एलेना, होठों के पास झुर्रियां लिए चुपचाप सूटकेस में कमीजें, अंतर्वस्त्र और तौलिये रख रही थी.

अलमारी के निचले खाने के पास घुटनों पर बैठा तालबेर्ग चाभी से खुडखुड कर रहा था. और फिर...फिर कमरे में इतना घिनौना लगने लगा, जैसे हर उस कमरे में लगने लगता है, जहाँ सामान पैक किये जाने की बेतरतीबी हो, और इससे भी बदतर, जब लैम्प का शेड खीच लिया गया हो. कभी नहीं. कभी भी लैम्प से शेड न खींचना! शेड पवित्र होता है. कभी भी चूहे की तरह खतरे से दूर अज्ञात की ओर न भागना. शेड के पास ऊंघो, पढो, - बवंडर को चिंघाड़ने दो, - इंतज़ार करो, जब तक कोई तुम्हारे पास नहीं आता.

मगर तालबेर्ग तो भाग रहा था.

बंद किये हुए भारी सूटकेस के पास बिखरे कागज़ के टुकड़ों को कुचलते हुए, अपने लम्बे ओवरकोट में  वह उठ खडा हुआ, कानों में सलीके से काले हेडफोन, गेटमन का भूरा नीला बैज और कमर में तलवार थी.      

शहर के दूर जाने वाली गाड़ियों के स्टेशन- 1 की पटरियों पर ट्रेन आकर खड़ी हो गई है – अभी बिना इंजन के, बिना सिर के कैटरपिलर (कमले) जैसी. ट्रेन में नौ डिब्बे हैं सफ़ेद इलेक्ट्रिक लाईट में चकाचौंध करते हुए. रात के एक बजे ट्रेन में जनरल वॉन बुसोव का हेडक्वार्टर स्टाफ जर्मनी जा रहा है. तालबेर्ग को ले जा रहे हैं : तालबेर्ग के संबंध निकल आये हैं... गेटमन की मिनिस्ट्री – एक फूहड़ और अश्लील छोटा-सा ऑपेरा है (तालबेर्ग को तुच्छता से, मगर दृढ़ता से व्यक्त करना अच्छा लगता था, जैसा कि, खुद गेटमन भी करता था). इसलिए भी फूहड़, क्योंकि...

“समझो ( फुसफुसाहट), जर्मन गेटमन को किस्मत के भरोसे पर छोड़ देंगे, और बहुत, बहुत मुमकिन है, कि पेत्ल्यूरा घुस आयेगा...और ये, पता है ना...” 

, एलेना जानती थी! एलेना अच्छी तरह जानती थी. सन् 1917 के मार्च में तालबेर्ग पहला था, - समझ रहे हैं, पहला , - जो मिलिट्री स्कूल में बांह पर चौड़ा लाल फीता बाँध कर आया था. यह आरंभिक दिनों में हुआ था, जब शहर के सारे ऑफिसर्स पीटर्सबुर्ग से प्राप्त समाचारों के बाद काष्ठवत् हो गए थे और कहीं दूर, अँधेरे गलियारों में चले गए थे, ताकि कुछ भी न सुनें. तालबेर्ग ने, कोई और नहीं, अपितु क्रांतिकारी कमिटी के सदस्य की हैसियत से प्रसिद्ध जनरल पित्रोव को गिरफ्तार कर लिया था. जब उल्लेखनीय वर्ष के अंत में शहर में अनेक अद्भुत् और विचित्र घटनाएं हुईं और उसमें कोई अजीब से लोग प्रकट हुए, जिनके पास जूते नहीं थे, मगर जिनकी पतलूनें काफ़ी चौड़ी थीं, जो भूरे फ़ौजी ओवरकोट के नीचे से दिखाई दे रही थीं. और इन लोगों ने घोषणा कर दी कि वे किसी भी हालत में शहर से फ्रंट पर नहीं जायेंगे, क्योंकि फ्रंट पर उन्हें करने के लिए कुछ नहीं है, कि वे यहीं, शहर में,  रहेंगे, तो तालबेर्ग चिढ़ गया और उसने रुखाई से कहा, कि ये वो नहीं है, जिसकी ज़रुरत है, घटिया ऑपेरा है. और वह काफ़ी हद तक सही साबित हुआ: वाकई में ये ऑपेरा ही निकला, मगर सीधा सादा नहीं, बल्कि बेहद खूनखराबे वाला. चौड़ी पतलून वालों को भूरी असंगठित फौजों ने दो मिनट में शहर से बाहर भगा दिया, जो कहीं जंगलों के पीछे से, मॉस्को की तरफ जाने वाले समतल मैदानों से आए थे. तालबेर्ग ने कहा था कि चौड़ी पतलूनों वाले लोग – साहसी थे, और उनकी जड़ें मोस्को में थीं, हाँलाकि ये जड़ें बोल्शेविकों की थीं.

मगर एक बार, मार्च में, शहर में भूरी पलटनों वाले जर्मन आये, और उनके सिरों पर धातु के कत्थई टोप थे, जो उनकी भालों से रक्षा करते थे, और हुस्सार ऐसी फर वाली टोपियों में थे, और ऐसे शानदार घोड़ों पर थे कि उन्हें देखते ही तालबेर्ग फ़ौरन समझ गया कि उनकी जड़ें कहाँ हैं. शहर के निकट जर्मन गोलों के कुछ भारी प्रहारों के बाद मॉस्को वाले कहीं भूरे जंगलों के पीछे मारे हुए जानवरों का मांस खाने गायब हो गए, और चौड़ी पतलून वाले जर्मनों के पीछे-पीछे वापस चले गए. ये बड़े आश्चर्य की बात थी. तालबेर्ग परेशानी से मुस्कुराया, मगर किसी से नहीं डरा, क्योंकि चौड़ी पतलूनों वाले जर्मनों की मौजूदगी में बेहद शांत थे, किसीको मारने की हिम्मत नहीं करते थे और खुद भी रास्तों पर कुछ झिझक के साथ ही चलते थे, और ऐसे मेहमानों की तरह प्रतीत होते थे, जिनको खुद पर विश्वास न हो. तालबेर्ग ने कहा कि उनकी कोई जड़ें नहीं हैं, और उसने करीब दो महीने कहीं भी काम नहीं किया.

एक बार निकोल्का तुर्बीन तालबेर्ग के कमरे में जाते हुए मुस्कुराया. वह बैठा था और एक बड़े कागज़ पर व्याकरण के कुछ सवाल लिख रहा था, और उसके सामने एक पतली, सस्ते भूरे कागज़ पर छपी हुई किताब पड़ी थी:

“इग्नाती पिर्पीला” – यूक्रेनी व्याकरण.

सन् 1918 के अप्रैल में, ईस्टर पर, सर्कस में धुंधले इलेक्ट्रिक बल्ब खुशी से भनभना रहे थे. और गुम्बद तक लोगों के कारण काला नज़र आ रहा था. एक चुस्त, फ़ौजी कतार में तालबेर्ग अरेना में खडा था और हाथों की गिनती कर रहा था – चौड़ी पतलून वालों का खात्मा - रहेगा उक्राईना, मगर उक्रेन ‘गेटमन का” – पूरे उक्रेन के गेटमन को चुना जा रहा था.    

“हम मॉस्को के खूनी कॉमिक ऑपेरा से सुरक्षित हैं,” तालबेर्ग ने कहा, वह घर के प्यारे, पुराने वालपेपर्स की पृष्ठभूमि में, गेटमन के विचित्र यूनिफ़ॉर्म में चमक रहा था. तिरस्कार से घड़ी का दम घुट गया: टोंक-टांक, और बर्तन से पानी बह गया.

निकोल्का और अलेक्सेइ को तालबेर्ग से कुछ नहीं कहना था. और बोलना भी बहुत मुश्किल होता, क्योंकि पोलिटिक्स के बारे में हर बात पर तालबेर्ग बहुत गुस्सा हो जाता और, ख़ास तौर से, उस समय, जब निकोल्का पूरी सादगी से पूछता, “मगर तुमने, सिर्योझा, मार्च में कहा था...”

फ़ौरन तालबेर्ग के ऊपरी, छितरे हुए, मगर मज़बूत और सफ़ेद दांत दिखाई देते, आंखों में पीली चिनगारियाँ दिखाई देतीं, और तालबेर्ग परेशान होने लगता.                                       

इस तरह अपने आप ही बातचीत का सिलसिला ही ख़त्म हो गया.

हाँ, कॉमिक ओपेरा...एलेना जानती थी की फूले-फूले बाल्टिक होठों पर इस शब्द का क्या मतलब था. मगर अब यह कॉमिक ओपेरा बुरे लोगों को धमका रहा था, न केवल चौड़ी पतलून वालों को, न मॉस्को के बोल्शेविकों को, न किसी ऐरे-गैरे इवान इवानविच को, बल्कि वह खुद सिर्गेइ इवानविच तालबेर्ग को धमका रहा था. हर इंसान का अपना सितारा होता है, यूँ ही नहीं मध्य युग में दरबारों के ज्योतिषी जन्मपत्रिकाएँ बनाया करते थे, भविष्य बताया करते थे. ओह, कितने बुद्धिमान थे वे! तो तालबेर्ग, सिर्गेइ इवानविच का सितारा अनुपयुक्त था, दुर्भाग्यपूर्ण था. तालबेर्ग के लिए अच्छा होता, यदि सब कुछ सीधे-सीधे, किसी विशेष रेखा में चलता रहता, मगर इस समय शहर की घटनाएं सीधी रेखा में नहीं चल रही थीं, वे खतरनाक मोड़ ले रही थीं, और बेकार ही में तालबेर्ग बूझने की कोशिश कर रहा था, कि क्या होगा. वह नहीं समझ पाया.

शहर से दूर, करीब डेढ़ सौ, या हो सकता है, दो सौ मील की दूरी पर सफ़ेद रोशनी से प्रकाशित पटरियों पर – एक सैलून-वैगन खड़ी है. वैगन में सफाचट दाढ़ी वाला फल्ली में दाने की तरह डोल रहा है, अपने क्लर्कों और एड्ज्युटेंट्स को डिक्टेशन लिखवा रहा है. अगर यह आदमी शहर में आता है, तो तालबेर्ग के लिए मुसीबत हो जायेगी, और वह आ सकता है! मुसीबत.

‘वेस्ती अखबार के उस अंक से सब परिचित हैं, कैप्टेन तालबेर्ग के नाम से भी, जिसने गेटमन को चुना था. अखबार में लेख था, सिर्गेइ इवानविच का, और लेख में थे ये शब्द:

“पेत्ल्यूरा – साहसी है, जो अपने कॉमिक ओपेरा से इस इलाके को विनाश की धमकी दे रहा है...”

“तुम्हें, एलेना, तुम खुद ही समझती हो, मैं तुम्हें भटकन और अनिश्चितता में नहीं ले जा सकता. है ना ?”

एलेना ने एक भी शब्द नहीं कहा, क्योंकि वह स्वाभिमानी थी.

“मेरा ख़याल है कि मैं बगैर किसी रुकावट के रुमानिया से होकर क्रीमिया और दोन तक पहुँच जाऊंगा. वोन बूसव ने मुझसे सहयोग करने का वादा किया है. मेरी सराहना की जाती है. जर्मनों का कब्ज़ा एक कॉमिक ओपेरा में बदल गया है. जर्मन जा रहे हैं. (फुसफुसाते हुए) मेरे हिसाब से, पेत्ल्यूरा भी जल्दी ही गिर जाएगा. वास्तविक ताकत दोन से आ रही है. और तुम जानती हो, कि जब अधिकारों और व्यवस्था की फ़ौज की रचना हो रही हो, तो मुझे अवश्य वहाँ होना चाहिए. वहाँ न  होने का मतलब – अपने ‘करियर को बर्बाद करना, तुम तो जानती हो कि देनीकिन मेरी डिवीजन का प्रमुख था. मुझे यकीन है, कि तीन महीने भी नहीं बीतेंगे, हद से हद – मई में, हम शहर आ जायेंगे. तुम किसी बात से न घबराना. तुम्हें किसी भी हाल में कोई नहीं छुएगा, और, बुरी से बुरी परिस्थिति में भी, तुम्हारे पास विवाह से पहले वाले कुलनाम का पासपोर्ट है. मैं अलेक्सेइ से कहूंगा कि तुम्हें अपमानित न होने दे.

एलेना हडबडा गई.

“ठहरो,” उसने कहा, - “आखिर भाईयों को अभी इस बारे में आगाह करना होगा कि जर्मन हमें धोखा दे रहे हैं ?”

तालबेर्ग लाल हो गया.

“बेशक, बेशक, मैं अवश्य...वैसे, तुम खुद ही उनसे कह देना. हाँलाकि इससे परिस्थिति में कोई ख़ास फर्क नहीं पडेगा.”

पल भर के लिए एलेना के मन में एक अजीब ख़याल कौंध गया, मगर उस पर विचार करने के लिए समय नहीं था : तालबेर्ग पत्नी का चुम्बन ले रहा था, और पल भर के लिए उसकी दो परतों वाली आँखों में कौंध गई – सिर्फ कोमलता.

एलेना बर्दाश्त न कर पाई और रो पडी, मगर चुपचाप, खामोशी से, - वह एक दृढ़ महिला थी, यूँ ही आन्ना व्लादीमिरव्ना की बेटी नहीं थी. फिर मेहमानखाने में भाईयों से बिदा ली गई. ताँबे के लैम्प से गुलाबी रोशनी निकल रही थी, जिसने पूरे कोने को भर दिया था.        

पियानो अपने ख़ूबसूरत दांत और फ़ाऊस्ट के नोट्स वहाँ दिखा रहा था, जहाँ संगीत की घनी काली लहरें उछल रही हैं, और रंगबिरंगा लाल दाढी वाला वलेन्तीन गा रहा है:

 

“बहन के लिए तुझसे विनती करता हूँ,

दया करो,, दया करो तुम उस पर!

तुम उसकी रक्षा करो.

तालबेर्ग को भी, जो भावनिक रूप से संवेदनशील नहीं था, इस पल काले तारों की और शाश्वत फाऊस्ट की याद आ गई. एह, एह...तालबेर्ग फिर कभी सर्वशक्तिमान ईश्वर की प्रशंसा में प्रार्थना नहीं सुन पायेगा, नहीं सुन पायेगा एलेना को शेर्विन्स्की के साथ बजाते हुए! फिर भी, जब तुर्बीन और तालबेर्ग दुनिया में नहीं रहेंगे, फिर से पियानो के सुर बजेंगे और रंगबिरंगा वलेन्तीन स्टेज पर आयेगा, बॉक्स में सेंट की खुशबू महक रही होगी, और घर में महिलाएं संगत करेंगी, रंगबिरंगी रोशनी से सजी, क्योंकि फाऊस्ट, सार्दाम के बढ़ई की तरह – पूरी तरह शाश्वत है.

तालबेर्ग ने वहीं, पियानो के पास सब कुछ कह दिया. भाई विनम्रता से खामोश रहे, वे कोशिश कर रहे थे कि त्योरी न चढ़ाएं. छोटा – स्वाभिमान के कारण, और बड़ा इसलिए, कि वह घटिया इन्सान था. तालबेर्ग की आवाज़ थरथराई:

“आप लोग एलेना की हिफाज़त करना,” तालबेर्ग की आंखों की पहली पर्त विनती से और परेशानी से देख रही थीं.     

वह हिचकिचाया, परेशानी से जेबी घड़ी पर नज़र डाली और बेचैनी से बोला: “समय हो गया.”

एलेना ने गर्दन में हाथ डालकर पति को अपनी ओर खीचा, जल्दी-जल्दी और टेढ़े ही उस पर सलीब का निशान बनाया और उसका चुम्बन लिया. तालबेर्ग ने दोनों भाइयों के गालों पर अपनी काली, ब्रश जैसी कटी हुई मूंछें चुभाईं. तालबेर्ग ने अपने पर्स में देखकर, बेचैनी से कागजों का बण्डल जांचा, छोटे वाले खाने में उक्रेनियन नोट्स और जर्मन स्टैम्प्स गिने, और मुस्कुराते हुए, तनाव से मुस्कुराते हुए मुड़ कर, निकल गया.

जिंग...जिंग...प्रवेश कक्ष में रोशनी हुई, फिर सीढ़ियों पर सूटकेस की खडखड़ाहट. एलेना ने रेलिंग पर झुककर आख़िरी बार टोपी का नुकीला सिरा देखा.

रात के एक बजे, पांचवे ट्रैक से, खाली मालगाड़ियों के कब्रिस्तानों से अटे अँधेरे से एक भूरी, मेंढक जैसी, बख्तरबंद ट्रेन निकली और फ़ौरन तेज़ गति पकड़कर, राखदानी में लाल रोशनी फेंकते हुए वहशीपन से चीखी. उसने सात मिनट में आठ मील पार कर लिए, वलीन्स्की पोस्ट पर आई, अपने हुड़दंग में खडखडाते, गरजते, और चकाचौंध करती रोशनियों से, गति को कम किये बिना, उछलते सिग्नलों से होकर मुख्य लाईन से एक किनारे को मुडी और, ठण्ड से जम गए कैडेट्स और अफसरों के मन में, जो पोस्ट पर ही डिब्बों में घुसे बैठे थे, या ड्यूटी कर रहे थे, धुंधली आशा और गर्व का भाव जगाते हुए, साहस से, किसी से भी डरे बिना, जर्मन सीमा की ओर चली गई. उसके पीछे दस मिनट बाद दर्जनों खिड़कियों से जगमगाती, भारी भरकम इंजिन वाली पैसेंजर ट्रेन पोस्ट से गुज़री.             

खंभों जैसे, भारी भरकम, आंखों तक ढंके हुए जर्मन-संतरियों की झलक दिखाई दी, उनकी काली, चौड़ी संगीनें चमक उठीं.

ठंड से ठिठुरते हुए स्विचमैन, देख रहे थे कि कैसे देर तक लम्बे डिब्बे जोड़ों पर खड़खड़ाते हैं,  कैसे खिड़कियां स्विचमैनों पर प्रकाश पुंज फेंक रही हैं. इसके बाद सब लुप्त हो गया, और कैडेट्स के दिल ईर्ष्या, कड़वाहट, और परेशानी से भर गए.

“ऊ...क..क..कमीने!...” सिग्नल के पास कोई कराहा, और डिब्बे पर दहकता हुआ बर्फीला तूफ़ान टूट पडा. उस रात पोस्ट उड़ गई.

इंजिन से तीसरे डिब्बे में, धारियों वाले परदों से ढंके कूपे में, जर्मन लेफ्टिनेंट के सामने विनम्रता और कृतज्ञतापूर्वक मुस्कुराते हुए तालबेर्ग बैठा था और जर्मन में बात कर रहा था.                 

“ओह, हाँ,” बीच बीच में मोटा लेफ्टिनेंट खींचता और सिगरेट चबाता.

जब लेफ्टिनेंट सो गया, सभी कूपे के दरवाज़े बंद हो गए और गर्म और चकाचौंध करते डिब्बे में रास्ते की एकसार घरघराहट आने लगी. तालबेर्ग बाहर कॉरीडोर में आया,  हल्का पीला परदा हटा दिया जिस पर “द. प. रे, मा.” और बड़ी देर तक अँधेरे में देखता रहा. वहाँ बेतरतीबी से चिंगारियां उछल रही थीं, बर्फ उछल रही थी, और सामने इंजिन इतनी भयानकता से चिंघाड़ रहा था, कि तालबेर्ग भी परेशान हो गया.

No comments:

Post a Comment

खान का अग्निकांड

  खान का अग्निकांड लेखक: मिखाइल बुल्गाकव  अनुवाद: आ. चारुमति रामदास    जब सूरज चीड़ के पेड़ों के पीछे ढलने लगा और महल के सामने दयनीय, प्रक...