७. आप्रवासियों की पीड़ा या सज्जनों जैसा
आतिथ्य
कोई भी कलम
उन अनगिनत पीडाओं का वर्णन नहीं कर सकती, जो कुलीन लार्ड के अतिथी के रूप में अभागे मूरों ने सही
थीं. क्या-क्या तो उन्होंने नहीं सहा! आप्रवासी क्वारंटाइन में उन्हें, सबसे पहले, सिर से पाँव तक
कार्बोलिक एसिड के गाढ़े घोल से धोया गया. ज़िंदगी की अंतिम सांस तक उनमें से कोई भी इस कार्बोलिक एसिड के हम्माम को नहीं भूल
पाया! इसके बाद उन सबको किसी बागड लगे हुए मैदान में खदेड़ा गया, जो गधों के बाड़े की याद
दिलाता था, जहाँ ये अभागे बेहद लम्बे समय तक रहे. क्वारंटाइन के अधिकारियों को
अच्छी तरह से समझा दिया गया कि अभागे भगोड़ों को उतना ही राशन दिया जाए कि वे भूख
से न मर जाएँ. मगर चूंकि इस नियम के अनुसार एकदम सही मात्रा का निर्धारण करना संभव
नहीं था (ऊपर से क्वारंटाइन में मौजूद हर कामगार के अपने रिश्तेदार और परिचित भी
थे), तो क्या इस बात से आश्चर्यचकित हुआ जा सकता है कि मूरों का करीब एक चौथाई भाग
खुदा को प्यारा हो गया.
आखिरकार, जब यह तय किया गया कि क्वारंटाइन
बाड़े में आप्रवासियों को पर्याप्त मात्रा में निर्जन्तुक कर दिया गया है, तो लार्ड ग्लिनर्वान
उतनी ही गंभीरता से उनके काम के बारे में प्रयास करने लगा.
“मुफ्त में
तो ये टोली हमारी रोटी नहीं खायेगी,” वह भुनभुनाया और क्वारंटाइन के बाद जीवित बचे सभी
मूरों को नई खुली ग्रेनाईट की खदान में पत्थर तोड़ने के लिए भेज दिया. यहाँ वे भैंसों
की नसों से बुने कोड़ों से लैस अनुभवी निरीक्षकों की देखरेख में मेहनत करते, अपने कौशल को निखारते.
No comments:
Post a Comment