भाग -२
द्वीप अग्नि ज्वालाओं में
६. रहस्यमय डोंगी
कुछ दिन और
बीते. और अचानक – जब पौ फट ही रही थी – यूरोपियन किनारे पर तैनात संतरियों ने सुबह
के झुटपुटे में कोई संदेहास्पद गतिविधि देखी और अलार्म-सिग्नल भेजा:
“क्षितिज पर
अनजान जहाज़!”
“लोंर्ड
ग्लिनर्वान ने दूरबीन लगाई और, सबके साथ किनारे पर आकर बड़ी देर तक निकट आते हुए काले
धब्बों को देखता रहा.
“समझ में नहीं
आ रहा है,” आखिरकार
जेंटलमेन ने कहा, “मगर ऐसा लगता है कि यह जंगलियों की डोंगियाँ हैं.”
“कडकडाहट और
बिजली,” अपनी
दूरबीन नीचे करते हुए मिशेल अर्दान चहका. “वाशिंगटन डॉलर के मुकाबले सन् १९२३ के खस्ताहाल
रूबल की शर्त लगाता हूँ कि ये मूर हैं!”
“हाँ, ऐसा ही है,” प्रोफ़ेसर पगानेल ने
पुष्टि की.
जब डोंगियाँ
किनारे के पास आईं, तो पता चला कि अर्दान और पगानेल सही थे.
“इस सबका
क्या मतलब है?” ज़िंदगी में पहली बार चरम आश्चर्य का अनुभव करते हुए
कुलीन लार्ड ने किनारे पर उतरे नाविकों से पूछा.
जवाब देने
के बदले अप्रत्याशित आगंतुक फूट-फूटकर रोने लगे. उनकी हालत इतनी बुरी थी कि देखने
से दया आती थी. जब मूर कुछ होश में आये और उन्होंने अपने आप को संभाला, वे कुछ कहने की स्थिति
में आये.
टूटे-फूटे, असंबद्ध शब्दों की इस
दास्तान से लाल द्वीप की घटनाओं की डरावनी तस्वीर सामने आई. इथोपियन्स के झुण्ड...घिनौने
उकसाने वालों ने इन्हें भड़काया और उन पर अत्याचार करने लगे...शर्मनाक मांगें : सभी
मूरों को – जहन्नुम में! ...रिकी-टिकी-तवी का सुसज्जित दंडात्मक अभियान चूर-चूर हो
गया...धूर्त कोकू-कोकी अपनी व्यक्तिगत डोंगी पर सबसे पहले भाग गया...दंडात्मक अभियान
का बचा-खुचा भाग रिकी-टिकी-तवी के नेतृत्व में, अपनी ज़िंदगी बचाने के लिए, इन जर्जर नौकाओं पर
सवार होने को बाध्य हुआ. उन्होंने महासागर पार किया और अपने पुराने परिचित – लॉर्ड
के पास शरण माँगने आये.
“एक सौ
चालीस शैतान और एक चुड़ैल!” अर्दान ने ठहाका लगाया. “वे यूरोप में छुपना चाहते
हैं...ऐसा ही लगता है – आँ?”
“और इस पूरी
फ़ौज को रखेगा कौन और खिलाएगा कौन?” ग्लिनर्वान डर गया.
“नहीं, नहीं, आपको अपने द्वीप लौट जाना चाहिए.”
“महामहिम, हम तो वहाँ अपनी नाक भी
नहीं घुसा सकते,” मूर बिसूरने लगे, “इथोपियन्स हम
सबको मार डालेंगे. और हमारी छत भी छिन गई है : हमारी विग्वाम राख और धुआँ बन गई
हैं. अगर इस कचरे से निपटने के लिए द्वीप पर आपकी सशस्त्र फौजें भेजी जाएँ तो...”
“इस सुझाव के
लिए आपका शुक्रिया,” लार्ड ने सूक्ष्म व्यंग्य से उनका प्रतिवाद किया. “बेवकूफ
समझ रखा है क्या,” उसने ब्रीफ़केस से संवाददाता के टेलीग्राम वाला अखबार
निकाल कर मूरों को दिखाया. “आपके यहां महामारी का तांडव हो रहा है, और आपके उस पूरे घटिया द्वीप के मुकाबले में मेरा एक-एक नाविक
ज़्यादा कीमती है.”
“ओय, कितना सही कहा है आपने, महामहिम ,” नए आप्रवासी
ग्लिनर्वान के सामने खूब गिडगिडाए. “सही है कि हम कौड़ी के लायक भी नहीं हैं. मगर
जहाँ तक प्लेग का सवाल है, तो मिस्टर संवाददाता ने जैसा है, वैसा एकदम सही लिखा है.
महामारी फ़ैल रही है और भूख भी...”
“अच्छा, अच्छा,” कुछ देर सोचने के बाद
लार्ड ने कहा, “तो, क्या करें...अच्छी बात
है, देखेंगे...”
और उसने भगोड़ों को हुक्म दिया:
“ चलो, सब लोग, मार्च टू
क्वारंटाइन!”
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