Wednesday, 3 August 2022

लाल द्वीप - ५

 ५. विद्रोह

इस बीच घटनाएं तेज़ी से आगे बढ़ती रहीं और, परिणाम स्वरूप द्वीप पर राजनीतिक परिस्थिति फिर से अत्यंत तनावपूर्ण हो गई. अपने शासन के पहले ही दिन कोकू-कोकी ने, इथोपियनों को खुश करने के लिए, उनके लाल रंग के सम्मान में, द्वीप का नाम बदल कर ‘लाल या किरमिजी द्वीप कर दिया. मगर इथोपियन्स इस गौरव के प्रति उदासीन रहे और उन पर इस नाम परिवर्तन का कोई प्रभाव न पडा, बल्कि इससे मूरों के बीच नाराज़गी फ़ैल गई.

दूसरे दिन कोकू-कोकी ने मूरों को खुश करने का फैसला किया और आधिकारिक रूप से उनमें से एक की, मतलब उसी रिकी-टिकी-तवी की, पुनर्स्थापित सुप्रीम कमांडर के पद पर नियुक्ति कर दी. मगर इससे वह मूरों को ज़रा भी खुश न कर सका, बल्कि उनके बीच ईर्ष्या और कलह उत्पन्न कर दिया, क्योंकि उनमें से हरेक इस पद को प्राप्त करना चाहता था. मगर इथोपियन समाज में एक मूर की पदोन्नति के समाचार से अप्रसन्नता फ़ैल गई.  

तब तीसरे दिन हमारे ‘हीरो ने खुद को खुश करने की ठानी और इस उद्देश्य से उसने खाली डिब्बों से एक नया मुकुट बनाया और उसे अपने सिर पर पहन लिया. मुकुट बहुत सुन्दर था और अविस्मरणीय सिसी-बुसी के शाही मुकुट से इतना मिलता-जुलता था जैसे पानी की दो बूंदें हों. मगर इस कारनामे का सभी ने विरोध किया : मूरों को यकीन था कि उनमें से शायद ही कोई ऐसे मुकुट के लायक था, और इथोपियन्स, जो प्रचुर मात्रा में अग्नि-जल के सेवन से हतोत्साहित हो चुके थे, इसमें फिर से राजतंत्र की बहाली को देख रहे थे. उनकी पीठों में यूँ ही सिर्फ इस एक याद से खुजली नहीं होने लगती थी, कि कैसे स्वर्गीय सिसी-बुसी, उसके प्रिय कथनानुसार, “उन्हें एक ही स्तर पर ले आया था.”  

फिर भी, जब तक अग्निजल पर्याप्त था, किसी भी तरह का विरोध या गुट गंभीरता से लीडर के अधिकार को चुनौती नहीं दे सकता था. याद कीजिये, कि जब द्वीपवासियों ने उसके प्रति वफादारी की शपथ ली थी, तब कोकू-कोकी ने समारोहपूर्वक नए शासन के कार्यक्रम के प्रमुख सिद्धांत की घोषणा की थी : “हरेक को ज़रुरत के मुताबिक़ अग्नि जल दिया जाएगा!” 

इसलिए कोकू-कोकी का प्रमुख तथा सर्वोच्च प्राथमिकता वाला काम था – तड़पते हुए लोगों के लिए अग्नि जल उपलब्ध करवाना. और यहीं वह असफल हो गया, क्योंकि घोषित कार्यक्रम को पूरा करने की स्थित में नहीं था. इसका कारण बड़ा मामूली था : अगर सभी अपनी आवश्यकता के अनुसार अग्नि जल प्राप्त कर सकते थे, तो ये आवश्यकताए दिन पर दिन बढ़ती ही गईं और लोग अतृप्त ही रहे, मगर अग्नि जल का भण्डार आये कहाँ से? बढ़ते हुए संकट से निकलने के लिए कोकू-कोकी ने साल भर की मक्के की फसल को अग्नि जल बनाने में इस्तेमाल करने का आदेश दे दिया. मगर यह भी ज़्यादा दिन नहीं चला और इस उपाय से इथोपियन्स के और मूरों के पेट को चोट पहुँची : फसल तो जल्दी से पी गए,  और अगर मूरों ने थोड़ी बहुत फसल बचा कर रखी थी, तो इथोपियन्स के पास न तो खाने के लिए कुछ बचा था, और न ही पीने के लिए, सिवाय बारिश के पानी और जंगली नारियल के. देश में सामान्य असंतोष बढ़ता जा रहा था और राजनीतिक परिस्थिति अपनी चरम सीमा तक पहुँच चुकी थी. शासक का दबदबा ख़त्म हो गया था और वह खुद भी अपने क्रुद्ध देशवासियों से बचने के लिए अपने विग्वाम में छुप जाता था, जहाँ पूरी निष्क्रियता से पडा रहता.        

और एक खूबसूरत दिन सुप्रीम सर्वोच्च कमांडर रिकी-टिकी-तवी के विग्वाम में अप्रत्याशित रूप से एक इथोपियन दूत प्रकट हुआ, किसी उकसाने वाले और कपटी की धूर्त आंखों वाला. इस समय कमांडर महत्वपूर्ण काम में व्यस्त था और वह किसी से मिलने की स्थिति में नहीं था: वह अग्नि जल पी रहा था और फ्राईड पोर्क को कुतर रहा था.        

“क्या चाहिए तुझे, इथोपियन थोबड़े?” अपने काम से हटकर उसने चिडचिडाहट से पूछा.

इथोपियन ने अपनी इस तारीफ़ को नज़र अंदाज़ कर दिया और सीधे मतलब की बात पर आ गया.

“तो, ये क्या बात हुई,” उसने अपनी शिकायतों का पुलिंदा खोला. “इस तरह से काम नहीं चल सकता. आपके लिए, मतलब, वोद्का और पोर्क, और हमारे लिए...इसका मतलब क्या हुआ – क्या फिर से पुराने ढर्रे पर?

“आह, ये बात है...तुझे भी, कहता है, पोर्क चाहिए?” उदासी से, मगर फिर भी स्वयँ पर नियंत्रण रखते हुए बूढ़े योद्धा ने पूछा.

“तो, और क्या? आखिर इथोपियन्स भी इंसान हैं!” इथोपियन प्रतिनिधि ने बेशर्मी से एक पैर से दूसरे पैर पर होते हुए, धृष्ठतापूर्वक जवाब दिया.  

पराक्रमी रिकी-टिकी-तवी इस बेशर्मी को और ज़्यादा बर्दाश्त न कर सका. शानदार योद्धा ने एक झटके में सूअर की टांग को पकड़ा, पीछे मुडा और पूरी ताकत से अभागे मेहमान के दांतों में उसे इस तरह घुसेड़ा कि चारों और की हर चीज़ उड़ने लगी : पोर्क से तेल का फव्वारा उछलकर चारों और उड़ा, इथोपियन के मुँह से – खून, और उसकी आंखों से आंसुओं के साथ हरी चिंगारियां बिखरने लगीं.

“भाग जा!” कमांडर भौंका और उसने बहस को ख़त्म कर दिया.

हम नहीं जानते कि उस बदनसीब इथोपियन उपद्रवी ने अपने लोगों के पास जाकर क्या किया, मगर यह बात अच्छी तरह मालूम है कि शाम होते-होते पूरा “लाल द्वीप” छेडी गई मधुमक्खियो के छत्ते की तरह भिनभिना उठा. और रात को पास से गुज़रते हुए युद्धपोत “चांसलर” पर अचानक दक्षिणी खाडी वाले भाग में दो स्थानों पर आग की लपटें दिखाई दीं. और युद्धपोत से हवा में रेडिओग्राम उड़ चला:

“द्वीप पर रोशनाई विराम शायद इथोपियन गधे फिर से बहक गए हैं विराम कैप्टेन हातेरस”.

अफसोस, बहादुर कप्तान गलती कर बैठा था. ये किसी त्यौहार की रोशनाई नहीं थी. ये विद्रोही इथोपियन्स के विग्वाम धू-धू करते हुए जल रहे थे, जिन्हें रिकी-टिकी-तवी के दंडात्मक दस्ते ने फूंक  दिया था.

सुबह तक ये अग्नि स्तम्भ धुएँ में बदल गए थे , और अब वे दो नहीं, बल्कि नौ हो गए थे. अगली रात को आग की बदहवास लपटें सोलह स्थानों पर चिंघाड़ रही थीं. पैरिस और लन्दन के, रोम और न्यूयॉर्क के, बर्लिन तथा अन्य शहरों के अखबार इन दिनों मोटी-मोटी, चिल्लाती हुई हेडलाइन्स से नमक-मिर्च लगा रहे थे:

“लाल-द्वीप पर आखिर हो क्या रहा है?

और फिर पूरी दुनिया उस दुर्दैवी टेलीग्राम से स्तब्ध रह गई, जो आखिरकार, अपनी कुशलता के लिए प्रसिद्ध “न्यूयॉर्क टाइम्स” के विशेष संवाददाता से प्राप्त हुआ था:

“आज छः दिनों से मूरों के विग्वाम जल रहे हैं विराम इथोपियन्स के बड़े-बड़े झुण्ड...(अस्पष्ट). धूर्त कोकू-कोकी ने कि...(आगे अस्पष्ट )”

और एक दिन बाद दुनिया एक सनसनीखेज़ टेलीग्राम से स्तब्ध रह गई, जो द्वीप से नहीं, बल्कि एक यूरोपियन बंदरगाह से आया था:

“इथोपियन्स ने भव्य विद्रोह कर दिया है विराम द्वीप जल रहा है विराम प्लेग की महामारी फ़ैल रही है विराम लाशों के पहाड़ विराम पाँच सौ एडवांस संवाददाता”.

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