15
शाम का समय था. ग्यारह बजने वाले
थे. शहर में हो रही घटनाओं के कारण सड़क, जो वैसे भी व्यस्त नहीं होती, हमेशा से काफ़ी पहले खाली हो गई थी.
हल्की बर्फ गिर रही थी, उसके फ़ाहे लयबद्ध
रूप से खिड़की के बाहर उड़ रहे थे, और फुटपाथ के पास अकासिया
की शाखाएं, जो गर्मियों में तुर्बीनों की खिड़कियों को ढांक
देती हैं, अपनी बर्फ की कंघियों के कारण अधिकाधिक झुकी जा
रही थीं.
ये दोपहर के खाने से शुरू हुआ था
और अब बुरी, दिल को चूसती हुई अप्रिय घटनाओं के साथ धुंधली शाम हो गई. बिजली, न जाने क्यों आधी ही रोशनी बिखेर रही थी, और वान्दा
ने दोपहर के खाने में भेजा परोसा था. वैसे, भेजा, खतरनाक किस्म का खाना है, और वान्दा के पकवान में
तो – बर्दाश्त से बाहर हो जाता है. भेजे से पहले सूप था,
जिसमें वान्दा ने वनस्पति तेल डाला था, और उदास वसिलीसा मेज़ से इस दर्दभरे ख़याल के
साथ उठ गया, जैसे उसने खाना ही न खाया हो. शाम को काफ़ी सारे
झंझट थे, और सभी अप्रिय, कठिन थे.
डाइनिंग रूम में खाने की मेज़ ऊपर टांगें किये पड़ी थी और ल्येबिद-यूर्चिक नोटों का
बण्डल फर्श पर पडा था.
“तू बेवकूफ़ है,” वसिलीसा ने बीबी
से कहा.
वान्दा का चेहरा बदल गया और उसने
जवाब दिया:
“मुझे पता था कि तू गंवार है, काफ़ी पहले से ही
पता था. पिछले कुछ समय से तो तेरी हरकतें सारी हदें पार कर गई हैं.
वसिलीसा का दिल पूरी शिद्दत से चाह
रहा था कि उसके मुँह पे पूरी ताकत से एक तिरछा झापड़ लगाए, जिससे वह उड़ कर
अलमारी के कोने से टकरा जाए. और फिर एक और, बार-बार उसे इस
तरह मारे कि ये हडीला,घिनौना प्राणी, खामोश न हो जाए, अपनी हार न मान ले. वह – वसिलीसा, आख़िर पस्त हो चुका है, आख़िर, वो, बैल की तरह काम करता है, और वह मांग करता है, मांग करता है, कि घर में उसकी बात सुनी जाए. वसिलीसा
ने अपने दांत किटकिटाए और खुद पर काबू किया, वान्दा पर टूट
पड़ना खतरे से खाली नहीं था, जैसा वह समझ रहा था.
“वैसा करो, जैसा मैं कहता
हूँ,” दांतों को
भींचते हुए वसिलीसा ने कहा, “समझने की कोशिश करो कि अलमारी सरका सकते हैं, तब क्या होगा? और ये तो किसी
के भी दिमाग में नहीं आयेगा. शहर में सभी लोग ऐसा ही करते हैं.”
वान्दा ने उससे माफी मांग ली, और वे दोनों मिलकर काम पर लग गए – मेज़ की भीतरी सतह पर पिनों से नोट
टांकने लगे.
जल्दी ही मेज़ की भीतरी सतह चमक उठी और जटिल नक्काशीदार रेशमी कालीन जैसी लगने लगी.
वसिलीसा, खून जैसा लाल चेहरा लिये, कराहते हुए उठा और उसने नोटों वाले क्षेत्र पर नज़र डाली.
“ ये सुविधाजनक नहीं है,’ वान्दा ने कहा, “ जब भी नोट की ज़रुरत हो, तब मेज़ को पलटना पडेगा.”
“तो पलट देना, हाथ तो नहीं टूट जायेंगे,” भर्राई हुई
आवाज़ में वसिलीसा ने जवाब दिया, “सब कुछ खो
देने के मुकाबले मेज़ पलटना ज़्यादा बेहतर है. सुना तुमने कि शहर में क्या चल रहा है? बोल्शेविकों से भी बदतर. कहते हैं, कि बड़े पैमाने पर तलाशी चल रही है, ऑफिसर्स को ढूंढ रहे हैं.”
शाम के ग्यारह बजे वान्दा किचन से
समोवार लाई और क्वार्टर की सारी बत्तियां बुझा दीं. अलमारी से बासी ब्रेड की थैली
और हरे पनीर का एक टुकड़ा निकाला. मेज़ के ऊपर लटकते तीन सितारों वाले झुम्बर के एक
सितारे में जल रहा बल्ब, धुंधली लाल रोशनी बिखेर रहा था.
वसिलीसा फ्रांसीसी ब्रेड का टुकड़ा
चबा रहा था, और हरे पनीर से उसकी आंखों में आँसू आ गए, जैसे
उसके दांत में भयानक दर्द हो रहा हो. उबकाई लाने वाला पाउडर हर निवाले के साथ मुँह
के बदले जैकेट पर और टाई के पीछे बिखर रहा था. यह न समझ पाते हुए कि उसे किस चीज़
से तकलीफ हो रही है, वसिलीसा कनखियों से ब्रेड चबाती हुई
बीबी को देख लेता था.
“मुझे ताज्जुब होता है, कि कितनी आसानी से
वे हर चीज़ से निकल जाते हैं,” वान्दा छत की ओर नज़र डालते हुए
कह रही थी, “मुझे यकीन था, कि उनमें से
किसी एक को तो मार ही डालेंगे. मगर नहीं, सबके सब वापस आ गए,
और अभी भी क्वार्टर ऑफिसर्स से भरा है...”
कोई और समय होता तो वान्दा के
शब्दों का वसिलीसा पर कोई परिणाम नहीं होता. मगर अभी, जब उसकी पूरी रूह
पीड़ा से जल रही थी, वे उसे असहनीय रूप से ओछे प्रतीत हुए.
“मुझे तुम पर अचरज होता है,” उसने एक ओर को
नज़र फ़ेरते हुए जवाब दिया, ताकि चिड़चिड़ाहट न हो, “ तुम अच्छी तरह जानती हो, कि असल में, उन्होंने ठीक ही किया था. किसी को तो शहर की रक्षा करनी थी इन (वसिलीसा
ने आवाज़ नीची कर ली) कमीनों से... और तुम बेकार ही में सोच रही हो कि सब कुछ आसानी
से ख़त्म हो गया...मेरा ख़याल है कि वह..”.
वान्दा ने एकटक उसकी ओर देखा और
सिर हिला दिया.
“मैं खुद, खुद ही सब समझ गई
थी...बेशक, वह ज़ख़्मी हो गया है...”
“तो, देखो, मतलब, खुश होने की कोई वजह ही नहीं है – ‘गुज़र गया, गुज़र
गया’...”
वान्दा ने अपने होंठ चाटे.
“मैं खुश नहीं हो रही हूँ, मैं सिर्फ कह रही
हूँ ‘गुज़र गया’, मगर मुझे यह जानने में दिलचस्पी है कि, अगर, खुदा न करे, हमारे यहाँ आ धमकें और, हाउसिंग कमिटी के प्रेसिडेंट की हैसियत से तुमसे पूछने लगे, कि आपके ऊपर
कौन रहता है? क्या वे गेटमन के पास गए थे? तो तुम क्या कहोगे?”
वसिलीसा ने नाक-भौंह सिकोड़ ली और
तिरछी निगाह से देखते हुए बोला:
“कहना होगा, कि वह डॉक्टर
है...आखिर, मैं कैसे जानता हूँ? कहाँ
से?”
“वही तो, वही तो, कहाँ से...”
इस शब्द के साथ ही प्रवेश कक्ष में
घंटी बजी. वसिलीसा पीला पड़ गया, और वान्दा ने अपनी हडीली गर्दन घुमाई.
नाक से सूं-सूं करते हुए वसिलीसा
कुर्सी से उठा और बोला:
“पता है? हो सकता है, अभी तुर्बीनों के पास भागकर उन्हें बुलाऊँ ?”
वान्दा जवाब भी नहीं देने पाई, क्योंकि उसी समय
घंटी दुबारा बजी.
“आह, खुदा,” वसिलीसा ने घबराहट से कहा, “नहीं, जाना होगा.”
वान्दा ने भय से चारों तरफ़ देखा और
उसके पीछे चली. साझे में खुलने वाला अपने क्वार्टर का दरवाजा खोला. वासिलीसा
कॉरीड़ोर में निकला, ठण्ड की महक आ रही थी, वान्दा का नुकीला चेहरा, उत्तेजित, चौड़ी आंखों से बाहर की ओर देख रहा था. उसके
सिर के ऊपर चमकदार प्याले में तीसरी बार गुस्से से घंटी चटचटाई.
पल भर को वसिलीसा के मन में यह
विचार दौड़ गया कि तुर्बीनों वाले कांच के दरवाज़े पर खटखटाए – हो सकता है, अभी-अभी कोई बाहर
गया हो, और डरने जैसी कोई बात न हो. और वह ऐसा करने से डर
गया. और अचानक: “तुमने दरवाज़ा क्यों खटखटाया ? आँ? क्या किसी
चीज़ से डर रहे हो?” – और, इसके अलावा, सचमुच में एक कमजोर, आशा जाग उठी कि हो सकता है, ये ‘वो’ न हों, बल्कि कोई...
“कौन है?” वसिलीसा ने
दरवाज़े के पास जाकर कमज़ोर आवाज़ में पूछा. फ़ौरन चाभी वाले छेद ने वसिलीसा के पेट
में भर्राई आवाज़ में जवाब दिया, और वान्दा के सिर के ऊपर बार-बार घंटी चटचटाने
लगी.
“खोल,” चाभी का छेद
भर्राया, “स्टाफ़ हेडक्वार्टर्स से हैं. तू दूर न हटना, नहीं तो दरवाज़े से गोलियां
चला देंगे...”
“आह, खुदा...” वान्दा ने आह भरी.
वसिलीसा ने मरियल हाथों से बोल्ट और भारी हुक हटा दिया. उसे पता भी नहीं
चला कि कब उसने कुंडी खोल दी.
“जल्दी...” चाभी के छेद ने कठोरता से कहा.
सड़क से भूरे आसमान के टुकडे, अकासिया
की किनार, और बर्फ के फ़ाहों से अन्धेरा वसिलीसा को ताक रहा था. कुल तीन आदमी अन्दर
आये, मगर वसिलीसा को
लगा कि वे बहुत सारे थे.
“माफ़ कीजिये... कैसे आना हुआ?”
“तलाशी के लिए,” पहले भीतर आये
हुए आदमी ने भेड़िये जैसी आवाज़ में जवाब दिया और फ़ौरन वसिलीसा पर लपक पड़ा. कॉरीडोर
मुड़ गया और प्रकाशित दरवाज़े में वान्दा का चेहरा पावडर से बेहद पुता हुआ प्रतीत
हुआ.
“तब, माफ़ कीजिये,
प्लीज़,” वसिलीसा की आवाज़ बेहद मरियल, एकसार लग रही थी, “हो सकता है, आपके पास हुक्मनामा हो? वैसे, मैं, एक शांतिप्रिय
नागरिक हूँ...पता नहीं, मेरे पास क्यों आये हैं? मेरे पास – कुछ नहीं है,” वसिलीसा ने बड़ी कोशिश से
उक्रेनी में जवाब देने की कोशिश की और कहा - नई.”
“खैर, हम देख लेंगे,”
पहले वाले ने जवाब दिया.
दरवाज़े में घुस आये लोगों के दबाव
में, मानो सपने में आगे
बढ़ते हुए, वसिलीसा ने मानो सपने में उन्हें देखा. वसिलीसा को
न जाने क्यों ऐसा लगा कि पहले आदमी की हर चीज़ भेड़िये जैसी थी. उसका चेहरा संकुचित
था, आंखें बारीक-बारीक, गहरी धंसी हुई, त्वचा भूरी-सी, मूंछे गुच्छों में बाहर निकल रही
थीं, और बिना हजामत किये गाल सूखी खाइयों जैसे धंसे हुए थे, वह कुछ अजीब भेंगेपन से देख रहा था, कनखियों से देख
रहा था और यहाँ, संकरी जगह में भी, यह दिखाने में कामयाब हो
गया था कि, वह अमानवीय, डुबकी-सी लगाती हुई चाल से चलता है, जो ऐसे प्राणी की होती है जिसे बर्फ और घास में चलने की आदत होती है. वह
भयानक और गलत भाषा में बोल रहा था – रूसी और उक्रेनी के शब्दों की खिचड़ी - ऐसी भाषा में जिससे शहर में रहने वाले
लोग, पदोल में रहने वाले, द्नेप्र के किनारे, जहाँ गर्मियों में घाट चर्खियों से गूंजता है, और
गोल-गोल घूमता है. जहाँ गर्मियों में फटेहाल लोग बेड़ों से तरबूज़ उतारते हैं...
भेड़िये के सिर पर टोपी थी, और नीली चिंधी, जिसपर सुनहरी चोटी टंकी हुई थी, बगल में लटक रही
थी.
दूसरा – भीमकाय, वसिलीसा के प्रवेश
कक्ष की लगभग छत तक पहुँच रहा था. उसके चहरे पर औरतों जैसा खुशनुमा गुलाबी रंग था, जवान, गालों पर
कोई बाल नहीं थे. उसके सिर पर टोपी थी, जिसके कान दीमक खा गई
थी, कन्धों पर भूरा ओवरकोट, और असामान्य रूप से छोटे पैरों
पर भयानक खराब एडियों वाले जूते थे.
तीसरा धंसी हुई नाक वाला था, जिसके किनारे पर
पीप भरी हुई पपड़ी थी, होंठ सिला हुआ और ज़ख़्मी था. उसके सिर
पर पुरानी अफसरों वाली टोपी थी लाल बैंड और बैज के निशान वाली, बदन पर दो पल्ले का सैनिकों वाला पुराना कोट था, ताँबे की, हरी पड़ गई बटनों वाला, टांगों पर काली पतलून, पैरों
में फूस के जूते, फूले-फूले, भूरे,
सरकारी मोजों के ऊपर पहने हुए. लैम्प के
प्रकाश में उसके चेहरे पर दो रंग नज़र आ रहे थे – मोम जैसा पीला और बैंगनी, आंखें दयनीय पीड़ा से देख रही थीं.
“देखेंगे, देखेंगे,” भेड़िये ने फिर कहा, “हुक्मनामा भी है.’
इतना कहकर उसने पतलून की जेब में
हाथ डाला, एक मुड़ा-तुड़ा कागज़ बाहर निकाला और झटके से वसिलीसा के सामने कर दिया.
उसकी एक आंख ने वसिलीसा के दिल को दहला दिया, और दूसरी, बाईं, भेंगी, तेज़ी से प्रवेश कक्ष में रखे संदूकों में
घुस गई.
मुड़े-तुड़े, ‘हेडक्वार्टर, प्रथम कज़ाक कंपनी’ के स्टाम्प वाले, कागज़ के चौकोर
टुकड़े पर बड़े-बड़े, एक तरफ को झुके हुए अक्षरों में कलम से लिखा था:
“अलेक्सेव्स्की ढलान पर मकान नं. 13 में रहने वाले
वसीली लीसविच के घर की तलाशी लेने का आदेश दिया जाता है. विरोध करने पर गोली मार
दी जाए.
स्टाफ हेडक्वार्टर प्रमुख
प्रस्तेन्का.
एड्ज्युटेंट मिक्लून”
नीचे बाएं कोने में अस्पष्ट नीली
मोहर थी.
वासिलीसा की आंखों में वॉलपेपर के
हरे गुलदस्ते कुछ उछले, और जब भेड़िया कागज़ वापस ले रहा था तो उसने कहा:
“माफ़ कीजिए, प्लीज़, मगर मेरे पास कुछ भी नहीं है...”
भेड़िये ने जेब से काली, अच्छी तरह तेल लगी
हुई ब्राउनिंग निकाली और उसे वसिलीसा की ओर मोड़ दिया. वान्दा हौले से चीखी: “आय”.
विकृत आदमी के हाथ में मशीन के तेल से चमचमाती, लम्बी और तेज़
ब्राउनिंग प्रकट हो गई. वसिलीसा ने अपने घुटने मोड़े और अपनी ऊंचाई से कुछ छोटा हो
गया. बिजली की रोशनी न जाने क्यों चमकदार-सफ़ेद होकर खुशी से भभक उठी.
“क्वार्टर में कौन है?” भेड़िये ने कुछ
भर्राई आवाज़ में पूछा.
“कोई नहीं है,” वसिलीसा ने सफ़ेद
पड़ गए होठों से जवाब दिया, “बस मैं और बीबी.”
“चलो, दोस्तों, - देखो, मगर फुर्ती से,” अपने
साथियों की ओर मुड़ते हुए भेड़िया भर्राया, “टाईम नहीं है.”
भीमकाय व्यक्ति ने फ़ौरन एक संदूक
झकझोरा, डिब्बे की तरह, और विकृत आदमी भट्टी की तरफ़ लपका.
रिवॉल्वर्स छुप गए. विकृत आदमी दीवार पर मुट्ठियों से खटखट कर रहा था, उसने एक
झटके में भट्टी का ढक्कन खोला और काले ढक्कन से हल्की गर्माहट की लहर बाहर आई.
“कोई हथियार?” भेड़िये ने पूछा.
“कसम से...माफ़ कीजिये, हथियार कैसे...”
“नहीं हैं हमारे पास,” एक ही सांस में
वान्दा की परछाई ने पुष्टि की.
“सच सच बता दो, वरना कभी देखा है, किसी आदमी को गोली मारते हुए?” भेड़िये ने ज़ोर देकर
कहा...
“ऐ ख़ुदा ...कहाँ से आये हथियार?”
अध्ययन कक्ष में हरा लैम्प जल उठा,
और अलेक्सांद्र-II ने अपनी फौलादी आत्मा की गहराई तक तैश में आकर तीनों देखा. अध्ययन कक्ष की
हरियाली में वसिलीसा ने ज़िंदगी में पहली बार महसूस किया कि तेज़ी से चकराते दिमाग
से साथ मूर्च्छा का पूर्वानुमान कैसे होता है. वे तीनों सबसे पहले वॉलपेपर्स की ओर
लपके. भीमकाय ने बुकशेल्फ से आसानी से, खिलौनों की तरह एक के
बाद एक किताबों के गट्ठे फेंकना शुरू कर दिया, और छहों हाथ दीवारों पर खटखट करते
हुए उन्हें टटोलने लगे...टुप्...टुप्... दीवार से खोखली आवाज़ आती रही. टुक्, अचानक
गुप्त स्थान से प्लेट ने जवाब दिया. भेड़िये की आंखों में खुशी चमक उठी.
“मैंने क्या कहा था?” वह बिना आवाज़ के
फुसफुसाया. भीमकाय ने अपने भारी पैरों से कुर्सी का चमड़ा फाड़ दिया, वह लगभग छत तक
ऊंचा हो गया, भीमकाय की उँगलियों के नीचे कुछ बजा, कुछ टूटा, और उसने दीवार से प्लेट बाहर खींच ली.
डोरी से बंधा हुआ पैकेट भेड़िये के हाथों में आ गया. वसिलीसा लड़खड़ाया और दीवार से
टिक गया. भेड़िया सिर हिलाने लगा और अधमरे वसिलीसा की तरफ देखते हुए बड़ी देर तक
हिलाता रहा.
“क्या रे तू, छूत के कीड़े,” वह कड़वाहट से कहने लगा, “ कैसा है तू? नहीं है, नहीं है, आह तू, कुत्ते की दुम. कहा कि नहीं है, और खुद ही दीवार
में सिक्के गाड़ दिए? तुझे तो मार ही डालना चाहिए!”
“क्या कर रहे हैं?” वान्दा चीखी.
वसिलीसा के साथ कोई अजीब बात हुई, जिसकी वजह से उस
पर अचानक भयानक हंसी का दौरा पडा, और यह हंसी भयानक थी,
क्योंकि वसिलीसा की नीली आंखों में भय उछल रहा था, और सिर्फ
होंठ, नाक और गाल हँस रहे थे.
“गौर फरमाइए, महानुभावों, कोई गलत काम तो किया नहीं था. यहाँ सिर्फ कुछ बैंक के कुछ कागजात हैं और
कुछ छोटी-मोटी चीज़ें हैं...पैसे तो कम हैं...कमाए हुए. वैसे भी, अब तो त्सार के ज़माने की मुद्राएँ बेकार हो चुकी हैं...
वसिलीसा बोल रहा था और भेड़िये की ओर
इस तरह देख रहा था, जैसे वह उसे भयानक खुशी प्रदान कर रहा हो.
“तुझे तो गिरफ़्तार करना चाहिए था,” भेड़िये ने
निष्कर्षात्मक ढंग से कहा, पैकेट हिलाया और उसे फटे हुए ओवरकोट की अंतहीन जेब में
डाल लिया. “चलो, साथियों, दराजों के
पास आओ.”
मेज़ की दराजों से, जिन्हें वसिलीसा
ने खुद ही खोल दिया था, कागजों के ढेर,
कुछ मुहरें, मुद्रित अंगूठियाँ,
कार्ड्स, पेन, पोर्टसिगार बाहर
गिरे. कागज हरे कारपेट और मेज़ के लाल कपडे
पर बिखर गए, कागज़, सरसराते हुए फर्श पर
गिर रहे थे. विकृत व्यक्ति ने कचरे की
बास्केट को उलट दिया. ड्राइंग रूम में जैसे अनमनेपन से दीवारों पर ऊपर-ऊपर टकटक
करते रहे. भीमकाय व्यक्ति ने कार्पेट खीँच लिया और फर्श पर पैर पटकने लगा, जिससे लकड़ी के फर्श पर मानो जलने के निशान पड़ गए. बिजली, जो रात में तेज़ हो गई थी, खुशनुमा प्रकाश बिखेर रही
थी, और ग्रामोफोन का भोंपू चमक रहा था. वसिलीसा तीनों के
पीछे पैरों को घसीटते हुए, एक पैर से दूसरे पर होते हुए चल
रहा था. वसिलीसा को एक नीरस शान्ति ने घेर लिया था, और उसके
विचार जैसे व्यवस्थित हो रहे थे. शयनकक्ष में अचानक – भगदड़ मच गई: शीशे वाली
अलमारी से कम्बलों, चादरों का ढेर बाहर आ गया, गददा सिर के बल खडा हो गया. भीमकाय व्यक्ति अचानक रुक गया, शर्मीली मुस्कराहट बिखेरते हुए नीचे झांकने लगा. अस्तव्यस्त पलंग के नीचे
से वसिलीसा के नए, पेटेंट चमड़े की नोक वाले, नर्म चमड़े के
जूते झाँक रहे थे. भीमकाय व्यक्ति हँस पडा, शर्माते हुए वसिलीसा की ओर देखने लगा.
“बहुत
प्यारे जूते हैं,” उसने बारीक आवाज़ में कहा, “और वे
मुझ पर खूब जचेंगे ना?”
वसिलीसा
सोच भी नहीं पाया था, कि उसे क्या जवाब दे, कि
भीमकाय व्यक्ति झुका और उसने प्यार से जूते उठा लिए. वसिलीसा सिहर गया.
“वे
शेवरॉन है, महाशय,” उसने कहा, खुद ही न
समझ पाते हुए कि क्या कह रहा है.
भेड़िया
उसकी तरफ़ मुड़ा, तिरछी आंखों में कटुतापूर्ण क्रोध तैर गया.
“खामोश, जूं के
अंडे,” उसने उदासी से कहा. “खामोश रहो!” अचानक चिड़चिड़ाते हुए उसने दुहराया, “तू तो हमारा
शुक्रिया अदा कर, कि खज़ाना छुपाने के जुर्म
में हमने तुझे चोर या डाकू की तरह गोली नहीं मार दी. तू चुप रह,” एकदम
पीले पड़ गए वसिलीसा की तरफ़ बढ़ते हुए और आंखों से भयानक चिंगारियां बरसाते हुए वह
कहता रहा. “चीज़ें जमा कर लीं, खा-खा के
थोबड़ा सूअर की तरह लाल बना लिया, और तू
क्या नहीं देख रहा है कि भले आदमी पैरों में क्या पहनते हैं? देख रहा
है? उसके पैर जम गए हैं, फटे हुए
हैं, वह खाईयों में तेरे लिए सड़ता रहा है, और तू
अपने क्वार्टर में बैठा था,
ग्रामोफोन सुनता रहा. ऊ-ऊ, तेरी तो
माँ को,” उसकी आंखों में वसिलीसा के कान पे झापड़ मारने की ख्वाहिश झलक उठी, उसने हाथ
हिलाया. वान्दा चीखी: “आप क्या...” भेड़िया सम्माननीय वसिलीसा को मारने की हिम्मत न
कर सका और सिर्फ उसके सीने पर मुट्ठी गड़ा दी. नुकीली मुट्ठी के प्रहार से तेज़ दर्द
और बेचैनी महसूस करते हुए विवर्ण वसिलीसा लड़खड़ा गया.
“तो ये है
क्रान्ति,” वसिलीसा ने अपने गुलाबी और सधे हुए दिमाग से सोचा, “अच्छी
है क्रान्ति. उन सबको तो लटका देना चाहिए था, मगर अब
देर हो चुकी है...”
“वसिल्को,
पहन ले,” भेड़िया प्यार से भीमकाय व्यक्ति से मुखातिब हुआ. वह स्प्रिंग वाले गद्दे
पर बैठ गया और उसने अपने गंदे जूते उतार दिए. वसिलीसा के जूते उसकी भूरी, मोटी
जुराबों पर नहीं आ रहे थे. “कजाक को मोज़े दो,” भेड़िये
ने कठोरता से वान्दा से कहा. वह फ़ौरन पीली अलमारी की निचली दराज़ के पास बैठ गई और
मोज़े बाहर निकाले. भीमकाय व्यक्ति ने अपनी लाल उँगलियों और काले फोड़ों वाले पैर
दिखाते हुए भूरी जुराबें निकाल फेंकी, और मोज़े चढ़ा लिए. मुश्किल से जूते पैरों में
चढ़े, बाएं जूते की लेस चर्र से टूट गई. भाव विभोर, बच्चों की तरह मुस्कुराते हुए, उसने बची
खुची लेस खींच कर बांधी और खडा हो गया. और, जैसे, क्वार्टर
में एक-एक कदम चलते हुए इन पाँचों विचित्र व्यक्तियों के बीच तनावपूर्ण संबधों में
कुछ टूट गया. सहजता आ गई. विकृत आदमी ने भीमकाय व्यक्ति के जूतों की ओर देखकर अचानक चुपके से वसिलीसा की पतलून निकाल
ली, जो बेसिन की बगल में कील पर लटक रही थी. भेड़िये ने सिर्फ एक बार वसिलीसा
पर संदिग्ध नज़र डाली, - कहीं वह कुछ कहेगा तो
नहीं, - मगर वसिलीसा और वान्दा ने कुछ भी नहीं कहा, और उनके
चेहरे एक जैसे सफ़ेद थे, बड़ी-बड़ी
आंखों वाले. शयन कक्ष रेडीमेड कपड़ों की दुकान के किसी कोने की तरह लग रहा था.
विकृत व्यक्ति सिर्फ धारियों वाले फटे कच्छे में खड़े-खड़े रोशनी में पतलून को देख
रहा था.
“महंगी
चीज़ है, मोटे ऊन की है...” उसने नकीली आवाज़ में कहा, नीली
कुर्सी पर बैठ गया, और पहनने लगा. भेड़िये ने
अपने गंदे कोट को वसिलीसा के भूरे जैकेट से बदल लिया और यह कहते हुए वसिलीसा को
कुछ कागज़ लौटाए: “ये कागज़ लीजिये, महाशय, हो सकता
है, ज़रुरत पड़े”. – मेज़ से ग्लोब के आकार की कांच की घड़ी उठाई, जिसमें
मोटे-मोटे, काले रोमन अंक चमक रहे थे.
भेड़िये ने
ओवरकोट खींच लिया, और ओवरकोट के नीचे से घड़ी
की टिक-टिक सुनाई दे रही थी.
“घड़ी ज़रुरत
की चीज़ है. बिना घड़ी के – जैसे बिना हाथ के,” वसिलीसा
के प्रति अधिकाधिक नर्म पड़ते हुए भेड़िया विकृत व्यक्ति से कह रहा था, “रात को
देख लो, कि कितने बजे हैं - इसके बिना तो
काम चल ही नहीं सकता.”
इसके बाद
सब चल पड़े और ड्राइंग रूम से होकर वापस अध्ययन कक्ष में आये. वसिलीसा और वान्दा साथ-साथ, खामोशी
से उनके पीछे-पीछे चल रहे थे. अध्ययन कक्ष में भेड़िया कनखियों से देखते हुए कुछ
सोचने लगा, फिर उसने वसिलीसा से कहा:
“आप, महाशय, हमें एक
रसीद दीजिये...(कोई ख़याल उसे परेशान कर रहा था, उसने
एकॉर्डियन की तरह माथा सिकोड़ लिया.)
“क्या?” वसिलीसा
फुसफुसाया.
“रसीद, कि आपने
हमें ये चीज़ें दी हैं,” भेडिये ने ज़मीन की तरफ़
देखते हुए समझाया.
वसिलीसा
के चेहरे का रंग बदल गया, उसके गाल
लाल हो गए.
“ऐसे
कैसे...मैं तो...(वह चिल्लाना चाहता था : “क्या, मैं रसीद
भी दूं?! - मगर उसके मुँह से ये शब्द ही नहीं निकले, बल्कि दूसरे ही शब्द निकले.)
आप... मतलब, आपको हस्ताक्षर करने चाहिए, ऐसा
कहें...”
“ओय, तुझे तो
कुत्ते की तरह मारना चाहिए. ऊ-ऊ, खून
चूसने वाले...मैं जानता हूँ कि तू क्या सोच रहा है. जानता हूँ. अगर तेरी हुकूमत
होती, तो तू हमें ख़त्म कर देता, कीड़ों के
समान. ऊ-ऊ, देख रहा हूँ, कि तुझसे
तो प्यार से बात ही नहीं की जा सकती. छोकरों, उसे
दीवार के पास खड़ा करो. ऊ. ऐसे मारूंगा...”
वह
क्रोधित हो गया और घबराकर अपने हाथ से वसिलीसा की गर्दन पकड़कर उसे दीवार से दबा
दिया, जिससे वसिलीसा फ़ौरन लाल हो गया.
“आय!”
वान्दा खौफ से चीखी और उसने भेड़िये का हाथ पकड़ लिया, “आप क्या
कर रहे हैं. मेहेरबानी कीजिये...वास्या, लिख दे, लिख
दे...”
भेड़िये ने
इंजीनियर का गला छोड़ दिया, और
चरचराहट के साथ, जैसे स्प्रिंग पर हो, कॉलर एक
ओर को उछल गई. वसिलीसा को खुद भी पता नहीं चला कि वह कैसे कुर्सी पर बैठ गया. उसके
हाथ कांप रहे थे. उसने नोटबुक से एक पन्ना फाड़ा, पेन को
स्याही में डुबोया. खामोशी छा गई, और
खामोशी में भेड़िये के ओवरकोट में कांच के ग्लोब की टिकटिक सुनाई दे रही थी.
“कैसे
लिखना है?” वसिलीसा ने कमजोर, भर्राई
हुई आवाज़ में पूछा.
भेड़िया
सोच में पड़ गया, आंखें झपकाने लगा.
लिखो...कजाक
डिविजन के स्टाफ हेडक्वार्टर के आदेशानुसार...चीज़ें...चीज़ें...इस प्रकार
से...हस्तांतरित कीं...”
“इस
प्रका...” किसी तरह वसिलीसा ने घसीटा और फ़ौरन चुप हो गया.
“तलाशी के
दौरान दीं. मुझे कोई शिकायत नहीं है. और हस्ताक्षर करो...”
अब
वसिलीसा ने बची-खुची हिम्मत बटोरी और आंखें चुराते हुए पूछा:
“मगर किसे?”
भेड़िये ने
संदेह से वसिलीसा को देखा, मगर अपने
गुस्से को दबाया और सिर्फ एक आह भरी:
“लिखो:
प्राप्त कीं ...अच्छी हालत में प्राप्त कीं निमालिका (उसने कुछ सोचा और विकृत
व्यक्ति की ओर देखा)...किरपाती और हेटमन उरागान.”
धुंधली
आंखों से कागज़ को देखते हुए, उसके
आदेशानुसार लिख दिया. लिखने के बाद, हस्ताक्षर के स्थान पर थरथराते हाथ से ‘वसिलीस’ लिख दिया, कागज़
भेड़िये की ओर बढ़ा दिया. उसने कागज़ लिया और गौर से उसे देखने लगा.
इसी समय
दूर, ऊपर वाली सीढ़ियों पर कांच के दरवाज़े खड़खड़ाने लगे, पैरों की आहट सुनाई दी
और मिश्लायेव्स्की की आवाज़ गूँजी.
भेड़िये का
चेहरा फ़ौरन बदल गया, काला पड़ गया. उसके साथी भी
हिल गए. भेड़िया फिर लाल हो गया और धीरे से चिल्लाया : “श्श” उसने जेब से ब्राउनिंग
निकाली और वसिलीसा की ओर तान दी, और वह
पीड़ा से मुस्कुराया. दरवाजों के पीछे, कॉरीडोर
में कदमों की आवाज, चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं. फिर बोल्ट, हुक, कुंडी
बजी – दरवाज़ा बंद हो गया. भागते कदमों की आवाज़, मर्दों
के हंसने की आवाज़ आई. इसके बाद कांच का दरवाज़ा खट्ट से बंद हुआ, धीमे होते हुए कदम
ऊपर चले गए, और सब कुछ शांत हो गया. विकृत आदमी प्रवेश कक्ष में गया, दरवाज़े
की तरफ़ झुका और ध्यान से सुनने लगा. जब वापस आया, तो उसने
अर्थपूर्ण दृष्टि से भेड़िये की ओर देखा, और सब, सिकुड़ते
हुए प्रवेश कक्ष में निकलने लगे. वहाँ, प्रवेश
कक्ष में, भीमकाय व्यक्ति ने तंग जूतों में अपनी उंगलियाँ हिलाईं और बोला;
“ठण्ड
लगेगी.”
उसने
वसिलीसा के गलोश पहन लिए.
भेड़िया
वसिलीसा की तरफ़ मुड़ा और आंखें घुमाते हुए नर्म आवाज़ में बोला:
“आप, ना,
महाशय...आप चुप ही रहना कि हम आपके पास आये थे. अगर हमारे बारे में किसीसे भी कुछ
कहा, तो हमारे छोकरे आपको मारेंगे. सुबह तक क्वार्टर से बाहर मत निकलना, नहीं तो
ख़तरे में पड़ जाओगे...”
“माफी
चाहते हैं,” लटकती हुई नाक वाला सड़ी हुई आवाज़ में बोला.
गुलाबी
भीमकाय ने कुछ नहीं कहा, उसने
सिर्फ सकुचाते हुए वसिलीसा की ओर देखा, और कनखियों से, खुशी से –
चमचमाते हुए गलोशों की ओर. वे वासिलीसा के दरवाजे से कॉरीडोर से होकर रास्ते वाले
दरवाज़े की ओर गए न जाने क्यों पंजों के बल, शीघ्रता
से, एक दूसरे को धकियाते हुए. कुण्डियाँ खड़खड़ाईं, काला आसमान झाँकने लगा, और
वासिलीसा ने ठन्डे हाथों से बोल्ट बंद कर दिए, उसका सिर घूम रहा था, और पल भर
के लिए उसे लगा, जैसे वह सपना देख रहा हो. उसका दिल डूबने लगा, फिर
जल्दी, जल्दी धड़कने लगा. प्रवेश कक्ष में वान्दा सिसक रही थी. वह संदूक पर गिरी
थी, दीवार पर सिर पटक रही थी,
मोटे-मोटे आंसू उसके चेहरे पर बह रहे थे.
“खुदा! ये
सब क्या है?...खुदा. खुदा. वास्या...दिन दहाड़े. ये क्या हो रहा है?...”
वास्या
उसके सामने पत्ते की तरह काँप रहा था, उसका
चेहरा विकृत हो गया था.
“वास्या,” वान्दा
चीखी, “पता है...ये कोइ स्टाफ़-वाफ़ नहीं था, फ़ौज नहीं
थी. वास्या! ये डाकू थे!”
“मैं खुद, ख़ुद भी
समझ गया था,” हताशा से हाथ हिलाते हुए वसिलीसा
बड़बड़ाया.
“माय
गॉड!” वान्दा चीखी. “फ़ौरन भागो, इसी पल, इसी पल
रिपोर्ट करना होगा, उन्हें पकड़ना होगा. पकड़ना
होगा! खुदाई माँ! सारी चीज़ें. सब! सब! और कम से कम कोई तो, कोई
तो... आँ?” वह थरथराने लगी, संदूक से
फर्श पर गिर गई, हाथों से चेहरा ढांक लिया. उसके बाल बिखर गए, कुर्ते
के बटन पीछे से खुल गए.
“आखिर
कहाँ जाऊँ, कहाँ?” वसिलीसा ने पूछा.
“माय गॉड, स्टाफ
हेडक्वार्टर, ऑफिसर्स के पास! रिपोर्ट देना होगा. फ़ौरन. ये क्या हो रहा है?!”
वसिलीसा
ने अपनी ही जगह पर पैर पटके, अचानक
दरवाज़े की ओर लपका. वह कांच के दरवाज़े से टकराया और शोर मचाने लगा.
****
शिर्विन्स्की
और एलेना को छोड़कर बाकी सभी वसिलीसा के क्वार्टर में घुसे थे. वसिलीसा, विवर्ण चेहरे
से दरवाज़े में खड़ा था. मिश्लायेव्स्की ने, टांगें
फैलाकर अनजान मेहमानों द्वारा फेंके गए जूतों और चीथड़ों की ओर नज़र डाली, वसिलीसा
की तरफ़ मुड़ा.
“लिख लो.
सामान तो गया. ये डाकू थे. खुदा का शुक्र करो कि ज़िंदा बच गए. मुझे, सच कहूं
तो, अचरज होता है, कि आप इतने सस्ते में छूट
गए.”
“खुदा....उन्होंने
हमारे साथ क्या किया!” वान्दा ने कहा.
“उन्होंने
मुझे मौत की धमकी दी.”
“शुक्र है, कि धमकी
पर अमल नहीं किया. पहली बार ऐसी हरकत देख रहा हूं.”
“बड़ी सफ़ाई
से किया है,” करास ने हौले से पुष्टि की.
“अब किया
क्या जाए?...” वसिलीसा ने बुझते हुए पूछा. “क्या रिपोर्ट करने भागूँ?..कहाँ?...खुदा
के लिए, विक्तर विक्तरविच, सलाह
दीजिये.”
मिश्लायेव्स्की
गुरगुराया, इसके बारे में सोचा.
“मैं आपको
सलाह दूँगा, कि कहीं भी शिकायत न करें,” उसने
कहा, “पहली बात, उन्हें पकड़ नहीं पायेंगे –
एक.” उसने लम्बी उंगली मोड़ी, - “दूसरी बात...”
“वास्या, तुम्हें
याद है, उन्होंने कहा था, कि अगर
रिपोर्ट करोगे, तो मार डालेंगे?”
“ओह, ये बकवास
है,” मिश्लायेव्स्की ने नाक-भौंह चढ़ा ली, “कोई
नहीं मारेगा, मगर, कह रहा हूँ, कि उन्हें नहीं पकड़ेंगे, और
कोई पकड़ने भी नहीं जाएगा, और दूसरी
बात,” उसने दूसरी उंगली मोड़ी, “आखिर,
आपको बताना होगा कि आपके यहाँ से क्या लेकर गए हैं, आप
कहेंगे, शाही मुद्राएँ...
तो, आप वहाँ, उनके स्टाफ़ हेडक्वार्टर में या कहीं और, और, मुमकिन
है, कि वे दूसरी तलाशी का हुक्म दे दें.”
“हो सकता है, बहुत मुमकिन है,” उच्च श्रेणी के विशेषज्ञ निकोल्का ने पुष्टि की.
अस्त
व्यस्त, मूर्च्छा के बाद पानी से भीगे वसिलीसा ने सिर झुका लिया, वान्दा
चौखट का सहारा लिए चुपचाप रोने लगी, सभी को
उन पर दया आई.
दरवाज़े के
पास खड़े लरिओसिक ने गहरी सांस ली और धुंधली आंखें घुमाईं.
“तो, हरेक का
अपना-अपना दुःख होता है,” वह
फुसफुसाया.
“उनके पास
क्या हथियार थे?” निकोल्का ने पूछा.
“माय गॉड.
दोनों के पास रिवॉल्वर थे, और तीसरा... वास्या, तीसरे के
पास कुछ नहीं था?”
“दो के
पास रिवॉल्वर थे,” वसिलीसा ने क्षीणता से पुष्टि की.
“कौन से,
गौर नहीं किया?” निकोल्का ने कामकाजी भाव से पूछा.
“मैं तो
नहीं जानता,” आह लेकर वसिलीसा ने जवाब दिया, “मैं सिस्टम के बारे में कुछ नहीं जानता.
एक बड़ी, काली, दूसरी छोटी, चेन वाली.”
“चेन,” वान्दा
ने आह भरी.
निकोल्का ने भौंहे सिकोड़ लीं और
कनखियों से, पंछी की तरह, वसिलीसा की ओर देखा. उसने इधर-उधर पैर
पटके, फिर बेचैनी से सरका और चुपचाप दरवाज़े की ओर बढ़ा. लरिओसिक उसके पीछे हो लिया.
लरिओसिक डाइनिंग रूम तक पहुँचा भी नहीं था, जब निकोल्का के कमरे से कांच के टूटने
की आवाज़ और निकोल्का की चीख सुनाई दी. लरिओसिक उसी तरफ़ लपका. निकोल्का के कमरे में
तेज़ प्रकाश हो रहा था, खुले हुए रोशनदान से ठंडी हवा का
झोंका आ रहा था और एक बड़ा छेद बन गया था, जिसे बदहवासी में
खिड़की की सिल से गिरते हुए निकोल्का ने घुटनों से बनाया था,
निकोल्का की आंखें बदहवासी से इधर-उधर घूम रही थीं.
“क्या
सचमुच?” हाथ उठाकर लरिओसिक चीखा, “ये तो
सचमुच का जादू टोना है!”
निकोल्का
फ़ौरन कमरे से बाहर भागा, अध्ययन
कक्ष से, किचन से स्तब्ध अन्यूता के सामने से, जो चिल्ला रही थी: “निकोल, निकोल, कहाँ जा
रहा है बिना टोपी के? गॉड, अब और क्या हो गया है?...” और
पोर्च से होकर आँगन में उछला. अन्यूता, ने सलीब
का निशान बनाते हुए पोर्च का दरवाज़ा बंद कर दिया, किचन में
भागी और खिड़की के कांच से सट गई, मगर
निकोल्का फ़ौरन आंखों से ओझल हो गया.
वह तेज़ी
से बाईं ओर मुड़ा, नीचे की तरफ भागा और बर्फ़ के ढेर के सामने रुक गया जो दीवारों के
बीच के प्रवेश मार्ग को अवरुद्ध कर रहा था. बर्फ़ का ढेर एकदम अनछुआ था. “कुछ भी
समझ नहीं पा रहा हूँ”, निकोल्का घबराहट से बड़बड़ाया और बड़ी हिम्मत से बर्फ के ढेर
में घुस गया. उसे लगा, कि उसका दम घुट जाएगा. वह
बड़ी देर तक बर्फ को मसलता रहा, थूकता
रहा और सूघता रहा, आखिरकार, बर्फ़ की
बाधा को तोड़ दिया और पूरा सफ़ेद, अनछुए तंग प्रवेश मार्ग पर रेंग गया, ऊपर की
ओर देखा : ऊपर, जहाँ उसके कमरे की खतरनाक खिड़की से रोशनी गिर रही थी, छड़ों के
काले सिरे और उनकी नुकीली, घनी
परछाइयाँ दिखाई दे रही थी, मगर
डिब्बा नहीं था. इस आख़िरी उम्मीद से कि शायद फंदा टूट गया हो, निकोल्का, हर मिनट
घुटनों के बल गिरते हुए, टूटी हुई
ईंटों पर टटोलता रहा. डिब्बा नहीं था.
अब
निकोल्का के दिमाग़ में तीव्र प्रकाश कौंधा: “आ-आ”, - वह चिल्लाया और आगे फेंसिंग
की ओर रेंग गया, जो इस तंग मार्ग को रास्ते की तरफ से बंद करती थी. वह वहाँ तक रेंगा और
हाथों से धक्के देता रहा, बोर्ड
दूर हट गया, और एक चौड़ा छेद काली सड़क पर झांकता नज़र आया. सब समझ में आ गया...उन्होंने
तंग मार्ग को जाने वाले बोर्ड उखाड़ दिए, यहाँ
पहुँच गए और , स-म-झ रहा हूँ, स्टोर
रूम से वसिलीसा के घर में घुसना चाह रहे थे, मगर वहाँ
खिड़की पर जाली लगी है.
निकोल्का, पूरा
सफ़ेद, चुपचाप किचन में आया.
“या खुदा, आओ, कम से कम
तुम्हें साफ़ कर दूं...” अन्यूता चीखी.
“मुझसे
दूर हट जाओ, खुदा के लिए,” निकोल्का ने जवाब दिया और अपने
सुन्न पड़ गए हाथों को पतलून से पोंछते हुए, कमरों में
गया. “लरिओन, मेरे चेहरे पर झापड़ मारो,” वह
लरिओसिक से मुखातिब हुआ. – उसने आंखें झपकाईं, फिर
उन्हें बाहर निकाला और कहा:
“क्या कह
रहे हो, निकलाशा? इतनी निराशा क्यों?” वह
हौले-हौले निकोल्का की पीठ पर हाथ फेरने लगा और आस्तीन से बर्फ झाड़ने लगा.
“ये बताने
की तो ज़रुरत ही नहीं है, कि
अल्योशा मेरा सिर काट देगा, अगर, खुदा करे, वह अच्छा
हो जाए तो,” निकोल्का कहता रहा, “- मगर सबसे महत्वपूर्ण...नाय-तुर्स की पिस्तौल!...
इससे तो
अच्छा होता कि मुझे ही मार डालते, कसम से!...ये खुदा ने मुझे सज़ा दी है, इसलिए कि
मैंने वसिलीसा का मज़ाक उड़ाया था. और वसिलीसा के लिए भी अफ़सोस है, मगर तुम
समझ रहे हो ना, कि उन्होंने इसी रिवॉल्वर से उस पर काबू कर लिया. हालांकि, वैसे, उसे तो
बिना किसी रिवॉल्वर के लूटा जा सकता है, किसी
चिपचिपे कागज़ की तरह...ऐसा आदमी है वो. – एख...तो, ऐसा है
किस्सा. कागज़ लाओ, लरिओन, खिड़की
सील करेंगे.”
****
रात को
कीलों, कुल्हाड़ी और हथौड़े के साथ निकोल्का,
मिश्लायेव्स्की और लरिओसिक तंग रास्ते से बाहर निकले. तंग रास्ते को छोटे-छोटे
तख्तों से अच्छी तरह बंद कर दिया गया था. खुद निकोल्का तैश में आकर लम्बी, मोटी
कीलें इस तरह से ठोंक रहा था कि उनके नुकीले सिरे बाहर की ओर निकलें. इसके बाद
बरामदे में मोमबत्तियां लेकर निकले, और फिर
निकोल्का, मिश्लायेव्स्की और लरिओसिक ठन्डे स्टोर रूम से अटारी पर चढ़ गए. क्वार्टर
के ऊपर, अटारी में, खतरनाक रूप से धम्-धम् करते
हुए वे हर जगह चढ़ गए, गरम पाईपों के बीच से झुकते
हुए, कपड़ों के बीच से, और छत वाली खिड़की को बंद कर दिया.
अटारी पर
हो रहे अभियान के बारे में जानकर, बेहद दिलचस्पी दिखाते हुए वसिलीसा भी उनके साथ
शामिल हो गया और मिश्लायेव्स्की के कामों की सराहना करते हुए शहतीरों के बीच चढ़
गया.
“कितने
अफ़सोस की बात है कि आपने हमें किसी तरह कुछ बताया ही नहीं. वान्दा मिखाइलव्ना को
चोर दरवाज़े से हमारे पास भेजना चाहिए था,”
मोमबत्ती से मोम गिराते हुए निकोल्का ने कहा.
“खैर, भाई, ये इतना
आसान नहीं था,” मिश्लायेव्स्की ने जवाब दिया, “जब वे
क्वार्टर के भीतर आ चुके थे, तो, भाई, बात हाथ
से निकल चुकी थी. तुम क्या सोचते हो, इन्होने अपने आप को बचाने की कोशिश नहीं की
होगी? बेशक. तुम क्वार्टर में घुसते, उससे
पहले ही पेट में गोली मार देते. लो, बन गए
मुर्दा. तो. और उन्हें घुसने ही न देना, ये एक
अलग ही बात होती.”
“दरवाज़े
से ही उन्होंने गोली मारने की धमकी दी, विक्तर
विक्तरविच,” वसिलीसा ने ईमानदारी से कहा.
“गोली तो
कभी नहीं चलाते,” मिश्लायेव्स्की ने हथौड़ा बजाते हुए कहा, “किसी हालत में नहीं.
पूरी सड़क का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित कर लेते.”
देर रात
में, करास लिसोविचों के क्वार्टर में ल्युद्विक XIV की तरह आराम फरमा रहा था. इससे
पहले इस तरह की बातचीत हुई थी:
“नहीं
आयेंगे आज, आप भी ना!” मिश्लायेव्स्की कह रहा था.
“नहीं, नहीं, नहीं,” वान्दा
और वसिलीसा ने सीढ़ियों से एक साथ कहा, “हम
विनती करते हैं, प्रार्थना करते हैं कि आपसे या फ़्योदर निकलायेविच से,
प्रार्थना करते हैं!...आपको करना क्या है? वान्दा
मिखाइलव्ना आपको चाय पिलाएगी. आरामदेह बिस्तर लगा देगी. बहुत बहुत प्रार्थना करते
हैं कि कल भी आयें. मेहेरबानी कीजिये, बिना
मर्द के क्वार्टर में!”
“मैं तो
किसी भी हालत में सो ही नहीं पाऊँगी,” वान्दा
ने अंगोरा
शॉल में अपने आप को लपेटते हुए कहा.
“मेरे पास
कन्याक है – गरमाएंगे,” अप्रत्याशित रूप से, कुछ मस्ती भरे अंदाज़ में वसिलीसा ने
कहा.
“जाओ, करास,”
मिश्लायेव्स्की ने कहा.
परिणामस्वरूप,
करास आराम फरमा रहा था. भेजा और वनस्पति तेल वाला सूप, जैसी कि
अपेक्षा थी, सिर्फ लक्षण थे कंजूसी की उस घृणित बीमारी के, जिससे
वसिलीसा ने अपनी पत्नी को संक्रमित किया था. असल में, क्वार्टर
के गहरे कोनों में ख़ज़ाने छुपे हुए थे, जिनके
बारे में सिर्फ वान्दा जानती थी. डाइनिंग रूम में मेज़ पर नमकीन मशरूम का डिब्बा, बीफ़, चैरी का
जैम, और शुस्तोव की असली, घंटी वाली, बढ़िया
कन्याक थी. करास ने वान्दा मिखाइलव्ना के लिए एक ग्लास की मांग की और उसमें कन्याक
डाली.
“पूरा
नहीं, पूरा नहीं,” वान्दा चिल्लाई.
वसिलीसा
बदहवासी से हाथ हिलाकर, करास की बात
मानते हुए, एक गिलास पी गया.
“तुम भूलो
मत, वास्या, कि तुम्हारे लिए हानिकारक है,” वान्दा
ने नर्मी से कहा.
करास के
अधिकारपूर्वक समझाने के बाद, कि
कन्याक किसी को भी कोई नुक्सान नहीं पहुंचाती, और उसे
खून की कमी वाले लोगों को भी दूध के साथ दिया जाता है, वसिलीसा
ने दूसरा गिलास पी लिया, और उसके गाल गुलाबी हो गए, और माथे
पर पसीना आ गया. करास पाँच गिलास पी गया और बहुत अच्छे ‘मूड’ में आ
गया. ‘अगर उसे अच्छी तरह खिलाया जाए, तो वह
देखने में इतनी भी बुरी नहीं है,” उसने
वान्दा की ओर देखते हुए सोचा.
इसके बाद
करास ने लीसविचों के क्वार्टर की व्यवस्था की प्रशंसा की और तुर्बीनों के क्वार्टर
में ‘सिग्नल’ भेजने की व्यवस्था पर चर्चा की: एक घंटी किचन से, दूसरी
प्रवेश कक्ष से. ज़रा सी भी बात हो – ऊपर घंटी बजेगी. और, गौर
फ़रमाइए, दरवाज़ा खोलेगा मिश्लायेव्स्की, ये
बिल्कुल ही अलग बात होगी.
करास
क्वार्टर की खूब तारीफ़ कर रहा था: आरामदेह है, और
फर्नीचर से अच्छी तरह सजाया गया है, मगर एक
कमी है – ठंड है.
रात को
खुद वसिलीसा लकडियाँ खींच कर लाया और अपने हाथों से ड्राइंग रूम में भट्टी जलाई.
करास कपड़े उतार कर सोफ़े पर दो शानदार चादरों के बीच लेट गया. वह बहुत अच्छा और आरामदेह
महसूस कर रहा था. कमीज़ और गैलिस वाली पतलून पहने वसिलीसा उसके पास आया और यह कहते
हुए कुर्सी पर बैठ गया:
“पता है, नींद
नहीं आ रही है, क्या आपके साथ थोड़ी सी बातचीत करने की इजाज़त देंगे?”
भट्टी
पूरी जल गई, गोलमटोल वसिलीसा ने, जो अब
शांत होकर कुर्सी में बैठा था, आह भरी
और कहा:
“तो, ऐसी
है बात, फ़्योदर निकलायेविच. जो कुछ भी कड़ी मेहनत से जमा किया था, एक शाम
को किन्हीं बदमाशों की जेबों में चला गया...बल प्रयोग से. ऐसा न सोचिये कि मैं
क्रान्ति को नकार रहा हूँ, ओह नहीं, मैं उन
ऐतिहासिक कारणों को अच्छी तरह समझता हूँ, जिनके
कारण ये सब हो रहा है.”
वसिलीसा
के चेहरे और उसकी गैलिस के बकल्स पर लाल चमक खेल रही थी. चेहरे पर
विनम्र एकाग्रता का भाव बनाए हुए, कन्याक की
मीठी अलसाहट में करास ऊंघने लगा...
“मगर, आप खुद
भी इस बात से राज़ी होंगे. हमारे यहाँ रूस में, बेशक, बेहद
पिछड़े हुए देश में, क्रान्ति पुगाचेविज़्म में
बदल गई है...आखिर, ये हो क्या रहा है...कुछ दो वर्षों के भीतर हमने मानव के और
नागरिक के न्यूनतम अधिकारों की रक्षा के लिए क़ानून का सहारा खो दिया है. अँगरेज़
कहते हैं...”
“म्-म्,
अँगरेज़...वे, बेशक,” करास बुदबुदाया, ये महसूस
करते हुए कि एक मुलायम दीवार उसे वसिलीसा से अलग कर रही है.
“...और
यहाँ, कैसा ‘तुम्हारा घर – तुम्हारा किला’, जब आपके
अपने क्वार्टर में सात तालों के पीछे, इस बात
की गारंटी नहीं है कि बदमाशों का गिरोह, वैसा,
जैसा आज मेरे यहाँ आया था, आपको न
सिर्फ संपत्ति से, बल्कि, आपकी
ज़िंदगी से भी वंचित कर देगा?!”
“सिग्नल-सिस्टम
और शटर्स के भरोसे रहेंगे,” मरियल, उनींदी
आवाज़ में करास ने जवाब दिया.
“मगर, फ़्योदर
निकलायेविच! यहाँ, प्यारे, बात
सिर्फ सिग्नल-सिस्टम की नहीं है! किसी भी सिग्नल-सिस्टम से आप उस पतन और विघटन को
नहीं रोक पायेंगे, जिन्होंने अब मानव की आत्मा
में घोंसला बना लिया है. माफ़ कीजिये,
सिग्नल-सिस्टम – एक विशेष मामला है, और मान लीजिये, यदि वह
बिगड़ जाए तो?”
“दुरुस्त
कर देंगे,” खुश मिजाज़ करास ने जवाब दिया.
“मगर पूरी
ज़िंदगी सिग्नल-सिस्टम बनाते रहने और किन्हीं रिवॉल्वर्स के सहारे तो नहीं रहा जा
सकता. बात ये नहीं है. मैं एक विशेष घटना को लेकर एक आम बात कह रहा हूँ. बात ये है
कि सबसे महत्वपूर्ण बात, व्यक्तिगत
संपत्ति के प्रति आदर की भावना समाप्त हो गई है. और जब ऐसा है, तो समझ
लो, किस्सा ख़तम. अगर ऐसा है, तो समझ
लो, हम मर गए. मैं स्वभाव से पक्का डेमोक्रेट हूँ और खुद भी जनता का हिस्सा
हूँ. मेरे पिता रेलवे में मामूली फोरमैन थे. सब कुछ, जो आप
यहाँ देख रहे हैं, और वह सब, जो आज वे
बदमाश मुझसे छीन कर ले गए, ये सब
मेरे अपने हाथों से कमाया और बनाया गया है. और, यकीन
कीजिये, मैं कभी भी पुरानी व्यवस्था के पक्ष में नहीं रहा, बल्कि, मानता
हूँ, कि मैं कैडेट हूँ, मगर अब, जब मैंने
अपनी आंखों से देख लिया है कि इस सब का अंजाम क्या हो रहा है, तो कसम
खाकर कहता हूँ, मेरे दिल में एक कटु विश्वास पनप रहा है, कि हमें
सिर्फ एक ही चीज़ बचा सकती है...” करास को लपेटती हुई मुलायम चादर से, एक
फुसफुसाहट सुनाई दी...”एकतंत्र. हाँ-आ... सबसे बेरहम डिक्टेटरशिप, जिसकी आप सिर्फ
कल्पना ही कर सकते हो... एकतंत्र...”
‘एख, बहक गया
ये,’ प्रफुल्लित करास ने सोचा,. “म्-
हाँ एकतंत्र – बड़ी चालाक चीज़ है’. “ऐहे, -म्” रूई
की चादर में लिपटे करास ने कहा.
“आह,
दू-दू-दू-दू – हैबियस कोर्पुस, आह,
दू-दू-दू-दू . आय, दू-दू ... – रूई के पीछे
आवाज़ बुदबुदाई, - “आय, दू-दू-दू-दू, बेकार ही में वे सोचते हैं कि ऐसी स्थिति
लम्बे समय तक बनी रह सकती है, आय,
दू-दू-दू, और चीखते हैं ‘सलामत रहे’. नहीं-ई! हमेशा ये नहीं चलेगा, और ये
सोचना हास्यास्पद होगा, कि...”
“किला
इवान-गोरद,” अप्रत्याशित रूप से कैप पहने कमांडर ने वसिलीसा की बात काटी, “सलामत
रहे!”
“और
अर्दगान और कारे,” करास ने कोहरे में पुष्टि
की, “सलामत रहें!”
वसिलीसा
की हल्की हंसी की आवाज़ दूर से आ रही थी.
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