Thursday, 11 January 2024

श्वेत गार्ड्स - 11

  

11 


 टेलीफोन वाली आवाज़ की आज्ञा का पालन करते हुए गैर-कमीशन ऑफिसर निकलाय तुर्बीन अट्ठाईस कैडेट्स को बाहर लाया और तय मार्ग के अनुसार पूरे शहर से होते हुए उनका नेतृत्व  करता रहा. यह सुनिश्चित मार्ग तुर्बीन को कैडेट्स समेत एक चौराहे पर लाया, जो पूरी तरह मृत था. उस पर जीवन का कोई चिह्न नहीं था, मगर खूब गड़गड़ाहट थी. चारों ओर – आसमान में, छतों पर, दीवारों पर – मशीनगनें गरज रही थीं.     

दुश्मन को, ज़ाहिर है, यहाँ होना चाहिए था, क्योंकि टेलीफोन वाली आवाज़ के अनुसार यह अंतिम, समापन बिंदु था. मगर अभी तक कोई दुश्मन नहीं दिखाई दिया था, और निकोल्का थोड़ा उलझन में पड़ गया – आगे क्या करे? उसके कैडेट्स, कुछ पीले पड़ गए थे, मगर फिर भी बहादुर थे, अपने कमांडर ही की तरह, जंज़ीर बनाकर बर्फ से ढंके रास्ते पर लेट गए, और मशीनगनर इवाशिन फुटपाथ के किनारे मशीनगन के पास उकडूं बैठ गया. ज़मीन से सिर उठाकर कैडेट्स चौकन्नेपन से दूर देख रहे थे, इंतज़ार कर रहे थे, कि सचमुच में क्या होने वाला है?

उनका लीडर अत्यंत महत्वपूर्ण और गंभीर विचारों में इतना मग्न था कि वह सुस्त हो गया और पीला पड़ गया. लीडर को सबसे पहले चौराहे पर उस सबकी अनुपस्थिति ने चौंकाया जिसका वादा आवाज़ ने किया था. यहाँ, चौराहे पर, निकोल्का को तीसरी स्क्वैड से मिलना था और उसे ‘सुदृढ़’ करना था. यहाँ कोई स्क्वैड नहीं थी. उसका कोई नामोनिशान तक नहीं था.

दूसरे, निकोल्का को यह बात चौंका रही थी कि मशीनगन की खडखडाहट कभी न सिर्फ सामने से सुनाई दे रही थी, बल्कि दायें से भी,और,कुछ पीछे से भी आ रही थी.

तीसरे, वह भयभीत होने से डर रहा था और पूरे समय अपने आप को जाँच रहा था:

“क्या डरावना है?” – “नहीं, डरावना नहीं है”, - दिमाग में एक साहसी आवाज़ जवाब देती, और निकोल्का, इस ख़याल से कि वह बहादुर है, और भी ज़्यादा पीला पड़ रहा था.

अभिमान इस विचार में परिवर्तित हो गया, कि यदि उसे, निकोल्का को मार डालेंगे, तो उसे संगीत के साथ दफनाया जाएगा. बिलकुल आसान: रास्ते पर एक सफ़ेद, चमचमाता हुआ ताबूत तैर रहा होगा, और ताबूत में युद्ध में शहीद हुआ गैरकमीशन-ऑफिसर तुर्बीन महान, मोम जैसा चेहरा लिए लेटा होगा, और अफ़सोस है कि आजकल सलीब नहीं देते हैं, वर्ना उसके सीने पर ज़रूर सलीब और सेंट जॉर्ज रिबन होता . औरतें दरवाजों खड़ी हैं. “किसे दफ़ना रहे हैं, प्यारों?” – “गैरकमीशन-ऑफिसर तुर्बीन को...” – “आह, कैसा ख़ूबसूरत...” और म्यूजिक. युद्ध में,पता है, अच्छा लगता है मरना. सिर्फ तड़पना न पड़े. म्यूजिक और रिबन्स के बारे में विचारों ने दुश्मन के अनिश्चित इंतज़ार को इतना रंगीन बना दिया, जो, ज़ाहिर है, टेलीफोन की आवाज़ की अवज्ञा करते हुए, प्रकट होने का विचार ही नहीं कर रहा था.

“यहीं इंतज़ार करेंगे,” निकोल्का ने कैडेट्स से कहा, यह कोशिश करते हुए कि उसकी आवाज़ विश्वासपूर्ण प्रतीत हो, मगर वह विश्वासपूर्ण नहीं निकली, क्योंकि चारों और सब कुछ वैसा नहीं था, जैसा होना चाहिए था, कुछ गड़बड़ नज़र आ रही थी. स्क्वैड कहाँ है? दुश्मन कहाँ है? अजीब बात है, जैसे पार्श्व में गोलियां चला रहे हों?

 

 

***   

 

 

और उनका लीडर अपनी टुकड़ी के साथ इंतज़ार करता रहा. एक छेदती हुई गली में, जो ब्रेस्त-लितोव्स्काया हाई-वे से जाती थी,अचानक गोलियों की आवाज़ गूंजने लगी और गली में बदहवासी से भागती हुई भूरी आकृतियाँ बिखर गईं. वे सीधे निकोल्का के कैडेट्स पर लपक रही थीं, और उनकी राईफल्स विभिन्न दिशाओं में केन्द्रित थीं.

“ घिर गए?” निकोल्का के दिमाग़ में जैसे हथोड़े बजने लगे, वह लपका, ये न जानते हुए, कि कौनसी कमांड देनी है. मगर अगले ही पल उसने भागते हुए कुछ लोगों के कन्धों पर सुनहरे धब्बे देखे और समझ गया, कि ये अपने ही हैं.

भारी-भरकम, ऊंचे, भागने के कारण पसीने से तर-बतर, टोपियाँ पहने कन्स्तान्तीन अकाडेमी के कैडेट्स अचानक रुक गए, एक घुटने पर बैठ गए और, हल्की-सी चमक के साथ उन्होंने गली की तरफ दो फ़ायर किये, जहाँ से भागते हुए वे आये थे. इसके बाद वे उछले और, राईफलें फेंकते हुए, निकोल्का की टुकड़ी की बगल से चौराहे से होते हुए भागे. रास्ते में उन्होंने अपने शोल्डर स्ट्रैप्स उखाड़ दिए, पाउच और बेल्ट भी उखाड़ कर फेंक दिए, उन्हें टूटी हुई बर्फ पर फेंक दिया. एक हट्टा-कट्टा, भूरा, भारी-भरकम कैडेट निकोल्का के पास से गुज़रते हुए, निकोल्का की टुकड़ी की तरफ़ सिर घुमाते हुए, हांफते हुए, जोर से चीखा:

“भागो, हमारे साथ भागो! अपने आपको बचाओ, जो बच सकता है!”

निकोल्का के कैडेट्स, जो कतार में पड़े हुए थे, चौंक कर उठने लगे. निकोल्का पूरी तरह पगला गया, मगर उसने खुद पर काबू कर लिया और, उसके दिमाग में विचार कौंध गया: “यही वो पल है, जब ‘हीरो बन सकते हो”, - वह अपनी पैनी आवाज़ में चिल्लाया:

“उठने की हिम्मत न करना! कमांड सुनो!!”

“ वे कर क्या रहे हैं?” निकोल्का ने तैश से सोचा.

कन्स्तान्तीन वाले कैडेट्स – वे करीब बीस थे, - चौराहे से उछल कर, बिना हथियारों के, उसे छेदती हुई फनार्नी गली में बिखर गए, और उनमें से कुछ पहले ही विशाल दरवाज़े की ओर लपके. लोहे के दरवाजों की भयानक खड़खड़ाहट हुई, और गूँजती हुई सीढ़ियों पर जूतों की धमधम सुनाई दी. दूसरा झुण्ड अगले दरवाज़े में घुसा. अब सिर्फ पाँच बचे थे, और वे, अपनी दौड़ को तेज़ करते हुए सीधे फनार्नी पर भागे और दूर जाकर ओझल हो गए.              

आखिरकार चौराहे पर अंतिम भागता हुआ आदमी उछल कर आया,कन्धों पर हल्के सुनहरे शोल्डर स्ट्रैप्स थे. निकोल्का ने चौंकन्नी आँखों से फ़ौरन पहचान लिया कि वह पहली स्क्वैड के दूसरे दस्ते का कमांडर कर्नल नाय-तुर्स है.

“कर्नल महाशय!” निकोल्का उसे देखकर परेशानी और खुशी से चिल्लाया, “आपके कैडेट्स डर के मारे भाग रहे हैं.”

और तब एक भयानक बात हुई. नाय-तुर्स कुचले हुए चौराहे पर ओवरकोट में भागा, जो दोनों तरफ से मुड़ा हुआ था, जैसा फ्रांसीसी पैदल सैनिकों का होता है. मुडी-तुड़ी टोपी ठीक उसके सिर पर बैठी थी और ठोड़ी के नीचे बेल्ट से रुकी हुई थी. नाय-तुर्स के दायें हाथ में कोल्ट थी और खुला हुआ होल्स्टर उसके कूल्हे पर झूल रहा था और मार कर रहा था. न जाने कब से हजामत न किया हुआ उसका खुरदुरा चेहरा डरावना था, आंखें नाक की ओर टिकी हुईं, और अब निकट से कन्धों पर हुस्सार के लहरियेदार चिह्न दिखाई दे रहे थे, नाय-तुर्स उछलकर निकोल्का के बिल्कुल पास आया, खाली बायाँ हाथ हिलाया और निकोल्का का पहले बायाँ और फिर दायाँ शोल्डर स्ट्रैप उखाड़ फेंका. मोम लगे बढ़िया धागे चरचरा कर टूट गए, दायाँ शोल्डर स्ट्रैप ओवरकोट के कपड़े समेत उड़ गया. निकोल्का इतनी बुरी तरह हिल गया, कि उसे फ़ौरन यकीन हो गया कि नाय-तुर्स के हाथ ग़ज़ब के मज़बूत हैं. निकोल्का झटके के साथ किसी नरम चीज़ पर बैठ गया, और यह नरम चीज़ उसके नीचे से चीख के साथ उछली और मशीनगनर इवाशिन में बदल गई. इसके बाद चारों ओर कैडेट्स के आड़े-तिरछे चहरे डान्स करने लगे, और सब कुछ गड्ड-मड्ड हो गया. इस पल वह पगला नहीं गया, क्योंकि कर्नल नाय-तुर्स की हरकतें इतनी सधी हुई थीं कि निकोल्का के पास इसके लिए समय नहीं था. बिखरी हुई पलटन की ओर मुँह फेरकर, उसने असाधारण, अब तक न सुनी हुई तोतली आवाज़ में चिंघाड़ते हुए कमांड दी. निकोल्का को पूरा यकीन था कि ऐसी आवाज़ दस मील दूर तक सुनी जा सकती थी और,शायद, पूरे शहर में भी.

“कैदेत्स ! मेरा हुक्म सुनो : शोल्दल स्त्लैप्स फाड़ दो, कैप्स, गोलियों के पाउच, हथियाल फेंक दो! फनाल्नी चौक से आंगनों से होकर,लाज़ेज्झाया पर, पदोल पर! पदोल!! लास्ते में डॉक्यूमेंट फाल देना, छुप जाना, बिखल जाओ, लास्ते में जो भी मिले ले जाओ अप-अ-ने सा-आ-थ!”

इसके बाद पिस्तौल लहराकर नाय-तुर्स चिंघाड़ा, जैसे घुड़सवार दस्ते का बिगुल हो:

“फनाल्ना से होकल! सिल्फ़ फनालना से! अपने-अपने घलों में छुप जाओ! युद्ध ख़तम हो गया है! दौलते हुए माल्च!”

कुछ पल तक तो प्लेटून संभल ही नहीं पाई. फिर कैडेट्स के चेहरे एकदम पीले पड़ गए. इवाशिन ने निकोल्का के सामने ही शोल्डर स्ट्रैप्स फाड़ दिए, पाउच बर्फ में उड़ने लगे, बन्दूक       खट् से फुटपाथ के बर्फ के ढेर से फिसलने लगी. आधे मिनट बाद चौराहे पर गोलियों के पाउच, बेल्ट्स,और किसी की कुचली हुई कैप पडी थी. फनार्नी चौक से होते हुए,राज़ेज्झाया पर जाते कंपाउंड्स में उड़ते हुए, कैडेट्स भाग रहे थे.  

नाय-तुर्स ने झटके से पिस्तौल खोल में रख दी, फुटपाथ के पास मशीनगन की तरफ़ उछला,सिकुड़ कर बैठ गया उसकी नोक, उस तरफ घुमा दी, जहाँ से भागता हुआ आया था, और बाएं हाथ से गोलियों के बेल्ट को ठीक किया. वैसे ही बैठे-बैठे निकोल्का की ओर मुड़कर वह वहशियत से गरजा:

“बहरा हो गया है क्या? भाग!”

निकोल्का के पेट से एक अजीब नशा-सा ऊपर उठा, और मुँह फ़ौरन सूख गया.

“नहीं चाहता, कर्नल महाशय,” उसने रुंधे हुए गले से कहा, उकडूं बैठ गया, दोनों हाथों से कारतूसों वाला बेल्ट पकड़ा और उसे मशीनगन में डाल दिया.

दूर, वहाँ, जहाँ से नाय-तुर्स की बची खुची डिविजन भाग कर आई थी, अचानक कई अश्वारोहियों की आकृतियाँ उछल कर बाहर आईं. अस्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था, कि उनके नीचे वाले घोड़े नाच रहे हैं, मानो खेल रहे हों, और उनके हाथों में भूरी तलवारें थीं.

नाय-तुर्स ने हैंडल घुमाए, मशीनगन गरजी – आर-रा-पा, रुक गई, फिर से गरजी और फिर बड़ी देर तक गरजती रही. सभी घरों की छतें मानो दायें-बायें उबलने लगीं. अश्वारोही आकृतियों में कुछ और आकृतियाँ मिल गईं, मगर फिर उनमें से एक किसी किनारे फेंक दी गई, किसी घर की खिड़की में, दूसरा घोड़ा सिर के बल खड़ा हो गया, भयानक रूप से लंबा नज़र आने लगा, करीब-करीब दूसरी मंजिल तक ऊँचा, और कई अश्वारोही बिल्कुल गायब हो गए. इसके बाद, बचे हुए अश्वारोही पल भर में गायब हो गए, मानो धरती में समा गए हों.  

नाय-तुर्स ने हैन्डल घुमाए, मुट्ठियों से आसमान को धमकाया,उसकी आंखों में चमक थी, फिर वह चीखा:

“बच्चों! बच्चों!....स्टाफ- हेडक्वाल्टल्स के कमीने!...”

निकोल्का की ओर मुड़ा और ऐसी आवाज़ में चिल्लाया, जो निकोल्का को घुड़सवार दस्ते के नाज़ुक बिगुल की तरह प्रतीत हुई:

“भाग, बेवकूफ छोकले! कह लहा हूँ – भाग जा!”

उसने पीछे के तरफ नज़र दौड़ाई और यकीन कर लिया कि सारे कैडेट्स गायब हो गए हैं, फिर दूर के चौराहे से ब्रेस्त-लितोव्स्काया की समांतर सड़क पर नज़र डाली, और दर्द तथा कड़वाहट से चीखा:

“आह,शैतान!”

निकोल्का उसके साथ ही मुड़ा और उसने देखा कि दूर, काफ़ी दूर कैडेट्स्काया स्ट्रीट पर, एक अवरुद्ध, बर्फ से ढंके मार्ग पर काली आकृतियों की कतारें प्रकट हुईं और ज़मीन पर गिरने लगीं. इसके बाद एक इश्तेहार, जो वहीं फनार्नी चौक के कोने में, नाय-तुर्स और निकोल्का के सिरों के ऊपर था:

“दांत का डॉक्टर

बेर्ता याकव्लेव्ना

प्रिंस- मेटल”

   टूट गया, और कांच के टुकड़े कहीं दरवाज़े के बाहर बिखर गए. निकोल्का ने फुटपाथ पर प्लास्टर के टुकड़े देखे. वे उछले और सरपट भागने लगे. निकोल्का ने कर्नल नाय-तुर्स पर प्रश्नार्थक दृष्टी गड़ा दी, यह जानने के लिए इन दूर जाती आकृतियों और प्लास्टर का क्या मतलब है. कर्नल नाय-तुर्स ने भी बड़ा अजीब व्यवहार किया. वह एक टांग पर उछला, दूसरी टांग को हिलाया, मानो वाल्ट्ज़ कर रहा हो, और बॉलरूम की तरह कृत्रिम मुस्कराहट बिखेरी. इसके बाद कर्नल नाय-तुर्स निकोल्का के पैरों के पास लेट गया. निकोल्का का दिमाग मानो काले कोहरे से झनझना गया, वह उकडूं बैठ गया और स्वयँ के लिए अनपेक्षित,सूखे, बिना आंसुओं के सिसकते गले से, कर्नल को उठाने की कोशिश में उसे कन्धों से खींचने लगा. अब उसने देखा कि कर्नल की बाईं आस्तीन से खून बहने लगा है, और उसकी आंखें आसमान तक चली गई हैं.          

“ कर्नल महाशय, महाशय...”

“अंदल-सल,” नाय-तुर्स ने कहा,मगर उसके मुँह से खून बह कर ठोढी पर गिरा, और आवाज़ भी जैसे बूँद-बूँद बहने लगी, हर शब्द के साथ कमज़ोर होती गई, “ हीलोगिली फेंको शैतान के पास, मैं मल लहा हूँ...माला-प्लवाल्नाया...”     

इससे आगे वह कुछ और समझाना नहीं चाहता था. उसका निचला जबड़ा हिलने लगा. ठीक तीन बार और कंपकंपाते हुए, जैसे नाय का दम घुट रहा हो, फिर वह निश्चल हो गया, और भारी हो गया, आटे के बड़े बोरे की तरह.

“क्या ऐसे मरते हैं?” निकोल्का ने सोचा. “ऐसा नहीं हो सकता. अभी-अभी तो ज़िंदा था. युद्ध में भयानक नहीं लगता, जैसा कि मैं देख सकता हूँ. न जाने क्यों गोलियां मुझे नहीं लगती हैं...”

    

“दांत...

...डॉक्टर”

 

उसके सिर के ऊपर दूसरी बार कुछ फड़फड़ाया, और कहीं और शीशे टूटे. “हो सकता है, वह सिर्फ बेहोश हो?” निकोल्का ने परेशानी के कारण बेवकूफ़ी से सोचा और उसने कर्नल को खींचा. मगर उसे उठाने की कोई गुंजाइश नहीं थी. “डर तो नहीं लग रहा है?” निकोल्का ने सोचा और महसूस किया कि उसे बेतहाशा डर लग रहा है. “किसलिए? किसलिए?” निकोल्का ने सोचा और फौरन समझ गया कि उदासी और अकेलेपन के कारण डर लग रहा है, कि, अगर अभी कर्नल नाय-तुर्स अपने पैरों पर खड़ा होता, तो कोई डर-वर नहीं लगता...मगर कर्नल नाय-तुर्स पूरी तरह निश्चल था, कोई भी कमाण्ड नहीं दे रहा था, उस तरफ़ भी ध्यान नहीं दे रहा था, कि उसकी आस्तीन के पास बड़ा लाल डबरा फैलता जा रहा है, उस तरफ़ भी नहीं, कि दीवारों के उभारों से प्लास्टर पागल की तरह टूट रहा था और चूर-चूर हो रहा था. निकोल्का इस बात से डर रहा था कि वह निपट अकेला है. अब किनारे से कोई और घुड़सवार उछलते हुए नहीं आ रहे थे, मगर, ज़ाहिर है, सब निकोल्का के सामने थे, और वह आख़िरी है , वह पूरी तरह अकेला है...और अकेलेपन ने निकोल्का को चौराहे से खदेड़ा. हाथों का सहारा लिए वह पेट के बल रेंगा, और दाईं कोहनी के बल, क्योंकि उसने हथेली में नाय-तुर्स की पिस्तौल पकड़ रखी थी. नुक्कड़ से दो कदम पर ही तो भयानक खतरा है. अभी टांग में गोली मार देंगे, और तब रेंग भी नहीं पाओगे, पित्ल्यूरा के आदमी हमला बोल देंगे और तलवारों से बोटी-बोटी काट देंगे. खौफनाक होगा, कि जब तुम लेते हो और तुम्हारे टुकड़े-टुकडे कर दिए जाते हैं...मैं गोलियां चलाऊंगा, अगर पिस्तौल में कारतूस हों तो...और, बस, डेढ़ कदम...खींचना है, खींचना है...एक बार...और निकोल्का दीवार के पीछे फनार्नी गली में पहुँच गया.           

“अचरज की बात है, भयानक अचरज की बात है कि मुझ पर हमला नहीं किया. सीधे-सीधे चमत्कार. ये खुदा का चमत्कार है,” निकोल्का उठते हुए सोच रहा था, “ये है चमत्कार. अब मैंने खुद ही देख लिया – चमत्कार. नोट्रे डेम केथेड्रल. विक्टर ह्यूगो. एलेना का क्या हो रहा होगा? और अलेक्सेइ? अब ये साफ़ है – शोल्डर स्ट्रैप्स उखाड़ना है, मतलब, कोई आपदा हुई है”.

निकोल्का उछला, गर्दन तक बर्फ से ढंका हुआ, पिस्तौल जेब में घुसाई और गली में उड़ चला. दायें हाथ पर पहला ही दरवाज़ा कुछ खुला हुआ था, निकोल्का गूंजती हुई पुलिया पर भागा, एक उदास, एक गंदे आँगन में पहुँचा,जिसके दाएं हिस्से में लाल ईंटों के शेड और बाईं तरफ़ जलाऊ लकड़ी का ढेर था, उसने अनुमान लगाया कि बाहर निकलने का रास्ता बीच में है, फिसलते हुए वहाँ पहुँचा और भेड़ की खाल का कोट पहने एक आदमी से टकराया. बिल्कुल खुल्लमखुल्ला. लाल दाढी और छोटी-छोटी आंखें, जिनसे नफ़रत झाँक रही थी. चपटी नाक वाला, भेड़ की खाल की टोपी में, नीरो. उस आदमी ने, जैसे खेल रहा हो, निकोल्का को बाएं हाथ से पकड़ लिया और दाएं हाथ से उसका बायाँ हाथ पकड़कर उसे पीठ के पीछे मरोड़ने लगा. कुछ पलों के लिए निकोल्का स्तब्ध रह गया. “खुदा. उसने मुझे पकड़ लिया, मुझसे नफ़रत करता है!...पित्ल्यूरवेत्स...”      

“आह, तू,बदमाश!” लाल दाढ़ी वाला कर्कश आवाज़ में चिल्लाया और हांफने लगा, “किधर? ठहर जा!” फिर अचानक चीखा: “पकड़ो, पकड़ो,कैडेट्स को पकड़ो! शोल्डर स्ट्रैप्स फेंक दिए, समझते हो, कमीनों, पहचान नहीं पायेंगे? पकड़ो!”

सिर से पाँव तक निकोल्का को एक जूनून ने दबोच लिया. वह झटके से नीचे बैठ गया,फ़ौरन, जिससे ओवरकोट का पीछे वाला पट्टा टूट गया, मुड़ा और अप्राकृतिक शक्ति से लाल बालों वाले के हाथों से उड़ चला. पल भर उसने बूढ़े को नहीं देखा, क्योंकि वह उसकी पीठ के पीछे था, मगर फिर मुड़कर फिर से उसे देखा. लाल दाढ़ी वाले के पास कोई हथियार नहीं था, वह फ़ौजी भी नहीं था, वह चौकीदार था. निकोल्का की आंखों में पूरे लाल कम्बल की भाँति तैश तैर गया और अत्यधिक आत्मविश्वास में बदल गया. निकोल्का के गर्म मुँह में हवा और बर्फ बहने लगी, क्योंकि वह भेड़िये के पिल्ले की तरह दांत भींच रहा था. निकोल्का ने झटके से पिस्तौल जेब से बाहर निकाली यह सोचते हुए : ‘मार डालूँगा, केंचुए को, काश, मेरे पास कारतूस होते. उसकी आवाज़ इतनी भयानक और अनजान हो गई थी, कि वह खुद ही उसे पहचान नहीं पाया.

“मार डालूँगा,!” परिष्कृत पिस्तौल के ऊपर उंगलियाँ फेरते हुए , वह भर्राया, और फ़ौरन समझ गया कि वह भूल गया है, कि उसे कैसे चलाते हैं. पीला-लाल दरबान, यह देखकर, कि निकोल्का के पास हथियार है, बदहवासी और खौफ से घुटनों के बल गिर पडा और आश्चर्यजनक रूप से नीरो से सांप में बदलकर बिसूरने लगा:

“आह, युअर ऑनर ! युअर...”

फिर भी निकोल्का गोली चला ही देता, मगर पिस्तौल चलने का नाम ही नहीं ले रही थी. “खाली है, एह, क्या मुसीबत है!” बवंडर की भांति उसके दिमाग में विचार आया. दरबान,हाथ से मुँह को छिपाते हुए और धीरे धीरे पीछे सरकने लगा और पीछे गिरते हुए घुटनों से उकडूं बैठ गया, और निकोल्का की ओर मुँह करके पागलपन से चीखने लगा. यह न समझ पाते हुए कि ताँबे की दाढ़ी वाले इस विशाल जबड़े को कैसे बंद करे, न चलने वाले पिस्तौल के कारण बदहवास निकोल्का लड़ते हुए मुर्गे की तरह, दरबान पर उछला और दांतों में हैंडल दबाये, अपने आप पर गोली चलाने का खतरा मोल लेते हुए, उसे ज़ोर से मारा. निकोल्का का गुस्सा पल भर में काफ़ूर हो गया. दरबान अपने पैरों पर उछल कर, उसी पुलिया से, जहाँ से निकोल्का प्रकट हुआ था, उससे दूर भागा. भय से पगला गया दरबान अब चीख नहीं रहा था, वह भाग रहा था, बर्फ पर फिसलते हुए और लड़खड़ाते हुए,वह एक बार मुड़ा, और निकोल्का ने देखा कि उसकी आधी दाढ़ी लाल हो गई है. इसके बाद वह ग़ायब हो गया. निकोल्का नीचे की ओर लपका,सराय के सामने से होते हुए, राज़्येज्झाया की तरफ खुलने वाले दरवाज़े की तरफ़,  और, उनके पास आकर बदहवास हो गया. “ख़त्म हो गया. देर हो गई. फंस गया. खुदा, पिस्तौल भी नहीं चलती है.” बेकार ही में उसने बड़े भारी बोल्ट और ताले को झकझोरा. कुछ भी नहीं किया जा सकता था. लाल दरबान ने, जैसे ही नाय-तुर्स के कैडेट्स उछल कर भागे, राज़्येज्झाया वाले दरवाज़े को बंद कर दिया था, और निकोल्का के सामने पूरी तरह अभेद्य बाधा थी – ऊपर तक चिकनी, लोहे की अंधी दीवार.                                   

निकोल्का मुडा, उसने आसमान की ओर देखा, बेहद नीचे और घना था,सुरक्षा दीवार पर एक हल्की, काली सीढ़ी देखी, जो चार मंजिले घर की ठीक छत तक जा रही थी. “क्या चढ़ जाऊँ?” उसने सोचा, और तभी उसे बेवकूफी से रंग बिरंगी तस्वीर याद आ गई: पीला कोट पहने और चहरे पर लाल मास्क लगाए नैट पिन्कर्टन वैसी ही सीढ़ी चढ़ रहा है. “ऐ, नैट पिन्कर्टन, अमेरिका... और मैं, चढ़ भी जाऊँ तो आगे क्या? बेवकूफ़ की तरह छत पर बैठा रहूँगा, और इस बीच दरबान पित्ल्यूरा के सैनिकों को बुला लेगा. ये नीरो विश्वासघात करेगा. मैंने उसके दाँत तोड़े हैं माफ़ नहीं करेगा!”

और वैसा ही हुआ. फनार्नी गली वाले दरवाज़े से निकोल्का ने दरबान की बदहवास चीखें सुनीं: “इधर! इधर!” – और घोड़ों के टापों की आवाज़. निकोल्का समझ गया:

तो ये बात है – पित्ल्यूरा का घुड़सवार दस्ता पार्श्व से शहर में घुस गया. अभी वह फनार्नी गली में है. नाय-तुर्स भी तो यही चिल्ला रहा था....फनार्नी पर वापस लौटना नामुमकिन है.

यह सब उसने सोच लिया, न जाने कैसे बगल वाले घर की दीवार के नीचे, सराय की बगल में पड़े लकड़ियों के ढेर पर बैठे-बैठे. बर्फ बन चुकी लकडियाँ पैरों में अडमड़ा रही थें, निकोल्का लंगडा रहा था, वह गिर पड़ा और पतलून का एक पैर फाड़ बैठा, दीवार तक पहुँचा, उसमें से देखा और उसे ठीक वैसा ही आँगन नज़र आया. इतना समान कि वह भेड़ की खाल के कोट में लाल दाढी वाले नीरो के उछल कर बाहर आने का इंतज़ार करने लगा. मगर कोई भी नहीं उछला. पेट और कमर में भयानक दर्द हो रहा था, और निकोल्का ज़मीन पर बैठ गया, उसी पल उसके हाथ में पिस्तौल उछली और कानों को बहरा कर देने वाली आवाज़ के साथ गोली चल गई. निकोल्का को ताज्जुब हुआ, फिर वह समझ गया: “सेफ्टी-वाल्व तो बंद था, और अब मैंने उसे सरका दिया. संयोग.”

बकवास. राज़्येज्झाया वाला दरवाज़ा तो निश्चल है. बंद है. मतलब, फिर से दीवार की तरफ. मगर, ओह, लकडियाँ तो यहाँ नहीं हैं. निकोल्का ने सेफ्टी-वाल्व बंद कर दिया और पिस्तौल को जेब में घुसा दिया. टूटी ईंटों के ढेर पर चढ़ गया, और उसके बाद, एक सपाट दीवार पर मक्खी की तरह, पैरों को ऐसे छेदों में रखते हुए, कि जिनमें शांतिपूर्ण समय में एक कोपेक भी न समा सके, वह पंजों के बल दीवार पर चढ़ता रहा. उसके नाखून उखड़ गए, उंगलियाँ लहुलुहान हो गईं. दीवार पर पेट के बल लेते हुए उसने सुना कि पीछे, पहले आँगन में, कानों को बहरा कर देने वाली सीटी की और नीरो की आवाज़ सुनाई दी, और इस, तीसरे आँगन में, दूसरी मंजिल की अंधेरी खिड़की से भय से विकृत हुए महिला के चेहरे ने उसकी तरफ़ देखा और फ़ौरन गायब हो गया. दूसरी दीवार से गिरते हुए उसने लगभग सही अनुमान लगाया: बर्फ के टीले पर गिरा, मगर फिर भी गर्दन में मोच आ गई और खोपड़ी में कुछ टूट गया. सिर में झनझनाहट और आंखों में कौंधते तारे महसूस करते हुए निकोल्का दरवाज़े की तरफ़ भागा

ओह, खुशी की बात है! और लो,ये भी बंद है, क्या बेवकूफी है? डिजाइन वाली जाली का है, आरपार जा सकते हैं. निकोल्का, अग्निशामक दल के सदस्य की भाँती, उस पर चढ़ा, पार कर गया, नीचे उतरा और उसने अपने आप को राज़्येज्झाया स्ट्रीट पर पाया. देखा, कि वह एकदम सुनसान है, एक भी आदमी नहीं है. “ पंद्रह सेकण्ड रुक कर सांस ले लूं, ज़्यादा नहीं,वर्ना दिल टूट जाएगा,” – निकोल्का ने सोचा और उसने गर्म हवा निगल ली. “हाँ...डॉक्यूमेंट्स...” निकोल्का ने भीतरी जेब से चीकट हो गए कागज़ात निकाले और उन्हें फाड़ दिया. और वे बर्फ की तरह इधर-उधर उड़ गए. उसने सुना कि उस चौराहे की तरफ़ से, जहाँ उसने नाय-तुर्स को छोड़ा था, मशीनगन गरज उठी और उसका जवाब दिया गोलियों और मशीनगनों ने निकोल्का के सामने वाली दिशा से, वहाँ से, शहर से. तो ये बात है. शहर पर कब्ज़ा कर लिया है. शहर में युद्ध हो रहा है. विनाश. निकोल्का, अभी भी हांफते हुए, दोनों हाथों से बर्फ साफ़ कर रहा था. क्या पिस्तौल फेंक दे? नाय-तुर्स की पिस्तौल? नहीं, किसी हालत में नहीं. हो सकता है, यहाँ से निकल जाऊँ. वे सभी जगहों पर एकदम तो नहीं आ सकते?        

 गहरी सांस लेकर, निकोल्का, यह महसूस करते हुए कि उसके पैर काफी कमजोर हो गए हैं, और मुड़ गए हैं, मृतप्राय राज़्येज्झाया पर भागा और सही-सलामत चौराहे तक पहुँच गया, जहाँ से दो रास्ते जाते थे: ग्लूबोचित्स्काया से पदोल और लोव्स्काया, जो शहर के केंद्र को जाती थी. वहाँ उसने खंभे के पास खून का डबरा और खाद का ढेर, दो फेंकी हुई बंदूकें और स्टूडेंट की नीली कैप देखी. निकोल्का ने अपनी हैट फेंक दी और ये कैप पहन ली. वह उसके लिए छोटी थी और उसे पहन कर वह मस्त मौला, छैला और शहरी बाबू लगने लगा. किसी आवारा की तरह, जिसे जिम्नेशियम से निकाल दिया गया हो. निकोल्का ने कोने के पीछे से सावधानी से लोव्स्काया पर झांका और उसे उस पर बहुत दूर टोपियों पर नीले धब्बों के साथ, नाचता हुआ घुड़सवार दस्ता दिखाई दिया. वहाँ कुछ हलचल थी और छुटपुट गोलियां सुनाई दे रही थीं. वह ग्लुबोचित्स्काया पर आया. वहाँ पहली बार किसी जीवित व्यक्ति को देखा. सामने वाले फुटपाथ पर कोई औरत भाग रही थी, और काली किनार वाली टोपी एक किनारे सरक गई थी, और हाथों में भूरा पर्स हिल रहा था, उसके भीतर से बदहवास मुर्गा बाहर निकलने की कोशिश करते हुए जोर से चिल्ला रहा था: “पितुर्रा,पितुर्रा”. औरत के बाएं हाथ में बैग से, छेद  से फुटपाथ पर गाजर बिखर रही थी. औरत दीवार के साथ-साथ भागते हुए चीख रही थी और रो रही थी. बवंडर की तरह कोई दुकानदार फिसलते हुए आया, चारों ओर सलीब का निशान बनाया और चिल्लाया:

“जीज़स! वलोद्का, वलोद्का! पित्ल्यूरा आ रहा है!”      

लुबोचित्स्काया के अंत में कई लोग धक्कामुक्की कर रहे थे, भागदौड़ कर रहे थे और दरवाजों के भीतर भाग रहे थे. काले ओवरकोट में एक आदमी भय से थरथर काँप रहा था, वह दरवाज़े की ओर लपका, जाली में अपना डंडा घुसाया और झटके से उसे तोड़ दिया.

और समय तो इस बीच उड़ रहा था,उड़ रहा था, और ऐसा लगा कि शाम भी हो गई, और इसलिए, जब निकोल्का लुबोचित्स्काया से वोल्स्की ढलान पर उछला, तो नुक्कड़ पर इलेक्ट्रिक बल्ब भभक उठा और फुसफुसाने लगा. एक छोटी सी दूकान में परदा गिर पडा और उसने फ़ौरन ‘साबुन का पावडर लिखे रंगीन डिब्बों को छुपा दिया. गाड़ीवान ने बर्फ के ढेर पर स्लेज पूरी तरह पलट दी और बेरहमी से घोड़े पर चाबुक बरसाने लगा. निकोल्का की बगल से चार मंजिल का तीन प्रवेशद्वारों वाला घर उछल कर पीछे रह गया, और तीनों प्रवेशद्वारों में हर मिनट दरवाज़े भड़भड़ा रहे थे, और सील की खाल की कॉलर वाला कोई आदमी, निकोल्का के करीब से उछला और दरवाज़े में चिन्घाड़ा:

“प्योत्र! प्योत्र! पागल हो गया है क्या? बंद कर! दरवाज़े बंद कर!”

पोर्च में दरवाज़ा धडाम से बंद हुआ, और अंधेरी सीढ़ियों पर एक औरत की खनखनाती आवाज़ सुनाई दी:

“पित्ल्यूरा आ रहा है. पित्ल्यूरा!”

जैसे जैसे निकोल्का नाय-तुर्स द्वारा बताए गए सुरक्षात्मक पदोल पर आगे भागता जा रहा था, उतने ही ज़्यादा लोग उमड़ते जा रहे थे, और रास्तों पर भाग दौड़ कर रहे थे, परेशान हो रहे थे, मगर अब भय कम हो गया था, और सभी एक ही दिशा में नहीं भाग रहे थे, बल्कि कुछ लोग तो विपरीत दिशा से भी भाग रहे थे.

पदोल की ठीक ढलान के पास, भूरे पत्थर के मकान के पोर्च से सुनहरे V अक्षर वाले सफ़ेद शोल्डर स्ट्रैप्स वाला भूरा ओवरकोट पहने गंभीरता से एक कैडेट बाहर निकला. कैडेट की नाक बटन जैसी थी. उसकी आंखें चंचलता से चारों ओर घूम रही थीं, और एक बड़ी राईफल पीठ पर बेल्ट से बंधी हुई थी. भाग दौड़ करने वाले लोग सशस्त्र कैडेट को भय से देखते और भाग जाते. और कैडेट कुछ देर फुटपाथ पर खड़ा रहा, ऊपरी शहर में हो रही गोली-बारी को एक ख़ास अंदाज़ में और खोजी अंदाज़ में सुनता रहा, नाक से सूंघता रहा और उसने कहीं जाने का निश्चय किया. निकोल्का तेज़ी से अपना रास्ता छोड़कर फुटपाथ पर गया, कैडेट को अपने सीने से दबाया और फुसफुसाते हुए बोला:

“राईफल फेंको और फ़ौरन छुप जाओ.”

कैडेट काँप गया, डर गया, लड़खड़ाया, फिर उसने धमकाते हुए राईफल पकड़ ली. निकोल्का पुराने, आज़माए हुए तरीके से, उसे दबाता रहा, दबाता रहा, पोर्च के भीतर लाया और वहाँ, दो दरवाजों के बीच, उसे प्रेरित किया;

“कह रहा हूँ आपसे, छुप जाओ. मैं – कैडेट हूँ. सर्वनाश हो गया है. पित्ल्यूरा ने शहर पर कब्ज़ा कर लिया है.”

“ऐसे कैसे कब्ज़ा कर लिया है?” कैडेट ने पूछा और उसका मुँह खुल गया, पता चला कि बाईं ओर का एक दांत गायब था.          

“ऐसे,” निकोल्का ने जवाब दिया और, ऊपरी शहर की ओर हाथ हिलाते हुए आगे कहा: “सुन रहे हो? वहाँ रास्तों पर पित्ल्यूरा की घुड़सवार फ़ौज है. मैं मुश्किल से भागा हूँ. घर भागो, राईफल छुपा दो और सबको आगाह कर दो.”

कैडेट सुन्न हो गया, और निकोल्का ने उसे वैसी ही हालत में पोर्च में छोड़ दिया, क्योंकि जब वह इतना नासमझ है, तो उससे बातें करने की फुर्सत नहीं थी.

पदोल में इतना तीव्र भय का वातावरण नहीं था, मगर भगदड़ थी, और काफी ज़्यादा थी. आने-जाने वाले अपनी चाल तेज़ कर रहे थे, अक्सर सिर उठाते, गौर से सुनते, भूरी शालों में खुद को लपेट कर अनेक रसोइये उछलकर पोर्च और दरवाजों में घुस जाते. ऊपरी शहर से लगातार मशीनगनों की खड़खड़ाहट सुनाई दे रही थी. मगर चौदह दिसंबर के इस शाम के धुंधलके में कहीं भी, न दूर, न पास, गोलों की आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी.

निकोल्का का रास्ता लंबा था. जब तक उसने पदोल पार किया, अँधेरे ने बर्फीले रास्तों को पूरी तरह ढांक लिया था, और भगदड़ तथा भय को तेज़ी से गिरती हुई मुलायम बर्फ ने नरम बना दिया, जो स्ट्रीट लैम्पों के पास प्रकाश के धब्बों में उड़ रही थी. उसकी विरल जाली से प्रकाश कौंध जाता, टपरियों और दुकानों में खुशनुमा रोशनी थी, मगर सभी में नहीं: कुछ दुकानों में तो अन्धेरा हो गया था. ऊपर से अधिकाधिक बर्फ गिरने लगी थी. जब निकोल्का अपनी स्ट्रीट, खड़ी ढलान वाली अलेक्सेयेव्स्की स्ट्रीट के पास आया,और उस पर चढ़ने लगा, तो उसने मकान नंबर 7 के दरवाज़े के पास ये तस्वीर देखी: दो बच्चे, बुनी हुए जैकेट्स और हेल्मेट पहने अभी-अभी स्लेज से उतार से आए थे. उनमें से एक, छोटा और गोल मटोल, गेंद जैसा, बर्फ में लिपटा हुआ, बैठा था और ठहाके लगा रहा था. दूसरा, जो थोड़ा बड़ा था, दुबला-पतला और गंभीर, रस्सी की गाँठ खोल रहा था. दरवाज़े के पास भेड़ की खाल का कोट पहने एक लड़का खड़ा था और नाक में उंगली डाल रहा था. गोलीबारी की आवाज़ सुनाई देने लगी. वह वहाँ, ऊपर, विभिन्न स्थानों पर भड़क रही थी. “वास्का,वास्का, मैं खंभे से कैसे टकराया था!” छोटा वाला चिल्लाया.

“कैसे आराम से स्लेज पर घूम रहे हैं,’ निकोल्का ने अचरज से सोचा और लडके से प्यार से पूछा:

“प्लीज़, बताइये, ये ऊपर की तरफ गोलीबारी क्यों हो रही है?

लड़के ने नाक से उंगली निकाली, कुछ देर सोचा और नकीली आवाज़ में कहा:

“हमारे लोग ऑफिसर्स को मार रहे हैं.”

निकोल्का ने कनखियों से उसकी तरफ़ देखा और यंत्रवत् जेब में रखी पिस्तौल पर उंगलियाँ फेरीं. बड़े लडके ने गुस्से से कहा:

“अफसरों को सबक सिखा रहे हैं. ऐसा ही होना चाहिए. पूरे शहर में वे आठ सौ लोग हैं, और बेवकूफ बने घूम रहे थे. पित्ल्यूरा आया, और उसके पास दस लाख सैनिक हैं.

वह मुड़ा और स्लेज को खींचने लगा.

 

 

***  

 

बरामदे से छोटे से डाइनिंग रूम का दूधिया परदा फ़ौरन खुल गया.

घड़ी... टोंक-टांक...

क्या अलेक्सेइ वापस आ गया?” निकोल्का ने एलेना से पूछा.

“नहीं,” उसने जवाब दिया और रोने लगी.

 

***

 

अन्धेरा. पूरे क्वार्टर में अन्धेरा है. सिर्फ किचन में लैम्प जल रहा है...अन्यूता मेज़ पर कोहनियाँ रखे बैठी है और रो रही है. बेशक, अलेक्सेइ वसील्येविच के लिए....एलेना के शयन कक्ष में भट्टी में लकडियाँ दहक रही हैं. ढक्कन से बाहर धब्बे उछलते हैं और गर्मजोशी से फर्श पर नाचते हैं. एलेना स्टूल पर बैठी है,गाल को मुट्ठी पर टिकाये,अलेक्सेइ के बारे में काफ़ी रो चुकी है, और निकोल्का उसके पैरों के पास आग के लाल धब्बे में, कैंची की तरह टांगें फैलाए.

                     

बल्बतून...कर्नल. आज दोपहर में शिग्लोवों के यहाँ कह रहे थे, कि वह कोई और नहीं, बल्कि महान राजकुमार मिखाइल अलेक्सान्द्रविच है.  आम तौर से यहाँ, आधे अँधेरे और लपटों की चमक के कारण निराशा है. अलेक्सेइ  के बारे में क्यों रोना है? रोने से कोई फ़ायदा नहीं होगा. बेशक, उसे  मार डाला है. सब स्पष्ट है. वे अपने साथ कैदियों को नहीं लेते. जब वापस नहीं आया, तो इसका मतलब है कि डिविजन समेत पकड़ लिया गया, और उसे मार डाला गया. भयानक बात ये है कि, सुना है, पित्ल्यूरा के पास आठ लाख फ़ौजी हैं, बढ़िया और चुने हुए. हमें धोखा दिया गया, मरने के लिए भेज दिया गया...

ये खतरनाक फ़ौज आई कहाँ से? नीली नुकीली और धुंधलके की हवा में, बर्फीली धुंध से बुनी हुई.... अस्पष्ट...धुंधली...

एलेना ने उठाकर हाथ फैलाया.

“धिक्कार है, जर्मनों पर. खुदा की मार पड़े उन पर. मगर, मगर, यदि खुदा उन्हें सज़ा नहीं देता, तो इसका मतलब ये है कि उसके पास न्याय नहीं है. क्या ऐसा संभव है, कि उन्हें इसका जवाब न देना पड़े? उन्हें जवाब देना पडेगा. उन्हें भी उसी तरह तड़पना पडेगा, जैसे हम तड़प रहे हैं, तड़पेंगे.”

उसने जिद्दीपन से ‘तड़पेंगेशब्द दुहराया, मानो शाप दे रही हो. उसके चेहरे और गर्दन पर लाल रोशनी खेल रही थी, और खाली आंखें असीम घृणा से काली हो रही थीं. ऐसी चीखों से निकोल्का, पैर फैलाए, भय और शोक में डूब गया.

“हो सकता है, कि वह अभी भी ज़िंदा हो?” उसने घबराते हुए पूछा. “देखो,चाहे जो भी हो, वह तो डॉक्टर है...अगर उसे पकड़ भी लिया हो, तो हो सकता है, मारेंगे नहीं, बल्कि गिरफ्तार कर लिया हो.”

“बिल्लियाँ खायेंगे, एक-दूसरे को मार डालेंगे, जैसे कि हम,”  एलेना ने खनखनाती आवाज़ में कहा और नफ़रत से लपटों को उँगलियों से धमकाया.

“ऐह, ऐह... बल्बतून महान राजकुमार नहीं हो सकता. आठ लाख फ़ौजी नहीं हो सकते, और दस लाख भी नहीं... मगर, कोहरा. आ गया है, भयानक समय आ गया है. और तालबेर्ग तो, लगता है, अक्लमंद है, सही समय पर भाग गया. फर्श पर लपटें नृत्य कर रही हैं. वो था, शान्ति का समय और थे ख़ूबसूरत देश. उदाहरण के लिए, पैरिस और तस्वीरों वाली हैट में लुई, और क्लोपेन त्रुलेफू ने रेंगते हुए ऐसी ही आग तापी थी. और उसे, भिखारी को भी, अच्छा लगता था. मगर, कहीं भी, कभी भी, ऐसा घिनौना कमीना, जैसे लाल बालों वाला दरबान नीरो है, नहीं था. बेशक, सब, हमसे नफ़रत करते हैं, मगर वह तो यूनिफ़ॉर्म पहना सियार है! पीछे से हाथ मरोड़ता है.”          

  


*** 

 

और अब खिड़कियों से बाहर गोले गरजने लगे. निकोल्का उछला और घूमने लगा.

“तुम सुन रही हो? सुन रही हो? सुन रही हो? हो सकता है, ये जर्मन हों? हो सकता है, सहयोगी सहायता के लिए आये हों? कौन? आखिर वे शहर पर तो गोलियां नहीं चला सकते, यदि उन्होंने उसे ले लिया है.”

एलेना ने सीने पर हाथ रखे और बोली:

“निकोल, चाहे कुछ भी हो, मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी. नहीं जाने दूंगी. विनती करती हूँ, कि कहीं मत जाओ. बेवकूफ़ न बनो.” 

“मैं सिर्फ अन्द्रेयेव्स्की चर्च के पास वाले चौक तक जाना चाहता था, और वहाँ से देखता और सुनता. वहाँ से तो पूरा पदोल दिखाई देता है.”

“अच्छा, जाओ. अगर ऐसे समय में तुम मुझे अकेला छोड़ सकते हो, तो जाओ.”

निकोल्का शर्मिन्दा हो गया.

“अच्छा, तो मैं सिर्फ आँगन में जाकर सुनूंगा.”

“मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी.”

“लेनच्का, और अगर अलेक्सेइ वापस आया, तो सामने से घंटी नहीं सुन पायेंगे?

“हाँ,नहीं सुन पायेंगे. और इसके लिए कुसूरवार तुम होगे.”

“अच्छा, तब, लेनाच्का, मैं तुमसे वादा करता हूँ, कि आँगन से एक भी कदम आगे नहीं जाऊंगा.”

“वादा?

“वादा.”

 

“तुम गेट से बाहर नहीं जाओगे? पहाड़ी पर नहीं चढ़ोगे? आँगन में ही खड़े रहोगे?     

“वादा करता हूँ.”

“जाओ.”

**** 

 

संन् उन्नीस सौ अठारह की चौदह दिसंबर को बेहद घनी बर्फ ने शहर को पूरी तरह ढांक दिया. और ये विचित्र, अप्रत्याशित गोलीबारी रात के नौ बजे होने लगी. ये सिर्फ पंद्रह मिनट चली.

निकोल्का की कॉलर के पीछे बर्फ पिघल रही थी, और वह बर्फीली चोटियों पर चढ़ने के लालच से संघर्ष कर रहा था. वहाँ से न सिर्फ पदोल, बल्कि ऊपरी शहर का कुछ हिस्सा भी दिखाई देता, सेमिनरी दिखाई देती, ऊंचे-ऊंचे घरों की रोशनियों की सैंकड़ों कतारें, टीले और उनके ऊपर बने घर, जहाँ खिड़कियाँ रोशनी से झिलमिलाती हैं. मगर वादा तो किसी भी आदमी को नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि दुनिया में रहना नामुमकिन हो जाएगा. निकोल्का यह सब सोच रहा था. दूर से आती हर भयानक गरज के साथ वह यह प्रार्थना करता: “खुदा, दो...”

मगर तोपें शांत हो गईं.

“ये हमारी तोपें थीं,” निकोल्का ने कड़वाहट से सोचा. गेट से वापस लौटते हुए उसने शिग्लोवों की खिड़की में झांका. आउट हाउस में, खिड़की का परदा ऊपर कर दिया गया था और दिखाई दे रहा था:  मारिया पित्रोव्ना पेत्का को नहला रही थी. नंगा पेत्का टब में बैठा था और बिना आवाज़ किये रो रहा था, क्योकि उसकी आँख में साबुन चला गया था, मारिया पित्रोव्ना पेत्का के ऊपर स्पंज निचोड़ रही थी. रस्सी पर अंतर्वस्त्र लटके हुए थे, और अंतर्वस्त्रों के ऊपर मारिया पित्रोव्ना की बड़ी परछाईं झुक रही थी. निकोल्का को ऐसा लगा, कि शिग्लोवों के यहाँ काफी गर्माहट है, आरामदेह है, और उसे अपने खुले हुए ओवरकोट में ठण्ड लग रही है.

 

****  

 

शहर की बाहरी सीमा से करीब पाँच मील दूर, उत्तर में, गहरी बर्फ में, एक गार्ड हाउस में, जो बर्फ की मोटी पर्त से ढंका था और जिसे चौकीदार छोड़कर चला गया था, स्टाफ-कैप्टेन बैठा था. छोटी सी मेज़ पर एक डबल रोटी पड़ीं थी, फ़ील्ड-टेलीफोन और तीन बत्तियों वाला, कालिख से ढंका, मोटे पेट जैसे कांच वाला लैम्प खड़ा था. भट्टी में धीमी-धीमी आग जल रही थी. कैप्टेन छोटे कद का, लम्बी नुकीली नाक वाला, बड़े कॉलर ओवरकोट में था. वह बाएं हाथ से पकड़ कर डबल रोटी की किनार तोड़ रहा था, और दायें हाथ से टेलीफोन के बटन दबा रहा था. मगर टेलीफोन तो जैसे मर गया था और उसे कोई जवाब नहीं दे रहा था.

कैप्टेन के चारों और,करीब तीन मील के दायरे में, कुछ भी नहीं था, सिवाय अँधेरे और उसमें घने कोहरे के. बर्फ के टीले थे.   

एक और घंटा बीता, और स्टाफ़-कैप्टेन ने टेलीफोन को अकेला छोड़ दिया. रात को करीब नौ बजे उसने नाक से सूंघा और न जाने क्यों जोर से कहा:

“पागल हो जाऊंगा. असल में तो अपने आप को गोली मार लेना चाहिए था. – और, जैसे उसे जवाब देते हुए टेलीफोन गाने लगा.

“क्या ये छठी बैटरी है?” दूर की आवाज़ ने पूछा.

“हाँ, हाँ,” कैप्टेन ने बेहद खुशी से जवाब दिया.

दूर से आती परेशान आवाज़ अत्यंत प्रसन्न और खोखली प्रतीत हो रही थी:

“फ़ौरन आसपास के ट्रैक्ट पर फायरिंग शुरू करो...” दूर से अस्पष्ट संभाषणकर्ता फोन पर भर्राया, “बवंडर...” आवाज़ कट गई.

“मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है...’ और आवाज़ फिर से कट गई.

“हाँ, सुन रहा हूँ, सुन रहा हूँ,” बदहवासी से अपने दांत भींचते हुए कैप्टेन स्पीकर में चीखा. लंबा अंतराल बीता.

“मैं फायरिंग नहीं कर  सकता,” कैप्टेन ने स्पीकर में कहा, अच्छी तरह महसूस करते हुए कि वह निपट शून्य में बात कर रहा है, मगर बिना कहे रह नहीं सकता था.

“मेरे सभी अर्दली और तीन एन्साईन भाग गए. बैटरी में मैं अकेला हूँ. कृपया ‘पोस्ट’ को सूचित करें.” 

स्टाफ-कैप्टेन एक और घंटा बैठा रहा, फिर बाहर निकला. बेहद तेज़ बर्फबारी हो रही थी. चार उदास और भयानक तोपों को बर्फ ने ढांक दिया था, और उनके हैंडल तथा तालों के पास पपड़ी जमने लगी थी. तेज़ बवंडर था, और बर्फीले तूफ़ान की ठंडी चिंघाड़ में कैप्टेन अंधे की तरह टटोल रहा था. इस तरह अंधेपन में वह बड़ी देर तक घूमता रहा, जब तक कि बर्फीले अँधेरे में उसने अंदाज़ से पहला ताला नहीं निकाल लिया. उसे गार्ड-हाऊस के पीछे कुंए में फेंकना चाहता था, मगर फिर उसने इरादा बदल दिया और गार्ड-हाउस में लौट आया. और तीन बार बाहर गया और तोपों से चारों ताले निकाल लिए और उन्हें फर्श के नीचे तहखाने में छुपा दिया, जहाँ आलू पड़े थे. इसके बाद लैम्प बुझाकर वह अँधेरे में निकल गया. करीब दो घंटे वह चलता रहा, बर्फ में डूबते हुए, पूरी तरह अदृश्य और काला, और शहर को जाने वाले राजमार्ग तक पहुँचा. राजमार्ग पे इक्का-दुक्का लालटेनें जल रही थीं. इनमें से पहली ही लालटेन के नीचे सिरों पर चोटियों वाले अश्वारिहियों ने उसे तलवारों से मार डाला, उसके जूते और घड़ी निकाल ली.    

वही आवाज़ गार्ड-हाउस से करीब चार मील दूर पश्चिम में एक ट्रेंच में प्रकट हुई.

“फायर करो...जंगल की तरफ,फ़ौरन. मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है, कि दुश्मन हमारे और आपके बीच से शहर की ओर गया है.”
“सुन रहे हैं
? सुन रहे हैं?” ट्रेंच से उसे जवाब दिया गया.

“हेडक्वार्टर से पता करो...,” आवाज़ कट गई.

आवाज़ बिना सुने रिसीवर में टर्राती रही:

“ जोरदार फायर करो जंगल की तरफ़ ...घोड़ों पर...”

और आवाज़ पूरी तरह कट गई.

ट्रेंच से भेड़ की खाल के ओवरकोट पहने, लालटेन लिए तीन ऑफिसर्स और तीन कैडेट्स बाहर आये. चौथा ऑफिसर और दो कैडेट्स लालटेन के निकट हथियारों के पास थे, जिसे बर्फीला तूफ़ान बुझाने की कोशिश कर रहा था. पाँच मिनट बाद अँधेरे में तोप के गोले भयानक रूप से उछलने और फूटने लगे. ताकतवर गरज से उन्होंने आसपास का क़रीब तेरह मील के घेरे को भर दिया, गरज अलेक्सेयेव्स्की ढलान पर 13 नंबर के घर तक पहुंची...

खुदा, मेहेरबानी...

 बर्फीले तूफ़ान में गरागराते हुए सौ घुड़सवार स्ट्रीट लैम्प के पीछे अँधेरे से उछले और उन्होंने सभी कैडेट्स और चारों ऑफिसर्स को मार डाला. ट्रेंच में टेलीफोन के पास बैठे कमांडर ने अपने              मुँह में गोली मार ली.

कमांडर के अंतिम शब्द थे:

“स्टाफ हेडक्वार्टर के कमीने. अच्छी तरह समझता हूँ मैं बोल्शेविकों को.”

 

****   

 

रात को निकोल्का ने अपने कोने वाले कमरे में ऊपर वाली लाईट जलाई और कलम जैसे चाकू से अपने दरवाज़े पर बड़ा सा क्रॉस तराशा और उसके नीचे टूटी-फूटी इबारत लिखी:

 

“क. तुर्स. 14 दिसंबर. सन् 1918. दोपहर 4 बजे.”

गुप्तता की दृष्टी से ‘नाय निकाल दिया, यदि पित्ल्यूरा के आदमी तलाशी लेने आ जाएँ तो.

सोना नहीं चाहता था, जिससे घंटी की आवाज़ सुन सके, एलेना की दीवार पर खटखटा कर कहा:

“तुम सो जाओ,” मैं नहीं सोऊँगा.”

और फ़ौरन मुर्दे की भांति सो गया, कपडे पहने, पलंग पर. मगर एलेना सुबह तक नहीं सोई और कान देकर सुनाती रही कि कहीं घंटी तो नहीं बजी. मगर कोई घंटी नहीं बजी, और बड़े भाई अलेक्सेइ  का कोई पता नहीं था.

 

****  

 

 

एक थके हुए, टूटे हुए आदमी के लिए सोना ज़रूरी है, और ग्यारह घंटे हो गए, वह सो ही रहा है....मस्ती से सो रहा है, मैं आपको बताता हूँ! जूते परेशान कर रहे हैं, बेल्ट पसलियों में चुभ रही है, कॉलर दम घोंट रही है, और सीने पर एक दु:स्वप्न बैठ गया, पंजे गड़ाए.

निकोल्का पीठ के बल बिस्तर पर धंस गया था,चेहरा लाल हो गया था, गले से सीटी की आवाज़...सीटी! बर्फ और कोई मकड़ी का जाला...ओह, चारों ओर मकड़ी का जाला, शैतान ले जाए! सबसे महत्वपूर्ण बात है इस जाल से बाहर निकलना, वरना, वो शैतान, बढ़ता जाएगा, बढ़ता जाएगा और चेहरे तक आ जाएगा. और, क्या कहें, आपको इस तरह लपेट ले कि बाहर ही न निकल सकोगे! वैसे ही दम तोड़ दोगे. मकड़ी के जाल के पीछे है एकदम साफ़ बर्फ, जितनी चाहो, पूरे-पूरे मैदान. इस बर्फ पर निकलना होगा, और जितनी जल्दी हो सके, क्योंकि किसी की आवाज़ जैसे कराही: “निकोल!” और अब, कल्पना कीजिये, कोई चंचल पंछी इस जाल में फंस गया और खटखटाने लगा....टि-की-टिकी, टिकी, टिकी,टिकी. फ्यू. फि-यू!  टिकी,टिकी. फू:, तू, शैतान! वह खुद तो दिखाई नहीं दे रहा है, मगर कहीं पास ही में सीटी बजा रहा है, और, कोई और भी अपनी किस्मत पे रो रहा है, और फिर आवाज़: “निक! निक! निकोल्का!!”

“एह!” निकोल्का गुर्राया, उसने मकडी का जाला फाड़ दिया और झटके से उठ बैठा, अस्त-व्यस्त, आहत, बैज किनारे को झुक गया था. सुनहरे बाल खड़े थे, जैसे कोई निकोल्का को बड़ी देर से सहला रहा हो.

“कौन? कौन? कौन?” कुछ भी न समझ पाते हुए निकोल्का ने खौफ़ से पूछा.

“कौन. कौन. कौन. कौन. कौन. कौन.  अच्छा!...फीती! फि-ऊ! फ्यूख!” – मकड़ी के जाले ने जवाब दिया, और भीतर ही भीतर आंसुओं से लबालब दर्दभरी आवाज़ ने कहा:

“हाँ, प्रेमी के साथ!”

निकोल्का डर के मारे दीवार से चिपक गया और उसने आकृति पर नज़र जमा दी. आकृति कत्थई जैकेट में थी, कत्थई रंग की ही घुड़सवारों वाली पतलून और जॉकियों के पीले जूतों में थी. आंखें धुंधली और उदास, छोटे-छोटे बालों वाले, अविश्वसनीय रूप से बड़े सिर के गहरे कोटरों से देख रही थीं. नि:संदेह वह जवान थी, आकृति, मगर चहरे की त्वचा बूढ़ी, भूरी थी, और दांत पीले और टेढ़े-मेढ़े दिखाई दे रहे थे. आकृति के हाथों में एक बड़ा पिंजरा था, काले रूमाल से ढंका हुआ, और खुला हुआ नीला ख़त....

“मैं अभी जागा नहीं हूँ,” निकोल्का ने अनुमान लगाया और हाथ घुमाकर मकड़ी के जाले की तरह आकृति को फाड़ने की कोशिश की और बड़े दर्द से उंगलियाँ सलाखों में घुसा दीं. काले पिंजरे में फ़ौरन, तैश में आकर, पंछी चिल्लाया और सीटी बजाने लगा, और फड़फड़ाने लगा.

“निकोल्का!” कहीं दूर-बहुत दूर एलेना की आवाज़ घबराहट से चिल्लाई.

“जीज़स क्राईस्ट,” निकोल्का ने सोचा, “नहीं, मैं जाग गया हूँ, मगर फ़ौरन पगला गया, और मुझे पता है क्यों – युद्ध की भीषण थकान के कारण. माय गॉड! और बेमतलब की चीज़ें देख रहा हूं...और उंगलियाँ ? खुदा! अलेक्सेइ  वापस नहीं लौटा...आह, हाँ...वह वापस नहीं आया...मार डाला...ओय, ओय, ओय!”

“प्रेमी के साथ उसी दीवान पर,” आकृति ने दुःख से कहा, “ जिस पर बैठकर मैं उसे कवितायेँ सुनाता था.”

आकृति दरवाज़े की ओर मुडी, ज़ाहिर है किसी श्रोता की ओर, मगर फिर पूरी तरह से निकोल्का से मुखातिब हुई:

“हाँ-आ, उसी दीवान पर...अब वे बैठे हैं और एक दूसरे को चूम रहे हैं...पचहत्तर हज़ार के प्रॉमिसरी नोटों के पश्चात् जिन पर मैंने बिना सोचे-समझे, जेंटलमैन की तरह दस्तखत कर दिए. क्योंकि मैं जेंटलमैन था और हमेशा रहूँगा. चूमने दो उन्हें!”

“ओह, एय,एय,” निकोल्का ने सोचा. उसकी आंखें बाहर निकलने को हो रही थीं और पीठ में ठंडक दौड़ गई.                 

 

“खैर,माफ़ी चाहता हूँ,” अस्थिर,उनींदे कोहरे से बाहर निकल कर, वास्तविक मानव शरीर धारण करते हुए आकृति ने कहा, “आपको, शायद, बात पूरी तरह से समझ में नहीं आई है? तो, ये ख़त लीजिये, - ये आपको सब समझा देगा. अपनी शर्मिन्दगी को मैं किसी से नहीं छुपाता, जेंटलमैन की तरह.”

इतना कहकर अजनबी ने निकोल्का के हाथ में नीला ख़त थमा दिया. पूरी तरह भौंचक्के निकोल्का ने ख़त ले लिया और जल्दबाजी में लिखे, परेशान, बड़े-बड़े अक्षरों को होंठ हिलाते हुए पढ़ने लगा. बिना किसी तारीख के, नाज़ुक आसमानी कागज़ पर लिखा था:

मेरी प्यारी-प्यारी लेनच्का! मैं आपके भले और उदार मन को जानती हूँ, और उसे सीधे आपके पास भेज रही हूँ, किसी अपने की तरह. वैसे, टेलीग्राम तो मैंने भेज दिया है, मगर वह, बेचारा अभागा बच्चा, खुद ही आपको सब कुछ बताएगा. लारिसच्का को बहुत गहरा आघात पहुँचा है, और मैं काफी दिनों तक डर रही थी, कि वह बर्दाश्त कर पायेगा या नहीं. मीलच्का रुब्त्सोवा, जिससे, जैसा कि आप जानती हैं, उसने साल भर पहले शादी की थी, आस्तीन का सांप निकली. उसे अपने यहाँ रख लीजिये, विनती करती हूँ, और ऐसा स्नेह दीजिये, जैसा आप देती हैं. मैं नियमित रूप से खर्चा भेजती रहूँगी, झितोमिर से उसे नफ़रत हो गई है और मैं इसे अच्छी तरह समझ सकती हूँ. खैर, ज़्यादा नहीं लिखूँगी, - मैं बेहद परेशान हूँ, और अभी एम्बुलेन्स–ट्रेन आने ही वाली है, वह खुद ही आपको सब कुछ बताएगा.

शिद्दत से आपको चूमती हूँ,

शिद्दत से ही सिर्योझा को भी!”

इसके बाद समझ में न आने वाले हस्ताक्षर थे.

“मैं अपने साथ पंछी पकड़ कर लाया हूँ,” अनजान व्यक्ति ने आह भरते हुए कहा, “ पंछी आदमी का सबसे अच्छा दोस्त है. हाँलाकि, ये भी सच है कि कई लोग इसे घर में फ़ालतू समझते हैं, मगर मैं एक बात कह सकता हूँ – पंछी, किसी भी हाल में किसी का बुरा नहीं करता.”

ये आख़िरी वाक्य निकोल्का को बहुत अच्छा लगा. कुछ भी समझने की कोशिश न करते हुए, उसने सकुचाहट से इस अगम्य पत्र से अपनी भौंह खुजाई और यह सोचते हुए पलंग से पैर उतारने लगा: “असभ्यता है....पूछना कि उसका कुलनाम क्या है?...

अजीब घटना है...”

“क्या यह कैनरी चिड़िया है? उसने पूछा.

“हाँ, मगर कैसी!” अनजान व्यक्ति ने उत्साह से जवाब दिया, “सच कहूं तो, ये कैनरी चिड़िया नहीं, बल्कि असली कैनार है. मर्द. और मेरे पास झितोमिर में ऐसी पंद्रह हैं. मैं उन्हें मम्मा के पास ले गया, वह उन्हें खिलाए. ये बदमाश तो, शायद उनकी गर्दनें मरोड़ देता. उसे पंछियों से नफ़रत है. क्या मुझे फिलहाल इसे अपनी लिखने की मेज़ पर रखने की इजाज़त देंगे?

“शौक से, प्लीज़,” निकोल्का ने जवाब दिया. “क्या आप झितोमीर से हैं?”  

ओह, हाँ,” अजनबी ने जवाब दिया, “और, सोचिये, कैसा संयोग: मैं उसी समय आया, जब आपका भाई पहुँचा.”

“कौन सा भाई?

“कौनसा- क्या? आपका भाई मेरे साथ-साथ ही पहुँचा,” अजनबी ने अचरज से जवाब दिया.

“कौन सा भाई,” दयनीयता से निकोल्का चीखा, “कौन सा भाई? झितोमिर से?!”

“आपका बड़ा भाई...”

मेहमानखाने में एलेना की आवाज़ जोर से चीखी:

“निकोल्का! निकोल्का! इलारिओन लरिओनिच! अरे जगाओ इसे! जगाओ!”

“त्रिकी, फित, फित, त्रिकी” पंछी देर तक चिल्लाया.

निकोल्का ने नीला ख़त गिरा दिया, और गोली की तरह लाइब्रेरी से होते हुए डाइनिंग रूम में भागा और वहाँ पहुंचकर, हाथ फैलाए, जम गया.

फटे अस्तर वाले पराये काले कोट, और पराई काली पतलून में अलेक्सेइ तुर्बीन घड़ी के नीचे, दीवान पर निश्चल पड़ा था. नीलाई वाले फीकेपन से उसका चेहरा फीका पड़ा था, और दांत भिंचे हुए थे. एलेना उसके पास भागदौड़ कर रही थी, उसका गाऊन खुल गया था, और काली  स्टॉकिंग्स तथा अंतर्वस्त्रों की लेस दिखाई दे रही थी. “निकोल! निकोल!” चिल्लाते हुए वह कभी तुर्बीन  के सीने पर बटन पकड़ती, कभी उसके हाथ पकड़ती.

तीन मिनट बाद सिर पर पीछे की ओर खिंची स्टूडेंट्स वाली कैप में, खुले हुए भूरे ओवरकोट में ज़ोर-ज़ोर से हांफते हुए निकोल्का अलेक्सान्द्रोव्स्की चढ़ाई पर ऊपर की ओर भागा जा रहा था और बड़बड़ा रहा था: “और, अगर वह न मिला तो? ये है किस्सा पीले जॉकियों वाले जूतों का! मगर कुरीत्स्की को तो किसी भी हालत में नहीं बुलाना चाहिए, ये बिल्कुल स्पष्ट है...व्हेल और बिल्ली...” उसके दिमाग में पंछी की बहरा कर देने वाली आवाज़ टक टक कर रही थी – “व्हेल, बिल्ली, व्हेल, बिल्ली!”                    

एक घंटे बाद डाइनिंग रूम में फर्श पर तसला रखा था, जो पतले लाल द्रव से भरा था, फटे हुए बैंडेज के लाल टुकड़े और प्लेट के टुकड़े पड़े थे, जिसे जॉकियों के पीले जूतों वाले अजनबी ने गिलास निकालते समय बगल वाली अलमारी से गिरा दिया था. सभी उन टुकड़ों के ऊपर से चरमराते हुए आगे-पीछे चल रहे थे, भाग रहे थे. तुर्बीन विवर्ण, मगर अब नीलाई रहित, पहले ही की तरह तकिये पर सिर रखे लेटा था. वह होश में आ गया था और कुछ कहना चाहता था, मगर सुनहरा नाक-पकड़ चष्मा पहने, आस्तीनें ऊपर उठाए, नुकीली दाढी वाले डॉक्टर ने उसके ऊपर झुककर, जालीदार कपड़े से खून से लथपथ हाथों को पोंछते हुए कहा:  

“चुप रहिये, साथी...”

बड़ी-बड़ी आंखों और चाक जैसे सफ़ेद फक् चेहरे वाली अन्यूता और लाल, बिखरे बालों वाली एलेना ने मिलकर तुर्बीन को ऊठाया और उसके बदन से खून और पानी से तरबतर, कटी हुई बांह वाली कमीज़ उतारने लगीं.

“आप और आगे काटिए, अफ़सोस करने की बात नहीं है,” नुकीली दाढ़ी वाले ने कहा.

तुर्बीन  के दुबले-पतले बदन और बायें हाथ को नंगा करते हुए, जिसे अभी-अभी बैंडेज से कंधे तक कस कर बांधा गया था, उसकी कमीज़ को कैंची से छोटे-छोटे टुकड़ों में काटते हुए निकाला गया. बैंडेज के ऊपर और नीचे से पट्टियां झाँक रही थीं. निकोल्का ने घुटनों पर बैठकर सावधानी से बटन खोले और तुर्बीन  की पतलून उतारी.

“पूरे कपडे उतार दीजिये और फ़ौरन बिस्तर में सुला दीजिये,” नुकीली दाढ़ी वाले ने गहरी आवाज़ में कहा. अन्यूता जार से उसके हाथों पर पानी डाल रही थी, और साबुन के गुच्छे तसले में गिर रहे थे. अनजान आदमी एक किनारे खडा था, वह इस परेशानी और भागदौड़ में कोई भाग नहीं ले रहा था, और सिर्फ कभी-कभी टूटी हुई प्लेटों पर नज़र डाल लेता, या, शर्म से अस्तव्यस्त एलेना पर नज़र डाल लेता, जिसका गाऊन पूरी तरह सरक गया था. अजनबी की आंखें आंसुओं से नम थीं.

सब मिलकर तुर्बीन को डाइनिंग रूम से उसके कमरे में ले गए, वहाँ भी अजनबी ने हाथ बटाया:  उसने तुर्बीन के घुटनों के नीचे अपने हाथ घुसाए और उसके पैरों को उठाया.

मेहमानखाने में एलेना ने डॉक्टर की ओर पैसे बढ़ाए. उसने हाथ से उन्हें हटा दिया...

“आप क्या कर रही हैं, ऐ खुदा,” उसने कहा, “डॉक्टर से? यहाँ एक ज़्यादा महत्वपूर्ण सवाल है. असल में, हॉस्पिटल जाना ज़रूरी...”

“नहीं,” तुर्बीन की क्षीण आवाज़ आई,” “हॉस्पिटल न...”

“खामोश रहिये, सहयोगी,” डॉक्टर ने कहा, “हम आपके बगैर भी सब ठीक कर लेंगे. हाँ, बेशक, मैं खुद भी समझता हूँ...शैतान जाने इस समय शहर में क्या चल रहा है...” उसने खिड़की की तरफ इशारा किया. “हुम्...हाँ, वह सही कह रहा है: नहीं ले जाना चाहिए...अच्छा, फिर क्या, तो घर में ही...आज शाम को मैं आऊँगा.”

“क्या कोई खतरे की बात है, डॉक्टर?” एलेना ने व्यग्रता से पूछा.

डॉक्टर ने लकड़ी के फर्श पर नज़र जमा दी, मानो चमचमाते पीलेपन में ही निदान छुपा है, गला साफ़ किया और दाढी सहलाकर उसने जवाब दिया:

“हड्डी सही सलामत है...हुम्...प्रमुख रक्त वाहिनियाँ अनछुई हैं, नसें भी...मगर पीप आता रहेगा...ज़ख्म में ओवरकोट के ऊन के धागे गिर गए थे...” इन कुछ कम समझ में आने वाले विचारों को बाहर निकाल कर डॉक्टर ने आवाज़ ऊँची की और आत्मविश्वास से कहा: “पूरा आराम...मॉर्फीन, अगर बहुत दर्द हो तो...मैं खुद ही शाम को इंजेक्शन लगाऊँगा. खाने के लिए – तरल पदार्थ... अं, शोरवा दीजिये...ज़्यादा बात न करे...”

“डॉक्टर, डॉक्टर, मैं विनती करती हूँ...उसने कहा है, कि कृपया किसी को भी न बताएँ...”

डॉक्टर ने एलेना पर तिरछी नज़र डाली उदास और गहरी और बुदबुदाया:

“हाँ, मैं समझता हूँ...उसके साथ ये हुआ कैसे?....”

एलेना ने सिर्फ संयम से गहरी सांस ली और हाथ हिला दिए.

“ठीक है,” – डॉक्टर बुदबुदाया और किनारे से, भालू की तरह, प्रवेश कक्ष में रेंग गया.

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