६.पहली रात
ताले के
कान से एक सफ़ेद पर्चा झाँक रहा था. शाम के धुंधलके में करत्कोव ने उसे पढ़ा.
“प्यारे
पड़ोसी! मैं ज्विनीगरद जा रही हूँ, माँ के पास. आपके लिए
वाईन का गिफ्ट छोड़कर जा रही हूँ. तंदुरुस्ती के लिए पीजिये – उसे कोई भी खरीदना
नहीं चाहता. वे कोने में हैं.
आपकी आ.
पइकोवा”.
टेढ़ा
मुंह करके मुस्कुराने के बाद, करत्कोव ने ताला
खड़खड़ाया, बीस चक्करों में
कॉरीडोर में रखी सारी बोतलें अपने कमरे में घसीट लाया, लैंप जलाया और, जैसे था –
कैप और ओवरकोट में – पलंग पर लुढ़क गया. सम्मोहित व्यक्ति की तरह करीब आधे घंटे तक
क्रॉमवेल की तस्वीर को देखत्ता रहा, जो घने होते हुए
धुंधलके में घुलती जा रही थी, फिर उछला और अचानक किसी हिंसक पात्र में बदल गया.
कैप को खींच कर उसे कोने में फेंक दिया, एक झटके
में माचिसों के पैकेट फर्श पर फेंक दिए और पैरों से उन्हें कुचलने लगा.
“ले! ले!
ले!” करत्कोव चीख रहा था और करकराहट से शैतानी डिब्बों को रौंद रहा था, यह कल्पना करते हुए कि वह कल्सोनेर का सिर दबा रहा है.
अंडे की
शक्ल की याद से दिमाग में अचानक सफाचट चेहरे और दाढी वाले चेहरे का ख़याल कौंध गया, और करत्कोव रुक गया.
“फरमाईये...ऐसा
कैसे हो सकता है?...वह बुदबुदाया और
आंखों पर हाथ फेरा – ये क्या किस्सा है? ये मैं
क्यों खडा हूँ, और बेकार के काम कर रहा
हूँ, जबकि यह सब खतरनाक है. क्या वह वाकई में जुड़वां है?”
काली
खिड़कियों से भय कमरे में रेंग गया, और करत्कोव ने, उनकी ओर न देखने की कोशिश करते हुए, उन्हें परदों से बंद कर दिया. मगर इससे कोई तसल्ली नहीं मिली.
दुहरा
चेहरा, जिसकी कभी दाढी बढ़ जाती, कभी अचानक टूट जाती, हरी-हरी आंखें चमकाए, रह-रहकर तैरते हुए कोनों से बाहर निकलता. आखिरकार करत्कोव से बर्दाश्त
नहीं हुआ, और यह महसूस करते हुए कि तनाव से उसका दिमाग फट जाएगा, वह खामोशी
से रोने लगा.
जी भर के
रोने के बाद और कुछ राहत महसूस करते हुए, उसने कल
वाले चिपचिपे आलू खाए, बाद में फिर से, उस नासपीटी पहेली की ओर वापस आकर थोड़ा सा रो लिया.
“माफ़
कीजिये...” अचानक वह बडबडाया , “ये मैं रो क्यों रहा हूँ, जब मेरे पास वाईन है?”
वह एक
घूँट में आधा प्याला पी गया. मीठे द्रव ने पाँच मिनट बाद अपना असर डालना शुरू
किया, - बाईं कनपटी में तेज़ दर्द होने लगा, और जी मिचलाने लगा, प्यास लग आई. पानी के
तीन गिलास पीकर, कनपटी के दर्द के कारण
करत्कोव कल्सोनेर को बिलकुल भूल गया, कराहते
हुए ऊपरी कपडे उतारे और, सुस्ती से आंखें घुमाते
हुए बिस्तर पर लुढ़क गया. “पिरामिदोन की गोली मिल जाती...” वह देर तक फुसफुसाता रहा, जब तक कि धुंधले-से सपने ने उस पर दया नहीं दिखाई.
No comments:
Post a Comment