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कर्नल बल्बतून, सात मारे गए कज़ाकों, और नौ ज़ख़्मी कज़ाकों तथा सात घोड़ों को खोकर
पिचेर्स्काया से रेज़्निकोव्स्काया
स्ट्रीट पर आधा
मील चलकर फिर रुक गया. यहाँ पीछे हट रही कैडेट्स की टुकड़ी के पास अतिरिक्त कुमक
पहुँची. उसमें एक बख्तरबंद गाड़ी थी. बुर्जों वाला
भूरा बेढ़ब कछुआ मॉस्कोव्स्काया
स्ट्रीट पर रेंग रहा था और उसने तीन बार पिचेर्स्क पर धूमकेतु की पूंछ जैसी तोप से
वार किया, जो सूखे पत्तों के शोर की याद दिला रहा था (तीन इंची) . बल्बतून फ़ौरन घोड़े
से उतरा. साईस घोड़ों को गली में ले गए, पिचेर्स्काया चौक से कुछ पीछे बल्बतून की रेजिमेंट कतारों में लेट गई, और एक सुस्त लड़ाई शुरू हो गई. कछुए ने मॉस्कोव्स्काया स्ट्रीट को घेर रखा था और वह बीच-बीच
में गरज रहा था. इन आवाजों का जवाब सुवोरव्स्काया स्ट्रीट के मुहाने से रुक-रुक कर
मरियल गोलीबारी से दिया जा रहा था. वहाँ बर्फ में पिचेर्स्काया से बल्बतून की
गोलाबारी के कारण पीछे छूट गई टुकड़ी पडी थी, और उसकी कुमक भी जो इस तरह से प्राप्त हुई थी:
“ड्र-र्र-र्र-र्र-र्र-र्र-
र्र-र्र-र्र-र्र-र्र-र्र-र्र ......
“पहली रेजिमेंट?”
“हां, सुन रहा हूँ.”
“फ़ौरन दो
ऑफिसर्स की कम्पनियां पिचेर्स्क भेजो.”
ड्र-र्र-र्र-र्र-र्र-र्र-
टी–टी-टी-टी...
और पिचेर्स्क
पँहुचे: चौदह ऑफिसर्स, तीन कैडेट्स, एक स्टूडेंट और एक लघु-थियेटर का एक्टर.
****
आह. एक तितर-बितर
टुकड़ी, बेशक, काफ़ी नहीं है, एक कछुए की आपूर्ति
करने के बाद भी. कम से कम चार कछुए तो होने ही चाहिए थे. और यक़ीन के साथ कहा जा
सकता है, कि अगर वे आते, तो कर्नल बल्बतून को पिचेर्स्क से दूर हटना
पड़ता. मगर वे नहीं पहुंचे.
ऐसा इसलिए हुआ, कि गेटमन के शस्त्र-विभाग में, जिसमें चार
बेहतरीन मशीनें थीं, दूसरी मशीन के कमांडर के रूप में
कोई और नहीं, बल्कि प्रसिद्ध एन्साइन मिखाइल
सिमिनोविच श्पल्यान्स्की आया, जिसे सन् 1917
की मई में खुद अलेक्सान्द्र फ्योदरविच केरेन्स्की के हाथों से जॉर्जियन क्रॉस
प्राप्त हुआ था.
मिखाइल
सिमिनोविच काला और सफ़ाचट दाढ़ी वाला, मखमली कल्लों वाला था, यिव्गेनी अनेगिन से बेहद मिलता-जुलता था. सेंट
पीटर्सबुर्ग शहर से आते ही मिखाइल सिमिनोविच जल्दी ही मशहूर हो गया. मिखाइल सिमिनोविच
“प्राख” (प्राख का अर्थ है राख – अनु.) क्लब में अपनी खुद की कवितायेँ “सैटर्न
की बूँदें” का सर्वोत्तम पठन करने के लिए और कवियों का सर्वोत्कृष्ट संचालन करने
तथा शहर की काव्य-संस्था “मैग्नेटिक ट्रॉयलेट” के अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्ध हो
गया. इसके अलावा, मिखाइल सिमिनोविच जैसे कोई वक्ता
नहीं थे, इसके अलावा, वह मिलिटरी कारें, युद्ध
की मशीनें, सिविलियन कारें चलाना जानता था, इसके अलावा, उसने ऑपेरा
थियेटर की बैलेरीना मुस्या फोर्ड को, और एक और महिला को, जिसका नाम सज्जन होने के नाते मिखाइल सिमिनोविच
ने किसी को नहीं बताया था, अपने यहाँ रखा
था, इसके अलावा, उसके पास बहुत
सारे पैसे थे और वह खुलकर “मैग्नेटिक ट्रॉयलेट” के सदस्यों को उधार दिया करता था;
सफ़ेद वाईन पीता,
‘चेमिन द’ फेर’ खेलता,
“नहाती हुई
वेनिस की परी” तस्वीर खरीदी,
रात में
क्रिश्चातिक में रहता,
सुबह कैफे
”बिल्बोके” में बिताता,
दिन में – बढ़िया
होटल कॉन्टिनेंटल के अपने आरामदेह कमरे में,
शाम को –
“प्राख” में,
सुबह शोधपूर्ण
निबंध “गोगल की रचनाओं में अंतर्ज्ञान” लिखता.
गेटमन का शहर
समय से तीन घंटे पहले ही ख़तम हो गया, सिर्फ इस कारण से कि मिखाइल सिमिनोविच ने 2 दिसंबर 1918 को शाम को “प्राख” में स्तिपानव से, शेएर से, स्लोनिख और चिरेम्शीन (“मैग्नेटिक
ट्रॉयलेट” के शीर्ष) के सामने ऐलान कर दिया:
“सब बदमाश हैं.
गेटमन भी और पित्ल्यूरा भी. मगर पित्ल्यूरा तो, इसके अलावा,यहूदियों का विरोधी भी है. मगर, सबसे ख़ास बात ये नहीं है. मैं उकता
गया हूँ, क्योंकि मैंने काफ़ी समय से बम नहीं
फेंका है.”
“प्राख” में
डिनर के बाद,जिसका बिल मिखाइल सिमिनोविच ने चुकाया
था,उसे,याने ऊदबिलाव की
कॉलर वाले महंगे फ़र कोट और ऊँची हैट पहने मिखाइल सिमिनोविच को,पूरे “मैग्नेटिक ट्रॉयलेट” ने और पांचवें
आदमी ने जो बकरी की खाल का कोट पहने था और कुछ नशे में था, बिदा किया. उसके बारे
में श्पल्यान्स्की को थोड़ी-बहुत जानकारी थी: पहली बात, कि वह सिफलिस से पीड़ित है, दूसरी बात, कि उसने
ईश्वर विरोधी कवितायेँ लिखी हैं, जिन्हें
मिखाइल सिमिनोविच ने अपने अच्छे साहित्यिक संबंधों के कारण मॉस्को के एक संग्रह
में छपवा दिया था, और, तीसरी
बात, कि वह – रुसाकोव, लाइब्रेरियन का बेटा है.
सिफलिस वाला
आदमी क्रिश्चातिक पर लैम्प पोस्ट के नीचे अपनी बकरी की खाल पर रो रहा था और, श्पल्यान्स्की की ऊदबिलाव की आस्तीन की मोहरी को
एकटक देखते हुए बोला:
“श्पल्यान्स्की, तुम सबसे ज़्यादा ताकतवर हो इस शहर में, जो मेरी ही तरह सड़ रहा है. तुम
इतने अच्छे हो कि अनेगिन से तुम्हारी खतरनाक समानता को भी माफ़ किया जा सकता है!
सुनो, श्पल्यान्स्की...अनेगिन के जैसा
होना असभ्यता है. तुम कुछ ज़्यादा ही तंदुरुस्त हो...तुममें वह महत्वाकांक्षा नहीं
है, जो तुम्हें हमारे समय की प्रसिद्ध हस्ती बना
सकती थी... देखो, मैं सड़ रहा हूँ, और मुझे इस पर गर्व है...तुम बेहद तंदुरुस्त हो, मगर तुम शक्तिशाली हो, स्क्रू की तरह, इसलिए
स्क्रू की तरह घूम जाओ!...ऊपर की तरफ घूमो! ऊंचे!...ऐसे...”
और सिफलिस के
मरीज़ ने दिखाया कि ये कैसे करना चाहिए. लैम्प पोस्ट को पकड़ कर वह वाकई में उसके
इर्द गिर्द घूमने लगा, किसी तरह से
लंबा और पतला हो गया, सांप की तरह. नज़दीक से हरी, लाल, काली और सफ़ेद
टोपियों में तवायफें जा रही थीं, गुड़ियों की
तरह ख़ूबसूरत, और वे स्क्रू को देखकर खुशी से
चहकीं:
“पूरी तरह तर हो गया, - त-तेरी माँ को?”
बहुत दूर कहीं
से गोलाबारी हो रही थी, और मिखाइल
सिमोनिच बिजली के रोशनी में उड़ती हुई बर्फ के नीचे वाक़ई में अनेगिन जैसा लग रहा
था.
“सोने के लिए
जाओ,” थोड़ा सा चेहरा घुमाते हुए उसने
सिफ़लिस-स्क्रू से कहा, ताकि वह उसके
ऊपर न खांसे, “जाओ.”
उसने बकरी के फ़रकोट
को सीने पर उँगलियों से धक्का देते हुए कहा.
काले
नाज़ुक दस्ताने पुराने रोएँदार ओवरकोट को छू गए, और धकेले जा रहे आदमी की आंखें
पूरी तरह कांच जैसी थीं. वे जुदा हुए. मिखाइल सिमिनोविच ने गाड़ीवान को बुलाया, और
उससे चिल्लाकर कहा: “माला-प्रवाल्नाया”, और चला गया, और
बकरी का फ़रकोट, लड़खड़ाते हुए, पैदल अपने घर
पदोल की ओर चल पडा.
***
लाइब्रेरियन के
क्वार्टर में, रात को, पदोल में, आईने के सामने, बुझी हुई मोमबत्ती लिए, कमर तक नंगा, बकरी के फ़र
वाले ओवरकोट का स्वामी खडा था. उसकी आंखों में खौफ़ उछल रहा था, शैतान की तरह, हाथ
थरथरा रहे थे, और सिफलिस का मरीज़ बोल रहा था, और उसके होंठ उछल रहे थे, जैसे बच्चे के उछलते हैं.
“माय गॉड, माय गॉड , माय गॉड... खतरनाक, खतरनाक, खतरनाक...आह, ये शाम! मैं अभागा हूँ. मेरे साथ शेयेर भी तो था, मगर वह तंदुरुस्त है, वह संक्रमित नहीं हुआ, क्योंकि वह भाग्यवान है.
क्या, जाकर ल्येल्का को मार डालूँ? मगर क्या फ़ायदा? मुझे
कौन समझाएगा कि इसका क्या फ़ायदा है? ओह, खुदा, खुदा...मैं
चौबीस साल का हूँ, और मैं, हो सकता है...पंद्रह साल गुज़र जायेंगे, हो सकता है, और भी कम, और होंगी अलग-अलग तरह की आंखों की पुतलियाँ, झुकी हुई टांगें, फिर बेतुकी बेवकूफी भरी बातें, और फिर – मैं सड़ा हुआ, चिपचिपा मुर्दा.
कमर तक खुला
दुबला-पतला शरीर धूल भरे ड्रेसिंग टेबल में परावर्तित हो रहा था, ऊपर उठे हुए हाथ में मोमबत्ती जल रही थी, और सीने पर नाज़ुक, पतले
सितारों जैसे दाने बिखरे थे. मरीज़ के गालों पर बेतहाशा आंसू बह रहे थे, और उसका शरीर काँप रहा था और झूल रहा था.
“मुझे अपने
आपको गोली मार लेना चाहिए. मगर मुझमें ऐसा करने की हिम्मत नहीं है, मेरे खुदा, मैं तुमसे झूठ
क्यों बोलूंगा? मेरे प्रतिबिंब, मैं तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा?”
उसने छोटी-सी,
नाज़ुक, लिखने की मेज़ की दराज़ से एक पतली
किताब निकाली, जो बड़े फूहड़ भूरे कागज़ पर छपी थी.
मुखपृष्ठ पर लाल अक्षरों में छापा था:
फंटोमिस्ट्स-फ्यूचरिस्ट्स
कविताएं:
एम. श्पल्यान्स्की.
बी. फ्रीडमन.
वी. शार्केविच.
ई. रुसाकोव.
मॉस्को , 1918.
बेचारे मरीज़ ने किताब का तेरहवां पृष्ठ खोला और उस पर जानी-पहचानी पंक्तियाँ
देखीं:
इव. रुसाकोव
खुदा की मांद
ईश्वर विरोधी, पूरी तरह से वाहियात
कविता पढ़ने के बाद, मरीज़ दांत भींचते हुए
पीड़ा से कराहा: “आह-आ-आह” वह निरंतर पीड़ा से दुहराते जा रहा था: “आह-आह...”
विकृत चेहरे से उसने अचानक कविता वाले पृष्ठ पर थूका और किताब को फर्श पर
फेंक दिया, फिर घुटनों के बल बैठा और जिस्म पर छोटे-छोटे, थरथराते सलीब के निशान बनाकर, ठन्डे माथे से धूलभरे
फर्श को छूकर उदास, काली खिड़की से बाहर
देखते हुए प्रार्थना करने लगा:
“खुदा, मुझे माफ़ कर दे और
ऐसी घिनौनी कविता लिखने के लिए मुझ पर दया कर. मगर तुम इतने कठोर क्यों हो? किसलिए? मैं जानता हूँ कि
तुमने मुझे सज़ा दी है. ओह, कितनी भयानक सज़ा दी
है तुमने मुझे! मेहेरबानी करके मेरी त्वचा की ओर देखो. सभी पवित्र आत्माओं की कसम
खाता हूँ, दुनिया की सभी प्यारी चीज़ों की, स्वर्गवासी-माँ की
याद की कसम खाता हूँ – मैं पर्याप्त सज़ा पा चुका हूँ. मैं तुम पर विश्वास करता हूँ
! अपनी आत्मा से, शरीर से, दिमाग़ के कण-कण से विश्वास करता हूँ. विश्वास करता हूँ और सिर्फ तुम्हारे
ही पास भाग कर आता हूँ, क्योंकि दुनिया में ऐसा कोई नहीं है, जो मेरी सहायता कर सके. तुम्हारे अलावा और किसी से मुझे कोई उम्मीद नहीं
है. मुझे क्षमा करो, और कुछ ऐसा करो, कि दवाएं मुझे फ़ायदा पंहुचाएँ! मुझे
माफ करो, कि मैंने ये फैसला कर लिया था, कि जैसे तुम हो ही नहीं: अगर तुम न होते, तो मैं अभी नाउम्मीद, दयनीय, जर्जर कुत्ते जैसा
होता. मगर मैं इन्सान हूँ और ताक़तवर हूँ सिर्फ इसलिए कि तुम्हारा अस्तित्व है, और मैं किसी भी पल तुमसे सहायता के लिए प्रार्थना कर सकता हूँ. और मुझे
विश्वास है कि तुम मेरी प्रार्थनाएँ सुनोगे, मुझे माफ़
करोगे और अच्छा कर दोगे. मुझे अच्छा कर दो, ओ खुदा, भूल जाओ उस घिनौनेपन के बारे में जो मैंने पागलपन के आवेश में, कोकीन के नशे में लिख दिया था. मुझे सड़ने से बचा लो, और मैं क़सम खाता हूँ, कि मैं फिर से इन्सान
बन जाऊंगा. मेरी शक्ति बढ़ाओ, मुझे कोकीन से
छुटकारा दिलाओ, आत्मा की कमज़ोरी से
मुक्ति दिलाओ और मिखाइल सिमिनोविच श्पल्यान्स्की से छुटकारा दिलाओ!”
मोमबत्ती तैरने लगी, कमरे में ठंडक हो गई, सुबह तक मरीज़ की त्वचा बारीक फुंसियों से ढँक गई, और मरीज़ की आत्मा को काफ़ी राहत महसूस हो रही थी.
***
मिखाइल सिमिनोविच श्पल्यान्स्की ने खुद बची हुई रात मालाया-प्रवाल्नाया
स्ट्रीट पर नीची छत वाले बड़े कमरे में बिताई जिसमें पुरानी तस्वीर लगी थी, जिसमें चालीस के दशक के समय से धुंधले हो गए एपोलेट्स (स्कंधपट्ट – अनु.)
झाँक रहे थे. मिखाइल सिमिनोविच, बगैर कोट के, सिर्फ एक हल्की सफ़ेद कमीज़ में, जिस पर गहरे काट वाली
काली जैकेट थी, एक छोटी-सी कुर्सी
में बैठा था और फीके मटमैले चेहरे वाली औरत से कह रहा था:
“तो, यूलिया, मैंने आखिर फैसला कर
लिया और इस बदमाश – गेटमन के बख्तरबंद डिविजन में शामिल होने जा रहा हूँ.”
इसके बाद उस औरत ने, जो भूरे रोएँदार
स्कार्फ में लिपटी थी, और आधे घंटे पहले
अनेगिन के आवेगपूर्ण चुम्बनों से अधमरी हो चुकी थी, कहा:
“मुझे बेहद अफ़सोस है, कि मैं तुम्हारी
योजनाओं को न कभी समझ पाई और नहीं समझ सकती.”
मिखाइल सिमिनोविच ने कुर्सी के सामने वाली छोटी-सी मेज़ से सुगन्धित कन्याक
का जाम उठाया, एक घूँट लेकर बोला:
“ज़रुरत भी नहीं है.”
***
इस बातचीत के दो दिन बाद मिखाइल सिमिनोविच पूरी
तरह परिवर्तित हो गया. अब उसके सिर पर लम्बी हैट के बदले पैनकेक जैसी टोपी थी, अफसर के बैज सहित, सिविलियन ड्रेस के स्थान पर – छोटा, घुटनों तक पहुंचता कोट था और उस पर मुड़े-तुड़े सुरक्षात्मक शोल्डर-स्ट्रैप्स
थे. हाथों में “ह्यूजेनोट्स” के मार्सेल की भाँति घंटियों वाले दस्ताने थे, पैरों में गैटर्स (घुटनों के नीचे कसी हुई पट्टियां – अनु.). पूरा
मिखाइल सिमिनोविच सिर से पैर तक मशीन के तेल से
और न जाने क्यों काजल से पुता हुआ था (चेहरा भी). एक बार, और वह भी नौ दिसंबर को, शहर के पास दो वाहन युद्ध
में उतरे और, कहना पडेगा कि बेहद
कामयाब रहे. वे मुख्य मार्ग पर करीब बारह मील रेंगते हुए गए, और उनके पहले ही तीन
इंची गोलों की मार और मशीनगनों की गरज से पित्ल्यूरा की कतारें भाग गईं. एन्साइन
स्त्रश्केविच, लाल गालों वाले उत्साही और चौथी मशीन के कमांडर, ने मिखाइल
सिमिनोविच से दावे के साथ कहा कि यदि चारों मशीनों
को एक साथ उतारा जाता, तो वे शहर की रक्षा कर सकती थीं.
यह बातचीत नौ तारीख की शाम को हुई, और
ग्यारह को श्श्यूर, कपीलव तथा अन्य लोगों
के ग्रुप में ( बंदूकचियों, दो ड्राइवर और
मेकैनिक) श्पल्यान्स्की ने, जो डिविजन में
ड्यूटी-अधिकारी था, शाम के धुंधलके में
ये कहा:
“आप जानते हैं, दोस्तों, असल में, बड़ा सवाल ये है कि क्या इस गेटमन की रक्षा करते हुए, हम सही काम कर रहे हैं? हम उसके हाथों में
कुछ और नहीं, बल्कि एक महँगा और
खतरनाक खिलौना हैं, जिसकी सहायता से वह
बेहद खतरनाक प्रतिक्रिया स्थापित करना चाहता है. कौन जानता है, हो सकता है, कि पित्ल्यूरा और
गेटमन के बीच का संघर्ष को ऐतिहासिक दृष्टी से अनिवार्य हो, और इस संघर्ष के परिणाम स्वरूप एक तीसरी ऐतिहासिक ताकत पैदा हो जाए और, शायद, वही सही साबित हो.”
श्रोता मिखाइल सिमिनोविच को इसीलिये पसंद करते थे, जिसके लिए उसे “प्राख” में पसंद करते थे – असाधारण वाक्पटुता के लिए.
“ये कौन सी ताकत है?” कपीलव ने हाथ से
बनाई चुरूट का धुआँ छोड़ते हुए पूछा.
अक्लमंद, हट्टे-कट्टे भूरे
बालों वाले श्श्यूर ने चालाकी से आंखें बारीक करते हुए अपने साथियों को आंख मारते
हुए कहीं उत्तर-पूर्व की ओर इशारा किया. ग्रुप कुछ और देर बातें करता रहा और फिर
बिखर गया. बारह दिसंबर की शाम को उसी छोटे से ग्रुप में गाड़ियों के शेड्स के पीछे
मिखाइल सिमिनोविच के साथ दूसरी बार बातचीत हुई. इस बातचीत का विषय तो अज्ञात रहा, मगर अच्छी तरह मालूम है, कि चौदह दिसंबर की
पूर्व संध्या को, जब शेड्स में श्श्यूर, कपीलव और चपटी नाक वाला पित्रूखिन ड्यूटी पर थे
तो मिखाइल सिमिनोविच अपने साथ पैकिंग कागज़ में बंधा हुआ एक पैकेट लेकर प्रकट हुआ.
संतरी श्श्यूर ने उसे सराय में आने दिया, जहाँ एक गंदा
बिजली का बल्ब धुंधली लाल रोशनी फेंक रहा था, कपीलव ने काफ़ी
अपनेपन से पैकेट को देखते हुए आंख मारी और पूछा:
“शक्कर?”
“उहूं,” मिखाइल सिमिनोविच ने जवाब दिया.
सराय में गाड़ियों
के पास लालटेन लाई गई, जो आंख की तरह
टिमटिमा रही थी, और व्यस्त मिखाइल सिमिनोविच उन्हें
कल के मिशन के लिए तैयार करते हुए मेकैनिक के साथ काम कर रहा था.
कारण : डिविजन
कमांडर प्लेश्को का ऑर्डर – “चौदह दिसंबर को, सुबह आठ बजे, पिचेर्स्क पर चारों मशीनों से हमला करें.”
मशीनों को
युद्ध के लिए तैयार करने की मिखाइल सिमिनोविच और मेकैनिक की कोशिशों का विचित्र
परिणाम हुआ. अभी कल तक पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त तीन मशीनें (चौथी स्त्रश्केविच के
नेतृत्व में युद्ध पर थी) चौदह दिसंबर की सुबह अपनी जगह से हिल भी नहीं सकीं, जैसे
उन्हें लकवा मार गया हो. कोई भी समझ नहीं पाया कि उनके साथ क्या हुआ था.
कार्बुरेटर्स के जेट्स में कोई गन्दगी फंस गई थी, और
उसे टायर-पम्प्स की सहायता से निकालने की कितनी ही कोशिश क्यों न की गई, कुछ फ़ायदा नहीं हुआ. सुबह के धुंधले प्रकाश में
तीनों मशीनों के निकट लालटेनों के साथ काफी भागदौड़ हो रही थी. कैप्टेन प्लेश्को का
चेहरा विवर्ण हो गया था, वह भेडिये की
तरह चारों ओर देख रहा था, और उसने
मेकैनिक को तलब किया. तभी से विपत्तियाँ शुरू हो गईं. मेकैनिक गायब हो गया. पता
चला, कि डिविजन में उसका पता, सभी नियमों के बावजूद , अज्ञात है. अफ़वाह फ़ैली
कि मेकैनिक को अचानक टायफॉइड हो गया है. ये हुआ आठ बजे, और साढ़े आठ बजे कैप्टेन प्लेश्को को दिल का
दूसरा दौरा पडा. एन्साइन श्पल्यान्स्की, जो मेकैनिक के
साथ काम करने के बाद रात को चार बजे श्श्यूर द्वारा चलाई जा रही मोटरसाइकल पर
पिचेर्स्क गया था, वापस नहीं लौटा. अकेला श्श्यूर लौटा
और उसने दुखभरी दास्तान सुनाई.
मोटरसाइकल ऊपरी
तेलिच्का पर पहुँची, और श्श्यूर व्यर्थ ही में एन्साइन श्पल्यान्स्की को लापरवाह
साहसिक कारनामे न करने के लिए मनाता रहा. ये श्पल्यान्स्की पूरी डिविजन में अपनी बहादुरी
के लिए प्रसिद्ध था, श्श्यूर को छोड़कर और कार्बाइन तथा
हथगोला, लेकर अकेला ही अँधेरे में
रेल्वेलाईन की ओर निकल पडा. श्श्यूर ने गोलियों की आवाजें सुनीं. श्श्यूर को पूरा
यकीन है कि दुश्मन के अग्रिम गश्ती दल की, जो तेलिच्का
पहुँच गया था, श्पल्यान्स्की से मुठभेड़ हुई और, उन्होंने, बेशक, इस
असमान युद्ध में उसे मार डाला. श्श्यूर ने एन्साइन का दो घंटे तक इंतज़ार किया, हांलाकि उसने उसे सिर्फ एक घंटे तक उसका इंतज़ार
करने और उसके बाद डिविजन में वापस लौट जाने के लिए कहा था, ताकि वह खुद को और सरकारी मोटरसाइकल नं. 8175 को खतरे में न डाले.
श्श्यूर की
कहानी सुनकर कैप्टेन प्लेश्को का चेहरा और भी विवर्ण हो गया. गेटमन के और जनरल कर्तुज़ोव के स्टाफ हेडक्वार्टर्स
से टेलीफोन के पक्षी एक दूसरे से होड़ लगाते हुए गाये जा रहे थे और मशीनों के बाहर
निकालने की मागं कर रहे थे. नौ बजे लाल गालों वाला उत्साही स्त्रश्केविच चौथी मशीन
पर मोर्चे से लौटा, और उसकी लाली का कुछ अंश डिविजन कमांडर के गालों पर छा गया. ये
बहादुर मशीन को पिचेर्स्क ले गया था, और उसने, जैसा कि पहले ही बता चुके हैं, सुवारोव्स्काया स्ट्रीट को अवरुद्ध कर दिया था.
सुबह दस बजे
प्लेश्को के चेहरे पर अपरिवर्तनीय पीलापन छ गया. दो गनर्स, दो ड्राइवर्स और एक मशीनगनर बिना कोई निशान छोड़े
ग़ायब हो गए. मशीनों को आगे बढाने की सारी कोशिशें व्यर्थ गईं. श्श्यूर भी, जो
कैप्टेन प्लेश्को के ऑर्डर से मोटरसाइकल पर गया था, अपनी
पोज़िशन से वापस नहीं लौटा. ज़ाहिर है, कि मोटरसाइकल
भी नहीं लौटी, क्योंकि वह अपने आप तो लौट नहीं
सकती! टेलीफोनों में पक्षी धमकियां देने लगे. जैसे जैसे दिन गुज़रता रहा, डिविजन में और भी ज़्यादा अजूबे होने लगे. तोपची
दुवान और माल्त्सेव ग़ायब हो गए और दो मशीनगनर्स भी. मशीनें कुछ रहस्यमय, परित्यक्त
सी नज़र आने लगीं, उनके आसपास कुछ स्क्रू, चाभियाँ और कुछ बाल्टियां बिखरी थीं.