Wednesday, 19 October 2022

शैतानियत - ०२

 

    उत्पादित सामग्री

 

इस घटना के तीन दिन बाद, उस स्वतन्त्र कमरे का दरवाज़ा खुला, जिसमें कॉम्रेड करत्कोव काम कर रहा था, थोड़ा सा खुला और एक महिला के रोये हुए सिर ने कड़वाहट से कहा:

“कॉम्रेड करत्कोव, जाइए, तनख्वाह ले लीजिये.”

“क्या?” करत्कोव खुशी से चहका, और सीटी पर “कार्मेंन” की धुन बजाते हुए उस कमरे की और भागा, जिस पर लिखा था “कैशियर”. कैशियर की मेज़ के पास वह रुका और उसका मुँह पूरा खुल गया. दो मोटे-मोटे स्तम्भ, जो पीले पैकेटों से बने हुए थे, छत तक पहुँच रहे थे. किसी भी तरह के सवाल का जवाब देने से बचने के लिए पसीने से तर और परेशान कैशियर ने दीवार पर अथोरिटी लेटर टांक दिया था, जिस पर अब हरी स्याही में तीसरी टिप्पणी प्रगट हो गई थी:

“ उत्पादित वस्तुओं से भुगतान किया जाए.

ब्लगायिव्लेन्स्की के लिए – प्रीअब्राझेन्स्की.  

और मैं भी पुष्टि करता हूँ – क्षेसिन्स्की”.

बेवकूफी से चौड़ी मुस्कान बिखेरते हुए करत्कोव कैशियर के कमरे से बाहर आया. उसके हाथों में थे चार बड़े,पीले बंडल्स, पाँच हरे, छोटे, और जेबों में थे दियासलाइयों के तेरह पैकेट्स. अपने कमरे में ऑफिस में हो रही आश्चर्यचकित आवाजों का हो-हल्ला सुनते हुए, उसने सारी दियासलाइयां आज के अखबार के सबसे बड़े पृष्ठों में लपेटीं, और किसी से भी बिना कुछ कहे, दफ्तर से घर चला गया.

‘मासा के प्रवेश द्वार के पास वह एक कार के नीचे आते-आते बचा, जिसमें कोई आ रहा था, मगर कौन, यह करत्कोव नहीं देख पाया.

घर आने के बाद, उसने माचिस के डिब्बों को मेज़ पर रखा और, दूर हटकर, प्यार से उनकी और देखने लगा.

बेवकूफी भरी मुस्कान उसके चहरे से नहीं ढली. इसके बाद करत्कोव ने अपने भूरे बालों में उंगलियाँ फेरीं और अपने आप से कहा:

“देर तक निराश होने जैसा कुछ नहीं है. इन्हें बेचने की कोशिश करेंगे.”

उसने अपनी पड़ोसन, अलेक्सान्द्रा फ्योदरव्ना का दरवाज़ा खटखटाया, जो ‘शावाडी  (शासकीय वाईन डिपो) में काम करती थी.

“आईये,” कमरे में एक खोखली आवाज़ गूँजी.

करत्कोव भीतर गया और – भौंचक्का रह गया. दफ्तर से जल्दी लौटकर ओवरकोट और टोपी पहनी अलेक्सान्द्रा फ्योदरव्ना फर्श पर उकडूं बैठी थी. उसके सामने अखबारी कागज़ के कॉर्क वाली बोतलों की लाईन लगी थी, जिनमें गहरे लाल रंग का द्रव भरा हुआ था. अलेक्सान्द्रा फ्योदरव्ना का चेहरा रोया हुआ लग रहा था.

“४६,” उसने कहा और करत्कोव की और मुडी.  

“क्या ये स्याही है?...नमस्ते, अलेक्सान्द्रा फ्योदाराव्ना,” स्तब्ध रह गए करत्कोव ने कहा. 

“चर्च वाईन,” पड़ोसन ने सिसकी लेकर जवाब दिया.

“क्या, आपको भी?” करत्कोव हांफने लगा.

“क्या आपको भी चर्च वाइन?” अलेक्सान्द्रा फ्योदरव्ना को अचरज हुआ.

“हमें – माचिस,” बुझी हुई आवाज़ में करत्कोव ने जवाब दिया और जैकेट का बटन घुमाने लगा.

“अरे, वो तो जलती ही नहीं हैं!” उठते हुए और अपने स्कर्ट को झटकते हुए अलेक्सान्द्रा फ्योदरव्ना चीखी.

“ऐसे कैसे नहीं जलतीं हैं?” करत्कोव घबरा गया और अपने कमरे में लपका. वहाँ एक भी मिनट खोये बिना, उसने डिब्बा पकड़ा, चरमराहट से उसे फाड़ा और माचिस की तीली घिसी. वह फुफकारते हुए हरी लौ के साथ भड़क उठी, टूट गई और बुझ गई. गंधक की तीखी गंध से करत्कोव का दम घुटने लगा, दर्द से खांसते हुए उसने और दूसरी तीली जला दी. उसमें से तीर की तरह दो ज्वालाएं निकलीं. पहली खिड़की के शीशे से टकराई, और दूसरी – कॉम्रेड करत्कोव की बाईं आँख से.

“आ-आह!’ करत्कोव चिल्लाया और माचिस गिरा दी.

कुछ पल वह किसी गरम घोड़े की तरह पैर पटकता रहा, और हथेली से आँख को दबाये रहा. फिर खौफ से शेविंग मिरर में अपना चेहरा देखा, इस यकीन के साथ कि आँख खो गई है. मगर आँख अपनी जगह पर ही थी. ये सच है कि वह लाल हो गई थी और आंसू टपका रही थी.

“ओह, माय गॉड!” करत्कोव परेशान हो गया, उसने फ़ौरन दराज़ से अमेरिकन बैंडेज का पैकेट निकाला. सिर के बाईं ओर वाले आधे हिस्से पर बाँध दिया और युद्ध में ज़ख़्मी हुए सैनिक की तरह लगने लगा.   

पूरी रात करत्कोव ने लाईट नहीं बुझाई और तीलियाँ जलाते हुए लेटा रहा.

इस तरह से उसने तीन डिब्बे जला दिये, जिससे वह ६३ तीलियाँ जलाने में कामयाब हो गया. 

“झूठ बोलती है, बेवकूफ,” करत्कोव बुदबुदाया, “बढ़िया तीलियाँ हैं.”

सुबह तक कमरा गंधक की दमघोंटू गंध से भर गया था. सुबह-सुबह करत्कोव की आंख लगी और वह बेवकूफी भरा, डरावना सपना देखता रहा : जैसे एक हरे मैदान में उसके सामने एक खूब बड़ी, पैरों पर खडी बिलियार्ड की गेंद प्रकट हो गई. ये इतना अजीब था कि करत्कोव चीख मारकर उठ गया. धुंधले अँधेरे में उसे करीब पांच सेकण्ड ऐसा लगा कि गेंद वहीं, पलंग के पास ही है, और उससे गंधक की तेज़ बू आ रही है.

मगर फिर यह सब ख़त्म हो गया; करवट बदल कर करत्कोव सो गया और फिर उसकी नीद नहीं टूटी.

शैतानियत - ०१

  

शैतानियत

कहानी इस बारे में कि कैसे जुड़वां भाइयों ने क्लर्क को मार डाला

लेखक: मिखाइल बुल्गाकाव

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

 

 

१.   बीस तारीख की घटना

 

उस समय, जब सब लोग एक नौकरी से दूसरी पर उछल रहे थे, कॉम्रेड करत्कोव दृढता से प्रकेआमासा (प्रमुख केन्द्रीय आधार माचिस सामग्री) में क्लर्क की सरकारी नौकरी कर रहा था और वहाँ पूरे ग्यारह महीनों से काम कर रहा था.

‘मासा’ में तपने के बाद, नाज़ुक, खामोश तबियत भूरे बालों वाले करत्कोव ने अपने मन से इस ख़याल को पूरी तरह मिटा दिया था कि दुनिया में तथाकथित किस्मत के उलटफेर भी होते हैं, और उसके बदले उसने ये विश्वास पाल लिया था कि वह, करत्कोव – मासा में दुनिया में ज़िंदगी ख़त्म होने तक काम करता रहेगा. मगर, आह, ऐसा बिलकुल नहीं हुआ...

20 सितम्बर 1921 को ‘मासा’ के कैशियर ने अपनी घिनौनी लम्बे कानों वाली टोपी पहनी, ब्रीफ़केस में ‘अथोरिटी लेटर रखा और चला गया. यह हुआ आधी रात के ग्यारह घंटे बाद.

वापस लौटा कैशियर दोपहर के साढ़े चार बजे, पूरी तरह गीला. वापस आने पर उसने टोपी से पानी झटका, टोपी को मेज़ पर रखा, और कैप पर ब्रीफ़केस रखी और बोला:

“धक्का मत दीजिये, जनाब.”

फिर उसने मेज़ की दराज़ में कुछ टटोला, कमरे से बाहर निकल गया और पंद्रह मिनट बाद एक मरी हुई मुर्गी लेकर आया, जिसकी गर्दन मरोड़ी हुई थी.

मुर्गी को उसने ब्रीफ़केस पर रखा, मुर्गी के ऊपर - अपना दायाँ हाथ रखा और बोला:

“पैसे नहीं मिलेंगे.”

“कल?” – महिलाएं एक सुर में चिल्लाईं. 

“नहीं,” कैशियर ने सिर हिलाया, “और कल भी नहीं मिलेंगे, और परसों भी नहीं. ऐसे चढ़ो नहीं महाशयों, वरना, कॉमरेड्स, आप मेरी मेज गिरा देंगे.”

“क्यों?” भोले-भाले करत्कोव समेत सब चिल्लाए.

“नागरिकों!” रोनी आवाज़ में कैशियर गाने लगा और उसने कोहनी से करत्कोव को झिड़का. “मैं आपसे विनती करता हूँ!”

“अरे, ऐसा कैसे?” सब चिल्लाए और सबसे ऊँची आवाज़ में ये जोकर करत्कोव.

“खैर, फरमाइए,” भर्राई हुई आवाज़ में कैशियर बडबडाया और, ब्रीफ केस से ‘अथोरिटी लेटर’ निकालकर करत्कोव को दिखाया.

उस जगह के ऊपर, जहाँ कैशियर की गंदी उंगली गडी थी, लाल स्याही से तिरछा लिखा हुआ था:

“धन राशि दी जाए.”

हस्ताक्षर - सुबोत्निकव के लिए – सिनात.”

 

उसके नीचे बैंगनी स्याही में लिखा था:

“पैसे नहीं हैं.”

हस्ताक्षर – इवानोव के लिए – स्मिर्नोव”.     

“ऐसा कैसे?” अकेला करत्कोव चीखा, और बाकी के, हांफते हुए कैशियर के ऊपर पिल पड़े.

“आह, मेरे खुदा!: वह बदहवासी से चिल्लाया. “इसमें मेरा क्या कुसूर है? मेरे खुदा!”

जल्दी से अथोरिटी लेटर ब्रीफ़केस में घुसाकर, उसने टोपी पहन ली, ब्रीफकेस बगल में दबाई, मुर्गी बगल में दबाई और चिल्लाया: “जाने दीजिये, प्लीज़!” – और ज़िंदा दीवार में दरार बनाकर वह दरवाज़े में गायब हो गया.

उसके पीछे कीं-कीं करते हुए बदरंग, ऊँची, नुकीली एडियों वाले जूतों में  रिसेप्शनिस्ट भागी, बाईं एडी ठीक दरवाज़े के पास चरमरा कर गिर गई, रिसेप्शनिस्ट लड़खड़ाई, उसने पैर उठाया और जूता निकाल दिया.

और कमरे में वह रह गई – एक नंगा पैर लिए, और बाकी सब, जिनमें करत्कोव भी था.

खान का अग्निकांड

  खान का अग्निकांड लेखक: मिखाइल बुल्गाकव  अनुवाद: आ. चारुमति रामदास    जब सूरज चीड़ के पेड़ों के पीछे ढलने लगा और महल के सामने दयनीय, प्रक...