खान का अग्निकांड
लेखक: मिखाइल बुल्गाकव
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
जब सूरज चीड़ के पेड़ों के पीछे ढलने लगा और महल
के सामने दयनीय, प्रकाश के देवता अपोलो छाया में चले गए, तो केयरटेकर तात्याना मिखाइलव्ना के आउट-हाउस से नौकरानी दून्का भागते
हुए बाहर आई और चिल्लाई:
“इयोना
वसीलिच! ओ, इयोना वसीलिच! जाइए, तात्याना
मिखाइलव्ना आपको बुला रही हैं. पर्यटकों के बारे में. बीमार है वह. गाल दर्द कर
रहा है!”
गुलाबी-गुलाबी
दून्का ने घंटी की तरह स्कर्ट फुलाया, नंगी पिंडलियाँ
दिखाईं और वापस भाग गई.
जर्जर
सेवक इयोना ने झाडू फेंक दी और जले हुए अस्तबलों के पास बढ़े हुए खर-पतवार को पार
करते हुए तात्याना मिखाइलव्ना के पास भागा.
आउट हाउस की
खिड़कियाँ बंद थीं, और प्रवेश कक्ष
से ही आयोडीन और कपूर के तेल की तेज़ गंध आ रही थी. आधे अँधेरे में लड़खड़ाते हुए
इयोना हल्की कराह की दिशा में गया. अँधेरे में पलंग पर बिल्ली मूम्का और सफ़ेद
बड़े-बड़े कानों वाला खरगोश जैसा कुछ दिखाई दे रहा था, और
उसमें थी पीड़ित आंख.
“क्या दांतों
में दर्द है?” इयोना सहानुभूति से बुदबुदाया.
“दां-दांत...”
सफ़ेद कम्बल ने आह भरी.
“ऊ...ऊ...ऊ...
तो ये है किस्सा,” इयोना ने सहानुभूति से कहा,” मुसीबत! तभी –
तो, सीज़र रो रहा है, रो रहा है...मैंने
कहा: ये तू, बेवकूफ, भरी दोपहर में क्यों रो रहा है? आं? आख़िर ऐसा तो किसी के मरने पर होता है. ठीक कह रहा हूँ, ना? खामोश, बेवकूफ. अपने ही
सिर पे रो रहा है.
मुर्गी की बीट
गाल पर रखना चाहिए – देखते-देखते दर्द गायब हो जाएगा.”
“इयोना...इयोना
वसीलिच,” तात्याना मिखाइलव्ना ने कमज़ोरी से कहा, “दिन तो महत्वपूर्ण है – बुधवार. और मैं बाहर नहीं निकल सकती. परेशानी की
बात है. तो, आप खुद ही पर्यटकों के साथ जाइए. उन्हें सब कुछ
दिखाइये. मैं आपके साथ दून्का को भेजती हूँ, आपके साथ-साथ
रहेगी.”
“अच्छा, अच्छा...इसमें कौन सी बड़ी बात है. जाने दो. हम खुद ही संभाल लेंगे. नज़र
रखेंगे. सबसे महत्वपूर्ण हैं – प्याले. प्याले सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं. घूमते
हैं, घूमते हैं तरह तरह के लोग...क्या देर लगती है उसे...कोई
भी प्याला उठाकर जेब में डाल लेगा, और याद करते रहो कि उसका
नाम क्या था. और जवाब – कौन देगा? हमें ही तो देना होगा.
तस्वीर – उसे तो जेब में नहीं छुपा सकते. मैं ठीक कह रहा हूँ ना?”
“दुन्याशा
आपके साथ जायेगी – पीछे से नज़र रखेगी. और अगर कोई बात समझाने के लिए कहें, तो कह देना कि ‘केयर टेकर’ बीमार हो गई है.”
“ठीक है, ठीक है. और आप – मुर्गी की बीट से. डॉक्टर लोग – वो तो फ़ौरन गाल चीर देते
हैं, काट देते हैं. एक आदमी का गाल ऐसे ही चीर दिया था, फ्योदर अरेश्नेव्स्की का, और वह तो फ़ौरन मर गया. ये
तो आपको कभी हुआ नहीं था. उसके भी आँगन में कुत्ता रो रहा था.”
तात्याना
मिखाईलव्ना हल्के से कराही और बोली:
“जाइए, जाइए, इयोना वसिल्येविच, वर्ना, हो सकता है, कोई आ भी गया होगा...”
*****
इयोना ने
लोहे का भारी भरकम गेट खोला, जिस पर सफ़ेद
पोस्टर था:
इस्टेट-म्यूज़ियम
खान का मुख्यालय
खुलने का समय - बुधवार, शुक्रवार और
इतवार को
शाम छः बजे से आठ बजे तक
और साढ़े छह
बजे मॉस्को से लोकल ट्रेन से पर्यटक आये. पहली बात, करीब बीस मुस्कुराते नौजवानों का समूह. उनमें खाकी कमीजों में किशोर थे, बिना हैट वाली लड़कियां थीं, कोई नाविकों वाली
ढीली-ढाली कमीज़ में, तो कोई शोख रंग की जैकेट्स में. नंगे
पैरों में सैंडल, काले घिसे पिटे जूते पहने; नौजवान चपटी नोक वाले ऊंचे जूतों में थे. और इन नौजवानों के बीच करीब
चालीस साल का एक अधेड़ आदमी था, जिसने इयोना को फ़ौरन चौंका
दिया. आदमी पूरी तरह नंगा था, अगर छोटी, हल्के कॉफ़ी के रंग की पतलून को न गिना जाए, जो उसके
घुटनों तक नहीं पहुँचती थीं, और जिसे पेट पर ‘प्रथम वास्तविक
विद्यालय’ लिखे बैज वाली बेल्ट से कसा गया था. हाँ, और नाक-पकड़ चश्मा भी था, जिसे बैंगनी रंग के मोम से चिपकाया गया था. भूरे रंग के चकत्तों ने नंगे
आदमी की कुबड़ी पीठ को ढांक दिया था, और उसके पैर भी अलग-अलग
थे – दायाँ पैर बाएं पैर से मोटा था, और दोनों पैर पिंडलियों
पर गांठों जैसी नसों से ढंके हुए थे.
नौजवान लड़के
और लड़कियां ऐसे दिखा रहे थे, मानो इसमें कोई
अचरज की बात नहीं थी की नंगा आदमी ट्रेन में घूमता है और महलों का निरीक्षण करता है, मगर
बूढ़े, दुखी इयोना को नंगे आदमी ने चौंका दिया और चकित कर दिया.
नंगा आदमी
लड़कियों के बीच सिर उठाकर, फाटक से महल की ओर जा रहा था, और उसकी एक मूंछ शानदार ढंग से मुड़ी हुई थी, और
दाढ़ी कटी हुई थी, जैसे पढ़े-लिखे आदमी की होती है. नौजवान, इयोना को घेरकर पंछियों की तरह चहचहा रहे थे, और
पूरे समय हंस रहे थे, जिससे इयोना पूरी तरह गड़बड़ा गया और
परेशान हो गया, निराशा से कपों के बारे में सोच रहा था और
उसने नंगे की तरफ इशारा करते हुए दून्का को अर्थपूर्ण ढंग से आंख मारी. उसके गाल
अलग-अलग तरह के पैरों वाले को देखकर फटने को तैयार थे. और ऊपर से सीज़र, जैसे मुसीबत की तरह प्रकट हुआ, न जाने कहाँ से आया
और सबको बेरोकटोक जाने दिया, मगर नंगे को देखकर ख़ास कर्कशता, बूढों जैसी कटुता से, भर्राए हुए गले से, खांसते
हुए भौंकने लगा. फिर हृदय विदारक, पीड़ा से रोने लगा.
‘फू:,
नासपीटे,’ इयोना ने बिन बुलाये मेहमान की तरफ़ तिरछी नज़र से देखते
हुए परेशानी और कड़वाहट से सोचा, ‘मुसीबत है. और सीज़र रो क्यों रहा है. अगर कोई
मरने वाला हो, तो इस नंगे को ही मरने दो.’
सीज़र की
पसलियों में चाभियाँ मारनी पडीं, क्योंकि इस भीड़
के पीछे पांच अच्छे पर्यटक अलग से चल रहे थे. मोटे पेट वाली महिला, जो नंगे की वजह से चिड़चिड़ा रही थी और लाल हो गयी थी. उसके साथ लम्बी, गुंथी हुई चोटियों वाली किशोर लड़की थी. सफ़ाचट दाढी वाला आदमी खूबसूरत,
मेकअप की हुई महिला के साथ, और अधेड़ उम्र का अमीर विदेशी- सज्जन, पहियों जैसे सुनहरे चश्मे, हल्के रंग के चौड़े कोट
में, छडी के साथ. सीज़र नंगे आदमी को छोड़कर अच्छे मेहमानों की
ओर लपका और धुंधली, बूढी आंखों में पीड़ा लिए पहले महिला की
हरी छतरी पर भौंका और फिर विदेशी पर इस तरह से भौंका कि वह पीला पड़ गया, लड़खड़ा गया और सभी के लिए अपरिचित भाषा में कुछ बुदबुदाया.
इयोना
बर्दाश्त न कर सका और उसने सीज़र की वो खातिर की, कि उसने रोना बंद कर दिया, मुंह बंद कर लिया और गायब हो गया.
********
“पायदान पर पैर
पोंछ लीजिये,” इयोना ने कहा, और उसका चेहरा हमेशा की तरह
कठोर और गंभीर हो गया, जब वह महल में प्रवेश करता था. उसने
दून्का से फुसफुसाकर कहा: “नज़र रखना, दून्...” और उसने भारी
चाभी से छत की ओर से कांच का दरवाज़ा खोल दिया. कठघरे से श्वेत देवताओं ने स्वागत
करते हुए मेहमानों की तरफ़ देखा.
वे सुनहरी
डंडियों वाले लाल कारपेट से ढंकी सफ़ेद सीढ़ियों पर चढ़ने लगे. नंगा सबसे आगे था, इयोना की बगल में, नंगे पैरों से रोएंदार सीढ़ियों
को गर्व से कुचलते हुए.
पतले सफ़ेद
परदों से स्निग्ध हुआ शाम का अन्धेरा, ऊपर से स्तंभों
के पीछे वाली बड़ी बड़ी खिड़कियों से छन कर आ रहा था. ऊपरी लैंडिंग पर पर्यटकों ने
मुड़कर सीढ़ियों की गहराई को देखा, जिसे वे पार करके आये थे, और सफ़ेद पुतलों वाले कठघरे को, और तस्वीरों के काले
कैनवास से ढंके सफ़ेद स्तंभों, और पतले धागे से बंधे नक्काशी
वाले झूमर को देखा, जिसके गहराई में गिरने का खतरा था. ऊंचाई
पर कहीं दूर उड़ते हुए कामदेव मुड़कर गुलाबी हो रहे थे.
“देख, देख, वेरच्का,” मोटी माँ
फुसफुसाई, “देख रही हो, राजकुमार
सामान्य समय में कैसे रहते थे.”
इयोना एक ओर खड़ा
था, और उसके झुर्रियों वाले, सफ़ाचट चेहरे पर हौले से, शाम की तरह गर्व की भावना टिमटिमा रही थी.
नंगे आदमी ने
नाक पर अपना नाक-पकड़ चश्मा ठीक किया, चारों ओर नज़र
फेरी और कहा;
“रस्त्रेली
ने बनाया था. इसमें कोई संदेह नहीं है. अठाहरवीं शताब्दी.”
“कहाँ का
रस्त्रेली?” हौले से खांसकर इयोना बोल पडा. “राजकुमार अन्तोन इयानविच ने बनाया था, खुदा उन्हें जन्नत बख्शे, डेढ़ सौ साल पहले. ये बात
है,” उसने आह भरी. “वर्तमान राजकुमार के पर-पर-परदादा.”
सब इयोना की तरफ़ मुड़े.
“ज़ाहिर है, आप समझ नहीं रहे हैं,” नंगे ने जवाब दिया, “ये सही है कि अन्तोन इयानविच
के समय में बनाया गया था, मगर आर्किटेक्ट तो रस्त्रेली था ना? और दूसरी बात, जन्नत का अस्तित्व नहीं होता और वर्तमान
राजकुमार, खुदा की मेहेरबानी से अब नहीं है. वैसे, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि सुपरवाइज़र कहाँ है?”
“सुपरवाइज़र,” नंगे के प्रति
घृणा से इयोना ने नाक सुड़की, “दांत के दर्द
से तड़प रही है, मर रही है, सुबह तक मर
जायेगी. और जन्नत के बारे में – आपने सही कहा. किसी के लिए वो है, और किसी के लिए नहीं है. जन्नत की सल्तनत में बिना पतलून के, शर्मनाक
हालत में नहीं जा सकते. ठीक कह रहा हूँ, ना?”
“सभी नौजवान
एक साथ ठहाका मारकर हंसने लगे. नंगे ने आंखें झपकाईं, होंठ बाहर निकाले.
“फिर भी, मैं आपसे कहूंगा, कि स्वर्ग के राज्य और राजकुमारों
के प्रति आपकी सहानुभूति वर्तमान समय में काफी अजीब लगती है... और मुझे लगता
है...”
“छोड़िये,
कॉमरेड अन्तोनव,” भीड़ में एक लड़की की आवाज़ ने समझौते के स्वर में कहा.
“सिम्योन
इवानविच, छोड़, जाने भी दे!” एक टूटी-फूटी आवाज़ गूंजी.
आगे चले.
सांझ का अंतिम प्रकाश सिरपेचे की लता के जाल से होकर आ रहा था, जो छत पर कांच के दरवाज़े से सफ़ेद फूलदानों तक फ़ैली थी. छह सफ़ेद स्तम्भ
जिन पर ऊपर की तरफ पत्तियों की नक्काशी थी, गैलरी को संभाले
हुए थे, जिन पर कभी संगीतकारों के सुनहरे पाइप चमकते थे.
स्तम्भ प्रसन्नतापूर्वक और सफ़ाई से ऊपर उठे हुए थे, सुनहरी
हल्की कुर्सियां नम्रतापूर्वक दीवारों के नीचे खड़ी थी. शमादानों के झुण्ड दीवारों
से झांक रहे थे, और, जैसे कल ही बुझाए
गए हों, उनमें जली हुई सफ़ेद मोमबत्तियां थीं. कामदेव मालाओं
में लिपटे हुए और गुंथे हुए थे, मुलायम बादलों में एक नग्न औरत नृत्य कर रही थी.
पैरों के नीचे चिकना, चौखानेदार फर्श भाग रहा था. काले धारीदार फर्श पर नई सजीव
भीड़ थी, मगर सुनहरे चश्मे वाला विदेशी, जो झुंडों से अलग हो
गया था, उदास और सुस्त लग रहा था. वह स्तम्भ के पीछे खडा हो
गया और मंत्रमुग्ध होकर सिरपेचे की बेल के जाल से कहीं दूर देख रहा था.
अस्पष्ट
वार्तालाप के बीच नंगे की आवाज़ गूंजी, चमचमाते लकड़ी
के फर्श पर पैर खींचते हुए उसने इयोना से पूछा:
“लकड़ी का
फर्श किसने बनाया?”
“कृषिदासों
ने,” इयोना ने अप्रियता से जवाब दिया,
“हमारे कृषिदासों ने.”
नंगा व्यंग्य
से मुस्कुराया.
“बढ़िया बनाया
है, इसमें कोई संदेह ही नहीं है. ज़ाहिर है, लम्बे समय तक सामान्य
जन कमर झुकाए इन चीज़ों को छीलते रहे, ताकि निठल्ले लोग उस पर
अपने पैर घसीट सकें. अनेगिन इत्यादि...ट्रिन्...ब्रिन्...रात भर...शायद, नाचते रहे होंगे. आखिर करने के लिए तो कुछ था ही नहीं.”
इयोना ने मन
में सोचा : ‘ये नंगा प्लेग कहाँ से चिपक गया, माफ़ करना खुदा’, - गहरी साँस ली, सिर हिलाया और उन्हें आगे ले चला.
मलिन हो गईं
सोने की फ्रेम्स में काले कैनवास के नीचे दीवारें लुप्त हो गईं. कैथरीन द्वितीय, सफ़ेद फ़र के चोगे में, खुले हुए सफ़ेद बालों में सोने
का मुकुट लगाए, काली, रंगी हुई भौंहों
के साथ, भारी मुकुट के नीचे से पूरी दीवार को देख रही थी. उसकी
नुकीली और पतली उंगलियाँ कुर्सी के हत्थे पर रखी थीं. सामने तैलचित्र में चपटी नाक
वाला नौजवान, सीने पर चतुष्कोणी सितारे लगाए दिखाई दे रहा था, जो अपनी माँ को घृणा से देख रहा था. और बेटे तथा माँ के चारों ओर,
प्लास्टर की हुई छत तक अपने रिश्तेदारों के साथ खड़े थे तुगाय-बेग-अर्दिन्स्की
राजकुमार और राजकुमारियाँ.
चमक बिखेरता, दरारों से काला पड़ गया, अस्पष्ट कहानियों और
किंवदंतियों के अनुसार अठारहवीं शताब्दी के चित्रकार के परिश्रमी ब्रश से चित्रित, समय के साथ धुंधले हो चुके कैनवास पर, अँधेरे में
बैठा था, तिरछा, काला और हिंसक, रंगीन मूल्यवान पत्थर जड़े चोगे में, मोती जडी मूठ की तलवार के साथ –
पूर्वज – मालाया वंश का शासक खान तुगाय.
500 वर्षों
से दीवारों से तुगाय-बेग राजकुमारों का वंश देख रहा था, प्रसिद्ध वंश, साहसी वंश,
राजसी, खान और शाही खानदानों का वंशज. धब्बों से धूमिल
कैनवासों से वंश का धब्बेदार इतिहास प्रकट हो रहा था, धब्बे
- कभी सैन्य-गौरव के, तो कभी लज्जा के,
प्रेम के, घृणा के, पाप के, व्यभिचार के...
चौकी पर बूढ़ी
माता की कांसे की अर्ध प्रतिमा थी - ठोढी के नीचे बंधे हुए कांसे के रिबन वाले
कांसे के टोप में, सीने पर कोई
अंक था, मृत अंडाकार शीशे जैसा. सूखा मुंह लटक रहा था, नाक तीखी थी. निरंतर व्यभिचारी किस्सों में लिप्त,
पूरी ज़िंदगी दुहरी प्रसिद्धी धारण किये – जगमगाती सुन्दरी और भयानक व्यभिचारिणी
मेस्सालीना की. वह कोहरे में लिपटे उत्तर के शानदार और भयानक शहर में किंवदंतियों
से लिपटी थी, क्योंकि पहला प्यार उसे ढलती उम्र में दिया, उसी सफ़ेद बालों वाले जनरल ने जिसका पोर्ट्रेट कार्यालय में अलेक्सांद्र प्रथम
की बगल में लटक रहा था. उसके हाथों से तुगाय-बेग–पिता के पास गयी और अंतिम वर्तमान
राजकुमार को जन्म दिया. वैधव्य प्राप्त होने पर वह इस बात के लिए प्रसिद्द हुई की
उसे नग्नावस्था में रस्सी पर तालाब में चार खूबसूरत शस्त्रधारी हायदुक नहलाते
थे...
नंगा भीड़ को
चीरकर आगे आया, उंगली के नाखून से कांसे के टोप पर
टकटक किया और बोला:
“तो, ये है कॉम्रेड्स, अद्भुत व्यक्ति. उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध की प्रसिद्ध
व्यभिचारिणी...”
पेट वाली
महिला लाल हो गयी, उसने लड़की का हाथ पकड़ा और उसे फ़ौरन एक तरफ़ ले गयी.
“ये तो, खुदा जाने क्या है...वेरच्का, देख, पूर्वजों की कैसी तस्वीरें हैं...”
“निकलाय पाल्किन
की प्रेमिका,” चश्मा ठीक करते हुए नंगा कहता रहा, “उसके बारे में कुछ बुर्जुआ लेखकों ने उपन्यासों में भी लिखा है. और यहाँ, अपनी ‘इस्टेट’ में वह क्या-क्या गुल खिलाती रही, समझ से परे है. एक भी ख़ूबसूरत लड़का ऐसा नहीं था,
जिस पर वह मेहेरबान न हुई हो...रंगीली रातें सजाती रही...”
इयोना ने
मुँह टेढ़ा किया, उसकी आंखों में धुंधली नमी तैर गई, और हाथ थरथराने लगे. वह कुछ कहना चाहता था, मगर
उसने कुछ नहीं कहा, सिर्फ दो बार गहरी सांस ली. सब उत्सुकता
से कभी सर्वज्ञानी नंगे की तरफ, तो कभी कांसे की बुढ़िया को देख रहे थे. मेकअप की
हुई महिला ने अर्धप्रतिमा का चक्कर लगाया, और ख़ास विदेशी ने
भी, हांलाकि वह रूसी शब्द नहीं समझ रहा था, नंगे की पीठ में बोझिल नज़र गड़ा दी और बड़ी देर तक उसे नहीं हटाया.
राजकुमार के
कार्यालय से होते हुए चले, जहां थे भाले, चौड़े फाल वाली तलवारें, मुडी हुई नोक की तलवारें, त्सार के कमांडरों के कवच, घुड़सवार रक्षकों के हेलमेट, अंतिम सम्राटों के
पोर्ट्रेट्स, तोपें, बंदूकें, तलवारें, पीली पड़ गईं तस्वीरें, - घुड़सवार रक्षकों के समूहों की, जिनमें वरिष्ठ तुगाय-बेग सेवारत थे, और घुड़सवारों की, जहां कनिष्ठ सेवारत थे, तुगाय-बेगों की घुड़साल में घुड़दौड़ के घोड़ों की तस्वीरें थीं, पुरानी, भारी किताबों से भरी अलमारियाँ थीं.
धूम्रपान के
कमरे से गुज़रे, जो तुर्की कालीनों से पूरी तरह ढंका
था, वहां हुक्के थे, दीवान थे,
काऊंटरों पर पाईप्स के संग्रह थे, छोटे मेहमान खानों से जहां
हल्के हरे रंग की टेपेस्ट्री, पुराने कार्सेल लैम्प थे. हरे कमरे से गए, जहां अभी तक चीड़ की टहनियां मुरझाई नहीं थीं, खेलने
वाले कमरे से गए, जहां कांच की अलमारियों में सोने का
मुलम्मा चढ़े चीनी बर्तन थे, जहां इयोना ने उत्सुकता से
दून्का की ओर देखा. यहाँ खेलने वाले कमरे में कैनवास पर सफ़ेद कोट में एक अकेला
शानदार ऑफिसर था, जो तलवार की मूठ पर झुका हुआ था. पेट वाली
महिला ने षट्कोणीय सितारे वाले हेलमेट को देखा, दस्तानों की घंटियों को देखा, काली, तीर की तरह ऊपर की तरफ ऐंठी हुई मूंछों को
देखा और इयोना से पूछा:
“और ये कौन
है?”
“अंतिम
राजकुमार”, गहरी सांस लेकर इयोना ने जवाब दिया,
“अंतोन इयानविच, कैवेलरी गार्ड के यूनिफ़ॉर्म में. वे सभी
कैवेलरी गार्ड्स में काम करते थे.”
“और अब वे
कहाँ हैं? क्या मर गए?” महिला ने सम्मान के साथ
पूछा.
“क्यों
मरेंगे...वे अब विदेश में हैं. शुरू में ही विदेश चले गए,” इयोना कड़वाहट से हकलाया, कि नंगा फिर से चिपक
जाएगा और कोई नया शिगूफा छेड़ेगा. और नंगा आदमी चहका और उसने अपना मुँह खोला, मगर नौजवानों की भीड़ से किसी आवाज़ ने फिर कहा:
“अरे, छोड़ भी, सिम्योन...बूढा है वह...”
और नंगा
हकलाया:
“क्या? ज़िंदा है?” महिला को आश्चर्य हुआ, “ये बढ़िया है!...और क्या उनके बच्चे हैं?”
“बच्चे नहीं
हैं,” इयोना ने उदास होकर कहा, “खुदा ने मेहेरबानी नहीं
की...हाँ. उनके छोटे भाई, पावेल इयानाविच, वो युद्ध में मारे गए. हाँ. जर्मनों से युद्ध कर रहे थे...वे
इन...घुड़सवार ग्रेनेडियर्स में काम करते थे...वे यहाँ के नहीं हैं. उनकी इस्टेट
समारा प्रांत में थी...”
“बढ़िया बूढा
है...” कोई प्रशंसा से फुसफुसाया.
“उसे खुद को
ही म्यूज़ियम में रखना चाहिए,” नंगा बुदबुदाया.
तंबू में आये.
गुलाबी सिल्क ऊपर की ओर सितारे की तरह फैला था और लहरों की तरह दीवारों से तैर रहा
था, गुलाबी कालीन हर आवाज़ को दबा रहा था. महीन गुलाबी टयूल से बनी एक जगह पर दो
व्यक्तियों के लिए नक्काशीदार पलंग था. जैसे अभी रात ही में वहां दो लोग सो रहे
थे. तंबू में हर चीज़ सजीव लग रही थी: चांदी के पत्तों की चौखट में आईना, छोटी सी मेज़ पर रखा हड्डियों के कवर वाला अल्बम, और
चित्रफलक पर अंतिम राजकुमारी का पोर्ट्रेट – युवा राजकुमारी,
गुलाबी वस्त्रों में. लैम्प, कट ग्लास की बोतलें, हल्की फ्रेम्स में कार्ड्स, फेंका हुआ तकिया सजीव प्रतीत हो रहा
था...करीब तीन सौ बार इयोना पर्यटकों को तुगाय-बैगों के शयन कक्ष में ले गया था और
हर बार उसे दर्द का, अपमान का एहसास होता था और दिल में टीस
उठाती, जब अनजान पैरों की कतार कालीनों पर चलती, जब पराई आंखें उदासीनता से बिस्तर को टटोलतीं. शर्मनाक. मगर आज इयोना के
सीने में विशेष रूप से दर्द हो रहा था – नंगे आदमी की उपस्थिति के कारण और किसी
अज्ञात कारण से भी, जिसे समझना असंभव था...इसलिए जब निरीक्षण
समाप्त हुआ तो इयोना ने राहत की सांस ली. वह बिनबुलाये मेहमानों को बिलियार्ड रूम
से होते हुए कॉरीडोर में ले गया, और वहाँ से पूरब की तरफ़ वाली दूसरी सीढ़ी से बगल
वाली छत पर, और बिदा कर दिया.
बूढ़े ने खुद
देखा कि कैसे मेहमान झुंड में भारी दरवाजे से निकल गए हैं और दून्का ने उस पर ताला
लगा दिया है.
,
*****
शाम हो गई,
और शाम की आवाजें आने लगीं. दूर कहीं, अरेश्नेवो के
पास चरवाहे बांसुरी बजा रहे थे, तालाबों के पीछे छोटी-छोटी
घंटियाँ बज रही थीं – गायों को भगा रहे थे. शाम को कहीं दूर कई बार खड़खड़ाहट हुई –
लाल सेना के कैम्पों में प्रशिक्षण चल रहा था. ..
इयोना बजरी
पर चलते हुए महल की ओर जा रहा था, और उसकी बेल्ट
पर चाभियां खनखना रही थीं. हर बार, जब भी मेहमान चले जाते, बूढ़ा सावधानी से महल में लौटता, और अपने आप से
बातें करते हुए और गौर से चीज़ों को देखता हुआ, अकेला ही उसका
चक्कर लगाता. इसके बाद उसे सुकून और आराम मिलता, और वह शाम
तक गार्ड-रूम के बरामदे में बैठ सकता था, सिगरेट पीते हुए
बुढापे की विभिन्नताओं के बारे में सोच सकता था.
शाम इसके लिए
अनुकूल थी, उजली और गर्माहट भरी, मगर इयोना के
दिल में जैसे जानबूझकर शान्ति नहीं थी. शायद इसलिए, कि नंगे
आदमी ने उसे परेशान और उद्विग्न कर दिया था. कुछ कुछ बुदबुदाते हुए इयोना छत पर
आया, नाक-भौंह चढ़ाकर चारों ओर देखा, चाभियाँ खडखडाईं और भीतर
गया. कालीन पर हौले-हौले चलते हुए वह सीढ़ी से ऊपर गया.
बाल-रूम वाले
प्रवेश के पास वह रुका और पीला पड़ गया.
महल में
पैरों की आहट थी. वह बिलियर्ड रूम की तरफ़ से आ रही थी, मनोरंजन कक्ष से गुज़री और
फिर शांत हो गयी. बूढ़े का दिल पल भर के लिए रुक गया, उसे ऐसा लगा कि वह मर जाएगा. फिर दिल तेज़ी से धड़कने लगा, कदमों की आहट से मुकाबला करते हुए. कोई इयोना की तरफ़ आ रहा था, इसमें कोई संदेह नहीं था, मज़बूत कदमों से, और ऑफिस
के कमरे में लकड़ी का फर्श चरमरा रहा था.
‘चोर!
मुसीबत...’ बूढ़े के दिमाग में ख़याल कौंध गया. ‘ये ही है, भविष्यवाणी, पूर्वाभास... मुसीबत’. इयोना ने
थरथराहट से आह भरी, भय से चारों तरफ़ देखा, समझ न पाते हुए कि क्या करे, कहाँ भागे, चिल्लाए.
मुसीबत...
बॉलरूम के
दरवाज़े में भूरे ओवरकोट की झलक दिखाई दी और सुनहरे चश्मे वाला विदेशी दिखाई दिया.
इयोना को देखकर, वह कांप गया, डर गया,, लड़खड़ा भी गया, मगर उसने फ़ौरन अपने आप को संभाल लिया
और सिर्फ उत्तेजना से इयोना को उंगली से धमकाया.
“आप क्या कर रहे हैं? महाशय?” इयोना भय से बड़बड़ाने लगा। उसके
हाथों-पैरों में हल्की कंपकंपाहट होने लगा। “यहाँ नहीं रह सकते. आप यहाँ रह कैसे
गए? लॉर्ड, मेरे खुदा...” इयोना की सांस रुक गई, और वह खामोश
हो गया.
विदेशी ने
गौर से इयोना की आंखों में देखा और, नज़दीक आकर, हौले से रूसी में बोला:
“इयोना, शांत हो जा! कुछ देर खामोश हो जा. क्या तू अकेला है?”
“ अकेला
हूँ...” गहरी सांस लेते हुए इयोना ने कहा, “मगर आप यहाँ
क्यों हैं, जन्नत की महारानी?”
विदेशी ने
उत्सुकता से चारों ओर देखा, फिर इयोना के
ऊपर से लॉबी में नज़र दौडाई, इत्मीनान कर लिया की इयोना के
पीछे कोई नहीं है, पीछे वाली जेब से दाहिना हाथ बाहर निकाला
और जोर से, तुतलाते हुए कहा:
“नहीं
पहचाना. इयोना? बुरी बात है,
बहुत बुरी बात...अगर तुम मुझे नहीं पहचानते, तो ये बुरी बात
है.”
उसकी आवाज़ ने
इयोना को जैसे मार डाला, उसके घुटने थरथराने लगे, हाथ ठण्डे पड़ गए, और चाभियों का गुच्छा फर्श पर गिर
पडा.
“प्रभु येशू!
महामहिम. पिता, अन्तोन इयानविच. ये सब क्या है? आखिर ये क्या
है?”
आंसुओं के
कारण हॉल में कोहरा भर गया, कोहरे में सुनहरा चश्मा, फीलिंग्स, जानी पहचानी चमकदार, तिरछी आंखें उछलने लगीं. इयोना का दम घुट रहा था,
वह सिसकियाँ ले रहा था, राजकुमार की कड़ी दाढ़ी में अपना
थरथराता हुआ सिर घुसाए दस्ताने, टाई भिगो रहा था.
“शांत हो जा, इयोना, शांत हो जा, खुदा के
लिए,” वह बुदबुदाया, और उसका चेहरा
करुणा और घबराहट से टेढ़ा हो गया, “कोई सुन लेगा...”
“मा...मालिक,” इयोना थरथराते हुए फुसफुसाया, “कैसे...आप कैसे आये? कैसे? कोई नहीं है. नहीं है कोई, सिर्फ मैं ही हूँ...”
“बढ़िया, चाभियाँ ले. वहां जायेंगे, कार्यालय में!”
राजकुमार
मुड़ा और मज़बूत कदमों से गैलरी से होकर कार्यालय की ओर चला. चकित इयोना ने थरथराते
हुए चाभियाँ उठाईं और पैर घसीटते हुए उसके पीछे-पीछे चल पडा. राजकुमार ने चारों ओर
नज़र दौडाई, भूरी पंखों वाली टोपी उतारी, उसे मेज़
पर फेंका और कहा:
“बैठ, इयोना, आरामकुर्सी में!”
इसके बाद गाल
टेढा करते हुए दूसरी कुर्सी की पीठ से, जिसमें पढ़ने के
लिए लकड़ी का तख्ता लगा था, लिखी हुई इबारत, ‘कुर्सियों में न बैठे ’ फाड़ दी और इयोना के सामने बैठ गया. जैसे
ही भारी शरीर नरम परों वाली कुर्सी में धंसा , गोल मेज़ पर
रखा लैम्प दयनीयता से फड़फड़ाया.
इयोना के
दिमाग़ में सब गड्ड-मड्ड हो रहा था, और ख़याल
बेतरतीबी से उछल रहे थे, जैसे किसी थैले से खरगोश विभिन्न
दिशाओं में उछलते हैं.
“आह, तुम कितने जर्जर हो गए हो. इयोना, खुदा, कितने बूढ़े हो!” राजकुमार ने चिंता से कहा. “मगर,
मैं खुशनसीब हूँ, कि तुम्हें सही-सलामत देख पाया. मैंने, मानता हूँ, सोचा था कि तुम्हें नहीं देख पाऊंगा. सोचा,
कि यहाँ तुम्हें मार डाला गया है...”
इयोना राजकुमार
के स्नेह से बहुत व्याकुल हो गया और आंखें पोंछते हुए हौले से सिसकियाँ लेने
लगा...
“अरे, बस, बस, रुक जा...”
“कैसे...आप
आये कैसे, मालिक?” नाक सुड़कते हुए इयोना ने पूछा. “और, मैं, बेवकूफ
बूढा, आपको पहचान
कैसे नहीं पाया? मेरी नज़र कमजोर होती जा रही है...आप वापस कैसे आये, मालिक? आपका चश्मा , चश्मा ,
ये ख़ास बात है हो, और दाढी...और, आप भीतर कैसे आये, कि मैं देख नहीं पाया?”
तुगाय-बेग ने
वास्कट की जेब से चाभी निकाली और इयोना को दिखाई.
“पार्क से
छोटे बरामदे से होकर, मेरे दोस्त! जब
वो सब कमीने चले गए, मैं वापस आ गया. और चश्मा (राजकुमार ने
चश्मा उतार दिया), चश्मा तो, विदेश में ही लगा लिया था. ये प्लेन कांच वाला है.”
“और राजकुमारी, खुदा, क्या राजकुमारी आपके साथ हैं?”
राजकुमार का
चेहरा फ़ौरन बूढ़ा हो गया.
“मर गई राजकुमारी, पिछले साल मर गई,” उसने जवाब दिया और उसका मुंह
थरथरा गया, “पैरिस में निमोनिया से मर गई. अपना घोंसला नहीं
देख पाई, मगर पूरे समय उसे याद करती रही. बहुत याद करती थी.
और मुझे सख्त हिदायत दी, कि मैं अगर तुम्हें देखूं, तो चूम लूँ. उसे पक्का विश्वास था, कि हम ज़रूर
मिलेंगे. खुदा से प्रार्थना करती रही. देख, खुदा ही मुझे
यहाँ ले आया.”
राजकुमार उठा, उसने इयोना को अपनी बांहों में लिया और उसके गीले गाल को चूम लिया. इयोना
ने आंसू बहाते हुए किताबों की अलमारियों पर, अलेक्सान्द्र प्रथम
पर, खिड़की पर, जहां बिल्कुल नीचे सूर्यास्त पिघल रहा था नज़र
डाली.
“ख़ुदा की
सल्तनत, ख़ुदा की सल्तनत,” थरथराती आवाज़ में
वह बुदबुदाया, “स्मारक सभा, स्मारक सभा
करूंगा अरेश्नेवो में.”
राजकुमार ने
उत्सुकता से चारों ओर देखा, उसे ऐसा लगा, की कहीं फर्श चरमरा रहा है.
“कोई नहीं है?”
“नहीं.
परेशान न हों, मालिक, सिर्फ हम ही हैं. मेरे अलावा
और कौन आयेगा.”
“तो, बात ये है. सुन, इयोना. मेरे पास वक्त कम है. काम
की बात करें.”
इयोना का
दिमाग़ सतर्क हो गया. क्या, सचमुच में?
आखिर वही तो है. ज़िंदा! वापस आया है. और यहां....किसान,
किसान-तो!...खेत?
“सही में, महामहिम,” उसने मिन्नत से राजकुमार की ओर देखा, “ अब कैसे होगा? घर तो? क्या
वापस करेंगे?...”
इयोना की बात
पर राजकुमार इस तरह हंसा की उसके दांत सिर्फ एक तरफ से – दाईं तरफ से दिखाई दिए.
“वापस करेंगे? तू क्या कह रहा है, प्यारे!”
राजकुमार ने
पीला भारी पोर्टसिगार निकाला, सिगरेट जलाई और कहता रहा:
“नहीं, प्यारे इयोना, वे मुझे कुछ भी वापस नहीं लौटायेंगे...तू, ज़ाहिर है, भूल गया है कि क्या हुआ था...बात ये नहीं है. तू सिर्फ इस बात
पर ध्यान दे कि मैं यहाँ सिर्फ एक मिनट के लिए आया हूँ, और गुप्त रूप से. तुझे
परेशान होने की कोई ज़रुरत नहीं है, यहाँ किसी को भी कुछ पता
नहीं चलेगा. इस बात से तो ज़रा भी परेशान होने की ज़रुरत नहीं है. मैं यहाँ आया हूँ
(राजकुमार ने धूमिल होते हुए उपवनों की ओर देखा), पहली बात,
यह देखने के लिए की यहाँ चल क्या रहा है. थोड़ी बहुत जानकारी मुझे मिली है; मुझे मॉस्को से मित्रों ने लिखा है कि महल सही-सलामत है, कि उसे राष्ट्रीय खजाने के रूप में संभाल कर रखेंगे... रा-ष्ट्रीय...(राजकुमार
के दांत दाईं ओर से बंद हो गए और बाईं ओर से खुल गए). राष्ट्रीय तो राष्ट्रीय, शैतान उन्हें ले जाए. सब एक ही बात है. बस, सिर्फ
सही-सलामत रहे. ये तो और भी ज़्यादा बेहतर है...तो, बात ये है, कि मेरे कुछ महत्वपूर्ण कागज़ात यहाँ रह गए हैं. उनकी मुझे बेहद ज़रुरत है. समारा और पेंज़ा की इस्टेट के बारे
में. और पावेल इवानविच भी. बताओ, क्या मेरा कार्यालय सही-सलामत है, या उसे लूट लिया गया है?” राजकुमार ने परदे की ओर देखते हुए व्यग्रता से सिर
हिलाया.
इयोना के दिमाग़
में जैसे ज़ंग लगे चक्र घूम रहे थे. आंखों के सामने अलेक्सान्द्र एर्तुस प्रकट हो
गया, पढ़ा लिखा आदमी, बिल्कुल वैसे ही चश्मे
में जैसा राजकुमार ने पहना था. आदमी सख्त और
महत्वपूर्ण था. वैज्ञानिक एर्तुस हर इतवार को मॉस्को से आता, चरमराते लाल जूतों में महल में घूमता, हिदायतें देता, सब कुछ हिफाज़त से रखने के निर्देश देता और अपने कार्यालय में घंटों
बैठा रहता, गर्दन तक
किताबों, पांडुलिपियों, और पत्रों से घिरा हुआ. इयोना उसके लिए मटमैली चाय लेकर आता. एर्तुस
हैम-सैंडविच खाता और अपनी कलम करकराता रहता. कभी कभी वह इयोना से भूतपूर्व ज़िंदगी
के बारे में पूछता और मुस्कुराते हुए लिख लेता.
“कार्यालय तो सही-सलामत है,” इयोना बुदबुदाया, “मगर हाय, मालिक, महामहिम, वह सीलबंद है. सीलबंद.”
“किसने सीलबंद किया है?”
“कमिटी के एर्तुस अलेक्सान्द्र अब्रामविच
ने...”
“एर्तुस”? तुगाय-बेग ने तुतलाते हुए
पूछा. “एर्तुस ही क्यों, कोई और मेरे कार्यालय को सीलबंद नहीं करता?”
“वो कमिटी से है, मालिक,” इयोना ने
अपराध बोध से उत्तर दिया, मॉस्को से. उसे, देखिये,
देखरेख का भार सौंपा गया है. यहाँ,
महामहिम, नीचे तो
लाइब्रेरी होगी और किसानों को पढ़ाया जाएगा. तो, वह
लाइब्रेरी बना रहा है.”
“ आह, ये
बात है! लाइब्रेरी,” राजकुमार
मुस्कुराया, “ये तो अच्छी
बात है! उम्मीद करता हूँ की मेरी किताबें उनके लिए पर्याप्त होंगी? अफसोस है कि
मुझे इस बारे में मालूम नहीं था, वरना मैं उनके
लिए पैरिस से और किताबें भेज देता. क्या पर्याप्त होंगी?”
“काफी होंगी, महामहिम,” इयोना अनमनेपन
से भर्राया, “किताबें तो
आपके पास काफ़ी सारी हैं,” राजकुमार के चेहरे
की ओर देखते ही इयोना की पीठ में ठंडी लहर दौड़ गयी.
तुगाय-बेग आरामकुर्सी में सिकुड़ गया, वह ठोढी को नाखूनों से खुजा रहा था,
फिर उसने दाढी को मुट्ठी में दबा लिया और
आश्चर्यजनक रूप से वह टोप पहने तिरछे आदमी की तस्वीर जैसा लगने लगा. उसकी
आंखों पर जैसे चिता की राख छा गई.
“काफ़ी हैं? बढ़िया. देख रहा हूँ, कि ये तेरा एर्तुस पढ़ा लिखा आदमी है और प्रतिभाशाली
है. लाइब्रेरियाँ बनाता है, मेरे कार्यालय
में बैठता है. हाँ-आ. खैर...और तू जानता है,
इयोना, कि जब ये एर्तुस लाइब्रेरी बना लेगा तो क्या होगा?”
इयोना खामोश रहा और आंखें फाड़े देखता
रहा.
“इस एर्तुस को मैं यहाँ, इस चीड़ के पेड़
पर लटका दूंगा,” राजकुमार ने
सफ़ेद हाथ से खिड़की की ओर इशारा किया,
“जो गेट के पास है. (इयोना ने हाथ की तरफ़ पीड़ा और विनम्रता से देखा,) नहीं, दाईं ओर, जाली
के पास. फिर ये एर्तुस एक दिन रास्ते की तरफ़ मुंह किये लटकेगा, ताकि किसान इस लाइब्रेरी बनाने वाले की तारीफ़ कर सकें, और एक दिन चेहरा इस तरफ़ किये,
ताकि वह खुद अपनी लाइब्रेरी देखकर खुश हो जाए. मैं यह करूंगा. इयोना, कसम से कहता हूँ, चाहे कुछ भी
क्यों न हो जाए. वह घड़ी आयेगी. इयोना,
यकीन रख, और, हो सकता है, बहुत जल्दी
आयेगी. और इस एर्तुस को पाने के मेरे पास कई तरीके हैं. इत्मीनान रख...”
इयोना ने कांपते हुए गहरी सांस ली.
“और बगल में,” राजकुमार रहस्यमय आवाज़ में कहता रहा,
“जानता है किसे लटकाऊंगा? उस नंगे को. अन्तोनव सिम्योन. सिम्योन अन्तोनव,” – नाम
याद करते हुए उसने आंखें आसमान की ओर उठाईं. “वादा करता हूँ, मैं कॉमरेड अन्तोनव को समुन्दर के तल से भी ढूंढ लाऊंगा, अगर वह तब
तक मर न गया हो तो, या फिर उसे
‘लाल चौक’ पर खुले आम
फांसी न हो. मगर यदि लटकायेंगे भी, तो
मैं फिर से अपने यहाँ दो-एक दिन के लिए लटकाऊंगा. अन्तोनव सिम्योन एक बार खान के
मुख्यालय में मेहमाननवाज़ी का लुत्फ़ उठा चुके हैं और नाक पकड़ चश्मा पहन कर महल में
नंगे घूम चुके हैं,” तुगाय ने थूक निगला,
जिससे तातार गालों की हड्डियां गांठों की तरह उभर आईं, “तो क्या हुआ, मैं उसे एक बार फिर बुलाऊँगा, और वह भी नंगा. अगर वह ज़िंदा मेरे हाथ
पड़ जाए, ऊ-इयोना!...मैं
अन्तोन सिम्योन को बधाई नहीं दूंगा. वह लटकता रहेगा, न
सिर्फ बगैर पतलून के, बल्कि बगैर
चमड़ी के भी! इयोना! तू सुन रहा है,
उसने राजकुमारी-माँ के बारे में क्या कहा था?
सुना था?”
इयोना ने कड़वाहट से गहरी सांस ली और
मुड़ गया.
“तू वफ़ादार सेवक है, और, जब तक मैं
ज़िंदा रहूँगा, भूलूंगा नहीं
की तू नंगे के साथ किस तरह बातचीत कर रहा था. कहीं अभी तेरे दिमाग में ये ख़याल तो
नहीं आ रहा है, कि मैंने नंगे
को उसी पल क्यों नहीं मार डाला?आ? आखिर, तू तो मुझे जानता है. इयोना,
काफी सालों से?” – तुगाय-बेग ने
अपने ओवरकोट की जेब में हाथ डाला और उसमें से चमचमाता हुआ, नक्काशीदार हैंडल बाहर
निकाला; मुंह के कोनों पर स्पष्ट रूप से सफ़ेद फेन दिखाई दिया, और आवाज़ पतली और कर्कश हो गई. “मगर,
नहीं मारा! नहीं मारा. इयोना, क्योंकि समय पर
अपने आप को रोक लिया. मगर अपने आप पर संयम रखने के लिए मुझे कितनी कोशिश करनी पडी,
सिर्फ मैं ही जानता हूँ. मारना असंभव था. इयोना. ये कमज़ोरी होती और ये कोशिश असफल
हो जाती, मुझे पकड़ लिया जाता, और मैं कुछ भी
न कर पाता, जिसके लिए आया हूँ. हम करेंगे. इयोना,
बड़ा काम करेंगे...ज़्यादा अच्छी तरह,”
राजकुमार ने अपने आप से बुदबुदाकर कुछ कहा और खामोश हो गया.
इयोना बैठा रहा, भ्रमित सा, और उसके भीतर राजकुमार के शब्दों से ठंडक दौड़ गयी, जैसे उसने बहुत सारे पुदीने के पत्ते निगल लिए हों. दिमाग में कोई
भी ख़याल नहीं था, बस, ख़यालों के
टुकड़े थे. शाम का धुंधलका
स्पष्ट रूप से कमरे में रेंगने लगा. तुगाय ने जेब में हाथ डाला, भौंहे चढ़ाईं, उठ गया और घड़ी
की ओर देखा.
“तो, ये
बात है. इयोना, देर हो गयी है.
जल्दी करना होगा. रात को मैं चला जाऊँगा. चलो,
सलीके से काम करें. पहली बात, ये है,” राजकुमार के हाथों में पर्स दिखाई दिया, “ले. इयोना, ले ले, वफादार दोस्त! इससे ज़्यादा नहीं दे सकता, खुद ही तंगी में हूँ.”
“किसी हालत में नहीं लूँगा,” इयोना
भर्राया और हाथ हिलाने लगा.
“लो!” तुगाय ने कठोरता से कहा और खुद
ही इयोना के जैकेट-कोट की जेब में
नोटों की गड्डी ठूंस दी. इयोना सिसकने लगा. “बस इतना ध्यान रख कि यहाँ न बदलना, वरना पीछे पड़ जायेंगे - कहाँ से आये. खैर, अब सबसे महत्वपूर्ण बात. इयोना वसील्येविच, ट्रेन के टाईम तक महल में रुकने की इजाज़त दे. रात को दो बजे मैं
मॉस्को चला जाऊंगा. मैं कार्यालय में कुछ ज़रूरी कागज़ात छाटूँगा.”
“मगर
मालिक, सील,” इयोना ने दयनीयता से कहा.
तुगाय दरवाज़े की ओर गया, पर्दा हटाया और एक ही झटके से मोम की सील लगी रस्सी को तोड़ दिया.
इयोना हांफने लगा.
“बकवास,”
तुगाय ने कहा, “तू, सबसे ख़ास बात, डरना नहीं!
डरना नहीं, मेरे दोस्त!
मैं वादा करता हूँ, कि इस तरह से
करूँगा कि तू किसी भी बात के लिए जवाबदेह नहीं होगा. मेरी बात का यकीन है? तो, ये बात है...”
*****
आधी रात
होने को आई. इयोना को
गार्ड-रूम में नींद ने घेर लिया. आउट-हाउस में थकी हारी तात्याना मिखाइलव्ना और
मूम्का सो रहे थे. चाँद की रोशनी में चकाचौंध करता महल सफ़ेद, गुमसुम था...
कस कर बंद किये गए काले परदों के पीछे
कार्यालय में खुले काउंटर पर केरोसीन का लैम्प जल रहा था, मंद-मंद और हरे रंग से
फर्श पर, आराम कुर्सी पर, और लाल कपड़े पर
पड़े कागज़ात को रोशन करते हुए. बगल ही में, दोहरे पर्दों से बंद बड़े कार्यालय में
शमादानों में स्टीयरिन की मोमबत्तियां जल रही थीं. अलमारियों में रखी किताबों की
जिल्दें हल्की चमक से जगमगा उठीं, अलेक्सांद्र प्रथम जीवित हो उठा और, गंजा, दीवार से हौले
से मुस्कुराया.
कार्यालय में मेज़ के पीछे सिविल ड्रेस
में और सिर पर घुड़सवार सेना का हेल्मेट पहने एक आदमी बैठा था. सितारे वाले धुंधले
धातु के चित्र में गरुड़ विजयी मुद्रा में उड़ान भर रहा था. आदमी के सामने कागज़ात के
ढेर के ऊपर एक मोटी मोमजामे वाली नोटबुक पड़ी थी. पहले पन्ने पर मोतियों जैसे
अक्षरों में लिखा था:
अलेक्स एर्तुस.
खान के मुख्यालय का इतिहास.
नीचे:
1922-1923.
गालों पर मुट्ठियाँ टिकाए तुगाय धुंधली आंखों
से, बिना नज़र हटाए काली पंक्तियों को देख रहा था. चारों ओर निपट सन्नाटा था, और खुद तुगाय सुन रहा था, कि
कैसे उसके जैकेट में निरंतर मिनटों को काटते हुए घड़ी चल रही थी. और बीस मिनट और
आधा घंटा राजकुमार निश्चल बैठा रहा.
अचानक एक लम्बी यातनामय आवाज़ परदों से
भीतर घुस गयी. राजकुमार जाग गया, कुर्सियाँ
खड़खड़ाते हुए खड़ा हो गया.
“ऊ-ऊ, कमीना कुत्ता,” वह बुदबुदाया और
सामने वाले कार्यालय में आया. अलमारी के टिमटिमाते कांच में चमकदार सिर वाला
धुंधला घुड़सवार उसके सामने आया. कांच के करीब जाकर तुगाय ने गौर से उसे देखा, पीला पड़ गया, दर्द से
मुस्कुराया.
“फू,”
वह फुसफुसाया, “पागल हो जाओगे.”
उसने हेल्मेट उतार दिया, कनपटी को पोंछा, कांच की तरफ़
देखते हुए कुछ सोचा और अचानक तैश में हेल्मेट को इस तरह ज़मीन पर दे मारा कि कमरों
में गड़गड़ाहट हुई और अलमारियों के कांच दयनीयता से कराह उठे. इसके बाद तुगाय झुक
गया, उसने अपना टोप पैर से कोने में फेंक
दिया और कालीन पर खिड़की की ओर, और फिर वापस चहलकदमी करने लगा. अकेलेपन में, प्रकट रूप से महत्वपूर्ण और परेशान करने वाले ख़यालो से भरा हुआ, वह लड़खड़ाने लगा, बूढ़ा हो गया और
बुदबुदाते हुए, होंठ काटते हुए
अपने आप से बातें करने लगा:
“ये नहीं हो सकता.
नहीं...नहीं...नहीं...”
लकड़ी का फ़र्श चरमराया, और मोमबत्तियों
की लौ लेट गई और फड़फड़ाने लगी. अलमारियों में भूरे बालों वाले अस्थिर लोग प्रकट
होने लगे और लुप्त होने लगे. एक तीखा मोड़ लेकर तुगाय दीवार के पास गया और गौर से
देखने लगा. एक लम्बी तस्वीर में अर्ध गोल बनाते हुए सिरों पर गरुड़ पक्षी रखे वैसे
भी अमर और जमे हुए लोग खड़े और बैठे हुए थे. दस्तानों की सफ़ेद घंटियाँ, चौड़ी तलवारों के हत्थे. इस विशाल समूह के ठीक केंद्र में एक
सीधा-सादा, दाढ़ी और मूंछों वाला आदमी बैठा था, जो
रेजिमेंट के डॉक्टर जैसा था. मगर खड़े हुए और बैठे हुए घुड़सवार-रक्षकों के सिर आधे
मुड़े हुए, तनावपूर्ण
मुद्रा में छोटे आदमी पर टिके हुए थे, जो
हेल्मेट के नीचे दब गया था.
श्वेत,
तनावग्रस्त घुड़सवार दस्ते के सैनिकों पर छोटा आदमी भारी
पड़ रहा था, तांबे पर उसके
बारे में लिखा हुआ वर्णन भी उन पर दबाव डाल रहा था. उसका हर शब्द बड़े अक्षर से
लिखा हुआ था. तुगाय बड़ी देर तक स्वयं को देखता रहा, जो
तस्वीर में छोटे आदमी से दो आदमियों के बाद बैठा था.
“ये नहीं हो सकता,” तुगाय ज़ोर से बोला
और उसने विशाल कक्ष में चारों तरफ़ नज़र दौडाई,
जैसे अनेक वार्ताकारों को गवाह के रूप में आमंत्रित कर रहा हो. “ये सपना है.” वह
फिर से अपने आप से बुदबुदाया, इसके बाद असंगत
रूप से कहता रहा: “एक, दोनों में से
एक; या तो ये मर चुका है...और
वह...वो...ये ज़िंदा है...या मैं...समझ में नहीं आ रहा है...”
तुगाय ने बालों पर हाथ फेरा, मुड़ा, अलमारी की ओर
जाते हुए व्यक्ति को देखा, अनचाहे ही
सोचने लगा: “मैं बूढ़ा हो गया”, - फिर से बुदबुदाया: “मेरे ज़िंदा खून से होकर, हर जीवित चीज़ के बीच, जा
रहे थे और कुचल रहे थे, जैसे मुर्दे को
कुचलते हैं. हो सकता है, मैं सचमुच में
मुर्दा हूँ? मैं – छाया हूँ? मगर मैं तो जी रहा हूँ,”
तुगाय ने प्रश्नार्थक दृष्टि से अलेक्सान्द्र प्रथम की ओर देखा, “मैं हर चीज़ का अनुभव कर रहा हूँ, महसूस
कर सकता हूँ. स्पष्ट रूप से दर्द महसूस कर रहा हूँ,
मगर सबसे ज़्यादा क्रोध.” तुगाय को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे अँधेरे कक्ष में नंगे आदमी
की झलक दिखाई दी है, तुगाय के जोड़ों
में नफ़रत की ठंडक दौड़ गई. “मुझे अफ़सोस है की मैंने गोली नहीं चलाई. पछता रहा हूँ.”
उसके भीतर क्रोध उफनने लगा, और ज़ुबान सूख
गई.
वह फिर से मुड़ा और खामोशी से खिड़की तक
जाता और वापस लौटता, हर बार दीवार
की ओर मुड़कर समूह की तस्वीर पर नज़र डालता. इस तरह करीब पंद्रह मिनट बीत गए. तुगाय
अचानक रुक गया, बालों पर हाथ
फेरा, जेब में हाथ डाला और पुनरावर्तक (रिपीटर) को दबाया. जेब में हौले से और
रहस्यमय ढंग से बारह घंटे बजे, कुछ अंतराल के
बाद दूसरे स्वर में एक बार चौथाई और कुछ और अंतराल के बाद तीन मिनट.
“आह,
माय गॉड,” तुगाय फुसफुसाया और शीघ्रता से काम करने लगा. उसने चारों तरफ़ नज़र दौडाई
और सबसे पहले मेज़ से चश्मा उठाकर पहन लिया. मगर अब उन्होंने राजकुमार को ज़्यादा
परिवर्तित नहीं किया. उसकी आंखें तिरछी थीं,
जैसे कैनवास पर खान की थीं, और उनमें सिर्फ हल्की सी आग थी – हताश, परिपक्व निश्चय की आग. तुगाय ने ओवरकोट और टोप पहना, और कार्यालय
में वापस आया, सावधानी से
आराम कुर्सी पर रखा हुआ चर्मपत्रों का और सील लगे हुए कागजों का गट्ठा उठाया, उसे मोड़ा और मुश्किल से ओवरकोट की जेब में ठूंसा. इसके बाद मेज़ पर
बैठ गया और आख़िरी बार कागजों के गट्ठे को जांचा, गाल को खींचा और, निश्चयपूर्वक आंखें तिरछी करते हुए काम शुरू कर दिया. ओवरकोट की
चौड़ी आस्तीनों को मोड़ कर, सबसे पहले उसने एर्तुस की पांडुलिपी उठाई, फिर एक बार पहला पृष्ठ पढ़ा, दांत दिखाए और उसे हाथों से फाड़ दिया.
खट्ट से नाखून तोड़ बैठा.
“आह...प्लेग!” राजकुमार भर्राया, उंगली
पोंछी और ज़्यादा सावधानी से काम करने लगा. कुछ पन्ने फाड़कर, उसने धीरे-धीरे पूरी
नोटबुक के टुकड़े-टुकड़े कर दिये. उसने मेज़ और कुर्सियों से कागजों के ढेर खींचे और
अलमारियों से भी कागजों के गट्ठे बाहर खींचे. दीवार से एलिजाबेथ युग की महिला की
छोटी सी तस्वीर खींची, पैर के एक वार
से फ्रेम के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. इन टुकड़ों का ढेर मेज़ पर लगा दिया और, लाल होकर, उसे पोर्ट्रेट
के नीचे वाले कोने में सरका दिया. लैम्प उतारा, उसे
सामने वाले कार्यालय में ले गया, और वापस जाकर
शमादान के साथ वापस लौटा, और सावधानीपूर्वक ढेर में तीन स्थानों पर आग लगा दी. धुआं
ऊपर की ओर भागने लगा, ढेर छटपटाने
लगा, कार्यालय अचानक प्रसन्नता से असमान
रोशनी से जगमगा उठा. पांच मिनट बाद धुएँ से दम घुटने लगा.
परदा और दरवाज़ा थोड़ा सा खोलकर तुगाय
बगल वाले कार्यालय में काम कर रहा था. अलेसान्द्र प्रथम के खुले हुए पोर्ट्रेट पर
चटचटाते हुए लौ तेज़ी से फ़ैल रही थी, और
धुएँ में गंजा सिर चालाकी से मुस्कुरा रहा था. मेज़ पर जर्जर ग्रन्थ सीधे जल रहे थे, और कपड़ा सुलग रहा था. कुछ दूरी पर राजकुमार कुर्सी पर बैठा देख रहा
था. अब उसकी आंखों में धुएँ के कारण आंसू और एक खुशनुमा, वहशी ख़याल तैर रहा था. वह फिर से बुदबुदाया:
“कुछ भी वापस नहीं आयेगा. सब ख़त्म हो
गया. झूठ बोलने की ज़रुरत नहीं है. तो, ये
सब हम अपने साथ ले जायेंगे, प्यारे
एर्तुस.”
राजकुमार धीरे-धीरे एक कमरे से दूसरे
कमरे में पीछे हटने लगा, और भूरा धुआँ उसके पीछे पीछे, बॉलरूम जैसी रोशनी से
हॉल जल रहा था. परदों पर भीतर ज्वालाओं की परछाईयाँ खेल रही थीं, झूम रही थीं.
गुलाबी तंबू में राजकुमार ने लैम्प की
बत्ती हटा दी और बिस्तर पर केरोसिन डाला;
धब्बा फ़ैल गया और कालीन पर टपकने लगा. तुगाय ने बत्ती को धब्बे पर फेंक दिया. पहले
तो कुछ नहीं हुआ, मगर फिर वह
अचानक उछला, और फुफकारते
हुए ऊपर की तरफ़ लपका, ऐसे कि तुगाय
मुश्किल से उछल कर दूर हो सका. ऊपर का शिखर एक मिनट बाद चपेट में आया, और फ़ौरन, उल्लास से,
तम्बू आख़िरी तार तक जल गया.
“अब इत्मीनान कर सकता हूँ,” तुगाय ने कहा और तेज़ी से लपका.
वह गेस्ट रूम से, बिलियार्ड रूम से होकर अँधेरे कॉरीडोर में गया, खड़खड़ाते हुए, सर्पिल सीढ़ी से निचली, उदास मंजिल पर आया, चाँद की रोशनी से प्रकाशित
दरवाज़े से छाया की तरह पूरब की तरफ वाली छत पर आया, उसे खोला, और बाहर पार्क में निकल गया. गार्ड रूम से इयोना की
पहली चीख़, सीज़र का विलाप न सुनाई दे, इसलिए सिर को कन्धों में घुसा लिया और अविस्मरणीय
गुप्त पगडंडियों से अंधेरे में कूद गया....
*******